2. स्त्री समाज का आधार होती है। एक समाज के
निमायण में स्त्री की मुख्र् भूममका होती है।
हमारे ग्रंथों में स्त्री को संसार की जििी कहा
गर्ा है। उसे पुरूषों के समाि ही जीवि का
मजबूत आधार स्त्तंभ मािा गर्ा है। मिक्षा िे
स्त्री की पररभाषा बदलकर रख दी है। परन्तु
आज की िारी अबला िहीं। हर क्षेर में उसिे
अपिी सफलता के झंडे गाड़ ददए हैं। वह आज
िौकरी करिे लगी है। हर क्षेर में उसकी
र्ोग्र्ता को सराहा जाता है। िौकरी के साथ
आज वह अपिा पररवार भी बहुत अच्छी तरह
से संभाल रही है। बीते समर् में स्त्री का घर से
निकलकर िौकरी करिा बहुत बुरा मािा जाता
था। उसे घर में रखी वस्त्तु के समाि ही समझा
जाता है। लेककि जबसे वह मिक्षक्षत हुई है,
उसिे इस धारणा के खण्ड-खण्ड कर ददए हैं।
िौकरी िे उसके अस्स्त्तत्व को सम्माि और
गौरव ददर्ा है। आज वह ककसी पर आश्रित िहीं
है। िौकरी को वह उतिी स़्िम्मेदारी के साथ
निभा रही है स्जतिी स़्िम्मेदारी के साथ घर-
पररवार संभाला करती थी।