2. ऊन का इतिहास
◦ इंग्लैंड में बहुत प्राचीन काल(AD 80) से ही श्रेष्ठ ऊनी वस्त्र बनाने का काम होने लगा था। वहां के ऊनी वस्त्र संसार भर में
प्रससद्ध थे। बहुत सूक्ष्म एवं उत्तम ऊनी वस्त्र वहां के सम्राटों की पोशाकों में सम्मिसलत सकए जाते थे।
◦ भारत में प्राचीन काल से ही शरीर को गमम शॉल से ढकने की प्रथा प्रचसलत थी। इसके साक्ष्य मोहनजोदडो की खुदाई में
प्राप्त प्रसतमाएं हैं।
◦ कु छ सदनों बाद, भारत में ऊन से ऐसे सुंदर वस्त्र बनने लगे सजनकी प्रससद्धी संसार भर में हो गई थी।
◦ कश्मीर के पश्मीना-शॉल अत्यंत प्राचीनकाल से ही संसार भर के सलए आश्चर्म की वस्तु रहे हैं। महाभारि में भी इन शॉलों
का उल्लेख समलता है।
◦ मुगल बादशाह ों ने कश्मीर के ऊनी शॉल बनाने के उद्योग को अत्यसिक प्रोत्साहन सदर्ा लेसकन अोंग्रेजी राज्य में इस
उद्योग की अवनसत हुई।
◦ कश्मीर में पश्मीना के असतररक्त शाहिुरन, नमदा, लुई, गाभा, गममचादरें क ट आतद भी बनते हैं।
◦ कश्मीर की पश्मीना शॉल िथा पतशमयन कापेट जैसे सुंदर सटकाऊ वस्त्रों की बराबरी के वस्त्र अन्यत्र कहीं नहीं बने हैं।
◦ ऊन एक प्राकृ तिक प्रतिज प्र टीन रेशा है। र्ह प्रासिर्ों के बालों से प्राप्त होता है।
◦ ऊन प्रमुख रूप से अजेंटीना, ऑस्ट्रेतलया, तितटश-द्वीप, भारि, दतिि अफ्रीका िथा अमेररका में उत्पन्न सकर्ा जाता
है।
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3. तितशष्ट हेयर फाइबर (Special Hair Fibre)
◦ कु छ सवसशष्ट जासतर्ों के पशुओं से प्राप्त बालों से बने वस्त्र बडे ही बहुमूल्य होते है। र्े असत सुंदर एवं सवसशष्ट श्रेिी के होते
हैं। इन्हें सवसशष्ट हेर्र फाइबर (special hair fibre) कहते है
◦ इनमें ऊन के सब गुि होते है परन्तु र्े ऊन से महंगे होते है।
◦ इन्हें संसार के सुंदरतम वस्त्रों की श्रेिी में स्थान प्राप्त है तथा कु छ व्यम्मक्त ही इन्हें प्रर्ोग कर पाते है।
◦ इन पशुओं के शरीर से बहुत कम ऊन समलता है, एक कोट बनाने के सलए लगभग 40 पशुओं से प्राप्त ऊन की
आवश्यकता होती है।
◦ र्े बाल/रेशें ऊं ट (Camel), मोहेर (Mohair), के शमीर (Cashmere), लामा (Lama) तथा सवक्यूना (Vicuna)
नामक पशुओं से समलते है।
◦ सवश्व का सबसे महंगा कोट तिक्यूना के बालों से बनता है। र्े वस्त्र अपनी सूक्ष्मता (fineness) तथा उत्कृ ष्ट स ंदर्म
(Excellent beauty) में अपूवम एवं असितीर् होता है।
◦ क्यूतिएट एक कस्तूरी लोमडी से प्राप्त दुलमभ और असितीर् स ंदर्मर्ुक्त रेशा होता है, जो अलास्का में समलता है। र्ह भी
बेशकीमती होता है। शुद्ध श्वेत उज्ज्वल, बहुत सुंदर होते है।
◦ भेडों में मररनों जासत की भेड से सबसे अच्छा ऊन प्राप्त होता है।
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5. ऊन की प्राप्ति के स्र ि
अोंग रा बकरी
कश्मीरी
बकरी
अोंग रा
खरग श
लामा
अल्पाका तिक्युना ऊों ट के बाल
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6. अोंग रा बकरी
◦ टकी में इस प्रजासत की बकरी से शताम्मिर्ों पूवम से ही ऊन प्राप्त सकर्ा जा रहा है। वतममान में संर्ुक्त राज्यअमेररका, फ्ांस,
अफ्ीका में भी इस प्रजासत के भेडों से ऊन प्राप्त सकर्ा जा रहा है।
कश्मीरी बकरी
◦ इसे पश्मीना बकरी के नाम से भी जाना जाता है। र्ह कश्मीर के अलावा सतब्बत में भी पाई जाती है। इस बकरी से प्राप्त ऊन
के रेशों की दो पतें होती है। ऊपरी परत के रेशे खुरदरे तथा सनचली परत के रेशें मुलार्म होते है।
अोंग रा खरग श
◦ र्ह रेशा कोमल एवं रेशम की तरह चमकदार होता है। इस ऊन का रंग सफे द होता है।
लामा
◦ रेशे भारी व घने होते है, ऊन का रंग िुंिला पीला होता है।
अलपाका
◦ र्ह छोटे कद वाला पशु है, इससे प्राप्त ऊन के वस्त्र लगभग 12 इंच लंबे होते है
ऊों ट के बाल
◦ उत्तरी पसश्चमी चीन तथा मंगोसलर्ा में ऊँ ट से भी ऊन प्राप्त सकर्ा जाता है। ऊं ट की गदमन व पेट के बाल उपर्ुक्त होते है।
ऊन की प्राप्ति के स्र ि
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7. ऊन की तकस्म और श्रेिी क प्रभातिि
करने िाले कारक
◦ एक ही भेड के शरीर के सवसभन्न स्थानों से भी अलग-अलग श्रेिी का ऊन समलता है।
◦ मुलार्म, बाररक एवं लंबाई के सहसाब से प्रथम वगम का ऊन भेड के कं िों से लेकर दोनों तरफ के पेट
वाले भाग से समलता है ससर से लेकर पैर तक का दू सरे और मध्यवगम का होता है शेष स्थानों से प्राप्त होने
वाला ऊन सनम्न श्रेिी का माना जाता है।
◦ गमम जलिायु वाले स्थानों की भेडों से प्राप्त ऊन कडा तथा तार की तरह चमकीला होता है। ठों डी
जलिायु वाले स्थानों का ऊन नरम एवं कोमल होता है और उनसे आपसत्तजनक चमक नहीं रहती। ऐसी
ऊन अच्छी सकस्म के वस्त्रों के सनमामि में काम आते हैं
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8. स्थान सवशेष
की जलवार्ु,
आहार, देखरेख,
पशुओं की
उम्र तथा
स्वास्थ्य।
ऊन की तकस्म और श्रेिी क प्रभातिि
करने िाले कारक तनम्न है-
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9. तिदर ऊन (Weather-wool)
हॉग ऊन (Hogget wool)
मेमन का ऊन (Lamb's wool)
ितजमन ऊन (Virgin wool)
कारपेट ऊन (Carpet wool)
टेगलॉक ऊन (Taglock wool)
मृि ऊन (Dead wool)
खीोंचा हुआ ऊन (Pulled wool)
क टी ऊन (Cotty wool)
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10. ◦ ितजमन ऊन (Virgin wool)
◦ इस वगम के ऊन को पहले सकसी रूप में प्रर्ोग में नहीं लार्ा गर्ा रहता है, अथामत् जो पूिमतः नर्ा रहता है।
◦ मेमन का ऊन (Lamb's wool)
◦ 6 से 9 माह के मेमने के शरीर से उतारी जाती है। र्ह ऊन सवोत्तम प्रकार की असितीर् काम्मन्तर्ुक्त होती है,
परन्तु कम मजबूत होती है।
◦ हॉग ऊन (Hogget wool)
◦ 12 से 14 माह की आर्ु वाली भेड से पहली बार जोनून प्राप्त होती है मजबूती को दृसष्ट से उत्तम प्रकार की
होती है। इनका उपर्ोग ताने के िागे के स्थान पर भी सकर्ा जाता है।
◦ तिदर ऊन (Weather-wool)
◦ भेड के शरीर से पहली बार ऊन कट जाने के बाद जो दू सरी बार का ऊन प्राप्त होता है उसे सवदर कहते है।
भेड की उम्र लगभग 14 वषम की हो जाती है।
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11. ◦ क टी ऊन (Cotty wool)
◦ सवपरीत म सम तथा सवपरीत पररम्मस्थसत में पलने वाली तथा अनुकू ल आहार के अभाव पलने वाली भेडों से
प्राप्त ऊन कडा, रूक्ष एवं कडकीला होता है तथा सनम्न श्रेिी का माना जाता है।
◦ खीोंचा हुआ ऊन (Pulled wool)
◦ सजन भेडों को मांस के सलए मारा जाता है,
◦ मृि ऊन (Dead wool)
◦ दुघमटनावश मर जाने पर भेडों से प्राप्त ऊन मृत ऊन कहलाता है। र्ह भी सनम्न श्रेिी का होता है।
◦ टेगलॉक ऊन (Taglock wool)
◦ टू टे, फटे तथा बदरंग हुए ऊन को टेगलॉक कहते है। जो सनम्न श्रेिी का होता है।
◦ कारपेट ऊन (Carpet wool)
◦ र्ह भी सनम्न श्रेिी की ऊन है, जो दरी गलीचे बनाने में उपर्ोग की जाती है
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12. ऊन का तितनमामि
(Manufacture of
Wool)
&
ऊन की श्रेतियााँ
(Classes of
Wool)
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14. 1. कटाई (Shearing)
2. छोंटाई और ग्रेतडोंग
(Sorting and grading
3. स्वच्छ करना
(Scouring)
4. सुखाना (Drying)
5. िेल देना अथिा तचकनाना
(Oiling)
6. रोंगना (Dyeing)
7. सप्तिश्रि (Blending)
8. धुनाई
(Carding)9. कों घी करना
(Combing and
Gilling)
10. घागे क खीोंचना
(Drawing out)
11. घुमाना (Roving)
12. किाई (Spinning)
13. बुनाई (Weaving)
14. भराई (Fulling)
15. रूप प्तथथर करना
(Creating)
16. ब्लीतचोंग एिों पररसज्जा
(Bleaching and Dyeing)
ऊन का तितनमामि
(Manufacture of
Wool)
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15. ◦ समस्त सवश्व में लगभग 40 प्रकार के भेडों से ऊन समलते हैं। संकरि (Cross-breeding) र्े ऊन-प्राम्मप्त के सलए
लगभग 200 ग्रेड की भेडें होती हैं।
◦ जैसा सक पहले कहा जा चुका है सक ऊन की सकस्म भेडों के स्वास्थ्य, प्रदेश सवशेष की जलवार्ु, उनकी पालन-रीसत,
उनके भोजन तथा उनके स्वास्थ्य से प्रभासवत होती है।
◦ एक भेड के शरीर से प्राप्त सवसभन्न श्रेिी के ऊन की चार श्रेसिर्ों में बांटा जा सकता है।
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16. प्रथम श्रेिी का ऊन (Class-one Wool) –
•मेररनो जासत की भेड से सबसे उत्तम श्रेिी का ऊन समलता है। जो पहले के वल स्पेन पाली जाती थी। अब सभी स्थानों पर ऊन के सलए पाली जाती
हैं।
•मेररनों ऊन की रेशों की लम्बाई 1 इंच से 5 इंच तक होती है।
•र्े रेशे मजबूत, महीन, सूक्ष्म तथा प्रत्यास्थता पूिम होते हैं तथा इस वगम के ऊन से वस्त्र बनाना आसान काम है।
•मेररनो भेड से प्राप्त ऊन से सबसे उच्च वगम के गमम वस्त्र (Best type of Woollen clothing) बनते हैं।
तद्विीय श्रेिी का ऊन (Class-two Wool) –
•भेडों की सजन जासतर्ों से सितीर् श्रेिी का ऊन प्राप्त होता है, वे इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, आर्रलैंड तथा वेल्स मे समलती थी। इन्हीं के कारि सिसटश
िीप समूह सूक्ष्म और सुन्दर ऊन के सलए प्रससद्ध थे।
•इनसे प्राप्त ऊन मेररनो ऊन के समान उत्तम श्रेिी का नहीं होता है। सफर भी, र्ह अच्छी ही सकस्म का होता है।
•इसके रेशे 2 से 4 इंच तक की लम्बाई के होते हैं। इनमें भी बहुत असिक शल्क होते हैं।
•र्े घुंघराले घुमाव (Crimp) के साथ मजबूत, सचकने तथा प्रत्यास्थता का गुि होता हैं।
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17. 3. िृिीय श्रेिी का ऊन (Class-three wool)-
•इस श्रेिी के ऊन का भी म सलक उद्गम स्थान इंग्लैंड ही था।
•इसके रेशे 4 स 18 इंच की लम्बाई के होते हैं।
•र्े रेशे कु छ मोटे तथा कडे (Coarser) होते हैं तथा इनमें दाँते बहत कम होते हैं और घुमाव भी नहीं रहते हैं।
•इनमें प्रत्यास्थता तथा प्रसतस्कं दता (Elasticity and resiliency) का अभाव रहता है। सफर भी इन्हें वस्त्र के सलए अच्छा ही समझा जाता है
4. चिुथम श्रेिी का ऊन (Class-four Wool)-
•इस श्रेिी का ऊन समली-जुली जासत की भेडों से प्राप्त सकर्ा जाता है।
•र्े रेशे 1 इंच से 16 इंच तक की लम्बाई के होते हैं।
•र्े रेशे कडे तथा बाल के समान होते हैं।
•इनकी सतह कम शल्कों के कारि अत्यन्त सचकनी होती है।
•र्े मजबूती तथा प्रत्यास्थता में कम होती हैं तथा इनका प्रर्ोग के वल दररर्ों, गलीचों और सस्ते गमम कपडों के बनाने तक सीसमत है।
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18. 1. लम्बाई
2. डायमीटर
3. रोंग
4. चमक
5. मजबूिी
6. ल चमयिा
7. उष्मा चालकिा
8. उष्मा का प्रभाि
9. जल अिश षकिा
10. स्तरीकृ ि पुनरािथथा
11. आर्द्मिा का प्रभाि
12. अम् ों का प्रभाि
2 से 8 इोंच 2"-8"
12 से 70 माइक्रॉन-अत्यतधक तितभन्निा
क्रीम
तनम्न
4.5 से 38 ग्राम प्रति िन्तु
25 से 30%
बुरी
आसानी से प्रभातिि
िजन का 30% मजबूरी
13 से 16%
मजबूिी में कमी और ल चमयिा में िृप्ति
गमम सल्फ्यूररक अम् में नष्ट, अन्य अम् ों क कम
प्रभाि
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ऊनी तन्तु की सवशेषताएँ