34. धर्म एक की पहचान है |
आध्यात्र् शून्य का ज्ञान है |
शून्यपंथ
35. शून्य का अर्थ निराकार है, संसार में जो साकार है या नजसका जन्म
और मृत्यु हुए है वह शून्य िहीं है | शून्यज्ञाि होिे पर व्यनि को
नकसी भी नित्र, आकृ नि, धमथ, कमथ, निया, आसि, समय, स्र्ाि,
जीनवि, मृि इत्यानि पर निभथर होिे की आवश्यकिा िहीं है |
शून्यपंर् की स्र्ापिा का मुख्य लक्ष्य शून्यज्ञाि द्वारा आध्यात्म का
प्रिार करिा और सभी लोगों को अंधनवश्वासों और भ्रनमि करिे
वाली मान्यिाओंसे छु टकारा पािे में सहायिा करिा है |