1. Rasashala nirmana
Construction of rasashastra pharmacy
।। श्री धन्वंतरि नमः ।।
SARDAR PATEL AYURVEDIC MEDICAL
COLLEGE & HOSPITAL BALAGHAT
By Mohit Thakur
(BAMS 2ND YEAR)
GUIDED BY:
Dr sweta zade mam
Dr. AARTHI MAM
@mohitthakur_09
2. BY : MOHIT THAKUR
Index
Topic Page no. Topic Page no.
Rasashala 03 Rasashala sthaan chayan 14
Rasashala ka nirmaan 04 Rasashala bhwan nirmaan 15
Rasashala ke mula ghtak 05 Rasashala ka kaha kare 16
Yogya guru 06-07 Rasashala me karya vibhajan 17-19
Yogya shishya 08 Sanghrah yogya aushadhi 20
Ayogya shishya 09 Sanghrah yogya yantra 21
Yogya bhritya 10 Rasamandap 22-23
Rasashala ke karamchari 11 Rasaling nirmaan 24
Kalini stree 12- 13 References 25
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3. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला
िस शाला िसशाला
रस
शाला
रसशाला
भवन
िस युक्त औषधी ननमााण का
क
ें द्र
पािद
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4. रसशाला का वििरण
प्राचीन काल में रसशास्त्र का अध्ययन तथा प्रयोग का अभ्यास
रसशाला में ही होता था गुरु क
े सान्ननध्य में शास्त्र का अध्ययन
तथा दक्ष गुरु क
े ननदेशन में प्रत्यक्ष कमों का अभ्यास कर शशष्य
रसकमम में ननपुण होते थे। इस प्रकार रसशाला ज्ञान एिं अभ्यास का
क
े नर होता था ।
भूतकाल में रसशास्त्र का क्षेर अत्यनत व्यापक था, ककनतु आज यह
क्षेर शसमटकर मार औषध-ननमामण तक ही सीशमत होकर रह गया
है। रस-ग्रनथों में न्जस सिमसाधन-सम्पनन रसशाला का िणमन ककया
गया है, िह पारद को शसद्धकर देह-लोह िेध योग्य बनाने क
े
उद्देश्य से था ।
BY : MOHIT THAKUR
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5. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला क
े मूल घटक
योग्य गुरु
योग्य शशष्य
योग्य भृत्य (पररचारक)
काशलनी स्त्री
िसशास्त्र क
े सम्यक प्रयोग क
े ललए एवम ्
औषधी ननमााण यह पांच घटक मुख्य एवम ्
आवश्यक है।
सिमसाधनसम्पनन प्रयोगशाला
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6. BY : MOHIT THAKUR
आचायो ज्ञानिान् दक्षः शीलिान् गुणिान् शुिःचः।
धममज्ञस्त्सत्यसनधयश्च रसशास्त्र विशारदः ।।
िेदिेदानततत्त्िज्ञो ननममलन्श्शिित्सलः।
देिीभक्तस्त्सदाशानतो रसमण्डपकोविदः ।।
मनरशसद्धो महािीरो देितायागतत्परः ।
रसदीक्षाविधानज्ञो मनरौषधमहारसान्।।
रागसंख्या बीजकल्पं द्िनद्िमेलापनं विडम्।
रञ्जनं सारणातैलं दलानन क्रामणानन च।।
िणोत्कषं मृदुत्िं च जारणं बालिृद्धयोः ।
खेचरीं भूचरीं चैि यो िेवि स गुरुभमिेत्।।
(आ. क. अ. वव. 2/2-6)
योग्य गुरु क
े लक्षण
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7. BY : MOHIT THAKUR
योग्य गुरु क
े लक्षण
िसशास्त्र का ज्ञान देने वाला आचाया ज्ञानी, दक्ष (कमाक
ु शल), उत्तम
आचािण, वाला, गुणवान्, पववर, धमाज्ञ, सत्यव्रती, िसशास्त्र में ननपुण,
वेद-पुिाण क
े तत्त्व को जानने वाला, ननमाल हृदय, लशवभक्त, देवीभक्त,
सवादा शान्तचचत्त िहने वाला, िसमण्डप को जानने वाला, मन्रलसद्ध,
महावीि, देवताओं की पूजा तथा यज्ञ आदद कमों में तत्पि िहने वाला,
िसदीक्षा-ववधान को जानने वाला, मन्र, औषध एवं महािसों को जानने
वाला, िागसंख्या, बीजननमााण, द्वन्दमेलापन, ववडननमााण, िंजन, सािणतैल,
जािण एवं क्रामण की क्रक्रयाओं का जानने वाला, वणोत्कषा, धातुओं में
मृदुता उत्पन्न किना, बाल-वृद्ध जािणा का ज्ञाता, खेचिी एवं भूचिी आदद
लसद्चध को जो अच्छी तिह जानता हो, वह योग्य गुरु हो सकता है । साथ
ही ववज्ञान, ववचाि एवं अनुभव द्वािा नूतन िसशास्त्र की िचना किने में
प्रवीण श्रेष्ठ गुरु कहलाता हैं। िसववद्या क
े आचाया में उपिोक्त सभी लक्षण
होना चादहए ।
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8. BY : MOHIT THAKUR
योग्य शशष्य क
े लक्षण
गुरुभक्ताः सदाचाराः सत्यिनतो दृढ़व्रताः। ननरालस्त्याः
स्त्िधममज्ञाः सदाज्ञापररपालकाः।। दम्भमात्यमननमुमक्ताः क
ु लाचारेषु
दीक्षक्षताः । अत्यनतसाधकाः शानताः मनराऽऽराधनतत्पराः।।
इत्येिं लक्षणैयुमक्ताः शशष्याः स्त्युः सूतशसद्धये ।। (ि. ि. स. 6/5-6)
िसशास्त्र क
े दक्ष लशष्य को गुरुभक्त, सदाचाि, सत्यवान, दृढ़ प्रनतज्ञ, आलस्त्य
िदहत, अपने धमा को जानने वाला, सदा गुरु की आज्ञा का पालन किने वाला,
अहंकाि एवं ईष्याा िदहत, अपने क
ु ल क
े आचिण का पालन किने वाला,
अत्यन्त परिश्रमी, शक्क्तशाली, शान्त स्त्वभाव वाला तथा मन्र की साधना में
तत्पि िहने वाला होना चादहए। इन सभी लक्षणों से युक्त लशष्य पािद लसद्चध
क
े योग्य माना गया है।
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9. BY : MOHIT THAKUR
अयोग्य शशष्य क
े लक्षण
नाक्स्त्तक ववचाि वाला, दुिाचािी, लोभी तथा
क्जसने बबना क्रकसी योग्य गुरु क
े ववद्या ग्रहण
की हो, अथवा क्जसने क्रकसी योग्य गुरु से
चोिी, कपट, दुष्टता अथवा क्रकसी अन्य प्रकाि
से िसववद्या ग्रहण की हो, ऐसे लशष्य को
मणण, मन्र अथवा औषचधयों में कभी भी
लसद्चध नहीं लमलती । यदद अज्ञानवश वह क
ु छ
किता है तो अपना धन ही नष्ट किता है। ऐसे
व्यक्क्त को इस लोक में तो सुख नहीं ही
लमलता है, पिलोक में भी वह सुखी नहीं होता'
।
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10. BY : MOHIT THAKUR
योग्य भृत्य (पररचारक) क
े लक्षण
सहायाः सोद्यमास्त्तर यथा शशष्यास्त्ततोऽिःधकाः ।
क
ु लीनाः स्त्िाशमभक्तश्च किमव्या रसकममणण ।। (ि. ि. सं.
6/7)
िसकमो में सहायक, मेहनती, लशष्य से भी अचधक
गुणवान ्, क
ु लीन, स्त्वालमभक्त तथा िसकायो को
किने का ज्ञान िखने वाला परिचािक होना चादहए।
परिश्रमी, शुद्ध आचिण वाला, साहसी औि बलवान
परिचािक िसकमा क
े ललए िसशाला में होना
चादहए।
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12. BY : MOHIT THAKUR
काशलनी स्त्री क
े लक्षण
यस्त्यास्त्तु क
ु न्ञ्चताः क
े शाः श्यामा या पद्मलोचना। सुरूपा तरुणी शभनना
विस्त्तीणमजघना शुभा।। संकीणम हृदया पीनस्त्तनभारेण नशिता ।
चुम्बनाशलङ्गनस्त्पशम कोमला मृदुभावषणी।। अश्ित्थपरसदृशयोननदेश सुशोशभता।
कृ ष्णपक्षे पुष्पिती सा नारी काशलनी स्त्मृता ।।
रसबनधे प्रयोगे च उिमा सा रसायने ।। (ि.ि.स. 6/33-36)
क्जस स्त्री क
े बाल घुुँघिाले, क्स्त्नग्ध, कमल क
े जैसे सुशोलभत नेरों वाली, सुन्दि
युवती, क्जसका शिीि स्त्पष्ट रूप से सुववभक्त एवं शोभायमान हो, हृदय प्रदेश
संक
ु चचत, पुष्ट स्त्तनभाि से आगे की ओि झुकी हुई, क्जसका आललङ्गन एवं
स्त्पशा कोमल हो, क्जसका भाषण अत्यन्त मृदु एवं मधुि हो, तथा कृ ष्ण पक्ष में
ऋतुमती होने वाली स्त्री हो, उसे काललनी स्त्री कहते है। पािद क
े बन्धन एवं
िसायन प्रयोग में यह स्त्री अत्युत्तम मानी जाती है।
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13. BY : MOHIT THAKUR
कशलनी स्त्री की आिश्यकता
पािद भस्त्म सेवन क्रम में क्रामणाथा आललङ्गन,
चुम्बनाथा हेतु सुरूपा स्त्री की आवश्यकता होती है,
तभी पािद का शिीि में क्रामण होता है। काललनी क
े
अभाव में:- काललनी स्त्री क
े अभाव में सामान्य
सुन्दिी स्त्री को एक कषा शुद्ध गन्धक घृत क
े साथ
तीन सप्ताह तक णखलाने से काललनी जैसी गुणवती
हो जाती है।
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14. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला स्त्थान चयन
आतंकरहहते देशे धममराज्ये मनोरमे। उमामहेश्िरोपेते समृद्धे नगरे शुभे।।
किमव्यं साधनं तर रसराज्यस्त्य धीमता। अत्यनतोपिने रम्ये
चतुद्िारोपशोशभते ।। तरशाला प्रकिमव्या सुविस्त्तीणाम मनोरमा।
सम्यग्िातायनोपेता
हदव्यािःचरैवििःचत्ररत (ि.ि.स. 6/11-13)
रसशाला हेतु स्त्थान क
े चयन में ननम्न बातें ध्यान देने योग्य हैं
१. भय या आतंक से रहहत देश ।
२. नगर क
े पूिम हदशा में न्स्त्थत ।
३. धममप्राण देश (धमम राज्य) जहााँ उमा-महेश क
े मंहदर हों, और उनकी पूजा की जाती
हो ।
४. सुनदर उपिन क
े ननकट जहााँ प्रचुर जल की सुविधा (क
ू पयुक्त ) हो ।
५. जहााँ प्रचुर औषिःधयााँ उपलब्ध हों ।
६. समृद्ध नगर क
े पास ।
७. मनोरम स्त्थल ।
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15. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला हेतु भिन ननमामण
प्राकाि युक्त (ऊ
ुँ ची चहािदीवािी से युक्त ) ।
चाि द्वाि से युक्त, क्जसमें मजबूत क्रकवाड़ लगा हो ।
सम्यक् वातायन ( णखड़क्रकयों ) से युक्त ।
जहाुँ की दीवाि-ददव्यचचरों से चचबरत (िसलसद्ध, उमा-महेश,
यन्रोपकिण आदद क
े चचरों से चचबरत ) ।
उपवन ( फ
ु लवािी-बगीचा ) युक्त।
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16. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला का ननमामण कहााँ करें
रसशालां प्रक
ु िीत सिमबाधावििामजते । सिोषिःधमये देशे रम्ये क
ू पसमन्निते ।।
यक्षत्र्यक्षसहस्राक्ष हदन्ग्िभागे सुशोभने । नानोपकरणोपेतां प्राकारेण सुशोशभताम्' ।।
(ि. ि. स. ७/१-२ )
जहाुँ पि सभी प्रकाि की औषचधयाुँ लमलती हों औि क्जसमें ववपुल जल
वाला सुन्दि क
ू प हो तथा जो शहि अथवा ग्राम क
े बाहि उत्ति ददशा,
पूवा अथवा ईशान कोण में हो अथाात् इन तीनों में से क्रकसी भी एक
शुभ ददशा में हो, ऐसे िमणीय स्त्थान में औि सब प्रकाि क
े उपकिणों
से सुसक्जजत, चहािदीवािी अथवा पिकोटा से युक्त औि क्जसमें क्रकसी
भी प्रकाि की बाधा की आशंका न हो इस प्रकाि क
े स्त्थान पि
िसशाला का ननमााण किना चादहए' ।
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17. BY : MOHIT THAKUR
शालायाः पूिमहदग्भागे स्त्थापयेरसभैरिम्। िन्ननकमामणण चाग्नेये याम्ये पाषाणकमम
च।। नैऋत्ये शस्त्रकमामणण िारुणे क्षालनाहदकम्। शोषणं िायुकोणे च िेधकमोिरे
तथा।। स्त्थापनं शसद्धिस्त्तूनां प्रक
ु यामदीशकोणक
े । पदाथमसंग्रहः कायो रससाधन
हेतुकः ।। (ि.ि.स.7/3-5)
रसशाला में कायों का विभाजन
िसशाला की पूवा ददशा में िसभैिव की स्त्थापना किना,
आग्नेयकोण में सभी अक्ग्नकायो का प्रबन्ध, दक्षक्षण ददशा में
क
ू टने, पीटने एवं घोटने का प्रबन्ध, नैऋत्यकोण में शस्त्रकमा,
पक्श्चम ददशा में प्रक्षालन कमा, वायव्य कोण में द्रव्यों एवं
उपकिणों को सुखाना, उत्तिददशा में वेधकमा संस्त्काि तथा
ईशान कोण में समस्त्त लसद्ध औषचधयों एवं िससाधन में
उपयुक्त पदाथों का संग्रह किना चादहए।
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18. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला
पूवा
उत्ति
वेधन कमा
दक्षक्षण
पाषाण कमा
पक्श्चम
क्षालन कमा
वायव्य कोण
शोषण कमा
ईसान्य कोण
संिक्षण कमा
आग्नेय कोण
आग्नेय कमा
नैऋत्य कोण
शस्त्र कमा
रसभैरि
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19. BY : MOHIT THAKUR
रसशाला
उत्ति (वेधन कमा)
ईसान्य
कोण संिक्षण
कमा
पूवा
रसभैरि
आग्नेय
कोण
आग्नेय कमा
दक्षक्षण (पाषाण कमा)
नैऋत्य कोण
शस्त्र कमा
पक्श्चम
क्षालन कमा
वायव्य कोण
शोषण कमा
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20. BY : MOHIT THAKUR
सभी महािस, उपिस, साधािण िस, धातुएुँ, उपधातुएुँ,
ित्न, उपित्न, सुधावगा क
े द्रव्य, पािद, पञ्चलवण,
बरक्षाि, अम्लवगा द्रव्य
तथा काष्ठौषचधयों में बरकटु, बरफला, बरमद, सिसों,
िाई, आद्राक, मूली, सोमवल्ली, सोमवृक्ष, रुद्रवन्ती,
उच्चटा, ईश्विी, भूतक
े शी, कृ ष्णलता आदद
आवश्यकतानुसाि अनेक औषचधयों का संग्रह किना
चादहए।
रसशाला में संग्रह योग्य औषिःधयााँ
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21. BY : MOHIT THAKUR
सत्त्वपातन कोष्ठी, आसवारिष्ट क्वाथ ननमााणाथा कोष्ठी, ववववध
प्रकाि की टंक्रकयाुँ, दो भाथी, लमट्टी एवं लौहे की दो नाललयाुँ,
स्त्वणा, लौह, कांस्त्य, ताम्र, पत्थि या चमड़े से बनी हुई क
ुं डडयाुँ,
संडासी, चचमटी, उलूखल यन्र, खल्वे, चक्की, लसलबट्टा, चलननयाुँ,
वस्त्र, छोटी-बड़ी शलाकाएुँ, घड़ा िखने का स्त्टेण्ड, मूषाननमााण योग्य
मृवत्तका, तुष, रूई, वन्योपल, कोयले, गोबाि, बालुका, काुँच, लोहा,
लमट्टी, काुँच की बोतलें, प्याले, टोकरियाुँ, बांस की खुिपी, छ
ु िी,
क
ू चचाका, पाललका तथा िसशाला में प्रयुक्त अन्य आवश्यक वस्त्तुओं
का संग्रह किना चादहए।
रसशाला में संग्रहयोग्य उपकरण
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22. BY : MOHIT THAKUR
रसमंडप ननमामण
सुसक्जजत िसशाला क
े समीप समतल तथा प्रदीप्त स्त्थान पि अत्यन्त
गोपनीय, ववस्त्तृत, कपाट एवं अगाला से सुशोलभत, ध्वज, छर, ववतान
से युक्त, सभी ओि से सुगक्न्धत पुष्पमालाओं को लटकाने वाली
खूुँटीयुक्त तथा भेिी, मृदङ्ग, शंख, घडड़याल, घंटादद वाद्यों से युक्त
स्त्थल पि िसमण्डप का ननमााण किना चादहए। वह मण्डप भूलम
समतल, दृढ़ तथा दपाण क
े समान चचक्कण हो, उसक
े मध्य
शास्त्रानुसाि शुभ लक्षणों से परिपूणा अत्यन्त सुन्दि मण्डप (वेदी)
बनानी चादहए।"
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