यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन से सम्बन्धित एक परिचयात्मक अध्ययन है, जिसे विश्वविद्यालय स्तर के एम. ए. शिक्षाशास्त्र विषय के विद्यार्थी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है. हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह अध्ययन सामग्री मीमांसा दर्शन के प्रति जिज्ञासु लोगों के लिए यत्किंचित् रूप में उपादेय सिद्ध हो सकता है.
अध्यात्म का अर्थ, विशेषता, उद्देश्य, आवश्यकता, धर्म और अध्यात्म, अध्यात्म के प्रमुख विषय, आध्यात्मिक कार्य के कुछ उदाहरण, भगवद्गीता में अध्यात्म, अष्टावक्र गीता में अध्यात्म, इश्वर को क्यों जाने, अपने आप को जानना क्या होता है?
Personality development according to punchakosh 2016Varadraj Bapat
Personality development according to punchakosh
there are five types of koshas
Anamay kosh, Pranamay kosh, Manomay kosh, Vignayanmay kosh, Aanandamay kosh.
अंतःकरण का एक भाग-चित्त, योगवासिष्ठ में चित्त, चित्त की भूमियाँ, चित्त के प्रकार, चित्त्वृतियाँ, चित एवं योगाभ्यास, ओशो का एक उत्तम उदाहरण, भक्ति से चित्तवृति निरोध, चित शुद्धि में गुरु की भूमिका, चित प्रसादन,
Welcome To General Studies Power. Hello I am Siddharth Vairagi Apko Is Video Me Bauddh Dharm Ke baare Bataya Gya hai. Jisase Apko Exam Me Help Mile. Thank You.
यह सृष्टि कैसे बनी,
यह सृष्टि किसने बनाई ?,
इन बुनियादी प्रश्नों का उत्तर विज्ञान ने अपनी परिकल्पनाओं के जरिये देने की कोशिशें की हैं। मगर अब भी इस प्रश्न का स्टीक और पूरा-पूरा सही उत्तर हमें नहीं मिल पाया है। *Srishti kaise bani
विभिन्न धर्मों ने भी इस बुनियादी प्रश्न का उत्तर सैंकड़ों या हजारों वर्ष पहले ही अपने-अंदाज में देने की कोशिशें की हैं, जबकि उस समय व्यवस्थित विज्ञान भी नहीं था।
तो क्या इन विभिन्न धर्मों ने इस बुनियादी प्रश्न का सही उत्तर दे दिया है या इनके उत्तर भी अधूरे अथवा गलत हैं ?
यदि हम सूक्ष्मता से विज्ञान सहित इन विभिन्न धर्मों के उत्तरों का विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि इनके उत्तर ठीक वैसे ही हैं जैसे, किसी शीशे के गिलास में भरे पानी में एक कलम किनारे से देखने पर टेडा दिखता है, जटिल दिखता है। मगर वास्तव में वो टेडा नहीं है, वो सीधा ही है।
तो आइये सृष्टि निर्माण की व्याख्या को जो कि विज्ञान से लेकर धर्मों ने दे रखी है, उसे सरल ढंग से जानने की कोशिश करते हैं:-
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में विज्ञान की परिकल्पना
सृष्टि उत्पत्ति के संदर्भ में विज्ञान ने कहा है कि आज से 13-14 अरब वर्ष पूर्व यह समस्त संसार किसी एक *बिन्दु में केंद्रित था। अर्थात उस समय शून्य नहीं था और न ही समय और पदार्थ ही थे। फिर उस बिन्दु में संपीड़न हुआ, जिसके चलते उसमें महाधमाका हुआ, जिसे वैज्ञानिक लोग *बिगबेंग कहते हैं।
बिगबेंग की घटना के उपरान्त स्पेस, टाईम और पदार्थ का विस्तारण हुआ। तब से आजतक लगातार इनका विस्तारण हुआ जा रहा है। और यह ब्रह्मांड जिसे बिगबेंग के बाद एक महागुब्बार (महाशून्य) कहा जा सकता है इसका फैलाब होता जा रहा है, और एक घड़ी आयेगी जब यह महागुब्बार (महाशून्य) फट जायेगा और यह दुनियाँ फिर से एक बिन्दु में संकुचित हो जायेगी।
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*इस दुनिया को किसने बनाया (कुछ जबरदस्त प्रयोगात्मक तर्क) !*
*भौतिक विज्ञान व् पवित्र बाईबल में समानता !*
*पृथ्वी के प्राणियों की संरचना, एक सच !*]
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में मजहबों की परिकल्पना
जब हम मजहबों की बात करते हैं तो इस दूनियाँ में दो ही मजहब प्रमुख हैं - ईसाइयत और इस्लाम। ईसाइयत और इस्लाम मूलरूप में यहुदी मजहब के बच्चे हैं। इनके मजहबी-ग्रंथो के अनुसार यह सृष्टि अपने-आप नहीं बनी है बल्कि इसे बनाया गया है, और बनाने वाला खुदा है। उस खुदा ने इस सृष्टि को अपने वचन अथवा शब्द से छ: दिनों में बनाया है।
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में सनातन धर्म की परिकल्पना
जब हम जीव अथवा सनातन-धर्म की बात करते हैं तो इसका संबंध किसी मजहब से नहीं होता, वरन इसका संबंध मानवता के उस गहरे ज्ञान से संबंधित होता है जब मानव इतिहास में विभिन्न मजहबों का नामो-निशान तक नहीं था।
हमारे मानवीय अतीत में कुछ गैर-मजहबीय लोग हुये थे, जो खोजी स्वभाव के थे जैसे, आजकल के वैज्ञानिक लोग हुआ करते हैं; उन्होने खोज की यह प्रक्रिया कुछ अनोखे ढँग से ईजाद की थी जैसे, आजकल के वैज्ञानिक किन्ही सूत्रों का निर्माण करते हैंं, ठीक वैसे ही।
सृष्टि निर्माण के इस उत्तर में उन्होने सविस्तार रूप से एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक उत्तर पाया। दरअसल, उन्होनें कुछ ऐसी पुस्तकें (वेद ग्रंथ) पाईं जो हाड़-मांस के बने मानवों की लिखी हुई नहीं थीं, बल्कि मानवों से पूर्व उत्पन्न हुये गैर-हाड़मांस के मानवों की लिखी हुई थीं।
अब इस संदर्भ में हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह सारी घटना भारतभूमि क
जन्म कुंडली: क्या होती है?
ज्योतिष विज्ञान में, जन्म कुंडली एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय विषय है। यह एक व्यक्ति के जन्म समय पर बनी चार्ट होती है जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। यह चार्ट ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों और उनके स्थितियों को दर्शाता है जो व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं।
अध्यात्म का अर्थ, विशेषता, उद्देश्य, आवश्यकता, धर्म और अध्यात्म, अध्यात्म के प्रमुख विषय, आध्यात्मिक कार्य के कुछ उदाहरण, भगवद्गीता में अध्यात्म, अष्टावक्र गीता में अध्यात्म, इश्वर को क्यों जाने, अपने आप को जानना क्या होता है?
Personality development according to punchakosh 2016Varadraj Bapat
Personality development according to punchakosh
there are five types of koshas
Anamay kosh, Pranamay kosh, Manomay kosh, Vignayanmay kosh, Aanandamay kosh.
अंतःकरण का एक भाग-चित्त, योगवासिष्ठ में चित्त, चित्त की भूमियाँ, चित्त के प्रकार, चित्त्वृतियाँ, चित एवं योगाभ्यास, ओशो का एक उत्तम उदाहरण, भक्ति से चित्तवृति निरोध, चित शुद्धि में गुरु की भूमिका, चित प्रसादन,
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यह सृष्टि कैसे बनी,
यह सृष्टि किसने बनाई ?,
इन बुनियादी प्रश्नों का उत्तर विज्ञान ने अपनी परिकल्पनाओं के जरिये देने की कोशिशें की हैं। मगर अब भी इस प्रश्न का स्टीक और पूरा-पूरा सही उत्तर हमें नहीं मिल पाया है। *Srishti kaise bani
विभिन्न धर्मों ने भी इस बुनियादी प्रश्न का उत्तर सैंकड़ों या हजारों वर्ष पहले ही अपने-अंदाज में देने की कोशिशें की हैं, जबकि उस समय व्यवस्थित विज्ञान भी नहीं था।
तो क्या इन विभिन्न धर्मों ने इस बुनियादी प्रश्न का सही उत्तर दे दिया है या इनके उत्तर भी अधूरे अथवा गलत हैं ?
यदि हम सूक्ष्मता से विज्ञान सहित इन विभिन्न धर्मों के उत्तरों का विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि इनके उत्तर ठीक वैसे ही हैं जैसे, किसी शीशे के गिलास में भरे पानी में एक कलम किनारे से देखने पर टेडा दिखता है, जटिल दिखता है। मगर वास्तव में वो टेडा नहीं है, वो सीधा ही है।
तो आइये सृष्टि निर्माण की व्याख्या को जो कि विज्ञान से लेकर धर्मों ने दे रखी है, उसे सरल ढंग से जानने की कोशिश करते हैं:-
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में विज्ञान की परिकल्पना
सृष्टि उत्पत्ति के संदर्भ में विज्ञान ने कहा है कि आज से 13-14 अरब वर्ष पूर्व यह समस्त संसार किसी एक *बिन्दु में केंद्रित था। अर्थात उस समय शून्य नहीं था और न ही समय और पदार्थ ही थे। फिर उस बिन्दु में संपीड़न हुआ, जिसके चलते उसमें महाधमाका हुआ, जिसे वैज्ञानिक लोग *बिगबेंग कहते हैं।
बिगबेंग की घटना के उपरान्त स्पेस, टाईम और पदार्थ का विस्तारण हुआ। तब से आजतक लगातार इनका विस्तारण हुआ जा रहा है। और यह ब्रह्मांड जिसे बिगबेंग के बाद एक महागुब्बार (महाशून्य) कहा जा सकता है इसका फैलाब होता जा रहा है, और एक घड़ी आयेगी जब यह महागुब्बार (महाशून्य) फट जायेगा और यह दुनियाँ फिर से एक बिन्दु में संकुचित हो जायेगी।
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*इस दुनिया को किसने बनाया (कुछ जबरदस्त प्रयोगात्मक तर्क) !*
*भौतिक विज्ञान व् पवित्र बाईबल में समानता !*
*पृथ्वी के प्राणियों की संरचना, एक सच !*]
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में मजहबों की परिकल्पना
जब हम मजहबों की बात करते हैं तो इस दूनियाँ में दो ही मजहब प्रमुख हैं - ईसाइयत और इस्लाम। ईसाइयत और इस्लाम मूलरूप में यहुदी मजहब के बच्चे हैं। इनके मजहबी-ग्रंथो के अनुसार यह सृष्टि अपने-आप नहीं बनी है बल्कि इसे बनाया गया है, और बनाने वाला खुदा है। उस खुदा ने इस सृष्टि को अपने वचन अथवा शब्द से छ: दिनों में बनाया है।
सृष्टि उत्पत्ति के बारे में सनातन धर्म की परिकल्पना
जब हम जीव अथवा सनातन-धर्म की बात करते हैं तो इसका संबंध किसी मजहब से नहीं होता, वरन इसका संबंध मानवता के उस गहरे ज्ञान से संबंधित होता है जब मानव इतिहास में विभिन्न मजहबों का नामो-निशान तक नहीं था।
हमारे मानवीय अतीत में कुछ गैर-मजहबीय लोग हुये थे, जो खोजी स्वभाव के थे जैसे, आजकल के वैज्ञानिक लोग हुआ करते हैं; उन्होने खोज की यह प्रक्रिया कुछ अनोखे ढँग से ईजाद की थी जैसे, आजकल के वैज्ञानिक किन्ही सूत्रों का निर्माण करते हैंं, ठीक वैसे ही।
सृष्टि निर्माण के इस उत्तर में उन्होने सविस्तार रूप से एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक उत्तर पाया। दरअसल, उन्होनें कुछ ऐसी पुस्तकें (वेद ग्रंथ) पाईं जो हाड़-मांस के बने मानवों की लिखी हुई नहीं थीं, बल्कि मानवों से पूर्व उत्पन्न हुये गैर-हाड़मांस के मानवों की लिखी हुई थीं।
अब इस संदर्भ में हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह सारी घटना भारतभूमि क
जन्म कुंडली: क्या होती है?
ज्योतिष विज्ञान में, जन्म कुंडली एक महत्वपूर्ण और रहस्यमय विषय है। यह एक व्यक्ति के जन्म समय पर बनी चार्ट होती है जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। यह चार्ट ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों और उनके स्थितियों को दर्शाता है जो व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डाल सकते हैं।
Definitions of yoga in reference to various ancient texts such as yoga darsana , Geeta, Upanishads,veda, and some contemporary yogis .
#yoga
#patanjali
#yoga_sutras
#introduction_to_yoga
#what_is_yoga?
#vedas
#upanishads
#geeta
नैमिषारण्य तीर्थ विश्व का सबसे प्राचीन तीर्थ है क्योंकि सतयुग के प्रारम्भ में जब सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने मनु और सतरूपा नामक प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री को मैथुनी सृष्टि के लिये प्रकट किया तब इन दोनांे ने पृथ्वी लोक पर दीर्घ समय तक एक क्षत्र राज्य किया और प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनेको ऐश्वर्यो का भोग कर अपना राज्य अपने पुत्र को खुशी - खुशी देकर आत्म संतुष्टि के लिये चल पड़े। सम्पूर्ण विश्व की वन्दनीय, दिव्य ऋषि मुनियाे से सेवित नैमिषारण्य नामक तपोभूमि में आकर तपस्या की।
यह पुराण दो भागों से युक्त है और सनातन भगवान विष्णु के माहात्मय का सूचक है। वाराह पुराण की श्लोक संख्या चौबीस हजार है, इसे सर्वप्रथम प्राचीन काल में वेदव्यास जी ने लिपिबद्ध किया था।[2] इसमें भगवान श्रीहरिके वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का शिक्षाप्रद और आत्मकल्याणकारी वर्णन है।
Similar to B rht paaraashr_horaa_shaastr_hindii_aur_angrejii_men__freeastrology_service (9)
B rht paaraashr_horaa_shaastr_hindii_aur_angrejii_men__freeastrology_service
1. 6/9/2021
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ज्योतिष क्या है?..ज्योतिष के कु छ कु न्निंद राज योग, सरस्वती योग, कलानिधि योग, धन योग, छत्र योग, प्रेम विवाह
योग, मंगल दोष, और ज्योतिष ज्ञान मुफ्त में... भाषा चुनें...
बृहत पाराशर होरा शास्त्र हिंदी और अंग्रेजी में
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मैं चाहता हूं कि संसार का प्रत्येक
मनुष्य ज्ञानी हो और अधिक से
अधिक ज्ञान प्राप्त करे क्योंकि
ज्ञान मनुष्य का सबसे अच्छा मित्र
है, ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के
समान है, ज्ञान से सभी प्रकार की
सृष्टि की जा सकती है परमपिता
ब्रह्मा जी ज्ञान से ही सृष्टि की
रचना की। ज्ञान वेद है और वेदों का
मुखिया ज्योतिष है।
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ज्योतिष क्या है?...सांसारिक कर्म ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होते हैं।
गणनाएं सूर्ये व् चंद्र की गति से सफल होती है अर्थात सूर्ये व् चंद्र पर आधारित है
सूर्ये की गति से दिन व् रात होते है उसी दिन व् रात की गति के अनुसार हम कर्म
करते है अर्थात कर्म को गति देने वाले देवता सूर्य हैं...कर्म की गणना अर्थात समय
की गणना इस गणना से जो उत्तर अर्थात ज्योति रूपी फल प्राप्त होता है वही
ज्योतिष है ज्योतिष वेदपुरुष का नेत्र है। चार वेदो को ही वेदपुरुष कहा गया है उस
वेदपुरुष के छह: अंग है छह: अंग ही छहो शास्त्र है वेदपुरुष का प्रधान अंग नेत्र
अर्थात ज्योतिष शास्त्र है जो हमें तीनो काल के दर्शन करता है और हमें ब्रह्मांड के
सागर को पार करने का रास्ता दिखाता है, लेकिन उस रास्ते पर चलना मनुष्य का
धर्म है। ज्योतिष के वल रास्ता दिखा सकता है, इसे पथ को पार करना मनुष्य का
काम है। ज्योतिष गणित है, यह परिणाम है, इस गणित और परिणामों के आधार
पर हम अपने और दूसरों के भूत, वर्तमान और भविष्य को जन्म के समय से ही
जान सकते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ ज्योतिष है। ज्योतिष के निर्माण में सूर्य
सिद्धांत, पितामह सिद्धांत जैसे कई सिद्धांत शामिल हैं, इसके अलावा अन्य सिद्धांत
हैं, लेकिन मैं के वल सूर्य सिद्धांत के बारे में बात करूं गा क्योंकि यह सिद्धांत स्वयं
भगवन सूर्ये ने अपने अंशावतार पुरुष के द्वारा मायासुर नाम के राक्षस को
दिया इसके बाद यह सिद्धांत अर्थात ज्ञान वंश परंपरा के माध्यम से संसार में फै ल
गया और हमारे लिए सुलभ हो गया। पितामह ब्रह्मा ने यह ज्ञान अपने पुत्र महर्षि
भृगु को दिया, जिसके बाद महर्षि वशिष्ठ आदि ने इसे प्राप्त किया। उनके पौत्र का
नाम पराशर था जिनके पुत्र का नाम श्री कृ ष्ण द्वैपायन व्यास था, जो महाभारत के
रचयिता थे, व्यासदेव के पुत्र का नाम शुकदेव था, जिन्होंने श्री मद भगवद
महापुराण की कथा अपने पिता से सुनी थी और इसे राजा परीक्षित को सुनाया था।
महाभारत युद्ध,का अंतिम वंशज राजा परीक्षित ही था ज्योतिष एक विज्ञान है
चमत्कारी विज्ञान नहीं, यदि आप इस विज्ञान में रुचि रखते हैं, तो मैं कु छ चुनिंदा
ज्योतिष योग और दोष जैसे सरस्वती योग, कलानिधि योग, धन योग, छात्र योग,
प्रेम विवाह योग, प्रेम विवाह दोष / मांगलिक दोष तलाक, दूसरा विवाह
आदि लेकर आया हूं। तलाक, दूसरा समाज का हर अंग, हर जीव, बूढ़ा, स्त्री, हर
कोई अपने आसपास के वातावरण को परखना चाहता है, जानना चाहता है, अतीत
से शिक्षा लेकर वर्तमान को चलाकर भविष्य को संवारना चाहता है वह कल के लिए
सचेत हो जाना चाहता है
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भूमिका
ज्योतिष शास्त्र तीन स्कं धों अर्थात् सिद्धांत, संहिता और होरा में प्रसिद्ध है। इसे वेदों
का प्रमुख अंग माना गया है। उपरोक्त तीनों खण्डों में प्रतिपादित विषय स्वतंत्र है।
लेकिन सिद्धांत पंख के शेष दो पंख दो पंख हैं। वेदों में। ब्राह्मण ग्रंथों, श्रौत सूत्र,
मीमांसा आदि में, दर्शनी में, पाणिनि सूत्र और पुराण-इतिहास में, इस उद्देश्य के
लिए, ज्योतिष के कई फै लाव विषय सूत्र के रूप में उपलब्ध हैं। इसके स्वतंत्र विषय
की व्याख्या एक अति प्राचीन ग्रंथ लगध मुन्युक (वेदांग ज्योतिष) में की गई है।
अर्थ यह है कि, प्रत्येक यज्ञादि और गृहयुक्त संस्कार के समय का ज्ञान या धार्मिक
आचरण का कर्तव्य ज्योतिष पर ही निर्भर माना जाता है। इसी कारण वेदों में काल,
अयन, ऋतु आदि के विभाजनों की चर्चा अथर्ववेद में कालानुक्रमिक क्रम में की गई
है। पंचभूतों के विभिन्न प्राकृ तिक गुण - भौतिक रूप से जाग्रत अक्रिय शरीर, जो
धर्मों द्वारा सन्निहित हैं, अपने परमाणु संघों के साथ हमेशा सक्रिय रहते हैं। मानव
जीवन या चल संसार की प्रत्येक वस्तु का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव, दिव्य पृथ्वी
और अंतरिक्ष, विभिन्न घटनाओं, अर्थात् प्रयासों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से
दमनकारी प्रभाव माना जाता है, और यह शुरुआत की भूमि है जिसका अर्थ है कि
विज्ञान, प्रातकु ल अर्थात शुभ ग्रहों - नक्षत्रों के पिंडस्थ तत्वों द्वारा स्वीकृ त
प्राकृ तिक अनुपात से अनुकू ल क्रिया, आकर्षण शक्ति के माध्यम से, ऋतुओं के धर्म
के अनुसार अपना परिणाम प्राप्त करती है और धर्म के अनुसार अपना परिणाम
प्राप्त करती है और इसकी अभिव्यक्ति अन्य वस्तुओं की तुलना में चेतन शरीर में
आसानी से महसूस की जाती है। इस सूक्ष्म रहस्य की संगति बहुत कठिन है ।
आचार्य वाघमहिरा ने बृहज्जतक में लिखा है।
'होरेत्यहोरत्रा - विकल्पमेके के वनचंति पूर्वपर्णलोपता
4. 6/9/2021
https://krishnmurtiastrologgy.blogspot.com/2021/05/freeastrology.html 4/5
कर्मर्जितं पूर्वभावे सदादि यानस्य रोवं संभाव्यक्ति। '
इसमें जन्म-रूपांतरण अर्थात् जीवों के परिमाणवाद का आधार लेकर शरीर द्वारा
अच्छे और बुरे कर्मों के भोग के रूप में व्यक्त होना प्रकट किया गया है। यहां मूल
अवर्णनीय सत्य परिणामी शिक्षा की सत्यता का एकमात्र स्तंभ है। प्रत्येक प्राकृ तिक
घटना की प्रकृ ति परिणाम में स्थापित होकर भिन्न रूप में प्रकट होती है और समय
और आधार के ज्ञान के रूप में ऋषियों ने अपने दिव्य दृष्टिकोण से इस गूढ़ तत्व
को जानकर दुनिया को सूचित किया है। परिभाषाओं के अंतर के साथ। यह भौतिक
वस्तुओं के अलावा अन्य ग्रहों के मानवीय संबंध को सिद्ध करता है। इसमें कोई संदेह
नहीं है कि वैदिक-ज्योतिषीय सिद्धांत का विकास ऋषियों के समय से कालानुक्रमिक
रूप से बढ़ा है और विभिन्न तरीकों से इसकी उपयोगिता की जांच करने के बाद,
वशिष्ठ, नारद, कश्यप, गर्ग आदि के संहिता ग्रंथों का निर्माण किया गया था। इसके
अंगों और उपांगों, समीकरणों और उनके अनुयायियों के आविष्कार ने आकाश की
मध्य रेखा से सीधा संबंध स्थापित करने के बाद ही पृथ्वी की सतह पर विशाल जाल
छोड़ दिया।