3. संधि का शाब्दिक अर्थ है मेल । दो समीपवर्ती वर्थ या
ध्वधियों क
े संयोग से होिे वाले परिवर्तथि को ही संधि कहा
जार्ता है ।
जैसे - सूि + इंद्र = सुिेंद्र
धवद्या + आलाय = धवद्यालय
संधि धिच्छे द
संधि क
े धियमों द्वािा बिाए गए वर्ों या शिों को पुिः मूल
संधि से तात्पयय
4. संधि क
े प्रकार
संधि क
े मुख्य रूप से र्तीि प्रकाि हैं -
1 स्वर संधि
दो स्विों क
े मेल से उत्पन्न धवकाि को स्वर संधि
कहर्ते है ।
जैसे - धहम+ आलय = धहमालय
5. स्वर संधि क
े भेद
1. दीर्य संधि - जब धकसी शि क
े मध्य में बडी मात्रा ( आ , ई ,
ऊ) आर्ता है र्तो वही दीर्थ स्वि कहलार्ता हैं।
जैसे : देव + अजथि = देवाजथि
2. गुण संधि - जब धकसी शि क
े मध्य में छोटी ए , ओ
या ऋ की मात्रा आर्ता है र्तो गुर् संधि कहलार्ता हैं।
जैसे : गर् + ईश = गर्ेश
6. 3. िृद्धि संधि - जब धकसी शि क
े मध्य बडी ऐ या औ की
मात्रा आर्ता हैं र्तो वह वृब्दि संधि कहलार्ता है । जैसे : सदा + एव=
सदैव
4. यण संधि- जब धकसी शि में य, र, ि क
े सार् में अपूर्थ शि
हो र्तो वह यर् संधि होर्ता हैं। जैसे : अधर्त + आचाि =। अत्याचाि
5. अयाधद संधि - जब धकसी शि को उच्चारिर्त किर्ते समय व या य
ध्वधि धिकले र्तो वह अयादी संधि कहलार्ती हैं। जैसे : ियि , पवि
आधद ।
7. 2.व्यंजन संधि
व्यंजि क
े पश्चार्त व्यंजि या स्वि का मेल होिे से जो
परिवर्तथि होर्ता हैं , उसे व्यंजि संधि कहलार्ता हैं।
जैसे : अच+ अंर्त= अजंर्त
यहां पि च एक व्यंजि है औि अ एक वर्थ है धजसक
े
संयोग से ज होर्ता हैं ।
8. 3.धिसगय संधि
यधद संधि का प्रर्म वर्थ धवसगथ हो औि उसका स्वि या व्यंजि
क
े सार् संयोगवक
े द्वािा धवकाि होर्ता है र्तो उसे धवसगथ संधि
कहर्ते है ।
जैसे : धिः + संदेह। = धिस्संदेह