जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य हैं। उन्होंने जो वेदमार्ग प्रतिष्ठापित किया है वह सार्वभौमिक है। वैदिक सिद्धान्तों के सार को प्रकट करते हुए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भगवत्प्राप्ति का सर्वसुगम सर्वसाध्य मार्ग को प्रशस्त किया। उन्होंने वेदों शास्त्रों पुराणों एवं अन्याय धर्मग्रन्थों में जो मतभेद सा है, उसका पूर्णरूपेण निराकरण करके बहुत ही सरल मार्ग की प्रतिष्ठापना की है, जो अद्वितीय एवं अभूतपूर्व है, साथ ही कलियुग में सभी जीवों के लिये ग्राह्य है।
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श्री महाराज जी के दिव्यातिदिव्य प्रवचनों की विशेषता
1. श्री महाराज जी क
े दिव्यातिदिव्य प्रवचनों की
विशेषता
जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य हैं। उन्होंने जो वेदमार्ग
प्रतिष्ठापित किया है वह सार्वभौमिक है। वैदिक सिद्धान्तों क
े सार को प्रकट करते हुए
जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज ने भगवत्प्राप्ति का सर्वसुगम सर्वसाध्य मार्ग को
प्रशस्त किया। उन्होंने वेदों शास्त्रों पुराणों एवं अन्याय धर्मग्रन्थों में जो मतभेद सा है,
उसका पूर्णरूपेण निराकरण करक
े बहुत ही सरल मार्ग की प्रतिष्ठापना की है, जो
अद्वितीय एवं अभूतपूर्व है, साथ ही कलियुग में सभी जीवों क
े लिये ग्राह्य है।
कठिन से कठिन शास्त्रीय सिद्धान्तों को भी जनसाधारण क
े लिये बोधगम्य बनाना
उनकी प्रवचन शैली की विशेषता है। गूढ़ से गूढ़ शास्त्रीय सिद्धान्तों को इतनी
मनमोहक सरल शैली में प्रस्तुत करते हैं कि मंद से मंद बुद्धि वाले भी निरन्तर श्रवण
करने से ऐसे तत्त्वज्ञ बन जाते हैं जो बड़े-बड़े विद्वान तार्कि कों को भी तर्क हीन कर देते
हैं। सरलता और सरसता क
े साथ-साथ दैनिक जीवन में क्रियात्मक अनुभवों का मिश्रण
उनक
े प्रवचन की बहुत बड़ी विशेषता है। बोल-चाल की भाषा में ही वह कठिन से कठिन
शास्त्रीय सिद्धान्तों को जीवों क
े मस्तिष्क में भर देते हैं। श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष
ही ऐसा करने में सक्षम हो सकता है। जब प्रवचनों में प्रमाणस्वरूप शास्त्रों वेदों क
े श्लोक
बोलते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है, तो ऐसा प्रतीत होता है, मानों समस्त शास्त्र वेद उनक
े
सामने हाथ जोड़कर उपस्थित हैं और वे एक क
े बाद एक पन्ने पलटते जा रहे हैं। काशी
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2. विद्वत्परिषत् द्वारा प्रदत्त उपाधि 'श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण' उनक
े प्रवचनों में
स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज क
े अमृत वचन दिव्य हैं वे इतने सरल होते हैं कि
उनकी कृ पा से घोर से घोर अज्ञानी, अंगूठा छाप जीव को भी पूर्ण तत्वज्ञान हो जाए। जो
जिस कोटि का साधक होता है वह अपनी अन्तःकरण की स्थिति क
े अनुसार ही उसे
आत्मसात्कर पाता है। हाँ, ये तो सभी अनुभव करते हैं कि ऐसा विलक्षण प्रवचन पहले
कभी नहीं सुना था। प्रत्येक प्रवचन नवीन और विलक्षण लगता है, हर सिद्धान्त को
प्रतिपादित करते समय प्रमाणों की झड़ी लग जाती है। वेद, रामायण, भागवत, गीता,
क
ु रान, बाईबिल, उपनिषद्, पुराण आदि से उदाहरण देकर जगद्गुरु श्री कृ पालु जी
महाराज सबका समन्वय करते हैं तभी तो उन्हें 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' एवं
'जगद्गुरूत्तम' कहा गया है।
जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज क
े अलौकिक प्रवचन क
े विषय में क
ु छ भी कहना
प्राकृ त बुद्धि से सम्भव नहीं है। उनका दिव्य प्रवचन वर्णनातीत है। जगद्गुरु श्री कृ पालु
जी महाराज की दिव्य ओजस्वी वाणी किं चित्श्रद्धापूर्वक सुनने मात्र से ही हृदय श्री
राधाकृ ष्ण प्रेम में विभोर हो जाता है तथा युगल झांकी क
े दर्शन की लालसा तीव्रतर हो
जाती है। जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज का प्रत्येक प्रवचन गागर में सागर ही है।
ज्ञान का अगाध सिंधु है, जिसमें अवगाहन करने पर शुष्क से शुष्क हृदय भी संशयरहित
होकर प्रेम रस में डूब जाता है।
उनकी दिव्य वाणी उनक
े द्वारा दिये गये हजारों प्रवचन क
े रूप में, उनक
े द्वारा लिखे
गये 'प्रेम रस सिद्धांत', 'प्रेम रस मदिरा', 'भक्ति-शतक' इत्यादि ग्रन्थों क
े रूप में एवं
भक्ति मन्दिर, प्रेम मन्दिर जैसे दिव्य स्मारकों क
े रूप में सदैव उनकी उपस्थिति का
साक्षात्अनुभव कराते हुये, युगों युगों तक भगवत्तत्त्व जिज्ञासुओं का मार्ग दर्शन करती
रहेगी। विस्तार जानकारी हेतु हमारी वेबसाइट पर अवश्य जाए ।
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