शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल के देवता माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति के कर्मों के अनुसार होता है। शनि देवता को यहां विशेष रूप से न्याय और कर्मफल के विचार में जाना जाता है:
कर्मफल के देवता: शनिदेव को कर्मफल के प्रबंधन का अधिकारी माना जाता है। व्यक्ति के कर्मों के आधार पर उनका प्रभाव होता है, और यह उसके जीवन में संघर्षों और परिक्षणों की परीक्षा के रूप में प्रकट हो सकता है।
न्याय और इंसाफ: शनिदेव को न्याय के देवता के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें मिलने वाले फलों की विधि और विचार का प्रमुख समर्थन करने वाले माना जाता हैं।
शिक्षा और सीखने का संकेत: शनिदेव की पूजा और उनके मंत्रों का जप करने से यह भी सिखने का संकेत हो सकता है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में सीखना चाहिए और उन्हें न्यायपूर्ण रूप से करना चाहिए।
शनिदेव की उपासना से विविध आदर्शों और सिद्धांतों का समर्थन होता है, जिसमें कर्मफल, न्याय, और सीखने का महत्व होता है।
शनि के स्वरुप का वर्णन करते हुए महर्षि पराशर जी ने बृहत होराशास्त्र में शनि का शरीर दुबला-पतला लेकिन लंबा, नेत्र पिंगलवर्णी दांत मोटे स्वभाव आलसी व शनि के रोम तीखे व कठोर बतलाया है। यह शुद्र वर्णी व तामसी प्रवृति के हैं।
मतस्य पुराण में शनिदेव की कांति को इंद्रमणि जैसा बतलाया है व शनिदेव हाथ में धनुष, त्रिशुल व वरमुद्रा धारण किए हुए लोहनिर्मित रथ पर विराजमान बतलाया है । आचार्य वराह मिहिर रचित बृहत संहिता में शनिदेव को मंदबुद्धि, कृशकाय, नेत्र पिंगलवर्णी, विकृत दांत वात प्रवृति व रुखे बालों वाला ग्रह बतलाया है ।
ग्रहों में शनिदेव को क्रूर, पापीग्रह के रुप में जाना जाता है । जिस पर भी शनिदेव की क्रूर दॄष्टि पड़ जाए उसका विनाश हो जाता है । शनिदेव की दशा का प्रभाव किसी भी जातक पर प्राय: 36 से 45 वर्ष की आयु में अधिक रहता है । शनि की दशा में काले घोड़े की नाल का छल्ला या नौका की कील से बना छल्ला धारण करें । शनि का प्रमुख रत्न नीलम है । नीलम के अभाव में जामुनिया, नीलमा, नीला कटहला भी धारण किया जा सकता है। शनि का स्थायी निवास पशिचम दिशा है वैसे इनके आधिपत्य में सौराष्ट्र प्रदेश, घाटियां, बंजरभूमि, मरुस्थल, भंगनिवास, कोयले की खान, जंगम पर्वत, मलिन स्थल है।
शनिदेव के कारकत्व – आलस्य, हाथी, रोग, विरोध, दासकर्म, काले धान्य, झूठ बोलना, नपुंसकता, चांड़ाल, विकृत अंग, शिशिर ऋतु, लोहा, शल्य विधा, कुत्ता, प्रेत, आग, वायु, वृद्ध, वीर्य, संध्या, अतिक्रोध, स्त्रीपुरक सुख, कारावास, स्नायु, अवैध संतान, यम पूजक, वैश्य, कृषि कर्म, शूद्र, पशिचम दिशा, कंबल, बकरा, रतिकर्म, पुराना तेल, भय, मणि, वनचर, मरण आदि।
शनिदेव के छायासुत, क्रुरलोचन, पंगु, पंगुकाय, यम, सूर्यतनय, कोण, अर्की, असित, अर्कपुत्र, दीर्घ छायात्मज, सौरि, मंद, पांतगी, नील, मृदु, कपिलाक्ष आदि पर्यायवाची नाम है।
शनिदेव की दान योग्य वस्तुएं उड़द, काले जुते, काले चने, काले कपड़े, काली गाय, काले पुष्प, लोहा, तेल, नीलम, गोमेद, जामुन, आदि हैं।
लोहा, तेल, कोयला, चमड़ा, हाथी दांत, ड्राईविंग, बढ़ईगिरी, वकालत, चाय – काफी विक्रय, लिपिक, दलाली, जल्लाद, क्रय-विक्रय, खदान का कार्य, पेंटर, लाटरी, सट्टा, राजनिति, भिक्षावृति आदि शनिदेव से संबंधी व्यवसाय हैं।
Varanasi or Kashi is the birthplace for Four Jain Tirthankaras. It is a very holy place for Jains. Jainism is exist in Varanasi since thousands of years ago.
This Presentation is prepared for Graduate Students. A presentation consisting of basic information regarding the topic. Students are advised to get more information from recommended books and articles. This presentation is only for students and purely for academic purposes. The pictures/Maps included in the presentation are taken/copied from the internet. The presenter is thankful to them and herewith courtesy is given to all. This presentation is only for academic purposes.
This presentation is prepared for the BA students to get basic information on Shaiv Cult. This presentation is incomplete and students advised to get the further and proper information from subjective books and recommended research article.
यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
An in-depth description of Satyarth Prakash, a book by Swami Dayanand Saraswati. The book is central to Arya Samaj ideology. It is said that it ignited many freedom fighters to continue their journey of the struggle for freedom. The slide has its Effects and the major issues it is about.
Varanasi or Kashi is the birthplace for Four Jain Tirthankaras. It is a very holy place for Jains. Jainism is exist in Varanasi since thousands of years ago.
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यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
An in-depth description of Satyarth Prakash, a book by Swami Dayanand Saraswati. The book is central to Arya Samaj ideology. It is said that it ignited many freedom fighters to continue their journey of the struggle for freedom. The slide has its Effects and the major issues it is about.
यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
द्वादश ज्योतिर्लिंग - देशभर में कहां-कहां पर हैं ये 12 ज्योतिर्लिंग यहां पढ़ेंPankaj Kumar Jadwani
Pankaj Kumar Jadwani
The Brain Gym
PKJ
Target Setting
Goal Setting
Learn and Develop
Learn with Fun
Training
Motivation
Consistency
Smart Work
Technic
No More hard Work
Be Smart
Be Better
PPT
Soft Skills
Inspiration
Presentation
Raipur
Chhattisgarh
Facile-Trainer,
Facilitator,
Corporate Trainer,
Soft Skills Trainer,
Image Coach,
Speaker,
Motivator,
Personal Counselor
business
design
jurnal
poster
powerpoint
powerpointdesign
powerpointpresentation
powerpointslides
powerpointtemplate
ppt
presentation
presentationdesign
slide
slides
template
This presentation is prepared for the BA students to get basic and general information on the subject. This presentation is incomplete and students advised to get the further and proper information from subjective and recommended books and research articles.
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यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
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Consistency
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Raipur
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Motivator,
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2. "ॐ शं शनैश्चराय नमः"
“ॐ शं शनैश्चराय नमः” का अर्थ है “ओम, शांति को, शनिश्चराय (शनि देवता) को, नमः (नमस्कार)।” यह वेदिक
मंत्र शनि देवता की कृ पा और शुभाशीष प्राप्त करने क
े लिए जपा जाता है। इसे शनि ग्रह क
े शुभ फल प्राप्त करने
और उसक
े अशुभ प्रभावों को दूर करने क
े लिए भी जपा जाता है।
शनि बीज मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
शनि महामंत्र- ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
3. शनिदेव, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं जिन्हें शनिश्चर भी कहा जाता है। उन्हें कर्मफल क
े देवता
माना जाता है, और उनका प्रभाव व्यक्ति क
े कर्मों क
े अनुसार होता है। शनि देवता को यहां विशेष रूप से
न्याय और कर्मफल क
े विचार में जाना जाता है:
1. कर्मफल क
े देवता: शनिदेव को कर्मफल क
े प्रबंधन का अधिकारी माना जाता है। व्यक्ति क
े कर्मों
क
े आधार पर उनका प्रभाव होता है, और यह उसक
े जीवन में संघर्षों और परिक्षणों की परीक्षा क
े
रूप में प्रकट हो सकता है।
2. न्याय और इंसाफ: शनिदेव को न्याय क
े देवता क
े रूप में भी जाना जाता है। उन्हें मिलने वाले
फलों की विधि और विचार का प्रमुख समर्थन करने वाले माना जाता हैं।
4. 3. शिक्षा और सीखने का संक
े त: शनिदेव की पूजा और उनक
े मंत्रों का जप करने से यह भी सिखने
का संक
े त हो सकता है कि व्यक्ति को अपने कर्मों में सीखना चाहिए और उन्हें न्यायपूर्ण रूप से
करना चाहिए।
शनिदेव की उपासना से विविध आदर्शों और सिद्धांतों का समर्थन होता है, जिसमें कर्मफल, न्याय, और
सीखने का महत्व होता है।
शनि क
े स्वरुप का वर्णन करते हुए महर्षि पराशर जी ने बृहत होराशास्त्र में शनि का शरीर दुबला-पतला लेकिन
लंबा, नेत्र पिंगलवर्णी दांत मोटे स्वभाव आलसी व शनि क
े रोम तीखे व कठोर बतलाया है। यह शुद्र वर्णी व तामसी
प्रवृति क
े हैं।
मतस्य पुराण में शनिदेव की कांति को इंद्रमणि जैसा बतलाया है व शनिदेव हाथ में धनुष, त्रिशुल व वरमुद्रा धारण
किए हुए लोहनिर्मित रथ पर विराजमान बतलाया है । आचार्य वराह मिहिर रचित बृहत संहिता में शनिदेव को
मंदबुद्धि, कृ शकाय, नेत्र पिंगलवर्णी, विकृ त दांत वात प्रवृति व रुखे बालों वाला ग्रह बतलाया है ।
ग्रहों में शनिदेव को क्र
ू र, पापीग्रह क
े रुप में जाना जाता है । जिस पर भी शनिदेव की क्र
ू र दॄष्टि पड़ जाए उसका
विनाश हो जाता है । शनिदेव की दशा का प्रभाव किसी भी जातक पर प्राय: 36 से 45 वर्ष की आयु में अधिक रहता
है । शनि की दशा में काले घोड़े की नाल का छल्ला या नौका की कील से बना छल्ला धारण करें । शनि का प्रमुख
रत्न नीलम है । नीलम क
े अभाव में जामुनिया, नीलमा, नीला कटहला भी धारण किया जा सकता है। शनि का
स्थायी निवास पशिचम दिशा है वैसे इनक
े आधिपत्य में सौराष्ट्र प्रदेश, घाटियां, बंजरभूमि, मरुस्थल, भंगनिवास,
कोयले की खान, जंगम पर्वत, मलिन स्थल है।
शनिदेव क
े कारकत्व – आलस्य, हाथी, रोग, विरोध, दासकर्म, काले धान्य, झूठ बोलना, नपुंसकता, चांड़ाल,
विकृ त अंग, शिशिर ऋतु, लोहा, शल्य विधा, क
ु त्ता, प्रेत, आग, वायु, वृद्ध, वीर्य, संध्या, अतिक्रोध, स्त्रीपुरक सुख,
कारावास, स्नायु, अवैध संतान, यम पूजक, वैश्य, कृ षि कर्म, शूद्र, पशिचम दिशा, क
ं बल, बकरा, रतिकर्म, पुराना
तेल, भय, मणि, वनचर, मरण आदि।
शनिदेव क
े छायासुत, क्र
ु रलोचन, पंगु, पंगुकाय, यम, सूर्यतनय, कोण, अर्की, असित, अर्क पुत्र, दीर्घ छायात्मज,
सौरि, मंद, पांतगी, नील, मृदु, कपिलाक्ष आदि पर्यायवाची नाम है।
शनिदेव की दान योग्य वस्तुएं उड़द, काले जुते, काले चने, काले कपड़े, काली गाय, काले पुष्प, लोहा, तेल, नीलम,
गोमेद, जामुन, आदि हैं।
लोहा, तेल, कोयला, चमड़ा, हाथी दांत, ड्राईविंग, बढ़ईगिरी, वकालत, चाय – काफी विक्रय, लिपिक, दलाली,
जल्लाद, क्रय-विक्रय, खदान का कार्य, पेंटर, लाटरी, सट्टा, राजनिति, भिक्षावृति आदि शनिदेव से संबंधी व्यवसाय
हैं।
धार्मिक पुस्तक
ें (पीडीऍफ़)
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‘इस लेख में लिखित किसी भी कथा / सामग्री की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। ये सब जानकारी
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े अतिरिक्त, इसक
े किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी
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