Chapter 2 era of one party dominance , xii pol science
1. 1
स्वतंत्र भारत में राजनीतत
अध्याय – 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर
by
Dr Sushma Singh
(Core Academic Unit DOE GNCT of Delhi)
पाठ के अंत में हम जान पाएंगे:
भारतीय नेताओं की स्वतन्त्रता आंदोलन के समय से ही लोकतन्त्र में गहरी प्रततबद्धता (आस्था)
थी । इसललए भारत ने स्वतन्त्रता के बाद लोकतन्त्र का मागग अपनाया जबकक लगभग उसी
समय स्वतंर हुए कई देशों में अलोकतांत्ररक शासन की व्यवस्था कायम हुई । 26 जनवरी
1950 को संववधान लागू होए के समय देश में अन्त्तररम सरकार थी । अब संववधान के अनुसार
नयी सरकार के ललए चुनाव करवाने थे । जनवरी 1950 में चुनाव आयोग का गठन ककया गया
। सुकु मार सेन पहले चुनाव आयुक्त बने ।
1. चुनाव आयोग की चुनौततयााँ
1 चुनाव आयोग की चुनौततयााँ
2 कांग्रेस के प्रथम तीन आम चुनावों में वचचस्व / प्रभुत्व के कारण
3 प्रमुख ववपक्षी दल
1
• स्वतंर
और
तनष्पक्ष
चुनाव
करवाना।
2
• चुनाव क्षेरों
का
सीमांकन ।
3
• मतदाता
सूची
बनाने के
मागग में
बाधाए ।
4
• आधधकारर
यों और
चुनाव
कलमगयों को
प्रलशक्षक्षत
करना ।
5
•कम
साक्षरता के
चलते मतदान
की ववशेष
पद्धतत के
बारे में
सोचना ।
2. 2
अक्तूबर 1951 से फ़रवरी 1952 तक प्रथम आम चुनाव हुए । पहले तीन आम चुनावों
में भारतीय राष्रीय कांग्रेस का प्रभुत्व रहा । भारत में एक दल का प्रभुत्व दुतनया के
अन्त्य देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से इस प्रकार लभन्त्न रहा । मैक्क्सको में PRI की
स्थापना 1929 में हुई, क्जसने मैक्क्सको में 60 वषों तक शासन ककया । परंतु इसका
रूप पररपूर्ग तानाशाही का था । बाकी देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत
पर कायम हुआ । चीन, क्यूबा और सीररया जैसे देशों में संववधान लसर्ग एक ही पार्टी
को अनुमतत देता हैं । मयांमार, बेलारूस और इरीरीया जैसे देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व
कानूनी और सैन्त्य उपायों से काम हुआ । भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतन्त्र एवं
स्वतंर तनष्पक्ष चुनाओ के होते हुए रहा हैं ।
2. कांग्रेस के प्रथम तीन आम चुनावों में वचचस्व / प्रभुत्व के कारण
कांग्रेस की प्रकृ तत एक सामाक्जक और ववचारात्मक गठबंधन की हैं । कांग्रेस में ककसान
और उद्योगपतत, शहर के बालशंदे और गााँव के तनवासी , मजदूर और माललक एवं मध्य
तनमन और उच्च वगग तथा जातत सब को जगह लमली । कांग्रेस ने अपने अंदर गरम
पंथी और नरम पंथी , दक्षक्षर् पंथी , वाम पंथी और मध्य माधगगयों को समाहहत ककया
। कांग्रेस के गठ बंधनी स्वभाव ने ववपक्षी दलों के सामने समस्या खड़ी की और कांग्रेस
को असाधारर् शक्क्त दी । चुनावी प्रततस्पधाग के पहले दशक में कांग्रेस ने शासक -दल
की भूलमका तनभाई और ववपक्ष की भी । इसी कारर् भारतीय राजनीतत के इस काल
खंड को कांग्रेस -प्रर्ाली कहा जाता हैं ।
3. 3
3. प्रमुख ववपक्षी दल
क्रम
संख्या
दल का
नाम
स्थापना वर्च
/वववरण
प्रमुख नेता प्रमुख नीततयााँ
1 समाजवादी
दल
1934 में कांग्रेस
का एक गुर्ट तथा
1948 में कांग्रेस
से अलग नया दल
बना ।
जय प्रकाश
नारायर्, अशोक
मेहता, एम एन
जोशी, राम
मनोहर लोहहया
आहद
लोकताक्न्त्रक समाजवाद
में ववश्वास ॰
2 भारतीय
सामयवादी
दल
1935 में कांग्रेस
में एक समूह ,
हदसंबर 1941 में
कांग्रेस से अलग
और 1954 में
चीन युद्ध के
कारर् ववभाजन ।
ए के गोपाल, एस
ए डॉग, पी सी
जोशी अजय
घोष, ई एम एस
नमुदरीपाद आहद
उत्पादन के साधनों पर
सरकार का तनयंरर् ।
सावगजतनक ववतरर्
प्रर्ाली मजबूत । कृ षकों
तथा मजदूर हहतों का
समथगन । यू एस ए तथा
पक्श्चमी देशों का ववरोध
।
3 स्वतंर
पार्टी
अगस्त 1959 सी राजगोपाला
चारी, के एन
मुंशी, एम जी
रंगा, मीनू
मसानी आहद
सरकार का कम हस्तक्षेप
। मुक्त अथग व्यवस्था ।
मुक्त बाजार । गुर्ट
तनरपेक्षता की आलोचना
। यू एस ए से लमरता ।
ततब्बत की आजादी ।
4 भारतीय
जनसंघ
1951 श्यामा प्रसाद
मुखजी, दीन
दयाल उपाध्याय
बलराज मघोक,
अर्टल त्रबहारी
वाजपेयी लाल
कृ ष्र् आडवार्ी
आहद
अखंड भारत , एकात्मक
शासन हहन्त्दी राष्र भाषा
, अनुच्छेद 370 का
ववरोध , समान नागररक
सहहता, परमार्ु हधथयार
तनमागर् , सरकार का कम
हस्तक्षेप ( एक देश , एक
संस्कृ तत, एक राष्र )