Although this Gospel is, by some among the learned, supposed to have been really written by Nicodemus, who became a disciple of Jesus Christ, and conversed with him; others conjecture that it was a forgery towards the close of the third century by some zealous believer, who observing that there had been appeals made by the Christians of the former age, to the Acts of Pilate, but that such Acts could not be produced, imagined it would be of service to Christianity to fabricate and publish this Gospel; as it would both confirm the Christians under persecution, and convince the Heathens of the truth of the Christian religion.
Although this Gospel is, by some among the learned, supposed to have been really written by Nicodemus, who became a disciple of Jesus Christ, and conversed with him; others conjecture that it was a forgery towards the close of the third century by some zealous believer, who observing that there had been appeals made by the Christians of the former age, to the Acts of Pilate, but that such Acts could not be produced, imagined it would be of service to Christianity to fabricate and publish this Gospel; as it would both confirm the Christians under persecution, and convince the Heathens of the truth of the Christian religion.
Although this Gospel is, by some among the learned, supposed to have been really written by Nicodemus, who became a disciple of Jesus Christ, and conversed with him; others conjecture that it was a forgery towards the close of the third century by some zealous believer, who observing that there had been appeals made by the Christians of the former age, to the Acts of Pilate, but that such Acts could not be produced, imagined it would be of service to Christianity to fabricate and publish this Gospel; as it would both confirm the Christians under persecution, and convince the Heathens of the truth of the Christian religion.
Lecture by Sheikh Touseef Ur Rahman
A doctor prescribes surgery to a heart patient, that he has to undergo a bypass for his wellbeing and he,
instead of finding a surgeon goes to a butcher or a hairdresser and he, dissects him with his tools. Now
there is no doubt left for his expiry.
Similar is the case of Islamic nation. ALLAH, Lord of the Throne, revealed HIS words for the guidance, for
the salvation of Muslim Ummah. The deliverer of the revelation... leader of the angels, the night it
revealed on …leader of the nights, the month of revelation…. leader of the months and the Prophet on
which the message is revealed is the leader of the Prophetsوسلم عليه هللا صلى.
Although this Gospel is, by some among the learned, supposed to have been really written by Nicodemus, who became a disciple of Jesus Christ, and conversed with him; others conjecture that it was a forgery towards the close of the third century by some zealous believer, who observing that there had been appeals made by the Christians of the former age, to the Acts of Pilate, but that such Acts could not be produced, imagined it would be of service to Christianity to fabricate and publish this Gospel; as it would both confirm the Christians under persecution, and convince the Heathens of the truth of the Christian religion.
Lecture by Sheikh Touseef Ur Rahman
A doctor prescribes surgery to a heart patient, that he has to undergo a bypass for his wellbeing and he,
instead of finding a surgeon goes to a butcher or a hairdresser and he, dissects him with his tools. Now
there is no doubt left for his expiry.
Similar is the case of Islamic nation. ALLAH, Lord of the Throne, revealed HIS words for the guidance, for
the salvation of Muslim Ummah. The deliverer of the revelation... leader of the angels, the night it
revealed on …leader of the nights, the month of revelation…. leader of the months and the Prophet on
which the message is revealed is the leader of the Prophetsوسلم عليه هللا صلى.
3. परिचय - सच्चे वशष्यत्व में चलने क
े वलए
प्रत्येक विश्वासी में यीशु की तिह
चलने की "बढ़ती हुई इच्छा"
होनी चावहए
4. परिचय - सच्चे वशष्यत्व में चलने क
े वलए
यीशु ने उनका अनुसिण किने
क
े वलए "वशष्यता क
े वसद्ाांत"
वसखाया।
5. परिचय - सच्चे वशष्यत्व में चलने क
े वलए
प्रत्येक विश्वासी को "अपने जीिन क
े
प्रत्येक क्षेत्र को खोलना चावहए" -
पिमेश्वि क
े िचन क
े प्रभाि क
े वलए
6. परिचय - सच्चे वशष्यत्व में चलने क
े वलए
िसेल ने कहा –
" आप जो हैं उसकी िजह से मैं नहीां सुन
सकता वक आप क्या कह िहे हैं "
7. परिचय - सच्चे वशष्यत्व में चलने क
े वलए
कलीवसया की सबसे बडी समस्या में से एक
–
लोग जो कहते हैं , िह मानते हैं
औि उनक
े जीने क
े तिीक
े में बडा अांति है।
8. प्रभु यीशु मसीह का वशष्य कौन है -
क
े िल यीशु का अनुसिण किता है
यीशु की तिह जीने औि चलने की इच्छा बढ़ती है
प्रभु यीशु मसीह से सीखने क
े वलए खुलापन िखें
यीशु की तिह पवित्र आत्मा की शक्ति में चलो
9. प्रभु यीशु मसीह का वशष्य कौन है -
वशष्य क
े वलए यूनानी शब्द "मैथेट्स" है - जो दू सिे से वनदेश सीखता
है
न क
े िल गुरु क
े िचन सुनना है - अपने स्वामी का आज्ञा पालन
किने की प्रवतबद्ता भी किता है .
प्रत्येक मसीही विश्वासी को वशष्य कहा जाता है - अथाात् - यीशु क
े
िचन , उसक
े िचनोां का पालन किने की प्रवतबद्ता , उसकी पुकाि
, उसक
े जीिन में पहली प्राथवमकता बन जाती है , चाहे उसकी
कीमत क
ु छ भी हो .
10. 1 पतिस - अध्याय 2
21 औि तुम इसी क
े वलये बुलाए भी गए हो
क्योांवक मसीह भी तुम्हािे वलये दुख उठा
कि, तुम्हें एक आदशा दे गया है, वक तुम
भी उसक
े वचन्ह पि चलो।
11. 1 यूहन्ना - अध्याय 2
6 सो कोई यह कहता है, वक मैं उस
में बना िहता हां, उसे चावहए वक
आप भी िैसा ही चले जैसा िह
चलता था।
12. हम अंत क
े समय में हैं ...
यीशु बहुत जल्द आ रहे हैं ...
हमें तैयार रहने की जरूरत है …
13. हम अंत क
े समय में हैं ...
मैं दशान में देखा –
मानुष्य को खानेिाले खो ....
14. येक औि दशान में ....
अलग से वदक िहा हे ये लोग.. बडे मनुष्य खो देखा ....
बहुत ऊ
ां चा ....7 या 8 फ
ु ट का ... शेि, टाइगि से उनका
हमला, बहुत शक्ति शाली .. .जांगल में विखाये वदया ...
येक ... िोसिा ... तेज में चल िहा िह ... वयतना फास्ट
झा िहा िह .... हम उनको नहीां पखड सकते थे हे
15. नपीली जावत…
गिनती 13 : 33
वफि हम ने िहाां नपील ं क , अथाात नपीली जावत िाले
अनाकवंगशय ं क देखा; औि हम अपनी दृवि में तो
उनक
े साम्हने वटड्डे क
े सामान वदखाई पडते थे, औि ऐसे
ही उनकी दृवि में मालूम पडते थे॥
16. उत्पगि 6 : 1-4
1 ि जब मनुष्य भूवम क
े ऊपि बहुत बढ़ने लगे, औि
उनक
े बेवटयाां उत्पन्न हुई,
2 तब पिमेश्वि क
े पुत्रोां ने मनुष्य की पुवत्रयोां को देखा, वक
िे सुन्दि हैं; सो उन्होांने वजस वजस को चाहा उन से ब्याह
कि वलया।
17. उत्पगि 6 : 1-4
3 औि यहोिा ने कहा, मेिा आत्मा मनुष्य से सदा लोां वििाद किता न िहेगा,
क्योांवक मनुष्य भी शिीि ही है: उसकी आयु एक सौ बीस िर्ा की होगी।
4 उन वदनोां में पृथ्वी पि दानि िहते थे; औि इसक
े पश्चात जब परमेश्वर क
े पुत्र
मनुष्य की पुगत्रय ं क
े पास िए तब उनक
े द्वारा ज सन्तान उत्पन्न हुए, वे
पुत्र शूरवीर ह ते थे, वजनकी कीवता प्राचीन काल से प्रचवलत है।
18. अदृश्य आध्याक्तत्मक क्षेत्र ...
यहदा 1 : 6
6 वफि वजन स्विगदू त ं ने अपने पद को क्तथथि न िखा ििन्
अपने वनज वनिास को छोड वदया, उसने उनको भी उस
भीर्ण वदन क
े न्याय क
े वलये अन्धकाि में, जो सदा काल क
े
वलये है, बन्धनोां में िखा है।
19. 1 इवतहास 20 : 5
5 पवलक्तियोां क
े साथ वफि युद् हुआ; उसमें याईर क
े
पुत्र एल्हानान ने िती ि ल्यत क
े भाई लहमी को माि
डाला, वजसक
े बछे की छड जुलाहे की डोांगी क
े समान
थी।
20. 1 इवतहास 11 : 22
22 यहोयादा का पुत्र बनायाह था, जो कबजेल क
े एक
िीि का पुत्र था, वजसने बडे बडे काम वकए थे, उसने
वसांह समान दो मोआवबयोां को माि डाला, औि
वहमऋतु में उसने एक गडहे में उति क
े एक वसांह को
माि डाला।
21. स्विीय गिह्न की मााँि
(मरक
ु स 8 :11 –13; लूका 12 : 54 –56)
मिी 16 : 1-4
1 फिीवसयोां औि सदू वकयोां ने पास आकि उसे पिखने क
े वलये उससे कहा,
“हमें स्वगा का कोई वचह्न वदखा।”
2 उसने उनको उत्ति वदया, “सााँझ को तुम कहते हो, ‘मौसम अच्छा िहेगा,
क्योांवक आकाश लाल है’,
3 औि भोि को कहते हो, ‘आज आाँिी आएगी, क्योांवक आकाश लाल औि
िूवमल है।’ तुम आकाश क
े लक्षण देखकि उसका भेद बता सकते हो, पि
समय ं क
े गिह्न ं का भेद क्योां नहीां बता सकते?
4 इस युग क
े बुिे औि व्यवभचािी लोग वचह्न ढूाँढ़ते हैं, पि योना क
े वचह्न को
छोड उन्हें औि कोई वचह्न न वदया जाएगा।” औि िह उन्हें छोडकि चला
गया।
22. अंजीर क
े पेड़ का उदाहरण - मिी 24 : 32 – 35
(मरक
ु स 13:28–31; लूका 21:29–33)
32 “अांजीि क
े पेड से यह दृर््टान्त सीखो : जब उसकी डाली कोमल हो जाती औि पत्ते
वनकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो वक ग्रीष्म काल वनकट है।
33इसी िीवत से जब तुम इन सब बात ं क देख , त जान
ल गक वह गनकट है, ििन् द्वाि ही पि है।
34 मैं तुम से सच कहता हाँ वक जब तक ये सब बातें पूरी न ह लें, तब
तक इस पीढी का अन्त नहीं ह िा।
35 आकाश और पृथ्वी टल जाएाँ िे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंिी।
23. जािते रह : मिी 24 : 36- 44
(मरक
ु स 13:32–37; लूका 17:26–30,34–36)
36“उस वदन औि उस घडी क
े विर्य में कोई नहीां
जानता, न स्वगा क
े दू त औि न पुत्र, पिन्तु क
े िल वपता।
37जैसे नूह क
े वदन थे, िैसा ही मनुष्य क
े पुत्र का आना
भी होगा।
38क्योांवक जैसे जल–प्रलय से पहले क
े वदनोां में, वजस
वदन तक वक नूह जहाज पि न चढ़ा, उस वदन तक लोग
खाते–पीते थे, औि उनमें वििाह होते थे।
24. जािते रह : मिी 24 : 36- 44
(मरक
ु स 13:32–37; लूका 17:26–30,34–36)
39औि जब तक जल–प्रलय आकि उन सब को बहा न ले गया, तब
तक उनको क
ु छ भी मालूम न पडा; िैसे ही मनुष्य क
े पुत्र का आना
भी होगा।
40उस समय दो जन खेत में होांगे, एक ले वलया जाएगा औि दू सिा
छोड वदया जाएगा।
41दो क्तियााँ चक
् की पीसती िहेंगी, एक ले ली जाएगी औि दू सिी
छोड दी जाएगी।
25. जािते रह : मिी 24 : 36- 44
(मरक
ु स 13:32–37; लूका 17:26–30,34–36)
42 इसवलये जागते िहो, क्योांवक तुम नहीां जानते वक तुम्हािा प्रभु वकस वदन
आएगा।
43 पिन्तु यह जान लो वक यवद घि का स्वामी जानता होता वक चोि वकस पहि आएगा तो
जागता िहता, औि अपने घि में सेंि लगने न देता।
44 इसवलये तुम भी तैयाि िहो, क्योांवक वजस घडी क
े विर्य में तुम
सोचते भी नहीां हो, उसी घडी मनुष्य का पुत्र आ जाएगा।
26. यीशु, प्रेरितोां औि पुिाने वनयम क
े
भविष्यद्विाओां …
यीशु, प्रेरितोां औि पुिाने वनयम क
े भविष्यद्विाओां ने घटना - सांक
े तोां
की भविष्यिाणी की थी …
पवित्रशाि में बाइबल क
े 150 अध्यायोां में पिमेश्वि की अन्त-समय
की योजना मुख्य विर्य क
े रूप में है।
इन अध्यायोां में भविष्यिावणयोां को सांयोवजत किें हमें समय क
े
बाइवबल क
े सांक
े तोां की एक पूिी तस्वीि वमलती है।
27. इवतहास में - घटनाओां से सांबांवित भविष्यिाणी
की पूवता
क
े वल हमारी पीढी में
इजिायल का सांयुि पुनरुद्ाि, चचा, मुक्तिम िमा की बढ़ती शक्ति, rise of occult ,
दुवनया भि में नाक्तिकता का प्रसाि क
े रूप में …
अथाव्यिथथा ( economy collapse ) का पतन - श्रीलांका ..
यूिोप में अकाल... ( famine in Europe )
एक विश्व सिकाि का गठन .... ( formation of one world government )
नकदी प्रणावलयोां ( cash systems ) को जोडने िाली वडवजटल तकनीक ( digital
technology )