Samvad is a lab newspaper prepared by students of the School of Journalism, Mass Communication and New Media at the Central University of Himachal Pradesh.
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La película Cadena de favores se basa en el sueño de un niño llamado Trevor de poder cambiar al mundo ayudando a otros a través de una cadena de favores. Trevor comienza ayudando a un vagabundo y luego intenta ayudar a su maestro y a un compañero de clase que es acosado, pero termina siendo apuñalado cuando intenta defender a su compañero. Aunque la película muestra la decadencia de la sociedad, también demuestra que una pequeña acción de ayuda puede tener un efecto positivo en los demás.
El documento habla sobre Cristóbal Colón. Resume que nació en Génova en 1436 y presentó su proyecto de navegar hacia el oeste para llegar a Asia a los Reyes Católicos de España, quienes aceptaron su propuesta y le dieron recursos para un viaje en 1492 con tres barcos: la Niña, la Pinta y la Santa María. Colón descubrió América y bautizó la primera isla que encontró como San Salvador.
Top 8 resident services coordinator resume samplestonychoper505
The document provides resources for resume writing, cover letters, and interview preparation for resident services coordinator positions. It includes samples of different resume formats (chronological, functional, curriculum vitae), cover letter samples, and lists of interview questions and tips. Links are provided to additional materials on the resume123.org website related to resume writing, interviews, career development, and fields related to resident services coordinator roles.
The document provides information about resume samples, templates, and other career resources for regional coordinators. It lists resume formats including chronological, functional, curriculum vitae, combination, and targeted resumes. It also provides links to sample resumes, cover letters, interview questions and answers, and other job search tools on the resume123.org website.
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La película Cadena de favores se basa en el sueño de un niño llamado Trevor de poder cambiar al mundo ayudando a otros a través de una cadena de favores. Trevor comienza ayudando a un vagabundo y luego intenta ayudar a su maestro y a un compañero de clase que es acosado, pero termina siendo apuñalado cuando intenta defender a su compañero. Aunque la película muestra la decadencia de la sociedad, también demuestra que una pequeña acción de ayuda puede tener un efecto positivo en los demás.
El documento habla sobre Cristóbal Colón. Resume que nació en Génova en 1436 y presentó su proyecto de navegar hacia el oeste para llegar a Asia a los Reyes Católicos de España, quienes aceptaron su propuesta y le dieron recursos para un viaje en 1492 con tres barcos: la Niña, la Pinta y la Santa María. Colón descubrió América y bautizó la primera isla que encontró como San Salvador.
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1. ट्वीट्स
हम खनिज
खनन और
कोयला बिल
पर रचनात्मक
सुझावों के साथ
सरकार का
समर्थन कर रहे हैं। लेकिन हम चाहते
हैं कि सरकार भूमि अधिग्रहण बिल
को न छुए। यह एक बारूदी सुरंग है,
जो सरकार के चेहरे को झुलसा देगी।
- डेरक ओ’ ब्रायन,तृणमूल नेता
90 के दशक में एक लैंडलाइन
कनेक्शन हासिल करने में 60 से
ज्यादा दिन लग जाते थे। और अब
मोबाइल के जरिये महज छह दिन से
भी कम समय में एक प्रॉडक्ट खरीद
सकते हैं।
- सचिन तेंडुलकर,पूर्व क्रिकेटर
एलईडी बल्ब
घोटाले के बारे में
सरकार में शामिल
पार्टी (शिवसेना)
ही आरोप लगा
रही है। अगर
भाजपा पारदर्शिता में यकीन रखती है,
तो उसे जांच करानी चाहिए।
- संजय निरूपम,कांग्रेस नेता
रामपुर हाईवे के दोनों ओर कचरा पड़ा
है। रास्ते में लगे बोर्ड पर जगह-जगह
दावा किया गया हैं कि यह ‘मिसाली
शहर’ है। यह कैसी मिसाल?
- शुभा मुद्गल,गायिका
उत्तर कोरिया और
चीन में दूरी बढ़
रही है इसका
एक और संकेत।
2011 में सत्ता
संभालने वाले
किम जोंग उन ने पहली विदेश यात्रा के
लिए मास्को को चुना है।
- ब्रह्मा चेलानी,स्ट्रेटेजिक थिंकर
अगर मेरी जवानी के दिनों में ट्वीटर
होता, तो आज मेरी जिंदगी का रिकॉर्ड
कितना व्यवस्थित होता। कई चीजें भूल
गया हूं।
- कबीर बेदी,अभिनेता
लोगों को जल संकट के प्रति कैसे
जागरूक बनाया जाए? उन्होंने पूछा।
मैंने कहा, ‘इस दुनिया के एक अरब
प्यासे लोगों से पूछिए।’
- शेखर कपूर,फिल्मकार
जम्मू के कठुआ जिले में पुलिस स्टेशन पर आतंकवादी हमला मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद
सईद और प्रदेश की पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के लिए कड़ी चेतावनी है। सबक
है कि जुबानी या किसी अन्य स्तर पर नरमी दिखाकर दहशतगर्दों का दिल नहीं जीता जा
सकता। मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री पद संभालते ही कश्मीरी अलगाववादियों
और पाकिस्तान के प्रति नरम रुख दिखाया। अगर उन्हें उम्मीद थी कि ऐसा करके वे भारत
विरोधी तत्वों को हिंसा छोड़ने पर राजी कर लेंगे, तो तीन हफ्तों के भीतर वे सरासर गलत
साबित हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनुमान जताया है कि पिछले मौकों की
तरह ही फिदायीन गुजरी रात सीमा पार कर आए होंगे। शुक्रवार सुबह वे हथियार और
विस्फोटकों के साथ राजबाग पुलिस स्टेशन में घुस गए। अपने तीन जवान खोने के
बाद सुरक्षा जवानों ने दो आतंकवादियों को मार गिराया। अपने शासनकाल में इस घटना
का गवाह बनने के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी पार्टी को अब यह अवश्य
समझना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में शांति-व्यवस्था तथा लोकतंत्र राजबाग में अद्वितीय
वीरता का प्रदर्शन करने वाले जवानों जैसे सुरक्षाकर्मियों के कारण ही कायम है। न कि
अलगाववादियों और पाकिस्तान की सदाशयता की वजह से, जिन्हें मुफ्ती ने राज्य में
शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय दिया था। दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर में ऐसे हमले पहले भी होते रहे
हैं, मगर सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री सईद ने अलगाववादियों तथा पाकिस्तान के प्रति
जैसा रुख दिखाया, उससे ताजा हमले का एक खास संदर्भ बन गया है। इससे गठबंधन
सहयोगी भाजपा को भी यह सबक लेने की जरूरत है कि किसी भी तरह के नरमी के
संकेत का क्या नतीजा हो सकता है। हालांकि, मसरत आलम की रिहाई के बाद भाजपा ने
सख्ती दिखाई, जिससे मुफ्ती को अन्य अलगाववादियों की रिहाई का इरादा बदलना पड़ा,
इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी से अपेक्षा रहेगी कि कश्मीर, आंतरिक सुरक्षा एवं
पाकिस्तान से रिश्तों के मामले में वह अधिक ठोस रुख अपनाए। राजबाग जैसे हमले देश
में बेचैनी करते हैं। इनके लिए राज्य सरकार की कमजोरी या अस्पष्ट नीति को जिम्मेदार
मानने की भावना बनी, तो देशभर में जवाब भाजपा को ही देना होगा। बहरहाल, इस घटना
के बाद केंद्र और राज्य सरकारें मजबूत कश्मीर नीति अपना पाईं, तो इस वारदात में शहीद
हुए सीआरपीएफ के तीन जवानों को वही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
मुफ्ती के लिए सबक है
कठुआ में आतंकी हमला
भारतीय संस्कृति में
उत्सव और त्योहार
केवल कर्मकांड के
लिए नहीं बनाए गए
हैं। इन्हें जीवन से
जोड़ा गया है। जीवन
के उतार-चढ़ाव मौसम की तरह होते हैं।
आज से चैत्र नवरात्रा आरंभ हो रहा है।
इसके साथ नव संवत्सर भी आ गया है,
जिसका नाम है कीलक। जो बीता उसका
नाम था प्लवंग। कीलक का अर्थ कील
समझा जाए। कील दो काम करती है। दो
वस्तुओं को जोड़ती भी है और छिद्र भी
करती है। इस संवत्सर का यही स्वभाव
है। यह व्यक्तियों को, परिस्थितियों को
जोड़ेगा भी और साथ में छिद्र यानी घाव भी
दे जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार इसके
अधिष्ठाता देवता रुद्र हैं। राजा के रूप में
शनि और प्रधानमंत्री रहेंगे मंगल। शनि और
मंगल दोनों पाप और उग्र स्वभाव के ग्रह
हैं। दोनों में आपसी विरोध भी है। सोचिए,
राजा-मंत्री आपस में शत्रु हो जाएं तो
व्यवस्था का अहित होगा ही। अत: नए वर्ष
में व्यवस्था को लेकर अत्यधिक सावधान
रहना होगा। पड़ोसी देश चैन नहीं लेने देगा।
अपराधी और आतंकी कोई अवसर नहीं
छोड़ेंगे, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं।
जितना संघर्ष उतनी ही सक्षमता निखरकर
आएगी। भारतीयों की यही तो विशेषता
है। मंगल और शनि को साधना हो तो
सबसे सरल उपाय है हनुमानजी की पूजा।
ये दोनों दिन हनुमानजी के माने जाते हैं।
इन नौ दिन श्री हनुमान चालीसा को सांस
के साथ जोड़ें। जब नवरात्रि का समापन
होगा तब रामनवमी के दिन महापाठ के
रूप में सारी दुनिया में हनुमत साधना की
जाएगी। नवरात्रि के दिनों में पूरे ब्रह्मांड में
अतिरिक्त ऊर्जा बह रही होती है। कर्मकांडी
पूजा करना हो तो वह अवश्य करें, लेकिन
योग-साधना के द्वारा हमारी जीवन ऊर्जा
को ब्रह्मांड ऊर्जा से जरूर जोड़िए।
humarehanuman@gmail.com
आज से हनुमत साधना का पर्व
}जीने की राह | पं. िवजयशंकर मेहता | web:hamarehanuman.com
वेबभास्कर
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर आज
हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। विश्व की
ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनका अलर्ट सबसे
पहले ट्विटर
पर आया है।
कोई बात कहने के लिए 140 शब्द कम
होते हैं, लेकिन ट्विटर ने साबित कर दिया
है कि यह नाकाफी नहीं हैं।
9 साल पहले 21 मार्च 2006 के
दिन जैक डोर्सी ने 29 साल की उम्र में
ट्विटर की स्थापना की थी। उन्होंने पहला
ट्वीट करके बताया था कि ‘मैं अपना
ट्विटर ठीक कर रहा हूं’। वही पहला
ट्वीट कहलाता है। जैक ने मित्र इवान
विलियम्स, बिज स्टोन और नोआ ग्लास
के साथ मिलकर ट्विटर वेबसाइट की
शुरुआत की थी। यह प्लेटफॉर्म शुरू करने
के पहले सभी साथी लगातार आठ दिन
तक ब्रेनस्टॉर्मिंग और प्रोग्रामिंग में व्यस्त रहे
थे। शुरुआत में उन्होंने परिचितों के साथ
एक-दूसरे को ट्वीट किए थे। उसके बाद
जुलाई 2006 में इसे लॉन्च कर दिया गया
था। जैक डोर्सी बताते हैं कि किसी यूजर के
द्वारा पहले ट्वीट में ‘इनवाइटिंग कोवर्कर्स’
मैसेज लिखा था। वह ऑटोमेटेड ट्वीट
था, जो उनके हैंडल पर नजर आया था।
संस्थापकनेअकाउंटकेबारेमेंकियाथापहलाट्वीट
}एनिवर्सरी
- पजैक ने ट्विटर को चिड़िया की चहचहाहट से जोड़ा था।
तब इसकी स्पेलिंग twttr.com थी। नाम में सुधार के लिए
छह महीने तक मशक्कत की गई। उसके बाद twitter.
com सामने आया। इसलिए क्योंकि, जैक ‘चहचहाहट’ को
ट्विटर से अलग नहीं करना चाहते थे। Âtwitter.com
थाईलैंड के वीराचाइ मार्तलुप्लाओ संगीत टीचर
हैं। उनकी कक्षा में विदेशी छात्र भी हैं, जो उनसे
पूर्वी एशिया का संगीत सीखते हैं। वे प्राचीन
वाद्य यंत्रों और अलग तरह से बने माउथ ऑर्गन
के मास्टर हैं। वे बताते हैं कि मैंने तीन साल
पहले अपनी कला निखारने के लिए यूट्यूब की
मदद ली थी। आज भी प्राचीन संगीत कला
सीखने के लिए यूट्यूब बड़ा मददगार है। वे
सभी छात्रों को यूट्यूब देखकर अभ्यास करने
के लिए कहते हैं।
माउथ ऑर्गन जैसा वाद्य यंत्र ‘खाएन’
बजाते हुए उनके कई वीडियो यूट्यूब पर
अपलोड हैं। उनका मानना है कि फिजिकल
वीडियो और सीडी कुछ ही लोगों तक पहुंच पाते
हैं। यूट्यूब पर उनके वीडियो देखकर दुनियाभर
के लोग खाएन बजाना सीख रहे हैं। जबकि
इसके पहले वे अपने वीडियो बनाकर छात्रों को
देते थे। वे कहते हैं कि इस तरह सभी छात्रों को
उनकी कला का लाभ नहीं मिल पाता है। उनके
ऑनलाइन होने से वे छात्र भी लाभान्वित हो रहे
हैं, जो सीधे नहीं जुड़े थे।
वीराचाइ बताते हैं कि खाएन समेत कई
प्राचीन वाद्य यंत्रों के प्रति देश-विदेश के छात्रों
में गहरी रुचि है। संगीत के बारे में किताबों से
ज्ञान लेकर वे प्राचीन सभ्यता से परिचित होना
चाहते हैं, इसके लिए यूट्यूब सबसे अच्छा
ज़रिया है। वे कहते हैं कि मैं इस कला के बदले
में किसी से कुछ नहीं मांगता। मुझे जीने के लिए
जितने पैसे की जरूरत होती है, वह यहीं मिल
जाते हैं। इससे ज्यादा की ख्वाहिश मुझे बिल्कुल
नहीं है। बस मैं यह चाहता हूं कि ज्यादा से
ज्यादा बच्चों को संगीत का ज्ञान दे सकूं।
Ânationmultimedia.com
यूट्यूब से प्राचीन
संगीत सिखाते
हैं थाई मास्टर
}इंटरनेट
रेडिट यूजर किबलेन बिट्स ने इस फोटो में वर्ष 1935 का वॉशिंगटन
डीसी दिखाया है। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की है कि वहां तब भी
कारें ही ज्यादा दिखती थीं। लोक परिवहन के लिए ट्राम जरूर नजर आ रही हैं। यह फोटो ब्लैक एंड
व्हाइट था, जिसे किबलेन ने रंग देने का प्रयास किया है। मात्र 12 घंटे में इस फोटो को 21 लाख से
ज्यादा व्यूज मिले। साथ ही लोगों ने इसे अद्भुत बताया। Âreddit.com
वॉशिंगटन में 80 साल पहले
भी ज्यादा दिखती थीं कारें
}हिस्ट्री
दुनिया में पुनर्जागरण काल 1304 से शुरू माना जाता है। इटली में शुरुआत हुई। यूरोप में मध्ययुग की समाप्ति और आधुनिक
काल का उद्भव यहीं से है। भारत में नवजागरण 19वीं सदी से शुरू हुआ। ब्रह्मसमाज से धर्म सुधार आंदोलन शुरू हुआ।}फैक्ट
देखा जाता है कि उम्र के साथ उत्तेजना में कमी
तथा विचारों में परिपक्वता और दृढ़ता आती है।
इसके साथ ही आती है विश्लेषण में गंभीरता,
परंतु किसी नए विचार को सुनने या ग्रहण करने
की क्षमता में भी ह्रास होता है। ‘मैं जैसा भी हूं
ठीक हूं’ यह विचार मन में घर कर जाता है। इसी
कारण यदि अपने ‘होने’ में ही अन्य की स्वीकृति
का अर्थ नहीं होता तो जो अपने से अलग विचार
रखते हैं उनके साथ सामंजस्य बैठाना चुनौतीपूर्ण
होता है। यह किसी भी व्यक्तित्व के निर्माण की
एक सामान्य दशा है।
नहीं मिलते उत्तर
ऐसी ही स्थिति मनुष्य द्वारा निर्मित किसी संस्था के
व्यक्तित्व की होती है। अब विचार कीजिए धर्मों
के आधुनिक संस्थागत स्वरूप का। संस्थागत धर्म
से हमारा मतलब वही है जिस अर्थ में आज हिन्दू,
ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी आदि
धर्म हैं। आज जिस रूप में ये सभी धर्म हमारे
सामने हैं, क्या हम कह सकते हैं कि इनमें कोई
मौलिक अन्तर है? क्या हम किसी भी अच्छी-
से-अच्छी या बुरी-से-बुरी बात का उदाहरण दे
सकते हैं, जो किसी धर्म विशेष के किसी-न-
किसी अनुयायी द्वारा ‘धर्म के नाम पर’ न की गई
हो? इस प्रश्न को लेकर अपने मस्तिष्क की मांस-
पेशियों पर बहुत बल दिया, परन्तु उत्तर ‘नहीं’
मिलना था तो ‘न’ ही मिला।
धर्मों के आंतरिक विभाजन
धर्मों के स्पष्टतः ज्ञात इतिहास को देखकर यह
कहना मुश्किल नहीं कि इनके संस्थागत स्वरूप
में एक तरह की परिपक्वता और दृढ़ता आई
है। यह ‘परिपक्वता और दृढ़ता’ वास्तव में
उनकी संस्थागत पहचान को मजबूत करने के
रूप में दिखाई देती है। औरों से अलग पहचान
बनाने की लालसा ने धर्मों के आन्तरिक
विभाजन को भी जन्म दिया है। चूंकि ‘अन्य
की अस्वीकृति’ इस लालसा के मूल में थी,
अत: धार्मिक संस्थाओं के व्यक्तित्व में परिपक्वता
के साथ इस अस्वीकृति में भी मूर्तता आती गई।
व आधुनिक कानूनी जरूरतों ने सभी को किसी-
न-किसी धार्मिक संस्था का सदस्य बना दिया।
धर्म के तीन पक्ष
धार्मिक पहचान है क्या और यह कैसे बनती है?
इसका उत्तर स्वामी विवेकानन्द के मत में देखा
जा सकता है। उनके अनुसार धर्म के तीन पक्ष
हैं-दर्शन, आख्यान और रीति-रिवाज। किसी धर्म
की पहचान उससे जुड़े धार्मिक प्रतीकों, उत्सवों,
शादी एवं मृत्यु से संबंधित संस्कारों आदि के
रूप में की जाती है। इन पहचान-चिह्नों के पीछे
विशेष जीवन-दर्शन होता है, जिसके प्रचार-प्रसार
हेतु आख्यानों की अवधारणाएं की जाती हैं। इन
तीनों पक्षों में जो दिखाई देने वाला पक्ष है, वह है
धार्मिक प्रतीक और रीति-रिवाज। इन्हीं के आधार
पर किसी धर्म के संस्थागत रूप की पहचान की
जाती है। परंतु यह पहचान सतही होती है।
इससे समझें
उदाहरण के लिए गेरूए वस्त्र धारण करने वाले
व्यक्ति को संन्यासी मानना या किसी विशेष तरह
की वास्तु संरचना को किसी धर्म विशेष का पूजा-
स्थल मानना। ये धर्म के बाह्य आवरण हैं। यही
आवरण बाह्य-इंद्रियों द्वारा ग्रहण किए जाते हैं।
अब जिस तरह वस्त्र को देखकर किसी के चरित्र
के बारे में नहीं जाना जा सकता उसी तरह धर्म के
इन आवरणों के आधार पर ही उसके वास्तविक
स्वरूप को जानना संभव नहीं होता। इसलिए
बाह्य-इंद्रिय जनित सूचना के आधार पर जब हम
धर्म के स्वभाव को जानने की कोशिश करते हैं तो
हमेशा गलत सिद्ध होते हैं। और यही गलती धर्म
के नाम पर सभी दंगा-फसादों का कारण है। धर्म
के नाम पर दुनिया में ठगी होती है, मार-काट मची
हुई है। क्या इसे रोका नहीं जा सकता? रोका जा
सकता है और मतरीका एक ही है: सभी को धर्म
के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराना।
प्रतीक और रिवाज
अब इस परिचय की शुरुआत हम धर्म
के दृश्यरूप—धार्मिक प्रतीकों और रीति-
रिवाजों—से ही कर सकते हैं। इससे हटना
मनुष्य के मनोविज्ञान को अनदेखा करना
होगा और इसलिए असफलता निश्चय होगी।
महर्षि अरविन्द ने बंगाल एजुकेशन सोसाइटी
की आलोचना करते हुए कहा था कि धार्मिक
क्रियाकलापों को शिक्षण संस्थाओं से अलग
रखकर किसी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं
बताया जा सकता है।
रिवाजों के प्रति अंधभक्ति
प्रत्येक धर्म एक जीवंत संस्था है, अर्थात इसके
अंतर्गत हो रही गतिविधियों के महत्व को उससे
होकर ही जाना जा सकता है। किसी जीवंत
सत्ता को समग्रता में जीकर ही जाना जा सकता
है। हमने जीना तो दूर, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर
धर्म के दृश्य स्वरूप पर चर्चा ही करना बंद कर
दिया है। घाट तो दिखाई दिया नहीं घर भी गया।
हम धार्मिक रीति-रिवाजों में या तो अंध-भक्ति
रखते हैं या उसे पिछड़ेपन का लक्षण मान बैठते
हैं। दोनों ही रूपों में धर्म की हमारी समझ अधूरी
रह जाती है। और जब समझ अधूरी है तो उधार
की सूचना के आधार पर हम निर्णय करने लगते
हैं। धर्म से जुड़ी सभी समस्याओं की यही जड़
है। उपनिषद प्रगतिशील हैं, महावीर और बुद्ध
प्रगतिशील हैं, भारतीय पुनर्जागरण-काल के
समाज- सुधारक प्रगतिशील हैं क्योंकि उन्होंने
धर्म के बाह्य स्वरूप को समझने पहचानने
की कोशिश की। कैसे पहचाना? सुनकर नहीं,
करके पहचाना।
आज हम युग के ऐसे मोड़ पड़ खड़े हैं जहां न
तो धर्म को सुनना चाहते हैं न जीना। आज हम न
अपनी धार्मिक संस्था के स्वरूप को समझते हैं न
अन्य के। इसीलिए धर्म के निस्सार बाह्य रूप को
केंद्र में रखकर उससे चिपकते हैं या घृणा करते
हैं, भावनाएं भड़काते हैं या भड़कते है, ठगते हैं या
ठगे जाते हैं। इसी तनाव में हम धार्मिक संस्था रूपी
ताजमहल की या तो प्रशंसा करते हैं या अफवाह
उड़ाते हैं और भूल जाते हैं कि उसके अंदर केवल
कब्रिस्तान है।
अनिल तिवारी
आईआईटी से पीएचडी
(फिलासॉफी)
असिस्टेंट प्रोफेसर,
श्री माता वैष्णोदेवी
यूनिवर्सिटी, कटरा
धर्म की अधूरी समझ के कारण ही
उधार की सूचनाओं पर लेते हैं फैसले
जिस प्रकार से हर गेरूए वस्त्र पहनने वाले व्यक्ति को संन्यासी या संत नहीं माना जा सकता, उसी तरह से किसी वास्तु संरचना को
देखकर किसी स्थान को धर्म विशेष का पूजा स्थल नहीं माना जा सकता। ये तो धर्म के बाह्य आवरण हैं। इसी प्रकार से अंधविश्वासों
के कारण धर्म की हमारी समझ अधूरी रह जाती है और हम सूचनाओं की माया में फैसले ले लेते हैं। या तो हम धार्मिक रीति-
रिवाजों में अंधभक्ति रखते हैं, या फिर उसे पिछड़ेपन का लक्षण मान बैठते हैं।
नवचिंतन
कांग्रेस ने राज्यसभा में भ्रष्टाचार प्रतिरोधक बिल 1988 में सुधार
का एक बिल 2013 में रक्खा था जिसे ‘भ्रष्टाचार प्रतिरोधक
(संशोधन) बिल-2013’ नाम दिया गया। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के लिए यह बिल पास हो जाता
तो शायद रामबाण का काम करता। इस प्रस्तावित सुधार का असर रिश्वत
लेनेवाले को मुक्ति दिलाता है, वहीं देनेवाले को सजा। मोदी सरकार के
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 12 नवंबर 2014 को कैबिनेट की मीटिंग के
अनौपचारिक फैसले से कांग्रेस (आई) सरकार द्वारा प्रस्तावित (भ्रष्टाचार
प्रतिरोधक संशोधन) बिल-2013 विधि आयोग की राय जानने के लिए
भेजा। प्रस्तावित विधि आयोग को 8 जनवरी 2015 को भेजा गया, जिसमें
फरवरी 2015 के अंत तक रिपोर्ट देने को कहा गया। समय की कमतरता
के बावजूद विधि आयोग ने युनाईटेट नेशन कॉन्वेशन अगेंस्ट कॉरपशन
व अन्य संबद्ध कायदे व भारत तथा इंग्लैंड में इस बाबत हुए फैसलों
के आधार पर रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया। 12 फरवरी 2015 के पत्र के
साथ यह रिपोर्ट विधि आयोग ने विधि व न्याय मंत्री भारत सरकार को दे
दी। बिल के अनुसार गलत, अनुचित या गैर-कानूनी काम के लिए रिश्वत
किसी भी रूप में नहीं ली जा सकती। जिसका अप्रत्यक्ष अर्थ होगा कि सही
काम के लिए रिश्वत ली जा सकती है। लॉ कमिशन के सुझाव के अनुसार
भारत में केवल गलत तरीके से फायदे देने के लिए ही रिश्वत नहीं ली जाती
बल्कि वाजिब काम के लिए भी लोग घूस लेते हैं। लॉ कमिशन ने इस ओर
अनदेखी की कि भारत में सरकारी कर्मचारियों को गलत कार्य नहीं करना
चाहिए इसके लिए भी रिश्वत दी जाती है।
प्रस्तावित संशोधन बिल के अंतर्गत कोई व्यक्ति अनुचित या गैर-
कानूनी काम कराने के लिए रिश्वत देगा तो वह दंडनीय अपराध होगा।
सच कहा जाए तो रिश्वत को भी कानूनी रूप से जायज ठहराने का काम
प्रस्तावित सुधार कर सकता है। सुझाए गए सुधार के अनुसार कोई भी
व्यक्ति जो आर्थिक लाभ देने का वादा करता है या देने का लालच देता
है, ताकि सरकारी कर्मचारी गलत कार्य करे, तो उस व्यक्ति को कम से
कम 3 वर्ष व अधिकतम 7 साल तक की सजा हो सकती है। यदि कोई
व्यावसायिक संगठन ऐसा करेगा तो उसे जुर्माना होगा। इन प्रावधानों के आने
के बाद रिश्वत लेना शायद ही अपराध रहेगा और कोई भी सरकारी कर्मचारी
यह कहकर पीछा छुड़ा लेगा कि उसने कोई गैर-कानूनी या अनुचित काम
नहीं किया है। वर्तमान भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 7 के
अनुसार सरकारी नौकर यदि कानूनी मोबदले के सिवाय सरकारी काम
के लिए कुछ भी फायदा लेता है तो वह दंडनीय अपराध है। इसी कानून
की धारा 2 (सी) में जनसेवक शब्द को परिभाषित किया गया है जिसके
अनुसार कोई भी व्यक्ति जो सरकारी नौकर है या सरकार से पगार पाता
है- जो कमिशन फी आदि किसी भी रूप में हो सकती है; इसमें स्थानीय
संस्थाओं, कार्पोरेशन, न्याय क्षेत्र, चुनाव व शिक्षा आयोग आदि से जुड़े
सभी लोगों का समोवश है।
सत्ता में आने के बाद लगता है कि नैतिकता सरकारी कर्मचारियों की
उन्नति में बाधक बन गई है। वैसे सरकारी कर्मचारियों की बजाय सरकारी
लोगों शब्द का प्रयोग किया जाए तो सभी को इसकी परिभाषा के दायरे
में बैठाया जा सकता है। वैसे भी मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे
प्रदेशों में जिस किसी सरकारी कर्मचारी के यहां लोकायुक्त के कहने पर या
भ्रष्टाचार प्रतिबंधक विभाग की सक्रियता से छापे पड़े, सभी जगह करोड़ों
की माया मिली; भले ही वह चपरासी, क्लर्क या और किसी अन्य पद पर
ही क्यों न रहा हो? ये सभी प्रदेश भाजपा शासित हैं, परंतु अन्य प्रदेशों की
स्थिति भिन्न होगी, ऐसा लगता नहीं। इस प्रकार की घटनाओं से राज्य व केंद्र
सरकार को जनता की नजर में शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है। इस शर्मिंदगी से
बचने का केंद्र व राज्य सरकारों के पास इससे अच्छा उपाय क्या होगा कि
भ्रष्टाचार को ही कानूनी मान्यता दे दी जाए? सही काम के लिए रिश्वत लेना
कानूनी हो जाए तो सरकारी कर्मचारी हर काम के लिए रिश्वत ले सकेंगे,
क्योंकि उनकी मान्यता है कि वे कोई गलत काम करते ही नहीं। चपराशी
फाईल एक टेबल से दूसरे टेबल पर रखेगा नहीं क्योंकि फाईल आगे रखना
ही तो उसका काम है। रखेगा तो सही काम है। अत: मेहनताना मिलना ही
चाहिए। इसे भले ही वर्तमान कानून के अनुसार रिश्वत कहा जाए। दफ्तर में
बाबू का काम है किसी भी प्रस्ताव, अर्जी आदि पर टिप्पणी लिखे। टिप्पणी
क्या लिखी जाए यह उसका अधिकार क्षेत्र है। उसकी लिखी गई टिप्पणी से
कामा', मात्रा' भी हटाने का साहस बड़े-बड़े अधिकारियों में नहीं रहता।
एकमात्र उपाय है, बाबू को कहकर उसकी टिप्पणी या नोट को बदलवाना।
जब योग्य बाबू सुधार कर नोट लिखेगा तो वह कैसे गलत हो सकता है?
अत: मेहनताना लेने का वह हकदार है या नहीं? वैसे भी गलती तो सुधारी
जा सकती है न? अफसर स्तर पर भी यही तो अनुभव है। अफसर में सभी
छोटे-बड़ों का समावेश है। वैसे भी सरकार को वस्तुओं की पूर्ति करने वाले
ठेकेदार, सरकारी कार्यों से जुड़े लोगों का अनुभव क्या है?
सर्वोच्च स्थान से निचले स्तर तक सबको खुश रखना पड़ता है तभी
गाड़ी आगे बढ़ती है। अब यदि भ्रष्टाचार को कानूनी मान्यता मिल जाए, तो
कालांतर में हर स्तर पर प्रतिशत भी तय हो जाएगा और सभी को मालूम
रहेगा कि किस को क्या देना है? और क्या मिला होगा। आयकर विभाग को
आमदानी का प्रमाण तय करने में सुविधा होगी। जिससे कर चोरी पर कुछ
हद तक रोक लग सकती है। किसानों की बात करें तो 7/12 प्राप्ति से उस
पर नाम चढ़ाने तक की दर तय हो जाएगी तो पटवारी गांव में छाती ठोंककर
कह सकेगा कि उसने कोई गलत पैसा नहीं लिया है। उसने कानून में जो
प्रावधान हैं, उसके अनुसार सही काम करके ही मेहनताना लिया है। किसान
की जमीन अधिग्रहण का मुवावजे का भुगतान देने के लिए अनेक कागज
मांगे जा सकते हैं और उनकी पूर्ति के बगैर पैसा नहीं दिया जा सकता, ऐसा
कहा जा सकता है। इसके बावजूद भी कायदे से रास्ता निकालकर बगैर
कागज लिए भुगतान किया जाए तो मेहनताना मांगना गलत नहीं कहा जा
सकेगा? पंजीकरण ऑफिस में किसी भी दस्तावेज का पंजीकरण गलत नहीं
होता तो प्रस्तावित सुधार के अनुसार मेहनताना मांगना कैसे गलत होगा?
इस प्रकार सभी कार्यों को कानूनी शक्ल दी जा सकती है। कौन सा कार्य
सही है, कौन सा गलत, इसका निर्णय कौन करेगा? रिश्वत लेने वाला तो
खुद के कार्य को सही ही कहेगा। अत: उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। अच्छा
हो वर्तमान सरकार इस मुगालते से बाहर निकले कि स्पष्ट बहुमत के बल
पर कुछ भी किया जा सकता है। अच्छा हो, इस ओर कोई भी पहल से मोदी
सरकार बचे और कांग्रेस द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुुत बिल वापस ले ले और लॉ
कमिशन के प्रस्तावित सुझावों को भी उसी के साथ समाप्त कर दे और 1988
के मूल कानून को वैसा ही रहने दे। agrawalbj27@gmail.com
भ्रष्टाचार पर कानूनी मुहर!
बी.जे. अग्रवाल
वरिष्ठ अधिवक्ता
}संदर्भ- प्रस्तावित (भ्रष्टाचार प्रतिरोधक संशोधन) बिल-2013
ये सभी प्रदेश भाजपा शासित
हैं, परंतु अन्य प्रदेशों की
स्थिति भिन्न होगी, ऐसा
लगता नहीं। इस प्रकार
की घटनाओं से राज्य व
केंद्र सरकार को जनता की
नजर में शर्मिंदगी झेलनी
पड़ती है।
उसकी लिखी गई टिप्पणी
से कामा', मात्रा' भी
हटाने का साहस बड़े-बड़े
अधिकारियों में नहीं रहता।
एकमात्र उपाय है, बाबू को
कहकर उसकी टिप्पणी या
नोट को बदलवाना। जब
योग्य बाबू सुधार कर नोट
लिखेगा तो वह कैसे गलत
हो सकता है?
किसानों की बात करें तो
7/12 प्राप्ति से उस पर नाम
चढ़ाने तक की दर तय हो
जाएगी तो पटवारी गांव में
छाती ठोंककर कह सकेगा
कि उसने कोई गलत पैसा
नहीं लिया है। उसने कानून
में जो प्रावधान हैं, उसके
अनुसार सही काम करके
ही मेहनताना लिया है।
दैनिकभास्कर, नागपुर, शनिवार, 21 मार्च 2015 4संपादकीय