आंखों की कलम से सैलाब सैलाब में बह गया सब कुछ रह गया भाव विहीन मन - बरसों बरसों से बुने इंद्रधनुष पर कोई स्याही उडेल गया अनजाने ही कहीं कोई क्षण बिन बरसे रह गया - किसी की याद के बादल से बरसी बूंदों सी झिलमिल बातें हल्का सा गीलापन छोड़ गइंर् अनछुए स्पंदन पर।