Pankaj Kumar Jadwani
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पीतांबरधारी, बंसी बजैया, मोरमुकुट धारी, माखन चोर और गैया के चरैया, ऐसे कितने ही नाम हैं कान्हा के।
इन सभी नामों में छुपी है प्रकृति की अनोखी झलक, जो भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप में समाहित है
Skills That Attract Success - Pankaj Kumar Jadwani
Shubh Janmashtami - Pankaj Kumar Jadwani
1. पीताांबरधारी, बांसी बजैया, मोरमुक
ु ट धारी, माखन चोर और गैया क
े चरैया, ऐसे
ककतने ही नाम हैं कान्हा क
े ।
इन सभी नामोां में छु पी है प्रक
ृ कत की अनोखी झलक,
जो भगवान श्रीक
ृ ष्ण क
े स्वरूप में समाकहत है
3. श्रीक
ृ ष्ण की परम भक्त मीराबाई ने पदावली में भगवान क
े उस रूप का वणणन ककया
कजसकी पूजा वो करती थीां।
मुरली मनोहर क
े कसर पर मोरपांख का मुक
ु ट कवराजमान है।
वो पीताांबर पहने हैं।
उनक
े गले में वैजयांती माला है।
इस अद् भुत स्वरूप में वो वृांदावन में मुरली बजाते हुए गाय चरा रहे हैं।
कन्हैया की लीलाएां प्रक
ृ कत-प्रेम से वशीभूत हैं।
इनक
े हर एक शांगार और प्रतीक में मानव और वातावरण का अनोखा मेल देखने को
कमलता है।
भगवान क
े इसी स्वरूप से जुडे प्रतीकोां क
े बारे में जानते हैं...
5. मोरपांख
क
ृ ष्ण जब छोटे थे, तब यशोदा माता उनका शांगार करती थीां।
सम्मोहक छकव होने से उन्हें डर था कक कहीांक
ृ ष्ण को बुरी नज़र न लग
जाए। इसकलए वो उनक
े कसर पर मोरपांख लगा कदया करती थीां।
क
ृ ष्ण ने अपनी माां की कचांता दू र करने क
े कलए हमेशा इसे अपने मस्तक
पर जगह दी।
मोरपांख में सुांदरता और आकर्णण भी होता है।
इस वजह से भी श्रीक
ृ ष्ण क
े शांगार में माता मोरपांख का प्रयोग करती
थीां।
मोरपिंख
6. वैजयिंतीमाला
वैजयांती पौधे से कमलने वाले बीज कभी अपनी चमक नहीांखोते और आसानी से ख़राब
भी नहीांहोते।
लांबे समय तक एक जैसे बने रहने क
े कारण इन बीजोां की माला बनाई गई।
इन अक्षय बीजोां से बनी श्वेत माला को लक्ष्मी स्वरूपा होने क
े कारण शुद्धता, पकवत्रता
और वैभव का प्रतीक माना जाता है।
श्रीमद्भागवत महापुराण क
े आठवें स्क
ां ध में समुद्र मांथन में माां लक्ष्मी क
े प्रादुभाणव क
े
समय यह वणणन है कक समुद्र ने लक्ष्मीजी का स्वागत करते हुए उन्हें पीले वस्त्र कदए और
वरुणदेव ने वैजयांती माला दी।
जब लक्ष्मीजी ने भगवान कवष्णु का वरण ककया तो वैजयांती माला भगवान को पहना दी।
इसकलए कवष्णु अवतार श्रीक
ृ ष्ण वैजयांती माला हमेशा पहने रहते हैं।
7. चिंदनसतलक
जब श्रीक
ृ ष्ण का नामकरण सांस्कार हुआ तब महकर्ण गगाणचायण ने उनको सबसे पहले
आशीवाणद क
े तौर पर चांदन का कतलक लगाया और उनका नामकरण ककया।
इसक
े बाद से जब भी माता यशोदा क
ृ ष्ण का श्रृांगार करतीांतो उन्हें चांदन का कतलक
लगातीां।
श्रीक
ृ ष्ण ने अपने गुरु से कमला पहला आशीवाणद हमेशा अपने साथ रखा।
चांदन की सुगांध तनाव दू र कर प्रसन्नता देती है।
इसकी सुगांध से एकाग्रता भी बढ़ती है।
इसीकलए आज भी छोटे बच्ोां को चांदन का कतलक लगाना शुभ माना जाता है।
8. पीतािंबर
भगवान पीताांबरधारी इसकलए हैं क्ोांकक हमारी सांस्क
ृ कत में पीले रांग को सूयण क
े तेज क
े
समान उत्साहवधणक और उत्तम स्वास्थ्य देने वाला माना जाता है।
यही वजह है कक सभी शुभ अवसरोां पर हल्दी का इस्तेमाल होता है।
सूयण क
े सारथी अरुण का रांग भी पीला है इसीकलए सूयोदय क
े समय पूवण कदशा पीतवणाण
यानी स्वणणमय कदखाई देती है
अकिदेव भी पीतवणण हैं और पीला रांग जागृकत और कमणठता का भी प्रतीक है।
पीला रांग ऋतुओां क
े राजा वसांत क
े आगमन का सूचक है कजस समय प्रक
ृ कत अपने पूणण
यौवन पर होती है।
इसकलए ही श्रीक
ृ ष्ण ने कहा है कक मैं ऋतुओां में वसांत हां।
9. हाथोिंमें
सवजयी-मथुर
स्वरक
े प्रतीक
बाांसुरी नांदबाबा ने गोक
ु ल में क
ृ ष्ण को बाांसुरी दी। तब क
ृ ष्ण तीन-चार साल क
े थे।
यह उनका सबसे प्यारा खखलौना बन गया।
ये बाांसुरी जीवनभर उनक
े साथ रही।
बाांस से बनी बाांसुरी भगवान को बहुत कप्रय है।
इसे वांशी, वेणु, वांकशका और मुरली भी कहा जाता है।
बाांस प्रक
ृ कत का अांग है।
बाांसुरी का स्वर मन और मखस्तष्क को शाांकत देने वाला होता है
10. पािंचजन्य
क
ृ ष्ण का कप्रय शांख, समुद्र मांथन से कनकले 14 रत्ोां में छठा रत् था।
कौरव-पाांडव क
े बीच युद्ध की शुरुआत में अजुणन क
े सारथी बने श्रीक
ृ ष्ण ने अत्यांत दुलणभ
पाांचजन्य शांख बजाया था।
इस शांख की ध्वकन पाांच मुखोां से कनकलती थी इसीकलए इसे पाांचजन्य कहा गया।
पुराणोां क
े अनुसार, ये पाांच ध्वकन-द्वार मनुष्य की पाांच इांकद्रयोां और इनक
े अांगोां क
े
पररचायक हैं।
इन इांकद्रयोां पर कनयांत्रण रखकर हर युद्ध में कवजयी हुआ जा सकता है।
11. गौसे समत्रता
श्रीक
ृ ष्ण का जीवन गायोां क
े साथ ही बीता, क्ोांकक उस समय यदुवांशी गाय पालने का
काम करते थे।
क
ृ ष्ण ने बचपन से ही गायें चराई ।
उन गायोां का दू ध कपया और उससे बना मक्खन खाया।
गायोां में रहने वाले सभी देवता क
ृ ष्ण का साकन्नध्य चाहते थे, इसकलए उनका पालन-पोर्ण
यदुवांशी पररवार में हुआ।
इसक
े अलावा गाय का गोबर और गोमूत्र शुद्धता क
े कलए अहम होता है।
12. माखनसे प्रेम
नांदबाबा और यशोदा माखन यदुवांशी थे इसकलए इस कारण घर में खाने क
े कलए
आसानी से गाय क
े दू ध से बनी वस्तुएां ही कमल पाती थीां ।
मक्खन लांबे समय तक शखक्त देने वाला होता है, इसकलए यशोदा माता ने श्रीक
ृ ष्ण
का अन्नप्राशन सांस्कार मक्खन से ही करवाया था।
क
ृ ष्ण क
े जीवन की पहली कमठाई माखन-कमश्री ही थी।
माता क
े प्रेम से कमले मक्खन को श्रीक
ृ ष्ण ने हमेशा अपने साथ रखा, इसकलए उनको
मक्खन का भोग लगाया जाता है।