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Mahilaon Ke Vishesh Rog: Chunautiya
Aur Samadhan
( महिलाओं क
े हिशेष रोग: चुनौहिया और
समाधान )
महिलाओं क
े हिशेष रोग: चुनौहिया और
समाधान
 महिलाओं का शारीररक ढांचा पुरुष ं से काफी मामल ं में अलग िै। उनक
े क
ु छ अंग
ऐसे िैं, ज अत्यंत संवेदनशील िैं और मित्वपूर्ण भी। इन्ीं कारर् ं से क
ु छ र ग ऐसे िैं
ज क
े वल महिलाओं क िी ि ते िैं। यिां क
ु छ ऐसे र ग ं की जानकारी दी जा रिी िै,
हजन्ें आयुवेद हचहकत्सा द्वारा बडी आसानी से दू र हकया जा सकता िै।
एनीहमया अर्ााि् पांडु रोग
 रक्ताल्पता या एनीहमया क िी आयुवेद में पाण्डु र ग की संज्ञा दी गई िै। इस र ग में
रक्त की लाल रक्त कहर्काओं में कमी ि ने क
े साथ-साथ रुहिर वहर्णका
(िीम ग्ल हबन) का स्तर भी हगर जाता िै।
 इसक
े अहतररक्त च ट लगने पर अत्यहिक रक्तस्राव, माहसक िमण अथवा प्रसव क
े समय
अहिक रक्त स्राव आहद अनेक कारर् ं से पाण्डु र ग ि सकता िै। संक्रामक या अहिक
लम्बे समय तक चलने वाले र ग क
े बाद तथा लौि तत्व ं की कमी से भी प्राय: पाण्डुर ग
ि ता देखा गया िै।
लक्षण
 पाण्डु र ग ि ने पर शारीररक शक्ति घटने क
े साथ त्वचा का रंग सफ
े द (रक्तिीन) ि
जाता िै। हृदय अहिक िडकता िै और पसीना बहुत आता िै। थ डा-सा चलने-हफरने
अथवा पररश्रम करने पर र गी बहुत अहिक थकान अनुभव करता िै।
 यहद क
ु छ हदन ं तक इसकी उपचार न कराई जाए त अहिमांद्य, कहटशूल (कमर में ददण),
पांव ं में ददण, आंख ं क
े नीचे श ि क
े हचन्, कान ं में अजीब-सी सुरसुरािट, स्वभाव में
हचडहचडापन और बार-बार िूक आने क
े लक्षर् प्रतीत ि ते िैं।
उपचार
 आयुवेद में नवायस लौि क इस र ग की सवणश्रेष्ठ औषहि बताया गया िै। 400 हमग्रा
नवायस लौि प्रहतहदन तीन बार शिद में हमलाकर चटाने से बहुत लाभ ि ता िै।
 मण्ड
ू र भस्म की 250 हमग्रा. मात्रा सुबि-शाम पुननणवा क
े क्वाथ (काढे) से देने पर श्लैष्मिक
पाण्डु र ग में लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में अहतसार (दस्त) ि ने पर लौि पपणटी 125 हमग्रा.
हदन में द बार जीरे क पानी में हभग कर उस छहनत पानी से लें। ष्मस्वय ं में पाण्डु र ग क
े
साथ प्रदर ि ने पर 250 हमग्रा. बेल पपणटी हदन में द बार शिद क
े साथ सेवन करने से
बहुत लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में पाचन हक्रया क्षीर् ि जाती िै, इसहलए आिार क
सरलता से पचाने क
े हलए आसव ं का उपय ग बहुत लाभप्रद रिता िै।
 पाण्डु र ग में श थ ि ने पर 15-20 हमली. भ जन क
े बाद पुननणवासव में इतना िी जल
हमलाकर पीने से बहुत लाभ ि ता िै। क
ु छ हचहकत्सक ं क
े अनुसार पुननणवासव,
क
ु मायाणसव 10-10 हमली, और ल िासव 15 हमली. इतने िी जल में हमलाकर पीने से
अहतशीघ्र लाभ ि ता िै।
 बेल क
े ताजे पत् ं का 4-5 ग्राम रस लेकर एक ग्राम काली हमचण क पीसकर उसमें
हमलाकर खाने से पाण्डु र ग नष्ट ि ता िै। पाण्डु र ग में मूली गुर्कारी ि ती िै। मूली का
अनेक प्रकार से उपय ग हकया जा सकता िै। मूली क
े छ टे-छ टे टुकडे करक
े जामुन या
गन्ने क
े हसरक
े में डालकर रख लें। प्रहतहदन हसरक
े की मूली खाने से बहुत लाभ ि ता िै।
मूली का रस हनकालकर सेंिा नमक हमलाकर पीने से शीघ्र लाभ ि ता िै।
 नीबू तथा अदरक का रस और मूली क
े छ टे-छ टे टुकडे हमलाकर खाने से बहुत लाभ
ि ता िै। लवर्भास्कर चूर्ण क
े साथ खाने पर भी लाभ ि ता देखा गया िै।
 पाचन हक्रया क सन्तुहलत करने क
े हलए हलव-52 या अजुणनाररष्ट हपलाना चाहिए,
अजुणनाररष्ट का उपय ग वयस्क स्त्री-पुरुष भी कर सकते िैं। इसक
े सेवन से भ जन शीघ्र
पचता िै और रक्त का अहिक हनमाणर् ि ता िै।
 फल ं व उनक
े रस से बच् ं क लौि, क
ै ष्मशशयम तथा हवटाहमन हमलते िैं। सुपाच्य ि ने क
े
कारर् इनकी पाचन हक्रया भी सरलता से ि ती िै। िरी सष्मिय ं में लौि देव अहिक ि ता
िै, पालक, मेथी, बथुआ आहद से लौि तत्व खूब रस, टमाटर, गाजर आहद क
े सेवन से
बहुत लाभ ि ता िै।
माहसक संबंधी हिकार
रिाहधक्य
 माहसक हवक
ृ हत का सबसे मुख्य लक्षर् िै माहसक रक्त का अहिक मात्रा में आना ज कभी
पतला, कभी गाढा अथवा कभी िब् ं क
े रूप में आता िै। क
ु छ महिलाओं में प्रहतमाि
आने वाले खून की मात्रा में वृष्मि ि ती िै। क
ु छ महिलाओं में ऋतुकाल क
े समय अत्यहिक
पीडा ि ती िै तथा क
ु छ क क ई कष्ट निीं ि ता।
 क
ु छ अन्य लक्षण - पेट व कमर ददण, हसर ददण एवं उलटी लगना, पैर ं पर तथा सारे शरीर
पर सूजन, य हन द्वार में खुजली, अजीर्ण, कि, स्तन ं में तनाव, शारीररक दुबणलता,
हचडहचडापन।
उपचार
 आयुवेद में ल िा, िरी पहत्यां, जडी-बूहटयां, क
ै ष्मशशयम, ताम्र आहद का उपय ग माहसक
हवक
ृ हत में हकया जाता िै।
 ऐसी ष्मथथहत में रजप्रवतणननी वटी की द ग ली हदन में द बार गुनगुने जल या अक
ण सौंफ
अथवा र गानुसार दें।
 मािवारी कम ि त – कई ष्मस्त्रयां मािवारी न आने या बहुत कम आने से त्रस्त रिती िैं।
ऐसी ष्मथथहत में रीठे की हगरी क
े चूर्ण क समभाग गुड में हमलाकर जामुन जैसी बत्ी
बनाकर य हन में रखने से माहसक िमण आने लगता िै, यहद आवश्यक समझें, तब दू सरे
हदन भी ऐसी िी बत्ी पुनः तैयार कर य हन में रखें। इस उपाय से पिले लाल पानी हगरता
िै, हफर आतणव आने लगता िै। छ टी कटेली क
े बीज ं का चूर्ण 6 माशे की मात्रा में हनत्य
प्रातः एक बार देने से मािवारी खुलकर आने लगती िै। यि प्रय ग 3 हदन करने से िी
अपेहक्षत पररर्ाम देता िै।
श्वेि प्रदर
 भारतीय स्त्री क भी सबसे अहिक श्वेत प्रदर की हशकायत ि ती िै, श्वेत प्रदर ि ने क
े कई
कारर् हचहकत्सक ं ने बताए िैं-
 गुप्ांग ं की अस्वच्छता, खून की कमी, अहत मैथुन, अहिक उपवास, अहत श्रम, तेल,
मसाले, चरपरे व तीखे पदाथों का सेवन, कामुक हवचार, य हन में संसगण, य हन या गभाणशय
क
े मुंि पर छाले, ऋतुस्राव की हवक
ृ हत, गभाणशय श थ या गभणपात, अहिक सन्तान उत्पन्न
करना, अहिक स ना, मूत्र संथथान क
े संक्रमर्।
लक्षण
 श्वेत प्रदर क
े प्रारम्भ में स्त्री क दुबणलता का अनुभव ि ता िै, खून कम ि ने से चक्कर
आना, आंख ं क
े सामने अंिेरा छा जाना, भूख न लगना, शौच साफ न ि ना, बार-बार मूत्र
त्याग, पेट में भारीपन, कहट शूल, जी हमचलाना, य हन में खुजली ि ती िै, माहसक िमण से
पिले या बाद में सफ
े द लसदार स्राव ि ता िै, चेिरा पीला ि जाता िै। ज पुरुष ऐसी
ष्मस्त्रय ं से मैथुन करते िैं उन्ें भी यि र ग ि जाता िै। प्रहसि आयुवेदाचायण सुश्रुत क
े
अनुसार प्रदर र ग में अंगरवदन व पीडा अवश्य ि ती िै।
उपचार
 श्वेत प्रदर में ष्मस्त्रय ं क खाने-पीने में साविानी रखनी चाहिए, खट्टी-मीठी चीजें, तेल हमचण,
अहिक उष्ण, मादक पेय का त्याग करना चाहिए, गुप्ांग ं क हनयहमत साफ करना
चाहिए, खून की कमी क पूरा करने वाले खाद्य पदाथों का सेवन करें, बन्दग भी, पालक,
टमाटर, हसंघाडा, गूलर आहद फल ं क खाएं ।
 य हन क साबुन से अच्छी तरि हदन में 2-3 बार ि एं । आंवला, िल्दी लौथ, हभजष्ठ आहद
क
े चूर्ण क कपडे में लपेटकर उस प टली क य हन में रखें या जातीया, तेल, पयकाहद तेल
में रूई क हभग कर य हन क
े भीतर रखें और 3-4 घंटे बाद हनकालकर फ
ें क दें।
 खाने क
े हलए क
ु छ दवाइयां लेनी जरूरी िै-
 आर ग्यवहिणनी वटी- एक ग ली हदन में 3 बार पानी क
े साथ लें।
 अश काररष्ट- एक या द चम्मच हमलाकर भ जन क
े बाद हदन में द -द बार ल
 िाहत्रहनशा चूर्ण- 1/4-1/2 चम्मच हदन में द बार लें। ल घ्र चूर्ण-1/4-1/4 चम्मच हदन में द
बार लें।
 ल िासव- खून की कमी में इसका उपय ग फायदा करता िै। मात्रा अश काररष्ट समान िी
लें।
 नवायस लौि- 1/4 छ टी चम्मच हदन में दू ि क
े साथ तीन बार लें।
 नवजीवन रस- शिद क
े साथ सेवन करें।
 क
ु छ सामान्य उपचार ं का भी आगे वर्णन हकया जा रिा िै-
 आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क
े साथ हदन में 3 बार चाटें।
 द -तीन पक
े क
े ले हनत्य खाने से श्वेत प्रदर हमटता िै।
 गूलर क
े सूखे फल पीसकर हमश्री और शिद हमलाकर खाएं ।
 मुलिठी एक त ला, हमश्री द त ला, जीरा 6 माशा, अश क छाल क
े साथ छ: माशा हदन में
तीन बार लें।
 सफ
े द मूसली या ईसबग ल प्रात:काल शरबत क
े साथ हदन में द बार लें।
 हसंघाडा, ग खरू, बडी इलायची, बबूल की ग ंद, स्लैल का ग ंद, शक्कर समान मात्रा में
हमलाकर सुबि-शाम सेवन करें।
 बकरी क
े दू ि में मााँच रस हमलाकर पीएं ।
 आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क
े साथ चाटने से प्रदर हमटता िै।
 द -तीन पक
े क
े ले खाने से प्रदर र ग समूल नष्ट ि ता िै।
रि प्रदर
 ष्मस्त्रय ं क प्रहतमास लगभग 28 हदन क
े अन्तर से ज माहसक रजनाव हुआ करना िै वि
यहद हबना हकसी पीडा, अहनयहमतता और अस्वाभाहवकता क
े ि ता रिे त स्वस्य िै। यहद
ऐसा निीं ि ता त इसे माहसक िमण की अहनयहमतता किा जाता िै। ये अहनयहमतताएं कई
प्रकार की ि ती िैं। इनमें से एक व्याहि िै ‘रक्त प्रदर’।
 जब क ई स्त्री बहुत अहिक नमकीन, खट्टे, तेज हमचण-मसालेदार, दािकारक, अहिक
चबीयुक्त, मादक और मांसािारी व्यंजन ं का अहत सेवन करती िै और सुश्रुत क
े अनुसार
तदेवाहत प्रसंगेन प्रवृत्मनृताहवहप। असृग्दरं हवजानीयादत न्यद्रक्तलक्षात्। (सुश्रुत शारीर
2-20) अथाणत् अहत मैथुन क
े कारर् जब उसे ऋतुकाल या इसक
े अलावा हदन ं में ज्यादा
मात्रा में रक्तस्राव ि ता िै, तब इन कारर् ं से ि ने वाले अहिक रक्तस्राव क रक्त प्रदर या
असुंग्दर किते िैं। अपथ्य पदाथों का अहत सेवन, अहतकामुकता व अहत मैथुन, गभणपात,
अहिक श्रम व अहिक दौड-िूप तथा श क, मद, काम, क्र ि, ईर्ष्ाण, हचन्ता आहद से उत्पन्न
ि ने वाला मानहसक तनाव रक्त प्रदर उत्पन्न करने क
े कारर् ि ते िैं।
लक्षण
 रक्त प्रदर का प्रमुख लक्षर् त ऋतुकाल क
े हदन ं अत्यहिक मात्रा में या अहिक हदन ं तक
रक्तस्राव ि ते रिना िी िै, लेहकन इसक
े साथ िी सारे शरीर में हवशेषकर कमर, जांघ ं व
हपण्डहलय ं क
े अलावा पेट में नाहभ प्रदेश क
े नीचे श रगुल ि ना, शरीर का दुबला व
कमज र ि ते जाना, चेिरा पीला पड जाना, भ्रम, मूच्छच्छाण, आंख ं क
े सामने अंिेरा,
अहिक प्यास, शरीर में गमी बढना, हचडहचडापन, रक्ताल्पता, तन्द्रा और वातजन्य
व्याहियां उत्पन्न ि ना, इस र ग क
े अन्य लक्षर् िैं।
उपचार
 रक्त प्रदर की उपचार में इस बात का ध्यान रखना चाहिए हक शरीर में वात और हपत् की
ष्मथथहत क
ै सी िै। प्राय: रक्त प्रदर हपत् क
े क
ु हपत ि ने से ि ता िै। हचकनाई वाले, मिुर और
शीतल प्रक
ृ हत क
े पदाथण, घी, दू ि, क
े ला, हमश्री, श तल च नी (कबाबचीनी) चावल का
घ वन, शुि घी में तला हुआ ग ंद शक्कर क चाशनी क
े साथ सेवन करना आहद उपाय ं
से क
ु हपत हपत् का शमन ि ता िै। हपत् क
ु हपत करने वाला आिार-हविार और कामुक
हचन्तन तथा अहत मैथुन का त्याग कर हनम्नहलष्मखत घरेलू उपाय, लगातार 2-3 माि या पूर्ण
लाभ न ि ने तक करना चाहिए।
 िरी दू ब क जड सहित उखाडकर पानी से ि कर कचरा-हमट्टी साफ कर लें। यि दू ब
आपक
े लॉन, बगीचे या मैदान की ि सकती िै। पर गन्दे थथान की निीं ि नी चाहिए। इस
दू ब क चावल क
े घ वन (पानी) क
े साथ हसल पर खूब मिीन पीसकर कपडे से हनच डकर
इसका रस हनकालकर प्रात:काल एक बार हपएं , इस प्रय ग से रक्त प्रदर का स्राव बन्द ि
जाता िै। इसे 3-4 हदन पीना चाहिए।
 गूलर वृक्ष क
े साफ हकये हुए 5-6 फल या इसी वृक्ष की अन्तरछाल 20-25 ग्राम मात्रा में
घ ंट-पीसकर रस हनकाल लें और एक चम्मच शिद हमलाकर सुबि-शाम चाट लें।
योहन रोग
 य हन मागण में श थ, जलन, घाव, दुगणन्ध आना, लाली ि ना, सििास में कष्ट ि ना,
खुजली या क ई संक्रमर् (इंफ
े क्शन) क
े प्रभाव से हचटहचटािट ि ना आहद उपदव ं क दू र
करने क
े हलए’ घातवयाहद तेल’ का फािा प्रहतहदन य हन में रखने से सब उपद्रव नष्ट ि
जाते िैं।
 मैनफल, मुलिठी, भुनी हुई हफटहकरी अलग-अलग क
ू ट-पीसकर हमला लें। अमलतास
वृक्ष की छाल सुखा लें। छाल का एक टुकडा म टा-म टा क
ू टकर । हगलास पानी में रात
क डालकर रख दें।
 सुबि स्नान क
े समय मसल छानकर इस पानी से य हन क अन्दर तक अच्छी तरि ि एं या
ड
ू श कर लें। इसक
े बाद मैनफल-मुलिठी आहद क
े एक चम्मच चूर्ण क थ डा शिद
हमलाकर म टा गाढा लेप बनाकर इसे उंगली से य हन क
े अन्दर अच्छी तरि लगा लें या
इस चूर्ण में शिद न हमलाकर, क
े वल चूर्ण िी मलमल क
े कपडे पर रखकर छ टी-सी
प टली बनाकर ड रे से बांि लें और रात क स ते समय य हन में रख हलया करें। लगातार
क
ु छ हदन ं तक यि प्रय ग करने से ढीली-फ
ै ली हुई हशहथल और कमज र य हन पिले जैसी
तंग, मजबूत तथा नीर ग ि जाती िै।
 शरपुंखा का क
ु टा-हपसा चूर्ण 25 ग्राम, नीम की पत्ी 25 ग्राम, हत्रफला चूर्ण व हपसी
मुलिठी दस-दस ग्राम-चार ं क एक लीटर पानी में डालकर उबालें। जब खूब अच्छा
उबल जाए तब उतारकर म टे कपडे से छानकर ठं डा कर लें। इसमें 1-2 चम्मच शिद
घ लकर, स्नान करते समय, इस पानी से य हन मागण क खूब अच्छी तरि घ एं अथवा दू श
पाइप से इश करें। रबर की इश प्राइप क
े हमस्ट की दुकान से हमलती िै। सप्ाि में द बार
इश करें (माहसक िमण क
े हदन ं क छ डकर)।
गर्ाििी को िमन
 गर्ाििी स्त्री को िमन प्राय: सुबि से द पिर तक ि ता िै। इस कारर् गभणवता क क
ु छ
 भी खाना निीं सुिाता। स्वाहदष्ट भ जन भी बेस्वाद प्रतीत ि ता िै। इसका उपचार
आवश्यक िै, क् ंहक गभणवती यहद पौहष्टक भ जन निीं लेगी, त स्वयं भी दुबणल ि जाएगी
तथा गभण का प षर् भी ठीक ढंग से निीं ि पाएगा, ऐसी ष्मथथहत में हनम्न आयुवेहदक य ग
बहुत फायदेमंद ि सकते िैं-
 अनार या संतरे का जूस हपलाना चाहिए, इससे वमन में त लाभ ि ता िी िै, शरीर क भी
प षर् हमलता िै।
 छ टी इलायची भूनकर पीस लें। चार रत्ी की मात्रा में शिद में हमलाकर द -तीन बार
चटाने से भी वमन में लाभ ि ता िै।
 हदन में तीन-चार बार सौंफ का अक
ण पानी में हमलाकर हपलाना भी गभणवती क
े बमन एवं
पाचन हवकार में लाभ पहुंचाता िै।
 द दाना काली हमचण, पांच मुनक्का और 20 ग्राम हमश्री एक कप पानी में पीस-छानकर
पीना भी फायदेमंद ि ता िै।
 द -तीन ग्राम िहनया का चूर्ण चावल ं क
े ि वन क
े साथ ष्मखलाने से भी वमन में लाभ ि ता िै
और। हचत् शांत ि जाता िै।
बांझपन
 स्त्री द्वारा गभण िारर् न कर पाना या स्त्री क गभणवती करने में पुरुष का अक्षम ि ना
वंध्यत्व र ग किलाता िै। पुरुष की नपुंसकता तथा स्त्री का ठं डापन इस र ग का प्रमुख
कारर् िै। इन द न ं िी कारर् ं की वजि से सफल संभ ग हक्रया सम्पन्न निीं ि पाती।
यहद ऐसा हनरन्तर ि ता रिता िै त इसे वंध्यत्व की संज्ञा दी जाती िै।
 आयुवेद क
े अनुसार, वीयण में शुक्रकीट ं की कमी या उनका हबल्क
ु ल न ि ना इस र ग का
सवणप्रमुख कारर् िै। इसक
े अहतररक्त जननांग ं का च टग्रस्त ि ना, हडम्ब ग्रहथय ं का
संकरापन तथा प्रजनन अंग ं में हकसी प्रकार का अन्य द ष ि ने पर भी वंध्यत्व की ष्मथथहत
ि सकती िै। उपदंश तथा उष्णवात भी इस र ग क
े कारक ि सकते िैं।
 यिां िम पुरुष तथा स्त्री द न ं बंध्यत्व पर अलग-अलग प्रकाश डाल रिे िैं।
महिला बांझपन
 ष्मस्त्रय ं में यि र ग अहिकतर गभाणशय क
े हवकार ं क
े कारर् िी ि ता िै। गभाणशय क
े मुंि
का संकरा ि ना या गभाणशय का अपने थथान से िट जाना तथा रक्ताल्पता, क
ु प षर् व
रक्त हवकार क
े कारर् स्त्री-बांझपन ि ता िै।
 आयुवेद में इसका सम्बंि हत्रद ष (वात, हपत्, कफ) जन्य भी माना गया िै। इसक
े
अहतररक्त बहुत अहिक म टापा भी सफल संभ ग में बािक ि ता िै, इस कारर् भी
वंध्यत्व की समस्या उत्पन्न ि सकती िै।
उपचार
 ‘पिला घृत’ ष्मस्त्रय ं क
े हलए इस र ग की रामबार् औषहि िै। द चम्मच, हदन में द बार
दू ि क
े साथ खाली पेट िी सेवन करने पर चमत्काररक लाभ ि ता िै। 150 हमग्रा. वंग
भस्म हदन में द बार शिद क
े साथ लेने पर तथा हशलाजीत क
े सेवन से भी वंध्यत्व र ग दू र
ि ता िै।
 ‘बाला’ नामक पौिे की जड दू ि तथा तेल में उबालकर क
ु नक
ु ने पानी में इसे डालकर य हन
की भीतर से सफाई करें। इससे गभणिारर् की राि में ि ने वाली हनषेचन हक्रया सरल ि
जाती िै। इसी जड का औषहियुक्त तेल एक चम्मच दू ि में हमलाकर सेवन करने से भी
लाभ ि ता िै। वंध्यत्व हनवारर् िेतु स्त्री क हकसी भी औषहि का सेवन करने से पूवण
अपनी तथा अपने पहत क
े वीयण की जांच अवश्य करवानी चाहिए। क् ंहक यि र ग
अहिकांशतः शुक्रार्ुओं की कमज री से ि ता िै और उपचार की आवश्यकता स्त्री क
निीं अहपतु पुरुष क ि ती िै।
 वंध्यत्व से पीहडत स्त्री क तीक्ष्र् तथा क्षारीय पदाथों का सेवन निीं करना चाहिए। फल ं
तथा हमष्ठान्न ं का सेवन अहिक करें तथा भ जन में पौहष्टक आिार क भरपूर मात्रा का भी
ध्यान रखें। व्यायाम भी लाभकारी रिता िै।
स्त्री धमा (माहसक) न िोिा िो िो
 मछली प्रहतहदन खाएं त माहसक हनहित ि गा।
 साठी क
े बीज, कडवी तुम्बी, दन्ती, पीपल, गुड, मेंढल, दारू का झाग, जवाखार, थूिर
दू ि समान मात्रा में लेकर पीसकर बारीक बना लें और य हन में रखें |
 राई, हवक्सवार, खुरासानी, वच, माल कांगनी (समान मात्रा) क बारीक पीस कर 5 हदन
ठं डे पानी से पीएं त अवश्य स्त्रीिमण ि गा। (इसमें हदए अन्य उपाय भी हकए जा सकते
िैं।) य हन में नद या रुहिर क
े जमाव से बडिल क
े फल जैसी गांठ पड जाती िै त भी
माहसक बन्द ि ता िै इसक
े हलए-
 क
ू कड भंगरे की जड क चावल क
े पानी में पीसकर छानकर हपएं ।
 मजीठ, मुलिठी, क
ू ट, हत्रफला, हमश्री, ष्मखरैटी, भदे, अश्वगन्ध, अजम द, द न ं िल्दी,
हपयापुष्प, क
ु टकी, दाख, कमल की जड, लाल चन्दन 10-10 ग्राम, गाय का घृत 250
ग्राम, शतावरी का रस । हकग्रा. लेकर सभी औषहिय ं क पीसकर गाय क
े घी और
शतावरी क
े रस में मन्द आंच पर पकाएं , घी बच जाए त ठं डा करक
े छान कर रख लें।
15 ग्राम घी प्रहतहदन प्रात:काल हपए त स्त्री क
े समस्त य हन हवकार दू र ि जाएं गे और
पुरुष क
े बल वीयण पराक्रम में वृष्मि ि
सन्तानप्रद औषहधयां
 ष्मखरैटी, गंगेरन की छाल, महुआ, बड क
े अंक
ु र, नाग क
े सर समान मात्रा में लेकर बारीक
पीस लें, इस चूर्ण क कपडछन करक
े डब्े में बन्द करक
े रख लें। 20 ग्राम चूर्ण, 50 ग्राम
शिद क
े साथ प्रहतहदन हपएं त एक मिीने में िी गभणिारर् करें।
 काला हतल, स ंठ, हमचण, पीपल, भारंगी, गुड, अश्वगन्ध 5-5 ग्राम लेकर नौक
ु ट करक
े काढा
बनाएं और ऋतु क
े समय 15 हदन तक हपएं ।
 सफ
े द पीपल की जड, सफ
े द जीरा, शरफ ंका-समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण
बना लें। 10 ग्राम प्रहतहदन गाय क
े दू ि क
े साथ ऋतुकाल में हपएं ।
 हबजौरे का बीज, अरण्ड की अंडौली (फल) पीसकर 20 ग्राम प्रहतहदन गाय क
े घी और
दू ि क
े साथ ऋतुकाल में 15 हदन सेवन करें।
 पीपल, स ंठ, हमचण, नागक
े सर चार ं क बारीक पीसकर घी में हमलाकर ऋतुकाल में
सप्ाि भर पीएं ।
गर्ाकाल की औषहधयां
 डाभ की जड, कास की जड, ग खरू की जड क समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे गाय
क
े दू ि में औटा कर हपलाने से गहभणर्ी क
े हृदय का शूल तुरन्त दू र ि ता िै।
 डाभ की जड, दू ब की जड, कास की जड समान मात्रा में लेकर, पीस कर दू ि में औटा
कर देने से गहभणर्ी क मूत्र खुलकर आता िै।
 मुलिठी, शाल क
े बीज, क्षीर, काक ली, देवदारू लूर्ाक् (नौहनया शाक, ल ररया शाक)
काला हतले, ब ल, पीपल, रासना, शतावरी, कमल की जड, जवाला। गौरी क
े सर, द न ं
कटैली व बाल संभाडा, कसेरू, हमश्री समान मात्रा में लेकर पीस लें 30 ग्राम का काढा
बना कर प्रहतहदन गभणकाल क
े 7 मिीने तक हपलाए त क ई उपद्रव न ि , गभणपात न ि ,
गभण नीर ग एवं पुष्ट रिे।
 आठिां मिीना: क
ैं थ की जड, बेल की जड, कटेली, पट ल की जड, साठी की जड क
पीसकर दू ि में औटा कर मिीने भर आठवें मिीने में िैं।
 निां मिीनााः मुलिठी, जवासा, क्षीर काक ली, गौरीसर सब समान मात्रा में लेकर चूर्ण
बना लें 20 ग्रा. का काढा बनाकर प्रहतहदन दें।
 कभी-कभी वायु क
े कारर् गभण सूखने लगता िै-दू ि, मांस का श रबा एवं अन्य पौहष्टक
आिार दें।
 प्रसि औषहधाः प ई की जड क
े काढे में हतल हमलाकर पेट पर लेप करें। पीपल तथा
खुरासानी बच क पानी से बारीक पीस पर य हन पर लेप करें।
 हबजौरा की जड तथा महुआ क पीस का घृत क
े साथ पीयें।
 स ंढा की जड कमर से बांि दें।
प्रसि क
े बाद की परेशाहनयां
 अंग-अंग में पीडा, खांसी, ज्वर, शरीर भारी, प्यास अहिक, सूजन, उदर शूल, अहतसार,
अफारा, अरुहच, चक्कर आहद इस र ग क
े प्रमुख लक्षर् िैं।
 दशमूलाररष्ट या दशमूल का काढा प्रहत हदन हपएं ।
 स ंठ, गुरुच, पीपल, पीपलामूल चव्य, हचत्रक, नेत्रबाला, सिजन क पीसकर खुरासानी,
बच, देवदारू, पीपल, सौंठ, क
ू ठ, हचरायता, जायफल, नागरम था, काढा बनाएं और
प्रहतहदन 40 हदन तक हपलाएं ।
 खुरासानी , बच , देवदारू , पीपल , स ंठ , क
ू ठ , हचरायता , जायफल , नागरम था , िरड
की छाल, गजपीपल, िमासा, ग खरू, जवासा, कटेली, गुरुच, कालाजीरा समान मात्रा में
लेकर काढा बनाएं एं व िींग और सेंिा नमक क
े साथ हपएं । यि प्रसूहतका क
े साथ-साथ
 प्रसव क
े बाद क
े तमाम उपद्रव दुबणलता आहद दू र करने की औषहि िै (पौहष्टक वा सुपाच्
आिार गर दें। खट्टी तीखी एवं उष्ण वस्तुओं से परिेज रखें)।
 पंचजीरा पाकाः द न ं जीरा, सौंफ, िहनया, मेथी, अजवायन, पीपल, पीपरामूल, अजम द,
झाऊ की जड की छाल, बेरे की मींगी, कट, कबीला सब समान मात्रा में 20-20 ग्राम
लेकर चूर्ण करक
े छान लें। इसे । हकग्रा. ग घृत में डाल कर पकाएं अब । हकग्रा. गाय क
े
दू ि में घृत में साथ ख वा बनाएं और इसे खूब भूने 2 हकग्रा. खाण्ड की चाशनी में 15-15
ग्राम का लड्ड
ू बनाएं । लड्ड
ू प्रहतहदन ष्मखलाएं ।
 पुरुष बंध्याकरण : पुरुष ं में बंध्याकरर् की ष्मथथहत वीयण में शुक्रार्ुओं की कमी क
े कारर्
ि ती िै। लम्बी बीमारी, गुप् र ग या गुप्ांग पर च ट लगने क
े कारर् ऐसा ि सकता िै।
 यिां यि स्पष्ट कर देना आवश्यक िै हक वंध्याकरर् की ष्मथथहत पुरुष नपुंसकता से हनतान्त
हभन्न िै। बंध्याकरर् में पुरुष प्रजनन क
े अय ग्य ि ता िै जबहक नपुंसकता की ष्मथथहत में
वि सफल संभ ग क
े लायक िी निीं रिता।
उपचार
 अश्वगंि इस र ग की रामबार् औषहि िै। हदन में द बार एक-एक चम्मच अश्वगंि चूर्ण
दू ि क
े साथ सेवन करने से बहुत लाभ ि ता िै। भ जन क
े बाद 100 हमग्रा. अश्वगंिाररष्ट क
े
सेवन से भी लाभ ि ता िै।Read more…

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Mahilaon Ke Vishesh Rog: Chunautiya Aur Samadhan

  • 1. Mahilaon Ke Vishesh Rog: Chunautiya Aur Samadhan ( महिलाओं क े हिशेष रोग: चुनौहिया और समाधान )
  • 2. महिलाओं क े हिशेष रोग: चुनौहिया और समाधान  महिलाओं का शारीररक ढांचा पुरुष ं से काफी मामल ं में अलग िै। उनक े क ु छ अंग ऐसे िैं, ज अत्यंत संवेदनशील िैं और मित्वपूर्ण भी। इन्ीं कारर् ं से क ु छ र ग ऐसे िैं ज क े वल महिलाओं क िी ि ते िैं। यिां क ु छ ऐसे र ग ं की जानकारी दी जा रिी िै, हजन्ें आयुवेद हचहकत्सा द्वारा बडी आसानी से दू र हकया जा सकता िै। एनीहमया अर्ााि् पांडु रोग  रक्ताल्पता या एनीहमया क िी आयुवेद में पाण्डु र ग की संज्ञा दी गई िै। इस र ग में रक्त की लाल रक्त कहर्काओं में कमी ि ने क े साथ-साथ रुहिर वहर्णका (िीम ग्ल हबन) का स्तर भी हगर जाता िै।
  • 3.  इसक े अहतररक्त च ट लगने पर अत्यहिक रक्तस्राव, माहसक िमण अथवा प्रसव क े समय अहिक रक्त स्राव आहद अनेक कारर् ं से पाण्डु र ग ि सकता िै। संक्रामक या अहिक लम्बे समय तक चलने वाले र ग क े बाद तथा लौि तत्व ं की कमी से भी प्राय: पाण्डुर ग ि ता देखा गया िै। लक्षण  पाण्डु र ग ि ने पर शारीररक शक्ति घटने क े साथ त्वचा का रंग सफ े द (रक्तिीन) ि जाता िै। हृदय अहिक िडकता िै और पसीना बहुत आता िै। थ डा-सा चलने-हफरने अथवा पररश्रम करने पर र गी बहुत अहिक थकान अनुभव करता िै।  यहद क ु छ हदन ं तक इसकी उपचार न कराई जाए त अहिमांद्य, कहटशूल (कमर में ददण), पांव ं में ददण, आंख ं क े नीचे श ि क े हचन्, कान ं में अजीब-सी सुरसुरािट, स्वभाव में हचडहचडापन और बार-बार िूक आने क े लक्षर् प्रतीत ि ते िैं। उपचार  आयुवेद में नवायस लौि क इस र ग की सवणश्रेष्ठ औषहि बताया गया िै। 400 हमग्रा नवायस लौि प्रहतहदन तीन बार शिद में हमलाकर चटाने से बहुत लाभ ि ता िै।
  • 4.  मण्ड ू र भस्म की 250 हमग्रा. मात्रा सुबि-शाम पुननणवा क े क्वाथ (काढे) से देने पर श्लैष्मिक पाण्डु र ग में लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में अहतसार (दस्त) ि ने पर लौि पपणटी 125 हमग्रा. हदन में द बार जीरे क पानी में हभग कर उस छहनत पानी से लें। ष्मस्वय ं में पाण्डु र ग क े साथ प्रदर ि ने पर 250 हमग्रा. बेल पपणटी हदन में द बार शिद क े साथ सेवन करने से बहुत लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में पाचन हक्रया क्षीर् ि जाती िै, इसहलए आिार क सरलता से पचाने क े हलए आसव ं का उपय ग बहुत लाभप्रद रिता िै।  पाण्डु र ग में श थ ि ने पर 15-20 हमली. भ जन क े बाद पुननणवासव में इतना िी जल हमलाकर पीने से बहुत लाभ ि ता िै। क ु छ हचहकत्सक ं क े अनुसार पुननणवासव, क ु मायाणसव 10-10 हमली, और ल िासव 15 हमली. इतने िी जल में हमलाकर पीने से अहतशीघ्र लाभ ि ता िै।  बेल क े ताजे पत् ं का 4-5 ग्राम रस लेकर एक ग्राम काली हमचण क पीसकर उसमें हमलाकर खाने से पाण्डु र ग नष्ट ि ता िै। पाण्डु र ग में मूली गुर्कारी ि ती िै। मूली का अनेक प्रकार से उपय ग हकया जा सकता िै। मूली क े छ टे-छ टे टुकडे करक े जामुन या गन्ने क े हसरक े में डालकर रख लें। प्रहतहदन हसरक े की मूली खाने से बहुत लाभ ि ता िै। मूली का रस हनकालकर सेंिा नमक हमलाकर पीने से शीघ्र लाभ ि ता िै।
  • 5.  नीबू तथा अदरक का रस और मूली क े छ टे-छ टे टुकडे हमलाकर खाने से बहुत लाभ ि ता िै। लवर्भास्कर चूर्ण क े साथ खाने पर भी लाभ ि ता देखा गया िै।  पाचन हक्रया क सन्तुहलत करने क े हलए हलव-52 या अजुणनाररष्ट हपलाना चाहिए, अजुणनाररष्ट का उपय ग वयस्क स्त्री-पुरुष भी कर सकते िैं। इसक े सेवन से भ जन शीघ्र पचता िै और रक्त का अहिक हनमाणर् ि ता िै।  फल ं व उनक े रस से बच् ं क लौि, क ै ष्मशशयम तथा हवटाहमन हमलते िैं। सुपाच्य ि ने क े कारर् इनकी पाचन हक्रया भी सरलता से ि ती िै। िरी सष्मिय ं में लौि देव अहिक ि ता िै, पालक, मेथी, बथुआ आहद से लौि तत्व खूब रस, टमाटर, गाजर आहद क े सेवन से बहुत लाभ ि ता िै। माहसक संबंधी हिकार रिाहधक्य  माहसक हवक ृ हत का सबसे मुख्य लक्षर् िै माहसक रक्त का अहिक मात्रा में आना ज कभी पतला, कभी गाढा अथवा कभी िब् ं क े रूप में आता िै। क ु छ महिलाओं में प्रहतमाि आने वाले खून की मात्रा में वृष्मि ि ती िै। क ु छ महिलाओं में ऋतुकाल क े समय अत्यहिक पीडा ि ती िै तथा क ु छ क क ई कष्ट निीं ि ता।
  • 6.
  • 7.  क ु छ अन्य लक्षण - पेट व कमर ददण, हसर ददण एवं उलटी लगना, पैर ं पर तथा सारे शरीर पर सूजन, य हन द्वार में खुजली, अजीर्ण, कि, स्तन ं में तनाव, शारीररक दुबणलता, हचडहचडापन। उपचार  आयुवेद में ल िा, िरी पहत्यां, जडी-बूहटयां, क ै ष्मशशयम, ताम्र आहद का उपय ग माहसक हवक ृ हत में हकया जाता िै।  ऐसी ष्मथथहत में रजप्रवतणननी वटी की द ग ली हदन में द बार गुनगुने जल या अक ण सौंफ अथवा र गानुसार दें।  मािवारी कम ि त – कई ष्मस्त्रयां मािवारी न आने या बहुत कम आने से त्रस्त रिती िैं। ऐसी ष्मथथहत में रीठे की हगरी क े चूर्ण क समभाग गुड में हमलाकर जामुन जैसी बत्ी बनाकर य हन में रखने से माहसक िमण आने लगता िै, यहद आवश्यक समझें, तब दू सरे हदन भी ऐसी िी बत्ी पुनः तैयार कर य हन में रखें। इस उपाय से पिले लाल पानी हगरता िै, हफर आतणव आने लगता िै। छ टी कटेली क े बीज ं का चूर्ण 6 माशे की मात्रा में हनत्य प्रातः एक बार देने से मािवारी खुलकर आने लगती िै। यि प्रय ग 3 हदन करने से िी अपेहक्षत पररर्ाम देता िै।
  • 8. श्वेि प्रदर  भारतीय स्त्री क भी सबसे अहिक श्वेत प्रदर की हशकायत ि ती िै, श्वेत प्रदर ि ने क े कई कारर् हचहकत्सक ं ने बताए िैं-  गुप्ांग ं की अस्वच्छता, खून की कमी, अहत मैथुन, अहिक उपवास, अहत श्रम, तेल, मसाले, चरपरे व तीखे पदाथों का सेवन, कामुक हवचार, य हन में संसगण, य हन या गभाणशय क े मुंि पर छाले, ऋतुस्राव की हवक ृ हत, गभाणशय श थ या गभणपात, अहिक सन्तान उत्पन्न करना, अहिक स ना, मूत्र संथथान क े संक्रमर्। लक्षण  श्वेत प्रदर क े प्रारम्भ में स्त्री क दुबणलता का अनुभव ि ता िै, खून कम ि ने से चक्कर आना, आंख ं क े सामने अंिेरा छा जाना, भूख न लगना, शौच साफ न ि ना, बार-बार मूत्र त्याग, पेट में भारीपन, कहट शूल, जी हमचलाना, य हन में खुजली ि ती िै, माहसक िमण से पिले या बाद में सफ े द लसदार स्राव ि ता िै, चेिरा पीला ि जाता िै। ज पुरुष ऐसी ष्मस्त्रय ं से मैथुन करते िैं उन्ें भी यि र ग ि जाता िै। प्रहसि आयुवेदाचायण सुश्रुत क े अनुसार प्रदर र ग में अंगरवदन व पीडा अवश्य ि ती िै।
  • 9. उपचार  श्वेत प्रदर में ष्मस्त्रय ं क खाने-पीने में साविानी रखनी चाहिए, खट्टी-मीठी चीजें, तेल हमचण, अहिक उष्ण, मादक पेय का त्याग करना चाहिए, गुप्ांग ं क हनयहमत साफ करना चाहिए, खून की कमी क पूरा करने वाले खाद्य पदाथों का सेवन करें, बन्दग भी, पालक, टमाटर, हसंघाडा, गूलर आहद फल ं क खाएं ।  य हन क साबुन से अच्छी तरि हदन में 2-3 बार ि एं । आंवला, िल्दी लौथ, हभजष्ठ आहद क े चूर्ण क कपडे में लपेटकर उस प टली क य हन में रखें या जातीया, तेल, पयकाहद तेल में रूई क हभग कर य हन क े भीतर रखें और 3-4 घंटे बाद हनकालकर फ ें क दें।  खाने क े हलए क ु छ दवाइयां लेनी जरूरी िै-  आर ग्यवहिणनी वटी- एक ग ली हदन में 3 बार पानी क े साथ लें।  अश काररष्ट- एक या द चम्मच हमलाकर भ जन क े बाद हदन में द -द बार ल  िाहत्रहनशा चूर्ण- 1/4-1/2 चम्मच हदन में द बार लें। ल घ्र चूर्ण-1/4-1/4 चम्मच हदन में द बार लें।  ल िासव- खून की कमी में इसका उपय ग फायदा करता िै। मात्रा अश काररष्ट समान िी लें।
  • 10.  नवायस लौि- 1/4 छ टी चम्मच हदन में दू ि क े साथ तीन बार लें।  नवजीवन रस- शिद क े साथ सेवन करें।  क ु छ सामान्य उपचार ं का भी आगे वर्णन हकया जा रिा िै-  आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क े साथ हदन में 3 बार चाटें।  द -तीन पक े क े ले हनत्य खाने से श्वेत प्रदर हमटता िै।  गूलर क े सूखे फल पीसकर हमश्री और शिद हमलाकर खाएं ।  मुलिठी एक त ला, हमश्री द त ला, जीरा 6 माशा, अश क छाल क े साथ छ: माशा हदन में तीन बार लें।  सफ े द मूसली या ईसबग ल प्रात:काल शरबत क े साथ हदन में द बार लें।  हसंघाडा, ग खरू, बडी इलायची, बबूल की ग ंद, स्लैल का ग ंद, शक्कर समान मात्रा में हमलाकर सुबि-शाम सेवन करें।  बकरी क े दू ि में मााँच रस हमलाकर पीएं ।  आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क े साथ चाटने से प्रदर हमटता िै।
  • 11.  द -तीन पक े क े ले खाने से प्रदर र ग समूल नष्ट ि ता िै। रि प्रदर  ष्मस्त्रय ं क प्रहतमास लगभग 28 हदन क े अन्तर से ज माहसक रजनाव हुआ करना िै वि यहद हबना हकसी पीडा, अहनयहमतता और अस्वाभाहवकता क े ि ता रिे त स्वस्य िै। यहद ऐसा निीं ि ता त इसे माहसक िमण की अहनयहमतता किा जाता िै। ये अहनयहमतताएं कई प्रकार की ि ती िैं। इनमें से एक व्याहि िै ‘रक्त प्रदर’।  जब क ई स्त्री बहुत अहिक नमकीन, खट्टे, तेज हमचण-मसालेदार, दािकारक, अहिक चबीयुक्त, मादक और मांसािारी व्यंजन ं का अहत सेवन करती िै और सुश्रुत क े अनुसार तदेवाहत प्रसंगेन प्रवृत्मनृताहवहप। असृग्दरं हवजानीयादत न्यद्रक्तलक्षात्। (सुश्रुत शारीर 2-20) अथाणत् अहत मैथुन क े कारर् जब उसे ऋतुकाल या इसक े अलावा हदन ं में ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव ि ता िै, तब इन कारर् ं से ि ने वाले अहिक रक्तस्राव क रक्त प्रदर या असुंग्दर किते िैं। अपथ्य पदाथों का अहत सेवन, अहतकामुकता व अहत मैथुन, गभणपात, अहिक श्रम व अहिक दौड-िूप तथा श क, मद, काम, क्र ि, ईर्ष्ाण, हचन्ता आहद से उत्पन्न ि ने वाला मानहसक तनाव रक्त प्रदर उत्पन्न करने क े कारर् ि ते िैं।
  • 12. लक्षण  रक्त प्रदर का प्रमुख लक्षर् त ऋतुकाल क े हदन ं अत्यहिक मात्रा में या अहिक हदन ं तक रक्तस्राव ि ते रिना िी िै, लेहकन इसक े साथ िी सारे शरीर में हवशेषकर कमर, जांघ ं व हपण्डहलय ं क े अलावा पेट में नाहभ प्रदेश क े नीचे श रगुल ि ना, शरीर का दुबला व कमज र ि ते जाना, चेिरा पीला पड जाना, भ्रम, मूच्छच्छाण, आंख ं क े सामने अंिेरा, अहिक प्यास, शरीर में गमी बढना, हचडहचडापन, रक्ताल्पता, तन्द्रा और वातजन्य व्याहियां उत्पन्न ि ना, इस र ग क े अन्य लक्षर् िैं। उपचार  रक्त प्रदर की उपचार में इस बात का ध्यान रखना चाहिए हक शरीर में वात और हपत् की ष्मथथहत क ै सी िै। प्राय: रक्त प्रदर हपत् क े क ु हपत ि ने से ि ता िै। हचकनाई वाले, मिुर और शीतल प्रक ृ हत क े पदाथण, घी, दू ि, क े ला, हमश्री, श तल च नी (कबाबचीनी) चावल का घ वन, शुि घी में तला हुआ ग ंद शक्कर क चाशनी क े साथ सेवन करना आहद उपाय ं से क ु हपत हपत् का शमन ि ता िै। हपत् क ु हपत करने वाला आिार-हविार और कामुक हचन्तन तथा अहत मैथुन का त्याग कर हनम्नहलष्मखत घरेलू उपाय, लगातार 2-3 माि या पूर्ण लाभ न ि ने तक करना चाहिए।
  • 13.  िरी दू ब क जड सहित उखाडकर पानी से ि कर कचरा-हमट्टी साफ कर लें। यि दू ब आपक े लॉन, बगीचे या मैदान की ि सकती िै। पर गन्दे थथान की निीं ि नी चाहिए। इस दू ब क चावल क े घ वन (पानी) क े साथ हसल पर खूब मिीन पीसकर कपडे से हनच डकर इसका रस हनकालकर प्रात:काल एक बार हपएं , इस प्रय ग से रक्त प्रदर का स्राव बन्द ि जाता िै। इसे 3-4 हदन पीना चाहिए।  गूलर वृक्ष क े साफ हकये हुए 5-6 फल या इसी वृक्ष की अन्तरछाल 20-25 ग्राम मात्रा में घ ंट-पीसकर रस हनकाल लें और एक चम्मच शिद हमलाकर सुबि-शाम चाट लें। योहन रोग  य हन मागण में श थ, जलन, घाव, दुगणन्ध आना, लाली ि ना, सििास में कष्ट ि ना, खुजली या क ई संक्रमर् (इंफ े क्शन) क े प्रभाव से हचटहचटािट ि ना आहद उपदव ं क दू र करने क े हलए’ घातवयाहद तेल’ का फािा प्रहतहदन य हन में रखने से सब उपद्रव नष्ट ि जाते िैं।  मैनफल, मुलिठी, भुनी हुई हफटहकरी अलग-अलग क ू ट-पीसकर हमला लें। अमलतास वृक्ष की छाल सुखा लें। छाल का एक टुकडा म टा-म टा क ू टकर । हगलास पानी में रात क डालकर रख दें।
  • 14.
  • 15.  सुबि स्नान क े समय मसल छानकर इस पानी से य हन क अन्दर तक अच्छी तरि ि एं या ड ू श कर लें। इसक े बाद मैनफल-मुलिठी आहद क े एक चम्मच चूर्ण क थ डा शिद हमलाकर म टा गाढा लेप बनाकर इसे उंगली से य हन क े अन्दर अच्छी तरि लगा लें या इस चूर्ण में शिद न हमलाकर, क े वल चूर्ण िी मलमल क े कपडे पर रखकर छ टी-सी प टली बनाकर ड रे से बांि लें और रात क स ते समय य हन में रख हलया करें। लगातार क ु छ हदन ं तक यि प्रय ग करने से ढीली-फ ै ली हुई हशहथल और कमज र य हन पिले जैसी तंग, मजबूत तथा नीर ग ि जाती िै।  शरपुंखा का क ु टा-हपसा चूर्ण 25 ग्राम, नीम की पत्ी 25 ग्राम, हत्रफला चूर्ण व हपसी मुलिठी दस-दस ग्राम-चार ं क एक लीटर पानी में डालकर उबालें। जब खूब अच्छा उबल जाए तब उतारकर म टे कपडे से छानकर ठं डा कर लें। इसमें 1-2 चम्मच शिद घ लकर, स्नान करते समय, इस पानी से य हन मागण क खूब अच्छी तरि घ एं अथवा दू श पाइप से इश करें। रबर की इश प्राइप क े हमस्ट की दुकान से हमलती िै। सप्ाि में द बार इश करें (माहसक िमण क े हदन ं क छ डकर)। गर्ाििी को िमन  गर्ाििी स्त्री को िमन प्राय: सुबि से द पिर तक ि ता िै। इस कारर् गभणवता क क ु छ
  • 16.  भी खाना निीं सुिाता। स्वाहदष्ट भ जन भी बेस्वाद प्रतीत ि ता िै। इसका उपचार आवश्यक िै, क् ंहक गभणवती यहद पौहष्टक भ जन निीं लेगी, त स्वयं भी दुबणल ि जाएगी तथा गभण का प षर् भी ठीक ढंग से निीं ि पाएगा, ऐसी ष्मथथहत में हनम्न आयुवेहदक य ग बहुत फायदेमंद ि सकते िैं-  अनार या संतरे का जूस हपलाना चाहिए, इससे वमन में त लाभ ि ता िी िै, शरीर क भी प षर् हमलता िै।  छ टी इलायची भूनकर पीस लें। चार रत्ी की मात्रा में शिद में हमलाकर द -तीन बार चटाने से भी वमन में लाभ ि ता िै।  हदन में तीन-चार बार सौंफ का अक ण पानी में हमलाकर हपलाना भी गभणवती क े बमन एवं पाचन हवकार में लाभ पहुंचाता िै।  द दाना काली हमचण, पांच मुनक्का और 20 ग्राम हमश्री एक कप पानी में पीस-छानकर पीना भी फायदेमंद ि ता िै।  द -तीन ग्राम िहनया का चूर्ण चावल ं क े ि वन क े साथ ष्मखलाने से भी वमन में लाभ ि ता िै और। हचत् शांत ि जाता िै।
  • 17. बांझपन  स्त्री द्वारा गभण िारर् न कर पाना या स्त्री क गभणवती करने में पुरुष का अक्षम ि ना वंध्यत्व र ग किलाता िै। पुरुष की नपुंसकता तथा स्त्री का ठं डापन इस र ग का प्रमुख कारर् िै। इन द न ं िी कारर् ं की वजि से सफल संभ ग हक्रया सम्पन्न निीं ि पाती। यहद ऐसा हनरन्तर ि ता रिता िै त इसे वंध्यत्व की संज्ञा दी जाती िै।  आयुवेद क े अनुसार, वीयण में शुक्रकीट ं की कमी या उनका हबल्क ु ल न ि ना इस र ग का सवणप्रमुख कारर् िै। इसक े अहतररक्त जननांग ं का च टग्रस्त ि ना, हडम्ब ग्रहथय ं का संकरापन तथा प्रजनन अंग ं में हकसी प्रकार का अन्य द ष ि ने पर भी वंध्यत्व की ष्मथथहत ि सकती िै। उपदंश तथा उष्णवात भी इस र ग क े कारक ि सकते िैं।  यिां िम पुरुष तथा स्त्री द न ं बंध्यत्व पर अलग-अलग प्रकाश डाल रिे िैं। महिला बांझपन  ष्मस्त्रय ं में यि र ग अहिकतर गभाणशय क े हवकार ं क े कारर् िी ि ता िै। गभाणशय क े मुंि का संकरा ि ना या गभाणशय का अपने थथान से िट जाना तथा रक्ताल्पता, क ु प षर् व रक्त हवकार क े कारर् स्त्री-बांझपन ि ता िै।
  • 18.  आयुवेद में इसका सम्बंि हत्रद ष (वात, हपत्, कफ) जन्य भी माना गया िै। इसक े अहतररक्त बहुत अहिक म टापा भी सफल संभ ग में बािक ि ता िै, इस कारर् भी वंध्यत्व की समस्या उत्पन्न ि सकती िै। उपचार  ‘पिला घृत’ ष्मस्त्रय ं क े हलए इस र ग की रामबार् औषहि िै। द चम्मच, हदन में द बार दू ि क े साथ खाली पेट िी सेवन करने पर चमत्काररक लाभ ि ता िै। 150 हमग्रा. वंग भस्म हदन में द बार शिद क े साथ लेने पर तथा हशलाजीत क े सेवन से भी वंध्यत्व र ग दू र ि ता िै।  ‘बाला’ नामक पौिे की जड दू ि तथा तेल में उबालकर क ु नक ु ने पानी में इसे डालकर य हन की भीतर से सफाई करें। इससे गभणिारर् की राि में ि ने वाली हनषेचन हक्रया सरल ि जाती िै। इसी जड का औषहियुक्त तेल एक चम्मच दू ि में हमलाकर सेवन करने से भी लाभ ि ता िै। वंध्यत्व हनवारर् िेतु स्त्री क हकसी भी औषहि का सेवन करने से पूवण अपनी तथा अपने पहत क े वीयण की जांच अवश्य करवानी चाहिए। क् ंहक यि र ग अहिकांशतः शुक्रार्ुओं की कमज री से ि ता िै और उपचार की आवश्यकता स्त्री क निीं अहपतु पुरुष क ि ती िै।
  • 19.  वंध्यत्व से पीहडत स्त्री क तीक्ष्र् तथा क्षारीय पदाथों का सेवन निीं करना चाहिए। फल ं तथा हमष्ठान्न ं का सेवन अहिक करें तथा भ जन में पौहष्टक आिार क भरपूर मात्रा का भी ध्यान रखें। व्यायाम भी लाभकारी रिता िै। स्त्री धमा (माहसक) न िोिा िो िो  मछली प्रहतहदन खाएं त माहसक हनहित ि गा।  साठी क े बीज, कडवी तुम्बी, दन्ती, पीपल, गुड, मेंढल, दारू का झाग, जवाखार, थूिर दू ि समान मात्रा में लेकर पीसकर बारीक बना लें और य हन में रखें |  राई, हवक्सवार, खुरासानी, वच, माल कांगनी (समान मात्रा) क बारीक पीस कर 5 हदन ठं डे पानी से पीएं त अवश्य स्त्रीिमण ि गा। (इसमें हदए अन्य उपाय भी हकए जा सकते िैं।) य हन में नद या रुहिर क े जमाव से बडिल क े फल जैसी गांठ पड जाती िै त भी माहसक बन्द ि ता िै इसक े हलए-  क ू कड भंगरे की जड क चावल क े पानी में पीसकर छानकर हपएं ।
  • 20.  मजीठ, मुलिठी, क ू ट, हत्रफला, हमश्री, ष्मखरैटी, भदे, अश्वगन्ध, अजम द, द न ं िल्दी, हपयापुष्प, क ु टकी, दाख, कमल की जड, लाल चन्दन 10-10 ग्राम, गाय का घृत 250 ग्राम, शतावरी का रस । हकग्रा. लेकर सभी औषहिय ं क पीसकर गाय क े घी और शतावरी क े रस में मन्द आंच पर पकाएं , घी बच जाए त ठं डा करक े छान कर रख लें। 15 ग्राम घी प्रहतहदन प्रात:काल हपए त स्त्री क े समस्त य हन हवकार दू र ि जाएं गे और पुरुष क े बल वीयण पराक्रम में वृष्मि ि सन्तानप्रद औषहधयां  ष्मखरैटी, गंगेरन की छाल, महुआ, बड क े अंक ु र, नाग क े सर समान मात्रा में लेकर बारीक पीस लें, इस चूर्ण क कपडछन करक े डब्े में बन्द करक े रख लें। 20 ग्राम चूर्ण, 50 ग्राम शिद क े साथ प्रहतहदन हपएं त एक मिीने में िी गभणिारर् करें।  काला हतल, स ंठ, हमचण, पीपल, भारंगी, गुड, अश्वगन्ध 5-5 ग्राम लेकर नौक ु ट करक े काढा बनाएं और ऋतु क े समय 15 हदन तक हपएं ।  सफ े द पीपल की जड, सफ े द जीरा, शरफ ंका-समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम प्रहतहदन गाय क े दू ि क े साथ ऋतुकाल में हपएं ।  हबजौरे का बीज, अरण्ड की अंडौली (फल) पीसकर 20 ग्राम प्रहतहदन गाय क े घी और दू ि क े साथ ऋतुकाल में 15 हदन सेवन करें।  पीपल, स ंठ, हमचण, नागक े सर चार ं क बारीक पीसकर घी में हमलाकर ऋतुकाल में सप्ाि भर पीएं ।
  • 21. गर्ाकाल की औषहधयां  डाभ की जड, कास की जड, ग खरू की जड क समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे गाय क े दू ि में औटा कर हपलाने से गहभणर्ी क े हृदय का शूल तुरन्त दू र ि ता िै।  डाभ की जड, दू ब की जड, कास की जड समान मात्रा में लेकर, पीस कर दू ि में औटा कर देने से गहभणर्ी क मूत्र खुलकर आता िै।  मुलिठी, शाल क े बीज, क्षीर, काक ली, देवदारू लूर्ाक् (नौहनया शाक, ल ररया शाक) काला हतले, ब ल, पीपल, रासना, शतावरी, कमल की जड, जवाला। गौरी क े सर, द न ं कटैली व बाल संभाडा, कसेरू, हमश्री समान मात्रा में लेकर पीस लें 30 ग्राम का काढा बना कर प्रहतहदन गभणकाल क े 7 मिीने तक हपलाए त क ई उपद्रव न ि , गभणपात न ि , गभण नीर ग एवं पुष्ट रिे।  आठिां मिीना: क ैं थ की जड, बेल की जड, कटेली, पट ल की जड, साठी की जड क पीसकर दू ि में औटा कर मिीने भर आठवें मिीने में िैं।  निां मिीनााः मुलिठी, जवासा, क्षीर काक ली, गौरीसर सब समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें 20 ग्रा. का काढा बनाकर प्रहतहदन दें।
  • 22.
  • 23.  कभी-कभी वायु क े कारर् गभण सूखने लगता िै-दू ि, मांस का श रबा एवं अन्य पौहष्टक आिार दें।  प्रसि औषहधाः प ई की जड क े काढे में हतल हमलाकर पेट पर लेप करें। पीपल तथा खुरासानी बच क पानी से बारीक पीस पर य हन पर लेप करें।  हबजौरा की जड तथा महुआ क पीस का घृत क े साथ पीयें।  स ंढा की जड कमर से बांि दें। प्रसि क े बाद की परेशाहनयां  अंग-अंग में पीडा, खांसी, ज्वर, शरीर भारी, प्यास अहिक, सूजन, उदर शूल, अहतसार, अफारा, अरुहच, चक्कर आहद इस र ग क े प्रमुख लक्षर् िैं।  दशमूलाररष्ट या दशमूल का काढा प्रहत हदन हपएं ।  स ंठ, गुरुच, पीपल, पीपलामूल चव्य, हचत्रक, नेत्रबाला, सिजन क पीसकर खुरासानी, बच, देवदारू, पीपल, सौंठ, क ू ठ, हचरायता, जायफल, नागरम था, काढा बनाएं और प्रहतहदन 40 हदन तक हपलाएं ।  खुरासानी , बच , देवदारू , पीपल , स ंठ , क ू ठ , हचरायता , जायफल , नागरम था , िरड की छाल, गजपीपल, िमासा, ग खरू, जवासा, कटेली, गुरुच, कालाजीरा समान मात्रा में लेकर काढा बनाएं एं व िींग और सेंिा नमक क े साथ हपएं । यि प्रसूहतका क े साथ-साथ
  • 24.  प्रसव क े बाद क े तमाम उपद्रव दुबणलता आहद दू र करने की औषहि िै (पौहष्टक वा सुपाच् आिार गर दें। खट्टी तीखी एवं उष्ण वस्तुओं से परिेज रखें)।  पंचजीरा पाकाः द न ं जीरा, सौंफ, िहनया, मेथी, अजवायन, पीपल, पीपरामूल, अजम द, झाऊ की जड की छाल, बेरे की मींगी, कट, कबीला सब समान मात्रा में 20-20 ग्राम लेकर चूर्ण करक े छान लें। इसे । हकग्रा. ग घृत में डाल कर पकाएं अब । हकग्रा. गाय क े दू ि में घृत में साथ ख वा बनाएं और इसे खूब भूने 2 हकग्रा. खाण्ड की चाशनी में 15-15 ग्राम का लड्ड ू बनाएं । लड्ड ू प्रहतहदन ष्मखलाएं ।  पुरुष बंध्याकरण : पुरुष ं में बंध्याकरर् की ष्मथथहत वीयण में शुक्रार्ुओं की कमी क े कारर् ि ती िै। लम्बी बीमारी, गुप् र ग या गुप्ांग पर च ट लगने क े कारर् ऐसा ि सकता िै।  यिां यि स्पष्ट कर देना आवश्यक िै हक वंध्याकरर् की ष्मथथहत पुरुष नपुंसकता से हनतान्त हभन्न िै। बंध्याकरर् में पुरुष प्रजनन क े अय ग्य ि ता िै जबहक नपुंसकता की ष्मथथहत में वि सफल संभ ग क े लायक िी निीं रिता। उपचार  अश्वगंि इस र ग की रामबार् औषहि िै। हदन में द बार एक-एक चम्मच अश्वगंि चूर्ण दू ि क े साथ सेवन करने से बहुत लाभ ि ता िै। भ जन क े बाद 100 हमग्रा. अश्वगंिाररष्ट क े सेवन से भी लाभ ि ता िै।Read more…