2. लेखक परिचय
अज्ञेय
सच्चिदानोंद हीरानोंद वात्स्यायन अज्ञेय जी का जन्म सन
1911 में देवररया लजिा क
े क
ु शीनगर में हुआ था। इनका
बचपन िखनऊ, श्रीनगर व जम्मू में बीता । इनकय सालहत्य
में रुलच थी । क्ाोंलतकारी आोंदयिन में लहस्सा िेने क
े कारण
ये जैि भी गए। इन्योंने अनेक नौकररययों की और छयड़ दी।
इन्योंने अनेक पत्र पलत्रकाओों का सोंपादन भी लकया जैसे
‘सैलनक’, ‘लवशाि’, ‘भारत’, ‘प्रतीक’, ‘लदनमान’, ‘नवभारत
टाइम्स’ एवों ‘नया प्रतीक’ आलद।
िचनाएं –
भग्नदू त , लचोंता , इत्यिम् , हरी घास पर क्षण भर , बावरा
अहेरी , इन्द्रधनुष रौोंदे हुये ये , अरी ओ करुणा प्रभामय ,
आँगन क
े पार द्वार , लकतनी नावयों में लकतनी बार , क्योंलक मैं
उसे जानता हँ आलद। इनकी सोंपूणण कलवताएँ सदानीरा नाम
से दय भाग में सोंकलित है। इन्योंने कहानी सोंग्रह, उपन्यास,
यात्रा वृताोंत , आियचनाएँ , सोंस्मरण और िलित लनबोंध भी
लिखे हैं।
3. आवस्यक ब ंदु
• उपनाम : ‘अज्ञेय’
• मूल नाम : सच्चिदानोंद हीरानोंद वात्स्यायन अज्ञेय
• जन्म : 7 माचण 1911 | क
ु शीनगर, उत्तर प्रदेश
• बनधन : 4 अप्रैि 1987 | नई लदल्ली, लदल्ली
• पुिस्काि : भारतीय ज्ञानपीठ
िचनाएं : • भग्नदू त ।
• लचोंता ।
• इत्यिम् ।
• हरी घास पर क्षण भर ।
• बावरा अहेरी ।
• इन्द्रधनुष रौोंदे हुये ये ।
• अरी ओ करुणा प्रभामय ।
• आँगन क
े पार द्वार ।
• लकतनी नावयों में लकतनी बार ।
• क्योंलक मैं उसे जानता हँ ।
4. पाठ परिचय
प्रस्तुत पाठ में बताया गया है लक कयई भी रचनाकार कब और क्यों
लिखता है। दय प्रकार की बातें लिखने क
े लिए प्रेररत करती हैं। पहिी
िेखक आोंतररक लववशता से मुच्चि पाने क
े लिए तटस्थ हयकर उसे
देखने और पहचान िेने क
े लिए लिखता है। दू सरी बाहरी लववशता,
जैसे- सोंपादकयों क
े आग्रह प्रकाशकयों क
े तकाजे से और आलथणक
लववशता क
े कारण लिखता है। िेखक कय लहरयलशमा पर बम लवस्फयट
घटना का पता था परोंतु उस पर उन्योंने क
ु छ नहीोंलिखा िेलकन जब ये
जापान गए और सब क
ु छ अपनी आँखयों से देखा तय टरेन में कलवता
लिखी कलव 1 क
े लिए यही महत्व की बात है लक यह कलवता अनुभूलत
से जन्मी है।
6. एक कबठन प्रश्न
िेखक क्यों लिखता है?” यह प्रश्न लदखने में
सरि प्रतीत हयता है, पर वास्तव में यलद इसका
उत्तर लदया जाए तय यह अत्योंत जलटि है क्योंलक
इसका सही और सिा उत्तर िेखक क
े अोंतमणन
से सोंबोंध रखता है। उसे सोंलक्षप्त रूप में कहना
आसान नहीोंहै। इतना अवश्य लकया जा सकता
है लक उनमें से दू सरे क
े लिए उपययगी व्य
लनकाि लिए जाएों ।
क्या बलखूं?
7. लेखन से जुडे कािण
िेखक लिखने का कारण जानने क
े लिए लिखता है
लक जब तक लिखा न जाए इस प्रश्न का उत्तर नहीों
लमि सकता लिखकर ही िेखक उस आोंतररक
लववशता कय पहचानता है, लजसक
े कारण उसने
लिखा और लिखकर ही वह उससे मुि हय पाता है।
िेखक ‘अज्ञेय’ स्वयों भी उस आोंतररक लववशता से
मुच्चि पाने क
े लिए, तटस्थ हयकर उसे देखने और
पहचानने क
े लिए लिखता है। उनका लवश्वास है लक
सभी िेखकयों द्वारा िेखन कायण इसी कारण से ही
लकया जाता है। यह भी सत्य है लक क
ु छ प्रलसच्चधि प्राप्त
हयने क
े पश्चात बाहरी लववशता (सोंपादकयों क
े आग्रह
प्रकाशक क
े तकाते, आलथणक लववशता) से भी लिखते
हैं।
वैसे बाहरी दबाव भी देखा जाए तय भीतर क
े प्रकाश
का ही लनलमत्त हयता है। यहाँ रचनाकार क
े
आत्मानुशासन एवों प्रक
ृ लत का महत्व बहुत हयता है।
क
ु छ आिसी ियग बाहरी दबाव क
े लबना लिख से नहीों
पाते। इससे उनक
े अोंदर की लववशता का पररचय
लमिता है। ऐसे ियगयों की च्चस्थलत उस व्यच्चि जैसी है,
जय नीोंद खुि जाने पर भी लबछाने पर पड़ा रहे, जब
तक घड़ी का अिामण न बजे। ऐसे क
ृ लतकार बाहरी
दबाव क
े प्रलत समलपणत न हयकर उसे एक सहायक
योंत्र की तरह इसलिए काम में िाते हैं, तालक भौलतक
पदाथण से उनका सोंबोंध बना रहे। िेखक अज्ञेय कय
यद्यलप इस साधन रूपी सहारे की जरूरत नहीों
पड़ती, पर वे उसे ‘बाबा’ भी नहीोंमानते।
8. भीतिी बववशता का स्पष्टीकिण
भीतरी लववशता कय स्पष्ट करना अत्योंत कलठन है।
िेखक अपनी कलवता लहरयलशमा’ द्वारा अपनी बात कय
स्पष्ट करना चाहता है-
िेखक ने लवज्ञान का लनयलमत लवद्याथी हयने क
े कारण
रेलियम-धमी तत्त्यों, अणु और अणु भेदन की बातयों का
अध्ययन लकया था। उसे रेलियम धलमणता क
े प्रभाव का
ज्ञान तय था, पर जब लहरयलशमा पर अणु बम लगरा, तब
उसक
े परवती प्रभावयों का भी पता चिा। लवज्ञान क
े इस
दुरुपययग से िेखक में बौच्चधिक लवद्रयह जगा, लजसे
िेखक ने िेख आलद में लिखा, लक
ों तु वह लवद्रयह
अनुभूलत क
े स्तर पर नहीोंउतर पाया था, इसलिए
िेखक ने इस लवषय पर कलवता नहीोंलिखी ।
युधि काि में भारत की पूवी सीमा
पर सैलनकयों कय ब्रह्मपुत्र में बम
फ
ें ककर हजारयों मछलिययों कय मारते
िेखक ने देखा था, जबलक
आवश्यकता उन्ें थयड़ी-सी
मछलिययों की थी। जीवयों क
े इस
प्रकार अपव्यय से जय पीड़ा अोंदर
उमड़ी थी, उसी से एक सीमा तक
लहरयलशमा में अणु बम द्वारा जीव-
नाश का अनुभव लकया जा सकता
था।
9. लेखक की जापान यात्रा
जब िेखक जापान यात्रा पर गया तय लहरयलशमा भी गया।
वहाँ उसने अस्पताि में रेलियम पदाथण से आहत ियगयों कय
देखा, जय वषों से कष्ट पा रहे थे। िेखक कय प्रत्यक्ष अनुभव
हुआ, लक
ों तु एक क
ृ लतकार क
े लिए अनुभव से गहरी चीज
है, अनुभूलत। अनुभव तय घलटत का हयता है, पर अनुभूलत
सोंवेदना और कल्पना क
े सहारे उस सत्य कय स्वयों में
समालहत कर िेती है, जय वास्तव में क
ृ लतकार क
े साथ
घलटत ही नहीोंहुआ है। जय आँखयों क
े सामने नहीोंआया,
जय घलटत क
े अनुभव में भी नहीोंआया, वही आत्मा क
े
समक्ष प्रकाश रूप में आ जाता है, तब वह अनुभूलत प्रत्यक्ष
हय जाती है। इसी अनुभूलत प्रत्यक्ष की कसर हयने क
े
कारण लहरयलशमा में सब क
ु छ देखकर भी तत्काि क
ु छ
नहीोंलिखा।
एक लदन वहीोंसड़क पर घूमते हुए
देखा एक जिे हुए पत्थर पर एक िोंबी
उजिी छाया है। जब लवस्फयट हुआ
था, तब वहाँ कयई व्यच्चि खड़ा हयगा।
लवस्फयट में लबखरे हुए रेलियम-धम
पदाथण की लकरणें उसमें फ
ँ स गई
हयोंगी, लजससे पत्थर झुिस गया। उस
व्यच्चि पर उन लकरणयों का ऐसा प्रभाव
पड़ा लक वह भाष बनकर उड़ गया
और उसकी छाप पत्थर पर अोंलकत हय
गई।
10. लेखक द्वािा अणु बवस्फोट
का भोक्ता नना
पत्थर में मनुष्य की छाया देखकर िेखक कय धक्का पहुँचा। उसक
े
मन में इलतहास सूयण की तरह उगा और ि
ू ब गया। कहना न हयगा लक
उस पर में वह अणु लवस्फयट िेखक क
े अनुभूलत प्रत्यक्ष में आ गया।
एक अथण में वह स्वयों लहरयलशमा क
े लवस्फयट का भयिा बन गया।
इस से आोंतररक लववशता जगी। अोंदर की आक
ु िता बौच्चधिक क्षेत्र
बढ़कर सोंवेदना क
े क्षेत्र में आ गई। िेखक ने रेिगाड़ी में ररशमा पर
कलवता लिखी। कलव कय कलवता क
े अच्छे -बुरे से कयई मतिब नहीों
है। उनक
े लिए यही पयाणप्त है लक वह अनुभूलत से जन्मी है।
11. एक लदन सहसा
सूरज लनकिा
अरे लक्षलतज पर नहीों,
नगर क
े चौक :
धूप बरसी
पर अोंतररक्ष से नहीों,
फटी लमट्टी से।
क
ु छ क्षण का वह उदय-अस्त!
क
े वि एक प्रज्वलित क्षण की
दृष्य सयक िेने वािी एक दयपहरी।
लफर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीोंलमटीोंिोंबी हय-हय कर:
मानव ही सब भाप हय गए।
छायाएँ तय अभी लिखी हैं
झुिसे हुए पत्थरयों पर
उजरी सड़कयों की गच पर।
बििोबशमा कबवता
छायाएँ मानव-जन की
लदशालहन
सब ओर पड़ीों-वह सूरज
नहीोंउगा था वह पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचयों-बीच नगर क
े :
काि-सूयण क
े रथ क
े
पलहययों क
े ज्ययों अरे टू ट कर
लबखर गए हयों
दसयों लदशा में।
मानव का रचा हुया सूरज
मानव कय भाप बनाकर सयख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जिी हुई छाया
मानव की साखी है।
13. िेखक लकस लवषय का छात्र थे?
मानबवकी बवषय का
संस्क
ृ त का अंग्रेजी का
बवज्ञान का
14. िेखक ने लहरयलशमा पर कलवता लिखने की प्रेरणा
लकससे लमिी ?
अपने पडोबसयोंसे
बििोबशमा की यात्रा क
े समय एक
पत्थि पि उभिी मानव छाया से
अपनी मााँ से।
अख ाि में छपे लेखोंसे
15. अनुभव और अनुभूलत में क्ा अोंतर है ?
अनुभव से अनुभूबत गििी चीज़ िै
अनुभव अनुभूबत से गििा
िोता िै
अनुभव से अनुभूबत प्राप्त िोता िै
अनुभव आवश्यकता िै औि
अनुभूबत लक्ष्य
16. िेखक क्यों लिखता है ?
(a) औि (b) दोनों
ाििी द ाव क
े
कािण
भीतिी बववशता क
े कािण
इनमें से कोई निीं
17. प्रत्यक्ष अनुभव की अपेक्षा कौन िेखन में मदद
करता है ?
मेिनत
जानकरियााँ अनुभूबत
बचत्रण
18. िेखकयों क
े सामने कौन-लववशता रहती है ?
प्रकाशक क
े तगाजे
आबथिक आवश्यकता संपादकोंका आग्रि
उपयुिक्त सभी
19. लहरयलशमा पर लिखी कलवता क
ै सी कलवता थी ?
(a) औि (b) दोनों
अंतः द ाव का
परिणाम
ाह्य द ाव का परिणाम
इनमें से कोई निीं
20. अनुभूलत लकसक
े सहारे सत्य कय आत्मघात कर
िेते हैं ?
संवेदना क
े
अनुभव क
े
कल्पना क
े
(b) औि (c) दोनों
21. अनुभूलत क
े स्तर पर लववशता कय िेखक ने क्ा
कहा है?
लगाताि घबटत एक िी घटना
कल्पना की ात ौद्धिक स्ति से आगे की ात
मानबसक स्ति की ात
22. लहरयलशमा पर अणु बम कब िािा गया था ?
6 अगस्त, 1945 को
9 अगस्त, 1944 को 9 अगस्त, 1942 को
9 अगस्त, 1943 को