SlideShare a Scribd company logo
1 of 31
1
वृद्धजन स्वंम सहायता समूह
सेंटर फॉर कम्युननटी इकोनोममक्स एण्ड डेवलपमेंट क
ं सलटेंट्स सोसायटी
(मसकोईडडकोन)
स्वराज ,एफ -159-160, सीतापुरा ओधौगिक एवंम संस्थाननक क्षेत्र, जयपुर -302022
Email: cecoedecon@gmail.com
Website: www.cecoedecon.org.in
अंतपीढ़ी सवांद मंच (स्टोरी टेमलंि क्लब )
2
fldksbZfMdksu lLFkk का पररचय:
सिकोईडिकोन- (सामुदानयक आगथिक ववकास एवं परमर्ि क
ें द्र)
सिकोईडिकोन- एक स्वैच्छिक संस्था है च्जसकी स्थापना 1982 में राजस्थान क
े जयपुर
च्जले में आई ववनार्कारी बाढ़ से प्रभाववत लोिों को तात्कामलक राहत पंहुचाने क
े मलए की
िई | तभी से संस्था समुदाय क
े ववमभन्न विों जैसे आददवासी, दमलत,िोटे व् िरीब ककसान,
बुजुिों, मदहलाओं,युवाओं,बछचों से जुड़ें ववमभन्न मुद्दों जैसे – आजीववका सुरक्षा,मर्क्षा,
स्वास््य, पेयजल,पोषण,व् मूल अगधकारों से सम्बंगधत से जुड़े ववमभन्न मुद्दों क
े समाधान
हेतु वपिले 39 वषों से राजस्थान क
े जयपुर,टोंक ,सवाईमाधोपुर ,दौसा ,जैसलमेर ,बारां,
कोटा,बाड़मेर व् करौली च्जलों में समुदाय आधाररत संिठनों क
े माध्यम से ग्रामीण ववकास क
े
स्वावलंबन हेतु सतत प्रयासरत है |
1.,YMj ds;j ifj;kstuk |
एल्िर क
े यर पररयोजना करौली - ग्रामीण समुदाय में वृद्धजनों क
े सामाच्जक एवं
आगथिक जीवन स्तर में सुधार करने हेतु ददसंबर 2020 से राजस्थान राज्य क
े करौली च्जले
की करौली, मासलपुर व् मंडरायल ब्लाक में NSE नेशनल स्टॉक एक्िचेंज फाउंिेशन क
े
सहयोि से एल्डर क
े यर पररयोजना की र्ुरुआत की िई | इस पररयोजना क
े माध्यम से
करौली व् मासलपुर ब्लाक क
े 212 िांवों में एवं मंडरायल क
े 77 िााँव, क
ु ल 289 िांवों में
वृद्धजनों की सामाच्जक एवं आगथिक सुरक्षा व् क्षमताओं को बढ़ाना , च्जससे सभी वृद्धजन
सम्मान जनक जीवन जी सक
े |
3
राज्य - राजस्थान
जजला –करौली
2. बुजुर्गों की जस्थति : िन्दर्भ
भारत देर् तेजी से बढ़ती उम्र की आबादी की ओर बढ़ रहा है वषि 2011 की जनिणना क
े
अनुसार देर् में क
ु ल आबादी का (8.6%) 60 वषि से अगधक उम्र वाली संख्या है ।
यूएनएफपीए क
े एक अध्ययन क
े अनुसार 60 वषि से अगधक आयु की जनसंख्या का दहस्सा
2015 में 8 प्रनतर्त से बढ़कर 2050 में 19 प्रनतर्त हो जाने का अनुमान है, अध्ययन क
े
आंकड़े यह भी इर्ारे करते हैं कक बुजुिों की वृद्गध दर अन्य सभी आयु विों से अगधक होिी
जो ननभिरता अनुपात में वृद्गध को दर्ािती है।
राजस्थान राज्य में वृद्धावस्था चरम अवस्था में पहुाँच िई है | 2011 क
े सवे क
े अनुसार
राज्य में क
ु ल 51.12 लाख बुजुिि है च्जनमे 26.8 मदहला एवं 24.3 पुरुष है | 60 व उससे
अगधक आयु क
े लोिों की संख्या राजस्थान की क
ु ल जनसाँख्या का 7.7 प्रनतर्त है | 78
प्रनतसत बुजुिि ग्रामीण क्षेत्र में रहते है |
करौली च्जला मानवीय ववकास की द्रच्टटकोण से राजस्थान राज्य का वपिड़ा च्जला है |च्जले
क
े ग्रामीण इलाकों में भी बुननयादी ढांचे की च्स्थनत और भी खराब है। खराब बुननयादी ढांचे
(सड़कों और आवास), खराब साविजननक स्वास््य देखभाल प्रणाली और खराब स्वछिता क
े
4
कारण सबसे अगधक पीडड़त बुजुिि ही हैं। करौली च्जले में ग्रामीण समुदायों क
े बुजुिों को
जािरूकता की कमी, प्रासंगिक कल्याण सेवाओं तक सीममत पहुंच और पुरानी आबादी की
जरूरतों का समथिन करने क
े मलए अपयािप्त बुननयादी ढांचे क
े कारण अगधक चुनौनतयों का
सामना करना पड़ता है। च्जले में स्थानीय खनन उद्योि क
े सकिय और ननच्टिय प्रभावों से
प्रभाववत है इस क्षेत्र क
े अगधकांर् युवा काम धंधे की तलार् और अपनी जरुरत पूनति क
े मलए
टाइल व् माबिल कफदटंि का कायि करने क
े मलए च्जले से बाहर काम करने जाते है | च्जनक
े
मााँ बाप/बुजुिि घर पर ही रहते है च्जन्हें अपनी दैननक जरूरत पूनति, (खाना,कपडा,दवाई,अन्य
जरुरी सामन) आदद क
े मलए भी परेर्ान होना पड़ता है| ग्रामीण क्षेत्र में बुजुिों की देखभाल व्
पररवार क
े साथ रखने में भी दूररयााँ बढ़ी है | आबादी क
े एक बड़े दहस्से क
े साथ, उनको
स्वास््य से सम्बंगधत कई चुनौनतयों का सामना करना पड़ता है। पुरुषों में प्रचमलत टीबी और
मसमलकोमसस जैसी फ
े फड़ों की बीमाररयों क
े मलए पयािप्त सहायता क
े प्रावधान की आवश्यकता
होती है, आमतौर पर उपलब्ध योजनाओं तक पहुंच में जािरूकता की कमी क
े कारण
अगधकांर् लोिों को लाभ नहीं ममल पाता है।
अंिपीढ़ी िवांद मंच (स्टोरी टेसलंर्ग क्लब ) क्या है ?
बुजुिों का समाज में बछचो व् युवा विि क
े साथ बछचो की देखभाल व् संभाल करने बहुत ही
महत्तवपूणि भूममका रही है | आज भी हमारे बुजुिि अभी भी अपने भूममकाये ननभाते आ रहे है,
पर बुजुिों को र्ायद ही कभी इन सेवाओं क
े मलए कोई पहचान ममलती है|
और जब समाज में बुजुिों को जरुरत होती है तो उन्हें अक्सर आगित क
े रूप में देखा जाता
है |
अंतपीढी सवांद मंच (स्टोरी टीमलंि क्लब) एक ऐसा मंच,जिह जहााँ पर बुजुिों व् बछचों क
े
मध्य बातचीत करने, अनुभव र्ेयर करने, एक दुसरे की पररच्स्थनत एवं अपनी भूममका व्
च्जम्मेदाररयों को समझते हुये बछचों व् बुजुिों क
े मध्य सम्बन्ध स्थावपत करने की प्रककया
जो बार बार दोहराई जाये |
5
अंिपीढ़ी िवांद मंच (स्टोरी टेसलंर्ग क्लब) क
े उद्देश्य |
 बुजुिों की भूममका क
े महत्व को समझना |
 स्थानीय मूल्य प्रणाली पर काम करना |
 स्थानीय बुजुिों एवं बछचों क
े मध्य चैनल प्रदान करना |
 बुजुिों को अनुभव बछचो क
े साथ र्ेयर करवाना |
 बुजुिों एवं बछचों क
े मध्य सामाच्जक सम्बन्ध बनाने में मदद करना |
 बुजुिों व् बछचों क
े मध्य एक दुसरे क
े प्रनत सहायता संबध प्रणाली पर काम करना |
 बछचें एवं बुजुिि एक दुसरे क
े पूरक बने |
अंतपीढ़ी सवांद मंच क
े मलए आवश्यकता |
वृद्धजन स्वंम सहायता समूह सदस्यों क
े पररवारों में रहने वाले 5 से 14 वषि आयु विि क
े
बछचो की सूची तैयार करना |
अंतपीढ़ी सवांद मंच पर स्टोरी टेमलंि क
े मलए 15 से 20 बछचों का होना अननवायि है | इसमें
यह भी सुननच्श्चत ककया जाना चादहए की च्जन बछचो क
े नाम सूची में है उन बछचों में से ही
इस सवांद में भाि लेवें
बछचों व बुजुिों क
े मध्य तीन माह में एक बार अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक करना
अननवायि है |
अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक में बुजुिों या सामुदानयक कायिकत्ताि द्वारा नैनतक मर्क्षा, बुजुिों
क
े महत्व, जरुरत, पररगथनतयों, व् उनकी मदद आदद को समझने वाली सामाच्जक मर्क्षा,
पाररवाररक मर्क्षा, प्राचीन समय की परम्परा रीनत ररवाजों, सामाच्जक मसस्टम,खेती एवं
ज्ञानवधिक कहाननयां भी सुनाई जा सकती है | बछचों क
े साथ कहाननयों से ममलने वाली सीख
पर बातचीत होनी चादहए | च्जससे बछचे अपने दैननक व्यवहार में सकारात्मक बदलाव ला
पायें और बुजुिों क
े साथ समय व्यतीत करना र्ुरू करें एवं बछचों व् बुजुिों क
े मध्य
दोस्ताना सम्बन्ध स्थावपत करने में मदद ममले व् एक दुसरे क
े पूरक बन सक
ें |
अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक में बुजुिों या सामुदानयक कायिकत्ताि द्वारा ननम्न कहाननयां भी
सुनाई जा सकती है और इनक
े अलावा अन्य कहाननया का संकलन है तो उन्हें सुना सकते है
|
6
1. अकल की दुकान
िुनो र्ई कहानी:क्या िचमुच अक़्ल ख़रीदी या बेची जा िकिी है?
 अक़्ल बेचने वाले का पहले तो बहुत मखौल उड़ाया िया। ककसी को उससे िटांक-भर अक़्ल
नहीं ख़रीदनी थी, लेककन कफर एक सेठ क
े बेटे ने एक पैसे का सौदा ककया और दुकान चल
ननकली।
एक ग़रीब अनाथ ब्राह्मण लड़का था। आजीववका क
े मलए न कोई साधन था और न ही कोई
काम। पर वह चतुर था। बचपन में वपता को देखकर वह कई बातें सीख िया था। एक ददन
उसक
े ददमाग़ में एक अद्भुत ववचार आया। वह र्हर िया। वहां उसने एक सस्ती-सी दुकान
ककराए पर ली। दो-एक पैसे ख़चि करक
े क़लम, स्याही, क़ािज वग़ैराह ख़रीदे और दुकान पर
तख़्ती टांि दी। तख़्ती पर मलखा था, ‘अक़्ल बबकाऊ है।’ उस दुकान क
े इदि-गिदि सेठों की बड़ी-
बड़ी दुकानें थीं। वे कपड़े, िहने, फल, सच्ब्ियां वग़ैरह रोिमराि की चीिों का कारोबार करते थे।
ब्राह्मण का बेटा ददनभर िला फाड़ता रहा, ‘अक़्ल! तरह-तरह की अक़्ल! अक़्ल बबकाऊ है!
सही दाम, एक दाम!’ सौदा-सुलफ क
े मलए आने वाले लोिों ने सोचा कक वह सनक िया है।
उसकी दुकान क
े आिे तमार्बीनों की भीड़ लि िई। सबने उसकी खखल्ली उड़ाई, पर ककसी ने
एक िदाम की भी अक़्ल नहीं ख़रीदी। पर ब्राह्मण क
े बेटे ने धीरज नहीं खोया।
7
एक ददन ककसी धनी सेठ का मूखि लड़का उधर से िुिरा। उसने ब्राह्मण क
े लड़क
े को आवाि
लिाते सुना, ‘अक़्ल लो अक़्ल! तरह-तरह की अक़्ल! यहां अक़्ल बबकती है!’ सेठ क
े बेटे क
े
क
ु ि पल्ले नहीं पड़ा कक वह क्या बेच रहा है। उसने सोचा कक वह कोई सब्िी या ऐसी चीि
है च्जसे उठाकर ले जाया जा सकता है। सो उसने ब्राह्मण क
े बेटे से पूिा कक एक सेर का
क्या दाम लोिे। ब्राह्मण क
े बेटे ने कहा, ‘मैं अक़्ल को तौलकर नहीं, उसकी कक़स्म से बेचता
हूं।’ सेठ क
े बेटे ने एक पैसे का मसक्का ननकाला और बोला, ‘एक पैसे की जो और च्जतनी
अक़्ल आती हो, दे दो!’ ब्राह्मण क
े बेटे ने एक क़ािज का पुरिा मलया और उस पर मलखा,
‘जब दो आदमी झिड़ रहे हों तो वहां खड़े होकर उन्हें देखना अक़्लमंदी नहीं है।’ और पुरिा
सेठ क
े बेटे को देते हुए कहा कक वह उसे अपनी पिड़ी में बांध ले। सेठ का बेटा घर िया
और पुरिा वपता को ददखाते हुए कहा, ‘मैंने एक पैसे ही अक़्ल ख़रीदी है, यह देखखए!’ सेठ ने
क़ािज का टुकड़ा मलया और पढ़ा, ‘जब दो आदमी झिड़ रहे हों तो वहां खड़े होकर उन्हें
देखना अक़्लमंदी नहीं है।’ सेठ का पारा चढ़ िया। वह बेटे पर बरस पड़ा, ‘िधा कहीं का। इस
बकवास का एक पैसा। यह तो हर कोई जानता है कक जब दो जने झिड़ रहे हों तो वहां खड़ा
नहीं रहना चादहए।’ कफर सेठ बािार िया और ब्राह्मण क
े बेटे की दुकान पर जाकर उसे बुरा-
भला कहने लिा, ‘बदमार्, तूने मेरे बेटे को ठिा है। वह बेवक
ू फ है और तू ठि। सीधे-सीधे
पैसा लौटा दे, नहीं तो मैं दरोिा को बुलाता हूं।’ ब्राह्मण क
े बेटे ने कहा, ‘अिर आपको मेरा
माल नहीं चादहए तो वापस कर दो। मेरी सलाह मुझे लौटा दो और अपना पैसा ले जाओ।’
सेठ ने क़ािज क
े टुकड़े को उसकी तरफ़ फ
ें कते हुए कहा, ‘यह लो और मेरा पैसा वापस करो।’
ब्राह्मण क
े बेटे ने कहा, ‘पुरिा नहीं, मेरी सलाह वापस करो। अिर अपना पैसा वापस चादहए
तो आपको यह मलखकर देना होिा कक आपका बेटा कभी मेरी सलाह पर नहीं चलेिा और
जहां दो लोि लड़ रहे होंिे वहां वह िरूर खड़ा रहेिा और लड़ाई देखेिा।’ पड़ोमसयों और
राहिीरों ने ब्राह्मण का पक्ष मलया। सेठ ने तुरंत ब्राह्मण क
े कहे अनुसार मलखा, उस पर
हस्ताक्षर ककए और अपना पैसा वापस ले मलया। वह ख़ुर् था कक इतनी आसानी से उसने
अपने बेटे क
े मूखितापूणि सौदे को रद्द कर ददया।
उस राज्य क
े राजा की दो राननयां थीं और दोनों एक-दूसरे काेे फ
ू टी आंख नहीं सुहाती थीं।
और तो और, उनकी दामसयां भी एक-दूसरे को र्त्रु समझती थीं। अपनी मालककनों की तरह वे
भी झिड़े का कोई मौक़ा हाथ से नहीं जाने देती थीं। एक ददन दोनों राननयों ने अपनी एक-
एक दासी को बािार भेजा। दोनों दामसयां एक ही दुकान पर िईं और दोनों ने एक ही कद्दू
लेना चाहा। दुकान पर एक ही कद्दू था और दोनों उसे अपनी रसोई क
े मलए ख़रीदना चाहती
थीं। वे झिड़ने लिीं। उनकी िबान और हाथ इतने तेि चल रहे थे कक बेचारा दुकानदार
8
भाि खड़ा हुआ। उधर से िुिरते हुए सेठ क
े लड़क
े ने उन्हें झिड़ते देखा तो उसे अपने वपता
और ब्राह्मण क
े बेटे का करार याद आया और वह उनका झिड़ा देखने क
े मलए रुक िया।
िुत्थमिुत्था दामसयों ने एक-दूसरे क
े बाल नोंच मलए और दनादन लात-घूंसे बरसाने लिीं।
एक दासी ने सेठ क
े बेटे को देखकर कहा, ‘तुम िवाह हो, इसने मुझे मारा।’ दूसरी गचल्लाई,
‘तुमने अपनी आंखों से देखा है कक ककसने ककसको मारा। तुम मेरे िवाह हो, इसने मुझे
ककतना मारा।’ कफर उन्हें ध्यान आया कक उन्हें और भी कई काम करने हैं। कहीं उन्हें लौटने
में देर न हो जाए। सो वे चली िईं। दामसयों ने अपनी-अपनी मालककनों को ख़ूब मसाला
लिाकर झिड़े का हाल सुनाया। राननयों का मन सुलि उठा। उन्होंने राजा से मर्क़ायत की।
दोनों राननयों ने सेठ क
े बेटे को कहलवाया कक उसे उसकी तरफ़ से िवाही देनी है। अिर
उसने उसका पक्ष नहीं मलया तो वह उसका सर कलम करवा देिी। सेठ क
े बेटे क
े होर् उड़
िए। सेठ को इसका पता चला तो उसक
े देवता क
ू च कर िए। आखख़र बेटे ने कहा, ‘चलो,
ब्राह्मण क
े बेटे से पूिते हैं। वह अक़्ल बेचता है। देखें, वह इस मुसीबत से ि
ु टकारा पाने क
े
मलए क्या सलाह देता है।’ सो सेठ और उसका लड़का ब्राह्मण क
े बेटे क
े पास िए। ब्राह्मणपुत्र
ने कहा कक वह सेठ क
े बेटे को बचा लेिा, पर इसका र्ुल्क पांच सौ रुपया होिा। सेठ ने पांच
सौ रुपए दे ददए। ब्राह्मण क
े बेटे ने कहा, ‘जब वे तुम्हें बुलाए तो तुम पािल होने का स्वांि
करना। ऐसा ददखावा करना जैसे उनकी कोई भी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही।’ अिले
ददन राजा ने िवाह को तलब ददया। राजा और मंत्री ने उससे कई सवाल पूिे , पर उसने एक
का भी जवाब नहीं ददया। उसकी बड़बड़ाहट और आयं-बायं-र्ायं का एक भी र्ब्द राजा क
े
पल्ले नहीं पड़ा। झुंझलाकर राजा ने उसे कचहरी से बाहर ननकलवा ददया। इससे सेठ का बेटा
इतना ख़ुर् हुआ कक उसे जो भी ममलता उससे वह ब्राह्मणपुत्र की बुद्गधमानी का बखान
करता। र्हर में ब्राह्मणपुत्र क
े कई कक़स्से प्रचमलत हो िए। पर सेठ प्रसन्न नहीं था। उसे
लिा कक उसक
े बेटे को हमेर्ा पािल का स्वांि करना पड़ेिा, नहीं तो राजा को पता चल
जाएिा कक उसक
े साथ िल ककया िया है। तब वह उसक
े इकलौते बेटे का सर धड़ से अलि
करवा देिा। सो वे कफर ब्राह्मणपुत्र क
े पास सलाह लेने िए। ब्राह्मणपुत्र ने कफर पांच सौ
रुपये र्ुल्क मलया और कहा, ‘जब महाराज का मन अछिा हो तो उन्हें सछची बात बता दो।
इससे उनका मनबहलाव होिा और वे तुम्हें माफ़ कर देंिे। पर यह ध्यान रखना कक उस
समय उनका मन प्रसन्न हो।’ सेठ क
े बेटे ने वैसा ही ककया। सारी बात सुनकर राजा ख़ूब हंसा
और उसे क्षमा कर ददया। यह कक़स्सा सुनकर राजा ब्राह्मणपुत्र क
े बारे में और जानने क
े
मलए उत्सुक हो उठा। उसने उसे बुलवाया और पूिा कक क्या उसक
े पास बेचने क
े मलए और
भी अक़्ल है। ब्राह्मणपुत्र ने कहा, ‘क्यों नहीं, बहुत है। ववर्ेषकर राजा क
े मलए तो उसक
े पास
अक़्ल का भंडार है। पर मेरा र्ुल्क एक लाख रुपया होिा।’ राजा ने उसे एक लाख रुपए दे
9
ददए। उसने राजा को एक पुरिा ददया। उस पर मलखा था, ‘क
ु ि भी करने से पहले ख़ूब सोच
लेना चादहए।’ इस सलाह से राजा इतना ख़ुर् हुआ कक उसने इसे अपना सूत्र वाक्य बना
मलया। उसने इसे अपने तककयों क
े गिलाफ पर कसीदे में बुनवा ददया और प्यालों, तश्तररयों
आदद पर खुदवा ददया, ताकक वह इसे कभी भूले नहीं।
क
ु ि महीने बाद राजा बीमार पड़ िया। मंत्री और एक रानी ने राजा से ि
ु टकारा पाने का
षड्यंत्र रचा। वैद्य को घूस देकर उन्होंने उसे अपने साथ ममलाया और उसे राजा को दवाई क
े
बदले िहर देने क
े मलए रािी कर मलया। ‘दवाई’ राजा क
े सामने लाई िई। राजा सोने का
प्याला होठों तक ले िया। तभी उसकी निर प्याले पर खुदे र्ब्दों पर पड़ी, ‘क
ु ि भी करने से
पहले ख़ूब सोच लेना चादहए।’ बबना ककसी तरह का र्क़ ककए इन र्ब्दों पर मनन करते हुए
उसने प्याले को नीचे ककया और ‘दवाई’ को देखने लिा। यह देखकर वैद्य घबरा िया। उसका
अपराधी मन यह सोचकर कांप िया कक राजा को दवा में ममले िहर का पता चल िया है।
वह राजा क
े पांवों में गिर पड़ा और क्षमा की याचना करने लिा। राजा स्तब्ध रह िया। पर
र्ीघ्र ही वह संभल िया और पहरेदारों को बुलवा कर वैद्य को कारािार में डलवा ददया। कफर
उसने मंत्री और कपटी रानी को बुलवाया और उन्हें प्याले क
े जहर को पीने क
े मलए कहा।
दोनों ने राजा क
े पांव पकड़कर दया की भीख मांिी। राजा ने तत्काल उनको और वैद्य को
देर् ननकाला दे ददया। ब्राह्मण पुत्र को उसने अपना मंत्री बनाया और उसे धन और पुरस्कारों
से लाद ददया। }}} (साभार पुस्तक- भारत की लोक कथाएं, संकलन एवं संपादन- ए. क
े .
रामानुजन, अनुवाद- क
ै लार् कबीर)
 कहानी से क्या समझ आया ?
 ब्राह्मण पुत्र मंत्री क
ै से बना ?
 इस कहानी से क्या सीख ममलती है ?
10
2.चालक लोमड़ी
ककसी जंिल में एक लोमड़ी का पररवार रहता था। जब मादा लोमड़ी िभिवती हुई तो उसने
अपने पनत से घर का इंतजाम करने को कहा। इस पर पनत लोमड़ी बहुति ेंचंनतत हो िया,
लेककन उसने वादा ककया कक वह घर का इंतजाम जरूर कर देिा। जब बछचों क
े जन्म का
समय आया तो लोमड़ी अपनी पत्नी को बाघ की िुफा में ले िया।
तब िुफा खाली थी। बाघ खखाकर क
े मलए बाहर िया हुआ था। िुफा देखकर मादा लोमड़ी
बहुत खुर् हुई। उसने िुफा में बछचों को जन्म दे ददया। इसक
े बाद लोमड़ी ने अपनी पत्नी
को बता ददया कक िुफा बाघ की है। वह हर वक्त िुफा क
े द्वार पर बैठा रहता था। उससे
पत्नी क
े साथ ममलकर एक योजना बनाई । जैसे ही वहां बाघ आया, मादा लोमड़ी ने योजना
क
े तहत बछचों को रुला ददया। पनत लोमड़ी ने पूिा कक बछचे क्यों रो रहे हैं तो मादा ने जोर
से जवाब ददया कक बाघ का मांस मांि रहे हैं।
ऐसा सुनते ही बाघ घबरा िया और सोचने लिा कक िुफा में उससे भी ताकतवर जानवर आ
िया है, तभी तो बाघ का मांस मांि रहा है। वह िुफा िोड़कर भाि िया। रास्ते में उसका
दोस्त बंदर ममला। बंदर जानता था कक िुफा में लोमड़ी का पररवार रह रहा है। उसने बाघ को
समझाया। पहले तो बाघ मानने को तैयार नहीं हुआ, लेककन बाद में बंदर क
े साथ िुफा में
जाने को तैयार हो िया। जैसे ही बाघ बंदर क
े साथ िुफा क
े ननकट पहुंचा, लोमड़ी ने जोर-
र्ोर से कहना र्ुरू कर ददया कक हे बंदर जब तक तू हमारा नौकर था, तब तो रोज चार-चार
बाघ लाता था और अब मसफ
ि एक बाघ ला रहा है। ऐसा सुनकर बाघ को लिा कक बंदर ने
उसक
े साथ ववश्वासघात ककया है, उसने बंदर को मार ददया और खुद भी िुफा िोड़कर भाि
िया। इस तरह लोमड़ी ने चालाकी से बाघ की िुफा को हड़प मलया।
11
3.रस्सीये जकड़,डण्डे मार
एक िांव में एक दजी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी।
उस दजी क
े तीन बेटे थे। वे दजी-पुत्र जब बड़े हुए तो दजी ने उन्हें बकरी चराने का काम
सौंपा। वह बकरी ददन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दजी र्ाम को उस पर हाथ
फ
े र कर उससे हाल पूिता, तो वह कहती-आपक
े बेटे मुझे मैदान में एक खूंटे से बांध कर
रखते हैं। वह स्वयं खेलते रहते हैं और मैं भूखी रहती हूं।
दजी बहुत ददनों तक बात टालता रहा। कफर एक ददन उसने बेटों को डांट-डपट कर कहा-
ननकल जाओ घर से, तुम सब ननकम्मे हो।
बेकसूर लड़क
े भी एक दम घर से ननकल िए। उनक
े जाने क
े बाद दजी को बकरी की धूतिता
का पता चला। वह अब अपनी िलती पर पिताने लिा और बेटों क
े घर लौट आने की राह
देखता रहा।
दजी क
े तीनों पुत्रों को घर से दूर एक-दूसरे से अलि-अलि नौकरी ममल िई। उनक
े मामलक
उनक
े काम से खुर् हुए। सबसे बड़ा लड़का लड़की का साज-सामान बनाने वाले क
े पास नौकर
हो िया। दूसरा उसी निर में एक पनचक्की पर नौकर हो िया और तीसरा एक दुकानदार क
े
यहां।
दोनों बड़े भाइयों को वपता की याद सता रही थी। उन्होंने फ
ै सला ककया कक वह घर लौट
जाएंिे। उनक
े मामलक भी इस बात को मान िए। बड़े भाई को उसक
े मामलक ने एक िोटी
सी मेज देकर कहा-बेटा, इस मेज से च्जस तरह का भोजन मांिोिे, वह तुम्हें इस पर तैयार
ममलेिा।
दूसरे भाई को चक्कीवाले ने एक िधा देते हुए कहा-जाओ खुर् रहो। इस िधे को भी ले
जाओ। जयों ही तुम इससे कहोिे-मुझे मुहरें दो, त्यों ही यह मुंह से मुहरें उिलने लिेिा। जब
तक तुम ‘बस करो’ न कहोिे यह मुहरें उिलता रहेिा।
दोनों भाई अपने-अपने उपहार लेकर घर की ओर चल ददए। वे सायंकाल क
े समय एक िांव
में पहुंचे। वे रात भर आराम करने क
े मलए एक सराय में ठहरे। सरायवाला दुटट था। उसने
उन्हें रात भर रहने की जिह दी पर बात ही बात में उनक
े उपहारों की ववर्ेषता क
े बारे में
भी जानकारी प्राप्त कर ली। जब उसे मेज और िधे क
े िुणों का पता लिा तो उसने उन्हें
हगथयाने की बात सोची। वे दोनों भाई जब सोकर खरािटे भर रहे थे तब उस दुटट ने मेज क
े
12
बदले हू-ब-हू वैसी ही मेज रख दी और िधा भी उसी र्क्ल का खूंटे से बांध ददया। सुबह वे
दोनों भाई इन नकली चीजों को लेकर चल ददए।
घर पहुंचे तो उनका वपता बहुत खुर् हो िया। उसने िधे और मेज की करामात सुनी तो और
भी प्रसन्न हो िया। परंतु जब दोनों भाइयों ने अपने-अपने उपहार की परख और प्रदर्िन
करना चाहा, तो हैरान हो िए। उनका बाप यह देख बड़ा नाराज हो िया। वह समझा कक बेटे
मुझसे धोखा कर रहे हैं। बहुत क
ु ि समझाने पर भी उसकी र्ंकर दूर न हुई। अत: उन्होंने
अपने िोटे भाई को आपबीती मलखकर भेजी और उसे सराय वाले से सतक
ि रहने को कहा।
इसी क
े साथ उसे यह भी बताया कक अिर संभव हो तो वह उससे चुराई हुई चीजें भी प्राप्त
करने की कोमर्र् करें।
पत्र पाकर तीसरे भाई ने भी स्वामी से घर लौट जाने की स्वीक
ृ नत ली, तो उसे उपहार में एक
थैला देते हुए मामलक ने कहा-यह थैला लो। इसका िुण यह है कक जब कभी तुमको सहायता
की जरूरत पड़े तो इसे यों कहो-रस्सीये जकड़, और डंडे मार। तुम्हारे कहने क
े साथ ही इसमें
से एक रस्सी ननकलेिी और तुम्हारे र्त्रु को जकड़ लेिी। साथ ही इसमें से एक डंडा ननकल
आएिा जो उसकी खोपड़ी पर चोट करने लिेिा।
खैर, यह दजी पुत्र भी घर की ओर चल ददया। वह रात को उसी सराय में रुका। जब वह
सोने लिा तो उस थैले को अपने तककये क
े नीचे यों रखा, च्जससे सराय वाले को र्ंका हुई
कक इसमें माल भरा है। आधी रात को सरायवाला थैले का धन चुराने क
े इरादे से आया। दजी
पुत्र इसी ताक में आंखें बंद ककए हुए लेटा हुआ था। ज्यों ही उसने मसरहाने क
े नीचे से थैला
ननकाला त्यों ही वह बोला-रस्सीये जकड़, और डंडे मार।
कहने की देर थी कक थैले में से सचमुच ही एक रस्सी ननकली, च्जसने सराय वाले को जकड़
मलया। साथ ही एक डंडा भी उिल-उिल कर उसकी खोपड़ी पर पटाख-पटाख करता हुआ
बरसने लिा। सरायवाला रोने-धोने और गचलाने लिा-भाई माफ करो, माफ करो। हाय मरा!
मरा!!
जब उस डंडे ने सरायवाले की खोपड़ी पर अछिी मार बरसाई तो दजीपुत्र बोला-बदमार् कहीं
का, ये चीजें तभी थैले में लौट जाएंिी जब तू मेरे भाइयों से हगथयाया हुआ माल लौटाने का
वायदा करेिा।
लहूलुहान सरायवाले ने उससे वायदा ककया तो उसने इन दोनों चीजों को वापस बुलाया। इसक
े
बाद सरायवाले से मेज और असली िधा प्राप्त करने क
े बाद वह घर लौटा।
13
जब वह घर पहुंचा तो तीनों भाइयों ने वपता सदहत खूब दावत उड़ाई। वपता अपने पुत्रों की
सफलता पर बड़ा खुर् हुआ। वह धूति बकरी रात क
े समय ही घर से भाि िई। अब बाप बेटे
उन तीनों करामती चीजों क
े कारण बड़े सुख से रहने लिे।
 कोई इस तरह की करामाती चीज आपको ममल जाये तो आप क्या करेंिे ?
 वपता को कब ख़ुर्ी ममली ?
 इस कहानी से क्या सीख ममलती है ?
14
4.िेनापति और ककिान की कहानी
सेनापनत ने देखा की क
ु ि लोि खेत में काम कर रहे है, वह सेनापनत सभी को परेर्ान ककया
करता था, उसे अगधक धन की जरूरत थी, इसमलए वह सोचा करता था, उसे धन क
ै से ममल
सकता है, वह उन सभी ककसने क
े पास जाता है जो खेत में कमा कर रहे थे वह सेनापनत
कहता है, आज से तुम सभी ककसान मुझे हर हफ्ते धन दे सकते है, अिर ककसी ने मना
ककया तो अछिा नहीं होिा, यह राजा ने एलान ककया है, एक ककसान उसकी बात सुन रहा
था.
अकबर और बीरबल की साथ नयी कहानी
वह ककसने सेनापनत क
े पास आता है, वह कहता है की राजा ने ऐसा कोई भी एलान नहीं
ककया है, क्योकक हमे यह बात अभी तक पता नहीं है, हमे लिता है, तुम यह बात सही नहीं
कह रहे हो, वह सेनापनत कहता है तुम यह बात जानते हो, तुम्हे इस बात की सजा ममल
सकती है, लेककन वह ककसान कहता है, अिर तुम सच बोलते हो, तो ठीक है, हम आपका
सम्मान करते है, मिर सही नहीं है, तो हम यह बात सह नहीं सकते है ककसान की बात
सुनकर सेनापनत उसे पकड़ लेता है, यह सभी दूसरे ककसान देखते है, वह सेनापनत ककसने को
ले िया था,
दादी मााँ की कहानी
story in hindi, सभी ककसान राजा क
े पास जाते है उन्हें सब क
ु ि बता देते है, जब राजा यह
बात सुनते है तो उन्हें भी पता नहीं था वह सेनापनत ऐसा भी कर सकता है, राजा सेनापनत
को बुलाते है, उसक
े बाद उनसे पूिते है सेनापनत मना कर देता है, लेककन जब यह बात बहुत
अगधक ककसान कहते है तो यह झूट नहीं हो सकती है, सेनापनत को सजा ममलती है उन्हें
आिे से ऐसा क
ु ि भी नहीं करना है, यह बात उस ककसने की नहीं थी, बच्ल्क हमे भी सोचना
चादहए अिर ककसी क
े साथ िलत होता है, तो हमे उसकी मदद करनी चादहए |
 िेनापति क
ै िा था ?
 िच्चाई पर कोन रहा ककिकी जीि हुई ?
 इि कहानी िे क्या िीख समलिी है ?
15
5.वृद्धों क
े अनुर्व की कद्र करें, उन्हें र्ी िम्मान क
े िाथ जीने का हक
है |
एक अक्ट
ू बर को सम्पूणि ववश्व में अंतरराटरीय वृद्ध ददवस मनाया जाता है। समाज और नई पीढ़ी को सही ददर्ा ददखाने
और माििदर्िन क
े मलए वररटठ नािररकों क
े योिदान को सम्मान देने क
े मलए इस आयोजन का फ
ै सला संयुक्त राटर ने
1990 में मलया था।
एक अक्टूबर को सम्पूणि ववश्व में अंतरराटरीय वृद्ध ददवस मनाया जाता है। समाज और नई
पीढ़ी को सही ददर्ा ददखाने और माििदर्िन क
े मलए वररटठ नािररकों क
े योिदान को सम्मान
देने क
े मलए इस आयोजन का फ
ै सला संयुक्त राटर ने 1990 में मलया था। इस ददन पर
वररटठ नािररकों और बुजुिों का सम्मान ककया जाता है। वररटठों क
े दहत क
े मलए गचन्तन भी
होता है। प्रश्न है कक दुननया में वृद्ध ददवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई ? क्यों वृद्धों की
उपेक्षा एवं प्रताड़ना की च्स्थनतयां बनी हुई हैं ? गचन्तन का महत्वपूणि पक्ष है कक हम पतन
क
े इस िलत प्रवाह को रोक
ें क्योंकक सोच क
े िलत प्रवाह ने न क
े वल वृद्धों का जीवन
दुश्वार कर ददया है बच्ल्क आदमी-आदमी क
े बीच क
े भावात्मक फासलों को भी बढ़ा ददया है।
वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, उसकी आंखों में भववटय को लेकर
भय है, असुरक्षा और दहर्त है, ददल में अन्तहीन ददि है। इन त्रासद एवं डरावनी च्स्थनतयों से
वृद्धों को मुच्क्त ददलानी होिी। सुधार की संभावना हर समय है। हम पाररवाररक जीवन में
वृद्धों को सम्मान दें, इसक
े मलये सही ददर्ा में चले, सही सोचें, सही करें। इसक
े मलये आज
ववचारिांनत ही नहीं, बच्ल्क व्यच्क्तिांनत की जरूरत है।
16
आज का वृद्ध समाज-पररवार से कटा रहता है और सामान्यतः इस बात से सवािगधक दुःखी
है कक जीवन का ववर्द अनुभव होने क
े बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और
न ही उनकी राय को महत्व देता है। समाज में अपनी एक तरह से अहममतय न समझे जाने
क
े कारण हमारा वृद्ध समाज दुःखी, उपेक्षक्षत एवं त्रासद जीवन जीने को वववर् है। वृद्ध
समाज को इस दुःख और कटट से ि
ु टकारा ददलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। आज हम
बुजुिों एवं वृद्धों क
े प्रनत अपने कतिव्यों का ननवािह करने क
े साथ-साथ समाज में उनको
उगचत स्थान देने की कोमर्र् करें ताकक उम्र क
े उस पड़ाव पर जब उन्हें प्यार और देखभाल
की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो च्जंदिी का पूरा आनंद ले सक
े । वृद्धों को भी अपने
स्वयं क
े प्रनत जािरूक होना होिा, जैसा कक जेम्स िारफील्ड ने कहा भी है कक यदद
वृद्धावस्था की झुररियां पड़ती हैं तो उन्हें हृदय पर मत पड़ने दो। कभी भी आत्मा को वृद्ध
मत होने दो।’
प्रश्न है कक आज हमारा वृद्ध समाज इतना क
ुं दठत एवं उपेक्षक्षत क्यों है? अपने को समाज में
एक तरह से ननटप्रयोज्य समझे जाने क
े कारण वह सवािगधक दुःखी रहता है। वृद्ध समाज को
इस दुःख और संत्रास से ि
ु टकारा ददलाने क
े मलये ठोस प्रयास ककये जाने की बहुत
आवश्यकता है। संयुक्त राटर ने ववश्व में बुजुिों क
े प्रनत हो रहे दुव्यिवहार और अन्याय को
समाप्त करने क
े मलए और लोिों में जािरूकता फ
ै लाने क
े मलए अंतरराटरीय बुजुिि ददवस
मनाने का ननणिय मलया। वृद्धों की समस्या पर संयुक्त राटर महासभा में सविप्रथम अजेंटीना
ने ववश्व का ध्यान आकवषित ककया था। तब से लेकर अब तक वृद्धों क
े संबंध में अनेक
िोच्टठयां और अन्तरािटरीय सम्मेलन हो चुक
े हैं। वषि 1999 को अंतरािटरीय बुजुिि-वषि क
े रूप
में भी मनाया िया। इससे पूवि 1982 में ‘ववश्व स्वास््य संिठन’ ने ‘वृद्धावस्था को सुखी
बनाइए’ जैसा नारा ददया और ‘सबक
े मलए स्वास््य’ का अमभयान प्रारम्भ ककया िया।
एक पेड़ च्जतना ज्यादा बड़ा होता है, वह उतना ही अगधक झुका हुआ होता है, यानन वह
उतना ही ववनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है, यही बात समाज क
े उस विि क
े साथ
भी लािू होती है, च्जसे आज की तथाकगथत युवा तथा उछच मर्क्षा प्राप्त पीढ़ी बूढ़ा कहकर
वृद्धािम में िोड़ देती है। वह लोि भूल जाते हैं कक अनुभव का कोई दूसरा ववकल्प दुननया
में है ही नहीं। अनुभव क
े सहारे ही दुननया भर में बुजुिि लोिों ने अपनी अलि दुननया बना
रखी है। च्जस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी च्जंदिी लिा देता है, वृद्ध होने क
े
बाद उसे उसी घर में एक तुछि वस्तु समझ मलया जाता है। बड़े बूढ़ों क
े साथ यह व्यवहार
देखकर लिता है जैसे हमारे संस्कार ही मर िए हैं। बुजुिों क
े साथ होने वाले अन्याय क
े
पीिे एक मुख्य वजह सामाच्जक प्रनतटठा मानी जाती है। तथाकगथत व्यच्क्तवादी एवं
सुववधावादी सोच ने समाज की संरचना को बदसूरत बना ददया है। सब जानते हैं कक आज
17
हर इंसान समाज में खुद को बड़ा ददखाना चाहता है और ददखावे की आड़ में बुजुिि लोि उसे
अपनी र्ान-र्ौकत एवं सुंदरता पर एक काला दाि ददखते हैं। बड़े घरों और अमीर लोिों की
पाटी में हाथ में िड़ी मलए और ककसी क
े सहारे चलने वाले बूढ़ों को अगधक नहीं देखा जाता,
क्योंकक वह इन बूढ़े लोिों को अपनी आलीर्ान पाटी में र्ाममल करना तथाकगथत र्ान क
े
खखलाफ समझते हैं। यही रुदढ़वादी सोच उछच विि से मध्यम विि की तरफ चली आती है।
आज बन रहा समाज का सच डरावना एवं संवेदनहीन है। आदमी जीवन मूल्यों को खोकर
आखखर कब तक धैयि रखेिा और क्यों रखेिा जब जीवन क
े आसपास सब क
ु ि बबखरता हो,
खोता हो, ममटता हो और संवेदनार्ून्य होता हो। आज क
े समाज में मध्यम विि में भी वृद्धों
क
े प्रनत स्नेह की भावना कम हो िई है। डडजरायली का माममिक कथन है कक यौवन एक भूल
है, पूणि मनुटयत्व एक संघषि और वाधिक्य एक पश्चाताप।’ वृद्ध जीवन को पश्चाताप का
पयािय न बनने दे।
वृद्धावस्था जीवन का अननवायि सत्य है। जो आज युवा है, वह कल बूढ़ा भी होिा ही, लेककन
समस्या की र्ुरुआत तब होती है, जब युवा पीढ़ी अपने बुजुिों को उपेक्षा की ननिाह से देखने
लिती है और उन्हें अपने बुढ़ापे और अक
े लेपन से लड़ने क
े मलए असहाय िोड़ देती है। आज
वृद्धों को अक
े लापन, पररवार क
े सदस्यों द्वारा उपेक्षा, नतरस्कार, कटुच्क्तयां, घर से ननकाले
जाने का भय या एक ित की तलार् में इधर-उधर भटकने का िम हरदम सालता रहता।
वृद्धों को लेकर जो िंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बच्ल्क
उपभोक्तावादी संस्क
ृ नत तथा महानिरीय अधुनातन बोध क
े तहत बदलते सामाच्जक मूल्यों,
नई पीढ़ी की सोच में पररवतिन आने, महंिाई क
े बढ़ने और व्यच्क्त क
े अपने बछचों और पत्नी
तक सीममत हो जाने की प्रवृवत्त क
े कारण बड़े-बूढ़ों क
े मलए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं।
इसीमलये मससरो ने कामना करते हुए कहा था कक जैसे मैं वृद्धावस्था क
े क
ु ि िुणों को अपने
अन्दर समाववटट रखने वाला युवक को चाहता हूं, उतनी ही प्रसन्नता मुझे युवाकाल क
े िुणों
से युक्त वृद्ध को देखकर भी होती है, जो इस ननयम का पालन करता है, र्रीर से भले वृद्ध
हो जाए, ककन्तु ददमाि से कभी वृद्ध नहीं हो सकता।’ वृद्ध लोिों क
े मलये यह जरूरी है कक
वे वाधिक्य को ओढ़े नहीं, बच्ल्क जीएं।
दरअसल, नई जीवनर्ैली और नए मूल्य बूढ़ों को समाज में कोई जिह नहीं देते, बच्ल्क उन्हें
उनकी जिह से भी ववस्थावपत करते हैं। ववकास की अबाध िनत उन्हें असहाय िोड़ देती है
और वे ननसहाय से अपने अतीत क
े िमलयारों में डोलने लिते हैं। आज का समाज सेवाननवृत्त
होते ही उस व्यच्क्त को नकार देता है, वह चाहे च्जतना ही साधन संपन्न हो, उसकी पूि कम
हो जाती है और लोि उसे अमभवादन की सामान्य औपचाररकता प्रदान करने में भी कोताही
करने लिते हैं।
18
आज जहां अगधकांर् पररवारों में भाइयों क
े मध्य इस बात को लेकर वववाद होता है कक वृद्ध
माता-वपता का बोझ कौन उठाए, वहीं बहुत से मामलों में बेटे-बेदटयां, धन-संपवत्त क
े रहते
माता-वपता की सेवा का भाव ददखाते हैं, पर जमीन-जायदाद की रच्जस्री तथा वसीयतनामा
संपन्न होते ही उनकी नजर बदल जाती है। इतना ही नहीं संवेदनर्ून्य समाज में इन ददनों
कई ऐसी घटनाएं प्रकार् में आई हैं, जब संपवत्त मोह में वृद्धों की हत्या कर दी िई।
ऐसे में स्वाथि का यह नंिा खेल स्वयं अपनों से होता देखकर वृद्धजनों को ककन मानमसक
आघातों से िुजरना पड़ता होिा, इसका अंदाजा नहीं लिाया जा सकता। वृद्धावस्था मानमसक
व्यथा क
े साथ मसफ
ि सहानुभूनत की आर्ा जोहती रह जाती है। इसक
े पीिे मनोवैज्ञाननक
पररच्स्थनतयां काम करती हैं। वृद्धजन अव्यवस्था क
े बोझ और र्ारीररक अक्षमता क
े दौर में
अपने अक
े लेपन से जूझना चाहते हैं पर इनकी सकियता का स्वाित समाज या पररवार नहीं
करता और न करना चाहता है। बड़े र्हरों में पररवार से उपेक्षक्षत होने पर बूढ़े-बुजुिों को
‘ओल्ड होम्स’ में र्रण ममल भी जाती है, पर िोटे कस्बों और िांवों में तो ठु कराने, तरसाने,
सताए जाने पर भी आजीवन घुट-घुट कर जीने की मजबूरी होती है। यद्यवप ‘ओल्ड होम्स’
की च्स्थनत भी ठीक नहीं है।
पहले जहां वृद्धािम में सेवा-भाव प्रधान था, पर आज व्यावसानयकता की चोट में यहां अमीरों
को ही प्रवेर् ममल पा रहा है। ऐसे में मध्यमविीय पररवार क
े वृद्धों क
े मलए जीवन का
उत्तराद्िध पहाड़ बन जाता है। वकक
िं ि बहुओं क
े ताने, बछचों को टहलाने-घुमाने की च्जम्मेदारी
की कफि में प्रायः जहां पुरुष वृद्धों की सुबह-र्ाम खप जाती है, वहीं मदहला वृद्ध एक
नौकरानी से अगधक हैमसयत नहीं रखती। यदद पररवार क
े वृद्ध कटटपूणि जीवन व्यतीत कर
रहे हैं, रुग्णावस्था में बबस्तर पर पड़े कराह रहे हैं, भरण-पोषण को तरस रहे हैं तो यह हमारे
मलए वास्तव में लज्जा एवं र्मि का ववषय है।
पर कौन सोचता है, ककसे फसित है, वृद्धों की कफि ककसे हैं? भौनतक च्जंदिी की भािदौड़ में
नई पीढ़ी नए-नए मुकाम ढूंढने में लिी है, आज वृद्धजन अपनो से दूर च्जंदिी क
े अंनतम
पड़ाव पर कवीन्द्र-रवीन्द्र की पंच्क्तयां िुनिुनाने को क्यों वववर् है- ‘दीघि जीवन एकटा दीघि
अमभर्ाप’, दीघि जीवन एक दीघि अमभर्ाप है।
वृद्ध व्यच्क्तयों को सुखद एवं खुर्हाल जीवन प्रदत्त करने क
े मलये हमें सविप्रथम तो उन्हें
आगथिक दृच्टट से स्वावलम्बी बनाने पर ध्यान देना होिा। बेसहारा वृद्ध व्यच्क्तयों क
े मलए
सरकार की ओर से आवश्यक रूप से और सहज रूप मे ममल सकने वाली पयािप्त पेंर्न की
व्यवस्था की जानी चादहए। ऐसे वृद्ध व्यच्क्त जो र्ारीररक और मानमसक दृच्टट से स्वस्थ हैं,
उनक
े मलए समाज को कम पररिम वाले हल्क
े -फ
ु ल्क
े रोजिार की व्यवस्था करनी चादहए।
19
वृद्धों क
े कल्याण क
े कायििमों को ववर्ेष महत्व ददया जाना चादहए, जो उनमें जीवन क
े प्रनत
उत्साह उत्पन्न करे। स्वयं वृद्धजन को भी अपने तथा पररवार और समाज क
े दहत क
े मलए
क
ु ि बातों को ध्यान में रखना चादहए। उदाहरणाथि- युवा पररजनों क
े मामलों में अनावश्यक
हस्तक्षेप न करें और उन्हें अपने ढंि से जीवन जीने दें। िांवों से ननकल कर कस्बों तथा
निरों में आने वाले अगधकांर् युवाओं की सोच इस रूप में पुख्ता हो जाती है कक संयुक्त
पररवार व्यच्क्तित उन्ननत में बाधक होते हैं। चीजों की ललक में स्वदहत इतने हावी हो जाते
हैं कक संवेदनहीनता मानवीय ररश्तों की महक को क्षण में काफ
ू र कर देती है और तन्हा
बुढ़ापा घुटनभरी सांसों क
े साथ जीने को बाध्य हो जाता है। हमें समझना होिा कक अिर
समाज क
े इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज ककया जाता रहा तो हम उस अनुभव से
भी दूर हो जाएंिे, जो इन लोिों क
े पास है। वृद्ध ददवस मनाना तभी साथिक होिा जब हम
उन्हें पररवार में सम्मानजनक जीवन देंिे, उनक
े र्ुभ एवं मंिल की कामना करेंिे।
-लमलत ििि
 अंतरराटरीय वृद्ध ददवस कब मनाया जाता है?
 बुजुिों की समस्याएं ककस-ककस प्रकार की होती है ?
 बुजुिों की समस्याओं को क
ै से समझा जा सकता है ?
 बुजुिों की जरूरते ककस प्रकार की होती है ?
 बछचे क
ै से बुजुिों क
े सहायक बन सकते है ?
20
6.ववनम्रिा की िाकि – िमुद्र और नदी की कहानी |
एक बार की बाि हैं एक नदी को अपने पानी क
े प्रचंि प्रवाह पर घमंि हो र्गया। नदी को
लर्गा कक मुझमे इिनी िाकि हैं कक मैं पत्थर, मकान, पेड़, पशु, मानव आदद िर्ी को बहा कर
ले जा िकिी हु। नदी ने बड़े ही र्गवीले और अहंकार पूर्भ शब्दों मे िमुन्द्र िे कहा -बिाओ
मैं िुम्हारे सलए क्या बहा कर लाउ? जो र्ी िुम चाहो मकान, बृक्ष, पत्थर, पशु, मानव आदद
जो िुम चाहो मैं उिे जड़ िे उखाड़ कर ला िकिी हु। िमुन्द्र िमझ र्गया कक नदी को
अहंकार हो र्गया हैं। उिने नदी िे कहा – यदद िुम मेरे सलए क
ु छ लाना चाहिी हो िो थोड़ी
िी नमभ घाि उखाड़ कर ले आओ।
समुन्द्र कक यह बात सुनकर नदी बोली बस ! इतनी सी बात हैं। अभी आपकी सेवा मे हाच्जर
करती हूं। नदी ने अपने जल का पूरा वेि घास पर लिाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने एक
बार, दो बार, तीन बार… अनेक बार जोर लिाया। सभी प्रयत्न ककये, पर बार बार प्रयत्न
करने पर भी कोई सफलता नही ममली। आखखर हारकर समुन्द्र क
े पास पहुंची और बोली -मैं
मकान, वृक्ष, जीव जंतु को बहाकर ला सकती हु पर नमि घास को उखाड़कर नहीं ला सकती।
जब भी मैंने घास को उखाड़ने क
े मलए पूरा वेि लिाकर उसे उखाड़ने का प्रयत्न ककया तो
वह नीचे कक ओर झुक जाती हैं और मैं खाली हाथ उसक
े ऊपर से िुजर जाती हूाँ।
समुन्द्र ने नदी की पूरी बात सुनी और क
ु ि देर ववचार ककया और कफर मुस्क
ु राते हुए बोला –
जो पत्थर या वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखाड़े जाते हैं ककन्तु घास जैसी ववनम्रता
च्जससे सीख ली हो, उसे कोई प्रचंड वेि भी नहीं उखाड़ पता। नदी ने समुन्द्र की सारी बाते
ध्यानपूणि सुनी और समझी। समझ मे आने पर नदी का घमंड चूर चूर हो िया।
कहानी से सीख – ववनम्रता से इंसान बड़ी से बड़ी कदठनाई का सामना कर लेता हैं।
 इंसान का सबसे बड़ा सहायक होता है कै से ?
 सबसे बड़ा र्त्रु कोन है ककस प्रकार से है ?
 कहानी से क्या सीख ममलती है ?
21
 नदी और घास में ताकतवर कोन और कै से ?
7. मोरल स्टोरी- बुजुर्गों का महत्व
मोरल स्टोरी–बुजुर्गों का महत्व एक ऐसी दहंदी कहानी है। जो आपक
े ददल को ि
ू जाएिी। आज
हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां बुजुिों को उतना महत्व नहीं ददया जाता च्जतना ददया
जाना चादहए। वृद्धजन हमारे मलए ककतने जरूरी हैं? इसी को दर्ािती है यह नैतिक कहानी।
बुजुिों का महत्व-
बहुत पुरानी बात है। सुंदरिढ़ नामक एक राज्य था। च्जसका राजा सुमंत बहुत धनलोलुप
था।वह हमेर्ा यही ववचार ककया करता था कक ककस प्रकार उसका राज्य सबसे धनवान
बने।इसक
े मलए वह नए नए तरीक
े सोचा करता था। नए नए ननयम लािू करता रहता था।
उसकी प्रजा भी उससे परेर्ान रहती थी। एक ददन उसने सोचा कक ये बुजुिि लोि उसक
े
राज्य क
े मलए बोझ हैं। ये कोई काम तो करते नहीं हैं। बस बैठे बैठे खाते है। इनक
े दवा
इलाज और सुववधाओं पर जो खचि होता है वह अलि। इसमलए उसने घोषणा कर दी कक
उसक
े राज्य में साठ साल से ऊपर का कोई व्यच्क्त नहीं रहेिा।
च्जनक
े घरों में साठ साल से ऊपर क
े लोि हैं वो उन्हें जंिल में िोड़ आये। प्रजा में क
ु ि
लोिों को राजा यह आदेर् पसन्द भी आया। लेककन क
ु ि लोिों को राजा का आदेर् बहुत बुरा
लिा। इस अवस्था में जब बुजुिों की सेवा की जानी चादहए। तब राजा आदेर् दे रहा है कक
उन्हें जंिल में िोड़ ददया जाय।
22
लेककन राजा क
े आदेर् की अवहेलना कौन कर सकता था? लोिों ने राजा की आज्ञा का पालन
ककया। राजा सुमंत क
े राज्य में ही एक लड़का अपनी बूढ़ी मााँ क
े साथ रहता था। लड़का
अपनी मााँ से बहुत प्रेम करता था। इस आदेर् से उसे बहुत पीड़ा हुई। लेककन राजाज्ञा का
पालन अननवायि था।
इसमलए वह अपनी बुजुिि और असहाय मााँ को पीठ पर लादकर जंिल की ओर चल ददया।
रास्ते में चलते हुए उसकी मााँ झाडड़यों से लकडड़यााँ तोड़ तोड़ कर रास्ते पर डाल रही थी। यह
देखकर लड़क
े ने अपनी मां से पूिा, “मां! यह क्या कर रही हो?” मााँ ने जवाब ददया, ” बेटा!
वापसी में तुम रास्ता न भूल जाओ, इसमलए मैं यह लकडड़यां डाल रही हूाँ।”
मााँ क
े प्रेम को देखकर लड़का फ
ू ट फ
ू ट कर रो पड़ा। उसने ननश्चय ककया कक वह अपनी बूढ़ी
मााँ को जंिल में नहीं िोड़ेिा। रात क
े अंधेरे में वह अपनी मां को लेकर वापस घर आ िया।
घर क
े आंिन में खुदाई करक
े उसने एक िुफा बना दी। च्जससे ककसी को पता न चले।
उसकी मां उस िुफा में रहने लिी।
बेटा समय समय पर िुफा क
े अंदर जाकर मााँ की सेवा करता। थोड़े समय बाद उस राज्य की
धन संपवत्त को देखकर एक र्च्क्तर्ाली पड़ोसी राजा ने सुंदरिढ़ पर आिमण कर ददया। इस
युद्ध में सुंदरिढ़ की हार हुई। राजा सुमंत बन्दी बना मलए िए.
पड़ोसी राजा ने घोषणा की कक सुंदरिढ़ राज्य का कोई भी नािररक अिर मेरे दो प्रश्नों क
े
उत्तर दे देिा तो मैं सुंदरिढ़ राज्य और राजा सुमंत को भी िोड़ दूंिा। पूरा राज्य प्रश्न सुनने
उमड़ पड़ा। राजा ने एक र्ीर्े का िोटा सा बतिन ददखाते हुए कहा, ” इसे कद्दुओं से भर दो।”
लोिों ने उस बतिन को देखा और कहा, “इस िोटे से बतिन में तो एक भी कद्दू नहीं आ
सकता। राजा ने जवाब देने क
े मलए सात ददनों की मोहलत दे दी। लेककन ककसी को जवाब
नहीं सूझ रहा था। वह लड़का भी वहां था। रात में जब वह अपनी मााँ क
े पास िया तो उसने
मां से सारी बात बताई।
मााँ ने उससे कहा कक र्ीर्े क
े बतिन में ममट्टी भरकर उसमें कद्दू क
े बीज डाल दो। तीन
चार ददन में जब बीज उि आए तो उन्हें राजा क
े पास ले जाना। लड़क
े ने वैसा ही ककया,
और सचमुच चार ददन बाद र्ीर्े का वह बतिन कद्दू क
े िोटे िोटे पौधों से भर िया।
लड़का बतिन लेकर राजा क
े पास िया। अपने प्रश्न का जवाब पाकर राजा प्रसन्न हुआ। कफर
उसने दूसरा प्रश्न ककया, ” एक जैसी ददखने वाली दो िाय एक साथ खड़ी हैं। उनमें से मााँ
23
बेटी की पहचान क
ै से करोिे? यह प्रश्न भी बड़ा कदठन था। इसका भी जवाब ककसी को नहीं
सूझ रहा था। राजा ने इस बार तीन ददन की मोहलत दी।
लड़का कफर मााँ क
े पास पहुंचा और उसे सारी बात बतायी। मााँ ने बताया कक दोनों क
े सामने
घास डालो। दोनों में से जो मााँ होिी वह अपनी बेटी क
े खाने क
े बाद खाना र्ुरू करेिी।
लड़क
े ने राजा क
े सामने मााँ क
े बताए अनुसार दोनों िायों में मााँ बेटी की पहचान कर दी।
पड़ोसी राजा ने अपने वादे क
े अनुसार सुंदरिढ़ क
े राजा और राज्य दोनों को मुक्त कर ददया।
राजा सुमन्त बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लड़क
े से पूिा, “तुमने दोनों प्रश्नों क
े उत्तर क
ै से ददए?”
लड़क
े ने कहा, ” महाराज! यदद आप मुझे अभयदान दें, तो मैं बताऊ
ं िा।” राजा ने उसे
आश्वासन ददया।
तब लड़क
े ने बताया कक ये उत्तर उसे अपनी मााँ से पता चले थे। तब राजा को बुजुिों क
े
अनुभव का महत्व पता चला। उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने अपनी आज्ञा
वापस ले ली। उसने आज्ञा दी कक उसक
े राज्य में बुजुिों की सेवा और सम्मान होना चादहए।
 रास्ते में चलते हुए मााँ झाडड़यों से लकडड़यााँ तोड़ तोड़ कर रास्ते पर क्यों डाल रही
थी।
 राजा सुमंत बुजुिों क
े बारे में क
ै से ववचार रखता था ?
 प्रर्नों क
े जवाब लड़क
े को कहां से ममलते थे ?
 बुजुिों क
े महत्व क
े बारे में आप क्या जानते है ?
24
8.बुद्गधमान बहू-
िंिा क
े तट पर पर एक सुंदर निर था। उसमें एक व्यापारी पररवार सदहत रहता था। उसक
े
पररवार में व्यापारी पनत पत्नी, उसका पुत्र और पुत्रवधू रहते थे। पुत्र का नाम अच्जतसेन और
पुत्रवधू का नाम र्ीलवती था।
अच्जतसेन व्यापार क
े मसलमसले में कई ददनों तक बाहर रहता था। जबकक पुत्रवधू घर पर
सास ससुर की सेवा करती थी। पूरा पररवार सुखी और प्रसन्न रहता था।
एक ददन र्ीलवती आधी रात क
े बाद खाली घड़ा लेकर बाहर ियी और बहुत देर में लौटी।
उसक
े ससुर ने उसे वापस लौटते देख मलया। उसे र्ीलवती क
े चररत्र पर र्ंका हुई।
उसने सोचा कक बेटा बाहर िया हुआ है ऐसे में बहू का यह आचरण आपवत्तजनक है। इससे
मेरा क
ु ल कलंककत हो जाएिा। इस चररत्रहीन बहू को घर में रखना ठीक नहीं है। उसने
अपनी पत्नी से चचाि की और बहू को पीहर िोड़ देने का ननणिय ककया।
अिले ददन ससुर र्ीलवती को रथ में बैठाकर स्वयं रथ हांकते हुए उसक
े पीहर की ओर चल
पड़ा। रास्ते में एक िोटी सी नदी ममली। ससुर ने बहू से कहा- “तुम रथ से उतरकर जूते
उतारकर नदी पार कर लो।”
ककन्तु र्ीलवती ने बबना जूते उतारे ही नदी पार कर ली। ससुर ने मन में सोचा कक यह
दुटचररत्र होने क
े साथ ही अवज्ञाकारी भी है।
25
थोड़ा आिे जाने पर रास्ते क
े ककनारे एक खेत ममला। च्जसमें मूंि की फसल लहलहा रही
थी। ससुर ने ककसान क
े भाग्य की प्रसंर्ा करते हुए कहा- “ककतनी सुंदर फसल है ! इस बार
तो ककसान खूब लाभ कमाएिा।”
र्ीलवती ने उत्तर ददया, “आपकी बात तो ठीक है, ककन्तु यदद यह जंिली जानवरों से बच जाए
तब न।” ससुर को उसकी बात बहुत अटपटी लिी। लेककन वह क
ु ि नहीं बोला।
क
ु ि दूर और चलने पर वे एक निर में पहुंचे। जहां क
े लोि बहुत सुखी और प्रसन्न ददखाई
दे रहे थे। यह देखकर ससुर क
े मुंह से ननकला- “ककतना सुंदर निर है !” र्ीलवती बोली-
“आपकी बात तो ठीक है, यदद इसे उजाड़ा न जाये तो।”
ससुर को उसकी बात अछिी तो नहीं लिी। ककन्तु वह कफर भी क
ु ि नहीं बोला। क
ु ि दूर
आिे जाने पर एक राजपुत्र ददखाई पड़ा। च्जसे देखकर ससुर कफर बोल पड़ा- “अरे वाह ! यह
युवक तो देखने में ही र्ूरवीर लिता है।”
लेककन र्ीलवती कफर बोल पड़ी, “यदद कहीं पीटा न जाये तो।” इस बार तो ससुर िोगधत हो
िया। ककन्तु ककसी प्रकार उसने अपने िोध को रोका और आिे बढ़ा। थोड़ी देर बाद दोपहर
हो ियी।
व्यापारी एक घने बरिद क
े पेड़ क
े नीचे रथ को रोककर पेड़ की जड़ में बैठकर आराम करने
लिा। जबकक र्ीलवती पेड़ से दूर जमीन पर बैठ ियी। यह देखकर व्यापारी ने सोचा कक यह
क
ै सी औरत है, जो उल्टे काम ही करती है।
थोडा देर आराम करक
े वे कफर आिे बढ़े। थोड़ा आिे बढ़ने पर र्ीलवती का नननहाल आ
िया। रास्ते में ही उसका मामा ममल िया और च्जद करक
े उन्हें अपने घर ले िया। वहां
भोजन करक
े र्ीलवती का ससुर अपने रथ में ही लेट िया।
ससुर को रथ में लेटा देखकर र्ीलवती भी रथ क
े पास ही जमीन पर बैठ ियी। उसी समय
पास क
े बबूल क
े पेड़ पर बैठा एक कौवा कांव-कांव करने लिा। लिातार कांव-कांव की
आवाज सुनकर र्ीलवती बोली-
“अरे ! तू थकता क्यों नहीं ? एक बार पर्ु की बोली सुनकर उसक
े अनुसार कायि करने क
े
कारण मुझे घर से ननकाल जा रहा है। अब तुम्हारी बात मानकर मैं एक नई आफत मोल ले
लूाँ ? कल रात एक िीदड़ की आवाज सुनकर मैं नदी ककनारे ियी और ककनारे लिे एक मुदे
क
े र्रीर से बहुमूल्य आभूषण उतारकर घर ले आयी।”
26
“उसक
े कारण मेरे ससुर मुझे घर से ननकाल रहे हैं। अब तू कह रहा है कक इस बबूल की जड़
में खजाना िड़ा है। तो क्या इसे ननकालकर मैं एक नई ववपवत्त मोल ले लूाँ। मैं पर्ु-पक्षक्षयों
की बोली समझती हूाँ तो इसमें मेरा क्या दोष ?”
र्ीलवती का ससुर उसकी बात सुनकर आश्चयिचककत हो िया। उसने बबूल की जड़ में खुदाई
करक
े देखा तो उसे सचमुच खजाना ममल िया। वह बहुत प्रसन्न हुआ और बहू की बड़ाई
करने लिा और उसे लेकर वापस घर की ओर चल पड़ा।
रास्ते में उसने पूिा कक तुम बरिद की िाया में क्यों नहीं बैठी ? र्ीलवती ने उत्तर ददया, ”
वृक्ष की जड़ में सपि का भय रहता है, ऊपर से गचडड़यां भी बीट करती हैं। इसमलए वृक्ष की
जड़ से दूर बैठना ही बुद्गधमानी है।” ससुर उसक
े उत्तर से प्रसन्न हुआ।
कफर उसने र्ूरवीर राजपुत्र क
े ववषय में पूिा। च्जसक
े उत्तर में र्ीलवती ने बताया कक
वास्तववक र्ूर वही होता है जो प्रथम प्रहार करता है। इसी प्रकार खुर्हाल निर क
े बारे में
उसने कहा कक च्जस निर क
े लोि आिंतुक अनतगथयों का स्वाित नहीं करते। वह वास्तव में
आदर्ि और खुर्हाल नहीं होता है।
अंत में ससुर ने जूते पहने नदी पार करने का कारण पूिा। च्जसक
े जवाब में र्ीलवती ने
कहा, “नदी में ववषैले जीव जंतुओं का भय होता है। इसक
े अलावा नदीतल में क
ं कड़-पत्थर
होते हैं। इसमलए नदी तालाब को सदैव जूते पहने ही पार करना चादहए।
र्ीलवती का ससुर उसकी बुद्गधमत्तापूणि बातें सुनकर अनत प्रसन्न हुआ। उसक
े हृदय में
र्ीलवती क
े मलए प्रेम और सम्मान बढ़ िया। घर पहुंचकर उसने र्ीलवती को घर की सारी
च्जम्मेदारी दे दी।
 व्यापारी एक घने बरिद क
े पेड़ क
े नीचे रथ को रोककर पेड़ की जड़ में बैठकर
आराम करने लिा। जबकक र्ीलवती पेड़ से दूर जमीन पर बैठ ियी। क्यों ?
 बबूल की जड़ में खजाना है यह क
ै से पता चला ?
 सही कोन था र्ीलवती या उसक
े ससुरालवाले ?
 र्ीलवती का ससुर खुर् क्यों हुआ ?
 कहानी से क्या सीख ममलती है ?
अंतर्पीढी सवांद मंच.docx
अंतर्पीढी सवांद मंच.docx
अंतर्पीढी सवांद मंच.docx
अंतर्पीढी सवांद मंच.docx
अंतर्पीढी सवांद मंच.docx

More Related Content

Similar to अंतर्पीढी सवांद मंच.docx

SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdfSHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdfShivna Prakashan
 
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdfVIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdfVibhom Swar
 
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdfVIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdfVibhom Swar
 
Rich dad poor dad (hindi) complete book
Rich dad poor dad (hindi) complete bookRich dad poor dad (hindi) complete book
Rich dad poor dad (hindi) complete bookamit_shanu
 
रिच डैड पुअर डैड
रिच डैड पुअर डैडरिच डैड पुअर डैड
रिच डैड पुअर डैडHemant Kumar
 
Your questions can change your life.
Your questions can change your life.Your questions can change your life.
Your questions can change your life.Suresh Kumar Sharma
 
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018Bharatiya Jain Sanghatana
 
Vibhom swar oct dec 2020
Vibhom swar oct dec 2020Vibhom swar oct dec 2020
Vibhom swar oct dec 2020Vibhom Swar
 
Vibhom swar april june 2022
Vibhom swar april june 2022Vibhom swar april june 2022
Vibhom swar april june 2022Vibhom Swar
 
जनप्रतिनिधियों की कार्यशाला
जनप्रतिनिधियों की कार्यशालाजनप्रतिनिधियों की कार्यशाला
जनप्रतिनिधियों की कार्यशालाSK Singh
 
Dowry,Cruelty & Dowry Dath
Dowry,Cruelty & Dowry DathDowry,Cruelty & Dowry Dath
Dowry,Cruelty & Dowry DathPrincipalLaw2
 
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdf
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdfVIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdf
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdfVibhom Swar
 
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdf
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdfVIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdf
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdfVibhom Swar
 

Similar to अंतर्पीढी सवांद मंच.docx (20)

BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin
 
SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdfSHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdf
SHIVNA SAHITYIKI JULY SEPTEMBER 2022.pdf
 
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdfVIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR OCTOBER DECEMBER 2023.pdf
 
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdfVIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdf
VIBHOM SWAR JULY SEPTEMBER 2023.pdf
 
Rich dad poor dad (hindi) complete book
Rich dad poor dad (hindi) complete bookRich dad poor dad (hindi) complete book
Rich dad poor dad (hindi) complete book
 
रिच डैड पुअर डैड
रिच डैड पुअर डैडरिच डैड पुअर डैड
रिच डैड पुअर डैड
 
BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin
 
BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin BJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin
 
Your questions can change your life.
Your questions can change your life.Your questions can change your life.
Your questions can change your life.
 
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-Feb -2018
 
Vibhom swar oct dec 2020
Vibhom swar oct dec 2020Vibhom swar oct dec 2020
Vibhom swar oct dec 2020
 
Vibhom swar april june 2022
Vibhom swar april june 2022Vibhom swar april june 2022
Vibhom swar april june 2022
 
जनप्रतिनिधियों की कार्यशाला
जनप्रतिनिधियों की कार्यशालाजनप्रतिनिधियों की कार्यशाला
जनप्रतिनिधियों की कार्यशाला
 
Bjs ebulletin 33
Bjs ebulletin 33Bjs ebulletin 33
Bjs ebulletin 33
 
Dowry,Cruelty & Dowry Dath
Dowry,Cruelty & Dowry DathDowry,Cruelty & Dowry Dath
Dowry,Cruelty & Dowry Dath
 
Bol bharat bol
Bol bharat bolBol bharat bol
Bol bharat bol
 
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdf
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdfVIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdf
VIBHOM SWAR APRIL JUNE 2023.pdf
 
BJS e-Bulletin
BJS e-BulletinBJS e-Bulletin
BJS e-Bulletin
 
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdf
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdfVIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdf
VIBHOM SWAR JANUARY MARCH 2023.pdf
 
Madhur vyabahar hindi
Madhur vyabahar hindiMadhur vyabahar hindi
Madhur vyabahar hindi
 

अंतर्पीढी सवांद मंच.docx

  • 1. 1 वृद्धजन स्वंम सहायता समूह सेंटर फॉर कम्युननटी इकोनोममक्स एण्ड डेवलपमेंट क ं सलटेंट्स सोसायटी (मसकोईडडकोन) स्वराज ,एफ -159-160, सीतापुरा ओधौगिक एवंम संस्थाननक क्षेत्र, जयपुर -302022 Email: cecoedecon@gmail.com Website: www.cecoedecon.org.in अंतपीढ़ी सवांद मंच (स्टोरी टेमलंि क्लब )
  • 2. 2 fldksbZfMdksu lLFkk का पररचय: सिकोईडिकोन- (सामुदानयक आगथिक ववकास एवं परमर्ि क ें द्र) सिकोईडिकोन- एक स्वैच्छिक संस्था है च्जसकी स्थापना 1982 में राजस्थान क े जयपुर च्जले में आई ववनार्कारी बाढ़ से प्रभाववत लोिों को तात्कामलक राहत पंहुचाने क े मलए की िई | तभी से संस्था समुदाय क े ववमभन्न विों जैसे आददवासी, दमलत,िोटे व् िरीब ककसान, बुजुिों, मदहलाओं,युवाओं,बछचों से जुड़ें ववमभन्न मुद्दों जैसे – आजीववका सुरक्षा,मर्क्षा, स्वास््य, पेयजल,पोषण,व् मूल अगधकारों से सम्बंगधत से जुड़े ववमभन्न मुद्दों क े समाधान हेतु वपिले 39 वषों से राजस्थान क े जयपुर,टोंक ,सवाईमाधोपुर ,दौसा ,जैसलमेर ,बारां, कोटा,बाड़मेर व् करौली च्जलों में समुदाय आधाररत संिठनों क े माध्यम से ग्रामीण ववकास क े स्वावलंबन हेतु सतत प्रयासरत है | 1.,YMj ds;j ifj;kstuk | एल्िर क े यर पररयोजना करौली - ग्रामीण समुदाय में वृद्धजनों क े सामाच्जक एवं आगथिक जीवन स्तर में सुधार करने हेतु ददसंबर 2020 से राजस्थान राज्य क े करौली च्जले की करौली, मासलपुर व् मंडरायल ब्लाक में NSE नेशनल स्टॉक एक्िचेंज फाउंिेशन क े सहयोि से एल्डर क े यर पररयोजना की र्ुरुआत की िई | इस पररयोजना क े माध्यम से करौली व् मासलपुर ब्लाक क े 212 िांवों में एवं मंडरायल क े 77 िााँव, क ु ल 289 िांवों में वृद्धजनों की सामाच्जक एवं आगथिक सुरक्षा व् क्षमताओं को बढ़ाना , च्जससे सभी वृद्धजन सम्मान जनक जीवन जी सक े |
  • 3. 3 राज्य - राजस्थान जजला –करौली 2. बुजुर्गों की जस्थति : िन्दर्भ भारत देर् तेजी से बढ़ती उम्र की आबादी की ओर बढ़ रहा है वषि 2011 की जनिणना क े अनुसार देर् में क ु ल आबादी का (8.6%) 60 वषि से अगधक उम्र वाली संख्या है । यूएनएफपीए क े एक अध्ययन क े अनुसार 60 वषि से अगधक आयु की जनसंख्या का दहस्सा 2015 में 8 प्रनतर्त से बढ़कर 2050 में 19 प्रनतर्त हो जाने का अनुमान है, अध्ययन क े आंकड़े यह भी इर्ारे करते हैं कक बुजुिों की वृद्गध दर अन्य सभी आयु विों से अगधक होिी जो ननभिरता अनुपात में वृद्गध को दर्ािती है। राजस्थान राज्य में वृद्धावस्था चरम अवस्था में पहुाँच िई है | 2011 क े सवे क े अनुसार राज्य में क ु ल 51.12 लाख बुजुिि है च्जनमे 26.8 मदहला एवं 24.3 पुरुष है | 60 व उससे अगधक आयु क े लोिों की संख्या राजस्थान की क ु ल जनसाँख्या का 7.7 प्रनतर्त है | 78 प्रनतसत बुजुिि ग्रामीण क्षेत्र में रहते है | करौली च्जला मानवीय ववकास की द्रच्टटकोण से राजस्थान राज्य का वपिड़ा च्जला है |च्जले क े ग्रामीण इलाकों में भी बुननयादी ढांचे की च्स्थनत और भी खराब है। खराब बुननयादी ढांचे (सड़कों और आवास), खराब साविजननक स्वास््य देखभाल प्रणाली और खराब स्वछिता क े
  • 4. 4 कारण सबसे अगधक पीडड़त बुजुिि ही हैं। करौली च्जले में ग्रामीण समुदायों क े बुजुिों को जािरूकता की कमी, प्रासंगिक कल्याण सेवाओं तक सीममत पहुंच और पुरानी आबादी की जरूरतों का समथिन करने क े मलए अपयािप्त बुननयादी ढांचे क े कारण अगधक चुनौनतयों का सामना करना पड़ता है। च्जले में स्थानीय खनन उद्योि क े सकिय और ननच्टिय प्रभावों से प्रभाववत है इस क्षेत्र क े अगधकांर् युवा काम धंधे की तलार् और अपनी जरुरत पूनति क े मलए टाइल व् माबिल कफदटंि का कायि करने क े मलए च्जले से बाहर काम करने जाते है | च्जनक े मााँ बाप/बुजुिि घर पर ही रहते है च्जन्हें अपनी दैननक जरूरत पूनति, (खाना,कपडा,दवाई,अन्य जरुरी सामन) आदद क े मलए भी परेर्ान होना पड़ता है| ग्रामीण क्षेत्र में बुजुिों की देखभाल व् पररवार क े साथ रखने में भी दूररयााँ बढ़ी है | आबादी क े एक बड़े दहस्से क े साथ, उनको स्वास््य से सम्बंगधत कई चुनौनतयों का सामना करना पड़ता है। पुरुषों में प्रचमलत टीबी और मसमलकोमसस जैसी फ े फड़ों की बीमाररयों क े मलए पयािप्त सहायता क े प्रावधान की आवश्यकता होती है, आमतौर पर उपलब्ध योजनाओं तक पहुंच में जािरूकता की कमी क े कारण अगधकांर् लोिों को लाभ नहीं ममल पाता है। अंिपीढ़ी िवांद मंच (स्टोरी टेसलंर्ग क्लब ) क्या है ? बुजुिों का समाज में बछचो व् युवा विि क े साथ बछचो की देखभाल व् संभाल करने बहुत ही महत्तवपूणि भूममका रही है | आज भी हमारे बुजुिि अभी भी अपने भूममकाये ननभाते आ रहे है, पर बुजुिों को र्ायद ही कभी इन सेवाओं क े मलए कोई पहचान ममलती है| और जब समाज में बुजुिों को जरुरत होती है तो उन्हें अक्सर आगित क े रूप में देखा जाता है | अंतपीढी सवांद मंच (स्टोरी टीमलंि क्लब) एक ऐसा मंच,जिह जहााँ पर बुजुिों व् बछचों क े मध्य बातचीत करने, अनुभव र्ेयर करने, एक दुसरे की पररच्स्थनत एवं अपनी भूममका व् च्जम्मेदाररयों को समझते हुये बछचों व् बुजुिों क े मध्य सम्बन्ध स्थावपत करने की प्रककया जो बार बार दोहराई जाये |
  • 5. 5 अंिपीढ़ी िवांद मंच (स्टोरी टेसलंर्ग क्लब) क े उद्देश्य |  बुजुिों की भूममका क े महत्व को समझना |  स्थानीय मूल्य प्रणाली पर काम करना |  स्थानीय बुजुिों एवं बछचों क े मध्य चैनल प्रदान करना |  बुजुिों को अनुभव बछचो क े साथ र्ेयर करवाना |  बुजुिों एवं बछचों क े मध्य सामाच्जक सम्बन्ध बनाने में मदद करना |  बुजुिों व् बछचों क े मध्य एक दुसरे क े प्रनत सहायता संबध प्रणाली पर काम करना |  बछचें एवं बुजुिि एक दुसरे क े पूरक बने | अंतपीढ़ी सवांद मंच क े मलए आवश्यकता | वृद्धजन स्वंम सहायता समूह सदस्यों क े पररवारों में रहने वाले 5 से 14 वषि आयु विि क े बछचो की सूची तैयार करना | अंतपीढ़ी सवांद मंच पर स्टोरी टेमलंि क े मलए 15 से 20 बछचों का होना अननवायि है | इसमें यह भी सुननच्श्चत ककया जाना चादहए की च्जन बछचो क े नाम सूची में है उन बछचों में से ही इस सवांद में भाि लेवें बछचों व बुजुिों क े मध्य तीन माह में एक बार अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक करना अननवायि है | अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक में बुजुिों या सामुदानयक कायिकत्ताि द्वारा नैनतक मर्क्षा, बुजुिों क े महत्व, जरुरत, पररगथनतयों, व् उनकी मदद आदद को समझने वाली सामाच्जक मर्क्षा, पाररवाररक मर्क्षा, प्राचीन समय की परम्परा रीनत ररवाजों, सामाच्जक मसस्टम,खेती एवं ज्ञानवधिक कहाननयां भी सुनाई जा सकती है | बछचों क े साथ कहाननयों से ममलने वाली सीख पर बातचीत होनी चादहए | च्जससे बछचे अपने दैननक व्यवहार में सकारात्मक बदलाव ला पायें और बुजुिों क े साथ समय व्यतीत करना र्ुरू करें एवं बछचों व् बुजुिों क े मध्य दोस्ताना सम्बन्ध स्थावपत करने में मदद ममले व् एक दुसरे क े पूरक बन सक ें | अंतपीढ़ी सवांद मंच की बैठक में बुजुिों या सामुदानयक कायिकत्ताि द्वारा ननम्न कहाननयां भी सुनाई जा सकती है और इनक े अलावा अन्य कहाननया का संकलन है तो उन्हें सुना सकते है |
  • 6. 6 1. अकल की दुकान िुनो र्ई कहानी:क्या िचमुच अक़्ल ख़रीदी या बेची जा िकिी है?  अक़्ल बेचने वाले का पहले तो बहुत मखौल उड़ाया िया। ककसी को उससे िटांक-भर अक़्ल नहीं ख़रीदनी थी, लेककन कफर एक सेठ क े बेटे ने एक पैसे का सौदा ककया और दुकान चल ननकली। एक ग़रीब अनाथ ब्राह्मण लड़का था। आजीववका क े मलए न कोई साधन था और न ही कोई काम। पर वह चतुर था। बचपन में वपता को देखकर वह कई बातें सीख िया था। एक ददन उसक े ददमाग़ में एक अद्भुत ववचार आया। वह र्हर िया। वहां उसने एक सस्ती-सी दुकान ककराए पर ली। दो-एक पैसे ख़चि करक े क़लम, स्याही, क़ािज वग़ैराह ख़रीदे और दुकान पर तख़्ती टांि दी। तख़्ती पर मलखा था, ‘अक़्ल बबकाऊ है।’ उस दुकान क े इदि-गिदि सेठों की बड़ी- बड़ी दुकानें थीं। वे कपड़े, िहने, फल, सच्ब्ियां वग़ैरह रोिमराि की चीिों का कारोबार करते थे। ब्राह्मण का बेटा ददनभर िला फाड़ता रहा, ‘अक़्ल! तरह-तरह की अक़्ल! अक़्ल बबकाऊ है! सही दाम, एक दाम!’ सौदा-सुलफ क े मलए आने वाले लोिों ने सोचा कक वह सनक िया है। उसकी दुकान क े आिे तमार्बीनों की भीड़ लि िई। सबने उसकी खखल्ली उड़ाई, पर ककसी ने एक िदाम की भी अक़्ल नहीं ख़रीदी। पर ब्राह्मण क े बेटे ने धीरज नहीं खोया।
  • 7. 7 एक ददन ककसी धनी सेठ का मूखि लड़का उधर से िुिरा। उसने ब्राह्मण क े लड़क े को आवाि लिाते सुना, ‘अक़्ल लो अक़्ल! तरह-तरह की अक़्ल! यहां अक़्ल बबकती है!’ सेठ क े बेटे क े क ु ि पल्ले नहीं पड़ा कक वह क्या बेच रहा है। उसने सोचा कक वह कोई सब्िी या ऐसी चीि है च्जसे उठाकर ले जाया जा सकता है। सो उसने ब्राह्मण क े बेटे से पूिा कक एक सेर का क्या दाम लोिे। ब्राह्मण क े बेटे ने कहा, ‘मैं अक़्ल को तौलकर नहीं, उसकी कक़स्म से बेचता हूं।’ सेठ क े बेटे ने एक पैसे का मसक्का ननकाला और बोला, ‘एक पैसे की जो और च्जतनी अक़्ल आती हो, दे दो!’ ब्राह्मण क े बेटे ने एक क़ािज का पुरिा मलया और उस पर मलखा, ‘जब दो आदमी झिड़ रहे हों तो वहां खड़े होकर उन्हें देखना अक़्लमंदी नहीं है।’ और पुरिा सेठ क े बेटे को देते हुए कहा कक वह उसे अपनी पिड़ी में बांध ले। सेठ का बेटा घर िया और पुरिा वपता को ददखाते हुए कहा, ‘मैंने एक पैसे ही अक़्ल ख़रीदी है, यह देखखए!’ सेठ ने क़ािज का टुकड़ा मलया और पढ़ा, ‘जब दो आदमी झिड़ रहे हों तो वहां खड़े होकर उन्हें देखना अक़्लमंदी नहीं है।’ सेठ का पारा चढ़ िया। वह बेटे पर बरस पड़ा, ‘िधा कहीं का। इस बकवास का एक पैसा। यह तो हर कोई जानता है कक जब दो जने झिड़ रहे हों तो वहां खड़ा नहीं रहना चादहए।’ कफर सेठ बािार िया और ब्राह्मण क े बेटे की दुकान पर जाकर उसे बुरा- भला कहने लिा, ‘बदमार्, तूने मेरे बेटे को ठिा है। वह बेवक ू फ है और तू ठि। सीधे-सीधे पैसा लौटा दे, नहीं तो मैं दरोिा को बुलाता हूं।’ ब्राह्मण क े बेटे ने कहा, ‘अिर आपको मेरा माल नहीं चादहए तो वापस कर दो। मेरी सलाह मुझे लौटा दो और अपना पैसा ले जाओ।’ सेठ ने क़ािज क े टुकड़े को उसकी तरफ़ फ ें कते हुए कहा, ‘यह लो और मेरा पैसा वापस करो।’ ब्राह्मण क े बेटे ने कहा, ‘पुरिा नहीं, मेरी सलाह वापस करो। अिर अपना पैसा वापस चादहए तो आपको यह मलखकर देना होिा कक आपका बेटा कभी मेरी सलाह पर नहीं चलेिा और जहां दो लोि लड़ रहे होंिे वहां वह िरूर खड़ा रहेिा और लड़ाई देखेिा।’ पड़ोमसयों और राहिीरों ने ब्राह्मण का पक्ष मलया। सेठ ने तुरंत ब्राह्मण क े कहे अनुसार मलखा, उस पर हस्ताक्षर ककए और अपना पैसा वापस ले मलया। वह ख़ुर् था कक इतनी आसानी से उसने अपने बेटे क े मूखितापूणि सौदे को रद्द कर ददया। उस राज्य क े राजा की दो राननयां थीं और दोनों एक-दूसरे काेे फ ू टी आंख नहीं सुहाती थीं। और तो और, उनकी दामसयां भी एक-दूसरे को र्त्रु समझती थीं। अपनी मालककनों की तरह वे भी झिड़े का कोई मौक़ा हाथ से नहीं जाने देती थीं। एक ददन दोनों राननयों ने अपनी एक- एक दासी को बािार भेजा। दोनों दामसयां एक ही दुकान पर िईं और दोनों ने एक ही कद्दू लेना चाहा। दुकान पर एक ही कद्दू था और दोनों उसे अपनी रसोई क े मलए ख़रीदना चाहती थीं। वे झिड़ने लिीं। उनकी िबान और हाथ इतने तेि चल रहे थे कक बेचारा दुकानदार
  • 8. 8 भाि खड़ा हुआ। उधर से िुिरते हुए सेठ क े लड़क े ने उन्हें झिड़ते देखा तो उसे अपने वपता और ब्राह्मण क े बेटे का करार याद आया और वह उनका झिड़ा देखने क े मलए रुक िया। िुत्थमिुत्था दामसयों ने एक-दूसरे क े बाल नोंच मलए और दनादन लात-घूंसे बरसाने लिीं। एक दासी ने सेठ क े बेटे को देखकर कहा, ‘तुम िवाह हो, इसने मुझे मारा।’ दूसरी गचल्लाई, ‘तुमने अपनी आंखों से देखा है कक ककसने ककसको मारा। तुम मेरे िवाह हो, इसने मुझे ककतना मारा।’ कफर उन्हें ध्यान आया कक उन्हें और भी कई काम करने हैं। कहीं उन्हें लौटने में देर न हो जाए। सो वे चली िईं। दामसयों ने अपनी-अपनी मालककनों को ख़ूब मसाला लिाकर झिड़े का हाल सुनाया। राननयों का मन सुलि उठा। उन्होंने राजा से मर्क़ायत की। दोनों राननयों ने सेठ क े बेटे को कहलवाया कक उसे उसकी तरफ़ से िवाही देनी है। अिर उसने उसका पक्ष नहीं मलया तो वह उसका सर कलम करवा देिी। सेठ क े बेटे क े होर् उड़ िए। सेठ को इसका पता चला तो उसक े देवता क ू च कर िए। आखख़र बेटे ने कहा, ‘चलो, ब्राह्मण क े बेटे से पूिते हैं। वह अक़्ल बेचता है। देखें, वह इस मुसीबत से ि ु टकारा पाने क े मलए क्या सलाह देता है।’ सो सेठ और उसका लड़का ब्राह्मण क े बेटे क े पास िए। ब्राह्मणपुत्र ने कहा कक वह सेठ क े बेटे को बचा लेिा, पर इसका र्ुल्क पांच सौ रुपया होिा। सेठ ने पांच सौ रुपए दे ददए। ब्राह्मण क े बेटे ने कहा, ‘जब वे तुम्हें बुलाए तो तुम पािल होने का स्वांि करना। ऐसा ददखावा करना जैसे उनकी कोई भी बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही।’ अिले ददन राजा ने िवाह को तलब ददया। राजा और मंत्री ने उससे कई सवाल पूिे , पर उसने एक का भी जवाब नहीं ददया। उसकी बड़बड़ाहट और आयं-बायं-र्ायं का एक भी र्ब्द राजा क े पल्ले नहीं पड़ा। झुंझलाकर राजा ने उसे कचहरी से बाहर ननकलवा ददया। इससे सेठ का बेटा इतना ख़ुर् हुआ कक उसे जो भी ममलता उससे वह ब्राह्मणपुत्र की बुद्गधमानी का बखान करता। र्हर में ब्राह्मणपुत्र क े कई कक़स्से प्रचमलत हो िए। पर सेठ प्रसन्न नहीं था। उसे लिा कक उसक े बेटे को हमेर्ा पािल का स्वांि करना पड़ेिा, नहीं तो राजा को पता चल जाएिा कक उसक े साथ िल ककया िया है। तब वह उसक े इकलौते बेटे का सर धड़ से अलि करवा देिा। सो वे कफर ब्राह्मणपुत्र क े पास सलाह लेने िए। ब्राह्मणपुत्र ने कफर पांच सौ रुपये र्ुल्क मलया और कहा, ‘जब महाराज का मन अछिा हो तो उन्हें सछची बात बता दो। इससे उनका मनबहलाव होिा और वे तुम्हें माफ़ कर देंिे। पर यह ध्यान रखना कक उस समय उनका मन प्रसन्न हो।’ सेठ क े बेटे ने वैसा ही ककया। सारी बात सुनकर राजा ख़ूब हंसा और उसे क्षमा कर ददया। यह कक़स्सा सुनकर राजा ब्राह्मणपुत्र क े बारे में और जानने क े मलए उत्सुक हो उठा। उसने उसे बुलवाया और पूिा कक क्या उसक े पास बेचने क े मलए और भी अक़्ल है। ब्राह्मणपुत्र ने कहा, ‘क्यों नहीं, बहुत है। ववर्ेषकर राजा क े मलए तो उसक े पास अक़्ल का भंडार है। पर मेरा र्ुल्क एक लाख रुपया होिा।’ राजा ने उसे एक लाख रुपए दे
  • 9. 9 ददए। उसने राजा को एक पुरिा ददया। उस पर मलखा था, ‘क ु ि भी करने से पहले ख़ूब सोच लेना चादहए।’ इस सलाह से राजा इतना ख़ुर् हुआ कक उसने इसे अपना सूत्र वाक्य बना मलया। उसने इसे अपने तककयों क े गिलाफ पर कसीदे में बुनवा ददया और प्यालों, तश्तररयों आदद पर खुदवा ददया, ताकक वह इसे कभी भूले नहीं। क ु ि महीने बाद राजा बीमार पड़ िया। मंत्री और एक रानी ने राजा से ि ु टकारा पाने का षड्यंत्र रचा। वैद्य को घूस देकर उन्होंने उसे अपने साथ ममलाया और उसे राजा को दवाई क े बदले िहर देने क े मलए रािी कर मलया। ‘दवाई’ राजा क े सामने लाई िई। राजा सोने का प्याला होठों तक ले िया। तभी उसकी निर प्याले पर खुदे र्ब्दों पर पड़ी, ‘क ु ि भी करने से पहले ख़ूब सोच लेना चादहए।’ बबना ककसी तरह का र्क़ ककए इन र्ब्दों पर मनन करते हुए उसने प्याले को नीचे ककया और ‘दवाई’ को देखने लिा। यह देखकर वैद्य घबरा िया। उसका अपराधी मन यह सोचकर कांप िया कक राजा को दवा में ममले िहर का पता चल िया है। वह राजा क े पांवों में गिर पड़ा और क्षमा की याचना करने लिा। राजा स्तब्ध रह िया। पर र्ीघ्र ही वह संभल िया और पहरेदारों को बुलवा कर वैद्य को कारािार में डलवा ददया। कफर उसने मंत्री और कपटी रानी को बुलवाया और उन्हें प्याले क े जहर को पीने क े मलए कहा। दोनों ने राजा क े पांव पकड़कर दया की भीख मांिी। राजा ने तत्काल उनको और वैद्य को देर् ननकाला दे ददया। ब्राह्मण पुत्र को उसने अपना मंत्री बनाया और उसे धन और पुरस्कारों से लाद ददया। }}} (साभार पुस्तक- भारत की लोक कथाएं, संकलन एवं संपादन- ए. क े . रामानुजन, अनुवाद- क ै लार् कबीर)  कहानी से क्या समझ आया ?  ब्राह्मण पुत्र मंत्री क ै से बना ?  इस कहानी से क्या सीख ममलती है ?
  • 10. 10 2.चालक लोमड़ी ककसी जंिल में एक लोमड़ी का पररवार रहता था। जब मादा लोमड़ी िभिवती हुई तो उसने अपने पनत से घर का इंतजाम करने को कहा। इस पर पनत लोमड़ी बहुति ेंचंनतत हो िया, लेककन उसने वादा ककया कक वह घर का इंतजाम जरूर कर देिा। जब बछचों क े जन्म का समय आया तो लोमड़ी अपनी पत्नी को बाघ की िुफा में ले िया। तब िुफा खाली थी। बाघ खखाकर क े मलए बाहर िया हुआ था। िुफा देखकर मादा लोमड़ी बहुत खुर् हुई। उसने िुफा में बछचों को जन्म दे ददया। इसक े बाद लोमड़ी ने अपनी पत्नी को बता ददया कक िुफा बाघ की है। वह हर वक्त िुफा क े द्वार पर बैठा रहता था। उससे पत्नी क े साथ ममलकर एक योजना बनाई । जैसे ही वहां बाघ आया, मादा लोमड़ी ने योजना क े तहत बछचों को रुला ददया। पनत लोमड़ी ने पूिा कक बछचे क्यों रो रहे हैं तो मादा ने जोर से जवाब ददया कक बाघ का मांस मांि रहे हैं। ऐसा सुनते ही बाघ घबरा िया और सोचने लिा कक िुफा में उससे भी ताकतवर जानवर आ िया है, तभी तो बाघ का मांस मांि रहा है। वह िुफा िोड़कर भाि िया। रास्ते में उसका दोस्त बंदर ममला। बंदर जानता था कक िुफा में लोमड़ी का पररवार रह रहा है। उसने बाघ को समझाया। पहले तो बाघ मानने को तैयार नहीं हुआ, लेककन बाद में बंदर क े साथ िुफा में जाने को तैयार हो िया। जैसे ही बाघ बंदर क े साथ िुफा क े ननकट पहुंचा, लोमड़ी ने जोर- र्ोर से कहना र्ुरू कर ददया कक हे बंदर जब तक तू हमारा नौकर था, तब तो रोज चार-चार बाघ लाता था और अब मसफ ि एक बाघ ला रहा है। ऐसा सुनकर बाघ को लिा कक बंदर ने उसक े साथ ववश्वासघात ककया है, उसने बंदर को मार ददया और खुद भी िुफा िोड़कर भाि िया। इस तरह लोमड़ी ने चालाकी से बाघ की िुफा को हड़प मलया।
  • 11. 11 3.रस्सीये जकड़,डण्डे मार एक िांव में एक दजी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी। उस दजी क े तीन बेटे थे। वे दजी-पुत्र जब बड़े हुए तो दजी ने उन्हें बकरी चराने का काम सौंपा। वह बकरी ददन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दजी र्ाम को उस पर हाथ फ े र कर उससे हाल पूिता, तो वह कहती-आपक े बेटे मुझे मैदान में एक खूंटे से बांध कर रखते हैं। वह स्वयं खेलते रहते हैं और मैं भूखी रहती हूं। दजी बहुत ददनों तक बात टालता रहा। कफर एक ददन उसने बेटों को डांट-डपट कर कहा- ननकल जाओ घर से, तुम सब ननकम्मे हो। बेकसूर लड़क े भी एक दम घर से ननकल िए। उनक े जाने क े बाद दजी को बकरी की धूतिता का पता चला। वह अब अपनी िलती पर पिताने लिा और बेटों क े घर लौट आने की राह देखता रहा। दजी क े तीनों पुत्रों को घर से दूर एक-दूसरे से अलि-अलि नौकरी ममल िई। उनक े मामलक उनक े काम से खुर् हुए। सबसे बड़ा लड़का लड़की का साज-सामान बनाने वाले क े पास नौकर हो िया। दूसरा उसी निर में एक पनचक्की पर नौकर हो िया और तीसरा एक दुकानदार क े यहां। दोनों बड़े भाइयों को वपता की याद सता रही थी। उन्होंने फ ै सला ककया कक वह घर लौट जाएंिे। उनक े मामलक भी इस बात को मान िए। बड़े भाई को उसक े मामलक ने एक िोटी सी मेज देकर कहा-बेटा, इस मेज से च्जस तरह का भोजन मांिोिे, वह तुम्हें इस पर तैयार ममलेिा। दूसरे भाई को चक्कीवाले ने एक िधा देते हुए कहा-जाओ खुर् रहो। इस िधे को भी ले जाओ। जयों ही तुम इससे कहोिे-मुझे मुहरें दो, त्यों ही यह मुंह से मुहरें उिलने लिेिा। जब तक तुम ‘बस करो’ न कहोिे यह मुहरें उिलता रहेिा। दोनों भाई अपने-अपने उपहार लेकर घर की ओर चल ददए। वे सायंकाल क े समय एक िांव में पहुंचे। वे रात भर आराम करने क े मलए एक सराय में ठहरे। सरायवाला दुटट था। उसने उन्हें रात भर रहने की जिह दी पर बात ही बात में उनक े उपहारों की ववर्ेषता क े बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली। जब उसे मेज और िधे क े िुणों का पता लिा तो उसने उन्हें हगथयाने की बात सोची। वे दोनों भाई जब सोकर खरािटे भर रहे थे तब उस दुटट ने मेज क े
  • 12. 12 बदले हू-ब-हू वैसी ही मेज रख दी और िधा भी उसी र्क्ल का खूंटे से बांध ददया। सुबह वे दोनों भाई इन नकली चीजों को लेकर चल ददए। घर पहुंचे तो उनका वपता बहुत खुर् हो िया। उसने िधे और मेज की करामात सुनी तो और भी प्रसन्न हो िया। परंतु जब दोनों भाइयों ने अपने-अपने उपहार की परख और प्रदर्िन करना चाहा, तो हैरान हो िए। उनका बाप यह देख बड़ा नाराज हो िया। वह समझा कक बेटे मुझसे धोखा कर रहे हैं। बहुत क ु ि समझाने पर भी उसकी र्ंकर दूर न हुई। अत: उन्होंने अपने िोटे भाई को आपबीती मलखकर भेजी और उसे सराय वाले से सतक ि रहने को कहा। इसी क े साथ उसे यह भी बताया कक अिर संभव हो तो वह उससे चुराई हुई चीजें भी प्राप्त करने की कोमर्र् करें। पत्र पाकर तीसरे भाई ने भी स्वामी से घर लौट जाने की स्वीक ृ नत ली, तो उसे उपहार में एक थैला देते हुए मामलक ने कहा-यह थैला लो। इसका िुण यह है कक जब कभी तुमको सहायता की जरूरत पड़े तो इसे यों कहो-रस्सीये जकड़, और डंडे मार। तुम्हारे कहने क े साथ ही इसमें से एक रस्सी ननकलेिी और तुम्हारे र्त्रु को जकड़ लेिी। साथ ही इसमें से एक डंडा ननकल आएिा जो उसकी खोपड़ी पर चोट करने लिेिा। खैर, यह दजी पुत्र भी घर की ओर चल ददया। वह रात को उसी सराय में रुका। जब वह सोने लिा तो उस थैले को अपने तककये क े नीचे यों रखा, च्जससे सराय वाले को र्ंका हुई कक इसमें माल भरा है। आधी रात को सरायवाला थैले का धन चुराने क े इरादे से आया। दजी पुत्र इसी ताक में आंखें बंद ककए हुए लेटा हुआ था। ज्यों ही उसने मसरहाने क े नीचे से थैला ननकाला त्यों ही वह बोला-रस्सीये जकड़, और डंडे मार। कहने की देर थी कक थैले में से सचमुच ही एक रस्सी ननकली, च्जसने सराय वाले को जकड़ मलया। साथ ही एक डंडा भी उिल-उिल कर उसकी खोपड़ी पर पटाख-पटाख करता हुआ बरसने लिा। सरायवाला रोने-धोने और गचलाने लिा-भाई माफ करो, माफ करो। हाय मरा! मरा!! जब उस डंडे ने सरायवाले की खोपड़ी पर अछिी मार बरसाई तो दजीपुत्र बोला-बदमार् कहीं का, ये चीजें तभी थैले में लौट जाएंिी जब तू मेरे भाइयों से हगथयाया हुआ माल लौटाने का वायदा करेिा। लहूलुहान सरायवाले ने उससे वायदा ककया तो उसने इन दोनों चीजों को वापस बुलाया। इसक े बाद सरायवाले से मेज और असली िधा प्राप्त करने क े बाद वह घर लौटा।
  • 13. 13 जब वह घर पहुंचा तो तीनों भाइयों ने वपता सदहत खूब दावत उड़ाई। वपता अपने पुत्रों की सफलता पर बड़ा खुर् हुआ। वह धूति बकरी रात क े समय ही घर से भाि िई। अब बाप बेटे उन तीनों करामती चीजों क े कारण बड़े सुख से रहने लिे।  कोई इस तरह की करामाती चीज आपको ममल जाये तो आप क्या करेंिे ?  वपता को कब ख़ुर्ी ममली ?  इस कहानी से क्या सीख ममलती है ?
  • 14. 14 4.िेनापति और ककिान की कहानी सेनापनत ने देखा की क ु ि लोि खेत में काम कर रहे है, वह सेनापनत सभी को परेर्ान ककया करता था, उसे अगधक धन की जरूरत थी, इसमलए वह सोचा करता था, उसे धन क ै से ममल सकता है, वह उन सभी ककसने क े पास जाता है जो खेत में कमा कर रहे थे वह सेनापनत कहता है, आज से तुम सभी ककसान मुझे हर हफ्ते धन दे सकते है, अिर ककसी ने मना ककया तो अछिा नहीं होिा, यह राजा ने एलान ककया है, एक ककसान उसकी बात सुन रहा था. अकबर और बीरबल की साथ नयी कहानी वह ककसने सेनापनत क े पास आता है, वह कहता है की राजा ने ऐसा कोई भी एलान नहीं ककया है, क्योकक हमे यह बात अभी तक पता नहीं है, हमे लिता है, तुम यह बात सही नहीं कह रहे हो, वह सेनापनत कहता है तुम यह बात जानते हो, तुम्हे इस बात की सजा ममल सकती है, लेककन वह ककसान कहता है, अिर तुम सच बोलते हो, तो ठीक है, हम आपका सम्मान करते है, मिर सही नहीं है, तो हम यह बात सह नहीं सकते है ककसान की बात सुनकर सेनापनत उसे पकड़ लेता है, यह सभी दूसरे ककसान देखते है, वह सेनापनत ककसने को ले िया था, दादी मााँ की कहानी story in hindi, सभी ककसान राजा क े पास जाते है उन्हें सब क ु ि बता देते है, जब राजा यह बात सुनते है तो उन्हें भी पता नहीं था वह सेनापनत ऐसा भी कर सकता है, राजा सेनापनत को बुलाते है, उसक े बाद उनसे पूिते है सेनापनत मना कर देता है, लेककन जब यह बात बहुत अगधक ककसान कहते है तो यह झूट नहीं हो सकती है, सेनापनत को सजा ममलती है उन्हें आिे से ऐसा क ु ि भी नहीं करना है, यह बात उस ककसने की नहीं थी, बच्ल्क हमे भी सोचना चादहए अिर ककसी क े साथ िलत होता है, तो हमे उसकी मदद करनी चादहए |  िेनापति क ै िा था ?  िच्चाई पर कोन रहा ककिकी जीि हुई ?  इि कहानी िे क्या िीख समलिी है ?
  • 15. 15 5.वृद्धों क े अनुर्व की कद्र करें, उन्हें र्ी िम्मान क े िाथ जीने का हक है | एक अक्ट ू बर को सम्पूणि ववश्व में अंतरराटरीय वृद्ध ददवस मनाया जाता है। समाज और नई पीढ़ी को सही ददर्ा ददखाने और माििदर्िन क े मलए वररटठ नािररकों क े योिदान को सम्मान देने क े मलए इस आयोजन का फ ै सला संयुक्त राटर ने 1990 में मलया था। एक अक्टूबर को सम्पूणि ववश्व में अंतरराटरीय वृद्ध ददवस मनाया जाता है। समाज और नई पीढ़ी को सही ददर्ा ददखाने और माििदर्िन क े मलए वररटठ नािररकों क े योिदान को सम्मान देने क े मलए इस आयोजन का फ ै सला संयुक्त राटर ने 1990 में मलया था। इस ददन पर वररटठ नािररकों और बुजुिों का सम्मान ककया जाता है। वररटठों क े दहत क े मलए गचन्तन भी होता है। प्रश्न है कक दुननया में वृद्ध ददवस मनाने की आवश्यकता क्यों हुई ? क्यों वृद्धों की उपेक्षा एवं प्रताड़ना की च्स्थनतयां बनी हुई हैं ? गचन्तन का महत्वपूणि पक्ष है कक हम पतन क े इस िलत प्रवाह को रोक ें क्योंकक सोच क े िलत प्रवाह ने न क े वल वृद्धों का जीवन दुश्वार कर ददया है बच्ल्क आदमी-आदमी क े बीच क े भावात्मक फासलों को भी बढ़ा ददया है। वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, उसकी आंखों में भववटय को लेकर भय है, असुरक्षा और दहर्त है, ददल में अन्तहीन ददि है। इन त्रासद एवं डरावनी च्स्थनतयों से वृद्धों को मुच्क्त ददलानी होिी। सुधार की संभावना हर समय है। हम पाररवाररक जीवन में वृद्धों को सम्मान दें, इसक े मलये सही ददर्ा में चले, सही सोचें, सही करें। इसक े मलये आज ववचारिांनत ही नहीं, बच्ल्क व्यच्क्तिांनत की जरूरत है।
  • 16. 16 आज का वृद्ध समाज-पररवार से कटा रहता है और सामान्यतः इस बात से सवािगधक दुःखी है कक जीवन का ववर्द अनुभव होने क े बावजूद कोई उनकी राय न तो लेना चाहता है और न ही उनकी राय को महत्व देता है। समाज में अपनी एक तरह से अहममतय न समझे जाने क े कारण हमारा वृद्ध समाज दुःखी, उपेक्षक्षत एवं त्रासद जीवन जीने को वववर् है। वृद्ध समाज को इस दुःख और कटट से ि ु टकारा ददलाना आज की सबसे बड़ी जरुरत है। आज हम बुजुिों एवं वृद्धों क े प्रनत अपने कतिव्यों का ननवािह करने क े साथ-साथ समाज में उनको उगचत स्थान देने की कोमर्र् करें ताकक उम्र क े उस पड़ाव पर जब उन्हें प्यार और देखभाल की सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो वो च्जंदिी का पूरा आनंद ले सक े । वृद्धों को भी अपने स्वयं क े प्रनत जािरूक होना होिा, जैसा कक जेम्स िारफील्ड ने कहा भी है कक यदद वृद्धावस्था की झुररियां पड़ती हैं तो उन्हें हृदय पर मत पड़ने दो। कभी भी आत्मा को वृद्ध मत होने दो।’ प्रश्न है कक आज हमारा वृद्ध समाज इतना क ुं दठत एवं उपेक्षक्षत क्यों है? अपने को समाज में एक तरह से ननटप्रयोज्य समझे जाने क े कारण वह सवािगधक दुःखी रहता है। वृद्ध समाज को इस दुःख और संत्रास से ि ु टकारा ददलाने क े मलये ठोस प्रयास ककये जाने की बहुत आवश्यकता है। संयुक्त राटर ने ववश्व में बुजुिों क े प्रनत हो रहे दुव्यिवहार और अन्याय को समाप्त करने क े मलए और लोिों में जािरूकता फ ै लाने क े मलए अंतरराटरीय बुजुिि ददवस मनाने का ननणिय मलया। वृद्धों की समस्या पर संयुक्त राटर महासभा में सविप्रथम अजेंटीना ने ववश्व का ध्यान आकवषित ककया था। तब से लेकर अब तक वृद्धों क े संबंध में अनेक िोच्टठयां और अन्तरािटरीय सम्मेलन हो चुक े हैं। वषि 1999 को अंतरािटरीय बुजुिि-वषि क े रूप में भी मनाया िया। इससे पूवि 1982 में ‘ववश्व स्वास््य संिठन’ ने ‘वृद्धावस्था को सुखी बनाइए’ जैसा नारा ददया और ‘सबक े मलए स्वास््य’ का अमभयान प्रारम्भ ककया िया। एक पेड़ च्जतना ज्यादा बड़ा होता है, वह उतना ही अगधक झुका हुआ होता है, यानन वह उतना ही ववनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है, यही बात समाज क े उस विि क े साथ भी लािू होती है, च्जसे आज की तथाकगथत युवा तथा उछच मर्क्षा प्राप्त पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धािम में िोड़ देती है। वह लोि भूल जाते हैं कक अनुभव का कोई दूसरा ववकल्प दुननया में है ही नहीं। अनुभव क े सहारे ही दुननया भर में बुजुिि लोिों ने अपनी अलि दुननया बना रखी है। च्जस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी च्जंदिी लिा देता है, वृद्ध होने क े बाद उसे उसी घर में एक तुछि वस्तु समझ मलया जाता है। बड़े बूढ़ों क े साथ यह व्यवहार देखकर लिता है जैसे हमारे संस्कार ही मर िए हैं। बुजुिों क े साथ होने वाले अन्याय क े पीिे एक मुख्य वजह सामाच्जक प्रनतटठा मानी जाती है। तथाकगथत व्यच्क्तवादी एवं सुववधावादी सोच ने समाज की संरचना को बदसूरत बना ददया है। सब जानते हैं कक आज
  • 17. 17 हर इंसान समाज में खुद को बड़ा ददखाना चाहता है और ददखावे की आड़ में बुजुिि लोि उसे अपनी र्ान-र्ौकत एवं सुंदरता पर एक काला दाि ददखते हैं। बड़े घरों और अमीर लोिों की पाटी में हाथ में िड़ी मलए और ककसी क े सहारे चलने वाले बूढ़ों को अगधक नहीं देखा जाता, क्योंकक वह इन बूढ़े लोिों को अपनी आलीर्ान पाटी में र्ाममल करना तथाकगथत र्ान क े खखलाफ समझते हैं। यही रुदढ़वादी सोच उछच विि से मध्यम विि की तरफ चली आती है। आज बन रहा समाज का सच डरावना एवं संवेदनहीन है। आदमी जीवन मूल्यों को खोकर आखखर कब तक धैयि रखेिा और क्यों रखेिा जब जीवन क े आसपास सब क ु ि बबखरता हो, खोता हो, ममटता हो और संवेदनार्ून्य होता हो। आज क े समाज में मध्यम विि में भी वृद्धों क े प्रनत स्नेह की भावना कम हो िई है। डडजरायली का माममिक कथन है कक यौवन एक भूल है, पूणि मनुटयत्व एक संघषि और वाधिक्य एक पश्चाताप।’ वृद्ध जीवन को पश्चाताप का पयािय न बनने दे। वृद्धावस्था जीवन का अननवायि सत्य है। जो आज युवा है, वह कल बूढ़ा भी होिा ही, लेककन समस्या की र्ुरुआत तब होती है, जब युवा पीढ़ी अपने बुजुिों को उपेक्षा की ननिाह से देखने लिती है और उन्हें अपने बुढ़ापे और अक े लेपन से लड़ने क े मलए असहाय िोड़ देती है। आज वृद्धों को अक े लापन, पररवार क े सदस्यों द्वारा उपेक्षा, नतरस्कार, कटुच्क्तयां, घर से ननकाले जाने का भय या एक ित की तलार् में इधर-उधर भटकने का िम हरदम सालता रहता। वृद्धों को लेकर जो िंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बच्ल्क उपभोक्तावादी संस्क ृ नत तथा महानिरीय अधुनातन बोध क े तहत बदलते सामाच्जक मूल्यों, नई पीढ़ी की सोच में पररवतिन आने, महंिाई क े बढ़ने और व्यच्क्त क े अपने बछचों और पत्नी तक सीममत हो जाने की प्रवृवत्त क े कारण बड़े-बूढ़ों क े मलए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं। इसीमलये मससरो ने कामना करते हुए कहा था कक जैसे मैं वृद्धावस्था क े क ु ि िुणों को अपने अन्दर समाववटट रखने वाला युवक को चाहता हूं, उतनी ही प्रसन्नता मुझे युवाकाल क े िुणों से युक्त वृद्ध को देखकर भी होती है, जो इस ननयम का पालन करता है, र्रीर से भले वृद्ध हो जाए, ककन्तु ददमाि से कभी वृद्ध नहीं हो सकता।’ वृद्ध लोिों क े मलये यह जरूरी है कक वे वाधिक्य को ओढ़े नहीं, बच्ल्क जीएं। दरअसल, नई जीवनर्ैली और नए मूल्य बूढ़ों को समाज में कोई जिह नहीं देते, बच्ल्क उन्हें उनकी जिह से भी ववस्थावपत करते हैं। ववकास की अबाध िनत उन्हें असहाय िोड़ देती है और वे ननसहाय से अपने अतीत क े िमलयारों में डोलने लिते हैं। आज का समाज सेवाननवृत्त होते ही उस व्यच्क्त को नकार देता है, वह चाहे च्जतना ही साधन संपन्न हो, उसकी पूि कम हो जाती है और लोि उसे अमभवादन की सामान्य औपचाररकता प्रदान करने में भी कोताही करने लिते हैं।
  • 18. 18 आज जहां अगधकांर् पररवारों में भाइयों क े मध्य इस बात को लेकर वववाद होता है कक वृद्ध माता-वपता का बोझ कौन उठाए, वहीं बहुत से मामलों में बेटे-बेदटयां, धन-संपवत्त क े रहते माता-वपता की सेवा का भाव ददखाते हैं, पर जमीन-जायदाद की रच्जस्री तथा वसीयतनामा संपन्न होते ही उनकी नजर बदल जाती है। इतना ही नहीं संवेदनर्ून्य समाज में इन ददनों कई ऐसी घटनाएं प्रकार् में आई हैं, जब संपवत्त मोह में वृद्धों की हत्या कर दी िई। ऐसे में स्वाथि का यह नंिा खेल स्वयं अपनों से होता देखकर वृद्धजनों को ककन मानमसक आघातों से िुजरना पड़ता होिा, इसका अंदाजा नहीं लिाया जा सकता। वृद्धावस्था मानमसक व्यथा क े साथ मसफ ि सहानुभूनत की आर्ा जोहती रह जाती है। इसक े पीिे मनोवैज्ञाननक पररच्स्थनतयां काम करती हैं। वृद्धजन अव्यवस्था क े बोझ और र्ारीररक अक्षमता क े दौर में अपने अक े लेपन से जूझना चाहते हैं पर इनकी सकियता का स्वाित समाज या पररवार नहीं करता और न करना चाहता है। बड़े र्हरों में पररवार से उपेक्षक्षत होने पर बूढ़े-बुजुिों को ‘ओल्ड होम्स’ में र्रण ममल भी जाती है, पर िोटे कस्बों और िांवों में तो ठु कराने, तरसाने, सताए जाने पर भी आजीवन घुट-घुट कर जीने की मजबूरी होती है। यद्यवप ‘ओल्ड होम्स’ की च्स्थनत भी ठीक नहीं है। पहले जहां वृद्धािम में सेवा-भाव प्रधान था, पर आज व्यावसानयकता की चोट में यहां अमीरों को ही प्रवेर् ममल पा रहा है। ऐसे में मध्यमविीय पररवार क े वृद्धों क े मलए जीवन का उत्तराद्िध पहाड़ बन जाता है। वकक िं ि बहुओं क े ताने, बछचों को टहलाने-घुमाने की च्जम्मेदारी की कफि में प्रायः जहां पुरुष वृद्धों की सुबह-र्ाम खप जाती है, वहीं मदहला वृद्ध एक नौकरानी से अगधक हैमसयत नहीं रखती। यदद पररवार क े वृद्ध कटटपूणि जीवन व्यतीत कर रहे हैं, रुग्णावस्था में बबस्तर पर पड़े कराह रहे हैं, भरण-पोषण को तरस रहे हैं तो यह हमारे मलए वास्तव में लज्जा एवं र्मि का ववषय है। पर कौन सोचता है, ककसे फसित है, वृद्धों की कफि ककसे हैं? भौनतक च्जंदिी की भािदौड़ में नई पीढ़ी नए-नए मुकाम ढूंढने में लिी है, आज वृद्धजन अपनो से दूर च्जंदिी क े अंनतम पड़ाव पर कवीन्द्र-रवीन्द्र की पंच्क्तयां िुनिुनाने को क्यों वववर् है- ‘दीघि जीवन एकटा दीघि अमभर्ाप’, दीघि जीवन एक दीघि अमभर्ाप है। वृद्ध व्यच्क्तयों को सुखद एवं खुर्हाल जीवन प्रदत्त करने क े मलये हमें सविप्रथम तो उन्हें आगथिक दृच्टट से स्वावलम्बी बनाने पर ध्यान देना होिा। बेसहारा वृद्ध व्यच्क्तयों क े मलए सरकार की ओर से आवश्यक रूप से और सहज रूप मे ममल सकने वाली पयािप्त पेंर्न की व्यवस्था की जानी चादहए। ऐसे वृद्ध व्यच्क्त जो र्ारीररक और मानमसक दृच्टट से स्वस्थ हैं, उनक े मलए समाज को कम पररिम वाले हल्क े -फ ु ल्क े रोजिार की व्यवस्था करनी चादहए।
  • 19. 19 वृद्धों क े कल्याण क े कायििमों को ववर्ेष महत्व ददया जाना चादहए, जो उनमें जीवन क े प्रनत उत्साह उत्पन्न करे। स्वयं वृद्धजन को भी अपने तथा पररवार और समाज क े दहत क े मलए क ु ि बातों को ध्यान में रखना चादहए। उदाहरणाथि- युवा पररजनों क े मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें और उन्हें अपने ढंि से जीवन जीने दें। िांवों से ननकल कर कस्बों तथा निरों में आने वाले अगधकांर् युवाओं की सोच इस रूप में पुख्ता हो जाती है कक संयुक्त पररवार व्यच्क्तित उन्ननत में बाधक होते हैं। चीजों की ललक में स्वदहत इतने हावी हो जाते हैं कक संवेदनहीनता मानवीय ररश्तों की महक को क्षण में काफ ू र कर देती है और तन्हा बुढ़ापा घुटनभरी सांसों क े साथ जीने को बाध्य हो जाता है। हमें समझना होिा कक अिर समाज क े इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज ककया जाता रहा तो हम उस अनुभव से भी दूर हो जाएंिे, जो इन लोिों क े पास है। वृद्ध ददवस मनाना तभी साथिक होिा जब हम उन्हें पररवार में सम्मानजनक जीवन देंिे, उनक े र्ुभ एवं मंिल की कामना करेंिे। -लमलत ििि  अंतरराटरीय वृद्ध ददवस कब मनाया जाता है?  बुजुिों की समस्याएं ककस-ककस प्रकार की होती है ?  बुजुिों की समस्याओं को क ै से समझा जा सकता है ?  बुजुिों की जरूरते ककस प्रकार की होती है ?  बछचे क ै से बुजुिों क े सहायक बन सकते है ?
  • 20. 20 6.ववनम्रिा की िाकि – िमुद्र और नदी की कहानी | एक बार की बाि हैं एक नदी को अपने पानी क े प्रचंि प्रवाह पर घमंि हो र्गया। नदी को लर्गा कक मुझमे इिनी िाकि हैं कक मैं पत्थर, मकान, पेड़, पशु, मानव आदद िर्ी को बहा कर ले जा िकिी हु। नदी ने बड़े ही र्गवीले और अहंकार पूर्भ शब्दों मे िमुन्द्र िे कहा -बिाओ मैं िुम्हारे सलए क्या बहा कर लाउ? जो र्ी िुम चाहो मकान, बृक्ष, पत्थर, पशु, मानव आदद जो िुम चाहो मैं उिे जड़ िे उखाड़ कर ला िकिी हु। िमुन्द्र िमझ र्गया कक नदी को अहंकार हो र्गया हैं। उिने नदी िे कहा – यदद िुम मेरे सलए क ु छ लाना चाहिी हो िो थोड़ी िी नमभ घाि उखाड़ कर ले आओ। समुन्द्र कक यह बात सुनकर नदी बोली बस ! इतनी सी बात हैं। अभी आपकी सेवा मे हाच्जर करती हूं। नदी ने अपने जल का पूरा वेि घास पर लिाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने एक बार, दो बार, तीन बार… अनेक बार जोर लिाया। सभी प्रयत्न ककये, पर बार बार प्रयत्न करने पर भी कोई सफलता नही ममली। आखखर हारकर समुन्द्र क े पास पहुंची और बोली -मैं मकान, वृक्ष, जीव जंतु को बहाकर ला सकती हु पर नमि घास को उखाड़कर नहीं ला सकती। जब भी मैंने घास को उखाड़ने क े मलए पूरा वेि लिाकर उसे उखाड़ने का प्रयत्न ककया तो वह नीचे कक ओर झुक जाती हैं और मैं खाली हाथ उसक े ऊपर से िुजर जाती हूाँ। समुन्द्र ने नदी की पूरी बात सुनी और क ु ि देर ववचार ककया और कफर मुस्क ु राते हुए बोला – जो पत्थर या वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखाड़े जाते हैं ककन्तु घास जैसी ववनम्रता च्जससे सीख ली हो, उसे कोई प्रचंड वेि भी नहीं उखाड़ पता। नदी ने समुन्द्र की सारी बाते ध्यानपूणि सुनी और समझी। समझ मे आने पर नदी का घमंड चूर चूर हो िया। कहानी से सीख – ववनम्रता से इंसान बड़ी से बड़ी कदठनाई का सामना कर लेता हैं।  इंसान का सबसे बड़ा सहायक होता है कै से ?  सबसे बड़ा र्त्रु कोन है ककस प्रकार से है ?  कहानी से क्या सीख ममलती है ?
  • 21. 21  नदी और घास में ताकतवर कोन और कै से ? 7. मोरल स्टोरी- बुजुर्गों का महत्व मोरल स्टोरी–बुजुर्गों का महत्व एक ऐसी दहंदी कहानी है। जो आपक े ददल को ि ू जाएिी। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां बुजुिों को उतना महत्व नहीं ददया जाता च्जतना ददया जाना चादहए। वृद्धजन हमारे मलए ककतने जरूरी हैं? इसी को दर्ािती है यह नैतिक कहानी। बुजुिों का महत्व- बहुत पुरानी बात है। सुंदरिढ़ नामक एक राज्य था। च्जसका राजा सुमंत बहुत धनलोलुप था।वह हमेर्ा यही ववचार ककया करता था कक ककस प्रकार उसका राज्य सबसे धनवान बने।इसक े मलए वह नए नए तरीक े सोचा करता था। नए नए ननयम लािू करता रहता था। उसकी प्रजा भी उससे परेर्ान रहती थी। एक ददन उसने सोचा कक ये बुजुिि लोि उसक े राज्य क े मलए बोझ हैं। ये कोई काम तो करते नहीं हैं। बस बैठे बैठे खाते है। इनक े दवा इलाज और सुववधाओं पर जो खचि होता है वह अलि। इसमलए उसने घोषणा कर दी कक उसक े राज्य में साठ साल से ऊपर का कोई व्यच्क्त नहीं रहेिा। च्जनक े घरों में साठ साल से ऊपर क े लोि हैं वो उन्हें जंिल में िोड़ आये। प्रजा में क ु ि लोिों को राजा यह आदेर् पसन्द भी आया। लेककन क ु ि लोिों को राजा का आदेर् बहुत बुरा लिा। इस अवस्था में जब बुजुिों की सेवा की जानी चादहए। तब राजा आदेर् दे रहा है कक उन्हें जंिल में िोड़ ददया जाय।
  • 22. 22 लेककन राजा क े आदेर् की अवहेलना कौन कर सकता था? लोिों ने राजा की आज्ञा का पालन ककया। राजा सुमंत क े राज्य में ही एक लड़का अपनी बूढ़ी मााँ क े साथ रहता था। लड़का अपनी मााँ से बहुत प्रेम करता था। इस आदेर् से उसे बहुत पीड़ा हुई। लेककन राजाज्ञा का पालन अननवायि था। इसमलए वह अपनी बुजुिि और असहाय मााँ को पीठ पर लादकर जंिल की ओर चल ददया। रास्ते में चलते हुए उसकी मााँ झाडड़यों से लकडड़यााँ तोड़ तोड़ कर रास्ते पर डाल रही थी। यह देखकर लड़क े ने अपनी मां से पूिा, “मां! यह क्या कर रही हो?” मााँ ने जवाब ददया, ” बेटा! वापसी में तुम रास्ता न भूल जाओ, इसमलए मैं यह लकडड़यां डाल रही हूाँ।” मााँ क े प्रेम को देखकर लड़का फ ू ट फ ू ट कर रो पड़ा। उसने ननश्चय ककया कक वह अपनी बूढ़ी मााँ को जंिल में नहीं िोड़ेिा। रात क े अंधेरे में वह अपनी मां को लेकर वापस घर आ िया। घर क े आंिन में खुदाई करक े उसने एक िुफा बना दी। च्जससे ककसी को पता न चले। उसकी मां उस िुफा में रहने लिी। बेटा समय समय पर िुफा क े अंदर जाकर मााँ की सेवा करता। थोड़े समय बाद उस राज्य की धन संपवत्त को देखकर एक र्च्क्तर्ाली पड़ोसी राजा ने सुंदरिढ़ पर आिमण कर ददया। इस युद्ध में सुंदरिढ़ की हार हुई। राजा सुमंत बन्दी बना मलए िए. पड़ोसी राजा ने घोषणा की कक सुंदरिढ़ राज्य का कोई भी नािररक अिर मेरे दो प्रश्नों क े उत्तर दे देिा तो मैं सुंदरिढ़ राज्य और राजा सुमंत को भी िोड़ दूंिा। पूरा राज्य प्रश्न सुनने उमड़ पड़ा। राजा ने एक र्ीर्े का िोटा सा बतिन ददखाते हुए कहा, ” इसे कद्दुओं से भर दो।” लोिों ने उस बतिन को देखा और कहा, “इस िोटे से बतिन में तो एक भी कद्दू नहीं आ सकता। राजा ने जवाब देने क े मलए सात ददनों की मोहलत दे दी। लेककन ककसी को जवाब नहीं सूझ रहा था। वह लड़का भी वहां था। रात में जब वह अपनी मााँ क े पास िया तो उसने मां से सारी बात बताई। मााँ ने उससे कहा कक र्ीर्े क े बतिन में ममट्टी भरकर उसमें कद्दू क े बीज डाल दो। तीन चार ददन में जब बीज उि आए तो उन्हें राजा क े पास ले जाना। लड़क े ने वैसा ही ककया, और सचमुच चार ददन बाद र्ीर्े का वह बतिन कद्दू क े िोटे िोटे पौधों से भर िया। लड़का बतिन लेकर राजा क े पास िया। अपने प्रश्न का जवाब पाकर राजा प्रसन्न हुआ। कफर उसने दूसरा प्रश्न ककया, ” एक जैसी ददखने वाली दो िाय एक साथ खड़ी हैं। उनमें से मााँ
  • 23. 23 बेटी की पहचान क ै से करोिे? यह प्रश्न भी बड़ा कदठन था। इसका भी जवाब ककसी को नहीं सूझ रहा था। राजा ने इस बार तीन ददन की मोहलत दी। लड़का कफर मााँ क े पास पहुंचा और उसे सारी बात बतायी। मााँ ने बताया कक दोनों क े सामने घास डालो। दोनों में से जो मााँ होिी वह अपनी बेटी क े खाने क े बाद खाना र्ुरू करेिी। लड़क े ने राजा क े सामने मााँ क े बताए अनुसार दोनों िायों में मााँ बेटी की पहचान कर दी। पड़ोसी राजा ने अपने वादे क े अनुसार सुंदरिढ़ क े राजा और राज्य दोनों को मुक्त कर ददया। राजा सुमन्त बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने लड़क े से पूिा, “तुमने दोनों प्रश्नों क े उत्तर क ै से ददए?” लड़क े ने कहा, ” महाराज! यदद आप मुझे अभयदान दें, तो मैं बताऊ ं िा।” राजा ने उसे आश्वासन ददया। तब लड़क े ने बताया कक ये उत्तर उसे अपनी मााँ से पता चले थे। तब राजा को बुजुिों क े अनुभव का महत्व पता चला। उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने अपनी आज्ञा वापस ले ली। उसने आज्ञा दी कक उसक े राज्य में बुजुिों की सेवा और सम्मान होना चादहए।  रास्ते में चलते हुए मााँ झाडड़यों से लकडड़यााँ तोड़ तोड़ कर रास्ते पर क्यों डाल रही थी।  राजा सुमंत बुजुिों क े बारे में क ै से ववचार रखता था ?  प्रर्नों क े जवाब लड़क े को कहां से ममलते थे ?  बुजुिों क े महत्व क े बारे में आप क्या जानते है ?
  • 24. 24 8.बुद्गधमान बहू- िंिा क े तट पर पर एक सुंदर निर था। उसमें एक व्यापारी पररवार सदहत रहता था। उसक े पररवार में व्यापारी पनत पत्नी, उसका पुत्र और पुत्रवधू रहते थे। पुत्र का नाम अच्जतसेन और पुत्रवधू का नाम र्ीलवती था। अच्जतसेन व्यापार क े मसलमसले में कई ददनों तक बाहर रहता था। जबकक पुत्रवधू घर पर सास ससुर की सेवा करती थी। पूरा पररवार सुखी और प्रसन्न रहता था। एक ददन र्ीलवती आधी रात क े बाद खाली घड़ा लेकर बाहर ियी और बहुत देर में लौटी। उसक े ससुर ने उसे वापस लौटते देख मलया। उसे र्ीलवती क े चररत्र पर र्ंका हुई। उसने सोचा कक बेटा बाहर िया हुआ है ऐसे में बहू का यह आचरण आपवत्तजनक है। इससे मेरा क ु ल कलंककत हो जाएिा। इस चररत्रहीन बहू को घर में रखना ठीक नहीं है। उसने अपनी पत्नी से चचाि की और बहू को पीहर िोड़ देने का ननणिय ककया। अिले ददन ससुर र्ीलवती को रथ में बैठाकर स्वयं रथ हांकते हुए उसक े पीहर की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक िोटी सी नदी ममली। ससुर ने बहू से कहा- “तुम रथ से उतरकर जूते उतारकर नदी पार कर लो।” ककन्तु र्ीलवती ने बबना जूते उतारे ही नदी पार कर ली। ससुर ने मन में सोचा कक यह दुटचररत्र होने क े साथ ही अवज्ञाकारी भी है।
  • 25. 25 थोड़ा आिे जाने पर रास्ते क े ककनारे एक खेत ममला। च्जसमें मूंि की फसल लहलहा रही थी। ससुर ने ककसान क े भाग्य की प्रसंर्ा करते हुए कहा- “ककतनी सुंदर फसल है ! इस बार तो ककसान खूब लाभ कमाएिा।” र्ीलवती ने उत्तर ददया, “आपकी बात तो ठीक है, ककन्तु यदद यह जंिली जानवरों से बच जाए तब न।” ससुर को उसकी बात बहुत अटपटी लिी। लेककन वह क ु ि नहीं बोला। क ु ि दूर और चलने पर वे एक निर में पहुंचे। जहां क े लोि बहुत सुखी और प्रसन्न ददखाई दे रहे थे। यह देखकर ससुर क े मुंह से ननकला- “ककतना सुंदर निर है !” र्ीलवती बोली- “आपकी बात तो ठीक है, यदद इसे उजाड़ा न जाये तो।” ससुर को उसकी बात अछिी तो नहीं लिी। ककन्तु वह कफर भी क ु ि नहीं बोला। क ु ि दूर आिे जाने पर एक राजपुत्र ददखाई पड़ा। च्जसे देखकर ससुर कफर बोल पड़ा- “अरे वाह ! यह युवक तो देखने में ही र्ूरवीर लिता है।” लेककन र्ीलवती कफर बोल पड़ी, “यदद कहीं पीटा न जाये तो।” इस बार तो ससुर िोगधत हो िया। ककन्तु ककसी प्रकार उसने अपने िोध को रोका और आिे बढ़ा। थोड़ी देर बाद दोपहर हो ियी। व्यापारी एक घने बरिद क े पेड़ क े नीचे रथ को रोककर पेड़ की जड़ में बैठकर आराम करने लिा। जबकक र्ीलवती पेड़ से दूर जमीन पर बैठ ियी। यह देखकर व्यापारी ने सोचा कक यह क ै सी औरत है, जो उल्टे काम ही करती है। थोडा देर आराम करक े वे कफर आिे बढ़े। थोड़ा आिे बढ़ने पर र्ीलवती का नननहाल आ िया। रास्ते में ही उसका मामा ममल िया और च्जद करक े उन्हें अपने घर ले िया। वहां भोजन करक े र्ीलवती का ससुर अपने रथ में ही लेट िया। ससुर को रथ में लेटा देखकर र्ीलवती भी रथ क े पास ही जमीन पर बैठ ियी। उसी समय पास क े बबूल क े पेड़ पर बैठा एक कौवा कांव-कांव करने लिा। लिातार कांव-कांव की आवाज सुनकर र्ीलवती बोली- “अरे ! तू थकता क्यों नहीं ? एक बार पर्ु की बोली सुनकर उसक े अनुसार कायि करने क े कारण मुझे घर से ननकाल जा रहा है। अब तुम्हारी बात मानकर मैं एक नई आफत मोल ले लूाँ ? कल रात एक िीदड़ की आवाज सुनकर मैं नदी ककनारे ियी और ककनारे लिे एक मुदे क े र्रीर से बहुमूल्य आभूषण उतारकर घर ले आयी।”
  • 26. 26 “उसक े कारण मेरे ससुर मुझे घर से ननकाल रहे हैं। अब तू कह रहा है कक इस बबूल की जड़ में खजाना िड़ा है। तो क्या इसे ननकालकर मैं एक नई ववपवत्त मोल ले लूाँ। मैं पर्ु-पक्षक्षयों की बोली समझती हूाँ तो इसमें मेरा क्या दोष ?” र्ीलवती का ससुर उसकी बात सुनकर आश्चयिचककत हो िया। उसने बबूल की जड़ में खुदाई करक े देखा तो उसे सचमुच खजाना ममल िया। वह बहुत प्रसन्न हुआ और बहू की बड़ाई करने लिा और उसे लेकर वापस घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसने पूिा कक तुम बरिद की िाया में क्यों नहीं बैठी ? र्ीलवती ने उत्तर ददया, ” वृक्ष की जड़ में सपि का भय रहता है, ऊपर से गचडड़यां भी बीट करती हैं। इसमलए वृक्ष की जड़ से दूर बैठना ही बुद्गधमानी है।” ससुर उसक े उत्तर से प्रसन्न हुआ। कफर उसने र्ूरवीर राजपुत्र क े ववषय में पूिा। च्जसक े उत्तर में र्ीलवती ने बताया कक वास्तववक र्ूर वही होता है जो प्रथम प्रहार करता है। इसी प्रकार खुर्हाल निर क े बारे में उसने कहा कक च्जस निर क े लोि आिंतुक अनतगथयों का स्वाित नहीं करते। वह वास्तव में आदर्ि और खुर्हाल नहीं होता है। अंत में ससुर ने जूते पहने नदी पार करने का कारण पूिा। च्जसक े जवाब में र्ीलवती ने कहा, “नदी में ववषैले जीव जंतुओं का भय होता है। इसक े अलावा नदीतल में क ं कड़-पत्थर होते हैं। इसमलए नदी तालाब को सदैव जूते पहने ही पार करना चादहए। र्ीलवती का ससुर उसकी बुद्गधमत्तापूणि बातें सुनकर अनत प्रसन्न हुआ। उसक े हृदय में र्ीलवती क े मलए प्रेम और सम्मान बढ़ िया। घर पहुंचकर उसने र्ीलवती को घर की सारी च्जम्मेदारी दे दी।  व्यापारी एक घने बरिद क े पेड़ क े नीचे रथ को रोककर पेड़ की जड़ में बैठकर आराम करने लिा। जबकक र्ीलवती पेड़ से दूर जमीन पर बैठ ियी। क्यों ?  बबूल की जड़ में खजाना है यह क ै से पता चला ?  सही कोन था र्ीलवती या उसक े ससुरालवाले ?  र्ीलवती का ससुर खुर् क्यों हुआ ?  कहानी से क्या सीख ममलती है ?