अभी तो दुनिया से कोरोना वायरस का खतरा पूरी तरह ख़त्म भी नही हुआ और फिर से एक नये वायरस ने हमला बोल दिया है। पुरे विश्व के कई देशों में इस वायरस के मामले पाए गये है, जिसे लोग "मंकी वायरस या मंकीपॉक्स" के नाम से जानते है। यह बीमारी पहली बार 1958 में ब्रिटेन से शुरू हुई थी और अब यह कनाडा, स्पेन, बेल्जियम, जर्मनी, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में तेजी से बढ़ रहे है, लेकिन भारत में अभी भी इसका असर नही है। इस बीमारी के वायरस मुख्य रूप से मंकी यानि बंदरो में और इसके जैसे बहुत से जंगली जानवरों में भी पाया जाता है। इस बीमारी के मरीज को शुरुआत में ठंढ लगना, पुरे शरीर के मांशपेशियो में दर्द, थकान, तेज सरदर्द और बुखार जैसे मुख्य लक्षण दिखते है। जब यह बीमारी अपने गंभीर रूप में आने लगता है तो हाथ, पैर, चेहरे एवं शरीर के अन्य हिस्सों में दाने और चकते भी हो जाते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने ये सन्देश जारी किया है कि इसे महामारी घोषित कर देना चाहिए। चूकि यह बीमारी पहली बार बंदरो से इंसानों में पहुँची है और इसके चकते भी दिखने में वैसे ही लगते है, इसीलिए इसे मंकीपॉक्स नाम दिया गया है। ये बीमारी किसी भी संक्रमित इंसान के संपर्क में आने वाले व्यक्ति को भी हो सकती है क्योंकि यह एक-दूसरे के संपर्क में आने से भी फैलती है। मंकीपॉक्स वायरस का संचरण तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी जानवर, मानव या वायरस से दूषित सामग्री के, वायरस के संपर्क में आता है। मंकीपॉक्स वायरस त्वचा, आंख, नाक या मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह संक्रमित जानवर के काटने से, या उसके खून, शरीर के तरल पदार्थ, या फर को छूने से हो सकता है। संक्रमित जानवर का मांस खाने, असुरक्षित यौन सम्बन्धों से भी मंकीपॉक्स हो सकता है। कैसे करे मंकी पॉक्स का इलाज मंकीपॉक्स वाले अधिकांश लोग आमतौर पर विशिष्ट उपचार के बिना दो से चार सप्ताह के भीतर ठीक हो जाते हैं। मंकीपॉक्स का कोई विशेष और निश्चित इलाज अभी उपलब्ध नही है, क्योंकि ये वायरस उतना अधिक भयावह नही है। फिर भी जिन लोगों में इस वायरस का संदेह हो या जो लोग इससे प्रभावित हो उन्हें चेचक के इलाज के अनुसार ही इलाज किया जाना चाहिए। जैसे: अलग–अलग कमरों में रखना, वैसे जानवरों के संपर्क में आने से बचना जिनसे वायरस के फैलने का खतरा अधिक हो। किसी कारण से आप संपर्क में आ भी जाए तो हाथों को साबुन, पानी, हैण्ड सेनेटाईजर जैसे चीजो का प्रयोग करके आप इसके असर से बच सकते है। इन सबके साथ ही असुरक्षित यौनसंबंधो से भी बचे, क्योंकि एक बिस्तर का उपयोग भी इसे फैलाने में बहुत सहायक साबित हो सकता है। आमतौर पर चेचक के लिए उपयोग किए जाने वाले एंटीवायरस को प्रयोगशाला अध्ययनों और पशु परीक्षणों में प्रभावी दिखाया गया है।