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Chapter 4 - एही ठैय ाँ झुलनी हेर नी हो र म ! (प्रश्न अभ्य स)
Question 1:
हम री आज दी की लड ई में सम ज के उपेक्षित म ने ज ने व ले वर्ग
क योर्द न भी कम नहीीं रह है। इस कह नी में ऐसे लोर्ों के
योर्द न को लेखक ने ककस प्रक र उभ र है?
इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस
वर्ग को उभारने की कोशिि की है,जो समाज में हीन या उपेक्षित वर्ग
के रूप में देखे जाते हैं। टुन्नू व दुलारी ऐसे लोर् हैं, जो समाज में
के वल हेय् दृष्टट से देखे जाते हैं। दुलारी एक मिहूर र्ाययका थी व
टुन्नू भी दुलारी की तरह उभारता र्ायक था। टुन्नू ने आजादी के
शलए यनकाले र्ए जलुसों में भार् लेकर व अपने प्राणों की आहूयत
देकर ये शसद्ध ककया कक ये वर्ग मात्र नाचने या र्ाने के शलए पैदा
नहीीं हुए हैं अपपतु इनके मन में भी आजादी प्राप्त करने का जोि है।
इसी तरह दुलारी द्वारा रेिमी साड़ियों को जलाने के शलए देना भी
एक बहुत ब़िा कदम था तथा इसी तरह जल्से में बतौर र्ाययका
जाना व उसमें नाचना−र्ाना उसके योर्दान की ओर इिारा करता
है।
Question 2:
कठोर ह्रदयी समझी ज ने व ली दुल री टुन्नू की मृत्यु पर क्यों
ववचललत हो उठी?
दुलारी का स्वभाव नाररयल की तरह था। वह एक अके ली स्त्री थी।
इसशलए स्वयीं की रिा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु
अींदर से वह बहुत नरम ददल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता
था, उसके शलए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह
हमेिा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकक टुन्नू उससे उम्र में बहुत
छोटा था। परन्तु ह्रदय से वह उसका प्रणय यनवेदन स्वीकार करती
थी। फें कू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय ददग
से फट प़िा और आँखों से आँसुओीं की धारा बह यनकली। ककसी के
शलए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चचत्कार रहा था। उसकी मृत्यु ने
टुन्नू के प्रयत उसके प्रेम को सबके समि प्रस्तुत कर ददया उसने
टुन्नू द्वारा दी र्ई खादी की धोती पहन ली।
Question 3:
कजली दींर्ल जैसी र्ततववधियों क आयोजन क्यों हुआ करत
होर् ? कु छ और परींपर र्त लोक आयोजनों क उल्लेख कीजजए।
उस समय यह आयोजन मात्र मींनोरींजन का साधन हुआ करता था।
परन्तु कफर भी इनमें लोर्ों की प्रयतटठा का प्रश्न रहा करता था। इन
कजली र्ायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता
था । अपनी प्रयतटठा को उसके साथ जो़ि ददया जाता था और यही
ऐसे समारोहों की जान हुआ करते थे। उनकी हार जीत पर सब दटका
हुआ होता था। भारत में तो पवशभन्न स्थानों पर अलर्−अलर् रूपों
में अनेकों समारोह ककए जाते हैं; जैसे- उत्तर भारत में पहलवानी या
कु श्ती का आयोजन, राजस्थान में लोक सींर्ीत व पिु मेलों का
आयोजन, पींजाब में लोकनृत्य व लोकसींर्ीत का आयोजन, दक्षिण
में बैलों के दींर्ल व हाथी−युद्ध का आयोजन ककया जाता है।
Question 4:
दुल री ववलिष्ट कहे ज ने व ले स म जजक − स ींस्कृ ततक द यरे से
ब हर है किर भी अतत ववलिष्ट है। इस कथन को ध्य न में रखते हुए
दुल री की च ररत्रिक वविेषत एाँ ललखखए।
दुलारी बेिक उन सामाष्जक, साींस्कृ यतक के दायरे से बाहर है
क्योंकक समाज के प्रयतष्टठत लोर्ों द्वारा इन प्रयतभावान व्यष्क्तयों
व इनकी कलाओीं को उचचत सम्मान नहीीं शमल पाया। परन्तु अपने
व्यष्क्तत्व से इन्होंने अपना एक अलर् नाम प्राप्त ककया है जो
अयतपवशिटट है। दुलारी की पवशिटटता उसे सबसे अलर् करती है।
ये इस प्रकार हैं -
प्रभ वि ली र् तयक − दुलारी एक प्रभाविाली र्ाययका है उसकी
आवाज में मधुरता व लय का सुन्दर सींयोजन है। पद्य में तो
सवाल − जवाब करने में उसे कु िलता प्राप्त थी। उसके आर्े अच्छा
र्ायक भी नहीीं ठीक पाता था।
देि के प्रतत समवपगत − बेिक दुलारी प्रतयि रूप से स्वतन्त्रता
सींग्राम में ना कू दी हो पर वह अपने देि के प्रयत समपपगत स्त्री थी।
तभी उसने फें कू द्वारा दी, रेिमी साड़ियों के बींडल को, पवदेिी वस्त्रों
को एकत्र करके जलाने हेतु जुलूस में आए लोर्ों को दे ददया।
समवपगत प्रेलमक − दुलारी एक समपपगत प्रेशमका थी। वह टुन्नू से
मन ही मन प्रेम करती थी। परन्तु उसके जीते−जी उसने अपने प्रेम
को कभी व्यक्त नहीीं ककया। उसकी मृत्यु ने उसके ह्रदय में दबे प्रेम
को आींसुओीं के रूप में प्रवादहत कर ददया।
तनडर स्िी − दुलारी एक यनडर स्त्री थी। वह ककसी से नहीीं डरती थी।
अके ली स्त्री होने के कारण उसने स्वयीं की रिा हेतु अपने को यनडर
बनाया हुआ था। इसी यनडरता से उसने फे कूीं की दी हुई सा़िी जुलूस
में फें क दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने अींग्रेज पवरोधी समारोह
में भार् शलया तथा र्ायन पेि ककया।
स्व लभम नी स्िी − दुलारी एक स्वाशभमानी स्त्री थी। वह अपने
सम्मान के शलए समझौता करने के शलए कतई तैयार नहीीं थी।
इसशलए उसे उसकी र्ायकी में कोई भी हरा नहीीं सकता था।
Question 5:
दुल री क टुन्नू से पहली ब र पररचय कह ाँ और ककस रूप में हुआ?
टुन्नू व दुलारी का पररचय भादों में तीज के अवसर पर खोजवाँ
बाजार में हुआ था। जहाँ वह र्ाने के शलए बुलवाई र्ई थी। दुक्क़ि
पर र्ानेवाशलयों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही
सवाल−जवाब करने की महारत हाशसल थी। ब़िे − ब़िे र्ायक उसके
आर्े पानी भरते नजर आते थे और यही कारण था कक कोई भी
उसके सम्मुख नहीीं आता था। उसी कजली दींर्ल में उसकी
मुलाकात टुन्नू से हुई थी। एक सोलह−सत्रह वर्ग के ल़िके ने दुलारी
को भी अपने आर्े नतमस्तक कर ददया था। यह एक उभरता
कजली र्ायक था परन्तु ब़िे − ब़िों को पानी पपला दे, वो िमता थी
उसमें। इस कजली र्ायक ने दुलारी का मन मात्र 6 महीने में जीत
शलया था।
Question 6:
दुल री क टुन्नू को यह कहन कह ाँ तक उधचत थ - "तैं सरबउल
बोल जजन्दर्ी में कब देखने लोट?...!"दुल री से इस आपेि में आज
के युव वर्ग के ललए क्य सींदेि तछप है? उद हरण सहहत स्पष्ट
कीजजए।
यहाँ दुलारी ने उन लोर्ों पर आिेप ककया है जो असल ष्जन्दर्ी में
कु छ करते नहीीं मात्र दुसरों की नकल पर ही आचित होते हैं। उसके
अनुसार इस ष्जन्दर्ी में कब क्या हो जाए कोई नहीीं जानता। इस
ष्जन्दर्ी में कब नोट या धन देखने को शमल जाए कोई कु छ नहीीं
जानता। इसशलए हर पररष्स्थयत के शलए तैयार रहना चादहए।
Question 7:
भ रत के स्वीिनत आींदोलन में दुल री और टुन्नू ने अपन
योर्द न ककस प्रक र हदय ?
पवदेिी वस्त्रों के बादहटकार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी
ने अपना योर्दान रेिमी सा़िी व फें कू द्वारा ददए र्ए रेिमी सा़िी
के बींडल को देकर ददया। बेिक वह प्रत्यि रूप में आन्दोलन में
भार् नहीीं ले रही थी कफर भी अप्रत्यि रूप से उसने अपना योर्दान
ददया था। टुन्नू ने स्वतन्त्रता सींग्राम में एक शसपाही की तरह अपना
योर्दान ददया था। उसने रेिमी कु ताग व टोपी के स्थान पर खादी के
वस्त्र पहनना आरम्भ कर ददया। अींग्रेज पवरोधी आन्दोलन में वह
सकिय रूप से भार् लेने लर् र्या था और इसी सहभाचर्ता के
कारण उसे अपने प्राणों का बाशलदान देना प़िा।
Question 8:
दुल री और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनक कल क र मन और उनकी
कल थी? यह प्रेम दुल री को देि प्रेम तक कै से पहुाँच त है?
दुलारी और टुन्नू के ह्रदय में एक दूसरे के प्रयत अर्ाध प्रेम था और
ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था।
दुलारी ने टुन्नू के प्रेम यनवेदन को कभी स्वीकारा नहीीं परन्तु वह
मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भाींयत जानती
थी कक टुन्नू का प्रेम िारीररक ना होकर आष्त्मय प्रेम था और टुन्नू
की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रयत िद्धा भावना भर दी
थी। परन्तु उसकी मृत्यु के समाचार ने उसके ह्रदय पर जो आघात
ककया, वह उसके शलए असहनीय था। अींग्रेज अफसर द्वारा उसकी
यनदगयता पूवगक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेररत ककया
और उसने स्वतन्त्रता सेनायनयों द्वारा आयोष्जत समारोह में अपने
र्ायन से नई जान फूीं क दी। यही से उसने देि प्रेम का मार्ग चुना।
Question 9:
जल ए ज ने व ले ववदेिी वस्िों के ढेर में अधिक िीं वस्ि िटे−पुर ने
थे परींतु दुल री द्व र ववदेिी लमलों में बनी कोरी स डडयों क िें क
ज न उसकी ककस म नलसकत को दि गत है?
दुलारी द्वारा पवदेिी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेिमी साड़ियों का फें का
जाना यह दिागता है कक वह एक सच्ची दहन्दुस्तानी है, ष्जसके ह्रदय
में देि के प्रयत प्रेम व आदरभाव है। देि के आर्े उसके शलए साड़ियों
का कोई मूल्य नहीीं है। वस्त्र तो घर-घर से फें के र्ए थे पर वो सारे
वस्त्र या तो पुराने थे या तो चर्से हुए या फटे हुए थे। परन्तु उसके
वस्त्र बबलकु ल नए थे। उसके ह्रदय में उन रेिमी साड़ियों का मोह
नहीीं था। मोह था तो अपने देि के सम्मान का। वह उसकी सच्चे
देि प्रेमी की मानशसकता को दिागता है।
Question 10:
"मन पर ककसी क बस नहीीं; वह रूप य उमर क क यल नहीीं
होत ।" टुन्नू के इस कथन में उसक दुल री के प्रतत ककिोर जतनत
प्रेम व्यक्त हुआ है परींतु उसके वववेक ने उसके प्रेम को ककस हदि
की ओर मोड ?
टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा
था। वह मात्र सत्रह − सोलह साल का ल़िका था। दुलारी को उसका
प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कु छ नहीीं लर्ता था। इसशलए
वह उसका यतरस्कार करती रहती थी। परन्तु इन वाक्यों ने जैसे एक
अल्ह़ि ल़िके में प्रेम के प्रयत सच्ची भावना देखी। उसका प्रेम िरीर
से ना जु़िकर उसकी आत्मा से था। टुन्नू के द्वारा कहे वचनों ने
दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापपत कर
ददया। टुन्नु के प्रयत उसके पववेक ने उसके प्रेम को िद्धा का स्थान
दे ददया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यष्क्त नहीीं ले सकता था।
Question 11:
'एही ठैय ाँ झुलनी हेर नी हो र म ! क प्रतीक थग समझ इए।
इस कथन का िाष्ददक अथग है कक इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंर्
खो र्ई है, मैं ककससे पूछु ँ? परन्तु यदद दुलारी की मनोष्स्थयत देखें
तो ष्जस स्थान पर उसे र्ाने के शलए आमींबत्रत ककया र्या था, उसी
स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकाथग होर्ा - इसी
स्थान पर मेरा पप्रयतम मुझसे बबछ़ि र्या है। अब मैं ककससे उसके
बारे में पुछू ँ कक मेरा पप्रयतम मुझे कहाँ शमलेर्ा? अथागत् अब उसका
पप्रयतम उससे बबछ़ि र्या है, उसे पाना अब उसके बस में नहीीं है।

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  • 2. इसशलए स्वयीं की रिा हेतु वह कठोर आचरण करती थी। परन्तु अींदर से वह बहुत नरम ददल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके शलए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेिा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकक टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु ह्रदय से वह उसका प्रणय यनवेदन स्वीकार करती थी। फें कू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय ददग से फट प़िा और आँखों से आँसुओीं की धारा बह यनकली। ककसी के शलए ना पसीजने वाला ह्रदय आज चचत्कार रहा था। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रयत उसके प्रेम को सबके समि प्रस्तुत कर ददया उसने टुन्नू द्वारा दी र्ई खादी की धोती पहन ली। Question 3: कजली दींर्ल जैसी र्ततववधियों क आयोजन क्यों हुआ करत होर् ? कु छ और परींपर र्त लोक आयोजनों क उल्लेख कीजजए। उस समय यह आयोजन मात्र मींनोरींजन का साधन हुआ करता था। परन्तु कफर भी इनमें लोर्ों की प्रयतटठा का प्रश्न रहा करता था। इन कजली र्ायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता था । अपनी प्रयतटठा को उसके साथ जो़ि ददया जाता था और यही ऐसे समारोहों की जान हुआ करते थे। उनकी हार जीत पर सब दटका हुआ होता था। भारत में तो पवशभन्न स्थानों पर अलर्−अलर् रूपों में अनेकों समारोह ककए जाते हैं; जैसे- उत्तर भारत में पहलवानी या कु श्ती का आयोजन, राजस्थान में लोक सींर्ीत व पिु मेलों का
  • 3. आयोजन, पींजाब में लोकनृत्य व लोकसींर्ीत का आयोजन, दक्षिण में बैलों के दींर्ल व हाथी−युद्ध का आयोजन ककया जाता है। Question 4: दुल री ववलिष्ट कहे ज ने व ले स म जजक − स ींस्कृ ततक द यरे से ब हर है किर भी अतत ववलिष्ट है। इस कथन को ध्य न में रखते हुए दुल री की च ररत्रिक वविेषत एाँ ललखखए। दुलारी बेिक उन सामाष्जक, साींस्कृ यतक के दायरे से बाहर है क्योंकक समाज के प्रयतष्टठत लोर्ों द्वारा इन प्रयतभावान व्यष्क्तयों व इनकी कलाओीं को उचचत सम्मान नहीीं शमल पाया। परन्तु अपने व्यष्क्तत्व से इन्होंने अपना एक अलर् नाम प्राप्त ककया है जो अयतपवशिटट है। दुलारी की पवशिटटता उसे सबसे अलर् करती है। ये इस प्रकार हैं - प्रभ वि ली र् तयक − दुलारी एक प्रभाविाली र्ाययका है उसकी आवाज में मधुरता व लय का सुन्दर सींयोजन है। पद्य में तो सवाल − जवाब करने में उसे कु िलता प्राप्त थी। उसके आर्े अच्छा र्ायक भी नहीीं ठीक पाता था। देि के प्रतत समवपगत − बेिक दुलारी प्रतयि रूप से स्वतन्त्रता सींग्राम में ना कू दी हो पर वह अपने देि के प्रयत समपपगत स्त्री थी। तभी उसने फें कू द्वारा दी, रेिमी साड़ियों के बींडल को, पवदेिी वस्त्रों को एकत्र करके जलाने हेतु जुलूस में आए लोर्ों को दे ददया। समवपगत प्रेलमक − दुलारी एक समपपगत प्रेशमका थी। वह टुन्नू से
  • 4. मन ही मन प्रेम करती थी। परन्तु उसके जीते−जी उसने अपने प्रेम को कभी व्यक्त नहीीं ककया। उसकी मृत्यु ने उसके ह्रदय में दबे प्रेम को आींसुओीं के रूप में प्रवादहत कर ददया। तनडर स्िी − दुलारी एक यनडर स्त्री थी। वह ककसी से नहीीं डरती थी। अके ली स्त्री होने के कारण उसने स्वयीं की रिा हेतु अपने को यनडर बनाया हुआ था। इसी यनडरता से उसने फे कूीं की दी हुई सा़िी जुलूस में फें क दी। टुन्नू की मृत्यु के पश्चात उसने अींग्रेज पवरोधी समारोह में भार् शलया तथा र्ायन पेि ककया। स्व लभम नी स्िी − दुलारी एक स्वाशभमानी स्त्री थी। वह अपने सम्मान के शलए समझौता करने के शलए कतई तैयार नहीीं थी। इसशलए उसे उसकी र्ायकी में कोई भी हरा नहीीं सकता था। Question 5: दुल री क टुन्नू से पहली ब र पररचय कह ाँ और ककस रूप में हुआ? टुन्नू व दुलारी का पररचय भादों में तीज के अवसर पर खोजवाँ बाजार में हुआ था। जहाँ वह र्ाने के शलए बुलवाई र्ई थी। दुक्क़ि पर र्ानेवाशलयों में दुलारी का खासा नाम था। उससे पद्य में ही सवाल−जवाब करने की महारत हाशसल थी। ब़िे − ब़िे र्ायक उसके आर्े पानी भरते नजर आते थे और यही कारण था कक कोई भी उसके सम्मुख नहीीं आता था। उसी कजली दींर्ल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। एक सोलह−सत्रह वर्ग के ल़िके ने दुलारी को भी अपने आर्े नतमस्तक कर ददया था। यह एक उभरता कजली र्ायक था परन्तु ब़िे − ब़िों को पानी पपला दे, वो िमता थी
  • 5. उसमें। इस कजली र्ायक ने दुलारी का मन मात्र 6 महीने में जीत शलया था। Question 6: दुल री क टुन्नू को यह कहन कह ाँ तक उधचत थ - "तैं सरबउल बोल जजन्दर्ी में कब देखने लोट?...!"दुल री से इस आपेि में आज के युव वर्ग के ललए क्य सींदेि तछप है? उद हरण सहहत स्पष्ट कीजजए। यहाँ दुलारी ने उन लोर्ों पर आिेप ककया है जो असल ष्जन्दर्ी में कु छ करते नहीीं मात्र दुसरों की नकल पर ही आचित होते हैं। उसके अनुसार इस ष्जन्दर्ी में कब क्या हो जाए कोई नहीीं जानता। इस ष्जन्दर्ी में कब नोट या धन देखने को शमल जाए कोई कु छ नहीीं जानता। इसशलए हर पररष्स्थयत के शलए तैयार रहना चादहए। Question 7: भ रत के स्वीिनत आींदोलन में दुल री और टुन्नू ने अपन योर्द न ककस प्रक र हदय ? पवदेिी वस्त्रों के बादहटकार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योर्दान रेिमी सा़िी व फें कू द्वारा ददए र्ए रेिमी सा़िी के बींडल को देकर ददया। बेिक वह प्रत्यि रूप में आन्दोलन में भार् नहीीं ले रही थी कफर भी अप्रत्यि रूप से उसने अपना योर्दान ददया था। टुन्नू ने स्वतन्त्रता सींग्राम में एक शसपाही की तरह अपना योर्दान ददया था। उसने रेिमी कु ताग व टोपी के स्थान पर खादी के
  • 6. वस्त्र पहनना आरम्भ कर ददया। अींग्रेज पवरोधी आन्दोलन में वह सकिय रूप से भार् लेने लर् र्या था और इसी सहभाचर्ता के कारण उसे अपने प्राणों का बाशलदान देना प़िा। Question 8: दुल री और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनक कल क र मन और उनकी कल थी? यह प्रेम दुल री को देि प्रेम तक कै से पहुाँच त है? दुलारी और टुन्नू के ह्रदय में एक दूसरे के प्रयत अर्ाध प्रेम था और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम यनवेदन को कभी स्वीकारा नहीीं परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। वह यह भली भाींयत जानती थी कक टुन्नू का प्रेम िारीररक ना होकर आष्त्मय प्रेम था और टुन्नू की इसी भावना ने उसके मन में उसके प्रयत िद्धा भावना भर दी थी। परन्तु उसकी मृत्यु के समाचार ने उसके ह्रदय पर जो आघात ककया, वह उसके शलए असहनीय था। अींग्रेज अफसर द्वारा उसकी यनदगयता पूवगक हत्या ने, उसके अन्दर के कलाकार को प्रेररत ककया और उसने स्वतन्त्रता सेनायनयों द्वारा आयोष्जत समारोह में अपने र्ायन से नई जान फूीं क दी। यही से उसने देि प्रेम का मार्ग चुना। Question 9: जल ए ज ने व ले ववदेिी वस्िों के ढेर में अधिक िीं वस्ि िटे−पुर ने थे परींतु दुल री द्व र ववदेिी लमलों में बनी कोरी स डडयों क िें क ज न उसकी ककस म नलसकत को दि गत है?
  • 7. दुलारी द्वारा पवदेिी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेिमी साड़ियों का फें का जाना यह दिागता है कक वह एक सच्ची दहन्दुस्तानी है, ष्जसके ह्रदय में देि के प्रयत प्रेम व आदरभाव है। देि के आर्े उसके शलए साड़ियों का कोई मूल्य नहीीं है। वस्त्र तो घर-घर से फें के र्ए थे पर वो सारे वस्त्र या तो पुराने थे या तो चर्से हुए या फटे हुए थे। परन्तु उसके वस्त्र बबलकु ल नए थे। उसके ह्रदय में उन रेिमी साड़ियों का मोह नहीीं था। मोह था तो अपने देि के सम्मान का। वह उसकी सच्चे देि प्रेमी की मानशसकता को दिागता है। Question 10: "मन पर ककसी क बस नहीीं; वह रूप य उमर क क यल नहीीं होत ।" टुन्नू के इस कथन में उसक दुल री के प्रतत ककिोर जतनत प्रेम व्यक्त हुआ है परींतु उसके वववेक ने उसके प्रेम को ककस हदि की ओर मोड ? टुन्नू दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह − सोलह साल का ल़िका था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कु छ नहीीं लर्ता था। इसशलए वह उसका यतरस्कार करती रहती थी। परन्तु इन वाक्यों ने जैसे एक अल्ह़ि ल़िके में प्रेम के प्रयत सच्ची भावना देखी। उसका प्रेम िरीर से ना जु़िकर उसकी आत्मा से था। टुन्नू के द्वारा कहे वचनों ने दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापपत कर ददया। टुन्नु के प्रयत उसके पववेक ने उसके प्रेम को िद्धा का स्थान
  • 8. दे ददया। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यष्क्त नहीीं ले सकता था। Question 11: 'एही ठैय ाँ झुलनी हेर नी हो र म ! क प्रतीक थग समझ इए। इस कथन का िाष्ददक अथग है कक इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंर् खो र्ई है, मैं ककससे पूछु ँ? परन्तु यदद दुलारी की मनोष्स्थयत देखें तो ष्जस स्थान पर उसे र्ाने के शलए आमींबत्रत ककया र्या था, उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी तो उसका प्रतीकाथग होर्ा - इसी स्थान पर मेरा पप्रयतम मुझसे बबछ़ि र्या है। अब मैं ककससे उसके बारे में पुछू ँ कक मेरा पप्रयतम मुझे कहाँ शमलेर्ा? अथागत् अब उसका पप्रयतम उससे बबछ़ि र्या है, उसे पाना अब उसके बस में नहीीं है।