आयुर्वेद सिध्धान्तों का आधुनिक हाई टेक्नोलाजी इलेक्ट्रि त्रिदोष ग्राफ ई०टी०जी...Dr. Desh Bandhu Bajpai
आयुर्वेद के नाड़ी परीक्षण के मूल सिध्धान्तों को एक तरफ आधार मानकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक वैग्यानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करते हुये और इसके साथ साथ आधुनिक वैग्यानिक खोजों तथा प्राचीन ग्यान के बीच मे अन्त: सम्बन्ध यानी को-रिलेशन को केन्द्रीय विचार मानते हुये आयुर्वेद के अन्य तमाम मौलिक सिध्धन्तो को वैग्यानिक सामन्जस्य को साथ लेते हुये और तारतम्य और एकरूपता को एक सूत्रीय बनाये रखते हुये ऐसे विचार को लेकर प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गयी है /
आयुर्वेद के आदि रचित शास्त्रीय ग्रन्थो मे आयुर्वेद के मौलिक सिध्धन्तो का प्रतिपादन किया गया है / इन सिध्धान्तो और नियमो को लेखको और व्याख्याकारों द्वारा कई तरह से समझाने की कोशिश की गयी है / आयुर्वेद के सिध्धान्त यथा दोष, त्रिदोष, त्रिदोष भेद, सप्त धातुयें, मल, उप-धातुयें और कार्य विकृति और दोष विकृति और स्थापित दोषो के शरीर मे स्थान आदि की व्याख्या चरक, सुश्रुत, वाग्भठ्ठ, भाव मिश्र , शारन्गधर आदि के द्वारा की गयी है /
नाड़ी परीक्षण के द्वारा त्रिदोषो का ग्यान करने का परिचय भाव प्रकाश ग्रन्थ मे मिलता है / वैग्यानिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो यही एक आयुर्वेद मे परीक्षण विधि है जिसके द्वारा शरीर के त्रिदोषो का अन्कलन किया जा सकता है / आयुर्वेद के ग्रन्थों में पन्च विधि और अष्ट विधि और दश विधि परीक्षण के अलावा आकृति परीक्षा और मल तथा मूत्र और स्वेद परीक्षा का भी वर्णन ग्रन्थों में मिलता है , जिनके द्वारा भी त्रिदोष का अन्कलन किया जा सकता है , ऐसा आयुर्वेद के महर्षियो ने बताया है /
यद्यपि वैग्यानिक दृष्टिकोण से और आधुनिक प्रत्यक्ष और प्रमाण की दृष्टि से साक्ष्य आधारित विधि का नूतन आविष्कार, जिसको ” इलेक्ट्रो त्रिदोष ग्राफ ; ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन ” का नाम करण लेखक द्वारा किया गया है, इस विधि द्वारा आयुर्वेद के लगभग समस्त मुख्य मौलिक सिध्धन्तो का मूल्यान्कन किया जा सकता है, जिन्हे आयुर्वेद मे बताया गया है / यह परीक्षण आधुनिक डिजिटल कम्प्यूटेराइज़्ड मशीनो द्वारा किया जाता है, इसलिये अब आयुर्वेद साक्ष्य आधारित चिकित्सा विग्यान यानी इवीडेन्स बेस्ड मेडिकल साइन्स हो गयी है /
ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन सिस्टम को भारत सरकार द्वारा परीक्षित किया जा चुका है / प्राचीन विग्यान और अर्वाचीन विग्यान दोनों के समन्वयन के द्वारा आयुर्वेद को आधुनिक वैग्यानिक स्वरूप देने का प्रयास लेखक और सम्पादक द्वारा किया गया है /
आयुर्वेद सिध्धान्तों का आधुनिक हाई टेक्नोलाजी इलेक्ट्रि त्रिदोष ग्राफ ई०टी०जी...Dr. Desh Bandhu Bajpai
आयुर्वेद के नाड़ी परीक्षण के मूल सिध्धान्तों को एक तरफ आधार मानकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक वैग्यानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करते हुये और इसके साथ साथ आधुनिक वैग्यानिक खोजों तथा प्राचीन ग्यान के बीच मे अन्त: सम्बन्ध यानी को-रिलेशन को केन्द्रीय विचार मानते हुये आयुर्वेद के अन्य तमाम मौलिक सिध्धन्तो को वैग्यानिक सामन्जस्य को साथ लेते हुये और तारतम्य और एकरूपता को एक सूत्रीय बनाये रखते हुये ऐसे विचार को लेकर प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गयी है /
आयुर्वेद के आदि रचित शास्त्रीय ग्रन्थो मे आयुर्वेद के मौलिक सिध्धन्तो का प्रतिपादन किया गया है / इन सिध्धान्तो और नियमो को लेखको और व्याख्याकारों द्वारा कई तरह से समझाने की कोशिश की गयी है / आयुर्वेद के सिध्धान्त यथा दोष, त्रिदोष, त्रिदोष भेद, सप्त धातुयें, मल, उप-धातुयें और कार्य विकृति और दोष विकृति और स्थापित दोषो के शरीर मे स्थान आदि की व्याख्या चरक, सुश्रुत, वाग्भठ्ठ, भाव मिश्र , शारन्गधर आदि के द्वारा की गयी है /
नाड़ी परीक्षण के द्वारा त्रिदोषो का ग्यान करने का परिचय भाव प्रकाश ग्रन्थ मे मिलता है / वैग्यानिक दृष्टिकोण से देखा जाय तो यही एक आयुर्वेद मे परीक्षण विधि है जिसके द्वारा शरीर के त्रिदोषो का अन्कलन किया जा सकता है / आयुर्वेद के ग्रन्थों में पन्च विधि और अष्ट विधि और दश विधि परीक्षण के अलावा आकृति परीक्षा और मल तथा मूत्र और स्वेद परीक्षा का भी वर्णन ग्रन्थों में मिलता है , जिनके द्वारा भी त्रिदोष का अन्कलन किया जा सकता है , ऐसा आयुर्वेद के महर्षियो ने बताया है /
यद्यपि वैग्यानिक दृष्टिकोण से और आधुनिक प्रत्यक्ष और प्रमाण की दृष्टि से साक्ष्य आधारित विधि का नूतन आविष्कार, जिसको ” इलेक्ट्रो त्रिदोष ग्राफ ; ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन ” का नाम करण लेखक द्वारा किया गया है, इस विधि द्वारा आयुर्वेद के लगभग समस्त मुख्य मौलिक सिध्धन्तो का मूल्यान्कन किया जा सकता है, जिन्हे आयुर्वेद मे बताया गया है / यह परीक्षण आधुनिक डिजिटल कम्प्यूटेराइज़्ड मशीनो द्वारा किया जाता है, इसलिये अब आयुर्वेद साक्ष्य आधारित चिकित्सा विग्यान यानी इवीडेन्स बेस्ड मेडिकल साइन्स हो गयी है /
ई०टी०जी० आयुर्वेदास्कैन सिस्टम को भारत सरकार द्वारा परीक्षित किया जा चुका है / प्राचीन विग्यान और अर्वाचीन विग्यान दोनों के समन्वयन के द्वारा आयुर्वेद को आधुनिक वैग्यानिक स्वरूप देने का प्रयास लेखक और सम्पादक द्वारा किया गया है /
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-February -2018
In Bharatiya Jain Sanghatana, we publish a monthly Hindi news bulletin as "Bharatiya Jain Sanghatana Samachar”.
This month's edition covers about, Smart Girl workshops during the month of January, other Bharatiya Jain Sanghatana activities, Minority Awareness Workshops , Upcoming matrimonial meets and our special article " Manthan" on “Beti bachao- Beti padhao”.
Open to download & Please Respect Every Religion
तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Na vegandharaniya adhyaya-Effect of urges on Health YogeshDeole
The presentation is about clinical aspects of Navegandharaniya chapter of Charak Samhita. It includes importance of factors for preservation of health and prevention of disease. It depicts how non suppressible natural urges, psychological emotions, exercise, prakriti (basic body constitution) can affect health and disease? This chapter of ancient Ayurveda text is highly important to know basics of prevention of endogenous and exogenous diseases. Each natural urge gives a signal of internal change in physiology. So its important to follow the natures demand to keep the internal environment clean and healthy. The translation of the chapter can be read on http://www.carakasamhitaonline.com/mediawiki-1.32.1/index.php?title=Naveganadharaniya_Adhyaya.
Bharatiya Jain Sanghatana -Samachar-February -2018
In Bharatiya Jain Sanghatana, we publish a monthly Hindi news bulletin as "Bharatiya Jain Sanghatana Samachar”.
This month's edition covers about, Smart Girl workshops during the month of January, other Bharatiya Jain Sanghatana activities, Minority Awareness Workshops , Upcoming matrimonial meets and our special article " Manthan" on “Beti bachao- Beti padhao”.
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तुलसीदास जी राम कथा की महिमा बताते हुये कहते हैं -
रामचरितमानस एहि नामा । सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ।।
मन करि बिषय अनल बन जरई । होई सुखी जौं एहिं सर परई ।।
रामचरितमानस मुनि भावन । बिरचेउ संभु सुहावन पावन ।।
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ।।
(बा.35)
वे कहते हैं कि भगवान की इस कथा का नाम 'श्री रामचरितमानस' इसलिये रखा है कि इसको सुनकर व्यक्ति को विश्राम मिलेगा । इस कथा के प्रभाव से मानसिक स्वस्थता प्राप्त होगी । मन में विषय वासनायें भरी हुई हैं । जिस प्रकार अग्नि में लकड़ी जल जाती है, उसी प्रकार जब लोग रामकथा सुनगें तो यह उनके हृदय में पहुँचकर विषयों की वासना को समाप्त कर देगी । श्री रामचरितमानस एक सरोवर के समान है जो इस सरोवर में डुबकी लगायेगा वह सुखी हो जायेगा । विषयों की अग्नि में व्यक्तियों के हृदय जल रहे हैं और यह ताप उन्हें दुख देता है । जिसने श्री रामचरितमानस रूपी सरोवर में डुबकी लगाई उसका सन्ताप दूर होकर शीतलता प्राप्त हो जाती है।
श्री रामचरितमानस को सबसे पहले शंकर जी ने रचा था । वह अति सुन्दर है और पवित्र भी। यह कथा तीनों प्रकार के दोषों, दुखों, दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों का नाश करने वाली है। जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस कथा को सुनेंगे तो उनके मानसिक विकार दूर होंगे । अनुकूल व प्रतिकूल परिस्थितियों में वे विचलित नहीं होंगे ।आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक तीनों ताप उन्हें नहीं सतायेंगे, उनकी वासनायें परिमार्जित हो जायेंगी और वे आत्मज्ञान के अधिकारी बनेंगे ।
मानस के दो अर्थ हैं - एक तो मन से मानस बन गया और दूसरा पवित्र मानसरोवर नामक एक सरोवर है । रामचरित्र भी मानसरोवर नामक पवित्र तीर्थ के समान है । सरोवर तो स्थूल वस्तु है इसलिये इन
Na vegandharaniya adhyaya-Effect of urges on Health YogeshDeole
The presentation is about clinical aspects of Navegandharaniya chapter of Charak Samhita. It includes importance of factors for preservation of health and prevention of disease. It depicts how non suppressible natural urges, psychological emotions, exercise, prakriti (basic body constitution) can affect health and disease? This chapter of ancient Ayurveda text is highly important to know basics of prevention of endogenous and exogenous diseases. Each natural urge gives a signal of internal change in physiology. So its important to follow the natures demand to keep the internal environment clean and healthy. The translation of the chapter can be read on http://www.carakasamhitaonline.com/mediawiki-1.32.1/index.php?title=Naveganadharaniya_Adhyaya.
3. यह क
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र ल परमपर स स
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4. यदद सस%र E ममौत ह ज त ह त , न र म E उस E व( ( स स
E श द& र द& ज त ह (और इस व(( ह द मपतय E समपमर/त
भ पद न E ज त ह) और इस तरह (ह म $ और बट&, द न" पतत
बन ज त ह। यह रर( ज अब ख़तम ह त ज रह ह। ख़ रसय" म6
पहल नरबरल E पथ भ थ ।
मघ लय र जय म6 अन ग%फ ए$, प(/त रशखर, ब ग, झ ल-ररजज़ॉट/ सथल,
ख़मबसमरत दृशय (रलय $, गम/ प न स त और जलपप त ह। पम%ख
पय/ट सथल ह-रशल ग, उरमय म, चर पम$ज , मज़ॉरसनर म, ज कEयम,
म ईर ग, ज ( ई, न तत/य ग, थदल श न, त%र , स जम और बलप कम
र षष&य उदय न। 1993 म6 लगभग 1,57,000 पय/ट र जय म6 आए।
5. तययहलर
मघ लय म6 ‘ प बल ग-न"गकम’ ख रसय" ए पम%ख रम/ तय ह र ह।
ज प च ददन त मन य ज त ह। इस 'न"गकम' न म स भ ज न ज त ह।
यह रशल ग स लगभग 11 क म E दमर& पर जसथत 'जसमत' न म ग ( म6 मन य ज त
ह।
'श द स% रमनस म' ख रसय" महत(पमर/ तय ह र ह। यह तय ह र हर स ल अपल दमसर
हफत म6 रशल ग म6 मन य ज त ह।
'बहद&नखलम जयततय ' आदद( रसय" महत(पमर/ तय ह र ह।
यह ज%ल ई म ह म6 जयततय पह डडिय" ज (ई सब म6 मन य ज त ह।
ग र आदद( स सलज"ग (समय/ द(त ) न म द(त समम न म6 अकटमबर-न(बर म6
'( गल ' न म तय ह र मन त ह।
यह तय ह र लगभग ए हफत त मन य ज त ह।
7. जब भ भ रत य वयजन" E ब त ह त त हम अ सर पम(र्वोत्तर&
'जक(ज न' नजरअद ज र दत ह। अगर आप इन र जय" भ्रमर
र6 त प एग यह प ( न और भ जन इन E परपर ओ और
सस तत E गहर ई स ज%ड ह%ए ह, और ज भ रत य वयजन"
समद भ जन व(व( त ए महत(पमर/ दहसस ह। म ल य E
ब त र6 त यह E मग रलय ई जनज ततय ई अलग-अलग
ज य द र वयजन" अपन दतन ददनचय / म6 श रमल रत ह।
मघ लय वयजन पम(र्वोत्तर भ रत य र जय" स बह%त ह& अलग ह। यह
(ज स -स थ भ र& म त म6 नज़ॉन(ज वयजन भ बन ए ज त ह।
8. ज मघ लय ख स सम%द य ए बह%त ह& ल वपय वयजन ह।
जजस खमबसमरत रग और ख%शबम महसमस रत ह& भमख लगन लगत
ह। ज म%खय रूप स ल ल च (ल ह त ह ज प /, चच न य मछल&
स थ प य ज त ह। ज य बढ न रलए इसम6 ढर स र मस ल"
इसतम ल क य ज त ह। इस स( ददषट वयजन बन न रलए
पहल हर& रमच/, पय ज, अदर , हलद&, ल& रमच/ और तज पत्त"
रमश्रर बन य ज त ह, जजस ब द म स छ ट-छ ट टम ड" स थ
तल ज त ह। ब द म6 इसम6 ल ल च (ल ज रमल र प य ज त
ह। अपन पसद अन%स र आप इसम6 प /, चच न य मछल&
इसतम ल र स त ह।
9. द ह-खल&ह मघ लय ए स(सथ भ जन ह, ज रमनस प / ( समअर
म स Eम ) म6 पय ज और रमच/ रमल र सल द रुप म6 ख य
ज त ह। यह ए स( ददषट फ
म डि ह जजसम6 आप मजकस न टच रलए
सम, टम टर, ग जर और न बम भ इसतम ल र स त ह। इस डडिश
समअर भज E र& रूप म6 प र र ट& स थ भ ख य
ज त ह। यह डडिश मज र ददल ( ल" रलए नह& ह। अतयच नज़ॉन
(ज स(न रन ( ल इस डडिश ख न जय द पसद रत ह।
10. नखम बबतच मघ लय घर" म6 बनन ( ल ए सपशल समप ह, जजस
भ जन स पहल रलय ज त ह। अ सर इस महम न" E स( रलए
पर स ज त ह। नखम ए व(शष प र E समख मछल& ह त ह,
जजस समरज E मप म6 स%ख य ज त ह। समप बन न रलए इस पहल
तल र और कफर प न म6 उब ल ज त ह। समख मछल& उब लन
ब द इस स( ददषट बन न रलए इसम6 बह%त स र& रमच/ और ल&
रमच/ स थ प य ज त ह। अगर आप मघ लय आए त यह
सपशन समप जरूर ष ई र6।
11. ममघललय कम तसस
पररचय
ह ल क मघ लय ए छ ट र जय ह, कफर भ यह त न प च न पह ड
सम%द य", ख स , जयततय और ग र E म तभमरम ह, और अतयच
प तत स%दरत भमभ ग ह। महत(पमर/ रशलप ब6त और ब स
म, ल तम ब%न ई और ल ड E नक श ह। ब%न ई ग र
मदहल ओ प रपरर वय(स य ह और (त/म न म6 लगभग हर
परर( र द( र इस अन%सरर क य ज त ह। समत (सत स म न
उतप दन % ल रमल र डि मडि त स रमत ह, ज मर स घ%टन
थ ड न च त पहन ज त ह।
12. ग र शदटर्टिंग, बडि (र, बडि श ट, और मजप श E ब%न ई भ रत ह।
मघ लय म6 उतप ददत एडि रसल अपन बन (ट और सथ तयत(
रलए परसद ह। एडि रसल ब%न ई महत(पमर/ 6 द्र स न द न ह, ज
लगभग समौ ब $स E झ पडडय" ग $( ह। स न द न अल ( , % छ
अनय ग (" म6 मदहल ए एडि रसल E ब%न ई रत ह। इस अल ( ,
सथ न य शहतमत रशम स थ जनसन (मघ लय मदहल ओ E
स म नय प श ) उतप दन भ श%रू क य गय ह। रशम ब%न ई
आमतमौर पर ई सथ न" पर सथ न य ब%न र" परशकर और
( णरजजय तजर्जों पर उतप दन म धयम स प तस दहत क य गय ह।