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अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ही कई सवाल
तकनीकी शिक्षा हाई स्क
ू ल से शुरू हो
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, इस्राइल, आस्ट्रेलिया और चीन में तहलका मचा
हुआ है. उनकी सरकारें बेचैन है कि वह बेकाबू न हो जाए. उनक
े द्वारा एआई एडवाइजरी कमेटी, इनोवेशन
ऑथोरिटी, साइंस एडवाइजरी कमेटी बनाई गई हैं. यूएन में ग्लोबल एआई ऐक्ट पर सहमति जुटाई जा रही है.
टास्क फोर्स का गठन और सैंकड़ों पन्ने क
े दिशा निर्देश में इसे मानव, समाज और पर्यावरण क
े लिए खतरा
बताते हुए परमाणु बम जैसा खतरनाक कह दिया गया है, जबकि भारत इसी तकनीक की बदौलत अपने टेक
सिस्टम को और अधिक सुदृढ कर डिजिटलाइजेशन को विस्तार देने की तैयारी में है.
एआई नए रूप में ’जनेरेटिव एआई’ बनकर तेजी से इस्तेमाल में आ चुका है. डिजिटल क्रांति और औटोमेशन
क
े दौर में मशीनों पर बनते-बढ़ते भरोसे क
े साथ इसकी भूमिका, क्षमता और नतीजों ने कई वजहों से पूरी
दुनिया को हतप्रभ कर दिया है. इसकी चर्चा एक दशक से हो रही है, लेकिन ओपनएआई क
े चैटजीपीटी और
गूगलएआई बार्ड से इसे पंख लग गए हैं. इसक
े जनक से लेकर नए दौर क
े टेक स्पेशलिस्ट, शोधकर्ता और
सरकारें तक इसकी अनगिनत संभावनाओं क
े बावजूद खतरे की आशंकाओं को लेकर सतर्क हो गए है. सभी को
चिंता है कि एआई बेलगाम न हो जाए, और भविष्य में मशीन से संचालित मशीनें इंसानी जद से बाहर न
निकल पड़े.
विकसित देशों क
े लिए भले ही जेनरेटिव एआई एक चुनौती बनकर सामने आया हो, लेकिन भारत जैसे
विकासशील देशों को इसक
े जरिए संभावनाओं क
े कई दरवाजे खुलते नजर आ रहे हैं. इसक
े प्रयोग से हर क्षेत्र
में विस्तृत विकास और समय की बचत जैसे नतीजे मिलने की उम्मीद बन गई है. इसे देखकर ही भारत
सरकार अपने नेशनल एआई पोर्टल ‘INDIAai’ क
े द्वारा जेनरेटिव एआई, उसकी नीति, शासन और मजबूत
नियमन क
े संबंध में कई बैठक
ें कर चुका हैं. एआई क
े व्यापक इस्तेमाल, प्रभाव, जोखिमों क
े वर्गीकरण,
नैतिकता आदि से संबंधित उठने वाले विभिन्न सवालों क
े संदर्भ में चर्चाएं की जा चुकी है. यही नहीं भारत
साल 2020 में ही ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(जीपीएआई) की स्थापना क
े लिए 15 देशों
में शामिल है. इसका उद्देश्य उभरती प्रौद्यौगिकियों क
े उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग क
े लिए ढांचा स्थापित करना
है.
फिर भी कई सवाल सामान्य लोगों क
े जेहन में क
ु लबुला रहे हैं. सबसे अहम इसक
े व्यापक प्रयोग में आने पर
नौकरियों में छंटनी और घटते अवसर को लेकर है. क्या छंटनी या नौकरियों क
े रूपांतरण क
े संदर्भ में कोई
तैयारी की गई है? क्या नई पीढ़ी को स्क
ू ली स्तर से तैयार किया जा रहा है? क्या इसे लेकर क
ें द्र और राज्य
सरकारों समेत साइंस और टेक्नोलाजी महकमे से जुड़े लोगों क
े बीच तालमेल बिठाने क
े क्षेत्र में कोई पहल हुई
है? क्या इसक
े लिए आवश्यक नेटवर्क , स्वदेशी सर्वर, ब्राउजर, क्लाउड और क्वांटम क
ं प्यूटिंग क
े लिए संसाधन
तैयार किए गए हैं? क्या सूचना तकनीक और संचार संसाधनों क
े नेटवर्क को मजबूत बनाया जा सका है? क्या
एआई क
े जोखिमों और साइबर क्राइम क
े तहत किए जाने वाले दुरूपयोग क
े बारे लोगों क
े सुझाव लिए गए
हैं? संसद में इसपर बहस की जरूरत क्यों नहीं समझी गई है? राज्य सरकारों को इसक
े प्रयोग में लाने, क्षेत्र
चिन्हित करने की कोई जिम्मेदारी सौंपी गई है?
जटिल से जटिल सवालों क
े चुटकियों में जवाब देने वाला एआई तकनीक को भले ही दुनिया क
े कई देश
समाज और मानवता क
े लिए खतरा बताकर इसपर रोक लगाने की बात कर रहे हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी और चैटजीपीट की ओपनएआई क
े मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन क
े बीच दिल्ली में एआई क
े
गवर्नेंस यानी नियमन पर हुई विस्तार से हुई बातचीत को सकारात्मक नजरिये से देखा जा रहा है. पीएम का
मानना कि युवाओं में एआई की भरपूर क्षमता है और सैम द्वारा पूंजी निवेश कर भारतीय स्टार्टअप और
प्रौद्योगिकी में इसकी जरूरत को पूरा करने का वादा करना, इसक
े प्रति उत्साहित करता है.
बीते छह माह में यहां की छोटी-बड़ी आईटी क
ं पनियां और सरकारी महकमों ने इसक
े प्रति गजब का उत्साह
दिखाया है. खासकर सर्विलांस और सुरक्षा क
े क्षेत्र में एआई एक जरूरत बन चुका है, जबकि चिकित्सा, शिक्षा
और कृ षि क्षेत्र में भी इसक
े इस्तेमाल क
े तरीक
े अपनाए जाने लगे हैं. इसकी उपयोगिता कई स्तर पर क
ै से
फायदा पहुंचा सकती है, इसे जेनरेटिव एआई क
े लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) से समझा जा सकता है.
दिल्ली की एक आईटी क
ं पनी बायटेक क
े डायरेक्टर और आईटी क
े टूल्स स्पेशलिस्ट टी. श्रीनिवासन ने बंगलुरू
और सिंगापुर स्थित अपने टेक सहयोगियों को लैंग्वेज लेवल पर काम करने क
े लिए अगाह करते हुए कई
सुझाव दिए. उन्होंने एआई संचालित छोटे से डिवाइस चैटबॉट दिखाकर अपने साफ्टवेयर टेक एक्सपर्ट को
बताया कि इसकी मदद से विदेशी और क्षेत्रीय लैंग्वेज क
े लेवल पर काम करना किस तरह से आसान हो गया
है. लोगों को आए दिन बोलचाल से लेकर क
ु छ भी लिखने या मैसेज करने आदि संबंधी लैंग्वेज की समस्या
का समाधान किया जा सकता है.
ओपनएआई चैटजीपीटी और गूगलएआई बार्ड ने अपने-अपने स्तर पर एक बड़ा भाषा मॉडल विकसित कर
लिया है. वह क
ं प्यूटर एल्गोरिद्म क
े आधार पर काम करता है. डिजिटल तकनीक क
े दौर में प्रौद्योगिकी क
े
बदलाव क
े इस नए रूप से अरबों ही नहीं खरबों मापदंडों क
े आधार पर कार्य को संपादित करना आसान हो
गया है. दरअसल एलएलएम की तकनीक ChatGPT यानी चैटबॉट जनरेटिव प्री-ट्रेन ट्रांसफॉर्मर की बुनियाद है,
जो प्राकृ तिक भाषा इनपुट को संसाधित करने में सक्षम है. इसमें जो पहले से दिखता है, उसक
े आधार पर
अगले शब्द का आकलन कर लेता है. फिर यह अगले शब्द और अगले शब्द का आकलन करते हुए भाषाई
व्याकरण क
े साथ वाक्य क
े लिए अनुमान को पूरा कर जवाब तैयार करता है.
एलएलएम एक प्रकार का एआई है, जो मौजूदा दौर में लेखों, विकिपीडिया प्रविष्टियों, पुस्तकों, इंटरनेट-आधारित
संसाधनों और प्राकृ तिक भाषा प्रश्नों क
े लिए मानव-जैसी प्रतिक्रियाओं का उत्पादन करने क
े लिए दूसरे तरह क
े
इनपुट पर प्रशिक्षित है. इसमें काफी विशाल डेटा होता, जिसे एलएलएम संक
ु चित करने क
े लिए तैयार है.
इसकी बदौलत इसे बढ़ने में भी रोकने में मदद मिलेगी, ताकि उन्हें विशिष्ट उपयोगों क
े लायक बनाया जा
सक
े .
सरल शब्दों में कहें कि एलएलएम अगले शब्दों की भविष्यवाणी उसक
े स्पष्ट आकलन पर निर्भर करता है. यह
काम जीपीटी3 और 4 की तरह गूगल का लाम्डा ¼LaMDA)और PaLM LLM (बार्ड क
े लिए आधार) बहुत ही
क
ु शलता क
े साथ कर दिखाता है. एआई में इसक
े कई मॉडल विकसित किए जा चुक
े हैं. गूगल का यह भाषा
मॉडल मई 2023 से पहले की तुलना में लगभग पाँच गुना अधिक प्रशिक्षित डेटा का उपयोग करने लगा है,
जिसमें 3.6 ट्रिलियन शब्द हैं. इसक
े अतिरिक्त इनमें अधिक उन्नत कोडिंग, गणित और रचनात्मक लेखन
कार्य करने की क्षमता है. एलएलएम को हासिल करने क
े लिए अरबों मापदंडों से निपटने क
े लिए पर्याप्त
गणना शक्ति वाले वृहद प्रशिक्षण और बड़े पैमाने पर सर्वर फार्म या सुपरक
ं प्यूटर की आवश्यकता होती है.
एआई की बुनियाद मजबूत बनाने क
े लिए क
ु शल शिक्षण-प्रशिक्षण क
े साथ-साथ इसक
े नियमन पर नजर
रखना जरूरी होता है. यह अच्छी बात है कि भारत इस चुनौती को अपनाने क
े लिए तत्पर दिख रहा है.
कमोवेश वह स्थिति नहीं है, जैसा चार दशक पहले क
ं प्यूटर का प्रवेश हुआ था. इसक
े पास भाषाई समस्या का
समाधान भी है और प्रशिक्षण की विदेशी खिड़कियां और दरवाजे भी खुले हैं. इसक
े लिए महत्वपूर्ण गजेट
स्मार्टफोन, पर्सनल क
ं प्यूटर, लैपटॉप आदि सामान्य लोगों की बजट में है. फिर भी सरकार से उम्मीद की जानी
चाहिए कि इसकी तकनीकी शिक्षा हाई स्क
ू ल स्तर से शुरू हो और पढ़ाई पर नाममात्र का खर्च आए.
प्रस्तुतिः शंभु सुमन

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  • 1. अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ही कई सवाल तकनीकी शिक्षा हाई स्क ू ल से शुरू हो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, इस्राइल, आस्ट्रेलिया और चीन में तहलका मचा हुआ है. उनकी सरकारें बेचैन है कि वह बेकाबू न हो जाए. उनक े द्वारा एआई एडवाइजरी कमेटी, इनोवेशन ऑथोरिटी, साइंस एडवाइजरी कमेटी बनाई गई हैं. यूएन में ग्लोबल एआई ऐक्ट पर सहमति जुटाई जा रही है. टास्क फोर्स का गठन और सैंकड़ों पन्ने क े दिशा निर्देश में इसे मानव, समाज और पर्यावरण क े लिए खतरा बताते हुए परमाणु बम जैसा खतरनाक कह दिया गया है, जबकि भारत इसी तकनीक की बदौलत अपने टेक सिस्टम को और अधिक सुदृढ कर डिजिटलाइजेशन को विस्तार देने की तैयारी में है. एआई नए रूप में ’जनेरेटिव एआई’ बनकर तेजी से इस्तेमाल में आ चुका है. डिजिटल क्रांति और औटोमेशन क े दौर में मशीनों पर बनते-बढ़ते भरोसे क े साथ इसकी भूमिका, क्षमता और नतीजों ने कई वजहों से पूरी
  • 2. दुनिया को हतप्रभ कर दिया है. इसकी चर्चा एक दशक से हो रही है, लेकिन ओपनएआई क े चैटजीपीटी और गूगलएआई बार्ड से इसे पंख लग गए हैं. इसक े जनक से लेकर नए दौर क े टेक स्पेशलिस्ट, शोधकर्ता और सरकारें तक इसकी अनगिनत संभावनाओं क े बावजूद खतरे की आशंकाओं को लेकर सतर्क हो गए है. सभी को चिंता है कि एआई बेलगाम न हो जाए, और भविष्य में मशीन से संचालित मशीनें इंसानी जद से बाहर न निकल पड़े. विकसित देशों क े लिए भले ही जेनरेटिव एआई एक चुनौती बनकर सामने आया हो, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों को इसक े जरिए संभावनाओं क े कई दरवाजे खुलते नजर आ रहे हैं. इसक े प्रयोग से हर क्षेत्र में विस्तृत विकास और समय की बचत जैसे नतीजे मिलने की उम्मीद बन गई है. इसे देखकर ही भारत सरकार अपने नेशनल एआई पोर्टल ‘INDIAai’ क े द्वारा जेनरेटिव एआई, उसकी नीति, शासन और मजबूत नियमन क े संबंध में कई बैठक ें कर चुका हैं. एआई क े व्यापक इस्तेमाल, प्रभाव, जोखिमों क े वर्गीकरण, नैतिकता आदि से संबंधित उठने वाले विभिन्न सवालों क े संदर्भ में चर्चाएं की जा चुकी है. यही नहीं भारत साल 2020 में ही ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(जीपीएआई) की स्थापना क े लिए 15 देशों में शामिल है. इसका उद्देश्य उभरती प्रौद्यौगिकियों क े उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग क े लिए ढांचा स्थापित करना है. फिर भी कई सवाल सामान्य लोगों क े जेहन में क ु लबुला रहे हैं. सबसे अहम इसक े व्यापक प्रयोग में आने पर नौकरियों में छंटनी और घटते अवसर को लेकर है. क्या छंटनी या नौकरियों क े रूपांतरण क े संदर्भ में कोई तैयारी की गई है? क्या नई पीढ़ी को स्क ू ली स्तर से तैयार किया जा रहा है? क्या इसे लेकर क ें द्र और राज्य सरकारों समेत साइंस और टेक्नोलाजी महकमे से जुड़े लोगों क े बीच तालमेल बिठाने क े क्षेत्र में कोई पहल हुई है? क्या इसक े लिए आवश्यक नेटवर्क , स्वदेशी सर्वर, ब्राउजर, क्लाउड और क्वांटम क ं प्यूटिंग क े लिए संसाधन तैयार किए गए हैं? क्या सूचना तकनीक और संचार संसाधनों क े नेटवर्क को मजबूत बनाया जा सका है? क्या एआई क े जोखिमों और साइबर क्राइम क े तहत किए जाने वाले दुरूपयोग क े बारे लोगों क े सुझाव लिए गए हैं? संसद में इसपर बहस की जरूरत क्यों नहीं समझी गई है? राज्य सरकारों को इसक े प्रयोग में लाने, क्षेत्र चिन्हित करने की कोई जिम्मेदारी सौंपी गई है? जटिल से जटिल सवालों क े चुटकियों में जवाब देने वाला एआई तकनीक को भले ही दुनिया क े कई देश समाज और मानवता क े लिए खतरा बताकर इसपर रोक लगाने की बात कर रहे हों, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चैटजीपीट की ओपनएआई क े मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन क े बीच दिल्ली में एआई क े
  • 3. गवर्नेंस यानी नियमन पर हुई विस्तार से हुई बातचीत को सकारात्मक नजरिये से देखा जा रहा है. पीएम का मानना कि युवाओं में एआई की भरपूर क्षमता है और सैम द्वारा पूंजी निवेश कर भारतीय स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी में इसकी जरूरत को पूरा करने का वादा करना, इसक े प्रति उत्साहित करता है. बीते छह माह में यहां की छोटी-बड़ी आईटी क ं पनियां और सरकारी महकमों ने इसक े प्रति गजब का उत्साह दिखाया है. खासकर सर्विलांस और सुरक्षा क े क्षेत्र में एआई एक जरूरत बन चुका है, जबकि चिकित्सा, शिक्षा और कृ षि क्षेत्र में भी इसक े इस्तेमाल क े तरीक े अपनाए जाने लगे हैं. इसकी उपयोगिता कई स्तर पर क ै से फायदा पहुंचा सकती है, इसे जेनरेटिव एआई क े लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) से समझा जा सकता है. दिल्ली की एक आईटी क ं पनी बायटेक क े डायरेक्टर और आईटी क े टूल्स स्पेशलिस्ट टी. श्रीनिवासन ने बंगलुरू और सिंगापुर स्थित अपने टेक सहयोगियों को लैंग्वेज लेवल पर काम करने क े लिए अगाह करते हुए कई सुझाव दिए. उन्होंने एआई संचालित छोटे से डिवाइस चैटबॉट दिखाकर अपने साफ्टवेयर टेक एक्सपर्ट को बताया कि इसकी मदद से विदेशी और क्षेत्रीय लैंग्वेज क े लेवल पर काम करना किस तरह से आसान हो गया है. लोगों को आए दिन बोलचाल से लेकर क ु छ भी लिखने या मैसेज करने आदि संबंधी लैंग्वेज की समस्या का समाधान किया जा सकता है. ओपनएआई चैटजीपीटी और गूगलएआई बार्ड ने अपने-अपने स्तर पर एक बड़ा भाषा मॉडल विकसित कर लिया है. वह क ं प्यूटर एल्गोरिद्म क े आधार पर काम करता है. डिजिटल तकनीक क े दौर में प्रौद्योगिकी क े बदलाव क े इस नए रूप से अरबों ही नहीं खरबों मापदंडों क े आधार पर कार्य को संपादित करना आसान हो गया है. दरअसल एलएलएम की तकनीक ChatGPT यानी चैटबॉट जनरेटिव प्री-ट्रेन ट्रांसफॉर्मर की बुनियाद है, जो प्राकृ तिक भाषा इनपुट को संसाधित करने में सक्षम है. इसमें जो पहले से दिखता है, उसक े आधार पर अगले शब्द का आकलन कर लेता है. फिर यह अगले शब्द और अगले शब्द का आकलन करते हुए भाषाई व्याकरण क े साथ वाक्य क े लिए अनुमान को पूरा कर जवाब तैयार करता है. एलएलएम एक प्रकार का एआई है, जो मौजूदा दौर में लेखों, विकिपीडिया प्रविष्टियों, पुस्तकों, इंटरनेट-आधारित संसाधनों और प्राकृ तिक भाषा प्रश्नों क े लिए मानव-जैसी प्रतिक्रियाओं का उत्पादन करने क े लिए दूसरे तरह क े इनपुट पर प्रशिक्षित है. इसमें काफी विशाल डेटा होता, जिसे एलएलएम संक ु चित करने क े लिए तैयार है. इसकी बदौलत इसे बढ़ने में भी रोकने में मदद मिलेगी, ताकि उन्हें विशिष्ट उपयोगों क े लायक बनाया जा सक े .
  • 4. सरल शब्दों में कहें कि एलएलएम अगले शब्दों की भविष्यवाणी उसक े स्पष्ट आकलन पर निर्भर करता है. यह काम जीपीटी3 और 4 की तरह गूगल का लाम्डा ¼LaMDA)और PaLM LLM (बार्ड क े लिए आधार) बहुत ही क ु शलता क े साथ कर दिखाता है. एआई में इसक े कई मॉडल विकसित किए जा चुक े हैं. गूगल का यह भाषा मॉडल मई 2023 से पहले की तुलना में लगभग पाँच गुना अधिक प्रशिक्षित डेटा का उपयोग करने लगा है, जिसमें 3.6 ट्रिलियन शब्द हैं. इसक े अतिरिक्त इनमें अधिक उन्नत कोडिंग, गणित और रचनात्मक लेखन कार्य करने की क्षमता है. एलएलएम को हासिल करने क े लिए अरबों मापदंडों से निपटने क े लिए पर्याप्त गणना शक्ति वाले वृहद प्रशिक्षण और बड़े पैमाने पर सर्वर फार्म या सुपरक ं प्यूटर की आवश्यकता होती है. एआई की बुनियाद मजबूत बनाने क े लिए क ु शल शिक्षण-प्रशिक्षण क े साथ-साथ इसक े नियमन पर नजर रखना जरूरी होता है. यह अच्छी बात है कि भारत इस चुनौती को अपनाने क े लिए तत्पर दिख रहा है. कमोवेश वह स्थिति नहीं है, जैसा चार दशक पहले क ं प्यूटर का प्रवेश हुआ था. इसक े पास भाषाई समस्या का समाधान भी है और प्रशिक्षण की विदेशी खिड़कियां और दरवाजे भी खुले हैं. इसक े लिए महत्वपूर्ण गजेट स्मार्टफोन, पर्सनल क ं प्यूटर, लैपटॉप आदि सामान्य लोगों की बजट में है. फिर भी सरकार से उम्मीद की जानी चाहिए कि इसकी तकनीकी शिक्षा हाई स्क ू ल स्तर से शुरू हो और पढ़ाई पर नाममात्र का खर्च आए. प्रस्तुतिः शंभु सुमन