When we are asked what you learned in maths in school, often the formula 2pr, r2 etc. comes in our mind. There is no discussion on what is in these sutras, only the values of or 3.14 are given. is the sixteenth letter of the Greek language. Dinesh Mohan Joshi | Girishbhat B "π Evolution of in India" Published in International Journal of Trend in Scientific Research and Development (ijtsrd), ISSN: 2456-6470, Volume-6 | Issue-5 , August 2022, URL: https://www.ijtsrd.com/papers/ijtsrd50621.pdf Paper URL: https://www.ijtsrd.com/mathemetics/other/50621/π-evolution-of-in-india/dinesh-mohan-joshi
2. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1195
Figure 1: पीरुध-व्यास सम्बन्ध
भारतृय परम्परा में याग इत्यािद िा अत्युधि महत्वपूिा स्थान युगोों
युगोों से रहा है और िेदृ िे अभाि में ििसृ याग िी िल्पना िरना
िनरथाि है । िेदृिनमााि िरने िे ुलये एि िनुित प्रिार िे
क्षेत्रफल िा िनधाारि ििया जाता है । िई िेिदयाों िगाािार हैं, िई
आयतािार एिों िई िृत्तािार, इसिे प्रमाि हमें शुल्बसूत्रोों में प्रचुर
मात्रा में ऊपलब्ध होते हैं । ििसृ भृ िृत्त िी पीरिल्पना हम π िे
अभाि में िर हृ नहृों सिते अतः यह ुसि होता है िि शुल्बिारोों
िो π िे मान िा ज्ान बहुत पहले से था तभृ िह िृत्त इत्यािद िी
आिृ ितयाों िा िनमााि िर पाते थे । प्रायः सभृ शुल्बसूत्रोों जैसे
बौधायन, आपिम्ब, िात्यायन एिों मानिशुल्बशसूत्रोों में ुभन्न
प्रिार िी आिृ ितयोों िी िेिदयोों िे िनमााि िी चचाा िी गई है ।
िेद िे छः अङ्ग हैं ुजसमें िल्प िा बहुत महत्त्वपूिा स्थान है ।
िल्प िे अिगात श्रौत, गृह्य, धमा एिों शुल्बसूत्र आते हैं । शुल्ब िा
सम्बन्ध िेदृ िनमााि से सम्बून्धत ििुधयोों एिों िनयमोों से है ।
शुल्बसूत्र िा सटृि अथा समझने िे ुलये शुल्ब और सूत्र िो पृथि्
पृथि् समझना बहुत आिश्यि है । ििुतः शुल्ब और सूत्र इन
दोनोों से रज्जु िा हृ बोध होता है िफर भृ दोनोों समानाथाि शिोों
िा एि स्थान में प्रयोग ििसृ ििशेष अथा िो द्योितत िरता है ।
हम क्रमशः शुल्ब एिों सूत्र िे भाि िो समझने िा प्रयास यहाों
िरेगें ।
शुल्ब शि िई अथों िो द्योितत िरता है । धातुिृित्त2 िे अनुसार
शुल्ब धातु मान अथा में प्रयुक्त होतृ है । िात्यायन शुल्बसूत्र3 िी
टृिा में ििद्याधरशमाा ने भृ मान अथा में हृ ''शुल्ब माने । शुल्बनों
शुल्बः '' प्रयोग ििया है । अथाात् ुजससे मापन ििया जाये ।
2 पृ. 545: भारतृयप्रिाशनम्, िारािसृ, 1964.
3 िात्यायनशुल्बसूत्र. 7. 39.
शुल्बसूत्रोों में मापन िे ुलये रज्जु एिों दण्ड िा ऊपयोग ििया गया
है । अब सूत्रशि िा अथा िरना भृ अिनिाया है । हम पहले भृ
बता चुिे हैं िि सूत्रशि भृ शुल्ब िा पयाायिाचृ है क्यूोंिि
माधिृय धातुिृित्त में सूत्र शि िा प्रयोग िेष्टन एिों ग्रथन िे अथों
में प्रयुक्त हुआ है । ग्रथन से अथा सोंुक्षप्त िाक्य से है । मनृिषयोों ने
सूत्र िा लक्षि इस प्रिार ििया है-
स्वल्पाक्षरमसुिग्धों सारििद्वश्वतोमुखम्।
अिोभमनिद्यों च सूत्रों सूत्रििदो ििदुः ॥4
सोंस्कृ त सािहत्य में जहाों भृ सूत्र शि िा प्रयोग होता है ऊसिा
अुभप्राय सोंुक्षप्तता से है । अितः शुल्बसूत्रोों से अुभप्राय िेिदयोों
एिों यज्िु ण्डोों िे मापन एिों िनमााि िा सहायि ग्रन् । ितामान में
बौधायन, आपिम्ब, िात्यायन, मानि, मैत्रायि, िारह एिों िाधूल
शुल्बसूत्र हमें ऊपलब्ध होते हैं । बौधायन शुल्बसूत्र सबसे प्राचृन
माना जाता है, इितहासिार इसिा समय 800 ईसा पूिा मानते हैं
। इन सब में बौधायन, आपिम्ब, िात्यायन एिों मानि शुल्बसूत्र
बहुत प्रुसि हैं ।
हम पहले भृ बता चुिे हैं िि शुल्बसूत्रोों िा मुख्य ऊद्देश्य ििििध
प्रिार िी िेदृ िनमााि से है । इन िेिदयोों िे िनमााि िे ुलये िगा,
आयत, िृत्त, ित्रभुज, िद्वसम चतुभुाज (isosceles trapezium),
ित्रसम चतुभुाज (equitrilateral trapezium), ििषम चतुभुाज
(quadrilateral of unequal sides) इत्यािद िा ज्ान
अत्यािश्यि है । इसमें शुल्बिारोों ने ििििध आयाम िी िेिदयोों िी
िनमााि प्रिक्रया िा ििान ििया है । इसिे साथ साथ िगा िा िृत्त
में पीरितान, िृत्त िा िगा में पीरितान, आयत िा िगा में, िगा िा
आयत में, िोिट-ििा न्याय इत्यािद ििषयोों पर गुितृय चचाा
िििार से िी है ।
शुल्बसूत्रोों में √2 िा मान
π िे मान िे सिभा में शुल्बिारोों ने √2 िा मान प्राप्त ििया एिों
इसिा प्रयोग िृत्त िे व्यासाथा िो ुसि िरने िे ुलये ििया गया ।
प्रायः सभृ शुल्बिारोों ने √2 िी पीरभाषा एि हृ प्रिार से दृ है-
समचतुररत्रस्याक्ष्णया रज्जुिद्वािरिृ ।5
िगा िी अक्षण्यारज्जु िद्विरिृ होतृ है ।
समचतुरस्र अथाात् िगा िी भुजा िा मान एि मान लेने पर ऊसिे
ििा िा मान √2 होगा । बौधायन एिों िात्यायन शुल्बसूत्र में √2
िा मान इस प्रिार बताया गया है-
4 ब्रह्मसूत्रमध्वभाष्यम्, 1. 11 प्रिािना पृ. 3; शि 1805, ई.
बम्बई; न्यायिोशः पृ. 1030, शि. 1850, पूना ।
5िात्यायनशुल्बसूत्र, 2.12.
3. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1196
प्रमािों तृतृयेन िधायेत्तच्च चतुथेनात्मचतुुरोंशोनेन ।6
(िगा िी) प्रमाि भुजा िी लम्बाई िी (इसिे ) एि ितहाई से िृिि
िरें और इसमे इसिा (एि ितहाई भाग िा) चौथाई भाग िमला दें
और इसिा भाग व्यििुलता िरें ।
यह सूत्र √2 िी व्याख्या िरता है । इसृ प्रिार अिग्रम सूत्र भृ
√2 िो पीरभािषत िरता है-
िरिृों तृतृयेन िधायेत्तच्च चतुथेनात्मचतुुरोंशोनेन । सििशेषः ।7
Figure 2: √2 साधन प्रिक्रया
√2 िा मान 5 दशमलि ति सहृ है । इसिो हम प्रमािोों से
ुसि िर सिते हैं ।
ुचत्र 2 में ABCD एि िगा है । इस िगा िे साथ हमने एि और
िगा BDEF बनाया । िगा BDEF िो बराबर तृन भागोों में
आयत में ििभाुजत िरिे क्रमशः ऊनिो I, II एिों III नाम िदये
। आयत III िो पुनः समान तृन भागोों में ििभाुजत ििया ुजनिो
क्रमशः III1, III2 एिों III3 नाम िदये । पुनः III2 एिों III3 िो
चार चार समान भागोों में बाोंटा । भाग I िो हमने BD िे दाउ
तरफ लगा िदया । भाग II िो AB िे ऋपर लगा िदया । भाग
III1, II जहाों लगाया है ऊसिे दाउ तरफ लगा िदया । III2 िे
चारोों भागोों िो I िे दाउ तरफ एि एि िरिे लगा दें । III3 िे
चारोों भागोों िो आयत II जहाों लगाया है ऊसिे ऋपर लगा दें ।
एसा िरने पर हम पाते हैं िि दायें िोने H िे पास एि छोटा सा
भाग ििसृ भृ भाग िे अिगात नहृों आता है । एसा भाग हमेशा
शेष रहेगा हृ, इसिा मान न्यूनाितन्यून हो सिता है परिु शून्य
िभृ नहृों हो सिता । ुचत्र 2 से िे माध्यम से ऋपर िदया गया
सारा िििरि स्पष्ट हो जायेगा ।
6बौधायनशुल्बसूत्र, 1.61.
7िात्यायनशुल्बसूत्र, 2.13.
शुल्बसूत्रोों में िगा िो िृत्त में एिों िृत्त िो िगा में पीरिितात िरने िे
सिभा में π िा मान ुसि ििया गया है । नृचे हम दोनोों हृ
पीरूस्थितयोों में π िा मान प्रमािसिहत दशाायेंगे । िृत्त िो िगा में
अथिा िगा िो िृत्त में पीरितान िरने िा मुख्य िारि िेदृ िनमााि
हृ था । ऌग्वेद में मुख्य रूप से गाहापत्य, आहिनृय एिों दुक्षि
िेिदयोों िी चचाा िी गई है । इनिा िनमााि इस प्रिार से ििया
जाता था िि चाहे िेदृ ििसृ भृ आिार (िगा, िृत्त, अधािृत्त
इत्यािद) िी हो परिु ऊनिा क्षेत्रफल समान होना चािहये ।
िगा िो िृत्त में पीरिितात िरने िी ििुध
िगा िो िृत्त में पीरिितात िरने िी ििुध िी चचाा ििशेषरूप से
बौधायन, आपिम्ब एिों िात्यायन शुल्बसूत्रोों में िी गई है जो इस
प्रिार है -
चतुरस्रों मण्डलों ुचिीषान्त्रक्ष्णयाधं मध्यात्
प्राचृमभ्यापातयेद्यदितुशष्यते तस्य सह तृतृयेन मण्डलों पीरुलखेत्
।8 िगा िा (समक्षेत्र) िृत्त खृोंचना हो तो अक्ष्णया िी आधृ
लम्बाई ुजतनृ (लम्बृ) रस्सृ (िगा िे ) मध्यिबिु से प्राचृ रेखा पर
रखें और (रस्सृ िा) जो भाग (पाश्वामानृ िे ) बाहर आता है ऊसिे
एि ितहाई भाग िे साथ (इस ित्रज्या से) िृत्त िनिालें ।
चतुरस्रों मण्डलों ुचिीषान् मध्यात् िोट्ाों िनपातयेत् । पाश्वातः
पीरिृ ष्याितशयतृतृयेन सह मण्डलों पीरुलखेत् । सािनत्या9 मण्डलम्
। याित् हृयते तािदागिु ।10
िगा िा (समक्षेत्र) मण्डल खृोंचने िा हो तो मध्यिबिु से आधा
ििा खृोंचे । िह पाश्वामानृ िे (मध्य पर) लािर इसिा जो भाग
(पृष्ठ्या िे ) बाहर आता है इसिे एि ितहाई भाग िे साथ मण्डल
खृोंचे । इससे समक्षेत्र मण्डल स्थूलमान िा (सूक्ष्ममान िा ?) प्राप्त
होता है । ुजस प्रमाि से क्षेत्रफल (िगा िे ुसरे िे पास) िम
होता है इस प्रमाि में िह पाश्वा भाग में अुधि होता है ।
चतुरस्रों मण्डलों ुचिषीन्मध्यादोंसे िनपात्य पाश्वातः पीरुलख्य तत्र
यदितीरक्त भिित तस्य तृतृयेन सह पीरुलखेत् स समाुधः ।11
िगा िा (समक्षेत्र) िृत्त खृोंचने िा हो तो मध्य से अोंस ति िी दूरृ
पाश्वामानृ िे मध्य पर लािर िहाों (इस दूरृ िा) ुजतना भाग
(पाश्वामानृ िे ) बाहर
8बौधायनशुल्बसूत्र, 1.58.
9सा िनत्या
10आपिम्बशुल्बसूत्र, 3.2.
11िात्यायनशुल्बसूत्र, 3.13.
4. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1197
Figure 3: िगा से िृत्त िनमााि ििुध
रहता है इसिे एि ितहाई भाग िे साथ िृत्त खृोंचें । यह ििन्यास
िी पिित है ।
अक्ष्णयाधं से अुभप्राय आधे ििा से है । शेष स्पष्ट है ।
ुचत्र 3 में ABCD एि िगा है ुजसिी भुजा िा मान 2a ुलया
गया है । अक्ष्णयाधा √2a है जो िि OA है | OA िो अधाव्यास
मान िर एि िृत्त िा िनमााि ििया जो िि िबिु E िो स्पशा
िरता है । अतः OA = OE. हमें यहाों EI िा मान चािहये जो
िि OE – OI अथाात्
EI = √2a - a = a(√2 - 1)
होता है । EI िो बराबर तृन भागोों में बाोंटा जो िि
समृिरि 2 िा मान समृिरि 3 में रखने पर r िा मान प्राप्त
होता है ुजसिा प्रयोग हम िृत्तक्षेत्रफल साधन में िरते हैं । हमने
िगा िी भुजा िा मान 2a स्वृिार ििया है । िृत्त और िगा िा
क्षेत्रफल समान िरने िे ुलये
शुल्बसूत्रभाष्यिार द्वारिानाथ ने ऋपर िदये गये π िे मान िो
सूक्ष्म िरने िे ुलये से समृिरि 3 िो गुिा ििया।
समृिरि 6 िा मान समृिरि 7 में रखने पर
πr² = िृत्त िृत्त िा क्षेत्रफल (7)
= (1.1284272)²a²
= π(1.27334790)a² (8)
िृत्त िा क्षेत्रफल प्राप्त हुआ । अब हमें िगा िे क्षेत्रफल िो िृत्त िे
क्षेत्रफल िे तुल्य िरना है अतः
इससे हमें π िा मान िमला जोिि 3 दशमलि ति सहृ है । यह
मान आयाभट िे π िे मान िे तुल्य हृ है ।
िृत्त िो िगा में पीरिितात िरने िी ििुध
िृत्त िो िगा में पीरिितात िरने िे सिभा में बौधायन, आपिम्ब
शुल्बसूत्रोों में ििुधयोों िा ििान ििया गया है जो क्रमशः इस प्रिार
हैं-
मण्डलों चतुरस्रों ुचिीषान् ििष्कम्भों पञ्चदशभागान् िृ त्वा द्वािुिरेच्छेषः
िरिृ ।12
िृत्त िा (समक्षेत्र) िगा खृोंचने िा हो तो (िृत्त िे ) व्यास िा 15
भाग िरें और दो भाग िाटिर शेष लम्बाई (िगा िी) िरिो होतृ
है ।
मण्डलों चतुरस्रों ुचिीषान् ििष्कम्भों पञ्चदशभागान् िृ त्वा द्वािुिरेत् ।13
त्रयोदशािुशष्यिे ।14 साऽिनत्या चतुरस्रम् ।15
मण्डल िा (समक्षेत्र) िगा िरने िा हो तो मण्डल िे व्यास िे 15
(सम) भाग िरें और ऊनमें से दो भाग घटाइये । तेरह भाग रहते हैं
। (इस लम्बाई िा) िगा स्थूलमान से (मण्डल िा समक्षेत्र होता
है) ।
12िात्यायनशुल्बसूत्र. 3.14.
13आपिम्बशुल्बसूत्र, 3.6.
14आपिम्बशुल्बसूत्र, 3.7.
15आपिम्बशुल्बसूत्र, 3.8.
5. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1198
अिप िा पञ्चदश भागान् िृ त्वा द्वािुिरेत् सैषाऽिनत्या चतुरस्रिरिृ
।16
अथिा (िृत्त िे व्यास िे ) 15 भाग िरें और इनमें से दो भाग
घटािर (शेष लम्बाई समक्षेत्र) िगा िी, स्थूलमान से, भुजा (िी
लम्बाई) होतृ है ।17
Figure 4: िृत्त से िगा िनमााि ििुध
सूत्र में “िरिृ” शि भुजािाचि है । यहाों पर िृत्त व्यास िो 15
भागोों में बाोंटने िे िनदेश िदये गये हैं । एिों इसिे 2 भागोों िो
घटाने पर िगा िी भुजा होगृ । नृचे िदये गये ुचत्र 4 िे अनुसार
ABCD िगा िी भुजा 2a है एिों d िृत्त िा व्यास (W E) है ।
बौधायन शुल्बसूत्र में प्रितपािदत िनयमानुसार
d िो 2r से स्थानािीरत िरने से
हमें यहाों िगा एिों िृत्त िे क्षेत्रफल में समानता िदखानृ होगृ ।
अतः
4a2 = πr2 ( 12 )
समृिरि 11 िा मान समृिरि 12 में स्थािपत िरने से
4 x 0.879782r 2 = πr2
इससे π िा मान 3.09 प्राप्त हुआ । शुल्बसूत्र भाष्यिार सुिरराज
ने
16बौधायनशुल्बसूत्र, 1.60.
17शुल्बसूत्रोों िे सभृ सूत्रोों िी िहिृ व्याख्या डॉ. रघुनाथ पुरुषोत्तम
िु लििी जृ िे ग्रन् "चार शुल्बसूत्र" से लृ गई है ।
इस शोधिाङ्क िो समृिरि 10 में जोडने पर π िा मान
3.1415124 प्राप्त ििया जो िि तृन दशमलि ति सहृ है ।
बौधायन ने π िे मान िे ुलये और भृ सूत्रोों िी चचाा िी है परिु
ििषय िििार िे भय से ऊनिी चचाा यहाों अपेुक्षत नहृों है।
जैनोों िे ग्रन् सूयाप्रज्िप्त एिों इसिे पूिा िे ग्रन् ज्योितषिरण्डि एिों
जम्बूद्वृपसमास में भृ पीरुध-व्यास अनुपात √10 िदया गया है ।
जैन गुितज् िृरसेन ने षट्खण्डागम िी टृिा धिला में पीरुध-व्यास
िे अनुपात िो इस प्रिार स्पष्ट ििया है-
व्यासों षोडशगुुितों षोडशसिहतों ित्ररूपैभाक्तम् ।
व्यासों ित्रगुुितों सूक्ष्मादिप तद्भिेत् सूक्ष्मम् ॥18
अथाात् जब 16 गुुित व्यास में 16 जोड िदये जायें एिों 113 से
भाग दे िदया जाये एिों पुनः ित्रगुुित व्यास िो जोडने पर (पीरुध)
सूक्ष्म होतृ है ।
इनिे बाद िाले आचायों जैसे िराहिमिहर (505 A. D),
ऊमास्वाित (2-5िृों शतािृ) ब्रह्मगुप्त (628 A. D) श्रृधर (900
A. D) इत्यािद ने भृ π िा मान √10 हृ स्वृिार ििया है ।
आयाभट प्रथम ने 5िृों शतािृ में π िा मान अपने ग्रन्
आयाभटृय में इस प्रिार ऊिृत ििया है-
चतुरुधिों शतमष्टगुिों द्वाषिष्टिथा सहस्रािाम् ।
अयुतद्वयििष्कम्भस्यासन्नो िृत्तपीरिाह ॥19
सौ में धन चार गुुित आठ िो बासठ हजार में जोडें । यह मान
लगभग ऊस िृत्त िी पीरुध होगृ ुजसिा व्यास बृस हजार है ।
पीरुध और व्यास िे इस अनुपात िो हृ π िी सोंज्ा दृ गई है ।
सूत्रानुसार
प्राप्त हुआ जो िि
18षट्खण्डागम, Vol. IV. पृ. 42.
19 आयाभटृय, गुितपाद श्लोि 10.
6. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1199
π िे आसन्न है । समृिरि 15 में c पीरुध एिों d व्यास है एिों है
। इस श्लोि िी ििशेषता यह है िि आयाभट ने आसन्न शि िा
प्रयोग लगभग (approximation) िे सिभा में ििया है ।
इससे यह ुसि होता है िि आयाभट िो पीरुध और व्यास िे
अनुपात िी अिपरमेयता (irrationality) िे ििषय में जानिारृ
थृ । भास्कराचाया िे बाद नृलिण्ठ हृ एसे गुितज् हुये ुजन्ोोंनें
π िी अिपरमेयता *irrationality] िे ििषय में चचाा िी ।
``आसन्न’’ शि िी पुिष्ट िे ुलये नृलिण्ठ सोमयाजृ ने अपने
आयाभटृय भाष्य में तिों िे साथ आयाभट िा समथान ििया है –
येन मानेन मृयमानो व्यासः िनरियिः स्यात्, तेनैि मृयमानः
पीरुधः पुनः साियि एि स्यात् । येन च मृयमानः पीरुधः
िनरियिः तेनैि मृयमानो व्यासोऽिप साियि एि इित एिे नैि
मानेन मृयमानयोः ऊभयोः क्वािप न िनरियत्वों स्यात् । महािम्
अध्वानों गत्वािप अल्पाियित्वम् एि लभ्यम् । िनरियत्वों तु क्वािप
न लभ्यम् इित ।20
ुजस भृ इिाई से मापने से व्यास िा मान िनरियि हो, ऊसृ
इिाई से पीरुध साियि होतृ है, ुजस इिाई से पीरुध िा मान
िनरियि होता है ऊसृ इिाई से मापने पर व्यास साियि होता है ।
एि हृ इिाई से मापने पर दोनोों व्यास एिों पीरुध िभृ भृ
िनरियि नहृों होोंगे चाहे िु छ भृ िर लो (इिाई िो छोटृ िरने
पर) िफर भृ अोंश िा लघु अियि रहेगा हृ । िनरियि िभृ भृ
नहृों होगा । यहृ इसिा भाि है ।
आयाभट िा π िा यह मान लल्ल (749 A. D) एिों भट्टोत्पल
(966 A. D) िो भृ मान्य है । भास्कर िद्वतृय (1150 A. D)
ने लृलाितृ में π िा मान इस प्रिार िदया है –
व्यासे भनिाििहते ििभक्त
े खबािसूययः पीरुधः सुसूक्ष्मः ।
द्वाििोंशितघ्ने ििहृतेऽथ शैलैः स्थूलोऽथिा स्याद्व्यिहारयोग्यः ॥21
ऊपयुाक्त श्लोि िे अनुसार दो सूत्र प्राप्त होते हैं जोिि िनम्नप्रिार से
हैं-
20 Āryabhaiṭīya of Aryabhaṭācārya with the
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan , ed . by
Sāmbaśiva Śāstrī Trivandrun Sanskrit Series 101
, Trivandrum 1930 comm . on Part I,
Ganitapada , p . 41-42 .
21लृलाितृ, लोि 199.
समृिरि 17 जो िि श्लोि िी प्रथम पिि से सम्बून्धत है ऊसमें
पीरुध-व्यास िे अनुपात िा सूक्ष्म मान िदया गया है । समृिरि
18 जो िि श्लोि िी िद्वतृय पिि से सम्बून्धत है ऊसमें पीरुध-
व्यास िे अनुपात िा स्थूल मान बताया गया है । भास्कराचाया जृ
इस िद्वतृय मान िो व्यिहारयोग्य बताते है । आयाभट िद्वतृय ने
पीरुध िो 21600 एिों व्यास िो 6876 माना है । गिेश दैिज्
(1550 A. D) एिों मुनृश्वर (1656 A. D) िे अनुसार पीरुध-
व्यास िे अनुपात िा मान है ।
िे रल िे प्रुसि गुितज् माधि (1340-1420 A. D) ने π िा
मान भूतसङ्ख्या में बताया है ुजसिो नृलिण्ठ जृ ने
आयाभटृयभाष्य22 में एिों शङ्कर िाीरयर ने लृलाितृ में ऊिृत ििया
है । यह मान 11 दशमलब ति सहृ है जो इस प्रिार है-
ििबुधनेत्रगजािहहुताशनित्रगुििेदभिारिबाहिः ।
नििनखिािमते िृितिििरे पीरुधमानिमदों जगदुबुाधाः ॥23
इससे
ुसि होता है । लृलाितृ िी व्याख्या िक्रयाक्रमिरृ में शङ्कर
िाीरयर (1500-1560 AD) ने π मान िनम्नुलुखत प्रिार से
बताया है-
िृत्तव्यासे हते नागिेदिह्न्यूब्धखेिुुभः ।
ितथ्यश्वििबुधैभाक्त
े सुसूक्ष्मः पीरुधभािेत् ॥24
मान िदया है ।
िे रलृय परम्परा िे ुसिहि गुितज् एिों खगोलििद् पुतुमन
सोमयाजृ (1660-1740 A. D) ने अपने ग्रन् िरिपिित में
व्यासाधा साधन ििुध िा ऊल्लेख ििया है । व्यासाधा प्राप्त हो जाने
पर हम π िा मान िनिाल सिते हैं । पुतुमन सोमयाजृ िी
व्यासाधा साधन ििुध इस प्रिार है-
22गुितपाद, श्लोि 10, पृ. 42.
23शङ्कर बाीरयर िी लृलाितृव्याख्या िक्रयाक्रमिरृ से श्लोि 199
िी व्याख्या िे सिभा में, पृ. 377.
24शङ्कर चाीरयर िी लृलाितृव्याख्या िक्रयाक्रमिरृ से श्लोि 199
िी व्याख्या िे सिभा में, पृ. 377.
7. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1200
अनूननूत्वाननुनुन्निनत्यैः समाहतािक्रिलाििभक्ताः ।
चण्डाोंशुचन्द्राधमिु ूम्भपालैः व्यासिदधं ित्रभमौििािा स्यात् ॥25
िटपयािद पिित से "अनूननूत्नाननुनुन्निनत्य िा मान
10000000000 हुआ । “चण्डाोंशुचन्द्राधम िु ूम्भपाल" से भाि
31415926536 सङ्ख्या से है । जब 10000000000 िो
पीरुधमान से गुिा ििया जाये और 31415926536 भाग िदया
जाये तो लूब्ध व्यास है एिों इसिा आधा व्यासाधा है ।
π िा मान
िदया है ।
शङ्करिमान् (1800-38 A. D) ने अपने ग्रन् सद्रत्नमाला मे π िे
मान िो िनम्नुलुखत श्लोि में बताया है-
एिों चात्र पराधािििृितमहािृत्तस्य नाहोऽक्षरैः
स्याद् भद्राम्बुुधुसिजन्मगुितश्रिा स्म यद् भूपगृः ॥26
यहाों पराधा27 िििृित से अुभप्राय 10000000000000000
व्यास से है, एिों "भद्राम्बुुधुसिजन्म गुितश्रिा स्म यद् भूपगृः "
से अुभप्राय 314159265358979324 पीरुध से है । इस
प्रिार समृिरि 24 में िृत्त िी पीरुध और व्यास िा अनुपात
बताया गया है जो दशमलि 17 ति सहृ है ।
पाठिोों िी सुििधा िे ुलये िालक्रमानुसार िनम्नुलुखत ताुलिा 1
में शुल्बसूत्रोों एिों ुसिाि ज्योितषृय ग्रन्ोों में िदये गये π िे मानोों
िो िदखाया गया है ।
25िरिपिित, अध्याय 6 श्लोि 7.
26सद्रत्नमाला, ज्याचापािदप्रिरिम् श्लोि 2b.
27पराधा िा अथा 1017 है ।
िनष्कषा
भारत िे सिभा में हमने π िे इितहास एिों इसिे ििुभन्न मानोों िो
जानने िा प्रयास ििया । शुल्बसूत्रोों से प्रारम्भ िरिे ुसिाि ग्रन्ोों
िा अिलोिन िरिे हमने π िे अििष्कार िे मुख्य िारिोों एिों
इसिी िितपय गुितृय प्रिक्रयाओों िो जाना । हम जानते हैं िि
शुल्बसूत्रोों िी रचनाओों िा मुख्य ऊद्देश्य िेदृिनमााि िरने िे
सम्बन्ध में प्रयुक्त होने िाले गुित से था । िेिदयोों िे आिार ुभन्न
ुभन्न प्रिार िे होते थे जैसे- िगाािार, आयतािार, गोलािार,
अधागोलािार इत्यािद । िृत्त िो िगा, िगा िो िृत्त, िगा िो एिों
आयत िो िगा में पीरिितात िरने िे अनेि ऊदाहरि शुल्बसूत्रोों में
ऊपलब्ध हैं । यह ििशेष ध्यान रखा जाता था िि बेदृ िी ििसृ
एि आिृ ित िो दूसरृ आिृ ित में पीरिितात िरते समय क्षेत्रफल
समान रहना चािहये । इसृ समस्या िे समाधान हेतु π िा
अििष्कार हुआ और हमने यथामित भारतृय पीरपेक्ष्य में पाठिोों िे
समक्ष सारे तथ्योों िो रखने िा प्रयास ििया । हमने पाया िि
समय िे साथ साथ π िा मान सूक्ष्म होता चला गया । ितामान में
π िा मान दशमलि सौ हज़ार ति प्राप्त ििया जा चुिा है ।
भििष्य में π िे सिभा में पािात्य एिों भारतृय मनृिषयोों िे मतोों
िा तुलनात्मि अध्ययन िरने िा हमारा ििचार है ।
8. International Journal of Trend in Scientific Research and Development @ www.ijtsrd.com eISSN: 2456-6470
@ IJTSRD | Unique Paper ID – IJTSRD50621 | Volume – 6 | Issue – 5 | July-August 2022 Page 1201
सिभाग्रन्
[1] Āryabhaṭīyaṃ of Āryabhaṭa with the
commentary Bhaṭadīpikā of Parameśvara, ed.
by B. Kern, Leiden 1874 (repr. 1906, 1973.
[2] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭa, ed. with tr. and
notes by K. S. Shukla and K. V. Sarma, INSA,
New Delhi 1976.
[3] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part I,
Gaṇitapāda, ed. by Sāmbaśiva Śāstrī,
Trivandrum Sanskrit Series 101, Trivandrum
1930.
[4] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part
II, Kālakriyāpāda, ed. by Sāmbaśiva Śāstrī,
Trivandrum Sanskrit Series 110, Trivandrum
1931.
[5] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭācārya with the
Mahābhāṣya of Nīlakaṇṭha Somasutvan, Part
III, Golapāda, ed. by Śūranāḍ Kuñjan Pillai,
Trivandrum Sanskrit Series 185, Trivandrum
1957.
[6] Āryabhaṭīya of Āryabhaṭa with the commentary
of Bhāskara I and Someśvara, ed. by K. S.
Shukla, INSA, New Delhi 1976.
[7] Candracchāyāgaṇita of Nīlakaṇṭha Somayājī,
with auto- commentary, ed. and tr. by K. V.
Sarma, VVRI, Hoshiarpur 1976.
[8] Candravākyas of Vararuci, C. Kunhan Raja,
Adyar Library, Madras 1948.
[9] चार शुल्बसूत्र (बौधायन, मानि, आपिम्ब और िात्यायन
शुल्बसूत्रोों िा मूल तथा िहिृ अनुिाद), द्वारा डा. रघुनाथ
पुरुषोत्तम िु लििी, महिषा सिृपिन राष्टरृय िेद ििद्या
प्रितष्ठान, ऊज्जैन, 2000.
[10] Karaṇapaddhati of Putumana Somayājī, tr.
with mathematical notes by Venketeswara Pai,
K. Ramasubramanian, M.S. Sriramm and M. D.
Srinivas, HBA, Delhi and Springer, London
2018.
[11] Karaṇapaddhati of Putumana Somayājī, ed. by
K. Sāmbaśiva Śāstrī, Trivandrum 1937.
[12] Līlāvatī of Bhāskarācārya II, with a
commentary Kriyākramakarī of Śaṅkara
Vāriyar (only up to a portion of
Kṣetravyavahāra), ed. By K. V. Sarma,
Hosiarpur 1975.
[13] Sadratnamālā of Śaṅkaravarman, tr. by S.
Madhavan, KSRI, Chennai 2011.
[14] The Śulbasūtras of Baudhāyana, Āpastamba,
Kātyāyana and Mānava: Ed. and Tr. by S. N.
Sen and A. K. Bag, Indian National Science
Academy, New Delhi 1983.
[15] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, with
Laghuvivṛti, ed. by S. K. Pillai, Trivandrum
1958.428.
[16] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, with
Yuktidīpikā (for chapters I–IV) and Laghuvivṛti
(for chapters V–VIII) of Śaṅkara Vārīyar ed. by
K. V. Sarma, VVRI, Hoshiarpur 1977.
[17] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, tr. by
V. S. Nara-simhan, Indian Journal History of
Science, INSA, New Delhi 1998–99.
[18] Tantrasaṅgraha of Nīlakaṇṭha Somayājī, tr.
with mathematical notes by K.
Ramasubramanian and M. S. Sriram, HBA,
Delhi and Springer, London 2011.
[19] Vākyakaraṇa with the commentary by
Sundararāja, ed. By T. S. Kuppanna Sastri and
K. V. Sarma, KSRI, Madras, 1962.
[20] Veṇvāroha by Mādhava, ed. with Malayalam
commentary of Acyuta Piṣāraṭi by K. V. Sarma,
The Sanskrit College Committee, Tripunithura,
Kerala 1956.