1. Mahilaon Ke Vishesh Rog: Chunautiya
Aur Samadhan
( महिलाओं क
े हिशेष रोग: चुनौहिया और
समाधान )
2. महिलाओं क
े हिशेष रोग: चुनौहिया और
समाधान
महिलाओं का शारीररक ढांचा पुरुष ं से काफी मामल ं में अलग िै। उनक
े क
ु छ अंग
ऐसे िैं, ज अत्यंत संवेदनशील िैं और मित्वपूर्ण भी। इन्ीं कारर् ं से क
ु छ र ग ऐसे िैं
ज क
े वल महिलाओं क िी ि ते िैं। यिां क
ु छ ऐसे र ग ं की जानकारी दी जा रिी िै,
हजन्ें आयुवेद हचहकत्सा द्वारा बडी आसानी से दू र हकया जा सकता िै।
एनीहमया अर्ााि् पांडु रोग
रक्ताल्पता या एनीहमया क िी आयुवेद में पाण्डु र ग की संज्ञा दी गई िै। इस र ग में
रक्त की लाल रक्त कहर्काओं में कमी ि ने क
े साथ-साथ रुहिर वहर्णका
(िीम ग्ल हबन) का स्तर भी हगर जाता िै।
3. इसक
े अहतररक्त च ट लगने पर अत्यहिक रक्तस्राव, माहसक िमण अथवा प्रसव क
े समय
अहिक रक्त स्राव आहद अनेक कारर् ं से पाण्डु र ग ि सकता िै। संक्रामक या अहिक
लम्बे समय तक चलने वाले र ग क
े बाद तथा लौि तत्व ं की कमी से भी प्राय: पाण्डुर ग
ि ता देखा गया िै।
लक्षण
पाण्डु र ग ि ने पर शारीररक शक्ति घटने क
े साथ त्वचा का रंग सफ
े द (रक्तिीन) ि
जाता िै। हृदय अहिक िडकता िै और पसीना बहुत आता िै। थ डा-सा चलने-हफरने
अथवा पररश्रम करने पर र गी बहुत अहिक थकान अनुभव करता िै।
यहद क
ु छ हदन ं तक इसकी उपचार न कराई जाए त अहिमांद्य, कहटशूल (कमर में ददण),
पांव ं में ददण, आंख ं क
े नीचे श ि क
े हचन्, कान ं में अजीब-सी सुरसुरािट, स्वभाव में
हचडहचडापन और बार-बार िूक आने क
े लक्षर् प्रतीत ि ते िैं।
उपचार
आयुवेद में नवायस लौि क इस र ग की सवणश्रेष्ठ औषहि बताया गया िै। 400 हमग्रा
नवायस लौि प्रहतहदन तीन बार शिद में हमलाकर चटाने से बहुत लाभ ि ता िै।
4. मण्ड
ू र भस्म की 250 हमग्रा. मात्रा सुबि-शाम पुननणवा क
े क्वाथ (काढे) से देने पर श्लैष्मिक
पाण्डु र ग में लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में अहतसार (दस्त) ि ने पर लौि पपणटी 125 हमग्रा.
हदन में द बार जीरे क पानी में हभग कर उस छहनत पानी से लें। ष्मस्वय ं में पाण्डु र ग क
े
साथ प्रदर ि ने पर 250 हमग्रा. बेल पपणटी हदन में द बार शिद क
े साथ सेवन करने से
बहुत लाभ ि ता िै। पाण्डु र ग में पाचन हक्रया क्षीर् ि जाती िै, इसहलए आिार क
सरलता से पचाने क
े हलए आसव ं का उपय ग बहुत लाभप्रद रिता िै।
पाण्डु र ग में श थ ि ने पर 15-20 हमली. भ जन क
े बाद पुननणवासव में इतना िी जल
हमलाकर पीने से बहुत लाभ ि ता िै। क
ु छ हचहकत्सक ं क
े अनुसार पुननणवासव,
क
ु मायाणसव 10-10 हमली, और ल िासव 15 हमली. इतने िी जल में हमलाकर पीने से
अहतशीघ्र लाभ ि ता िै।
बेल क
े ताजे पत् ं का 4-5 ग्राम रस लेकर एक ग्राम काली हमचण क पीसकर उसमें
हमलाकर खाने से पाण्डु र ग नष्ट ि ता िै। पाण्डु र ग में मूली गुर्कारी ि ती िै। मूली का
अनेक प्रकार से उपय ग हकया जा सकता िै। मूली क
े छ टे-छ टे टुकडे करक
े जामुन या
गन्ने क
े हसरक
े में डालकर रख लें। प्रहतहदन हसरक
े की मूली खाने से बहुत लाभ ि ता िै।
मूली का रस हनकालकर सेंिा नमक हमलाकर पीने से शीघ्र लाभ ि ता िै।
5. नीबू तथा अदरक का रस और मूली क
े छ टे-छ टे टुकडे हमलाकर खाने से बहुत लाभ
ि ता िै। लवर्भास्कर चूर्ण क
े साथ खाने पर भी लाभ ि ता देखा गया िै।
पाचन हक्रया क सन्तुहलत करने क
े हलए हलव-52 या अजुणनाररष्ट हपलाना चाहिए,
अजुणनाररष्ट का उपय ग वयस्क स्त्री-पुरुष भी कर सकते िैं। इसक
े सेवन से भ जन शीघ्र
पचता िै और रक्त का अहिक हनमाणर् ि ता िै।
फल ं व उनक
े रस से बच् ं क लौि, क
ै ष्मशशयम तथा हवटाहमन हमलते िैं। सुपाच्य ि ने क
े
कारर् इनकी पाचन हक्रया भी सरलता से ि ती िै। िरी सष्मिय ं में लौि देव अहिक ि ता
िै, पालक, मेथी, बथुआ आहद से लौि तत्व खूब रस, टमाटर, गाजर आहद क
े सेवन से
बहुत लाभ ि ता िै।
माहसक संबंधी हिकार
रिाहधक्य
माहसक हवक
ृ हत का सबसे मुख्य लक्षर् िै माहसक रक्त का अहिक मात्रा में आना ज कभी
पतला, कभी गाढा अथवा कभी िब् ं क
े रूप में आता िै। क
ु छ महिलाओं में प्रहतमाि
आने वाले खून की मात्रा में वृष्मि ि ती िै। क
ु छ महिलाओं में ऋतुकाल क
े समय अत्यहिक
पीडा ि ती िै तथा क
ु छ क क ई कष्ट निीं ि ता।
6.
7. क
ु छ अन्य लक्षण - पेट व कमर ददण, हसर ददण एवं उलटी लगना, पैर ं पर तथा सारे शरीर
पर सूजन, य हन द्वार में खुजली, अजीर्ण, कि, स्तन ं में तनाव, शारीररक दुबणलता,
हचडहचडापन।
उपचार
आयुवेद में ल िा, िरी पहत्यां, जडी-बूहटयां, क
ै ष्मशशयम, ताम्र आहद का उपय ग माहसक
हवक
ृ हत में हकया जाता िै।
ऐसी ष्मथथहत में रजप्रवतणननी वटी की द ग ली हदन में द बार गुनगुने जल या अक
ण सौंफ
अथवा र गानुसार दें।
मािवारी कम ि त – कई ष्मस्त्रयां मािवारी न आने या बहुत कम आने से त्रस्त रिती िैं।
ऐसी ष्मथथहत में रीठे की हगरी क
े चूर्ण क समभाग गुड में हमलाकर जामुन जैसी बत्ी
बनाकर य हन में रखने से माहसक िमण आने लगता िै, यहद आवश्यक समझें, तब दू सरे
हदन भी ऐसी िी बत्ी पुनः तैयार कर य हन में रखें। इस उपाय से पिले लाल पानी हगरता
िै, हफर आतणव आने लगता िै। छ टी कटेली क
े बीज ं का चूर्ण 6 माशे की मात्रा में हनत्य
प्रातः एक बार देने से मािवारी खुलकर आने लगती िै। यि प्रय ग 3 हदन करने से िी
अपेहक्षत पररर्ाम देता िै।
8. श्वेि प्रदर
भारतीय स्त्री क भी सबसे अहिक श्वेत प्रदर की हशकायत ि ती िै, श्वेत प्रदर ि ने क
े कई
कारर् हचहकत्सक ं ने बताए िैं-
गुप्ांग ं की अस्वच्छता, खून की कमी, अहत मैथुन, अहिक उपवास, अहत श्रम, तेल,
मसाले, चरपरे व तीखे पदाथों का सेवन, कामुक हवचार, य हन में संसगण, य हन या गभाणशय
क
े मुंि पर छाले, ऋतुस्राव की हवक
ृ हत, गभाणशय श थ या गभणपात, अहिक सन्तान उत्पन्न
करना, अहिक स ना, मूत्र संथथान क
े संक्रमर्।
लक्षण
श्वेत प्रदर क
े प्रारम्भ में स्त्री क दुबणलता का अनुभव ि ता िै, खून कम ि ने से चक्कर
आना, आंख ं क
े सामने अंिेरा छा जाना, भूख न लगना, शौच साफ न ि ना, बार-बार मूत्र
त्याग, पेट में भारीपन, कहट शूल, जी हमचलाना, य हन में खुजली ि ती िै, माहसक िमण से
पिले या बाद में सफ
े द लसदार स्राव ि ता िै, चेिरा पीला ि जाता िै। ज पुरुष ऐसी
ष्मस्त्रय ं से मैथुन करते िैं उन्ें भी यि र ग ि जाता िै। प्रहसि आयुवेदाचायण सुश्रुत क
े
अनुसार प्रदर र ग में अंगरवदन व पीडा अवश्य ि ती िै।
9. उपचार
श्वेत प्रदर में ष्मस्त्रय ं क खाने-पीने में साविानी रखनी चाहिए, खट्टी-मीठी चीजें, तेल हमचण,
अहिक उष्ण, मादक पेय का त्याग करना चाहिए, गुप्ांग ं क हनयहमत साफ करना
चाहिए, खून की कमी क पूरा करने वाले खाद्य पदाथों का सेवन करें, बन्दग भी, पालक,
टमाटर, हसंघाडा, गूलर आहद फल ं क खाएं ।
य हन क साबुन से अच्छी तरि हदन में 2-3 बार ि एं । आंवला, िल्दी लौथ, हभजष्ठ आहद
क
े चूर्ण क कपडे में लपेटकर उस प टली क य हन में रखें या जातीया, तेल, पयकाहद तेल
में रूई क हभग कर य हन क
े भीतर रखें और 3-4 घंटे बाद हनकालकर फ
ें क दें।
खाने क
े हलए क
ु छ दवाइयां लेनी जरूरी िै-
आर ग्यवहिणनी वटी- एक ग ली हदन में 3 बार पानी क
े साथ लें।
अश काररष्ट- एक या द चम्मच हमलाकर भ जन क
े बाद हदन में द -द बार ल
िाहत्रहनशा चूर्ण- 1/4-1/2 चम्मच हदन में द बार लें। ल घ्र चूर्ण-1/4-1/4 चम्मच हदन में द
बार लें।
ल िासव- खून की कमी में इसका उपय ग फायदा करता िै। मात्रा अश काररष्ट समान िी
लें।
10. नवायस लौि- 1/4 छ टी चम्मच हदन में दू ि क
े साथ तीन बार लें।
नवजीवन रस- शिद क
े साथ सेवन करें।
क
ु छ सामान्य उपचार ं का भी आगे वर्णन हकया जा रिा िै-
आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क
े साथ हदन में 3 बार चाटें।
द -तीन पक
े क
े ले हनत्य खाने से श्वेत प्रदर हमटता िै।
गूलर क
े सूखे फल पीसकर हमश्री और शिद हमलाकर खाएं ।
मुलिठी एक त ला, हमश्री द त ला, जीरा 6 माशा, अश क छाल क
े साथ छ: माशा हदन में
तीन बार लें।
सफ
े द मूसली या ईसबग ल प्रात:काल शरबत क
े साथ हदन में द बार लें।
हसंघाडा, ग खरू, बडी इलायची, बबूल की ग ंद, स्लैल का ग ंद, शक्कर समान मात्रा में
हमलाकर सुबि-शाम सेवन करें।
बकरी क
े दू ि में मााँच रस हमलाकर पीएं ।
आंवले का चूर्ण 3 माशा मिु क
े साथ चाटने से प्रदर हमटता िै।
11. द -तीन पक
े क
े ले खाने से प्रदर र ग समूल नष्ट ि ता िै।
रि प्रदर
ष्मस्त्रय ं क प्रहतमास लगभग 28 हदन क
े अन्तर से ज माहसक रजनाव हुआ करना िै वि
यहद हबना हकसी पीडा, अहनयहमतता और अस्वाभाहवकता क
े ि ता रिे त स्वस्य िै। यहद
ऐसा निीं ि ता त इसे माहसक िमण की अहनयहमतता किा जाता िै। ये अहनयहमतताएं कई
प्रकार की ि ती िैं। इनमें से एक व्याहि िै ‘रक्त प्रदर’।
जब क ई स्त्री बहुत अहिक नमकीन, खट्टे, तेज हमचण-मसालेदार, दािकारक, अहिक
चबीयुक्त, मादक और मांसािारी व्यंजन ं का अहत सेवन करती िै और सुश्रुत क
े अनुसार
तदेवाहत प्रसंगेन प्रवृत्मनृताहवहप। असृग्दरं हवजानीयादत न्यद्रक्तलक्षात्। (सुश्रुत शारीर
2-20) अथाणत् अहत मैथुन क
े कारर् जब उसे ऋतुकाल या इसक
े अलावा हदन ं में ज्यादा
मात्रा में रक्तस्राव ि ता िै, तब इन कारर् ं से ि ने वाले अहिक रक्तस्राव क रक्त प्रदर या
असुंग्दर किते िैं। अपथ्य पदाथों का अहत सेवन, अहतकामुकता व अहत मैथुन, गभणपात,
अहिक श्रम व अहिक दौड-िूप तथा श क, मद, काम, क्र ि, ईर्ष्ाण, हचन्ता आहद से उत्पन्न
ि ने वाला मानहसक तनाव रक्त प्रदर उत्पन्न करने क
े कारर् ि ते िैं।
12. लक्षण
रक्त प्रदर का प्रमुख लक्षर् त ऋतुकाल क
े हदन ं अत्यहिक मात्रा में या अहिक हदन ं तक
रक्तस्राव ि ते रिना िी िै, लेहकन इसक
े साथ िी सारे शरीर में हवशेषकर कमर, जांघ ं व
हपण्डहलय ं क
े अलावा पेट में नाहभ प्रदेश क
े नीचे श रगुल ि ना, शरीर का दुबला व
कमज र ि ते जाना, चेिरा पीला पड जाना, भ्रम, मूच्छच्छाण, आंख ं क
े सामने अंिेरा,
अहिक प्यास, शरीर में गमी बढना, हचडहचडापन, रक्ताल्पता, तन्द्रा और वातजन्य
व्याहियां उत्पन्न ि ना, इस र ग क
े अन्य लक्षर् िैं।
उपचार
रक्त प्रदर की उपचार में इस बात का ध्यान रखना चाहिए हक शरीर में वात और हपत् की
ष्मथथहत क
ै सी िै। प्राय: रक्त प्रदर हपत् क
े क
ु हपत ि ने से ि ता िै। हचकनाई वाले, मिुर और
शीतल प्रक
ृ हत क
े पदाथण, घी, दू ि, क
े ला, हमश्री, श तल च नी (कबाबचीनी) चावल का
घ वन, शुि घी में तला हुआ ग ंद शक्कर क चाशनी क
े साथ सेवन करना आहद उपाय ं
से क
ु हपत हपत् का शमन ि ता िै। हपत् क
ु हपत करने वाला आिार-हविार और कामुक
हचन्तन तथा अहत मैथुन का त्याग कर हनम्नहलष्मखत घरेलू उपाय, लगातार 2-3 माि या पूर्ण
लाभ न ि ने तक करना चाहिए।
13. िरी दू ब क जड सहित उखाडकर पानी से ि कर कचरा-हमट्टी साफ कर लें। यि दू ब
आपक
े लॉन, बगीचे या मैदान की ि सकती िै। पर गन्दे थथान की निीं ि नी चाहिए। इस
दू ब क चावल क
े घ वन (पानी) क
े साथ हसल पर खूब मिीन पीसकर कपडे से हनच डकर
इसका रस हनकालकर प्रात:काल एक बार हपएं , इस प्रय ग से रक्त प्रदर का स्राव बन्द ि
जाता िै। इसे 3-4 हदन पीना चाहिए।
गूलर वृक्ष क
े साफ हकये हुए 5-6 फल या इसी वृक्ष की अन्तरछाल 20-25 ग्राम मात्रा में
घ ंट-पीसकर रस हनकाल लें और एक चम्मच शिद हमलाकर सुबि-शाम चाट लें।
योहन रोग
य हन मागण में श थ, जलन, घाव, दुगणन्ध आना, लाली ि ना, सििास में कष्ट ि ना,
खुजली या क ई संक्रमर् (इंफ
े क्शन) क
े प्रभाव से हचटहचटािट ि ना आहद उपदव ं क दू र
करने क
े हलए’ घातवयाहद तेल’ का फािा प्रहतहदन य हन में रखने से सब उपद्रव नष्ट ि
जाते िैं।
मैनफल, मुलिठी, भुनी हुई हफटहकरी अलग-अलग क
ू ट-पीसकर हमला लें। अमलतास
वृक्ष की छाल सुखा लें। छाल का एक टुकडा म टा-म टा क
ू टकर । हगलास पानी में रात
क डालकर रख दें।
14.
15. सुबि स्नान क
े समय मसल छानकर इस पानी से य हन क अन्दर तक अच्छी तरि ि एं या
ड
ू श कर लें। इसक
े बाद मैनफल-मुलिठी आहद क
े एक चम्मच चूर्ण क थ डा शिद
हमलाकर म टा गाढा लेप बनाकर इसे उंगली से य हन क
े अन्दर अच्छी तरि लगा लें या
इस चूर्ण में शिद न हमलाकर, क
े वल चूर्ण िी मलमल क
े कपडे पर रखकर छ टी-सी
प टली बनाकर ड रे से बांि लें और रात क स ते समय य हन में रख हलया करें। लगातार
क
ु छ हदन ं तक यि प्रय ग करने से ढीली-फ
ै ली हुई हशहथल और कमज र य हन पिले जैसी
तंग, मजबूत तथा नीर ग ि जाती िै।
शरपुंखा का क
ु टा-हपसा चूर्ण 25 ग्राम, नीम की पत्ी 25 ग्राम, हत्रफला चूर्ण व हपसी
मुलिठी दस-दस ग्राम-चार ं क एक लीटर पानी में डालकर उबालें। जब खूब अच्छा
उबल जाए तब उतारकर म टे कपडे से छानकर ठं डा कर लें। इसमें 1-2 चम्मच शिद
घ लकर, स्नान करते समय, इस पानी से य हन मागण क खूब अच्छी तरि घ एं अथवा दू श
पाइप से इश करें। रबर की इश प्राइप क
े हमस्ट की दुकान से हमलती िै। सप्ाि में द बार
इश करें (माहसक िमण क
े हदन ं क छ डकर)।
गर्ाििी को िमन
गर्ाििी स्त्री को िमन प्राय: सुबि से द पिर तक ि ता िै। इस कारर् गभणवता क क
ु छ
16. भी खाना निीं सुिाता। स्वाहदष्ट भ जन भी बेस्वाद प्रतीत ि ता िै। इसका उपचार
आवश्यक िै, क् ंहक गभणवती यहद पौहष्टक भ जन निीं लेगी, त स्वयं भी दुबणल ि जाएगी
तथा गभण का प षर् भी ठीक ढंग से निीं ि पाएगा, ऐसी ष्मथथहत में हनम्न आयुवेहदक य ग
बहुत फायदेमंद ि सकते िैं-
अनार या संतरे का जूस हपलाना चाहिए, इससे वमन में त लाभ ि ता िी िै, शरीर क भी
प षर् हमलता िै।
छ टी इलायची भूनकर पीस लें। चार रत्ी की मात्रा में शिद में हमलाकर द -तीन बार
चटाने से भी वमन में लाभ ि ता िै।
हदन में तीन-चार बार सौंफ का अक
ण पानी में हमलाकर हपलाना भी गभणवती क
े बमन एवं
पाचन हवकार में लाभ पहुंचाता िै।
द दाना काली हमचण, पांच मुनक्का और 20 ग्राम हमश्री एक कप पानी में पीस-छानकर
पीना भी फायदेमंद ि ता िै।
द -तीन ग्राम िहनया का चूर्ण चावल ं क
े ि वन क
े साथ ष्मखलाने से भी वमन में लाभ ि ता िै
और। हचत् शांत ि जाता िै।
17. बांझपन
स्त्री द्वारा गभण िारर् न कर पाना या स्त्री क गभणवती करने में पुरुष का अक्षम ि ना
वंध्यत्व र ग किलाता िै। पुरुष की नपुंसकता तथा स्त्री का ठं डापन इस र ग का प्रमुख
कारर् िै। इन द न ं िी कारर् ं की वजि से सफल संभ ग हक्रया सम्पन्न निीं ि पाती।
यहद ऐसा हनरन्तर ि ता रिता िै त इसे वंध्यत्व की संज्ञा दी जाती िै।
आयुवेद क
े अनुसार, वीयण में शुक्रकीट ं की कमी या उनका हबल्क
ु ल न ि ना इस र ग का
सवणप्रमुख कारर् िै। इसक
े अहतररक्त जननांग ं का च टग्रस्त ि ना, हडम्ब ग्रहथय ं का
संकरापन तथा प्रजनन अंग ं में हकसी प्रकार का अन्य द ष ि ने पर भी वंध्यत्व की ष्मथथहत
ि सकती िै। उपदंश तथा उष्णवात भी इस र ग क
े कारक ि सकते िैं।
यिां िम पुरुष तथा स्त्री द न ं बंध्यत्व पर अलग-अलग प्रकाश डाल रिे िैं।
महिला बांझपन
ष्मस्त्रय ं में यि र ग अहिकतर गभाणशय क
े हवकार ं क
े कारर् िी ि ता िै। गभाणशय क
े मुंि
का संकरा ि ना या गभाणशय का अपने थथान से िट जाना तथा रक्ताल्पता, क
ु प षर् व
रक्त हवकार क
े कारर् स्त्री-बांझपन ि ता िै।
18. आयुवेद में इसका सम्बंि हत्रद ष (वात, हपत्, कफ) जन्य भी माना गया िै। इसक
े
अहतररक्त बहुत अहिक म टापा भी सफल संभ ग में बािक ि ता िै, इस कारर् भी
वंध्यत्व की समस्या उत्पन्न ि सकती िै।
उपचार
‘पिला घृत’ ष्मस्त्रय ं क
े हलए इस र ग की रामबार् औषहि िै। द चम्मच, हदन में द बार
दू ि क
े साथ खाली पेट िी सेवन करने पर चमत्काररक लाभ ि ता िै। 150 हमग्रा. वंग
भस्म हदन में द बार शिद क
े साथ लेने पर तथा हशलाजीत क
े सेवन से भी वंध्यत्व र ग दू र
ि ता िै।
‘बाला’ नामक पौिे की जड दू ि तथा तेल में उबालकर क
ु नक
ु ने पानी में इसे डालकर य हन
की भीतर से सफाई करें। इससे गभणिारर् की राि में ि ने वाली हनषेचन हक्रया सरल ि
जाती िै। इसी जड का औषहियुक्त तेल एक चम्मच दू ि में हमलाकर सेवन करने से भी
लाभ ि ता िै। वंध्यत्व हनवारर् िेतु स्त्री क हकसी भी औषहि का सेवन करने से पूवण
अपनी तथा अपने पहत क
े वीयण की जांच अवश्य करवानी चाहिए। क् ंहक यि र ग
अहिकांशतः शुक्रार्ुओं की कमज री से ि ता िै और उपचार की आवश्यकता स्त्री क
निीं अहपतु पुरुष क ि ती िै।
19. वंध्यत्व से पीहडत स्त्री क तीक्ष्र् तथा क्षारीय पदाथों का सेवन निीं करना चाहिए। फल ं
तथा हमष्ठान्न ं का सेवन अहिक करें तथा भ जन में पौहष्टक आिार क भरपूर मात्रा का भी
ध्यान रखें। व्यायाम भी लाभकारी रिता िै।
स्त्री धमा (माहसक) न िोिा िो िो
मछली प्रहतहदन खाएं त माहसक हनहित ि गा।
साठी क
े बीज, कडवी तुम्बी, दन्ती, पीपल, गुड, मेंढल, दारू का झाग, जवाखार, थूिर
दू ि समान मात्रा में लेकर पीसकर बारीक बना लें और य हन में रखें |
राई, हवक्सवार, खुरासानी, वच, माल कांगनी (समान मात्रा) क बारीक पीस कर 5 हदन
ठं डे पानी से पीएं त अवश्य स्त्रीिमण ि गा। (इसमें हदए अन्य उपाय भी हकए जा सकते
िैं।) य हन में नद या रुहिर क
े जमाव से बडिल क
े फल जैसी गांठ पड जाती िै त भी
माहसक बन्द ि ता िै इसक
े हलए-
क
ू कड भंगरे की जड क चावल क
े पानी में पीसकर छानकर हपएं ।
20. मजीठ, मुलिठी, क
ू ट, हत्रफला, हमश्री, ष्मखरैटी, भदे, अश्वगन्ध, अजम द, द न ं िल्दी,
हपयापुष्प, क
ु टकी, दाख, कमल की जड, लाल चन्दन 10-10 ग्राम, गाय का घृत 250
ग्राम, शतावरी का रस । हकग्रा. लेकर सभी औषहिय ं क पीसकर गाय क
े घी और
शतावरी क
े रस में मन्द आंच पर पकाएं , घी बच जाए त ठं डा करक
े छान कर रख लें।
15 ग्राम घी प्रहतहदन प्रात:काल हपए त स्त्री क
े समस्त य हन हवकार दू र ि जाएं गे और
पुरुष क
े बल वीयण पराक्रम में वृष्मि ि
सन्तानप्रद औषहधयां
ष्मखरैटी, गंगेरन की छाल, महुआ, बड क
े अंक
ु र, नाग क
े सर समान मात्रा में लेकर बारीक
पीस लें, इस चूर्ण क कपडछन करक
े डब्े में बन्द करक
े रख लें। 20 ग्राम चूर्ण, 50 ग्राम
शिद क
े साथ प्रहतहदन हपएं त एक मिीने में िी गभणिारर् करें।
काला हतल, स ंठ, हमचण, पीपल, भारंगी, गुड, अश्वगन्ध 5-5 ग्राम लेकर नौक
ु ट करक
े काढा
बनाएं और ऋतु क
े समय 15 हदन तक हपएं ।
सफ
े द पीपल की जड, सफ
े द जीरा, शरफ ंका-समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण
बना लें। 10 ग्राम प्रहतहदन गाय क
े दू ि क
े साथ ऋतुकाल में हपएं ।
हबजौरे का बीज, अरण्ड की अंडौली (फल) पीसकर 20 ग्राम प्रहतहदन गाय क
े घी और
दू ि क
े साथ ऋतुकाल में 15 हदन सेवन करें।
पीपल, स ंठ, हमचण, नागक
े सर चार ं क बारीक पीसकर घी में हमलाकर ऋतुकाल में
सप्ाि भर पीएं ।
21. गर्ाकाल की औषहधयां
डाभ की जड, कास की जड, ग खरू की जड क समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसे गाय
क
े दू ि में औटा कर हपलाने से गहभणर्ी क
े हृदय का शूल तुरन्त दू र ि ता िै।
डाभ की जड, दू ब की जड, कास की जड समान मात्रा में लेकर, पीस कर दू ि में औटा
कर देने से गहभणर्ी क मूत्र खुलकर आता िै।
मुलिठी, शाल क
े बीज, क्षीर, काक ली, देवदारू लूर्ाक् (नौहनया शाक, ल ररया शाक)
काला हतले, ब ल, पीपल, रासना, शतावरी, कमल की जड, जवाला। गौरी क
े सर, द न ं
कटैली व बाल संभाडा, कसेरू, हमश्री समान मात्रा में लेकर पीस लें 30 ग्राम का काढा
बना कर प्रहतहदन गभणकाल क
े 7 मिीने तक हपलाए त क ई उपद्रव न ि , गभणपात न ि ,
गभण नीर ग एवं पुष्ट रिे।
आठिां मिीना: क
ैं थ की जड, बेल की जड, कटेली, पट ल की जड, साठी की जड क
पीसकर दू ि में औटा कर मिीने भर आठवें मिीने में िैं।
निां मिीनााः मुलिठी, जवासा, क्षीर काक ली, गौरीसर सब समान मात्रा में लेकर चूर्ण
बना लें 20 ग्रा. का काढा बनाकर प्रहतहदन दें।
22.
23. कभी-कभी वायु क
े कारर् गभण सूखने लगता िै-दू ि, मांस का श रबा एवं अन्य पौहष्टक
आिार दें।
प्रसि औषहधाः प ई की जड क
े काढे में हतल हमलाकर पेट पर लेप करें। पीपल तथा
खुरासानी बच क पानी से बारीक पीस पर य हन पर लेप करें।
हबजौरा की जड तथा महुआ क पीस का घृत क
े साथ पीयें।
स ंढा की जड कमर से बांि दें।
प्रसि क
े बाद की परेशाहनयां
अंग-अंग में पीडा, खांसी, ज्वर, शरीर भारी, प्यास अहिक, सूजन, उदर शूल, अहतसार,
अफारा, अरुहच, चक्कर आहद इस र ग क
े प्रमुख लक्षर् िैं।
दशमूलाररष्ट या दशमूल का काढा प्रहत हदन हपएं ।
स ंठ, गुरुच, पीपल, पीपलामूल चव्य, हचत्रक, नेत्रबाला, सिजन क पीसकर खुरासानी,
बच, देवदारू, पीपल, सौंठ, क
ू ठ, हचरायता, जायफल, नागरम था, काढा बनाएं और
प्रहतहदन 40 हदन तक हपलाएं ।
खुरासानी , बच , देवदारू , पीपल , स ंठ , क
ू ठ , हचरायता , जायफल , नागरम था , िरड
की छाल, गजपीपल, िमासा, ग खरू, जवासा, कटेली, गुरुच, कालाजीरा समान मात्रा में
लेकर काढा बनाएं एं व िींग और सेंिा नमक क
े साथ हपएं । यि प्रसूहतका क
े साथ-साथ
24. प्रसव क
े बाद क
े तमाम उपद्रव दुबणलता आहद दू र करने की औषहि िै (पौहष्टक वा सुपाच्
आिार गर दें। खट्टी तीखी एवं उष्ण वस्तुओं से परिेज रखें)।
पंचजीरा पाकाः द न ं जीरा, सौंफ, िहनया, मेथी, अजवायन, पीपल, पीपरामूल, अजम द,
झाऊ की जड की छाल, बेरे की मींगी, कट, कबीला सब समान मात्रा में 20-20 ग्राम
लेकर चूर्ण करक
े छान लें। इसे । हकग्रा. ग घृत में डाल कर पकाएं अब । हकग्रा. गाय क
े
दू ि में घृत में साथ ख वा बनाएं और इसे खूब भूने 2 हकग्रा. खाण्ड की चाशनी में 15-15
ग्राम का लड्ड
ू बनाएं । लड्ड
ू प्रहतहदन ष्मखलाएं ।
पुरुष बंध्याकरण : पुरुष ं में बंध्याकरर् की ष्मथथहत वीयण में शुक्रार्ुओं की कमी क
े कारर्
ि ती िै। लम्बी बीमारी, गुप् र ग या गुप्ांग पर च ट लगने क
े कारर् ऐसा ि सकता िै।
यिां यि स्पष्ट कर देना आवश्यक िै हक वंध्याकरर् की ष्मथथहत पुरुष नपुंसकता से हनतान्त
हभन्न िै। बंध्याकरर् में पुरुष प्रजनन क
े अय ग्य ि ता िै जबहक नपुंसकता की ष्मथथहत में
वि सफल संभ ग क
े लायक िी निीं रिता।
उपचार
अश्वगंि इस र ग की रामबार् औषहि िै। हदन में द बार एक-एक चम्मच अश्वगंि चूर्ण
दू ि क
े साथ सेवन करने से बहुत लाभ ि ता िै। भ जन क
े बाद 100 हमग्रा. अश्वगंिाररष्ट क
े
सेवन से भी लाभ ि ता िै।Read more…