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"ॐ शं शनैश्चराय नमः"
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” का अर्थ है “ओम, शांति को, शनिश्चराय (शनि देवता) को, नमः (नमस्कार)।” यह वेदिक
मंत्र शनि देवता की कृ पा और शुभाशीष प्राप्त करने क
े लिए जपा जाता है। इसे शनि ग्रह क
े शुभ फल प्राप्त करने
और उसक
े अशुभ प्रभावों को दूर करने क
े लिए भी जपा जाता है।
शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
शनि महामंत्र- ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल क
े देवता
माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति क
े कर्मों क
े अनुसार होता है। शनि देवता को यहां विशेष रूप से
न्याय और कर्मफल क
े विचार में जाना जाता है:
1. कर्मफल क
े देवता: शनिदेव को कर्मफल क
े प्रबंधन का अधिकारी माना जाता है। व्यक्ति क
े कर्मों
क
े आधार पर उनका प्रभाव होता है, और यह उसक
े जीवन में संघर्षों और परिक्षणों की परीक्षा क
े
रूप में प्रकट हो सकता है।
2. न्याय और इंसाफ: शनिदेव को न्याय क
े देवता क
े रूप में भी जाना जाता है। उन्हें मिलने वाले
फलों की विधि और विचार का प्रमुख समर्थन करने वाले माना जाता हैं।
3. शिक्षा और सीखने का संक
े त: शनिदेव की पूजा और उनक
े मंत्रों का जप करने से यह भी सिखने
का संक
े त हो सकता है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में सीखना चाहिए और उन्हें न्यायपूर्ण रूप से
करना चाहिए।
शनिदेव की उपासना से विविध आदर्शों और सिद्धांतों का समर्थन होता है, जिसमें कर्मफल, न्याय, और
सीखने का महत्व होता है।
शनि क
े स्वरुप का वर्णन करते हुए महर्षि पराशर जी ने बृहत होराशास्त्र में शनि का शरीर दुबला-पतला लेकिन
लंबा, नेत्र पिंगलवर्णी दांत मोटे स्वभाव आलसी व शनि क
े रोम तीखे व कठोर बतलाया है। यह शुद्र वर्णी व तामसी
प्रवृति क
े हैं।
मतस्य पुराण में शनिदेव की कांति को इंद्रमणि जैसा बतलाया है व शनिदेव हाथ में धनुष, त्रिशुल व वरमुद्रा धारण
किए हुए लोहनिर्मित रथ पर विराजमान बतलाया है । आचार्य वराह मिहिर रचित बृहत संहिता में शनिदेव को
मंदबुद्धि, कृ शकाय, नेत्र पिंगलवर्णी, विकृ त दांत वात प्रवृति व रुखे बालों वाला ग्रह बतलाया है ।
ग्रहों में शनिदेव को क्र
ू र, पापीग्रह क
े रुप में जाना जाता है । जिस पर भी शनिदेव की क्र
ू र दॄष्टि पड़ जाए उसका
विनाश हो जाता है । शनिदेव की दशा का प्रभाव किसी भी जातक पर प्राय: 36 से 45 वर्ष की आयु में अधिक रहता
है । शनि की दशा में काले घोड़े की नाल का छल्ला या नौका की कील से बना छल्ला धारण करें । शनि का प्रमुख
रत्न नीलम है । नीलम क
े अभाव में जामुनिया, नीलमा, नीला कटहला भी धारण किया जा सकता है। शनि का
स्थायी निवास पशिचम दिशा है वैसे इनक
े आधिपत्य में सौराष्ट्र प्रदेश, घाटियां, बंजरभूमि, मरुस्थल, भंगनिवास,
कोयले की खान, जंगम पर्वत, मलिन स्थल है।
शनिदेव क
े कारकत्व – आलस्य, हाथी, रोग, विरोध, दासकर्म, काले धान्य, झूठ बोलना, नपुंसकता, चांड़ाल,
विकृ त अंग, शिशिर ऋतु, लोहा, शल्य विधा, क
ु त्ता, प्रेत, आग, वायु, वृद्ध, वीर्य, संध्या, अतिक्रोध, स्त्रीपुरक सुख,
कारावास, स्नायु, अवैध संतान, यम पूजक, वैश्य, कृ षि कर्म, शूद्र, पशिचम दिशा, क
ं बल, बकरा, रतिकर्म, पुराना
तेल, भय, मणि, वनचर, मरण आदि।
शनिदेव क
े छायासुत, क्र
ु रलोचन, पंगु, पंगुकाय, यम, सूर्यतनय, कोण, अर्की, असित, अर्क पुत्र, दीर्घ छायात्मज,
सौरि, मंद, पांतगी, नील, मृदु, कपिलाक्ष आदि पर्यायवाची नाम है।
शनिदेव की दान योग्य वस्तुएं उड़द, काले जुते, काले चने, काले कपड़े, काली गाय, काले पुष्प, लोहा, तेल, नीलम,
गोमेद, जामुन, आदि हैं।
लोहा, तेल, कोयला, चमड़ा, हाथी दांत, ड्राईविंग, बढ़ईगिरी, वकालत, चाय – काफी विक्रय, लिपिक, दलाली,
जल्लाद, क्रय-विक्रय, खदान का कार्य, पेंटर, लाटरी, सट्टा, राजनिति, भिक्षावृति आदि शनिदेव से संबंधी व्यवसाय
हैं।
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‘इस लेख में लिखित किसी भी कथा / सामग्री की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। ये सब जानकारी
विभिन्न माध्यमों/ प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से एकत्रित की है और आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य
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े वल आपको अपने देवताओं की जानकारी देना है I इसक
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  • 2. "ॐ शं शनैश्चराय नमः" “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का अर्थ है “ओम, शांति को, शनिश्चराय (शनि देवता) को, नमः (नमस्कार)।” यह वेदिक मंत्र शनि देवता की कृ पा और शुभाशीष प्राप्त करने क े लिए जपा जाता है। इसे शनि ग्रह क े शुभ फल प्राप्त करने और उसक े अशुभ प्रभावों को दूर करने क े लिए भी जपा जाता है। शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। शनि महामंत्र- ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
  • 3. शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल क े देवता माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति क े कर्मों क े अनुसार होता है। शनि देवता को यहां विशेष रूप से न्याय और कर्मफल क े विचार में जाना जाता है: 1. कर्मफल क े देवता: शनिदेव को कर्मफल क े प्रबंधन का अधिकारी माना जाता है। व्यक्ति क े कर्मों क े आधार पर उनका प्रभाव होता है, और यह उसक े जीवन में संघर्षों और परिक्षणों की परीक्षा क े रूप में प्रकट हो सकता है। 2. न्याय और इंसाफ: शनिदेव को न्याय क े देवता क े रूप में भी जाना जाता है। उन्हें मिलने वाले फलों की विधि और विचार का प्रमुख समर्थन करने वाले माना जाता हैं।
  • 4. 3. शिक्षा और सीखने का संक े त: शनिदेव की पूजा और उनक े मंत्रों का जप करने से यह भी सिखने का संक े त हो सकता है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में सीखना चाहिए और उन्हें न्यायपूर्ण रूप से करना चाहिए। शनिदेव की उपासना से विविध आदर्शों और सिद्धांतों का समर्थन होता है, जिसमें कर्मफल, न्याय, और सीखने का महत्व होता है। शनि क े स्वरुप का वर्णन करते हुए महर्षि पराशर जी ने बृहत होराशास्त्र में शनि का शरीर दुबला-पतला लेकिन लंबा, नेत्र पिंगलवर्णी दांत मोटे स्वभाव आलसी व शनि क े रोम तीखे व कठोर बतलाया है। यह शुद्र वर्णी व तामसी प्रवृति क े हैं। मतस्य पुराण में शनिदेव की कांति को इंद्रमणि जैसा बतलाया है व शनिदेव हाथ में धनुष, त्रिशुल व वरमुद्रा धारण किए हुए लोहनिर्मित रथ पर विराजमान बतलाया है । आचार्य वराह मिहिर रचित बृहत संहिता में शनिदेव को मंदबुद्धि, कृ शकाय, नेत्र पिंगलवर्णी, विकृ त दांत वात प्रवृति व रुखे बालों वाला ग्रह बतलाया है । ग्रहों में शनिदेव को क्र ू र, पापीग्रह क े रुप में जाना जाता है । जिस पर भी शनिदेव की क्र ू र दॄष्टि पड़ जाए उसका विनाश हो जाता है । शनिदेव की दशा का प्रभाव किसी भी जातक पर प्राय: 36 से 45 वर्ष की आयु में अधिक रहता है । शनि की दशा में काले घोड़े की नाल का छल्ला या नौका की कील से बना छल्ला धारण करें । शनि का प्रमुख रत्न नीलम है । नीलम क े अभाव में जामुनिया, नीलमा, नीला कटहला भी धारण किया जा सकता है। शनि का स्थायी निवास पशिचम दिशा है वैसे इनक े आधिपत्य में सौराष्ट्र प्रदेश, घाटियां, बंजरभूमि, मरुस्थल, भंगनिवास, कोयले की खान, जंगम पर्वत, मलिन स्थल है। शनिदेव क े कारकत्व – आलस्य, हाथी, रोग, विरोध, दासकर्म, काले धान्य, झूठ बोलना, नपुंसकता, चांड़ाल, विकृ त अंग, शिशिर ऋतु, लोहा, शल्य विधा, क ु त्ता, प्रेत, आग, वायु, वृद्ध, वीर्य, संध्या, अतिक्रोध, स्त्रीपुरक सुख, कारावास, स्नायु, अवैध संतान, यम पूजक, वैश्य, कृ षि कर्म, शूद्र, पशिचम दिशा, क ं बल, बकरा, रतिकर्म, पुराना तेल, भय, मणि, वनचर, मरण आदि। शनिदेव क े छायासुत, क्र ु रलोचन, पंगु, पंगुकाय, यम, सूर्यतनय, कोण, अर्की, असित, अर्क पुत्र, दीर्घ छायात्मज, सौरि, मंद, पांतगी, नील, मृदु, कपिलाक्ष आदि पर्यायवाची नाम है। शनिदेव की दान योग्य वस्तुएं उड़द, काले जुते, काले चने, काले कपड़े, काली गाय, काले पुष्प, लोहा, तेल, नीलम, गोमेद, जामुन, आदि हैं। लोहा, तेल, कोयला, चमड़ा, हाथी दांत, ड्राईविंग, बढ़ईगिरी, वकालत, चाय – काफी विक्रय, लिपिक, दलाली, जल्लाद, क्रय-विक्रय, खदान का कार्य, पेंटर, लाटरी, सट्टा, राजनिति, भिक्षावृति आदि शनिदेव से संबंधी व्यवसाय हैं। धार्मिक पुस्तक ें (पीडीऍफ़)
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