Pankaj Kumar Jadwani
The Brain Gym
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3. क्या है श्रीमद्भागवत गीता
◦ जीवर् क
े सार से सराबोर श्रीमद्भागवत गीता भारत का लवश्वभर में प्रलसद्ध ग्रन्थ है जो सैकड़ोों सालोों से जीवर्
की टफ एग्जाम्स में लर्र्नय लेर्े में हेल्प करता आ रहा है।
◦ यह महाभारत क
े भीष्मपवन का अोंग है।
◦ गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।
◦ यह मार्ा जाता है लक महलषन क
ृ ष्ण दैपायर् व्यास र्े गीता को ललखा है।
◦ महाभारत युद्ध आरम्भ होर्े क
े ठीक पहले भगवार् श्रीक
ृ ष्ण र्े अजुनर् को जो उपदेश लदया वह श्रीमद्भागवत
गीता क
े र्ाम से प्रलसद्ध है।
5. (1) परिवर्तन को गले लगा लो ।
◦ अध्याय 2, 22 वाां श्लोक:
वासाोंलस जीर्ानलर् यथा लवहाय र्वालर् गृह्णालत र्रोपरालर्।
तथा शरीरालर् लवहाय जीर्ान-न्यन्यालर् सोंयालत र्वालर् देही।।2.22।।
◦ अर्त: मर्ुष्य जैसे पुरार्े कपड़ोों को छोड़कर दू सरे र्ए कपड़े धारर् कर लेता है,
ऐसे ही देह पुरार्े शरीर को छोड़कर दू सरे र्ए शरीरोों में चला जाता है।
◦ दैननक जीवन में उपयोग: जीवर् का एकमात्र सावनभौलमक सत्य है लक जीवर् पररवतनर्शील है, जो आज है वो कल
र्हीों होगा या तो उसका स्वरूप बदल जाएगा या उसक
े स्थार् पर क
ु छ और जन्म लेगा। लेलकर् क
ु छ कोर चीजें
हमेशा बर्ी रहती हैं। जैसे अलग-अलग स्थार्, समय, पररस्स्थलत क
े लहसाब से मर्ुष्योों और जार्वरोों क
े खार्े की
आदतें बदल सकती हैं, मगर बेलसक चीज वही रहेगी अथानत भोजर् करर्ा। हम ये सोच कर अपर्े जीवर् क
े सभी
लर्र्नय लें तो हम जीवर् में खुशी हालसल कर सकते हैं।
7. (2) हमेशा मेन्टल बैलेंस बना क
े िखें ।
◦ अध्याय 2, 38 वाां श्लोक:
सुखदुुःखे समे क
ृ त्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व र्ैवों पापमवाप्स्यलस।।2.38।।
◦ अर्त: जय-पराजय, लाभ-हालर् और सुख-दुख को समार् करक
े लफर युद्ध में लग जा।
इस प्रकार युद्ध करर्े से तू पाप को प्राप्त र्हीों होगा।
◦ दैननक जीवन में उपयोग: हमारे दैलर्क जीवर् में हम कई लोगोों को देखते हैं जो इमोशर्ल बैलेंस र्हीों बर्ा पाते।
कभी आप पाएों गे लक वो जरा सी खुशी लमलर्े पर पागलोों की तरह खुश हो जाएों गे और थोड़ी ही देर बाद जरा सा
दुख लमलर्े पर सवानलधक दुखी। ऐसे व्यस्ि मैर्ेजमेंट क
े उच्च पदोों पर सही लर्र्नय र्हीों कर पाते। क्योोंलक ऐसे लर्र्नय
कई लोगो को प्रभालवत करते हैं, इसललए इन्हें इमोशोंस से परे धरातल की कसौटी पर लेर्े की आवश्यकता होती
है। इसललए ऐसा व्यस्ि लजसमें वह दुख और सुख में एक जैसा भाव रख पार्े की क्षमता हो मैर्ेजमेंट क
े उच्च पदोों
क
े लायक होता है, आप यह क्षमता अपर्े में लवकलसत करक
े इर् पदोों क
े लायक बर् सकते हैं।
9. (3) नवनाश में ही सृजन है।
◦ अध्याय 4, 7 वाां श्लोक:
यदा यदा लह धमनय ग्लालर्भनवलत भारत।
अभ्युत्थार्मधमनय तदाऽऽत्मार्ों सृजाम्यहम्।।4.7।।
◦ अर्त: जब-जब इस धरती पर पाप, अहोंकार और अधमन बढेगा, तो उसका लवर्ाश कर पुर्: धमन
की स्थापर्ा करर्े हेतु, मैं अवश्य अवतार लेता रहोंगा।
◦ दैननक जीवन में उपयोग: मॉडर्न मैर्ेजमेंट में इसे 'लिएलटव लडस्ट्रक्शर्' क
े रूप में समझा जा
सकता है। जापार् का 'काइजेर्' कॉन्सेप्ट भी इसी ओर इशारा करता है लक पुरार्े लसस्ट्म्स और
वस्तुओों को लर्रोंतर बेहतर बर्ाते हुए पररवतनर् करर्ा। यलद हम इसे अपर्े दैलर्क जीवर् में
उतारें तो लर्लित ही सफलता पा सकते हैं।
11. (4) आपसे बढ़कि आपका नमत्र नहीां ।
◦ अध्याय 6, 5वाां श्लोक:
उद्धरेदात्मर्ाऽऽत्मार्ों र्ात्मार्मवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मर्ो बन्धुरात्मैव ररपुरात्मर्ुः।।6.5।।
◦ अर्त: अपर्े द्वारा अपर्ा उद्धार करें, अपर्ा पतर् र् करें;
क्योोंलक आप ही अपर्े लमत्र हैं और आप ही अपर्े शत्रु हैं।
◦ दैननक जीवन में उपयोग: व्यस्ि द्वारा स्वयों का आकलर् करर्ा बेहद आवश्यक है। जब तक
आप खुद को र्हीों समझेंगे, तब तक आप स्वयों से जुड़ा कोई भी फ
ै सला मजबूती क
े साथ र्हीों
कर सक
ें गे। जब मर्ुष्य अपर्े गुर्ोों और कलमयोों को जार् लेता है तब वह अपर्े व्यस्ित्व का
लर्मानर् सही ढोंग से कर पाता है।
13. (5) ज्ञान लेने क
े बाद उसका इस्तेमाल हम पि
है ।
◦ अध्याय 18, 63वाां श्लोक:
इलत ते ज्ञार्माख्यातों गुह्याद् गुह्यतरों मया।
लवमृश्यैतदशेषेर् यथेच्छलस तथा क
ु रु।।18.63।।
◦ अर्त: यह गुह्यसे भी गुह्यतर (शरर्ागलतरूप) ज्ञार् मैंर्े तुझे कह लदया।
अब तू इस पर अच्छी तरह से लवचार करक
े जैसा चाहता है, वैसा कर।
◦ दैननक जीवन में उपयोग: अपर्े टीचर से लमले बलढया ज्ञार् का अोंलतम उपयोग हमें
अपर्ी पररस्स्थलत क
े लहसाब से ही करर्ा है। अोंलतम फ
ै सला हमारा होगा, और अोंलतम
फल भी हमारा।