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आदित्य अग्रवाल (१० बी)
“तुम्हारी िािी लड्ड
ू बहुत बदिया बनाती हैं, लेदिन मैंने उन्हें िभी नहीीं िेखा!” सौरभ बोला। “हााँ वे
यहााँ मुींबई आतीीं ही नहीीं। उन्हें गोवा िी शाींदत और हररयाली, मुींबई ि
े धूल-प्रिू षण और शोर से ज्यािा
अच्छी लगती है।” रोहन, सौरभ िो एि दडब्बा िेते हुए बोला “लेदिन वे हर िो महीने में ये लड्ड
ू
भेजती हैं।” वे िोनोीं थोड़ी और बाते िरने लगे दजसि
े बाि रोहन अपने घर िला गया|
19 वषष ि
े रोहन ने हाल ही में गाड़ी चलाना सीखा था और वह अभी अपने दमत्र, सौरभ ि
े घर िािी ि
े
बनाए लड्ड
ू िेने आया था। रास्ते में रोहन सोचने लगा- सौरभ गलत नहीीं िह रहा था। मैं िािी से
दपछली बार 10 साल पहले दमला था जब पूरा पररवार गोवा गया था। मैं तब 9 वषष िा था और ररया तो
दसर्
ष 4 साल दि ही थी। ररया रोहन िी छोटी बहन है।
घर पहुींच िर रोहन अपने दपताजी ि
े पास गया। “पापा, आपने िहा था दि िािी हमारे घर नहीीं आतीीं
क्ोींदि उन्हें मुींबई जैसे बड़े शहर पसींि नहीीं। तो क्ूाँ न हम िािी ि
े पास जाएीं ? िस साल हो गए हमें
िािी से दमले।” रोहन ि
े दपताजी ने िहा “बेटा, जाना तो मुझे भी हैं लेदिन क्ा िरें, मुझे और
तुम्हारी मााँ िो िाम इतना है, जाने िा समय िहााँ से दमलेगा?” रोहन चुप-चाप अपने िमरे में चला
गया।
उसी रात जब रोहन सोने वाला था, उसिी बहन ररया उसि
े िमरे में आ गयी “भईया, यह ि
ैं सर ि
े
बारे में सुना है लेदिन यह स्टेज २ ि
ैं सर क्ा होता है?” रोहन वही ि
े वही रुि गया।
“क्ूाँ? तुम्हें उससे क्ा लेना िेना? ि
ैं सर दिसे हुआ?”
“ि
ु छ नहीीं ऐसे ही पूछ रही थी।”
“झूठ मत बोलो। मैं समझ सिता हाँ दि तुम सच नहीीं बोल रही हो”
ररया दहचदिचाई “स्टेज २ ि
ैं सर िािी िो हैं”
“क्ा िहा तुमने?” रोहन आश्चयषचदित रह गया “िािी िो! यह तुम्हें दिसने बताया?”
“दिसी ने नहीीं। मुझे मााँ दि अलमारी में एि खत दमला।”
“खत? ि
ै सा खत? दिखाना तो ज़रा”
ररया अपने िमरे में जािर खत ले आई।
खत पिते ही रोहन अपनी ि
ु सी पर बैठ गया। िािी िो ि
ैं सर? इसि
े बारे में तो दिसी ने िभी ि
ु छ
भी नहीीं िहा।
“क्ा मााँ िो पता है दि तुमने यह खत पिा है?”
“नहीीं मैंने उन्हें अभी ति नहीीं बताया।”
“ठीि है।”
“लेदिन यह िािी िो हुआ क्ा है?”
रोहन ररया िो डराना नहीीं चाहता था “ि
ैं सर िी शुरुआत होने ि
े बाि जब शरीर ि
े ि
ु छ और भाग
में ये बीमारी र्
ै लती है, तो उसे स्टेज २ िा ि
ैं सर िहा जाता है।”
रोहन गहरी सोच में पड़ गया। आखखर में उसने िहा “यह बात न तो मााँ िो पता चलनी चादहए न ही
पापा िो, दि हमे िािी ि
े बारे में पता है।”
“ठीि है। लेदिन अब हम िरेंगे क्ा?”
रोहन मुस्क
ु राते हुए बोला “अपना बैग पैि िरो। हम िल सुबह गोवा जा रहे हैं।”
अगले दिन, सुबह 5 बजे, रोहन ररया िो उठाने गया “अरे, जल्दी उठ जाओ। गोवा नहीीं जाना?”
“लेदिन अभी तो मााँ और पापा भी उठे नहीीं होींगे।”
“तभी तो मैं बोल रहा हाँ जल्दी उठो। इससे पहली दि वे उठ जाए।”
ररया अचानि उठ गई “मतलब हम उनि
े दबना ही जा रहें है?”
“और नहीीं तो क्ा? उन्होींने हम से इतनी बड़ी बात दछपाई है, पता नहीीं वे हमसे और क्ा-क्ा दछपा
रहे है? हमे खुि ही जािर पता लगाना होगा।”
“पर..”
“और वैसे भी, तुम्हें िािी से दमलना है ना?”
आधे घींटे बाि, रोहन और ररया िोनोीं अपने घर ि
े बाहर अपने दपताजी िी गाडी ि
े सामने थे।
“मुझे अभी भी नहीीं लगता दि यह सही है।” ररया बोली।
“तुम्हें नहीीं आना तो मत आओ। मैं तो जा रहा हाँ।” यह िहिर रोहन ड
र ाइवर सीट पर बैठ गया।
ररया चुप चाप िू सरे सीट पर बैठ गई।
रोहन गाड़ी चलाने लगा और अगले 15 दमनट में हाईवे पर थे। अचानि रोहन िा र्ोन बजने लगा।
रोहन िी मााँ िॉल िर यही थी।
“अरे नहीीं, लगता है मााँ िो पता चल गया दि हम घर पर नहीीं हैं।” यह िहिर रोहन ने र्ोन िो बींि
िर दिया।
उन्हें इस 10 घींटे ि
े सर्र में 12 घींटे लग गए क्ूींदि रोहन सभी पुदलस और टोल से बच बच ि
े चल
रहा था। उसे डर था दि दिसी िो शि न हो जाये और वे उसे जाने ना िे। और उनि
े माता दपता
अभी ति पुदलस ि
े पास तो जा चुि
े ही होींगे।
आखखर में जब उनिा गोवा में प्रवेश हुआ, तो रोहन ररया िो, जो सो रही थी, उठाते हुए बोला “हम
गोवा पहुच गए।” लेदिन, अभी मुसीबत यह थी दि वे गोवा ति तो र्ोन ि
े नेदवगेशन िी मिि से आ
गए, लेदिन अब उन्हें यह मालूम नहीीं था दि िािी िा घर िहा था।
रोहन ने इसि
े बारे में पहले से ही सोच दलया था। रोहन ने अपने जेब से िािी िा खत दनिाला और जो
प्रेषि िा पता दलखा था, उसि
े बारे में पूछताछ िरने लगे। आखखर में वे एि डािघर पहुचे|
डािघर ि
े भीतर, एि आिमी िागजोीं पर ि
ु छ दलख रहा था। रोहन और ररया िो िेखते ही वह उठ
गया। उसने मुस्क
ु राते हुए िहा “नमस्ते, मेरा नाम अदमत है। मैं आपिी क्ा मिि िर सिता हाँ?”
रोहन वादपस मुस्क
ु राया “जी मैं इस खत ि
े लेखि िो ढूींढ रहा हाँ। क्ा आप इसि
े लेखि िो पहचान
सिते हैं?” रोहन ने िह िर खत उस आिमी िो िे दिया। उस आिमी ने तुरींत खत िो पहचान
दलया।
“अरे, यह खत तो मैंने ही अनु जी ि
े दलए दलखा था। उन्हें दलखना नहीीं आता ना, इसीदलए मैं उनि
े
पररवर िो खत दलखने में उनिी मिि िरता हाँ। वैसे, बुरा ना माने तो क्ा मैं पूछ सिता हाँ, यह खत
आपिो ि
ै से दमला?” रोहन और ररया ने एि िू सरे िो िेखा। दर्र रोहन ने िहा “अनु शाह हमारी
िािी हैं।” वह आिमी ने आश्चयष में बोला “आपिी िािी! मार् िरना, मुझे दबल्क
ु ल उम्मीि नहीीं थी
दि आप यहााँ आओगे!”
रोहन मुस्क
ु राया “क्ा आप िो पता है वे दिधर रहती है?” वह आिमी मुस्क
ु राया “जरूर। बखल्क, मैं
खुि आपिो वहाीं ले जाता हाँ बस 15 दमनट रुदिए। अपना िाम समेटिर आता हाँ।” उसने िोनोीं िो
वहााँ रखी ि
ु दसषयोीं पर बैठने िा इशारा दिया। िोनोीं ि
ु दसषयोीं पर बैठ गए।
रोहन ने िमरे िो छानते हुए पूछा “तो क्ा वे अपने लड्ड
ू ि
े डब्बे इधर से ही भेजती हैं?”
“जी हााँ।”
अचानि, ररया बोली “तो िािी क्ा हर बार लड्ड
ू ि
े साथ खत भी भेजती हैं?”
“हााँ।” दर्र उसने अपना दसर उठाया और ररया िो और दर्र रोहन िो िेखा। एि दमनट, वह खत
मैंने ही दलखा था, और मुझे याि है दि वह खत तुम लोगोीं ि
े दलए नहीीं बखल्क, तुम्हारी माता जी ि
े
दलए थे। तुम्हारी मााँ दिधर है?”
ररया ने उत्तर दिया “मााँ इधर नहीीं है दसर्
ष मैं और भईया ही है।” रोहन ने ररया िो गुस्से से िेखते हुए
इशारोीं से बोला बताने िी क्ा जरूरत थी? ररया ने अपना दसर झुिा दिया। वह आिमी सोच रहा था
दि अचानि एि बूिी औरत, डािघर मैं आई “अरे ओ अदमत! मैं तुम्हें दपछले हफ्ते खत और लड्ड
ू
भेजने ि
े पैसे िेना ही भूल गयी और तुम भी पैसे लेना भूल गए!”
अचानि रोहन और ररया िोनोीं ने एि साथ बोला “िािी?” उस औरत ने उनिी तरर् िेखा, और हींस
पड़ी “मार् िरो बच्ोीं मैं तुम्हारी िािी नहीीं हो सिती। मैंने अपने पोते और पोती िो िस साल से नहीीं
िेखा| वैसे वो तुम्हारे दजतने ही होींगे, पर इतने बड़े भी नहीीं हुए हैं दि गोवा आ जाएाँ ।” वह आिमी,
दजसिो रोहन और ररया अब अदमत ि
े नाम से जानते थे, बोला “नहीीं आजी। ये िोनोीं आपि
े ही पोता
और पोती है।”
“रोहन? ररया?”
“िािी!” िोनोीं रोहन और ररया तुरींत अपनी िािी ि
े गले लग गए। ख़ुशी से िािी िी आाँखोीं से आींसू
बहने लगे। “अरे! तुम िोनोीं दितने बड़े हो गए हो। मुझे याि है, रोहन तुम तो दसर्
ष 9 साल थे और
ररया, दसर्
ष एि नन्ही सी बच्ी!” सभी हींस पड़े।
अब रोहन और ररया िािी ि
े घर में थें। िािी ने रोहन और ररया िो आम खखलाए। इसि
े बाि ररया
थोड़ी िेर बाहर गई; ऐसी शाींदत, हररयाली उसे मुींबई में िहााँ दिखती थी? रोहन िो यह सही समय
लगा। वो िािी ि
े पास गया और उन्हे खत िे दिया। इससे पहले दि िािी ि
ु छ बोल पाए, रोहन ने
पूछा “िािी, आपिो ि
ैं सर है?” “अरे बेटा । दचींता िो िोई जरूरत नहीीं! बस एि छोटी सी बीमारी
ही तो है।” “नहीीं िािी। दचींता िरने िी जरूरत है। ि
ैं सर बहुत खतरनाि बीमारी है। आप हमारे साथ
मुींबई आ जाइए। वहाीं बड़े बड़े डॉक्टर है, जो आपिा इलाज़ िर सिते है।” “नहीीं बेटा। मैं नहीीं आ
सिती।” “लेदिन क्ोीं?” “क्ूींिी...” िािी ने अलमारी से एि समाचारपत्र दनिाला। रोहन उसे पिने
लगा
लाल किले में आई एन ए िा ट्रायल शुरू।
1945 में, लाल दिले मैं आई एन ए ि
े र्ौदजयोीं िा टरायल दिया गया थे और बहुत से लोगोीं िो जेल
िी सजा सुना िी गई थी
रोहन ि
ु छ समझ नहीीं पा रहा था| िािी उसि
े चेहरे पर असमींजस िेख िर धीरे से बोली, “मैं भी एि
आई एन ए सैदनि हाँ।”
रोहन हैरान हो गया “क्ा!”
“हााँ। और जब ये टराइयल्स िी बात होने लगी, मैं अपने घर न जा िर असम से सीधे गोवा आ गयी
और यहााँ दछप िर रहने लगी. मेरे साथ ि
ु छ और भी सैदनि गोवा आ िर गुमनाम दज़न्दगी जीने लगे|
हमें यहााँ िोई खतरा नहीीं था क्ोींदि गोवा तब पुतषगादलयोीं िा था और भारत सरिार हमारा ि
ु छ नहीीं
दबगाड़ सिती थी. 1962 में जब गोवा आज़ाि हुआ तब ति तो हम गोवा ि
े हो चुि
े थे और अपने
दपछले जीवन िो पूरी तरह िफ़न िर चुि
े थे. पर आज भी ये डर लगा रहता है दि िहीीं हमारा सच
उजागर न हो जाये।”
रोहन िो समझ नहीीं आ रहा था दि क्ा बोला जाए। थोड़ी िेर बाि वह हींसने लगा। “अरे िािी! अब
वो सब खत्म हो गया।”
“यह तुम्हारे दलए मज़ाि िी बात हो सिती है। लेदिन मेरे दलए नहीीं।” िािी सींजीिा थीीं।
अचानि, बाहर गाड़ी िी आवाज आई। बाहर ि
ु छ लोग बातें िर रहे थें। रोहन बाहर िौड़ा।
बाहर, उसने िेखा दि एि टैक्सी खड़ी थी और उसि
े सामने रोहन ि
े माता दपता थें। रोहन ि
े दपता
टैक्सी वाले िो पैसे िे रहे थे और माता जी ने ररया िो िसिर गले लगा रखा था। उसे िेखते ही मा
दचल्लाईीं “रोहन!” दपताजी मुड़े और रोहन िो गले लगा दलया। दर्र थोड़ा िू र होिर रोहन िो डाींटा
“तुम क्ा सोच रहे थे? अगर ि
ु छ हो जाता तो? तुम खुि तो भाग आये, और अपनी छोटी बहन िो भी
इसमे शादमल िर दलया?”
“हााँ, अगर डाि खाने से अदमत भैया हमें फ़ोन नहीीं िरते, तो हम िभी नहीीं सोच पाते िी तुम लोग
यहााँ आ गए होींगे| आइींिा िभी ऐसा मत िरना, हम दितना डर गए थे,” माीं गुस्से से बोलीीं|
“माफ़ िर दिखखए माीं, लेदिन आपने हमसे यह बात क्ू छपाई दि िािी िो ि
ैं सर है?”
“ि
ैं सर?”
रोहन िी मााँ वही ि
े वही रुि गई। रोहन ि
े दपता िािी ि
े पास गए “आपिो ि
ैं सर है?”
िािी धीरे ि
े बोली “बेटा िेखो। डरने िी बात नहीीं बस...”
दपता ने िािी िो बात पूरी िरने नहीीं िी “आपिो ि
ैं सर है!” दर्र वे रुि
े और सबिो अींिर जाने ि
े
दलए बोले “रुिो! अींिर चल िर बात िरते हैं।” दर्र जैसे ही सब अींिर आए, उन्होींने िरवाजा बींि
दिया “यह आपने पहले क्ू नहीीं बताया?”
अब रोहन िी मााँ बोली “उन्होींने बताया था। मुझे बताया था। लेदिन उन्होींने दनवेिन दिया था दि मैं
आपिो न बताऊ
ाँ । उन्हे और मुझे भी डर था दि आपिो यह बात ज्यािा परेशान िर िेगी।”
िािी बोली “और बेटा, ऐसा नहीीं है दि मुझे िोई मिि नहीीं दमलती थी। बहु मुझे हर महीने पैसा और
िवाइयाीं भेजती रहती है। वही हर महीने डाक्टर िो घर भेज िेती है, मुझे िहीीं नहीीं जाना पड़ता |”
दपताजी ने मााँ िो िेखा “तो तुम वह सब पैसे मम्मी ि
े दलए लेती हो?”
अचानि ररया बोली “सब िी दशिायतें हो गयी हो तो ये बताओ हम खाएीं गे िहााँ और सोएीं गे िहााँ?
बहुत रात हो रही है और मैं बहुत थिी हुई हाँ!”
िािी मुस्क
ु राई “अरे बेटी! तुम िािी ि
े घर आई हो। िािी ि
े घर ही सोना होगा और िािी ि
े हाथ िा
खाना होगा! अब मैं चलती हाँ, भोजन तैयार िरना है।”
रोहन िी मााँ भी िािी ि
े साथ चली “मैं भी आती हाँ आपिी मिि िरने।”
अब रोहन दपताजी िो घर ि
े एि िोने में ले गया “पापा, आपिो पता है, िािी आई एन ए र्ौजी हैं?
और रोहन ने उन्हें सारा दिस्सा िह सुनाया|
दपताजी ने िहा “वैसे तो मैं समझता दि तुम मज़ाि िर रहे हो, लेदिन अभी तो सब ि
ु छ यिीन
िरने ि
े दलए तैयार हाँ।”
“िािी असम से यहााँ आई हैं।”
“यह तो मुझे पता है, लेदिन मुझे इसिा िोई अींिाजा नहीीं था दि वो आई एन ए ि
े िारण था।”
“और इसिी वजह से उन्हे गोवा से दनिलने में डर लगता है। उन्हे अभी भी लगता है दि उन्हे सजा
सुनाई जा सिती है, जबदि मुझे लगता है दि मामला उलटा है। हमारी सरिार अवश्य उनिी मिि
िरेगी।”
“तुम िह तो सही रहे हो। शायि उनि
े ि
ैं सर ि
े इलाज में भी सरिार मिि िर िे?”
ि
ु छ महीन ों बाद
“िािी अभी आतीीं ही होगीीं।” रोहन अपनी घड़ी िेखते हुए बोला। तभी िरवाजे िी घींटी बजी। रोहन
तुरींत िरवाजा खोलने ि
े दलए भागा।
रोहन और ररया िोनोीं बोले “िािी! ि
ै सी हैं आप?” रोहन िी माता जी ने भी पूछा “मम्मी जी, ररपोटष
ि
ै सी थी?”
रोहन ि
े दपता जी ने बोला “सब ि
ु छ बदिया है| हमारी भारत सरिार ने मााँ िा इलाज िेश ि
े सबसे
अच्छे डॉक्टर से िरवाया है।” वे दर्र िािी ि
े तरर् मुड गए “मााँ अब आप आराम िीदजये| आपिा
ि
ैं सर ठीि हो गया लेदिन आप अभी िमजोर है।” िािी बोली “ठीि है में आराम िरने जाती हाँ।”
ररया िौड़ पड़ी “मैं िािी िी भैया से ज्यािा सेवा िरू
ीं गी” रोहन हींसा और िािी िा सामान उठाने ि
े
दलए िौड़ा “और मैं तुम्हारी मेहनत ि
े सारे िािी ि
े लड्ड
ू खा लूाँगा!”
िािी िी आाँखोीं से सींतुदि और प्रेम आींसू बन ि
े बह दनिला|
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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आई एन ए दादी

  • 2. “तुम्हारी िािी लड्ड ू बहुत बदिया बनाती हैं, लेदिन मैंने उन्हें िभी नहीीं िेखा!” सौरभ बोला। “हााँ वे यहााँ मुींबई आतीीं ही नहीीं। उन्हें गोवा िी शाींदत और हररयाली, मुींबई ि े धूल-प्रिू षण और शोर से ज्यािा अच्छी लगती है।” रोहन, सौरभ िो एि दडब्बा िेते हुए बोला “लेदिन वे हर िो महीने में ये लड्ड ू भेजती हैं।” वे िोनोीं थोड़ी और बाते िरने लगे दजसि े बाि रोहन अपने घर िला गया| 19 वषष ि े रोहन ने हाल ही में गाड़ी चलाना सीखा था और वह अभी अपने दमत्र, सौरभ ि े घर िािी ि े बनाए लड्ड ू िेने आया था। रास्ते में रोहन सोचने लगा- सौरभ गलत नहीीं िह रहा था। मैं िािी से दपछली बार 10 साल पहले दमला था जब पूरा पररवार गोवा गया था। मैं तब 9 वषष िा था और ररया तो दसर् ष 4 साल दि ही थी। ररया रोहन िी छोटी बहन है। घर पहुींच िर रोहन अपने दपताजी ि े पास गया। “पापा, आपने िहा था दि िािी हमारे घर नहीीं आतीीं क्ोींदि उन्हें मुींबई जैसे बड़े शहर पसींि नहीीं। तो क्ूाँ न हम िािी ि े पास जाएीं ? िस साल हो गए हमें िािी से दमले।” रोहन ि े दपताजी ने िहा “बेटा, जाना तो मुझे भी हैं लेदिन क्ा िरें, मुझे और तुम्हारी मााँ िो िाम इतना है, जाने िा समय िहााँ से दमलेगा?” रोहन चुप-चाप अपने िमरे में चला गया। उसी रात जब रोहन सोने वाला था, उसिी बहन ररया उसि े िमरे में आ गयी “भईया, यह ि ैं सर ि े बारे में सुना है लेदिन यह स्टेज २ ि ैं सर क्ा होता है?” रोहन वही ि े वही रुि गया। “क्ूाँ? तुम्हें उससे क्ा लेना िेना? ि ैं सर दिसे हुआ?” “ि ु छ नहीीं ऐसे ही पूछ रही थी।” “झूठ मत बोलो। मैं समझ सिता हाँ दि तुम सच नहीीं बोल रही हो” ररया दहचदिचाई “स्टेज २ ि ैं सर िािी िो हैं” “क्ा िहा तुमने?” रोहन आश्चयषचदित रह गया “िािी िो! यह तुम्हें दिसने बताया?” “दिसी ने नहीीं। मुझे मााँ दि अलमारी में एि खत दमला।” “खत? ि ै सा खत? दिखाना तो ज़रा” ररया अपने िमरे में जािर खत ले आई। खत पिते ही रोहन अपनी ि ु सी पर बैठ गया। िािी िो ि ैं सर? इसि े बारे में तो दिसी ने िभी ि ु छ भी नहीीं िहा। “क्ा मााँ िो पता है दि तुमने यह खत पिा है?” “नहीीं मैंने उन्हें अभी ति नहीीं बताया।” “ठीि है।” “लेदिन यह िािी िो हुआ क्ा है?” रोहन ररया िो डराना नहीीं चाहता था “ि ैं सर िी शुरुआत होने ि े बाि जब शरीर ि े ि ु छ और भाग में ये बीमारी र् ै लती है, तो उसे स्टेज २ िा ि ैं सर िहा जाता है।” रोहन गहरी सोच में पड़ गया। आखखर में उसने िहा “यह बात न तो मााँ िो पता चलनी चादहए न ही पापा िो, दि हमे िािी ि े बारे में पता है।” “ठीि है। लेदिन अब हम िरेंगे क्ा?” रोहन मुस्क ु राते हुए बोला “अपना बैग पैि िरो। हम िल सुबह गोवा जा रहे हैं।” अगले दिन, सुबह 5 बजे, रोहन ररया िो उठाने गया “अरे, जल्दी उठ जाओ। गोवा नहीीं जाना?” “लेदिन अभी तो मााँ और पापा भी उठे नहीीं होींगे।” “तभी तो मैं बोल रहा हाँ जल्दी उठो। इससे पहली दि वे उठ जाए।” ररया अचानि उठ गई “मतलब हम उनि े दबना ही जा रहें है?” “और नहीीं तो क्ा? उन्होींने हम से इतनी बड़ी बात दछपाई है, पता नहीीं वे हमसे और क्ा-क्ा दछपा रहे है? हमे खुि ही जािर पता लगाना होगा।” “पर..” “और वैसे भी, तुम्हें िािी से दमलना है ना?”
  • 3. आधे घींटे बाि, रोहन और ररया िोनोीं अपने घर ि े बाहर अपने दपताजी िी गाडी ि े सामने थे। “मुझे अभी भी नहीीं लगता दि यह सही है।” ररया बोली। “तुम्हें नहीीं आना तो मत आओ। मैं तो जा रहा हाँ।” यह िहिर रोहन ड र ाइवर सीट पर बैठ गया। ररया चुप चाप िू सरे सीट पर बैठ गई। रोहन गाड़ी चलाने लगा और अगले 15 दमनट में हाईवे पर थे। अचानि रोहन िा र्ोन बजने लगा। रोहन िी मााँ िॉल िर यही थी। “अरे नहीीं, लगता है मााँ िो पता चल गया दि हम घर पर नहीीं हैं।” यह िहिर रोहन ने र्ोन िो बींि िर दिया। उन्हें इस 10 घींटे ि े सर्र में 12 घींटे लग गए क्ूींदि रोहन सभी पुदलस और टोल से बच बच ि े चल रहा था। उसे डर था दि दिसी िो शि न हो जाये और वे उसे जाने ना िे। और उनि े माता दपता अभी ति पुदलस ि े पास तो जा चुि े ही होींगे। आखखर में जब उनिा गोवा में प्रवेश हुआ, तो रोहन ररया िो, जो सो रही थी, उठाते हुए बोला “हम गोवा पहुच गए।” लेदिन, अभी मुसीबत यह थी दि वे गोवा ति तो र्ोन ि े नेदवगेशन िी मिि से आ गए, लेदिन अब उन्हें यह मालूम नहीीं था दि िािी िा घर िहा था। रोहन ने इसि े बारे में पहले से ही सोच दलया था। रोहन ने अपने जेब से िािी िा खत दनिाला और जो प्रेषि िा पता दलखा था, उसि े बारे में पूछताछ िरने लगे। आखखर में वे एि डािघर पहुचे| डािघर ि े भीतर, एि आिमी िागजोीं पर ि ु छ दलख रहा था। रोहन और ररया िो िेखते ही वह उठ गया। उसने मुस्क ु राते हुए िहा “नमस्ते, मेरा नाम अदमत है। मैं आपिी क्ा मिि िर सिता हाँ?” रोहन वादपस मुस्क ु राया “जी मैं इस खत ि े लेखि िो ढूींढ रहा हाँ। क्ा आप इसि े लेखि िो पहचान सिते हैं?” रोहन ने िह िर खत उस आिमी िो िे दिया। उस आिमी ने तुरींत खत िो पहचान दलया। “अरे, यह खत तो मैंने ही अनु जी ि े दलए दलखा था। उन्हें दलखना नहीीं आता ना, इसीदलए मैं उनि े पररवर िो खत दलखने में उनिी मिि िरता हाँ। वैसे, बुरा ना माने तो क्ा मैं पूछ सिता हाँ, यह खत आपिो ि ै से दमला?” रोहन और ररया ने एि िू सरे िो िेखा। दर्र रोहन ने िहा “अनु शाह हमारी िािी हैं।” वह आिमी ने आश्चयष में बोला “आपिी िािी! मार् िरना, मुझे दबल्क ु ल उम्मीि नहीीं थी दि आप यहााँ आओगे!” रोहन मुस्क ु राया “क्ा आप िो पता है वे दिधर रहती है?” वह आिमी मुस्क ु राया “जरूर। बखल्क, मैं खुि आपिो वहाीं ले जाता हाँ बस 15 दमनट रुदिए। अपना िाम समेटिर आता हाँ।” उसने िोनोीं िो वहााँ रखी ि ु दसषयोीं पर बैठने िा इशारा दिया। िोनोीं ि ु दसषयोीं पर बैठ गए। रोहन ने िमरे िो छानते हुए पूछा “तो क्ा वे अपने लड्ड ू ि े डब्बे इधर से ही भेजती हैं?” “जी हााँ।” अचानि, ररया बोली “तो िािी क्ा हर बार लड्ड ू ि े साथ खत भी भेजती हैं?” “हााँ।” दर्र उसने अपना दसर उठाया और ररया िो और दर्र रोहन िो िेखा। एि दमनट, वह खत मैंने ही दलखा था, और मुझे याि है दि वह खत तुम लोगोीं ि े दलए नहीीं बखल्क, तुम्हारी माता जी ि े दलए थे। तुम्हारी मााँ दिधर है?” ररया ने उत्तर दिया “मााँ इधर नहीीं है दसर् ष मैं और भईया ही है।” रोहन ने ररया िो गुस्से से िेखते हुए इशारोीं से बोला बताने िी क्ा जरूरत थी? ररया ने अपना दसर झुिा दिया। वह आिमी सोच रहा था दि अचानि एि बूिी औरत, डािघर मैं आई “अरे ओ अदमत! मैं तुम्हें दपछले हफ्ते खत और लड्ड ू भेजने ि े पैसे िेना ही भूल गयी और तुम भी पैसे लेना भूल गए!”
  • 4. अचानि रोहन और ररया िोनोीं ने एि साथ बोला “िािी?” उस औरत ने उनिी तरर् िेखा, और हींस पड़ी “मार् िरो बच्ोीं मैं तुम्हारी िािी नहीीं हो सिती। मैंने अपने पोते और पोती िो िस साल से नहीीं िेखा| वैसे वो तुम्हारे दजतने ही होींगे, पर इतने बड़े भी नहीीं हुए हैं दि गोवा आ जाएाँ ।” वह आिमी, दजसिो रोहन और ररया अब अदमत ि े नाम से जानते थे, बोला “नहीीं आजी। ये िोनोीं आपि े ही पोता और पोती है।” “रोहन? ररया?” “िािी!” िोनोीं रोहन और ररया तुरींत अपनी िािी ि े गले लग गए। ख़ुशी से िािी िी आाँखोीं से आींसू बहने लगे। “अरे! तुम िोनोीं दितने बड़े हो गए हो। मुझे याि है, रोहन तुम तो दसर् ष 9 साल थे और ररया, दसर् ष एि नन्ही सी बच्ी!” सभी हींस पड़े। अब रोहन और ररया िािी ि े घर में थें। िािी ने रोहन और ररया िो आम खखलाए। इसि े बाि ररया थोड़ी िेर बाहर गई; ऐसी शाींदत, हररयाली उसे मुींबई में िहााँ दिखती थी? रोहन िो यह सही समय लगा। वो िािी ि े पास गया और उन्हे खत िे दिया। इससे पहले दि िािी ि ु छ बोल पाए, रोहन ने पूछा “िािी, आपिो ि ैं सर है?” “अरे बेटा । दचींता िो िोई जरूरत नहीीं! बस एि छोटी सी बीमारी ही तो है।” “नहीीं िािी। दचींता िरने िी जरूरत है। ि ैं सर बहुत खतरनाि बीमारी है। आप हमारे साथ मुींबई आ जाइए। वहाीं बड़े बड़े डॉक्टर है, जो आपिा इलाज़ िर सिते है।” “नहीीं बेटा। मैं नहीीं आ सिती।” “लेदिन क्ोीं?” “क्ूींिी...” िािी ने अलमारी से एि समाचारपत्र दनिाला। रोहन उसे पिने लगा लाल किले में आई एन ए िा ट्रायल शुरू। 1945 में, लाल दिले मैं आई एन ए ि े र्ौदजयोीं िा टरायल दिया गया थे और बहुत से लोगोीं िो जेल िी सजा सुना िी गई थी रोहन ि ु छ समझ नहीीं पा रहा था| िािी उसि े चेहरे पर असमींजस िेख िर धीरे से बोली, “मैं भी एि आई एन ए सैदनि हाँ।” रोहन हैरान हो गया “क्ा!” “हााँ। और जब ये टराइयल्स िी बात होने लगी, मैं अपने घर न जा िर असम से सीधे गोवा आ गयी और यहााँ दछप िर रहने लगी. मेरे साथ ि ु छ और भी सैदनि गोवा आ िर गुमनाम दज़न्दगी जीने लगे| हमें यहााँ िोई खतरा नहीीं था क्ोींदि गोवा तब पुतषगादलयोीं िा था और भारत सरिार हमारा ि ु छ नहीीं दबगाड़ सिती थी. 1962 में जब गोवा आज़ाि हुआ तब ति तो हम गोवा ि े हो चुि े थे और अपने दपछले जीवन िो पूरी तरह िफ़न िर चुि े थे. पर आज भी ये डर लगा रहता है दि िहीीं हमारा सच उजागर न हो जाये।” रोहन िो समझ नहीीं आ रहा था दि क्ा बोला जाए। थोड़ी िेर बाि वह हींसने लगा। “अरे िािी! अब वो सब खत्म हो गया।” “यह तुम्हारे दलए मज़ाि िी बात हो सिती है। लेदिन मेरे दलए नहीीं।” िािी सींजीिा थीीं। अचानि, बाहर गाड़ी िी आवाज आई। बाहर ि ु छ लोग बातें िर रहे थें। रोहन बाहर िौड़ा। बाहर, उसने िेखा दि एि टैक्सी खड़ी थी और उसि े सामने रोहन ि े माता दपता थें। रोहन ि े दपता टैक्सी वाले िो पैसे िे रहे थे और माता जी ने ररया िो िसिर गले लगा रखा था। उसे िेखते ही मा दचल्लाईीं “रोहन!” दपताजी मुड़े और रोहन िो गले लगा दलया। दर्र थोड़ा िू र होिर रोहन िो डाींटा “तुम क्ा सोच रहे थे? अगर ि ु छ हो जाता तो? तुम खुि तो भाग आये, और अपनी छोटी बहन िो भी इसमे शादमल िर दलया?” “हााँ, अगर डाि खाने से अदमत भैया हमें फ़ोन नहीीं िरते, तो हम िभी नहीीं सोच पाते िी तुम लोग यहााँ आ गए होींगे| आइींिा िभी ऐसा मत िरना, हम दितना डर गए थे,” माीं गुस्से से बोलीीं| “माफ़ िर दिखखए माीं, लेदिन आपने हमसे यह बात क्ू छपाई दि िािी िो ि ैं सर है?” “ि ैं सर?” रोहन िी मााँ वही ि े वही रुि गई। रोहन ि े दपता िािी ि े पास गए “आपिो ि ैं सर है?” िािी धीरे ि े बोली “बेटा िेखो। डरने िी बात नहीीं बस...”
  • 5. दपता ने िािी िो बात पूरी िरने नहीीं िी “आपिो ि ैं सर है!” दर्र वे रुि े और सबिो अींिर जाने ि े दलए बोले “रुिो! अींिर चल िर बात िरते हैं।” दर्र जैसे ही सब अींिर आए, उन्होींने िरवाजा बींि दिया “यह आपने पहले क्ू नहीीं बताया?” अब रोहन िी मााँ बोली “उन्होींने बताया था। मुझे बताया था। लेदिन उन्होींने दनवेिन दिया था दि मैं आपिो न बताऊ ाँ । उन्हे और मुझे भी डर था दि आपिो यह बात ज्यािा परेशान िर िेगी।” िािी बोली “और बेटा, ऐसा नहीीं है दि मुझे िोई मिि नहीीं दमलती थी। बहु मुझे हर महीने पैसा और िवाइयाीं भेजती रहती है। वही हर महीने डाक्टर िो घर भेज िेती है, मुझे िहीीं नहीीं जाना पड़ता |” दपताजी ने मााँ िो िेखा “तो तुम वह सब पैसे मम्मी ि े दलए लेती हो?” अचानि ररया बोली “सब िी दशिायतें हो गयी हो तो ये बताओ हम खाएीं गे िहााँ और सोएीं गे िहााँ? बहुत रात हो रही है और मैं बहुत थिी हुई हाँ!” िािी मुस्क ु राई “अरे बेटी! तुम िािी ि े घर आई हो। िािी ि े घर ही सोना होगा और िािी ि े हाथ िा खाना होगा! अब मैं चलती हाँ, भोजन तैयार िरना है।” रोहन िी मााँ भी िािी ि े साथ चली “मैं भी आती हाँ आपिी मिि िरने।” अब रोहन दपताजी िो घर ि े एि िोने में ले गया “पापा, आपिो पता है, िािी आई एन ए र्ौजी हैं? और रोहन ने उन्हें सारा दिस्सा िह सुनाया| दपताजी ने िहा “वैसे तो मैं समझता दि तुम मज़ाि िर रहे हो, लेदिन अभी तो सब ि ु छ यिीन िरने ि े दलए तैयार हाँ।” “िािी असम से यहााँ आई हैं।” “यह तो मुझे पता है, लेदिन मुझे इसिा िोई अींिाजा नहीीं था दि वो आई एन ए ि े िारण था।” “और इसिी वजह से उन्हे गोवा से दनिलने में डर लगता है। उन्हे अभी भी लगता है दि उन्हे सजा सुनाई जा सिती है, जबदि मुझे लगता है दि मामला उलटा है। हमारी सरिार अवश्य उनिी मिि िरेगी।” “तुम िह तो सही रहे हो। शायि उनि े ि ैं सर ि े इलाज में भी सरिार मिि िर िे?” ि ु छ महीन ों बाद “िािी अभी आतीीं ही होगीीं।” रोहन अपनी घड़ी िेखते हुए बोला। तभी िरवाजे िी घींटी बजी। रोहन तुरींत िरवाजा खोलने ि े दलए भागा। रोहन और ररया िोनोीं बोले “िािी! ि ै सी हैं आप?” रोहन िी माता जी ने भी पूछा “मम्मी जी, ररपोटष ि ै सी थी?” रोहन ि े दपता जी ने बोला “सब ि ु छ बदिया है| हमारी भारत सरिार ने मााँ िा इलाज िेश ि े सबसे अच्छे डॉक्टर से िरवाया है।” वे दर्र िािी ि े तरर् मुड गए “मााँ अब आप आराम िीदजये| आपिा ि ैं सर ठीि हो गया लेदिन आप अभी िमजोर है।” िािी बोली “ठीि है में आराम िरने जाती हाँ।” ररया िौड़ पड़ी “मैं िािी िी भैया से ज्यािा सेवा िरू ीं गी” रोहन हींसा और िािी िा सामान उठाने ि े दलए िौड़ा “और मैं तुम्हारी मेहनत ि े सारे िािी ि े लड्ड ू खा लूाँगा!” िािी िी आाँखोीं से सींतुदि और प्रेम आींसू बन ि े बह दनिला| ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~समाप्त~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~