प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
The President’s Speech in Cairo: A New Beginning - HindiObama White House
President Obama’s speech in Cairo on America’s relationship with Muslim communities around the world. June 4th, 2009. http://www.whitehouse.gov/blog/newbeginning/
President Obama extends his best wishes to Muslim communities in the United States and around the world during Ramadan.http://www.whitehouse.gov/blog/Ramadan-Kareem/
व्यावहारिक मनोविज्ञान का अर्थ इतिहास (Meaning and History of Applied Pschology)Dr Rajesh Verma
हेनरी इलियट के अनुसार “यह मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें शुद्ध और विशेषकर प्रायोगिक मनोविज्ञान की विधियों एवं परिणामों को व्यहारिक समस्याओं और व्यवहारिक जीवन पर प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है”
Nepali autosuggestions to overcome negative thoughtsSSRF Inc.
नकारात्मक विचारहरू हटाउन धेरै गाह्रो हुनुको कारण हो, हामी समस्याहरूलाई केवल शारीरिक र मानसिक समाधानको साथ सम्बोधन गर्न खोजदछौं । प्राय धेरै जसो समयमा, समस्या आध्यात्मिक स्तरमा हुन्छ यस कारण कम प्रभावकारी हुन जान्छ ।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
The President’s Speech in Cairo: A New Beginning - HindiObama White House
President Obama’s speech in Cairo on America’s relationship with Muslim communities around the world. June 4th, 2009. http://www.whitehouse.gov/blog/newbeginning/
President Obama extends his best wishes to Muslim communities in the United States and around the world during Ramadan.http://www.whitehouse.gov/blog/Ramadan-Kareem/
व्यावहारिक मनोविज्ञान का अर्थ इतिहास (Meaning and History of Applied Pschology)Dr Rajesh Verma
हेनरी इलियट के अनुसार “यह मनोविज्ञान की ऐसी शाखा है जिसमें शुद्ध और विशेषकर प्रायोगिक मनोविज्ञान की विधियों एवं परिणामों को व्यहारिक समस्याओं और व्यवहारिक जीवन पर प्रयोग करने का प्रयास किया जाता है”
Nepali autosuggestions to overcome negative thoughtsSSRF Inc.
नकारात्मक विचारहरू हटाउन धेरै गाह्रो हुनुको कारण हो, हामी समस्याहरूलाई केवल शारीरिक र मानसिक समाधानको साथ सम्बोधन गर्न खोजदछौं । प्राय धेरै जसो समयमा, समस्या आध्यात्मिक स्तरमा हुन्छ यस कारण कम प्रभावकारी हुन जान्छ ।
2. थोडी मा हती (Introduction)
शाळेत असताना प्रयोग वहीत आकृ त्या काढायला लागत आ ण त्या जशाच्या तश्या याव्यात
हा माझ्या अट्टहास असे . हे सगळ्यात कठीण असते . तसेच प्रोग्राम तयार झाल्यावर यूजर
ला जे हवे ते तसेच दाखवणे हे ही प्रोग्राम इतके च महत्वाचे आहे.
पायथॉन मध्ये हे काम ‘print’ कमांड करते. अ तशय दुलर्या क्षित पण अ तशय महत्वाची ही
कमांड कशी वापरायची ते आज आपण बघू . कालच्या भागात श्री गणेशा करताना आपण
“print ” कमांड चा नमूना ब घतला आहेच .
3. थोडी मा हती (Introduction)
मी आजही Google Colab वापरणार आहे. तुम्हीही वापरुन बघा .. खूप इंटरेिस्टंग आहे. Google
Colab तुम्ही कधीही कु ठेही वापरू शकता . त्यासाठी “colab. research. google. com” ह्या
संके त स्थळावर भेट द्या आ ण “फाइल -> न्यू नोटबूक” वर िक्लक करा.
4. print कमांडचा उपयोग करणे
पायथॉन मध्ये “print “ कमांड ला “function” म्हणतात . म्हणजे हे print function
छापण्याचे काम करते . फक्त ती छपाई कागदावर नाही तर स्क्रीन वर होते. आता आपण
खालील प्रकारे प्रं टंग करू शकतो :
● आहे तसे (default स्टाइल )
● हवे तसे (formatted)
5. आहे तसे (default स्टाइल )
● आहे तसे म्हणजे कम्प्युटर मध्ये जसे साठवले आहे तसे. आपण एखादा मेसेज, डेटा असे
सवर्या प्रंट करू शकतो. उदा .
6. ● आहे तसे म्हणजे कम्प्युटर मध्ये जसे साठवले आहे तसे. पण आपल्याला जर असे काही हवे
असेल तर ?
●
हवे तसे (formatted)
7. ● म्हणून आपल्याला फॉरमॅ टंग करावे लागते. इथे आपण वेग वेगळ्या प्रकारे फॉरमॅ टंग कसे
करतात ते पाहू. त्याचे वश्लेषण पुढील भागांमध्ये येईलच.
हवे तसे (formatted)
ही स्टाइल आपण “c “ लॅंगवेज मध्ये प हली होती. पण ही पद्धत ततकीशी सोयीची नाही,
म्हणूनच पायथॉन मध्ये एक नवीन पद्धत वापरतात त्याला “f” िस्स्ट्रिंग कं वा “fast” पद्धत
म्हणतात
8. ● आता इथे पहाल तर तुम्हाला दसेल की आपण इथे आउटपुट कसे हवे ते सां गतले आहे.
म्हणजे नाव उजवीकडे तर जन्म स्थळ डावीकडून सुरू झाले आहे.
हवे तसे (formatted)
9. ● अ भनंदन .. आज आपण “print” function काय आहे याची थोडक्यात महती ब घतली.
● याही पुढे आपण “print” function ची अशी अजून बरीच वै शष्ट्ये बघणार आहोत.
हवे तसे (formatted)