Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 023sinfome.com
राघवदास की इच्छा - http://spiritualworld.co.in
कोपीनेश्वर महादेव के नाम से बम्बई (मुम्बई) के नजदीक थाणे के पास ही भगवन् शिव का एक प्राचीन मंदिर है|
इसी मंदिर में साईं बाबा का एक भक्त उनका पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गुणगान किया करता था| मंदिर में आने वाला राघवदास साईं बाबा का नाम और चमत्कार सुनकर ही, बिना उनके दर्शन किए ही इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह उनका अंधभक्त बन चुका था और अंतर्मन से प्रेरणा पाकर निरंतर उनका गुणवान किया करता था|
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Shirdi Shri Sai Baba Ji - Real Story 016sinfome.com
महामारी से अनूठा बचाव - http://spiritualworld.co.in
एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चले जायेंगे|"
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कोपीनेश्वर महादेव के नाम से बम्बई (मुम्बई) के नजदीक थाणे के पास ही भगवन् शिव का एक प्राचीन मंदिर है|
इसी मंदिर में साईं बाबा का एक भक्त उनका पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गुणगान किया करता था| मंदिर में आने वाला राघवदास साईं बाबा का नाम और चमत्कार सुनकर ही, बिना उनके दर्शन किए ही इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह उनका अंधभक्त बन चुका था और अंतर्मन से प्रेरणा पाकर निरंतर उनका गुणवान किया करता था|
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एक समय साईं बाबा ने लगभग दो सप्ताह से खाना-पीना छोड़ दिया था| लोग उनसे कारण पूछते तो वह केवल अपनी दायें हाथ की तर्जनी अंगुली उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें फैलाकर आकाश की ओर देखने लगते थे| लोग उनके इस संकेत का अर्थ समझने की कोशिश करते लेकिन इसका अर्थ उनकी समझ में नहीं आता था|
बस कभी-कभी उनके कांपते होठों से इतना ही निकलता - "महाकाल का मुख अब खुल चुका है| सब कुछ उसके मुख में समा जायेगा| कोई भी नहीं बचेगा| एक-एक करके सब चले जायेंगे|"
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साई बाबा बारे में - आरती - ९ गुरूवार व्रत - चालीसा - भजन - १०८ नाम - ॐ साई रामMukta Khandelwal
साई बाबा बारे में - आरती - ९ गुरूवार व्रत - चालीसा - भजन - १०८ नाम - ॐ साई राम
about sai baba, hindi devanagari 9 thursdays fast, sai chalisa, sai baba aarti
Shirdi Shri Sai Baba Ji - Vrat Niyam, Udhyapan Vidhi & Katha 006sinfome.com
श्री साईं व्रत के नियम, उद्यापन विधि व कथा - http://spiritualworld.co.in
• साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे - स्त्री, पुरुष और बच्चे|
• यह व्रत किसी भी जाति - पाति के भेद भाव बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है|
• यह व्रत बहुत ही चमत्कारी है| 1, 9, 11, अथवा 21 करने से निश्चित ही इच्छुक फल प्राप्त होता है|
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वशीकरण टोने तंत्र विद्या की एक शैली है, जिसमे किसी को अपने काबू मे करने के लिए उस व्यक्ति विशेस की पसंद की कोई चीज़ हासिल की जाती है फिर उस चीज़ को वशीकरण मंत्र के द्वारा सिद्ध किया जाता है. उसके बाद वशीकरण पूजा की जाती है तथा फिर उस चीज़ को एक नियत दिन, समय पर व्यक्ति विशेस पर आजमाया जाता है. ये क्रिया एक योग्य वशीकरण गुरु के द्वारा सम्पादित की जाती है. कोई भी वशीकरण टोना की सफलता एक योग्य गुरु पर निर्भर करती है
Shirdi sai baba exposed.. he is 100% fake.....
more info at:
http://www.vedicbharat.com/2013/04/Shirdi-sai-baba-Exposed---must-read.html
http://vaidikdharma.wordpress.com/category/शिरडी-साईं-का-पर्दाफास/
http://hinduawaken.wordpress.com/2012/01/page/2/
http://www.voiceofaryas.com/author/mishra-preyasi/
http://hindurashtra.wordpress.com/expose-sai/
http://hindurashtra.wordpress.com/2012/08/13/374/
http://hindutavamedia.blogspot.in/2013/01/blog-post_27.html#.UWAmmulJNmM
http://krantikaribadlava.blogspot.in/2013/01/blog-post_7307.html
This Presentation Is about the 2 movements of Gandhi (Champaran, Kheeda satyagrah And Quit india Movement )
And this presentation is Made IN hindi Language .
http://spiritualworld.co.in मृत राजकुमार को जीवित करना:
एक दिन बल्लू आदि सिखो ने गुरु जी से बिनती की महाराज! अनेक जातियों के लोग यहाँ दर्शन करने आतें हैं पर उनके रहने के लिए कोई खुला स्थान नहीं है, इसलिए कोई खुला माकन बनाना चाहिए| यह विनती सुनकर गुरु जी ने बाबा बुड्डा जी व अपने भतीजे सावण मल के साथ पांच सिखों को रियासत हरीपुर के राजा के पास भेजा और कहा वहाँ से मकानों के लिए लकड़ी के गठे बांधकर ब्यास नदी के रास्ते से भेजने का प्रबंध करो| सावण मल ने कहा महाराज! पहाड़ी लोग गुरु की पूजा करने वाले नहीं हैं वे मूर्ति पूजक हैं|
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Shri Guru Angad Dev Ji Guru Gaddi Milna - 014asinfome.com
http://spiritualworld.co.in श्री गुरु अंगद देव जी - गुरु गद्दी मिलना:
सिखों को श्री लहिणा जी की योग्यता दिखाने के लिए तथा दोनों साहिबजादो, भाई बुड्डा जी आदि और सिख प्रेमियों की परीक्षा के लिए आप ने कई कौतक रचे, जिनमे से कुछ का वर्णन इस प्रकार है:-
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Shri Guru Gobind Singh Sahib Ji Passing Away - 113asinfome.com
http://spiritualworld.co.in श्री गुरु गोबिंद सिंह जी - ज्योति ज्योत समाना:
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दोनों समय दीवान लगाकर संगत को उपदेश देकर निहाल करते थे| इस समय दो युवक पठान भी दीवान में उपस्थित होकर श्रद्धा भाव से गुरु जी के वचन सुनते|
एक दिन शाम के समय जब गुरु जी अपने तम्बू में विश्राम कर रहे थे तो इनमें से एक पठान गुलखां ने समय ताड़ कर आप जी के पेट में कटार के दो वार कर दिए| गुरु जी ने शीघ्र ही अपने आप को सँभालते हुए उसका सिर एक वार से धड़ से अलग कर दिया| गुलखां का साथी रुस्तमखां जो तम्बू से बाहर खड़ा था उसे पहरेदारों ने मार दिया| इसके पश्चात सिंघो ने नादेड़ नगर से जराह को बुलाकर आपके जख्मों की मरहम पट्टी कराई| तथा रोज ही आप की आरोग्यता के लिए बाणी का पाठ व अरदास करने लगे|
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Shri Guru Harkrishan Sahib Ji Sakhi - 082asinfome.com
http://spiritualworld.co.in जयसिंह की रानी की परख करनी:
राजा जयसिंह की रानी ने जब यह सुना कि बाल गुरु जी शक्तिवान हैं तो उसने आपको भोजन खिलाने के लिए महलों में बुलाया| रानी गुरु जी की शक्ति को परखना चाहती थी| इस मकसद से रानी ने सेविकाओं वाले वस्त्र पहन लिए और उनके बीच में जाकर बैठ गई| अन्तर्यामी गुरु जी जब अपनी माता सहित राजा के महल में गए तो सभी सेविकाओं ने आपको माथा टेका और बैठ गई|
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साई बाबा बारे में - आरती - ९ गुरूवार व्रत - चालीसा - भजन - १०८ नाम - ॐ साई रामMukta Khandelwal
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• साईं व्रत कोई भी कर सकतें हैं चाहे - स्त्री, पुरुष और बच्चे|
• यह व्रत किसी भी जाति - पाति के भेद भाव बिना कोई भी व्यक्ति कर सकता है|
• यह व्रत बहुत ही चमत्कारी है| 1, 9, 11, अथवा 21 करने से निश्चित ही इच्छुक फल प्राप्त होता है|
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वशीकरण टोने तंत्र विद्या की एक शैली है, जिसमे किसी को अपने काबू मे करने के लिए उस व्यक्ति विशेस की पसंद की कोई चीज़ हासिल की जाती है फिर उस चीज़ को वशीकरण मंत्र के द्वारा सिद्ध किया जाता है. उसके बाद वशीकरण पूजा की जाती है तथा फिर उस चीज़ को एक नियत दिन, समय पर व्यक्ति विशेस पर आजमाया जाता है. ये क्रिया एक योग्य वशीकरण गुरु के द्वारा सम्पादित की जाती है. कोई भी वशीकरण टोना की सफलता एक योग्य गुरु पर निर्भर करती है
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एक दिन बल्लू आदि सिखो ने गुरु जी से बिनती की महाराज! अनेक जातियों के लोग यहाँ दर्शन करने आतें हैं पर उनके रहने के लिए कोई खुला स्थान नहीं है, इसलिए कोई खुला माकन बनाना चाहिए| यह विनती सुनकर गुरु जी ने बाबा बुड्डा जी व अपने भतीजे सावण मल के साथ पांच सिखों को रियासत हरीपुर के राजा के पास भेजा और कहा वहाँ से मकानों के लिए लकड़ी के गठे बांधकर ब्यास नदी के रास्ते से भेजने का प्रबंध करो| सावण मल ने कहा महाराज! पहाड़ी लोग गुरु की पूजा करने वाले नहीं हैं वे मूर्ति पूजक हैं|
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सिखों को श्री लहिणा जी की योग्यता दिखाने के लिए तथा दोनों साहिबजादो, भाई बुड्डा जी आदि और सिख प्रेमियों की परीक्षा के लिए आप ने कई कौतक रचे, जिनमे से कुछ का वर्णन इस प्रकार है:-
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श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दोनों समय दीवान लगाकर संगत को उपदेश देकर निहाल करते थे| इस समय दो युवक पठान भी दीवान में उपस्थित होकर श्रद्धा भाव से गुरु जी के वचन सुनते|
एक दिन शाम के समय जब गुरु जी अपने तम्बू में विश्राम कर रहे थे तो इनमें से एक पठान गुलखां ने समय ताड़ कर आप जी के पेट में कटार के दो वार कर दिए| गुरु जी ने शीघ्र ही अपने आप को सँभालते हुए उसका सिर एक वार से धड़ से अलग कर दिया| गुलखां का साथी रुस्तमखां जो तम्बू से बाहर खड़ा था उसे पहरेदारों ने मार दिया| इसके पश्चात सिंघो ने नादेड़ नगर से जराह को बुलाकर आपके जख्मों की मरहम पट्टी कराई| तथा रोज ही आप की आरोग्यता के लिए बाणी का पाठ व अरदास करने लगे|
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2. जीवन
• कबीरदास के जन्म के संबंध में अनेक िकवदियान्तियाँ हैं। कबीर परियान्थियों की मान्यतिा है िक
कबीर का जन्म काशी में लहरतिारा तिालाब में उत्परन कमल के मनोहर परुष्पर के ऊपरर
बालक के रूपर में हुआ। कुछ लोगों का कहना है िक वे जन्म से मुसलमान थिे और
युवावस्थिा में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्हें ियाहन्दू धमर की बातिें मालूम हुईं। एक
िदन, एक परहर राति रहतिे ही कबीर परंचगंगा घाट की सीिढ़ियों परर ियागर परड़े। रामानन्द
जी गंगा स्नान करने के ियालये सीिढ़ियाँ उतिर रहे थिे िक तिभी उनका परैर कबीर के शरीर
परर परड़ गया। उनके मुख से तित्काल `राम-राम' शब्द ियानकल परड़ा। उसी राम को कबीर
ने दीक्षा-मन्त्र मान ियालया और रामानन्द जी को अपरना गुरु स्वीकार कर ियालया। कबीर
के ही शब्दों में-
• हम कासी में प्रकट भये हैं,
रामानन्द चेतिाये।
• कबीरपरंियाथियों में इनके जन्म के ियावषय में यह परद्य प्रियासद्ध है-
• चौदह सौ परचपरन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायति को परूरनमासी ियातिियाथि प्रगट भए॥
घन गरजें दाियामियान दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तिलाब में कमल ियाखले तिहँ कबीर भानु प्रगट भए॥
3. • संति कबीरदास िहदी साियाहत्य के भियाक्ति काल के इकलौतिे ऐसे
कियाव हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त
आडंबरों परर कुठाराघाति करतिे रहे। वह कमर प्रधान समाज के
परैरोकार थिे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़
झलकतिी है। लोक कल्याण हेतिु ही मानो उनका समस्ति जीवन
थिा। कबीर को वास्तिव में एक सच्चे ियावश्व - प्रेमी का अनुभव
थिा। कबीर की सबसे बड़ी ियावशेषतिा यह थिी िक उनकी प्रियातिभा
में अबाध गियाति और अदम्य प्रखरतिा थिी। समाज में कबीर को
जागरण युग का अग्रदूति कहा जातिा है।
4. जनमसथान
• कबीर के जनमसथान के संबंध में तीन मत है : मगहर, काशी और आजमगढ में बेलहरा
गाँव।
• मगहर के पक्ष में यह तकर्क िदिया जाता है िक कबीर ने अपनी रचना में वहाँ का उल्लेख
िकया है : "पिहले दिरसन मगहर पायो पुनिन कासी बसे आई अथार्कत् काशी में रहने से
पहले उनहोंने मगहर दिेखा। मगहर आजकल वाराणसी के िनकट ही है और वहाँ कबीर
का मक़बरा भी है।
• कबीर का अिधकांश जीवन काशी में व्यतीत हुआ। वे काशी के जुनलाहे के रूप में ही
जाने जाते है। कई बार कबीरपंिथयों का भी यही िवश्वास है िक कबीर का जनम काशी
में हुआ। िकतुन िकसी प्रमाण के अभाव में िनश्चयात्मकता अवश्य भंग होती है।
• बहुत से लोग आजमगढ िज़िले के बेलहरा गाँव को कबीर साहब का जनमसथान मानते
है।
• वे कहते है िक ‘बेलहरा’ ही बदिलते-बदिलते लहरतारा हो गया। िफिर भी पता लगाने पर
न तो बेलहरा गाँव का ठीक पता चला पाता है और न यही मालूम हो पाता है िक
बेलहरा का लहरतारा कैसे बन गया और वह आजमगढ िज़िले से काशी के पास कैसे आ
गया ? वैसे आजमगढ िज़िले में कबीर, उनके पंथ या अनुनयािययों का कोई समारक नहीं
है।
5. माता-िपता
• कबीर के माता- िपता के िवषय में भी एक राय िनिश्चत नहीं है। "नीमा' और "नीर' की
कोख से यह अनुनपम ज्योित पैदिा हुई थी, या लहर तालाब के समीप िवधवा ब्राह्मणी की
पाप- संतान के रप में आकर यह पिततपावन हुए थे, ठीक तरह से कहा नहीं जा सकता
है। कई मत यह है िक नीमा और नीर ने केवल इनका पालन- पोषण ही िकया था। एक
िकवदिंती के अनुनसार कबीर को एक िवधवा ब्राह्मणी का पुनत्र बताया जाता है, िजसको
भूल से रामानंदि जी ने पुनत्रवती होने का आशीवार्कदि दिे िदिया था।
एक जगह कबीर ने कहा है :-
• "जाित जुनलाहा नाम कबीरा
बिन बिन िफिरो उदिासी।'
• कबीर के एक पदि से प्रतीत होता है िक वे अपनी माता की मृत्युन से बहुत दिुन:खी हुए थे।
उनके िपता ने उनको बहुत सुनख िदिया था। वह एक जगह कहते है िक उसके िपता बहुत
"गुनसाई' थे। ग्रंथ साहब के एक पदि से िविदित होता है िक कबीर अपने वयनकायर्क की
उपेक्षा करके हिरनाम के रस में ही लीन रहते थे। उनकी माता को िनत्य कोश घड़ा
लेकर लीपना पड़ता था। जबसे कबीर ने माला ली थी, उसकी माता को कभी सुनख नहीं
िमला। इस कारण वह बहुत खीज गई थी। इससे यह बात सामने आती है िक उनकी
भिक्ति एवं संत- संसकार के कारण उनकी माता को कष्ट था।
6. बचपन
• कबीरदिास का लालन-पालन जुनलाहा पिरवार में हुआ था,
इसिलए उनके मत का महत्त्वपूणर्क अंश यिदि इस जाित के
परंपरागत िवश्वासों से प्रभािवत रहा हो तो इसमें आश्चयर्क की
कोई बात नहीं है। यद्यपिप 'जुनलाहा' शब्दि फ़ारसी भाषा का है,
तथािप इस जाित की उत्पित्ति के िवषय में संसकृत पुनराणों में
कुनछ-न-कुनछ चचार्क िमलती ही है। ब्रह्मवैवतर्क पुनराण के ब्रह्म खंड
के दिसवें अध्याय में बताया गया है िक म्लेच्छ से कुनिवदिकनया
में 'जोला' या जुनलाहा जाित की उत्पित्ति हुई है।अथार्कत म्लेच्छ
िपता और कुनिवदि माता से जो संतित हुई वही जुनलाहा
कहलाई।
7. जुलाहा
• जुलाहे मुसलमान है, पर इनसे अन्य मुसलमानों का मौलिलक भेद है।
सन् 1901 की मनुष्य-गणना के आधार पर िरजली साहब ने 'पीपुल्स ऑफ़ इंडिडिया'
नामक एक ग्रंडथ िलखा था। इस ग्रंडथ में उन्होंने तीन मुसलमान जाितयों की तुलना की
थी। वे तीन है: सैयद, पठान और जुलाहे। इनमें पठान तो भारतवष र्ष में सवर्षत्र फै ले हुए है
पर उनकी संडख्या कहीं भी बहुत अिधक नहीं है। जान पड़ता है िक बाहर से आकर वे
नाना स्थानों पर अपनी सुिवधा के अनुसार बस गए। पर जुलाहे पंडजाब, उत्तर प्रदेश,
िबहार और बंडगाल में ही पाए जाते है। िजन िदनों कबीरदास इस इस जुलाहा-जाित को
अलंडकृत कर रहे थे उन िदनों, ऐसा जान पड़ता है िक इस जाित ने अभी एकाध पुश्त से
ही मुसलमानी धमर्ष ग्रहण िकया था। कबीरदास की वाणी को समझने के िलए यह
िनहायत जरूरी है िक हम इस बात की जानकारी प्राप्त कर ले िक उन िदनों इस जाित
के बचे-कुचे पुराने संडस्कार क्या थे।
• उत्तर भारत के वयनजीिवयों में कोरी मुख्य है। बेन्स जुलाहों को कोिरयों की समशील
जाित ही मानते है। कुछेक पंडिडितों ने यह भी अनुमान िकया है िक मुसलमानी धमर्ष ग्रहण
करने वाले कोरी ही जुलाहे है। यह उल्लेख िकया जा सकता है िक कबीरदास जहाँ
अपने को बार-बार जुलाहा कहते है,
• (1) जाित जुलाहा मित कौल धीर। हरिष गुन रमै कबीर।
(2) तू ब्राह्मन मै काशी का जुलाहा।
8. कबीर के दोहे
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक िदन ऐसा आएगा, मै रौंदूगी तोय॥
माला फे रत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डिारिर दे, मन का मनका फे र॥
ितनका कबहुंड ना िनदए, जो पांडव तले होए।
कबहुंड उड़ अंडिखयन पड़े, पीर घनेरी होए॥
गुरु गोिवद दोऊंड खड़े, काके लागूंड पांडय।
बिलहारी गुरु आपकी, गोिवद िदयो बताय॥
साईं इतना दीिजए, जा मे कुटुम समाय।
मै भी भूखा न रहूंड, साधु ना भूखा जाय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौल घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरा ते नर अंडध है, गुरु को कहते और।
हिर रूठे गुरु ठौलर है, गुरु रूठे नहीं ठौलर॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥
रात गंडवाई सोय के , िदवस गंडवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥
दुःख में सुिमरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुिमरन करे तो दुःख काहे होय॥
बडिा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंडथी को छाया नहीं फल लागे अित दूर॥
उठा बगुला प्रेम का ितनका चढ़ा अकास।
ितनका ितनके से िमला ितन का ितन के पास॥
9. िशका
• कबीर बड़े होने लगे। कबीर पढ़े-िलखे नहीं थे- अपनी अवस्था
के बालकों से एकदम िभन्न रहते थे। कबीरदास की खेल में
कोई रुिच नहीं थी। मदरसे भेजने लायक़ साधन िपता-माता के
पास नहीं थे। िजसे हर िदन भोजन के िलए ही िचता रहती
हो, उस िपता के मन में कबीर को पढ़ाने का िवचार भी न
उठा होगा। यही कारण है िक वे िकताबी िवद्या प्राप्त न कर
सके।
• मिस कागद छूवो नहीं, क़लम गही निह हाथ।उन्होंने स्वयंड ग्रंडथ
नहीं िलखे, मुँह से बोले और उनके िशष्यों ने उसे िलख िलया।
10. मृतयु
• कबीर ने काशी के पास मगहर में देह तयाग दी। ऐसी मान्यता है िक मृतयु
के बाद उनके शव को लेकर िववाद उतपन्न हो गया था। िहन्दू कहते थे
िक उनका अंतितम संतस्कार िहन्दू रीित से होना चािहए और मुिस्लम कहते
थे िक मुिस्लम रीित से। इसी िववाद के चलते जब उनके शव पर से
चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फू लों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से
आधे फू ल िहन्दुओं ने ले िलए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने
मुिस्लम रीित से और िहदुओं ने िहदू रीित से उन फू लों का अंतितम
संतस्कार िकया। मगहर में कबीर की समािध है। जन्म की भाँित इनकी
मृतयु ितिथ एवंत घटना को लेकर भी मतभेद हैं िकन्तु अिधकतर िवद्वान
उनकी मृतयु संतवत 1575 िवक्रमी (सन 1518 ई.) मानते हैं, लेिकन बाद
के कुछ इितहासकार उनकी मृतयु 1448 को मानते हैं।