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1
प रचय
िकताब का नाम :------------------------------------------------तो फाए मसीहे िम लत तीन मुन वर रात
लेखक का नाम : ------------------------------काज़ी-उल-क़ु ज़ात मसीहे िम लत मुह मद अनवर आलम
वािलद का नाम : ------------------------------------------------------मुह मद अ बास आलम (मरहम)
खािलफाए -----------------------------------------------------------------------------सलािसले अरबा
मु कमल िडज़ाइन -----------मुह मद शमशाद आलम ------------------(जानशीने हज़ूर मसीहे िम लत )
रहाइश :-------------------------------------------------------------मीरा रोड मुंबई ठाणे महारा भारत
िहंदी टाइिपंग:----------------------------------------------------------------हािफज गुलाम गरीब नवाज़
करे शन:---------------------------------------------------------------------------ज वाद अली अंसारी
काशक:-------------------------------------दा ल उलूम फैज़ाने मु तफा एजूके ल ट, मीरा रोड मुंबई
तबाअत :-------------------- फैज़ाने मु तफा अकेडमी, मकज़ुल ( मराक ज़ बाबुल इ म जनरल लाइ ेरी )
सहायक :-------------------------------------------------------------- मुह मद मुिनम (किटहार िबहार )
2
मूकददमा
अलहमदूिललाह आज मैने अहबाब क फरमाइश पर एक ऐसे मौझू पर कलम उठाया िजसक बेहद ज रत
थी िक िजसमे ऊन तमाम रातो क ईबादत के तरीके हो िजसक अकसर ज रत पडती है।
हर साल लोग फोन करते और नमाज के तरीके मांगते इन तमाम बातो को यान मे रखते हऐ मैने तमाम चीजो
को जमा िकया और ईस िकताब का नाम
तोहफा ए मसीहे िम लत 3 मूकददस राते रकखा इस ऊमीद पर के कुल ऊममते मूसलीमा इससे मूसतफ ज हो
और नवाफ ल के जरीऐ कुरबे ईलाही नसीब हो मिजद इसमे कुछ दूआऐ भी है खास कर दुआऐ िनसफ ए
शाबान
अ लाह तआला अपने हबीब स ल लाह अलैिह वस लम के सदके हमारी नमाज़े और इबादत क़ुबूल
फरमाऐ।आमीन
‫آﻣﯾن‬
‫ﺑﺟﺎه‬
‫ﺳﯾد‬
‫اﻟ‬
‫ﻣرﺳﻠﯾن‬
‫و‬
‫آﻟہ‬
‫اﻟطﯾﺑﯾن‬
‫واﻟطﺎﮨرﯾن‬
‫واﺻﺣﺎﺑہ‬
‫اﻟﻣﮑرﻣﯾن‬
मुह मद अनवर आलम
3
फज़ाईले माहे र जबुल मुरजब
यह महीना बड़ी अज़मत व बुज़ुरगी वाला है, हदीस शरीफ म आया है के रजब अ लाह का महीना है, दूसरी
हदीस म है के रजब क फज़ीलत तमाम महीन पर ऐसी है जैसे क़ुरआन मजीद क फज़ीलत तमाम अज़कार
पर,
माहे रजब शह ल हराम है आंहज़रत स ल लाह अलैहे वस लम ने फ़रमाया है के रजब बिह त म एक नहर
का नाम है िजसका पानी शहद से यादा शीर (मीठा), बरफ से यादा ठंडा और दूध से यादा सफेद है. जो
श स इस मुबारक महीने म एक रोज़ा भी रखेगा अ लाह तबारक व तआला उस श स को उसी नहर के
पानी से सैराब फरमाएगा.
हज़रत अनस िबन मािलक रदीअ लाह अ ह से रवायत है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम
जब माहे रमज़ान का चांद मुलािहज़ा फरमाते तो दोन द ते मुबारक उठाकर यह दुआ पढ़ते थे
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﺑﺎرك‬
‫ﻟﻧﺎ‬
‫ﻓﻲ‬
‫رﺟب‬
‫وﺷﻌﺑﺎن‬
‫وﺑﻠﻐﻧﺎ‬
‫ﺷﮭر‬
‫رﻣﺿﺎن‬
हज़ूर ने यह भी इरशाद परमाया है के जो कोई रजब के महीने म पहली पं हव और आखरी तारीख़ म गु ल
करे ऐसा ख़ा रज होगा गुनाह से जैसे पैदा हआ आज ही अपनी माँ आजही अपनी माँ के पेट से.
यूं तो सारा महीना मुबारक है लेिकन हदीस शरीफ़ म वा रद है के उस महीने के पांच राते अफ़ज़ल ह वा ते
इबादत के:
(1) पहली रात
(2) पहले पंजशुंबा वह जु मा क दरिमयानीरात िजसको लैलतुर रगाइब भी कहते ह
(3) पं हव रात िजसका नाम शबे इ त ताह है
(4) सताइ व शब िजसका नाम शबे मेराज है
(5) आखरी रात
4
हदीस शरीफ़
हज़रते सलमान फारसी से रवायत है के फ़रमाया मुझको रसूल उ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने के "ए
सलमान या नह कोई बंदाऐ मोिमन और मोिमना ?
के पढ़े उस माह म रकत नफ़ल तो अ लाह तआला तमाम गुनाह क़यामत िदन और उठाया जाएगा शहीद
के साथ और उसका नाम आिबद यानी इबादत गुजार म िलखा जाएगा और सवाब एक साल क इबादत
का िलखा जाएगा और हराम करेगा अ लाह तआला दोज़ख़ क आग और फ़रमाया आंहजरत स ल लाह
अलैहे वस लम ने के खबर दी मुझको उस नमाज़ के सवाब क िज ाइल ने।
हज़रत सलमान फ़ारसी रदी अ लाह तालाअ ह रवायत करते ह के म ने अज़ िकया
"या रसूल अ लाह उस नमाज़ को िकस तरह पढूं ?
तो हज़ूर स ल लाह अलैहे वस लम ने फ़रमाया
"पढ़ रजब क पहली रात को दस रकात नवािफल पांच सलाम से"
"पं हव और आखरी रात को भी और पढ़ हर रकात म बाद अ ह दुिल लाह के सुरह क़ािफ न और सुरह
इ लास तीन बार हर रोज़ बाद फुरागे नमाज़ क माए तौहीद पढ़कर"
"पहली रात यह दुआ पढ़े"
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﻻ‬
‫ﻣﺎﻧﻊ‬
‫ﻟﻧﺎ‬
‫اﻋطﯾت‬
‫وﻻ‬
‫ﻣﻌطﻰ‬
‫ﻟﻧﺎ‬
‫ﻣﻧﻌت‬
‫وﻻ‬
‫ﯾﻧﻔﻊ‬
‫ذااﻟﺟد‬
‫ﻣﻧك‬
‫اﻟﺟد‬ -
"पं हव रात यह पढ़े"
‫اﻟﮭﺎ‬
‫واﺣدا‬
‫اﺣداو‬
‫ﺻﻣداوﻓزداووﺗراﻟم‬
‫ﯨﺗﺧذ‬
‫ﺻﺎﺣﺑﺔوﻻوﻟدا‬
"आखरी रात यह दुआ पढ़"
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﺻل‬
‫ﻋﻠﻰ‬
‫ﺳﯾدﻧﺎ‬
‫ﻣﺣﻣد‬
‫واﻟﮫ‬
‫اﻟطﺎ‬
‫ھرﯾن‬
‫وﻻ‬
‫ﺣوﻟﮫ‬
‫وﻻﻗوة‬
‫اﻻ‬
‫ﺑﺎ‬
‫اﻟﻌﻠﻲ‬
‫اﻟﻌظﯾم‬
उसके बाद मांग तो अ लाह से अपनी हाजत को क़ुबूल फरमाएगा अ लाह तआला दुआ तेरी
और कयामत के िदन तेरे और दोज़ख के दरिमयान स र खनदक़ का फासला होगा,
हर खनदक़ क चौराई पांच सो बरस क राह होगी, और अता करेगा अ लाह तआला सवाब हर रकत के
बदले हज़ार रकत का. जब सुनी यह हदीस सलमान फारसी ने आंहज़रत स ल लाह अलई िहवस लम से।
तो उठे और खुदा का शु बजालाए इतने बड़े ईनाम पर िफर कभी सलमान फारसी ने इस नमाज़ को नह
छोड़ा.
5
नमाज़ शबे अ वल
शबे अ वल म बाद नमाज़ॆ मग रब बीस रकात नवािफल दस सलाम से हर रकत म बाद अ हमदू िल लाह
के सूरह इखलास एक बार पढ़े फायदा हर दो जहां का है.
बरोज़ जु मा
िकताबुल असरार म िलखा है के माहे रजब के हर जु मा और असर के दरिमयान चार रकात एक सलाम से
अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के आयतलकुस सात बार, सुरह इखलास पांच बार, बाद सलाम
के यह दुआ पढ़े
‫ﻻ‬
‫ﺣول‬
‫وﻻ‬
‫ﻗوه‬
‫اﻻ‬
‫ﺑﺎ‬
‫اﻟﻛﺑﯾر‬
‫اﻟﻣطﻌﺎل‬
‫اﺳﺗﻐﻔر‬
‫ﷲ‬
‫ﻟذي‬
‫ﻻ‬
‫اﻟﮫ‬
‫اﻻھو‬
‫اﻟﺣﻲ‬
‫اﻟﻘﯾوم‬
‫ﻏﻔﺎر‬
‫اﻟذﻧوب‬
‫وﺳﺗﺎر‬
‫اﻟﻌﯾوب‬
‫اﺗوب‬
‫اﻟﯾﮫ‬
अबार, दु द शरीफ, अबार, उसके बाद जो हाजत हो उसके िलए दुआ करे , इंशाअ लाह ज़ र क़ुबूल होगी
दुआ उसक
लैलतुर रगाएब
उसको लैलतुल मुबारक भी कहते ह रजब के पहले पंजशुमबाह जु मा क दरिमयानी रात है उस रात म बाद
नमाजे मग रब बारह रकात छे: सलाम से अदा करे , हर रकत म बाद अलह द के इ ना अंज़लना एक बार ,
सुरह इखलास बारह बार बढ़े, बाद फराग नमाज़ के स र बार दु द शरीफ पढ़कर
‫ﺳﺑوح‬
‫ﻗدوس‬
‫رﺑﻧﺎ‬
‫ورب‬
‫اﻟﻣﻼﺋﻛﮫ‬
‫واﻟروح‬
)
70
बार)
‫رﺑﻲ‬
‫اﻏﻔر‬
‫ﻟﻲ‬
‫وارﺣم‬
‫وﺗﺟﺎوز‬
‫ﻋﻣﺎﺗﻌﻠم‬
‫ﻓﺎﻧك‬
‫اﻧت‬
‫اﻟﻌﻠﻰ‬
‫اﻟﻌظﯾم‬
)
70
बार)
िफर (70) बार दू द शरीफ पढ़कर जो दुआ मांगे क़ुबूल हो
6
शबे इ त फाह
माहे रजब क पं हव रात का नाम है , उस रात म बाद नमाजे इशा। बीस रकात निफल नमाज़ दस सलाम से
अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के सुरह इखलास एक बार पढ़े यह नमाज़ तमाम दुिनयां व माफ हा
से बेहतर है
फजाइले शबे मेराज
‫ﺳﺑﺣﺎن‬
‫اﻟذي‬
‫اﺳرى‬
‫ﺑﻌﺑده‬
‫ﻟﯾﻼ‬
‫ﻣن‬
‫اﻟﻣﺳﺟد‬
‫اﻟﺣرام‬
‫اﻟﻰ‬
‫اﻟﻣﺳﺟد‬
‫اﻻﻗﺻﻰ‬
रजब म एक ऐसी रात है।
िजसमे इबादत करने वाल के नाम-ए-आमाल म सौ बरस के ह नात िलखे जाते ह, वह रजब क स ाइसव
रात है उस रात क फजीलत इस वजह से भी यादा है के ऐसी मुबारक शब म हज़ूर फखरे कायनात ने बुलावे
खुदावंदी पर आसमान पर उ ज फ़रमाया और मि ज़द म अंिबया सािलक न और मलाइका मुकरबीन क
इमामत फ़रमायी उस मुबारक रात म अहकामे खास आप पर नािज़ल हए
आप दीदारे खुदावांदी से सरफराज़ हए जो श स उस रात म इबादत करता है सआदते मेराज का सवाब उसके
नाम-ए-आमाल म िलखा जाता है शबे मेराज शबे रहमत है उस रात को जो श स इबादत करेगा अ लाह
तआला उसको कामयाब व बा मुराद रखेगा, और हर बला व मुसीबत से बचाएगा I
आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फ़रमाया माहे रजब क स ाइसव शब को आसमान से
स र हज़ार फ र ते अपने सर पर नूरे इलाही के तबक़ रखे हवे ज़मीन पर आते ह और हर उस घर म दािखल
होते ह िजसके रहने वाले यादे इलाही म मशगूल रहते ह, ह म-ए-खुदाव दी होता है के इन नूर के तबाक़ को
उनके सरो पर उलट दो जो इस शब क िवद करते ह,
सुबहान अ लाह और नेमते उजमा हािसल करने क अ लाह तआला हर मुसलमान को तौफ़ क अता
फरमाये अमीन।
7
इबादत शबे मेराज
िकताबुल औराद म मनकूल है के इस रात को बारह रकात नफल छे: सलाम से अदा करे, हर रकत म बाद
अलह द के सुरह इखलास पांच बार पढ़े बाद इ ततामे नमाजे कलमा-ए-तमजीद इ तागफार और दु द
शरीफ़ सौ सौ बार पढ़कर जो दुआ करे क़ुबूल होगी।
तौफा मजकूर है के रात को छे: रकात नफल तीन सलाम से अदा करे और हर रकत म बाद अलह द के सुरह
इखलास सात बार पढ़े बाद फरागे नमाज़ के पचास बार दु द शरीफ़ पढ़कर दुआ करे अ लाह तआला
तमाम हाजाते िदनी व दुिनयावी बर लाए।
तौफा म मकूल है के दो रकात नफल पढ़े पहली रकत म बाद अलह द के सूरह अलमतरा और दूसरी रकत म
बाद अलह द के सूर-ए-क़ुरेश एक एक बार बढ़े सवाबे अज़ीम पायेगा।
फलांदीन म िलखा है के सौ रकत नमाज़ नफल पचास सलाम से अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के
सूरह इखलास एक बार पढ़े, बाद फु राग नमाज़ सो (100) बार दु द शरीफ़ पढ़कर सर बसुजूद अ लाह
तआला से अपनी हाजत तलब करे इंशा अ लाह। उसक हाजत ज़ र पूरी होगी।
अ सर सलसह का तरीक़ा यह है बा िन यत हदये रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम दो रकात
नमाज़ अदा करे और हर रकत म बाद अलह द के सूरह इखलास सताइस बार पढ़े कायदा म अतहईयत के
बाद द दे इ ािहम सताइस बार पढ़कर दुआ पढ़े बाद सलाम के शाम हजूर पुर नूर स ल लाह अलैहे
वस लम क बारगाह म गुजारने क सआदत हािसल कर
मुबारक िदन
रसालह हशरया म है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम एक रोज कि तान म तशरीफ़ ले गए
आपने मुलािहजा फरमाया के एक क म मुद पर अज़ाब हो रहा है और वह रो कर कह रहा है या रसूल
अ लाह स ल लाहो अलेही वस लम मुझको आग दोजख क जला रही है मेरा कफन आग हो गया है
आपने उससे फरमाया के अगर तू एक रोजा भी माहे रजब म रखता तो यह अज़ाब तुझ पर हरिगज़ ना होता
मालूम हआ िक उस मुबारक महीने म एक रोजा रहने का िक बड़ा फायदा है
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हदीस शरीफ
फरमाया रसूलअ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने माहे रजब म एक रोज़ और एक रात है जो कोई रोज़ा
रखे उस रोज़ और इबादत कर उस रात को तो सवाब उसको सौ साल क इबादल का िमलेगा, वह रात
स ाइसव और िदन स ाइसवां है जो कोई उस रात को इबादत करे उस िदन रोजा रखे खास खुशनुदी
अ लाह तआला के िलए तो अ लाह तआला कयामत के िदन उस द तरखान पर िखलाएगा िजस पर
हजरत इ ािहम अलेही सलाम और हजरत मोह मद मु तफा स ल लाह अलैहे वस लम ह गे
फाजा ़
इल : इबादत माहे रजब के बेशुमार है अगर तमाम के तमाम िलखूं तो एक द तर तवील हो जाएंगे
इसिलए मु सर िकया और दुआ है िक अ लाह तआला अपने फज़ल व करम से हम तमाम मुसलमान को
तौफ क अता फरमाए, आमीन!
फजा ़
इले माहे शाबानु-उल-मुअ ज़म
दुिनयांए इ लाम म साल का हर महीना िकसी ना िकसी खुसूिसयत का हािमल है, हर महीना अपने वास के
िलहाज से मुसलमान के नजदीक एक खास जाजी ़
बैत रखता है शाबानु-उल-मुअ ज़म के महीने क हदीस म
बड़ी फजी ़
लत आई है.
हदीस शरीफ
फरमाया आंहज़रत स ल लाह अलैहे वस लम ने के शाबान मेरा महीना है! और उसक फजीलत तमाम
महीन पर ऐसी है जैसी मेरी फजीलत तमाम मखलूक पर !
दूसरी हदीस म आया है के शाबानु-उल-मुअ ज़म िक बुजु़ग क बाक ़महीन पर ऐसी है जैसी तमाम
अंमिबया कराम पर मुझे फजीलत दी गई है, मालूम हआ िक िजस तरह रसूल अ लाह स ल लाह अलैिह
वस लम सब पैगंबर से अफजल है उसी तरह आप का महीना भी सब महीन से अफजल है
शाबान म अ लाह तआला अपने बंद को खैरो बरकत कसरत से इनायत फरमाता है, बंद को भी लािजम है
के कसरत से इबादत कर I
एक रवायत म आया है िक रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम शाबानु-उल-मुअ ज़म का पूरा
महीना रोज रखा करते थे, माहे शाबानु-उल-मुअ ज़म एक उमदा और मुबारक महीना है िजसको हबीबे
9
र बुल इ जत ने महबूब रखा है यह वह महीना है के इसम गुनाह क माफ होती है जो अपने अंदर कािमल
बुजु़ग रखता है
फजा ़
ईले शबे बरात
‫ﻗﺎل‬
‫ﻗﺎل‬
‫رﺳول‬
‫ﷲ‬
‫ﺻﻠﻰ‬
‫ﷲ‬
‫ﻋﻠﯾﮫ‬
‫وﺳﻠم‬
‫و‬
‫ﻗوم‬
‫ﻟﯾﻠﮫ‬
‫اﻟﻧﺻف‬
‫ﻣن‬
‫ﺷﻌﺑﺎن‬
‫ﻓﺎﻧﮭﺎ‬
‫ﻟﯾﻠﺔ‬
‫ﻣﺑﺎرﻛﺔ‬
‫ﻓﺎن‬
‫ﷲ‬
‫ﺗﻌﺎﻟﻰ‬
‫ﯾﻘول‬
‫ھد‬
‫ﯾ‬
‫ن‬
‫ﻣﺳﺗﻐﻔر‬
‫ﻓﺎﻏﻔرﻟﮫ‬
एक रवायत म है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैही वस लम ने फरमाया के उठो ए लोगो िन फ़ शब-ए-
माहे शाबान को पं हव रात शाबान के िनहायत बुजुग है और जो इबादत इस रात म करे उसका सवाब बहत
पावे I
चुनानचे हजरत रसूले करीम स ल लाह अलैहे वस लम इरशाद फरमाते ह के बुजुग जानो उस शबे बरात
को "के वह पं हव शब शाबान क है के उतरते ह उसम फ र ते रहमत के , नािजल होती है रहमत ए इलाही
उन लोग पर जो इबादत करते ह उस रात को, वह ऐसी रात है के बुजुग िकया है उसको अ लाह तआला ने
जो इबादत करता है उस रात म अ लाह तआला उसके सिगरा वह कबीरा गुनाह ब श देता है, वह श स
पाक हो जाता है तमाम गुनाह से I
फरमाया रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने जो िजंदा रहे पं हव शब माहे शाबान को तो िजंदा
रखता है अ लाह तआला उसको कयामत तक यानी मौत के बाद भी सवाब उसको इबादत का हर रोज
िमला करता है उसके आमाल म िलखा जाता रहेगा,
फरमाया रसूले करीम स ल लाह अलैिह वस लम ने अ लाह तआला पं हव शाबान को तमाम आिबद
और सालेह और िसि क और नेक और बुर को बखशता है मगर जादूगर , बखील और मां-बाप को
तकलीफ देने वाल . शराब खोर और जा ़
िनय को नह बखशता. हां जो लोग तौबा करल वह बखशे जाएंगेI
वारीद है के अ लाह तआला फरमाता है पं हव रात को शाबान को के "है कोई ब शीश चाहने वाला मुझसे
िक म ब श दूं ?
10
है कोई जो आिफयत चाहे मुझसे के म उसको सहेत दूं ?
और है कोई फक ़
र जो गी ़
ना चाहे के म उसको गनी कर दूं ?
इरशाद फरमाया रसूले करीम स ल लाहो अलेही वस लम ने िज ाइल अलैिह सलाम मेरे पास आए और
कहा उिठए या रसूल अ लाह स ल लाहो अलेही वस लम नमाज पढ़ो और दुआ मांगो अपनी उ मत के
िलए उस रात को मगर मुशरीक, जादूगर, मुनजजम, बखील और शराबी सूदखोर और जा ़
नी के िलए ब शीश
ना मांगो य िक अ लाह तआला उन पर अज़ाब करने वाला ह हां मगर जो तौबा करे
‫طوﺑﻰ‬
‫اﻟﻌﻣل‬
‫ﻟﯾﻠﮫ‬
‫اﻟﻧﺻف‬
‫ﻣن‬
‫ﺷﻌﺑﺎن‬
‫ﺧﯾرا‬
‫ﻟﮫ‬
यानी खुशखबरी है वा ते उस आदमी के अमल करे नेक पं हव शबे शाबान म
साल भर के अमूर क तक़सीम
हक़ सुबहानह तआला ने कुरान म इरशाद फरमाया के अ लाह हमारे ह म से उस रात म हर िहकमत वाला
काम बांट िदया जाता है (सूरह दुखखान पारा 25)
यानी शबे बारात म जुमला अहकामे रज़क़ आजाल और तमाम साल के हवािदस त सीम कर िदए जाते ह
और हर काम के फ र त को उनक तामील पर मु इन कर िदया जाता हजू ़
र अक़दस स ल लाह अलैहे
वस लम ने फरमाया उस रात म साल का हर पैदा होने वाला और हर मरने वाला आदमी िलखा जाता है और
लोग के आमाल उनके रब क बारगाह म पेश होते ह और उनके रज़क़ उतारे जाते ह I
रहमत ए इलाही का नुज़ूल
रसूले अकरम स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फ़रमाया के अ लाह अज़वल शबे बरात म मेरी उ मत
पर बनी ाब क बक रय के बाल के बराबर रहमत नािजल फरमाता है
(त वीरे कबीर) (बनी ाब अरब म एक कबीला था उनके यहां बक रयां कसरत से थ )
मुसलमान क मगिफरत
सरवरे आलम स ल लाह अलैहे वस लम ने फरमाया के हक़ तआला उस रात म तमाम मुसलमान क
मगिफरत फरमाता है िसवाये, मुश रक, कािफर, जादूगर, नजूमी, जा ़
नी, शराबी, क ना परोस, सूदखोर, मां बाप
क नाफरमानी करने वाला और र ता क़तअ करने वाले के
11
इबादत क फजी ़
लत
स दुल अंिबया ने इरशाद फरमाया के जो श स उस रात म सौ रकात नवािफल पढ़ेगा,
तीस ज नत क खुशखबरी सुनाएंगे तीस दोज़ख के अजा ़
ब से िहफाज़त म रखगे, तीस दुिनयां क आफत दूर
करगे दस शैतान के म से बचाएंगे (तफसीरे कबीर)
हजरत अली मुतुजा ़रदी अललाह तआला अनह से मव है के "हजूर पुर नूर स ल लाह अलेही वस लम ने
फरमाया शबे बारात आए तो रात म क़याम करो, नमाज पढ़ो और िदन म रोजा रखो (इ ने माजा)
अमराज़ व वबा से िनजात और रज़क़ म वुसअत
नबी करीम अलैहीस सलातु व सलाम ने फरमाया के अ लाह तआला उस शब म गु बे आफताब के व त
आसमान से दुिनया क तरफ नुज़ुले इजलाल करता है और इरशाद फरमाता है के या है कोई ? मगिफरत
चाहने वाला िक म उसक मगिफरत क ं ?
या है कोई ? रोजी ़मांगने वाला म उसको रोजी दूं
या है कोई ? िगर तारे बला के म उसे आिफया दूं
या है कोई ? ऐसा इस िक म क िनदाऐंसुबह तक होती रहती है
आमाले सालेहा
उस मुबारक रात म गुसल करना, हसबुल क अ छे कपड़े पहनना, वा ते इबादत के सुरमा लगाना , िम वाक
करना , अ लगाना , क़बर क ि ़
जयारत करना , फाितहा िदलाना , खैरात करना , मुद क मगिफरत क
दुआ करना , बीमार क ईआदत करना , तह जुद क नमाज़ पढ़ना , न ल नमाज से यादा पढ़ना, दु द
सलाम क कसरत करना , खुसुसन सूरह यासीन शरीफ क ितलावत करना , आमाले सालेहा म यादाती
करना , इबादत म सु ती ना करना , और उस रोज क़रीब गु बे आफताब के चालीस मतबा।
‫ﻻ‬
‫ﺣول‬
‫وﻻ‬
‫ﻗوه‬
‫اﻻ‬
‫ﺑﺎ‬
‫اﻟﻌﻠﻲ‬
‫اﻟﻌظﯾم‬
पढ़ना साल तमाम क बेहतरी का जा ़
मीन है।
12
आमाले खबीसा
ऐसी मुबारक ओ मुक स रात क कदर ना करना, इबादत म सु ती वह कािहली करना, िसनेमा बीनी चाय
खाने म रात गुजारना, आितशबाजी ़ख़ुद जलाना या ब च को उसक आदत डालना, रात लह वलब और
गपशप म गुजार देना , बदकारी करना , लोग को सताना , गीबत और चुगली म व त जा ़
ये करना , रात
तमाम सोते पड़े रहना वगैरह यह तमाम बात अ लाह और उसके रसूल के नाराजी ़के ह अ लाह तआला से
दुआ है के हम तमाम मुसलमान को आमाले सालेहा क तौफ क़ अता फरमाए आमीन
नवाफ ले शबे बरात
शबे बरात म मग़ रब क नमाज़ के बाद पढ़ने वाली न ल नमाज़ का तरीका
सबसे पहले आप मग रब क नमाज़ मुक मल कर लीिजए !
मग़ रब क नमाज़ मि जद म अदा क हो या घर पर ! नमाज़ अदा होने के बाद त बीह
और दुआ से फ़ा रग़ होकर 6 रकअत नमाज़ न ल 2×2 क िनयत से अदा क िजए
पहली 2 रकअत नमाज़ शु करने से पहले यह दुआ क िजए
या अ लाह इन दो रकआतो क बरकत से मेरी उ म बरकत अता फरमा
शबे बरात क 2 रकअत नमाज़ न ल क िनयत
िनयत क मने दो रकअत शबे बरात क न ल नमाज क खास वा ते अ लाह तआला के मुंह मेरा काबा
शरीफ क तरफ अ लाह अकबर
शबे बरात क नमाज़ का तरीका
बाद नमाज़े ईशा
सबसे पहले ग़ु ल क िजये बाद ग़ु ल के तिहयतुल वुजू क िजये !
िफर दो रकअत नमाज़ तिह यतुल वुज़ु पढे !
13
हर रकअत मे सूरए फाितहा के बाद आयतल कु स एक बार और सुर-ए-अहद शरीफ़ तीन बार पढ़,
अगर आयतल कु स याद ना हो तो पहली रकअत म 3 सुर-ए-अहद
दूसरी रकअत म 1 बार सुर-ए-अहद पढ़
नमाज से फा रग होने के बाद सौ मतबा दु द शरीफ पढ़कर जो भी दुआ मांगे कुबूल होगी
सलहाये उ मत का द तूर है िक उस रात को सलातुत त बीह अदा करते ह हजूरे अनवर स ल लाह अलैिह
वस लम ने यह नमाज अपने चाचा हजरत अ बास लदी अ लाह तआला अनह खुशी को िसखाई थी और
फरमाया था के ऐ चाचा इस नमाज के पढ़ने से अगले िपछले दानीशतां वदानीशतां ना तमाम गुनाह ब श िदए
जाते ह.
दूसरी हदीस म आया है के हे मेरे चाचा अगर तु हारे गुनाह कफे द रया व रेगे बायाबां से भी यादा ह गे तो
उस नमाज क बरकत से ब श िदए जाएंगे
सलातुत त बीह
सलातुत त बीह क चार रकात इस तरह अदा कर
‫ﺳﺑﺣﺎﻧك‬
‫اﻟﻠﮭم‬
के बाद प ह बार
‫ﺳﺑﺣﺎن‬
‫ﷲ‬
‫واﻟﺣﻣد‬
‫وﻻ‬
‫اﻟﮫ‬
‫اﻻ‬
‫ﷲ‬
‫ﷲ‬
‫اﻛﺑر‬
बढ़ िफर अऊजु़िबललाह और िबि म लाह और सूरह फाितहा के बाद और कोई सूरत पढ़कर दस बार यही
त वी पढ़ िफर कऊ म
‫ﺳﺑﺣﺎن‬
‫رﺑﻲ‬
‫اﻟﻌظﯾم‬
के बाद दस बार िफर कऊ से सर उठा कर दस बार िफर सजदे म
‫ﺳﺑﺣﺎن‬
‫رﺑﻲ‬
‫اﻻﻋﻠﻰ‬
के बाद दस बार िफर सजदे से सर उठा कर दस बार िफर दूसरे सजदे म दस बार यानी एक रकत म पछ र बार
त बीह हई इसी तरह चार रकात अदा कर, चार रकात म जुमला त बीह तीन सौ मतबा हई।
नमाज के बाद इसतगफार दु द शरीफ एक एक सौ बार पढ़कर सजदे म सर रखकर अ लाह तआला से नेक
तौफ क क दुआ कर
14
उस रात म तीन मतबा सूरह यासीन शरीफ क ितलावत करना चािहए पहली मतबा दराजी उ क िनयत,
दूसरी मतबा कुशादगी क िनयत से तीसरी मतबा दफाए अमराज़ व बलायात क िनयत से जब तीन मतबा
सूरह यासीन शरीफ पढ़ चुके तो यह दुआ पढ़े
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﯾﺎذاﻟﻣن‬
،
‫وﻻ‬
‫ﯾﻣن‬
‫ﻋﻠﯨﯾﮫ‬
‫ﯾﺎذاﻟﺟﻼل‬
‫واﻻﻛرام‬
.
‫ﯾﺎ‬
‫ذاﻟطول‬
‫و‬
‫ا‬
‫ﻻﻧﻌﺎم‬
‫ﻻ‬
‫اﻟﮫ‬
‫اﻻ‬
‫اﻧت‬
‫ظﮭراﻻ‬
‫ﺟﺋ‬
‫ﯾن‬
‫و‬
‫ﺟﺎر‬
‫اﻟﻣﺳﺗﺟﯾرﯾن‬
‫واﻣﺎن‬
،‫اﻟﺧﺎﺋﻔﯾن‬
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ان‬
‫ﻛﻧت‬
‫ﻛﺗﺑﺗﻧﻲ‬
‫ﻋﻧدک‬
‫ﻓﻲ‬
‫ام‬
‫اﻟﻛﺗﺎب‬
‫ﺷﻘﯾﺎ‬
‫اوﻣﺣروﻣﺎ‬
‫او‬
‫ﻣطرودا‬
‫اوﻣﻘﺗرا‬
‫ﻋﻠﻲ‬
‫ﻓﻰ‬
‫اﻟرزق‬
‫ﻓﺎﻣﺢ‬
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﺑﻔﺿﻠك‬
‫ﺷﻘﺎوﺗﻰ‬
‫وﺣرﻣﺎﻧ‬
‫ﯽ‬
‫وطرد‬
‫وا‬
‫ﻗ‬
‫ﺗﺎررزﻗﻰ‬
‫و‬
‫ا‬
‫ﺛﺑﺗﻧﻰ‬
‫ﻋﻧدك‬
‫اﻟﮑﺗﺎب‬ ‫ام‬ ‫ﻓﯽ‬
‫ﺳﻌﯾدا‬
‫ﻣرزوﻗﺎ‬
‫ﻣوﻓﻘﺎ‬
‫ﻟﻠﺧﯾرا‬
‫ت‬
‫ﻓﺎﻧك‬
‫ﻗﻠت‬
‫وﻗوﻟك‬
‫اﻟﺣق‬
‫ﻓﻰ‬
‫ﻛﺗﺎﺑك‬
‫اﻟﻣﻧزل‬
‫ﻋﻠﻰ‬
‫ﻟﺳﺎن‬
‫ﻧﺑﯾك‬
‫اﻟﻣرﺳل‬
‫ﯾﻣﺣو‬
‫ﷲ‬
‫ﻣﺎ‬
‫ﯾﺷﺎء‬
‫وﯾﺛﺑت‬
‫وﻋﻧده‬
‫ام‬
‫اﻟﻛﺗﺎب‬
‫اﻟﮭﻰ‬
‫ﺑﺎﻟﺗﺟﻠﻰ‬
‫اﻻﻋظم‬
‫ﻓﻰ‬
‫ﻟﯾﻠﺔاﻟﻧﺻف‬
‫ﻣن‬
‫ﺷﮩر‬
‫ﺷﻌﺑﺎن‬
‫اﻟﻣﻛرم‬
‫اﻟﺗﻰ‬
‫ﯾﻔرق‬
‫ﻓﯾﮭﺎ‬
‫ﻛل‬
‫اﻣر‬
‫ﺣﻛﯾم‬
‫وﯾﺑرم‬
‫ان‬
‫ﺗﻛﺷف‬
‫ﻋﻧﺎ‬
‫ﻣن‬
‫اﻟﺑﻼء‬
‫واﻟﺑﻠوی‬
‫ﻣﺎ‬
‫ﻧ‬
‫ﻌﻠم‬
‫وﻣﺎﻻ‬
‫ﻧﻌﻠم‬
‫وﻣﺎ‬
‫اﻧت‬
‫ﺑﮫ‬
‫اﻋﻠم‬
‫اﻧك‬
‫اﻧت‬
‫اﻻﻋزاﻻﻛرم‬
‫وﺻﻠﻰ‬
‫ﷲ‬
‫ﻋﻠﻲ‬
‫ﺳﯾدﻧﺎ‬
‫ﻣﺣﻣد‬
‫وﻋﻠﻰ‬
‫اﻟﮫ‬
‫واﺻﺣﺎﺑﮫ‬
‫رب‬ ‫واﻟﺣﻣد‬ ‫وﺳﻠم‬
‫اﻟﻌﻠﻣﯾن‬
.
सलातूल फातमातुज़ ज़हरा
हजरत शेख अबु का ़
िसम से मंकुल है के एक रोज़ मने स यदा फातमा ज़हरा रदी अ लाह तआला अनह
वाब म देखा बाद सलाम के मने अज़ िकया के ए खातूने ज नत आप िकस चीज़ को यादा दो त रखती है
फरमाया सै यदह कौनैन के दो त रखती हं शाबान के महीने म आठ रकात एक सलाम चार का ़
दा के साथ
और हर रकत म बाद अलहमद के सूरह इखलास 11 बार पढ़े।
जो कोई यह नमाज़ माहे शाबान म पढ़े और मुझे उसका सवाब ब शे तो ऐ अबू का ़
िसम म हरिगज़ कदम ना
रखूंगी ज नत म जब तक िक उसक शफाअत ना करवालूं, अ सर सलहा यह नमाज 15 व शाबान को अदा
फरमाते ह
मुबारक िदन
माहे शाबानुल मुअज़ज़म क पं हव तारीख को यह रोजा रखने क अहादीस म स त ताक द आई है दुआ है
या अ लाह तआला हम तमाम मुसलमान को नेक तौफ क अता फरमाए आमीन
15
माहे रमजा ़
नुल मुबारक का चांद
हजरत अनस िबन मािलक रदी अ लाह तआला अनह रवायत है िक जब माहे िसयाम का चांद नजर आता
था तो हजूर सरवरे कायनात स ल लाहो अलेही वस लम यह दुआ पढ़ते थे
‫اﻟﻠﮭم‬
‫ﺑﺎرك‬
‫ﻟﻧﺎ‬
‫ﻓﻲ‬
‫رﻣﺿﺎن‬
‫و‬
‫ﺳﮭﻠﻧﺎ‬
‫اﺷﻛﺎﻟﻧﺎ‬
तजुमा ऐ अ लाह हमारे िलए माहे िसयाम म बरकत अता कर दीिजए और हमारी मुि कल आसान कर
दीिजए
हदीस शरीफ
आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम का है के माहे रमजानुल मुबारक को तमाम महीन पर ऐसी फजीलत
है जैसी अ लाह तआला को तमाम मखलूक पर.
और यह भी फ़रमाया हजूर नामदार स ल लाहो अलेही वस लम ने के रमजान मुबारक का चांद होते ही
शयातीन कैद कर िदए जाते ह और दोज़ख के दरवाजे बंद कर िदए जाते ह ज नत के दरवाजे खोल िदए जाते
ह और हर रोज हक़ सुबहानह तआला बहत से गुनाहगार को अजा ़
ब से िनजात देता है और नेक काम करने
वाल को सवाब दस गुना आता फरमाता है और बरकत नािजल फरमाता है
उ मत क तम ना
हजूर अकरम ने इरशाद फरमाया के अगर लोग यह मालूम हो जाए िक माहे रमजानुल मुबारक या चीज है
तो मेरी उ मत यह तम ना करेगी सारा साल रमजान ही हो जाए I
खताओंका माफ होना
हदीस शरीफ म आया है िक इस महीने म अ लाह तआला मुसलमान क तरफ मुतव जा होता है और
खताओंको माफ फरमाता है I
सबर का बदला ज नत है
हजूरे अकरम स ल लाह अलैहे वस लम का इरशाद है के यह महीना स का है और स का बदला ज नत
है और इसी महीने म मोिमन का र क़ बढ़ा िदया जाता है I
16
रहमत मगिफरत दोजख़ से आजादी
हदीस शरीफ म आया है या इस महीने के अ वल दस िदन (पहले अशरे) म रहमत बरसती है दूसरे अशरे म
मगिफरत होती है और तीसरे अशरे म दोज़ख़ से आजादी िमलती है I
अ लाह तआला क 15 रहमत
माहे रमजानुल मुबारक म अ लाह तआला अपने रोजा ़
दार बंद पर पं ह रहमत नाि ़
जल फरमाता है
(1) रज़क़ यादा होता है
(2) माल ओ ज़र म यादती होती है
(3) जो खाना खाया जाता है सब इबादत म िलखा जाता है
(4) कुल आमाले नेक का अजर कई गुना होता है
(5) कुल फ़ र ते ज़मीन व आसमान के रोजादार के िलए ब शीश मांगते ह
(6) शैतान को कैद कर िदए जाते ह
(7) रहमत के दरवाज़े कुशादा होते ह
(8) ज नत के दरवाज़े ख़ोल िदए जाते ह और दोजख दरवाज़े बंद िकए जाते ह
(9) हर रात म सात लाख गुनहगार दोजख से आज़ाद होते ह
(10) हर जु मा क रात म इस क़दर दोजखी दोजख से आज़ाद होते ह िजतने सात िदन म आज़ाद होते ह
यानी 49 लाख
(11) आिखरी रात रमजान को तमाम गुनाह लोग के ब शे जाते ह
(12) हर रोज बिह त को आ आरा ता िकया जाता है
(13) रोजेदार क दुआएं कुबूल होती है
(14) रोजेदार को अ लाह तआला क खुशनुदी हािसल होती है
(15) रोजेदार को अ लाह तआला का दीदार नसीब होता है
17
पांच मकसूस चीज जो उ मते मुह मदी से पहले िकसी
उ मत को नह िमली
हजरत अबू हरैरा रदी अ लाह अनह ने हजुर अकरम स ल लाह अलैहे वस लम से नक़ल िकया "के मेरी
उ मत को रमजान शरीफ के बारे म पांच चीज मकसूस तौर पर दी गई ह जो पहली उ मत को नह िमली :
1) रोजादार के मुंह क बू अ लाह तआला के नजदीक मुशक से यादा पसंद है
2) रोजेदार के िलए द रया क मछिलयां तक दुआ करती है
3) ज नत उनके िलए हर रोज़ आरा ता क जाती है उस माह म सरकश शयातीन कै द कर िदए जाते ह
(4) रमजानुल मुबारक क आिखरी रात म रोजेदार के िलए मगिफरत क जाती है
3 आदिमय क दुआ रद नह होती
एक रोजादार क दुआ इफतार के व त, दूसरे आिदल बादशाह क , ितसरे मजलूम क इस मुबारक महीने म
हर रात और हर िदन म हर मुसलमान क एक दुआ ज र कबूल होती है यही एक महीना है िजसके िदन और
रात दोन फजीलत वाले ह
साल का िदल
आंहजरत स ल लाह अलैिह वस लम का इरशाद है के रमजान साल का िदल है जब वह सलामत रहता है
तो तमाम साल सलामत रहता है
हजरत मूसा अलेही सलाम क आरजू
हजरत मूसा अलैिह सलाम ने मुनाजात क के इलाही उ मते मोह मद स ल लाह अलैहे वस लम को कौन
सा महीना अता होगा ?
ह म हआ के मूसा अता िकया है हमने उनको महीना रमजानुल मुबारक का I मूसा अलैिह सलाम ने अज
िकया इलाही या फजीलत है इस महीने क ? इरशाद हआ है "ऐ मूसा फजीलत रमजानुल मुबारक क ऐसी
है ऊपर तमाम महीन के जैसी मेरी है तमाम मखलूक पर" हजरत मूसा अलैिह सलाम ने अज िकया इलाही
मुझको भी उ मते मोह मिदया स ल लाह अलैहे वस लम म कर के म उस सवाब से मह म ना रहं !
18
एक अ छी िमसाल
अ लामा इ ने जाफरी बु तान अलवाजी ़
न म तहरीर फरमाते ह के साल के बारह महीने हजरत याकूब
अलैिह सलाम के बारह बेट क मािनंद है के उनम से िजस तरह यूसुफ अलैिह सलाम उन को सबसे यादा
महबूब थे इसी तरह रमजानुल मुबारक का महीना भी अ लाह तआला के पास सबसे यादा महबूब है
यूसुफ अलैिह सलाम के दुआ से अ लाह तआला ने िजस तरह उनके गयारह भाइय को ब श िदया था
उसी तरह अ लाह तआला गयारह माह के गुनाह रमजानुल मुबारक क बरकत से माफ कर देता है
मेरी उ मत का महीना
आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम का इरशादे मुबारक है के रजब अ लाह तआला का महीना है
शाबानुल मुअ ज़म मेरा महीना है और रमजानुल मुबारक मेरी उ मत का महीना है रजब क फजीलत तमाम
महीन पर ऐसी है जैसी कुरान शरीफ क फजीलत तमाम िकताब पर और शाबानुल मुअ ज़म को दूसरे
महीन पर वैसी ही बुजुग है जैसे तमाम अंि बया पर मुझे.
और रमजानुल मुबारक को तमाम महीन पर ऐसी ही फजीलत है जैसे अ लाह तआला को तमाम मखलूक
पर I
हजूरे अनवर स ल लाहो अलेही वस लम ने फरमाया अ लाह तआला फरमाता है के हर एक अमल इ ने
आदम का बढ़ा िदया जाता है एक नेक क दस नेिकया िलखी जाती है और उससे भी यादा यहां तक के
साथ सौ तक मगर रोजा का सवाब इतना है उसक हद को म ही खूब जानता हं और उसका बदला अपने बंद
म खुद दूंगा,
हम मुसलमान पर अ लाह तआला ने रहमतुलिलल आलमीन स ल लाह अलैहे वस लम रहमत वाले
महीने के रोजे फज िकए ह वह बहत ही बा बरकत महीना है और इस कदर फजा ़
इल उस मुबारक महीने के ह
िजनका बयान करना इमकाने बशरी से बाहर है खुद उस क फजीलत म अ लाह तआला इरशाद फरमाता है
‫ﺷﮭر‬
‫رﻣﺿﺎن‬
‫اﻟذي‬
‫اﻧزل‬
‫ﻓﯾﮫ‬
‫اﻟﻘران‬
‫ھدى‬
‫ﻟﻠﻧﺎس‬
‫وﺑﯾﻧﺎت‬
‫ﻣن‬
‫اﻟﮭدى‬
‫واﻟﻔرﻗﺎن‬
19
(तजुमा) रमजानुल मुबारक का महीना (ऐसा बा बरकत है) के िजसम कु रान मजीद नािजल हआ जो लोग
का रहनुमा है और उसम िहदायत व इि तयाजे हक़ व बाितल साफ-साफ ह म है
मुसलमान । रमजानुल मुबारक का महीना तु हारे पास आया जो बरकत वाला है, इस मुबारक महीने म
अ लाह तआला रहमत के साथ तु हारे तरफ मुतव जा होता है और तुम पर मेहरबानी फरमाता है तु हारे
गुनाह को ब शता है, तु हारी दुआएं कुबूल फरमाता है और यह देखता है िक तुम लोग रमजानुल मुबारक के
वा ते या- या शौक और गबत रखते हो और सवाब के काम म िकतनी मश कत बदा त करते हो I
अ लाह तआला फ र त के सामने तु हारी तारीफ करता है देखो मेरे बंदे भूख और यास क तकलीफ उठा
कर अपनी ज रत को छोड़कर मेरी इबादत म कै से लगे हए ह.
हमको भी लािजम है या इस मुबारक महीने म अ लाह और उसके रसूल के अहकाम पूरे पूरे बजा लाने क
कोिशश कर सु ती और गफलत नाफरमानी से दूर रहकर इस मुबारक महीने के एक-एक िमनट क कदर कर
दुआ है के अ लाह तआला हम तमाम मुसलमान को रहमतु लील आलमीन के इस मुबारक महीने म
इबादत और नेक काम करने क तौफ क अता फरमाए और इस बात क कोिशश करनी चािहए के कह
रमजानूल मुबारक क खसती के साथ हमारी इबादत और नेक काम भी खसत ना हो जाएं।
रोज़ा क
े फजा ़
इल
आंहजरत स ल लाह अलैिह वस लम ने फरमाया हक़ तआला का इरशाद है के "रोजा खास मेरे िलए है
और उसका बदला म खुद दूंगा"
फरमाया आंहज़रत स ल लाह अलैिह वस लम ने के "मेरी उ मत क शनाखत रोज़ा है" इसिलए हर उ मती
को अपने अंदर यह अलामत कायम रखना चािहए हदीस शरीफ म एक जगह आया है के "कयामत के िदन
एक गुनाहगार दोजख म डाला जाएगा आग उससे भागेगी मािलक यानी दरोगाए दोजख आग से कहेगा के तु
इसे य नह पकड़ती ?
आप जवाब देगा देगी म इसे य कर पकड़ सकती हं जबके इसके मुंह से रोजे क बू आती है मािलक उस
श स से द रयाफत करेगा या तू रोजादार मरा था ? कहेगा हां उसके बाद उसको ज नत म जाने का ह म
होगा I
रोजेदार के वा ते कयामत के िदन अश के नीचे सतरह (17) द तरखान चुने जाएंगे वह लोग उस पर बैठकर
खाना खाएंगे और सब लोग अभी िहसाब ही म फंसे ह गे, गैब से उनको जवाब िमलेगा के यह लोग दुिनया म
20
रोजा रखते थे उसी का यह बदला है और तुम दुिनया म रोजा से भागते थे इसिलए अब भी सर गदा और
परेशान हो.
हजूर स ल लाहो अलेही वस लम ने फरमाया रोजेदार का खाना-पीना, ह ा के सोते रहना भी इबादत है
और सांस लेना त बीह है और उसक दुआ फौरन कुबूल होती है, और रोजादार के माल का सवाब कई गुना
िमलता है I
हजूर स ल लाह अलेही वस लम ने फरमाया बिह त के आठ दरवाजे ह उनम एक का नाम रयान है ज नत
म उस दरवाज़े से िसफ रोजादार ही दािखल ह गे कयामत म एक श स को फ र ते आग के गुजो ़से मारते हए
लाएंगे आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम से फ रयादी होगा, आप द रयाफत फरमाएंगे के उसने या
गुनाह िकया है ? फ र ते अज़ करगे हजूर इसने रमजान का महीना पाया मगर उसम अ लाह तआला क
नाफरमानी यानी रोजा नह रखा.
आप उसक शफाअत का इरादा फरमाएंगे तो फ र ते िफर अज करगे या मोह मद स ल लाह अलैिह
वस लम रमजान इसका दु मन है सरकारे नामदार स ल लाह अलैहे वस लम यह सुनकर फरमाएंगे के
रमजान िजसको दु मन रखता हो म उससे बरी हं उसक शफाअत मेरी िज मा नह I
हम मुसलमान को चािहए िक अपना-अपना जायजा ल आिखरत म शफाअत के उ मीदवार गौर फरमा ल के
या रमजानुल मुबारक म रोजा नह रहने के बावजूद भी शफाअत के उ मीदवार ह "अ लाह तआला हम
तमाम मुसलमान को रोजा रहने और इबादत करने क तौफ क अता फरमाए" ताके कयामत म हजूरपुर नूर
स ल लाह अलैिह वस लम के शफाअत नसीब हो आमीन
िबसिम लिहरहमािनररहीम
फजा ़
इले शबे क़दर
हजूर नबी करीम स ल लाह अलैहे वस लम को एक िदन खयाल हआ के अ लाह तआला मेरी उ मत के
साथ या सलूक फरमाएगा.
तभी वही नािज़ल हई "या मुह मद स ल लाह अलैहे वस लम आप कब तक उ मत का गम खाएंगे म
आपक उ मत को दुिनया से ना उठाउंगा यहां तक के उनको दुिनया म अंि बया का दजा ना दूं अंि बया क
21
शान यह है िक उन पर फ र ते वही और सलाम लेकर आते ह आप क उ मत पर भी इसी तरह शबे कदर म
फ र ते नािज़ल ह गे और मेरी तरफ सलाम और रहमत पहंचाएंगे
हदीस शरीफ म आया है के शबे कदर दुसरी रात से के िलहाज से अफजल है
1) अललाह तआला क तजलली उस रात म शाम से सुबह तक बंदो क तरफ मुतवजजा रहती है और
अपनी बारगाह यजदी म कुरबे मनवी नसीब होता है
2) अरवाह मलाइका सालेहीन और इबादत गुजार बंद क मुलाकात के िलए आसमान से जमीन पर आते ह
और उनके कुरब क वजह से इबादत क कैिफ़यत वह हालात दूसरी रात क बिन बत बदरे जहां बढ़ जाती
है
3) शबे कदर म कुरान शरीफ लोहे महफूज से आसमान से दुिनया पर नािजल हआ है यह वह फजीलत है
िजसक हद व आिफयत नह
4) शबे कदर अफ़ज़ल है
हर शबे कदर के 30 हजार िदन और 30 हजार रात से - य के हजार माह के इतने ही शब व रोज होते ह
6) हजूरे अनवर स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फरमाया िजसने शबे कदर को ईमान व यक न और
िन बते खािलस के साथ कयाम िकया यानी िज व नमाज व इबादत म शब बेदारी क , उसके तमाम गुजरे
हए गुनाह ब श िदए जाते ह,
नबी करीम स ल लाह अलैहे वस लम ने फरमाया शबे क को रमजान के आिखरी अशअरे िक ताक रात
म तलाश करो सबका इस पर इ ेफाक है के शबे क़दर माहे रमजान उल मुबारक क सताइसव रात है उस
एक रात म इबादत करने का सवाब हजार माह क इबादत से यादा है
इबादाते शबे कदर
1) शबे कदर म दो रकात पढ़े हर रकात म बाद अलह द के सुरह इनना अनजलना एक बार और सुरह
इखलास सौ बार बाद सलाम के सौ बार दु द शरीफ पढ़े सवाबे अजीम हािसल हो.
2) चार रकात एक सलाम से पढ़े हर रकात म बाद अलह द के इनना अनजलना एक बार और सुरह इखलास
सौ बार अ लाह तआला उस नमाज क बरकत से तमाम गुनाह माफ फरमा आएगा और बिहशते मुअ ला
म मक़ाम अता फरमाएगा.
22
3) चार रकात पढ़े हर रकात म सूरह फाितहा के बाद इ ना अंजालना तीन बार सूरह इखलास 17 बार पढ़े
अ लाह तआला सकराते मौत आसान करेगा और अजाबे क दूर फरमाएगा.
4) सो रकात पढ़े दो रकात क िनयत से हर रकात म बाद अलह द के इ ना अंजलना तीन बार सूरह इखलास
दस बार पढ़े अ लाह तआला उस नमाज के पढ़ने वाले वह कसरे ज नत अता फरमाए
5) चार रकात एक सलाम से पढ़ हर रकात म बादल ह द के सूरह इ ना अंजालना तीन बार पड़े और सुरह
इखलास पचास बार बाद सलाम के सजदे म जाकर दु द शरीफ पढ़कर जो दुआ मांगे कुबूल होगी
6) शबे कदर म रकात रकात पड़े हर रकात म सूरह फाितहा के बाद सूरह इ ना अंजलना सात बार और सो रहे
इखलास सात बार पढ़े बादे फरागत इसतगफार और दु द शरीफ पढ़े अ लाह तआला उस नमाज के बढ़ने
वाले और उसके मां-बाप को ब श देगा
7) शबे कदर म करीब सुबह सािदक चार रकात एक सालम से पढ़े और हर रकात म बाद अलह द के सुरह
इ ना अंजलना तीन बार और सूरह इखलास पांच बार पढ़े बाद ख़तम नमाज़ सजदह करे और सजदह म
सु हान अ लाह (41) बार कहे अ लाह तआला उसक तमाम हाजत पूरी करेगा और दुआ मकबूल होगी।
शबे कदर म सलातू त बीह ज़ र पढ़े और यह दुआएं कसरत से पढ़
١
‫اﻟﻠﮭم‬
‫اﻧك‬
‫ﻋﻔو‬
‫ﺗﺣب‬
‫اﻟﻌﻔو‬
‫ﻓﺎﻋف‬
‫ﻋﻧﻰ‬
٢
‫اﻟﻠﮭم‬
‫اﻧﻲ‬
‫اﺳﺎﻟك‬
‫اﻟﻌﻔو‬
‫واﻟﻌﺎﻓﯾﺔ‬
‫واﻟﻣﻌﺎﻓﺎت‬
‫ﻓﺎﻟدﯾن‬
‫واﻟدﻧﺎواﻻﺧرة‬
٣
‫اﺷﮭد‬
‫ان‬
‫ﻻ‬
‫اﻟﮫ‬
‫اﻻ‬
‫ﷲ‬
‫اﺳﺗﻐﻔر‬
‫ﷲ‬
‫اﺳﺎﻟك‬
‫اﻟﺟﻧﮫ‬
‫واﻋوذ‬
‫ﺑك‬
‫ﻣن‬
‫اﻟﻧﺎر‬
٤
‫اﻟﻠﮭم‬
‫اﺟرﻧﺎ‬
‫ﻣن‬
‫اﻟﻧﺎر‬
‫ﯾﺎ‬
‫ﻣﺟﯾر‬
‫ﯾﺎ‬
‫ﻣﺟﯾر‬
‫ﯾﺎ‬
‫ﻣﺟﯾر‬
23

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3 Muqaddas Raten Tohfa e Masihemillat Hindi

  • 1.
  • 2.
  • 3. 1 प रचय िकताब का नाम :------------------------------------------------तो फाए मसीहे िम लत तीन मुन वर रात लेखक का नाम : ------------------------------काज़ी-उल-क़ु ज़ात मसीहे िम लत मुह मद अनवर आलम वािलद का नाम : ------------------------------------------------------मुह मद अ बास आलम (मरहम) खािलफाए -----------------------------------------------------------------------------सलािसले अरबा मु कमल िडज़ाइन -----------मुह मद शमशाद आलम ------------------(जानशीने हज़ूर मसीहे िम लत ) रहाइश :-------------------------------------------------------------मीरा रोड मुंबई ठाणे महारा भारत िहंदी टाइिपंग:----------------------------------------------------------------हािफज गुलाम गरीब नवाज़ करे शन:---------------------------------------------------------------------------ज वाद अली अंसारी काशक:-------------------------------------दा ल उलूम फैज़ाने मु तफा एजूके ल ट, मीरा रोड मुंबई तबाअत :-------------------- फैज़ाने मु तफा अकेडमी, मकज़ुल ( मराक ज़ बाबुल इ म जनरल लाइ ेरी ) सहायक :-------------------------------------------------------------- मुह मद मुिनम (किटहार िबहार )
  • 4. 2 मूकददमा अलहमदूिललाह आज मैने अहबाब क फरमाइश पर एक ऐसे मौझू पर कलम उठाया िजसक बेहद ज रत थी िक िजसमे ऊन तमाम रातो क ईबादत के तरीके हो िजसक अकसर ज रत पडती है। हर साल लोग फोन करते और नमाज के तरीके मांगते इन तमाम बातो को यान मे रखते हऐ मैने तमाम चीजो को जमा िकया और ईस िकताब का नाम तोहफा ए मसीहे िम लत 3 मूकददस राते रकखा इस ऊमीद पर के कुल ऊममते मूसलीमा इससे मूसतफ ज हो और नवाफ ल के जरीऐ कुरबे ईलाही नसीब हो मिजद इसमे कुछ दूआऐ भी है खास कर दुआऐ िनसफ ए शाबान अ लाह तआला अपने हबीब स ल लाह अलैिह वस लम के सदके हमारी नमाज़े और इबादत क़ुबूल फरमाऐ।आमीन ‫آﻣﯾن‬ ‫ﺑﺟﺎه‬ ‫ﺳﯾد‬ ‫اﻟ‬ ‫ﻣرﺳﻠﯾن‬ ‫و‬ ‫آﻟہ‬ ‫اﻟطﯾﺑﯾن‬ ‫واﻟطﺎﮨرﯾن‬ ‫واﺻﺣﺎﺑہ‬ ‫اﻟﻣﮑرﻣﯾن‬ मुह मद अनवर आलम
  • 5. 3 फज़ाईले माहे र जबुल मुरजब यह महीना बड़ी अज़मत व बुज़ुरगी वाला है, हदीस शरीफ म आया है के रजब अ लाह का महीना है, दूसरी हदीस म है के रजब क फज़ीलत तमाम महीन पर ऐसी है जैसे क़ुरआन मजीद क फज़ीलत तमाम अज़कार पर, माहे रजब शह ल हराम है आंहज़रत स ल लाह अलैहे वस लम ने फ़रमाया है के रजब बिह त म एक नहर का नाम है िजसका पानी शहद से यादा शीर (मीठा), बरफ से यादा ठंडा और दूध से यादा सफेद है. जो श स इस मुबारक महीने म एक रोज़ा भी रखेगा अ लाह तबारक व तआला उस श स को उसी नहर के पानी से सैराब फरमाएगा. हज़रत अनस िबन मािलक रदीअ लाह अ ह से रवायत है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम जब माहे रमज़ान का चांद मुलािहज़ा फरमाते तो दोन द ते मुबारक उठाकर यह दुआ पढ़ते थे ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﺑﺎرك‬ ‫ﻟﻧﺎ‬ ‫ﻓﻲ‬ ‫رﺟب‬ ‫وﺷﻌﺑﺎن‬ ‫وﺑﻠﻐﻧﺎ‬ ‫ﺷﮭر‬ ‫رﻣﺿﺎن‬ हज़ूर ने यह भी इरशाद परमाया है के जो कोई रजब के महीने म पहली पं हव और आखरी तारीख़ म गु ल करे ऐसा ख़ा रज होगा गुनाह से जैसे पैदा हआ आज ही अपनी माँ आजही अपनी माँ के पेट से. यूं तो सारा महीना मुबारक है लेिकन हदीस शरीफ़ म वा रद है के उस महीने के पांच राते अफ़ज़ल ह वा ते इबादत के: (1) पहली रात (2) पहले पंजशुंबा वह जु मा क दरिमयानीरात िजसको लैलतुर रगाइब भी कहते ह (3) पं हव रात िजसका नाम शबे इ त ताह है (4) सताइ व शब िजसका नाम शबे मेराज है (5) आखरी रात
  • 6. 4 हदीस शरीफ़ हज़रते सलमान फारसी से रवायत है के फ़रमाया मुझको रसूल उ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने के "ए सलमान या नह कोई बंदाऐ मोिमन और मोिमना ? के पढ़े उस माह म रकत नफ़ल तो अ लाह तआला तमाम गुनाह क़यामत िदन और उठाया जाएगा शहीद के साथ और उसका नाम आिबद यानी इबादत गुजार म िलखा जाएगा और सवाब एक साल क इबादत का िलखा जाएगा और हराम करेगा अ लाह तआला दोज़ख़ क आग और फ़रमाया आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम ने के खबर दी मुझको उस नमाज़ के सवाब क िज ाइल ने। हज़रत सलमान फ़ारसी रदी अ लाह तालाअ ह रवायत करते ह के म ने अज़ िकया "या रसूल अ लाह उस नमाज़ को िकस तरह पढूं ? तो हज़ूर स ल लाह अलैहे वस लम ने फ़रमाया "पढ़ रजब क पहली रात को दस रकात नवािफल पांच सलाम से" "पं हव और आखरी रात को भी और पढ़ हर रकात म बाद अ ह दुिल लाह के सुरह क़ािफ न और सुरह इ लास तीन बार हर रोज़ बाद फुरागे नमाज़ क माए तौहीद पढ़कर" "पहली रात यह दुआ पढ़े" ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﻻ‬ ‫ﻣﺎﻧﻊ‬ ‫ﻟﻧﺎ‬ ‫اﻋطﯾت‬ ‫وﻻ‬ ‫ﻣﻌطﻰ‬ ‫ﻟﻧﺎ‬ ‫ﻣﻧﻌت‬ ‫وﻻ‬ ‫ﯾﻧﻔﻊ‬ ‫ذااﻟﺟد‬ ‫ﻣﻧك‬ ‫اﻟﺟد‬ - "पं हव रात यह पढ़े" ‫اﻟﮭﺎ‬ ‫واﺣدا‬ ‫اﺣداو‬ ‫ﺻﻣداوﻓزداووﺗراﻟم‬ ‫ﯨﺗﺧذ‬ ‫ﺻﺎﺣﺑﺔوﻻوﻟدا‬ "आखरी रात यह दुआ पढ़" ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﺻل‬ ‫ﻋﻠﻰ‬ ‫ﺳﯾدﻧﺎ‬ ‫ﻣﺣﻣد‬ ‫واﻟﮫ‬ ‫اﻟطﺎ‬ ‫ھرﯾن‬ ‫وﻻ‬ ‫ﺣوﻟﮫ‬ ‫وﻻﻗوة‬ ‫اﻻ‬ ‫ﺑﺎ‬ ‫اﻟﻌﻠﻲ‬ ‫اﻟﻌظﯾم‬ उसके बाद मांग तो अ लाह से अपनी हाजत को क़ुबूल फरमाएगा अ लाह तआला दुआ तेरी और कयामत के िदन तेरे और दोज़ख के दरिमयान स र खनदक़ का फासला होगा, हर खनदक़ क चौराई पांच सो बरस क राह होगी, और अता करेगा अ लाह तआला सवाब हर रकत के बदले हज़ार रकत का. जब सुनी यह हदीस सलमान फारसी ने आंहज़रत स ल लाह अलई िहवस लम से। तो उठे और खुदा का शु बजालाए इतने बड़े ईनाम पर िफर कभी सलमान फारसी ने इस नमाज़ को नह छोड़ा.
  • 7. 5 नमाज़ शबे अ वल शबे अ वल म बाद नमाज़ॆ मग रब बीस रकात नवािफल दस सलाम से हर रकत म बाद अ हमदू िल लाह के सूरह इखलास एक बार पढ़े फायदा हर दो जहां का है. बरोज़ जु मा िकताबुल असरार म िलखा है के माहे रजब के हर जु मा और असर के दरिमयान चार रकात एक सलाम से अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के आयतलकुस सात बार, सुरह इखलास पांच बार, बाद सलाम के यह दुआ पढ़े ‫ﻻ‬ ‫ﺣول‬ ‫وﻻ‬ ‫ﻗوه‬ ‫اﻻ‬ ‫ﺑﺎ‬ ‫اﻟﻛﺑﯾر‬ ‫اﻟﻣطﻌﺎل‬ ‫اﺳﺗﻐﻔر‬ ‫ﷲ‬ ‫ﻟذي‬ ‫ﻻ‬ ‫اﻟﮫ‬ ‫اﻻھو‬ ‫اﻟﺣﻲ‬ ‫اﻟﻘﯾوم‬ ‫ﻏﻔﺎر‬ ‫اﻟذﻧوب‬ ‫وﺳﺗﺎر‬ ‫اﻟﻌﯾوب‬ ‫اﺗوب‬ ‫اﻟﯾﮫ‬ अबार, दु द शरीफ, अबार, उसके बाद जो हाजत हो उसके िलए दुआ करे , इंशाअ लाह ज़ र क़ुबूल होगी दुआ उसक लैलतुर रगाएब उसको लैलतुल मुबारक भी कहते ह रजब के पहले पंजशुमबाह जु मा क दरिमयानी रात है उस रात म बाद नमाजे मग रब बारह रकात छे: सलाम से अदा करे , हर रकत म बाद अलह द के इ ना अंज़लना एक बार , सुरह इखलास बारह बार बढ़े, बाद फराग नमाज़ के स र बार दु द शरीफ पढ़कर ‫ﺳﺑوح‬ ‫ﻗدوس‬ ‫رﺑﻧﺎ‬ ‫ورب‬ ‫اﻟﻣﻼﺋﻛﮫ‬ ‫واﻟروح‬ ) 70 बार) ‫رﺑﻲ‬ ‫اﻏﻔر‬ ‫ﻟﻲ‬ ‫وارﺣم‬ ‫وﺗﺟﺎوز‬ ‫ﻋﻣﺎﺗﻌﻠم‬ ‫ﻓﺎﻧك‬ ‫اﻧت‬ ‫اﻟﻌﻠﻰ‬ ‫اﻟﻌظﯾم‬ ) 70 बार) िफर (70) बार दू द शरीफ पढ़कर जो दुआ मांगे क़ुबूल हो
  • 8. 6 शबे इ त फाह माहे रजब क पं हव रात का नाम है , उस रात म बाद नमाजे इशा। बीस रकात निफल नमाज़ दस सलाम से अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के सुरह इखलास एक बार पढ़े यह नमाज़ तमाम दुिनयां व माफ हा से बेहतर है फजाइले शबे मेराज ‫ﺳﺑﺣﺎن‬ ‫اﻟذي‬ ‫اﺳرى‬ ‫ﺑﻌﺑده‬ ‫ﻟﯾﻼ‬ ‫ﻣن‬ ‫اﻟﻣﺳﺟد‬ ‫اﻟﺣرام‬ ‫اﻟﻰ‬ ‫اﻟﻣﺳﺟد‬ ‫اﻻﻗﺻﻰ‬ रजब म एक ऐसी रात है। िजसमे इबादत करने वाल के नाम-ए-आमाल म सौ बरस के ह नात िलखे जाते ह, वह रजब क स ाइसव रात है उस रात क फजीलत इस वजह से भी यादा है के ऐसी मुबारक शब म हज़ूर फखरे कायनात ने बुलावे खुदावंदी पर आसमान पर उ ज फ़रमाया और मि ज़द म अंिबया सािलक न और मलाइका मुकरबीन क इमामत फ़रमायी उस मुबारक रात म अहकामे खास आप पर नािज़ल हए आप दीदारे खुदावांदी से सरफराज़ हए जो श स उस रात म इबादत करता है सआदते मेराज का सवाब उसके नाम-ए-आमाल म िलखा जाता है शबे मेराज शबे रहमत है उस रात को जो श स इबादत करेगा अ लाह तआला उसको कामयाब व बा मुराद रखेगा, और हर बला व मुसीबत से बचाएगा I आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फ़रमाया माहे रजब क स ाइसव शब को आसमान से स र हज़ार फ र ते अपने सर पर नूरे इलाही के तबक़ रखे हवे ज़मीन पर आते ह और हर उस घर म दािखल होते ह िजसके रहने वाले यादे इलाही म मशगूल रहते ह, ह म-ए-खुदाव दी होता है के इन नूर के तबाक़ को उनके सरो पर उलट दो जो इस शब क िवद करते ह, सुबहान अ लाह और नेमते उजमा हािसल करने क अ लाह तआला हर मुसलमान को तौफ़ क अता फरमाये अमीन।
  • 9. 7 इबादत शबे मेराज िकताबुल औराद म मनकूल है के इस रात को बारह रकात नफल छे: सलाम से अदा करे, हर रकत म बाद अलह द के सुरह इखलास पांच बार पढ़े बाद इ ततामे नमाजे कलमा-ए-तमजीद इ तागफार और दु द शरीफ़ सौ सौ बार पढ़कर जो दुआ करे क़ुबूल होगी। तौफा मजकूर है के रात को छे: रकात नफल तीन सलाम से अदा करे और हर रकत म बाद अलह द के सुरह इखलास सात बार पढ़े बाद फरागे नमाज़ के पचास बार दु द शरीफ़ पढ़कर दुआ करे अ लाह तआला तमाम हाजाते िदनी व दुिनयावी बर लाए। तौफा म मकूल है के दो रकात नफल पढ़े पहली रकत म बाद अलह द के सूरह अलमतरा और दूसरी रकत म बाद अलह द के सूर-ए-क़ुरेश एक एक बार बढ़े सवाबे अज़ीम पायेगा। फलांदीन म िलखा है के सौ रकत नमाज़ नफल पचास सलाम से अदा करे और हर रकात म बाद अलह द के सूरह इखलास एक बार पढ़े, बाद फु राग नमाज़ सो (100) बार दु द शरीफ़ पढ़कर सर बसुजूद अ लाह तआला से अपनी हाजत तलब करे इंशा अ लाह। उसक हाजत ज़ र पूरी होगी। अ सर सलसह का तरीक़ा यह है बा िन यत हदये रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम दो रकात नमाज़ अदा करे और हर रकत म बाद अलह द के सूरह इखलास सताइस बार पढ़े कायदा म अतहईयत के बाद द दे इ ािहम सताइस बार पढ़कर दुआ पढ़े बाद सलाम के शाम हजूर पुर नूर स ल लाह अलैहे वस लम क बारगाह म गुजारने क सआदत हािसल कर मुबारक िदन रसालह हशरया म है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम एक रोज कि तान म तशरीफ़ ले गए आपने मुलािहजा फरमाया के एक क म मुद पर अज़ाब हो रहा है और वह रो कर कह रहा है या रसूल अ लाह स ल लाहो अलेही वस लम मुझको आग दोजख क जला रही है मेरा कफन आग हो गया है आपने उससे फरमाया के अगर तू एक रोजा भी माहे रजब म रखता तो यह अज़ाब तुझ पर हरिगज़ ना होता मालूम हआ िक उस मुबारक महीने म एक रोजा रहने का िक बड़ा फायदा है
  • 10. 8 हदीस शरीफ फरमाया रसूलअ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने माहे रजब म एक रोज़ और एक रात है जो कोई रोज़ा रखे उस रोज़ और इबादत कर उस रात को तो सवाब उसको सौ साल क इबादल का िमलेगा, वह रात स ाइसव और िदन स ाइसवां है जो कोई उस रात को इबादत करे उस िदन रोजा रखे खास खुशनुदी अ लाह तआला के िलए तो अ लाह तआला कयामत के िदन उस द तरखान पर िखलाएगा िजस पर हजरत इ ािहम अलेही सलाम और हजरत मोह मद मु तफा स ल लाह अलैहे वस लम ह गे फाजा ़ इल : इबादत माहे रजब के बेशुमार है अगर तमाम के तमाम िलखूं तो एक द तर तवील हो जाएंगे इसिलए मु सर िकया और दुआ है िक अ लाह तआला अपने फज़ल व करम से हम तमाम मुसलमान को तौफ क अता फरमाए, आमीन! फजा ़ इले माहे शाबानु-उल-मुअ ज़म दुिनयांए इ लाम म साल का हर महीना िकसी ना िकसी खुसूिसयत का हािमल है, हर महीना अपने वास के िलहाज से मुसलमान के नजदीक एक खास जाजी ़ बैत रखता है शाबानु-उल-मुअ ज़म के महीने क हदीस म बड़ी फजी ़ लत आई है. हदीस शरीफ फरमाया आंहज़रत स ल लाह अलैहे वस लम ने के शाबान मेरा महीना है! और उसक फजीलत तमाम महीन पर ऐसी है जैसी मेरी फजीलत तमाम मखलूक पर ! दूसरी हदीस म आया है के शाबानु-उल-मुअ ज़म िक बुजु़ग क बाक ़महीन पर ऐसी है जैसी तमाम अंमिबया कराम पर मुझे फजीलत दी गई है, मालूम हआ िक िजस तरह रसूल अ लाह स ल लाह अलैिह वस लम सब पैगंबर से अफजल है उसी तरह आप का महीना भी सब महीन से अफजल है शाबान म अ लाह तआला अपने बंद को खैरो बरकत कसरत से इनायत फरमाता है, बंद को भी लािजम है के कसरत से इबादत कर I एक रवायत म आया है िक रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम शाबानु-उल-मुअ ज़म का पूरा महीना रोज रखा करते थे, माहे शाबानु-उल-मुअ ज़म एक उमदा और मुबारक महीना है िजसको हबीबे
  • 11. 9 र बुल इ जत ने महबूब रखा है यह वह महीना है के इसम गुनाह क माफ होती है जो अपने अंदर कािमल बुजु़ग रखता है फजा ़ ईले शबे बरात ‫ﻗﺎل‬ ‫ﻗﺎل‬ ‫رﺳول‬ ‫ﷲ‬ ‫ﺻﻠﻰ‬ ‫ﷲ‬ ‫ﻋﻠﯾﮫ‬ ‫وﺳﻠم‬ ‫و‬ ‫ﻗوم‬ ‫ﻟﯾﻠﮫ‬ ‫اﻟﻧﺻف‬ ‫ﻣن‬ ‫ﺷﻌﺑﺎن‬ ‫ﻓﺎﻧﮭﺎ‬ ‫ﻟﯾﻠﺔ‬ ‫ﻣﺑﺎرﻛﺔ‬ ‫ﻓﺎن‬ ‫ﷲ‬ ‫ﺗﻌﺎﻟﻰ‬ ‫ﯾﻘول‬ ‫ھد‬ ‫ﯾ‬ ‫ن‬ ‫ﻣﺳﺗﻐﻔر‬ ‫ﻓﺎﻏﻔرﻟﮫ‬ एक रवायत म है के रसूल अ लाह स ल लाह अलैही वस लम ने फरमाया के उठो ए लोगो िन फ़ शब-ए- माहे शाबान को पं हव रात शाबान के िनहायत बुजुग है और जो इबादत इस रात म करे उसका सवाब बहत पावे I चुनानचे हजरत रसूले करीम स ल लाह अलैहे वस लम इरशाद फरमाते ह के बुजुग जानो उस शबे बरात को "के वह पं हव शब शाबान क है के उतरते ह उसम फ र ते रहमत के , नािजल होती है रहमत ए इलाही उन लोग पर जो इबादत करते ह उस रात को, वह ऐसी रात है के बुजुग िकया है उसको अ लाह तआला ने जो इबादत करता है उस रात म अ लाह तआला उसके सिगरा वह कबीरा गुनाह ब श देता है, वह श स पाक हो जाता है तमाम गुनाह से I फरमाया रसूल अ लाह स ल लाह अलैहे वस लम ने जो िजंदा रहे पं हव शब माहे शाबान को तो िजंदा रखता है अ लाह तआला उसको कयामत तक यानी मौत के बाद भी सवाब उसको इबादत का हर रोज िमला करता है उसके आमाल म िलखा जाता रहेगा, फरमाया रसूले करीम स ल लाह अलैिह वस लम ने अ लाह तआला पं हव शाबान को तमाम आिबद और सालेह और िसि क और नेक और बुर को बखशता है मगर जादूगर , बखील और मां-बाप को तकलीफ देने वाल . शराब खोर और जा ़ िनय को नह बखशता. हां जो लोग तौबा करल वह बखशे जाएंगेI वारीद है के अ लाह तआला फरमाता है पं हव रात को शाबान को के "है कोई ब शीश चाहने वाला मुझसे िक म ब श दूं ?
  • 12. 10 है कोई जो आिफयत चाहे मुझसे के म उसको सहेत दूं ? और है कोई फक ़ र जो गी ़ ना चाहे के म उसको गनी कर दूं ? इरशाद फरमाया रसूले करीम स ल लाहो अलेही वस लम ने िज ाइल अलैिह सलाम मेरे पास आए और कहा उिठए या रसूल अ लाह स ल लाहो अलेही वस लम नमाज पढ़ो और दुआ मांगो अपनी उ मत के िलए उस रात को मगर मुशरीक, जादूगर, मुनजजम, बखील और शराबी सूदखोर और जा ़ नी के िलए ब शीश ना मांगो य िक अ लाह तआला उन पर अज़ाब करने वाला ह हां मगर जो तौबा करे ‫طوﺑﻰ‬ ‫اﻟﻌﻣل‬ ‫ﻟﯾﻠﮫ‬ ‫اﻟﻧﺻف‬ ‫ﻣن‬ ‫ﺷﻌﺑﺎن‬ ‫ﺧﯾرا‬ ‫ﻟﮫ‬ यानी खुशखबरी है वा ते उस आदमी के अमल करे नेक पं हव शबे शाबान म साल भर के अमूर क तक़सीम हक़ सुबहानह तआला ने कुरान म इरशाद फरमाया के अ लाह हमारे ह म से उस रात म हर िहकमत वाला काम बांट िदया जाता है (सूरह दुखखान पारा 25) यानी शबे बारात म जुमला अहकामे रज़क़ आजाल और तमाम साल के हवािदस त सीम कर िदए जाते ह और हर काम के फ र त को उनक तामील पर मु इन कर िदया जाता हजू ़ र अक़दस स ल लाह अलैहे वस लम ने फरमाया उस रात म साल का हर पैदा होने वाला और हर मरने वाला आदमी िलखा जाता है और लोग के आमाल उनके रब क बारगाह म पेश होते ह और उनके रज़क़ उतारे जाते ह I रहमत ए इलाही का नुज़ूल रसूले अकरम स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फ़रमाया के अ लाह अज़वल शबे बरात म मेरी उ मत पर बनी ाब क बक रय के बाल के बराबर रहमत नािजल फरमाता है (त वीरे कबीर) (बनी ाब अरब म एक कबीला था उनके यहां बक रयां कसरत से थ ) मुसलमान क मगिफरत सरवरे आलम स ल लाह अलैहे वस लम ने फरमाया के हक़ तआला उस रात म तमाम मुसलमान क मगिफरत फरमाता है िसवाये, मुश रक, कािफर, जादूगर, नजूमी, जा ़ नी, शराबी, क ना परोस, सूदखोर, मां बाप क नाफरमानी करने वाला और र ता क़तअ करने वाले के
  • 13. 11 इबादत क फजी ़ लत स दुल अंिबया ने इरशाद फरमाया के जो श स उस रात म सौ रकात नवािफल पढ़ेगा, तीस ज नत क खुशखबरी सुनाएंगे तीस दोज़ख के अजा ़ ब से िहफाज़त म रखगे, तीस दुिनयां क आफत दूर करगे दस शैतान के म से बचाएंगे (तफसीरे कबीर) हजरत अली मुतुजा ़रदी अललाह तआला अनह से मव है के "हजूर पुर नूर स ल लाह अलेही वस लम ने फरमाया शबे बारात आए तो रात म क़याम करो, नमाज पढ़ो और िदन म रोजा रखो (इ ने माजा) अमराज़ व वबा से िनजात और रज़क़ म वुसअत नबी करीम अलैहीस सलातु व सलाम ने फरमाया के अ लाह तआला उस शब म गु बे आफताब के व त आसमान से दुिनया क तरफ नुज़ुले इजलाल करता है और इरशाद फरमाता है के या है कोई ? मगिफरत चाहने वाला िक म उसक मगिफरत क ं ? या है कोई ? रोजी ़मांगने वाला म उसको रोजी दूं या है कोई ? िगर तारे बला के म उसे आिफया दूं या है कोई ? ऐसा इस िक म क िनदाऐंसुबह तक होती रहती है आमाले सालेहा उस मुबारक रात म गुसल करना, हसबुल क अ छे कपड़े पहनना, वा ते इबादत के सुरमा लगाना , िम वाक करना , अ लगाना , क़बर क ि ़ जयारत करना , फाितहा िदलाना , खैरात करना , मुद क मगिफरत क दुआ करना , बीमार क ईआदत करना , तह जुद क नमाज़ पढ़ना , न ल नमाज से यादा पढ़ना, दु द सलाम क कसरत करना , खुसुसन सूरह यासीन शरीफ क ितलावत करना , आमाले सालेहा म यादाती करना , इबादत म सु ती ना करना , और उस रोज क़रीब गु बे आफताब के चालीस मतबा। ‫ﻻ‬ ‫ﺣول‬ ‫وﻻ‬ ‫ﻗوه‬ ‫اﻻ‬ ‫ﺑﺎ‬ ‫اﻟﻌﻠﻲ‬ ‫اﻟﻌظﯾم‬ पढ़ना साल तमाम क बेहतरी का जा ़ मीन है।
  • 14. 12 आमाले खबीसा ऐसी मुबारक ओ मुक स रात क कदर ना करना, इबादत म सु ती वह कािहली करना, िसनेमा बीनी चाय खाने म रात गुजारना, आितशबाजी ़ख़ुद जलाना या ब च को उसक आदत डालना, रात लह वलब और गपशप म गुजार देना , बदकारी करना , लोग को सताना , गीबत और चुगली म व त जा ़ ये करना , रात तमाम सोते पड़े रहना वगैरह यह तमाम बात अ लाह और उसके रसूल के नाराजी ़के ह अ लाह तआला से दुआ है के हम तमाम मुसलमान को आमाले सालेहा क तौफ क़ अता फरमाए आमीन नवाफ ले शबे बरात शबे बरात म मग़ रब क नमाज़ के बाद पढ़ने वाली न ल नमाज़ का तरीका सबसे पहले आप मग रब क नमाज़ मुक मल कर लीिजए ! मग़ रब क नमाज़ मि जद म अदा क हो या घर पर ! नमाज़ अदा होने के बाद त बीह और दुआ से फ़ा रग़ होकर 6 रकअत नमाज़ न ल 2×2 क िनयत से अदा क िजए पहली 2 रकअत नमाज़ शु करने से पहले यह दुआ क िजए या अ लाह इन दो रकआतो क बरकत से मेरी उ म बरकत अता फरमा शबे बरात क 2 रकअत नमाज़ न ल क िनयत िनयत क मने दो रकअत शबे बरात क न ल नमाज क खास वा ते अ लाह तआला के मुंह मेरा काबा शरीफ क तरफ अ लाह अकबर शबे बरात क नमाज़ का तरीका बाद नमाज़े ईशा सबसे पहले ग़ु ल क िजये बाद ग़ु ल के तिहयतुल वुजू क िजये ! िफर दो रकअत नमाज़ तिह यतुल वुज़ु पढे !
  • 15. 13 हर रकअत मे सूरए फाितहा के बाद आयतल कु स एक बार और सुर-ए-अहद शरीफ़ तीन बार पढ़, अगर आयतल कु स याद ना हो तो पहली रकअत म 3 सुर-ए-अहद दूसरी रकअत म 1 बार सुर-ए-अहद पढ़ नमाज से फा रग होने के बाद सौ मतबा दु द शरीफ पढ़कर जो भी दुआ मांगे कुबूल होगी सलहाये उ मत का द तूर है िक उस रात को सलातुत त बीह अदा करते ह हजूरे अनवर स ल लाह अलैिह वस लम ने यह नमाज अपने चाचा हजरत अ बास लदी अ लाह तआला अनह खुशी को िसखाई थी और फरमाया था के ऐ चाचा इस नमाज के पढ़ने से अगले िपछले दानीशतां वदानीशतां ना तमाम गुनाह ब श िदए जाते ह. दूसरी हदीस म आया है के हे मेरे चाचा अगर तु हारे गुनाह कफे द रया व रेगे बायाबां से भी यादा ह गे तो उस नमाज क बरकत से ब श िदए जाएंगे सलातुत त बीह सलातुत त बीह क चार रकात इस तरह अदा कर ‫ﺳﺑﺣﺎﻧك‬ ‫اﻟﻠﮭم‬ के बाद प ह बार ‫ﺳﺑﺣﺎن‬ ‫ﷲ‬ ‫واﻟﺣﻣد‬ ‫وﻻ‬ ‫اﻟﮫ‬ ‫اﻻ‬ ‫ﷲ‬ ‫ﷲ‬ ‫اﻛﺑر‬ बढ़ िफर अऊजु़िबललाह और िबि म लाह और सूरह फाितहा के बाद और कोई सूरत पढ़कर दस बार यही त वी पढ़ िफर कऊ म ‫ﺳﺑﺣﺎن‬ ‫رﺑﻲ‬ ‫اﻟﻌظﯾم‬ के बाद दस बार िफर कऊ से सर उठा कर दस बार िफर सजदे म ‫ﺳﺑﺣﺎن‬ ‫رﺑﻲ‬ ‫اﻻﻋﻠﻰ‬ के बाद दस बार िफर सजदे से सर उठा कर दस बार िफर दूसरे सजदे म दस बार यानी एक रकत म पछ र बार त बीह हई इसी तरह चार रकात अदा कर, चार रकात म जुमला त बीह तीन सौ मतबा हई। नमाज के बाद इसतगफार दु द शरीफ एक एक सौ बार पढ़कर सजदे म सर रखकर अ लाह तआला से नेक तौफ क क दुआ कर
  • 16. 14 उस रात म तीन मतबा सूरह यासीन शरीफ क ितलावत करना चािहए पहली मतबा दराजी उ क िनयत, दूसरी मतबा कुशादगी क िनयत से तीसरी मतबा दफाए अमराज़ व बलायात क िनयत से जब तीन मतबा सूरह यासीन शरीफ पढ़ चुके तो यह दुआ पढ़े ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﯾﺎذاﻟﻣن‬ ، ‫وﻻ‬ ‫ﯾﻣن‬ ‫ﻋﻠﯨﯾﮫ‬ ‫ﯾﺎذاﻟﺟﻼل‬ ‫واﻻﻛرام‬ . ‫ﯾﺎ‬ ‫ذاﻟطول‬ ‫و‬ ‫ا‬ ‫ﻻﻧﻌﺎم‬ ‫ﻻ‬ ‫اﻟﮫ‬ ‫اﻻ‬ ‫اﻧت‬ ‫ظﮭراﻻ‬ ‫ﺟﺋ‬ ‫ﯾن‬ ‫و‬ ‫ﺟﺎر‬ ‫اﻟﻣﺳﺗﺟﯾرﯾن‬ ‫واﻣﺎن‬ ،‫اﻟﺧﺎﺋﻔﯾن‬ ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ان‬ ‫ﻛﻧت‬ ‫ﻛﺗﺑﺗﻧﻲ‬ ‫ﻋﻧدک‬ ‫ﻓﻲ‬ ‫ام‬ ‫اﻟﻛﺗﺎب‬ ‫ﺷﻘﯾﺎ‬ ‫اوﻣﺣروﻣﺎ‬ ‫او‬ ‫ﻣطرودا‬ ‫اوﻣﻘﺗرا‬ ‫ﻋﻠﻲ‬ ‫ﻓﻰ‬ ‫اﻟرزق‬ ‫ﻓﺎﻣﺢ‬ ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﺑﻔﺿﻠك‬ ‫ﺷﻘﺎوﺗﻰ‬ ‫وﺣرﻣﺎﻧ‬ ‫ﯽ‬ ‫وطرد‬ ‫وا‬ ‫ﻗ‬ ‫ﺗﺎررزﻗﻰ‬ ‫و‬ ‫ا‬ ‫ﺛﺑﺗﻧﻰ‬ ‫ﻋﻧدك‬ ‫اﻟﮑﺗﺎب‬ ‫ام‬ ‫ﻓﯽ‬ ‫ﺳﻌﯾدا‬ ‫ﻣرزوﻗﺎ‬ ‫ﻣوﻓﻘﺎ‬ ‫ﻟﻠﺧﯾرا‬ ‫ت‬ ‫ﻓﺎﻧك‬ ‫ﻗﻠت‬ ‫وﻗوﻟك‬ ‫اﻟﺣق‬ ‫ﻓﻰ‬ ‫ﻛﺗﺎﺑك‬ ‫اﻟﻣﻧزل‬ ‫ﻋﻠﻰ‬ ‫ﻟﺳﺎن‬ ‫ﻧﺑﯾك‬ ‫اﻟﻣرﺳل‬ ‫ﯾﻣﺣو‬ ‫ﷲ‬ ‫ﻣﺎ‬ ‫ﯾﺷﺎء‬ ‫وﯾﺛﺑت‬ ‫وﻋﻧده‬ ‫ام‬ ‫اﻟﻛﺗﺎب‬ ‫اﻟﮭﻰ‬ ‫ﺑﺎﻟﺗﺟﻠﻰ‬ ‫اﻻﻋظم‬ ‫ﻓﻰ‬ ‫ﻟﯾﻠﺔاﻟﻧﺻف‬ ‫ﻣن‬ ‫ﺷﮩر‬ ‫ﺷﻌﺑﺎن‬ ‫اﻟﻣﻛرم‬ ‫اﻟﺗﻰ‬ ‫ﯾﻔرق‬ ‫ﻓﯾﮭﺎ‬ ‫ﻛل‬ ‫اﻣر‬ ‫ﺣﻛﯾم‬ ‫وﯾﺑرم‬ ‫ان‬ ‫ﺗﻛﺷف‬ ‫ﻋﻧﺎ‬ ‫ﻣن‬ ‫اﻟﺑﻼء‬ ‫واﻟﺑﻠوی‬ ‫ﻣﺎ‬ ‫ﻧ‬ ‫ﻌﻠم‬ ‫وﻣﺎﻻ‬ ‫ﻧﻌﻠم‬ ‫وﻣﺎ‬ ‫اﻧت‬ ‫ﺑﮫ‬ ‫اﻋﻠم‬ ‫اﻧك‬ ‫اﻧت‬ ‫اﻻﻋزاﻻﻛرم‬ ‫وﺻﻠﻰ‬ ‫ﷲ‬ ‫ﻋﻠﻲ‬ ‫ﺳﯾدﻧﺎ‬ ‫ﻣﺣﻣد‬ ‫وﻋﻠﻰ‬ ‫اﻟﮫ‬ ‫واﺻﺣﺎﺑﮫ‬ ‫رب‬ ‫واﻟﺣﻣد‬ ‫وﺳﻠم‬ ‫اﻟﻌﻠﻣﯾن‬ . सलातूल फातमातुज़ ज़हरा हजरत शेख अबु का ़ िसम से मंकुल है के एक रोज़ मने स यदा फातमा ज़हरा रदी अ लाह तआला अनह वाब म देखा बाद सलाम के मने अज़ िकया के ए खातूने ज नत आप िकस चीज़ को यादा दो त रखती है फरमाया सै यदह कौनैन के दो त रखती हं शाबान के महीने म आठ रकात एक सलाम चार का ़ दा के साथ और हर रकत म बाद अलहमद के सूरह इखलास 11 बार पढ़े। जो कोई यह नमाज़ माहे शाबान म पढ़े और मुझे उसका सवाब ब शे तो ऐ अबू का ़ िसम म हरिगज़ कदम ना रखूंगी ज नत म जब तक िक उसक शफाअत ना करवालूं, अ सर सलहा यह नमाज 15 व शाबान को अदा फरमाते ह मुबारक िदन माहे शाबानुल मुअज़ज़म क पं हव तारीख को यह रोजा रखने क अहादीस म स त ताक द आई है दुआ है या अ लाह तआला हम तमाम मुसलमान को नेक तौफ क अता फरमाए आमीन
  • 17. 15 माहे रमजा ़ नुल मुबारक का चांद हजरत अनस िबन मािलक रदी अ लाह तआला अनह रवायत है िक जब माहे िसयाम का चांद नजर आता था तो हजूर सरवरे कायनात स ल लाहो अलेही वस लम यह दुआ पढ़ते थे ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫ﺑﺎرك‬ ‫ﻟﻧﺎ‬ ‫ﻓﻲ‬ ‫رﻣﺿﺎن‬ ‫و‬ ‫ﺳﮭﻠﻧﺎ‬ ‫اﺷﻛﺎﻟﻧﺎ‬ तजुमा ऐ अ लाह हमारे िलए माहे िसयाम म बरकत अता कर दीिजए और हमारी मुि कल आसान कर दीिजए हदीस शरीफ आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम का है के माहे रमजानुल मुबारक को तमाम महीन पर ऐसी फजीलत है जैसी अ लाह तआला को तमाम मखलूक पर. और यह भी फ़रमाया हजूर नामदार स ल लाहो अलेही वस लम ने के रमजान मुबारक का चांद होते ही शयातीन कैद कर िदए जाते ह और दोज़ख के दरवाजे बंद कर िदए जाते ह ज नत के दरवाजे खोल िदए जाते ह और हर रोज हक़ सुबहानह तआला बहत से गुनाहगार को अजा ़ ब से िनजात देता है और नेक काम करने वाल को सवाब दस गुना आता फरमाता है और बरकत नािजल फरमाता है उ मत क तम ना हजूर अकरम ने इरशाद फरमाया के अगर लोग यह मालूम हो जाए िक माहे रमजानुल मुबारक या चीज है तो मेरी उ मत यह तम ना करेगी सारा साल रमजान ही हो जाए I खताओंका माफ होना हदीस शरीफ म आया है िक इस महीने म अ लाह तआला मुसलमान क तरफ मुतव जा होता है और खताओंको माफ फरमाता है I सबर का बदला ज नत है हजूरे अकरम स ल लाह अलैहे वस लम का इरशाद है के यह महीना स का है और स का बदला ज नत है और इसी महीने म मोिमन का र क़ बढ़ा िदया जाता है I
  • 18. 16 रहमत मगिफरत दोजख़ से आजादी हदीस शरीफ म आया है या इस महीने के अ वल दस िदन (पहले अशरे) म रहमत बरसती है दूसरे अशरे म मगिफरत होती है और तीसरे अशरे म दोज़ख़ से आजादी िमलती है I अ लाह तआला क 15 रहमत माहे रमजानुल मुबारक म अ लाह तआला अपने रोजा ़ दार बंद पर पं ह रहमत नाि ़ जल फरमाता है (1) रज़क़ यादा होता है (2) माल ओ ज़र म यादती होती है (3) जो खाना खाया जाता है सब इबादत म िलखा जाता है (4) कुल आमाले नेक का अजर कई गुना होता है (5) कुल फ़ र ते ज़मीन व आसमान के रोजादार के िलए ब शीश मांगते ह (6) शैतान को कैद कर िदए जाते ह (7) रहमत के दरवाज़े कुशादा होते ह (8) ज नत के दरवाज़े ख़ोल िदए जाते ह और दोजख दरवाज़े बंद िकए जाते ह (9) हर रात म सात लाख गुनहगार दोजख से आज़ाद होते ह (10) हर जु मा क रात म इस क़दर दोजखी दोजख से आज़ाद होते ह िजतने सात िदन म आज़ाद होते ह यानी 49 लाख (11) आिखरी रात रमजान को तमाम गुनाह लोग के ब शे जाते ह (12) हर रोज बिह त को आ आरा ता िकया जाता है (13) रोजेदार क दुआएं कुबूल होती है (14) रोजेदार को अ लाह तआला क खुशनुदी हािसल होती है (15) रोजेदार को अ लाह तआला का दीदार नसीब होता है
  • 19. 17 पांच मकसूस चीज जो उ मते मुह मदी से पहले िकसी उ मत को नह िमली हजरत अबू हरैरा रदी अ लाह अनह ने हजुर अकरम स ल लाह अलैहे वस लम से नक़ल िकया "के मेरी उ मत को रमजान शरीफ के बारे म पांच चीज मकसूस तौर पर दी गई ह जो पहली उ मत को नह िमली : 1) रोजादार के मुंह क बू अ लाह तआला के नजदीक मुशक से यादा पसंद है 2) रोजेदार के िलए द रया क मछिलयां तक दुआ करती है 3) ज नत उनके िलए हर रोज़ आरा ता क जाती है उस माह म सरकश शयातीन कै द कर िदए जाते ह (4) रमजानुल मुबारक क आिखरी रात म रोजेदार के िलए मगिफरत क जाती है 3 आदिमय क दुआ रद नह होती एक रोजादार क दुआ इफतार के व त, दूसरे आिदल बादशाह क , ितसरे मजलूम क इस मुबारक महीने म हर रात और हर िदन म हर मुसलमान क एक दुआ ज र कबूल होती है यही एक महीना है िजसके िदन और रात दोन फजीलत वाले ह साल का िदल आंहजरत स ल लाह अलैिह वस लम का इरशाद है के रमजान साल का िदल है जब वह सलामत रहता है तो तमाम साल सलामत रहता है हजरत मूसा अलेही सलाम क आरजू हजरत मूसा अलैिह सलाम ने मुनाजात क के इलाही उ मते मोह मद स ल लाह अलैहे वस लम को कौन सा महीना अता होगा ? ह म हआ के मूसा अता िकया है हमने उनको महीना रमजानुल मुबारक का I मूसा अलैिह सलाम ने अज िकया इलाही या फजीलत है इस महीने क ? इरशाद हआ है "ऐ मूसा फजीलत रमजानुल मुबारक क ऐसी है ऊपर तमाम महीन के जैसी मेरी है तमाम मखलूक पर" हजरत मूसा अलैिह सलाम ने अज िकया इलाही मुझको भी उ मते मोह मिदया स ल लाह अलैहे वस लम म कर के म उस सवाब से मह म ना रहं !
  • 20. 18 एक अ छी िमसाल अ लामा इ ने जाफरी बु तान अलवाजी ़ न म तहरीर फरमाते ह के साल के बारह महीने हजरत याकूब अलैिह सलाम के बारह बेट क मािनंद है के उनम से िजस तरह यूसुफ अलैिह सलाम उन को सबसे यादा महबूब थे इसी तरह रमजानुल मुबारक का महीना भी अ लाह तआला के पास सबसे यादा महबूब है यूसुफ अलैिह सलाम के दुआ से अ लाह तआला ने िजस तरह उनके गयारह भाइय को ब श िदया था उसी तरह अ लाह तआला गयारह माह के गुनाह रमजानुल मुबारक क बरकत से माफ कर देता है मेरी उ मत का महीना आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम का इरशादे मुबारक है के रजब अ लाह तआला का महीना है शाबानुल मुअ ज़म मेरा महीना है और रमजानुल मुबारक मेरी उ मत का महीना है रजब क फजीलत तमाम महीन पर ऐसी है जैसी कुरान शरीफ क फजीलत तमाम िकताब पर और शाबानुल मुअ ज़म को दूसरे महीन पर वैसी ही बुजुग है जैसे तमाम अंि बया पर मुझे. और रमजानुल मुबारक को तमाम महीन पर ऐसी ही फजीलत है जैसे अ लाह तआला को तमाम मखलूक पर I हजूरे अनवर स ल लाहो अलेही वस लम ने फरमाया अ लाह तआला फरमाता है के हर एक अमल इ ने आदम का बढ़ा िदया जाता है एक नेक क दस नेिकया िलखी जाती है और उससे भी यादा यहां तक के साथ सौ तक मगर रोजा का सवाब इतना है उसक हद को म ही खूब जानता हं और उसका बदला अपने बंद म खुद दूंगा, हम मुसलमान पर अ लाह तआला ने रहमतुलिलल आलमीन स ल लाह अलैहे वस लम रहमत वाले महीने के रोजे फज िकए ह वह बहत ही बा बरकत महीना है और इस कदर फजा ़ इल उस मुबारक महीने के ह िजनका बयान करना इमकाने बशरी से बाहर है खुद उस क फजीलत म अ लाह तआला इरशाद फरमाता है ‫ﺷﮭر‬ ‫رﻣﺿﺎن‬ ‫اﻟذي‬ ‫اﻧزل‬ ‫ﻓﯾﮫ‬ ‫اﻟﻘران‬ ‫ھدى‬ ‫ﻟﻠﻧﺎس‬ ‫وﺑﯾﻧﺎت‬ ‫ﻣن‬ ‫اﻟﮭدى‬ ‫واﻟﻔرﻗﺎن‬
  • 21. 19 (तजुमा) रमजानुल मुबारक का महीना (ऐसा बा बरकत है) के िजसम कु रान मजीद नािजल हआ जो लोग का रहनुमा है और उसम िहदायत व इि तयाजे हक़ व बाितल साफ-साफ ह म है मुसलमान । रमजानुल मुबारक का महीना तु हारे पास आया जो बरकत वाला है, इस मुबारक महीने म अ लाह तआला रहमत के साथ तु हारे तरफ मुतव जा होता है और तुम पर मेहरबानी फरमाता है तु हारे गुनाह को ब शता है, तु हारी दुआएं कुबूल फरमाता है और यह देखता है िक तुम लोग रमजानुल मुबारक के वा ते या- या शौक और गबत रखते हो और सवाब के काम म िकतनी मश कत बदा त करते हो I अ लाह तआला फ र त के सामने तु हारी तारीफ करता है देखो मेरे बंदे भूख और यास क तकलीफ उठा कर अपनी ज रत को छोड़कर मेरी इबादत म कै से लगे हए ह. हमको भी लािजम है या इस मुबारक महीने म अ लाह और उसके रसूल के अहकाम पूरे पूरे बजा लाने क कोिशश कर सु ती और गफलत नाफरमानी से दूर रहकर इस मुबारक महीने के एक-एक िमनट क कदर कर दुआ है के अ लाह तआला हम तमाम मुसलमान को रहमतु लील आलमीन के इस मुबारक महीने म इबादत और नेक काम करने क तौफ क अता फरमाए और इस बात क कोिशश करनी चािहए के कह रमजानूल मुबारक क खसती के साथ हमारी इबादत और नेक काम भी खसत ना हो जाएं। रोज़ा क े फजा ़ इल आंहजरत स ल लाह अलैिह वस लम ने फरमाया हक़ तआला का इरशाद है के "रोजा खास मेरे िलए है और उसका बदला म खुद दूंगा" फरमाया आंहज़रत स ल लाह अलैिह वस लम ने के "मेरी उ मत क शनाखत रोज़ा है" इसिलए हर उ मती को अपने अंदर यह अलामत कायम रखना चािहए हदीस शरीफ म एक जगह आया है के "कयामत के िदन एक गुनाहगार दोजख म डाला जाएगा आग उससे भागेगी मािलक यानी दरोगाए दोजख आग से कहेगा के तु इसे य नह पकड़ती ? आप जवाब देगा देगी म इसे य कर पकड़ सकती हं जबके इसके मुंह से रोजे क बू आती है मािलक उस श स से द रयाफत करेगा या तू रोजादार मरा था ? कहेगा हां उसके बाद उसको ज नत म जाने का ह म होगा I रोजेदार के वा ते कयामत के िदन अश के नीचे सतरह (17) द तरखान चुने जाएंगे वह लोग उस पर बैठकर खाना खाएंगे और सब लोग अभी िहसाब ही म फंसे ह गे, गैब से उनको जवाब िमलेगा के यह लोग दुिनया म
  • 22. 20 रोजा रखते थे उसी का यह बदला है और तुम दुिनया म रोजा से भागते थे इसिलए अब भी सर गदा और परेशान हो. हजूर स ल लाहो अलेही वस लम ने फरमाया रोजेदार का खाना-पीना, ह ा के सोते रहना भी इबादत है और सांस लेना त बीह है और उसक दुआ फौरन कुबूल होती है, और रोजादार के माल का सवाब कई गुना िमलता है I हजूर स ल लाह अलेही वस लम ने फरमाया बिह त के आठ दरवाजे ह उनम एक का नाम रयान है ज नत म उस दरवाज़े से िसफ रोजादार ही दािखल ह गे कयामत म एक श स को फ र ते आग के गुजो ़से मारते हए लाएंगे आंहजरत स ल लाह अलैहे वस लम से फ रयादी होगा, आप द रयाफत फरमाएंगे के उसने या गुनाह िकया है ? फ र ते अज़ करगे हजूर इसने रमजान का महीना पाया मगर उसम अ लाह तआला क नाफरमानी यानी रोजा नह रखा. आप उसक शफाअत का इरादा फरमाएंगे तो फ र ते िफर अज करगे या मोह मद स ल लाह अलैिह वस लम रमजान इसका दु मन है सरकारे नामदार स ल लाह अलैहे वस लम यह सुनकर फरमाएंगे के रमजान िजसको दु मन रखता हो म उससे बरी हं उसक शफाअत मेरी िज मा नह I हम मुसलमान को चािहए िक अपना-अपना जायजा ल आिखरत म शफाअत के उ मीदवार गौर फरमा ल के या रमजानुल मुबारक म रोजा नह रहने के बावजूद भी शफाअत के उ मीदवार ह "अ लाह तआला हम तमाम मुसलमान को रोजा रहने और इबादत करने क तौफ क अता फरमाए" ताके कयामत म हजूरपुर नूर स ल लाह अलैिह वस लम के शफाअत नसीब हो आमीन िबसिम लिहरहमािनररहीम फजा ़ इले शबे क़दर हजूर नबी करीम स ल लाह अलैहे वस लम को एक िदन खयाल हआ के अ लाह तआला मेरी उ मत के साथ या सलूक फरमाएगा. तभी वही नािज़ल हई "या मुह मद स ल लाह अलैहे वस लम आप कब तक उ मत का गम खाएंगे म आपक उ मत को दुिनया से ना उठाउंगा यहां तक के उनको दुिनया म अंि बया का दजा ना दूं अंि बया क
  • 23. 21 शान यह है िक उन पर फ र ते वही और सलाम लेकर आते ह आप क उ मत पर भी इसी तरह शबे कदर म फ र ते नािज़ल ह गे और मेरी तरफ सलाम और रहमत पहंचाएंगे हदीस शरीफ म आया है के शबे कदर दुसरी रात से के िलहाज से अफजल है 1) अललाह तआला क तजलली उस रात म शाम से सुबह तक बंदो क तरफ मुतवजजा रहती है और अपनी बारगाह यजदी म कुरबे मनवी नसीब होता है 2) अरवाह मलाइका सालेहीन और इबादत गुजार बंद क मुलाकात के िलए आसमान से जमीन पर आते ह और उनके कुरब क वजह से इबादत क कैिफ़यत वह हालात दूसरी रात क बिन बत बदरे जहां बढ़ जाती है 3) शबे कदर म कुरान शरीफ लोहे महफूज से आसमान से दुिनया पर नािजल हआ है यह वह फजीलत है िजसक हद व आिफयत नह 4) शबे कदर अफ़ज़ल है हर शबे कदर के 30 हजार िदन और 30 हजार रात से - य के हजार माह के इतने ही शब व रोज होते ह 6) हजूरे अनवर स ल लाह अलैहे वस लम ने इरशाद फरमाया िजसने शबे कदर को ईमान व यक न और िन बते खािलस के साथ कयाम िकया यानी िज व नमाज व इबादत म शब बेदारी क , उसके तमाम गुजरे हए गुनाह ब श िदए जाते ह, नबी करीम स ल लाह अलैहे वस लम ने फरमाया शबे क को रमजान के आिखरी अशअरे िक ताक रात म तलाश करो सबका इस पर इ ेफाक है के शबे क़दर माहे रमजान उल मुबारक क सताइसव रात है उस एक रात म इबादत करने का सवाब हजार माह क इबादत से यादा है इबादाते शबे कदर 1) शबे कदर म दो रकात पढ़े हर रकात म बाद अलह द के सुरह इनना अनजलना एक बार और सुरह इखलास सौ बार बाद सलाम के सौ बार दु द शरीफ पढ़े सवाबे अजीम हािसल हो. 2) चार रकात एक सलाम से पढ़े हर रकात म बाद अलह द के इनना अनजलना एक बार और सुरह इखलास सौ बार अ लाह तआला उस नमाज क बरकत से तमाम गुनाह माफ फरमा आएगा और बिहशते मुअ ला म मक़ाम अता फरमाएगा.
  • 24. 22 3) चार रकात पढ़े हर रकात म सूरह फाितहा के बाद इ ना अंजालना तीन बार सूरह इखलास 17 बार पढ़े अ लाह तआला सकराते मौत आसान करेगा और अजाबे क दूर फरमाएगा. 4) सो रकात पढ़े दो रकात क िनयत से हर रकात म बाद अलह द के इ ना अंजलना तीन बार सूरह इखलास दस बार पढ़े अ लाह तआला उस नमाज के पढ़ने वाले वह कसरे ज नत अता फरमाए 5) चार रकात एक सलाम से पढ़ हर रकात म बादल ह द के सूरह इ ना अंजालना तीन बार पड़े और सुरह इखलास पचास बार बाद सलाम के सजदे म जाकर दु द शरीफ पढ़कर जो दुआ मांगे कुबूल होगी 6) शबे कदर म रकात रकात पड़े हर रकात म सूरह फाितहा के बाद सूरह इ ना अंजलना सात बार और सो रहे इखलास सात बार पढ़े बादे फरागत इसतगफार और दु द शरीफ पढ़े अ लाह तआला उस नमाज के बढ़ने वाले और उसके मां-बाप को ब श देगा 7) शबे कदर म करीब सुबह सािदक चार रकात एक सालम से पढ़े और हर रकात म बाद अलह द के सुरह इ ना अंजलना तीन बार और सूरह इखलास पांच बार पढ़े बाद ख़तम नमाज़ सजदह करे और सजदह म सु हान अ लाह (41) बार कहे अ लाह तआला उसक तमाम हाजत पूरी करेगा और दुआ मकबूल होगी। शबे कदर म सलातू त बीह ज़ र पढ़े और यह दुआएं कसरत से पढ़ ١ ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫اﻧك‬ ‫ﻋﻔو‬ ‫ﺗﺣب‬ ‫اﻟﻌﻔو‬ ‫ﻓﺎﻋف‬ ‫ﻋﻧﻰ‬ ٢ ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫اﻧﻲ‬ ‫اﺳﺎﻟك‬ ‫اﻟﻌﻔو‬ ‫واﻟﻌﺎﻓﯾﺔ‬ ‫واﻟﻣﻌﺎﻓﺎت‬ ‫ﻓﺎﻟدﯾن‬ ‫واﻟدﻧﺎواﻻﺧرة‬ ٣ ‫اﺷﮭد‬ ‫ان‬ ‫ﻻ‬ ‫اﻟﮫ‬ ‫اﻻ‬ ‫ﷲ‬ ‫اﺳﺗﻐﻔر‬ ‫ﷲ‬ ‫اﺳﺎﻟك‬ ‫اﻟﺟﻧﮫ‬ ‫واﻋوذ‬ ‫ﺑك‬ ‫ﻣن‬ ‫اﻟﻧﺎر‬ ٤ ‫اﻟﻠﮭم‬ ‫اﺟرﻧﺎ‬ ‫ﻣن‬ ‫اﻟﻧﺎر‬ ‫ﯾﺎ‬ ‫ﻣﺟﯾر‬ ‫ﯾﺎ‬ ‫ﻣﺟﯾر‬ ‫ﯾﺎ‬ ‫ﻣﺟﯾر‬
  • 25. 23