2. १. वर्तमान समय आस्था संकट का माना
जार्ा है
• ववज्ञान की प्रगतर् यह बर्ार्ी है कक मनुष्य की बुवि का क्रममक
ववकास हुआ है | आज का मनुष्य अत्यंर् बुविशाली माना जार्ा है|
परन्र्ु बुविशाली होने के साथ-साथ वह जैसे संवेदना हीन होर्ा जा रहा
है| ईश्वर के ऊपर श्रिा रखने के बजाये वह अनीतर् का सहारा ले कर
अपने र्ुच्छ स्वाथत के मलए गलर् कायों को अंजाम दे देर्ा है | ईश्वर,
कमतफल के मसिांर् आदद का ज्ञान अध्यात्म के द्वारा ममलर्ा है और
उसीसे आस्था संकट को दूर ककया जा सकर्ा है |
3. २. मनुष्य यंत्र-वर् एवं भावनाहीन बनर्ा जा
रहा है
• आज की भाग-दौड़ की जजंदगी में मनुष्य यंत्रों पर ज्यादा तनभतर हो
जाने के कारण खुद भी यन्त्र की र्रह प्रतर्ददन एक सा जीवन जीर्ा
है और भावनाओं के बबना यंत्र-वर् सोच के साथ जी रहा है | शरीर का
उपयोग भी एक यन्त्र की र्रह करके उसके महत्व को समझ नहीं पा
रहा है | र्कत और भावनाओं के संर्ुलन की बजाए मसफत र्कत पर
आधाररर् जीवन जीकर वर्तमान को और भववष्य को नष्ट करर्ा जा
रहा है |
4. ३. संर्ो का धरर्ी पर आना बंद सा हो गया
है
• कहा जार्ा है कक अगर सच्चे संर् मानव समाज के बीच जा कर
अध्यात्म का उपदेश देर्े रहर्े है र्ो मानव समाज दुखों से छु टकारा
पार्ा है और अपने जीवन का सही-सही उपयोग कर पार्ा है| आजकल
धमत-अध्यात्म की अवहेलना के कारण ऐसे संर्ों को उपयुक्र् स्थान
नहीं ममलर्ा है| उनके स्थान पर पाखंडियों का दह बोल बाला रहर्ा है|
5. ४. मनुष्य-मनुष्य के बीच का अंर्र बढ़र्ा जा
रहा है
• पहले के समय में संचार के ववकमसर् साधन न होने के बावजूद
मनुष्य-मनुष्य के बीच अधधक प्रेम भाव था | आज संचार के साधन
होने के बावजूद मनुष्य-मनुष्य से दूर होर्ा जा रहा है |
6. ५. आध्याजत्मक दृजष्टकोण के अभाव में
मनुष्य का स्वास््य बबगड़र्ा जा रहा है|
• इजन्ियों के अतर्योग, हीनयोग या मम्यायोग के कारण मनुष्य कई
रोगों का मशकार हो जार्ा है | उससे ववपरीर् आध्याजत्मक दृजष्टकोण
से युक्र् व्यजक्र् इजन्ियों के संयम का महत्व समझर्ा है और
स्वास््य को दुरुस्र् रखने में सफल होर्े है |
7. ६. दूसरे प्राणणयों के मलए मनुष्य घार्क
बनर्ा जा रहा है
• भौतर्कवादी मनुष्य पयातवरण के साथ-साथ अपने और दूसरे प्राणणयों
के मलए घार्क बनर्ा जा रहा है | आध्याजत्मकर्ा से मनुष्य के अन्दर
अंर्दृतजष्ट का ववकास होर्ा है और वह भौतर्कवाद से बच सकर्ा है |