1. Tumharinagari men आगे पर्वतों की चोटियाँ दिखीं उत्तुंग शिखरों पर कहीं बर्फ की चादर बिछी थी , कहीं उतर रहे थे बादल, अपनी गति .अपने विहार को विश्राम देते अपनी शक्तियों को पुनः जगाने के लिए , बूँद-बूँद बन सागर की और जाने के लिए , ताकि कर सकें विलीन अपना अस्तित्व , वामन से बन जाएँ विराट . तुम्हारी ही नगरी में