इस 'प्रेम रस सिद्धान्त' ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता यही है कि समस्त शास्त्रीय विरोधाभासों का सुन्दर सरल भाषा में समन्वय किया गया है। आचार्य चरण ने वेदों शास्त्रों के प्रमाणों के अतिरिक्त दैनिक अनुभवों के उदाहरणों द्वारा सर्वसाधारण के लाभ को दृष्टिकोण में रखते हुए विषयों का निरूपण किया है।
1. जगद्गुरु कृ पालु साहित्य: भक्तियोग प्राधान्य
विलक्षण दार्शनिक सिद्धान्त सम्बन्धी जगद्गुरु श्री
कृ पालु जी महाराज द्वारा रचित प्रमुख मूल ग्रन्थ
प्रेम रस सिद्धान्त
इस 'प्रेम रस सिद्धान्त' ग्रन्थ की प्रमुख विशेषता यही है कि समस्त शास्त्रीय विरोधाभासों
का सुन्दर सरल भाषा में समन्वय किया गया है। आचार्य चरण ने वेदों शास्त्रों क
े प्रमाणों
क
े अतिरिक्त दैनिक अनुभवों क
े उदाहरणों द्वारा सर्वसाधारण क
े लाभ को दृष्टिकोण में
रखते हुए विषयों का निरूपण किया है। वैसे तो ज्ञान की कोई सीमा नहीं है फिर भी इस
छोटे से ग्रन्थ में जीव का चरम लक्ष्य, जीव एवं माया तथा भगवान्का स्वरूप, महापुरुष
परिचय, कर्म, ज्ञान, भक्ति, साधना आदि का ऐसा निरूपण किया है जिसे जन साधारण
भी समझ सकता है एवं समस्त शंकाओं का समाधान प्राप्त कर सकता है।
आचार्य चरण किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बद्ध नहीं हैं। अतएव उनक
े इस ग्रन्थ में सभी
आचार्यों का सम्मान किया गया है। निराकार, साकार ब्रह्म एवं अवतार रहस्य का
प्रतिपादन तो अनूठा ही है। अन्त में कर्मयोग सम्बन्धी प्रतिपादनपर विशेष जोर दिया
गया है। क्योंकि सम्पूर्ण संसारी कार्यों को करते हुए ही संसारी लोगों को अपना लक्ष्य प्राप्त
करना है। इस ग्रन्थ क
े विषय में क्या समालोचना की जाय बस गागर में सागर क
े समान
ही सम्पूर्ण तत्त्वज्ञान भरा है। जिसका पात्र जितना बड़ा होगा वह उतना ही बड़ा लाभ ले
सक
े गा। इतना ही निवेदन है कि पाठक एक बार अवश्य पढ़ें।
प्रेम रस मदिरा
आनन्दकन्द श्री कृ ष्णचन्द्र को भी क्रीतदास बना लेने वाला उन्हीं का परमान्तरंग प्रेम
तत्त्व है तथा यही प्रत्येक जीव का परम चरम लक्ष्य है। 'प्रेम रस मदिरा' में इसका विशद
निरूपण किया गया है तथा इसकी प्राप्ति का साधन भी बताया गया है। इसमें १००८ पद हैं
जिनमें श्री कृ ष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन, वेद शास्त्र, पुराणादि सम्मत एवं अनेक
महापुरुषों की वाणियों क
े मतानुसार किया गया है। सगुण-साकार ब्रह्म की सरस लीलाओं
का रस वैलक्षण्य विशेषरूपेण श्री कृ ष्णावतार में ही हुआ है। अतः इन सरस पदों का आधार
उसी अवतार की लीलाएँ हैं ।
www.jkp.org.in
2. अर्थ सहित इस पुस्तक को दो भागो में प्रकाशित किया गया है।
ब्रज रसमाधुरी
जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज की पुस्तक ब्रजरस माधुरी में उनक
े द्वारा रचित काव्य,
काव्य ही नहीं अपितु, उनक
े दिव्य प्रेम से ओतप्रोत हृदय की मधुर-मधुर झनकारें हैं। जैसा
कि पुस्तक क
े नाम से ही स्पष्ट है, दिव्य रसों में सर्वश्रेष्ठ ब्रजरस का माधुर्य निर्झरित
होता है।
ब्रजरस रसिक जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज, रसिक शिरोमणि, रसरूप श्यामसुन्दर एवं
रससिन्धु रासेश्वरी श्री राधारानी की रसमयी लीलाओं का रसास्वादन साधारण जीवों को
भी कराने क
े लिये सदैव आतुर रहते थे। अतः नित्य नये नये संकीर्तनों द्वारा
नित्यनवायमान संकीर्तन रस की वर्षा करना उनका स्वभाव था। ब्रजरस से ओतप्रोत ये
सभी संकीर्तन ब्रजरस माधुरी में संकलित किये गये हैं जो तीन भागों में प्रकाशित की गई
है।
www.jkp.org.in
3. राधा गोविंद गीत
ग्यारह हजार एक सौ ग्यारह दोहों क
े रूप में, दो भागों में प्रकाशित, यह एक अद्वितीय एवं
अनुपमेय ग्रन्थ है। वेद, पुराण, शास्त्र सभी का मन्थन करक
े ज्ञान क
े अगाध अपरिमेय
समुद्र से आचार्य श्री ने क
ु छ रन निकालकर सामने रख दिये हैं। इतनी सरल भाषा है जो
सर्वसाधारण को भी ग्राह्य है। वेदव्यास ने वेदों को सरल रूप में पुराण क
े रूप में प्रकट
किया, किन्तु ‘राधा गोविन्द गीत' में तो सभी शास्त्रों, वेदों पुराणों का सार है। आश्चर्य की
बात तो यह है कि सभी दोहे चलते-फिरते ही हँसी-खेल में ही बने हैं। भगवत्क्षेत्र सम्बन्धी
कोई भी प्रश्न ऐसा नहीं है जिसका उत्तर इसमें न हो।
सौभाग्यशाली पाठकों को पढ़ने पर ही ज्ञात होगा कि कितनी बड़ी ज्ञान- राशि उनक
े हाथ में
है, जो अगणित जन्म माथा पच्ची करने क
े बाद भी प्राप्त न हो पाती। कलियुग में दैहिक,
दैविक, भौतिक तापों से तपे हुए जीवों क
े लिये यह ग्रन्थ अत्यधिक उपयोगी है।
www.jkp.org.in
4. श्यामा श्याम गीत
ब्रजरस से आप्लावित ‘श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज की एक ऐसी
रचना है, जिसक
े प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। श्री राधाकृ ष्ण की अनेक मधुर
लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम क
े प्रेम से सराबोर कर देता है।
अधिक क्या कहा जाय, ‘श्यामा श्याम गीत' सरल भाषा, मधुरतम भाव व गेय पदावली की
एक ऐसी त्रिवेणी है, जिसमें अवगाहन करक
े ही भावुक महानुभाव इसकी लोकोत्तर
रमणीयता का यत्कि
ं चित्रसास्वादन एवं जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज क
े
'भक्तियोगरसावतार' स्वरूप की एक झलक प्राप्त कर सक
ें गे।
श्री राधाकृ ष्ण सम्बन्धी भक्ति मार्गीय सिद्धान्तों से युक्त इस ग्रन्थ में 100 दोहे हैं।
प्रत्येक दोहे की व्याख्या भी लिखी गई है। सभी शास्त्रों वेदों का सार इन दोहों में लिख दिया
गया है।
भक्ति शतक
मैं कौन ? मेरा कौन ?
आचार्य श्री ने इस ऐतिहासिक प्रवचन श्रृंखला में समस्त शास्त्रों वेदों का ज्ञान अत्यधिक
सरल सरस भाषा में प्रकट करक
े भारतीय वैदिक संस्कृ ति को सदा सदा क
े लिए
गौरवान्वित कर दिया है एवं भारत जिन कारणों से जगद्गुरु क
े रूप में प्रतिष्ठित रहा है
www.jkp.org.in
5. उसक
े मूलाधार रूप में जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज ने समस्त धर्म ग्रन्थों की दिव्य
सम्पदा को जन साधारण तक पहुँचा कर ऋषि मुनियों की परम्परा को पुनर्जीवन प्रदान
किया है।
कलियुग भगवन्नाम, गुण, लीलादि संकीर्तन ही भगवत्प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है। ‘युगल
माधुरी' दिव्य युगल श्रीराधाकृ ष्ण क
े नाम, गुणादि से सम्बन्धित संकीर्तनों का संग्रह है ।
युगल रस
महाभावरूपा महाशक्ति राधा एवं सर्वशक्तिमान्भगवान्श्रीकृ ष्ण एक ही हैं। अत: ‘युगल
रस' पुस्तक में श्री राधाकृ ष्ण दोनों की ही मधुरातिमधुर दिव्य लीलाओं का निरूपण किया
गया है।
युगल शतक
ब्रजरस में सराबोर करने वाला 'युगल-शतक' एक अद्वितीय एवं अनुपमेय ग्रन्थ है। इस
ग्रन्थ में श्रीकृ ष्ण एवं श्रीराधारानी क
े पचास- पचास पद संकलित किये गये हैं।
श्री कृ ष्ण द्वादशी
www.jkp.org.in
6. इस पुस्तक में आनंदक
ं द सच्चिदानंद श्रीकृ ष्णचन्द्र क
े सांगोपांग शास्त्रीय रूपध्यान का
दिग्दर्शन कराया गया है। प्रत्येक अंग का सौन्दर्य चित्रण इतना मनोहारी है कि बहुत कम
प्रयास से साधक क
े मानस पटल पर श्री कृ ष्ण की सजीव झाँकी अंकित हो जाती है। अतः
प्रत्येक साधक क
े लिये परम उपयोगी है।
श्री राधा त्रयोदशी
इस पुस्तक में वृषभानुनन्दिनी रासेश्वरी श्री राधारानी क
े प्रेमरस सार स्वरूप विग्रह का
सांगोपांग चित्रण अत्यन्त ही आकर्षक एवं अनूठे ढंग से किया गया है। श्री राधारानी क
े
रूपध्यान क
े लिए परम सहायक अतः भक्ति मार्गीय प्रत्येक साधक क
े लिए परम उपयोगी
है।
निष्कर्ष :
इस ब्लॉग में हमने जगद्गुरु श्री कृ पालु जी महाराज द्वारा रचित उनक
े महत्वपूर्ण
साहित्य क
े बारे में जानकारी प्रदान की है। उनकी प्रमुख ग्रंथों में से क
ु छ का उल्लेख किया
गया है, जो भक्ति, प्रेम, और भगवान क
े प्रति भक्ति योग क
े महत्वपूर्ण सिद्धांतों को
सरल और सुंदर भाषा में प्रस्तुत करते हैं। इन ग्रंथों में भगवान श्रीकृ ष्ण और श्रीराधारानी
www.jkp.org.in
7. क
े प्रेम रस का अनुभव किया जाता है, जिससे साधकों को भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने का
मार्ग प्राप्त होता है। ये ग्रंथ भक्ति योग क
े महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझाने और अपनाने
में मदद करते हैं और इन्हें पढ़ने से साधक अपने जीवन को धार्मिक और आदर्शपूर्ण बना
सकते हैं। इसी तरह, श्री कृ पालु जी महाराज क
े लेखन क
े माध्यम से वे भक्तियोग क
े
आदर्श और विचारशील दार्शनिक सिद्धांतों को लोगों तक पहुँचा रहे हैं, जो सद्गुरु क
े
आदर्शों का अनुसरण करने क
े लिए इन ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं।
www.jkp.org.in