FellowBuddy.com is a platform which has been setup with a simple vision, keeping in mind the dynamic requirements of students.
Our Vision & Mission - Simplifying Students Life
Our Belief - “The great breakthrough in your life comes when you realize it, that you can learn anything you need to learn; to accomplish any goal that you have set for yourself. This means there are no limits on what you can be, have or do.”
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1. कक्षा: X
2014-15
के न्द्रीय विद्यालय संगठन
क्षेत्रीय कायाालय, ससलचर
कै प्टेन एन० एम० गुप्ता सरनी
ससलचर, असम
विन -788001
2. संरक्षक
श्री सोमित श्रीवास्तव
उपायुक्त, कें द्रीय ववद्यालय-संगठन,
मसलचर-संभाग
मागादर्ाक
श्री आर० सेंथिल कु िार
सहायक आयुक्त, कें द्रीय ववद्यालय-संगठन,
मसलचर -संभाग
सामग्री-संकलन
डॉ० (श्रीिती) अपर्ाा सक्सेना
प्राचाया, कें द्रीय ववद्यालय, डडफू
मसलचर -संभाग
तकनीकी समायोजन
श्री अक्षय कु िार
प्रमिक्षक्षत स्नातक मिक्षक (कला), के ० वव ०, डडफू
3. प्राक्कथन
ववद्याथिायों की उच्चति िैक्षक्षक ननष्पत्तत एवं सवोतति परीक्षा पररर्ाि की प्रात्तत,
मिक्षर्-अथिगि प्रक्रिया के सफल ननष्पादन का िहतवपूर्ा सूचकांक है। ववद्याथिायों के ित –
प्रनतित िैक्षक्षक प्रदिान को सुननत्चचत करने के लक्ष्य से प्रभावी नीनत- ननिाारर् एवं सिुथचत
संसािन उपलब्ि कराना के न्द्द्रीय ववद्यालय संगठन की सवोच्च प्रािमिकता रही है। इसी िि िें
ववषय वविेष से संबत्न्द्ित अध्ययन/सहायक सािग्री का ननिाार् एक अतयंत प्रभावी व सािाक
प्रयोग है। सत्र 2014-15 कक्षा दसवीं के ववद्याथिायों हेतु हहन्द्दी-अ की अध्ययन सािग्री के ० वव०
सं० के उपयुाक्त लक्ष्य की प्रात्तत िें सहायक उपकरर् के रूप िें प्रस्तुत की गयी है।
प्रस्तुत अध्ययन-सािग्री का प्रयोग पाठ्य-पुस्तकों के पूरक के रूप िें क्रकया जाना वांनित
पररर्ाि की प्रात्तत हेतु अमभप्रेररत है। प्रस्तुत सािग्री के ० िा० मि० बोडा द्वारा ननिााररत प्रचन-
पत्र के अद्यतन प्रारूप के अनुसार व्यवत्स्ित की गई है, त्जसिें भाषागत सरलता एवं ववषयगत
स्पष्टता सुननत्चचत करना प्रिुख उद्देचय रहा है। परीक्षा की दृत्ष्ट से प्रिुख सुझाव प्रतयेक खंड
के प्रारम्भ िें हदये गए हैं। प्रनतदिा प्रचनोततर, ववषय से संबत्न्द्ित ववमिष्ट तकनीकी िब्दावली
का सरलीकरर् एवं अभ्यास हेतु िहततवपूर्ा प्रचन-कोि उपलब्ि कराया गया है, त्जसका ननरंतर
अभ्यास ववद्याथिायों को अथिक आतिववचवास तिा सम्यक ववषय ज्ञान से सुसत्जजत कर
सवोतति प्रदिान हेतु सक्षि बनाने िें उपयोगी एवं सहायक मसद्ध होगा ।
सभी ववद्याथिायों को िुभकािनाओं सहहत . . . .
4. िरीक्षा की दृष्टट से महत्तििूर्ा सुझाि
िरीक्षा की दृष्टट से महत्तििूर्ा सुझाि
प्रचन-पत्र प्रारूप व अंक ववभाजन को ध्यान से पढ़कर तदानुसार अपने अध्ययन की
योजना बनाएँ।
प्रचन के मलए ननिााररत अंकों के अनुसार सिय-ववभाजन करें,त्जससे कोई प्रचन
अनुततररत न रह जाए।
ववषय पाठ्यिि की पूर्ाता के पचचात सिेक्रकत पुनरावृत्तत व अभ्यास हेतु अध्ययन
सािग्री का प्रयोग पूरक उपकरर् के रूप िें करें।
रचनातिक लेखन का अथिकाथिक अभ्यास आपके भाषागत लेखन कौिल को सिृद्ध
बनाएगा।
अपहठत गदयांि /काव्यान्द्ि को ननदेिानुसार हल करने का अभ्यास ननरंतर करते रहें ।
प्रचनों के उततर मलखते सिय िब्द-सीिा का वविेष ध्यान रखें ।
सुलेखन व सुव्यवत्स्ित उततर लेखन अंकों िें वृवद्ध की दृत्ष्ट से अतयंत िहततवपूर्ा है
।
*******************
5.
6.
7. kxaa dsavaIM ihndI -(A) saMkilat evaM fa^rmaOiTva prIxaaAaoM hotu pazyaËma ka ivaBaajana- sa~-: 2014-15
Ëma saM#yaa pazya pustk
p`qama sa~ (Ap`Ola sao isatmbar) iWtIya sa~ (A@TUbar sao maaca-)
ixaitja Baaga-dao((gaV KMD)
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16. किया –द्धिशेर्ण और सांबांधबोधि अव्यय में अांतर-
सांबांधबोधि अव्यय-
जब इनिा प्रयोग सांज्ञा अथिा सिषनाम िे साथ िोता िै तब ये सांबांधबोधि अव्यय िोते िैं और जब ये किया िी
द्धिशेर्ता प्रिट िरते िैं तब किया –द्धिशेर्ण िोते िैं।
जैसे- (1) अांदर जाओ। (किया –द्धिशेर्ण) (2) दुिान िे भीतर जाओ। (सांबांधबोधि अव्यय)
सांबांधबोधि अव्यय- द्धजन अव्यय शब्दों से सांज्ञा अथिा सिषनाम िा िाक्य िे दूसरे शब्दों िे साथ सांबांध जाना जाता
िै, सांबांधबोधि अव्यय ििलाते िैं ।
जैसे- 1. उसिा साथ छोड़ दीिजए ।
2.मेरे सामने से िट जा।
3.लाल किले पर द्धतरांगा लिरा रिा िै।
इनमें ‘साथ’, ‘सामने’, ‘पर’, ‘ति’ शब्द सांज्ञा अथिा सिषनाम शब्दों िे साथ आिर उनिा सांबांध किया िे दूसरे
शब्दों िे साथ बता रिे िैं ।अतः सांबांधबोधि अव्यय िैं । अतः िे अनुसार सांबांधबोधि अव्यय िे द्धनम्नद्धलद्धित भेद िैं-
1. िालिाचि - िे पिले, िे बाद, िे आगे, िे पीछे।
2. स्थानिाचि - िे बािर, िे भीतर, िे बीच, िे ऊपर, िे नीचे।
3. कदशािाचि - िे द्धनिट , िे समीप, िी ओर, िे सामने।
4. साधनिाचि - िे द्धनद्धमत्त , िे द्वारा , िे जररये ।
5. द्धिरोधसूचि- िे द्धिरुि , िे प्रद्धतिूल।
6. समतासूचि- िे अनुसार, िे सदृश, िे समान, िे तुल्य, िी तरि।
7. िेतुिाचि- िे द्धसिा , िे अद्धतररक्त ।
8. सहचरसूचक- के सिेत, के संग, के साि।
9. ववषयवाचक - के ववषय , के बाबत।
10. संग्रहवाचक- के सिेत, के भर ।
17. fuEufyf[kr fn, x, fodYiksa esa ls lgh fodYi Nk¡Vdj fyf[k,&
¼1½ वविेषर् fdls dgrs gSa
¼1½ loZuke dh वविेषता crkus okys
¼2½ laKk vkSj loZuke dh fo’ksárk crkus okys
¼3½ वविेषर् dh वविेषता crkus okys
¼4½ fØ;k dh वविेषता crkus okys
(2) rqe lh/ks pyks&&&&& er ns[kks ¼mfpr fØ;k वविेषर् ls okD; iw.kZ dhft,½
¼d½ rst+h ls ¼[k½ yxkrkj ¼x½ b/kj&m/kj ¼?k½ t+ksj ls
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¼4½ caxky esa pkoy vf/kd [kk;k tkrk gSA ¼ fØ;k वविेषर् dk Hksn crkb,½
¼d½ jhfrokpd ¼[k½ LFkkuokpd ¼x½ ifjek.kokpd ¼?k½ dkyokpd
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¼d½ jhfrokpd ¼[k½ LFkkuokpd ¼x½ ifjek.kokpd ¼?k½ dkyokpd
¼6½ esjs lkeus vpkud िेर vk x;kA ¼ fØ;k वविेषर् crkb,½
¼d½ esjs ¼[k½ lkeus ¼x½ vpkud ¼?k½ vk x;k
िाच्य
िाच्य-किया िे द्धजस रूप से यि ज्ञात िो कि िाक्य में किया द्वारा सांपाकदत द्धिधान िा द्धिर्य िताष िै, िमष िै,
अथिा भाि िै, उसे िाच्य ििते िैं।
िाच्य िे तीन प्रिार िैं-
1. ितृषिाच्य।
2. िमषिाच्य।
3. भाििाच्य।
1.ितृषिाच्य- किया िे द्धजस रूप से िाक्य िे उद्देश्य (किया िे िताष) िा बोध िो, िि ितृषिाच्य ििलाता िै।
इसमें ललग एिां िचन प्रायः िताष िे अनुसार िोते िैं। जैसे-
1.बच्चा िेलता िै।
2.घोड़ा भागता िै।
इन िाक्यों में ‘बच्चा’, ‘घोड़ा’ िताष िैं तथा िाक्यों में िताष िी िी प्रधानता िै। अतः ‘िेलता िै’, ‘भागता िै’ ये
ितृषिाच्य िैं।
2.िमषिाच्य- किया िे द्धजस रूप से िाक्य िा उद्देश्य ‘िमष’ प्रधान िो उसे िमषिाच्य ििते िैं। जैसे-
1.भारत-पाि युि में सिस्रों सैद्धनि मारे गए।
2.छात्रों द्वारा नाटि प्रस्तुत किया जा रिा िै।
3.पुस्ति मेरे द्वारा पढी गई।
4.बच्चों िे द्वारा द्धनबांध पढे गए।
18. इन िाक्यों में कियाओं में ‘िमष’ िी प्रधानता दशाषई गई िै। उनिी रूप-रचना भी िमष िे ललग, िचन और पुरुर्
िे अनुसार हुई िै। किया िे ऐसे रूप ‘िमषिाच्य’ ििलाते िैं।
3.भाििाच्य-किया िे द्धजस रूप से िाक्य िा उद्देश्य िेिल भाि (किया िा अथष) िी जाना जाए ििााँ भाििाच्य
िोता िै। इसमें िताष या िमष िी प्रधानता निीं िोती िै। इसमें मुख्यतः अिमषि किया िा िी प्रयोग िोता िै और
साथ िी प्रायः द्धनर्ेधाथषि िाक्य िी भाििाच्य में प्रयुक्त िोते िैं। इसमें किया सदैि पुलल्लग, अन्य पुरुर् िे एि
िचन िी िोती िै।
प्रयोग
प्रयोग तीन प्रिार िे िोते िैं-
1. ितषरर प्रयोग।
2. िमषद्धण प्रयोग।
3. भािे प्रयोग।
1.ितषरर प्रयोग- जब िताष िे ललग, िचन और पुरुर् िे अनुरूप किया िो तो िि ‘ितषरर प्रयोग’ ििलाता िै।
जैसे-
1.लड़िा पत्र द्धलिता िै।
2.लड़कियााँ पत्र द्धलिती िै।
इन िाक्यों में ‘लड़िा’ एििचन, पुलल्लग और अन्य पुरुर् िै और उसिे साथ किया भी ‘द्धलिता िै’ एििचन,
पुलल्लग और अन्य पुरुर् िै। इसी तरि ‘लड़कियााँ पत्र द्धलिती िैं’ दूसरे िाक्य में िताष बहुिचन, स्त्रीललग और
अन्य पुरुर् िै तथा उसिी किया भी ‘द्धलिती िैं’ बहुिचन स्त्रीललग और अन्य पुरुर् िै।
2.िमषद्धण प्रयोग- जब किया िमष िे ललग, िचन और पुरुर् िे अनुरूप िो तो िि ‘िमषद्धण प्रयोग’ ििलाता िै।
जैसे- 1.उपन्यास मेरे द्वारा पढा गया।
2.छात्रों से द्धनबांध द्धलिे गए।
3.युि में िजारों सैद्धनि मारे गए।
इन िाक्यों में ‘उपन्यास’, ‘सैद्धनि’, िमष िताष िी द्धस्थद्धत में िैं अतः उनिी प्रधानता िै। इनमें किया िा रूप िमष
िे ललग, िचन और पुरुर् िे अनुरूप बदला िै, अतः यिााँ ‘िमषद्धण प्रयोग’ िै।
3.भािे प्रयोग- ितषरर िाच्य िी सिमषि कियाएाँ, जब उनिे िताष और िमष दोनों द्धिभद्धक्तयुक्त िों तो िे ‘भािे
प्रयोग’ िे अांतगषत आती िैं। इसी प्रिार भाििाच्य िी सभी कियाएाँ भी भािे प्रयोग में मानी जाती िै। जैसे-
1.अनीता ने बेल िो सींचा।
2.लड़िों ने पत्रों िो देिा िै।
3.लड़कियों ने पुस्तिों िो पढा िै।
4.अब उससे चला निीं जाता िै।
इन िाक्यों िी कियाओं िे ललग, िचन और पुरुर् न िताष िे अनुसार िैं और न िी िमष िे अनुसार, अद्धपतु िे
एििचन, पुलल्लग और अन्य पुरुर् िैं। इस प्रिार िे ‘प्रयोग भािे’ प्रयोग ििलाते िैं।
19. िाच्य पररितषन
1.ितृषिाच्य से िमषिाच्य बनाना-
(1) ितृषिाच्य िी किया िो सामान्य भूतिाल में बदलना चाद्धिए।
(2) उस पररिर्ततत किया-रूप िे साथ िाल, पुरुर्, िचन और ललग िे अनुरूप जाना किया िा रूप जोड़ना
चाद्धिए।
(3) इनमें ‘से’ अथिा ‘िे द्वारा’ िा प्रयोग िरना चाद्धिए। जैसे-
ितृषिाच्य िमषिाच्य
1.श्यामा उपन्यास द्धलिती िै। श्यामा से उपन्यास द्धलिा जाता िै।
2.श्यामा ने उपन्यास द्धलिा। श्यामा से उपन्यास द्धलिा गया।
3.श्यामा उपन्यास द्धलिेगी। श्यामा से (िे द्वारा) उपन्यास द्धलिा जाएगा।
2.ितृषिाच्य से भाििाच्य बनाना-
(1) इसिे द्धलए किया अन्य पुरुर् और एििचन में रिनी चाद्धिए।
(2) िताष में िरण िारि िी द्धिभद्धक्त लगानी चाद्धिए।
(3) किया िो सामान्य भूतिाल में लािर उसिे िाल िे अनुरूप जाना किया िा रूप जोड़ना चाद्धिए।
(4) आिश्यितानुसार द्धनर्ेधसूचि ‘निीं’ िा प्रयोग िरना चाद्धिए। जैसे-
ितृषिाच्य भाििाच्य
1.बच्चे निीं दौड़ते। बच्चों से दौड़ा निीं जाता।
2.पक्षी निीं उड़ते। पद्धक्षयों से उड़ा निीं जाता।
3.बच्चा निीं सोया। बच्चे से सोया निीं जाता।
पद-पररचय
पद-पररचय- िाक्यगत शब्दों िे रूप और उनिा पारस्पररि सांबांध बताने में द्धजस प्रकिया िी आिश्यिता पड़ती
िै िि पद-पररचय या शब्दबोध ििलाता िै।
पररभार्ा-िाक्यगत प्रत्येि पद (शब्द) िा व्यािरण िी दृद्धष्ट से पूणष पररचय देना िी पद-पररचय ििलाता िै।
शब्द आठ प्रिार िे िोते िैं-
1.सांज्ञा- भेद, ललग, िचन, िारि, किया अथिा अन्य शब्दों से सांबांध।
2.सिषनाम- भेद, पुरुर्, ललग, िचन, िारि, किया अथिा अन्य शब्दों से सांबांध। किस सांज्ञा िे स्थान पर आया िै
(यकद पता िो)।
3.किया- भेद, ललग, िचन, प्रयोग, धातु, िाल, िाच्य, िताष और िमष से सांबांध।
4.द्धिशेर्ण- भेद, ललग, िचन और द्धिशेष्य िी द्धिशेर्ता।
5.किया-द्धिशेर्ण- भेद, द्धजस किया िी द्धिशेर्ता बताई गई िो उसिे बारे में द्धनदेश।
6.सांबांधबोधि- भेद, द्धजससे सांबांध िै उसिा द्धनदेश।
7.समुच्चयबोधि- भेद, अद्धन्ित शब्द, िाक्याांश या िाक्य।
8.द्धिस्मयाकदबोधि- भेद अथाषत िौन-सा भाि स्पष्ट िर रिा िै।
20. िाक्य-भेद
रचना िे अनुसार िाक्य िे द्धनम्नद्धलद्धित भेद िैं-
1. साधारण िाक्य।
2. सांयुक्त िाक्य।
3. द्धमद्धश्रत िाक्य।
1. साधारण िाक्य
द्धजस िाक्य में िेिल एि िी उद्देश्य (िताष) और एि िी समाद्धपिा किया िो, िि साधारण िाक्य ििलाता िै।
जैसे- 1. बच्चा दूध पीता िै। 2. िमल गेंद से िेलता िै। 3. मृदुला पुस्ति पढ रिी िैं।
द्धिशेर्-इसमें िताष िे साथ उसिे द्धिस्तारि द्धिशेर्ण और किया िे साथ द्धिस्तारि सद्धित िमष एिां किया-
द्धिशेर्ण आ सिते िैं। जैसे-अच्छा बच्चा मीठा दूध अच्छी तरि पीता िै। यि भी साधारण िाक्य िै।
2. सांयुक्त िाक्य
दो अथिा दो से अद्धधि साधारण िाक्य जब सामानाद्धधिरण समुच्चयबोधिों जैसे- (पर, किन्तु, और, या आकद)
से जुड़े िोते िैं, तो िे सांयुक्त िाक्य ििलाते िैं। ये चार प्रिार िे िोते िैं।
(1) सांयोजि- जब एि साधारण िाक्य दूसरे साधारण या द्धमद्धश्रत िाक्य से सांयोजि अव्यय द्वारा जुड़ा िोता िै।
जैसे-गीता गई और सीता आई।
(2) द्धिभाजि- जब साधारण अथिा द्धमश्र िाक्यों िा परस्पर भेद या द्धिरोध िा सांबांध रिता िै। जैसे-िि
मेिनत तो बहुत िरता िै पर फल निीं द्धमलता।
(3) द्धििल्पसूचि- जब दो बातों में से किसी एि िो स्िीिार िरना िोता िै। जैसे- या तो उसे मैं अिाड़े में
पछाड़ूाँगा या अिाड़े में उतरना िी छोड़ दूाँगा।
(4) पररणामबोधि- जब एि साधारण िाक्य दसूरे साधारण या द्धमद्धश्रत िाक्य िा पररणाम िोता िै। जैसे-
आज मुझे बहुत िाम िै इसद्धलए मैं तुम्िारे पास निीं आ सिूाँगा।
3. द्धमद्धश्रत िाक्य
जब किसी द्धिर्य पर पूणष द्धिचार प्रिट िरने िे द्धलए िई साधारण िाक्यों िो द्धमलािर एि िाक्य िी रचना
िरनी पड़ती िै तब ऐसे रद्धचत िाक्य िी द्धमद्धश्रत िाक्य ििलाते िैं।
द्धिशेर्- (1) इन िाक्यों में एि मुख्य या प्रधान उपिाक्य और एि अथिा अद्धधि आद्धश्रत उपिाक्य िोते िैं जो
समुच्चयबोधि अव्यय से जुड़े िोते िैं।
(2) मुख्य उपिाक्य िी पुद्धष्ट, समथषन, स्पष्टता अथिा द्धिस्तार िेतु िी आद्धश्रत िाक्य आते िै।
आद्धश्रत िाक्य तीन प्रिार िे िोते िैं-
(1) सांज्ञा उपिाक्य।
(2) द्धिशेर्ण उपिाक्य।
21. (3) किया-द्धिशेर्ण उपिाक्य।
1. सांज्ञा उपिाक्य- जब आद्धश्रत उपिाक्य किसी सांज्ञा अथिा सिषनाम िे स्थान पर आता िै तब िि सांज्ञा
उपिाक्य ििलाता िै। जैसे- िि चािता िै कि मैं यिााँ िभी न आऊाँ । यिााँ कि मैं िभी न आऊाँ , यि सांज्ञा
उपिाक्य िै।
2. द्धिशेर्ण उपिाक्य- जो आद्धश्रत उपिाक्य मुख्य उपिाक्य िी सांज्ञा शब्द अथिा सिषनाम शब्द िी द्धिशेर्ता
बतलाता िै िि द्धिशेर्ण उपिाक्य ििलाता िै। जैसे- जो घड़ी मेज पर रिी िै िि मुझे पुरस्िारस्िरूप द्धमली
िै। यिााँ जो घड़ी मेज पर रिी िै यि द्धिशेर्ण उपिाक्य िै।
3. किया-द्धिशेर्ण उपिाक्य- जब आद्धश्रत उपिाक्य प्रधान उपिाक्य िी किया िी द्धिशेर्ता बतलाता िै तब िि
किया-द्धिशेर्ण उपिाक्य ििलाता िै। जैसे- जब िि मेरे पास आया तब मैं सो रिा था। यिााँ पर जब िि मेरे
पास आया यि किया-द्धिशेर्ण उपिाक्य िै।
िाक्य-पररितषन
िाक्य िे अथष में किसी तरि िा पररितषन किए द्धबना उसे एि प्रिार िे िाक्य से दूसरे प्रिार िे िाक्य में
पररितषन िरना िाक्य-पररितषन ििलाता िै।
(1) साधारण िाक्यों िा सांयुक्त िाक्यों में पररितषन-
साधारण िाक्य सांयुक्त िाक्य
1. मैं दूध पीिर सो गया। मैंने दूध द्धपया और सो गया।
2. िि पढने िे अलािा अिबार भी बेचता िै। िि पढता भी िै और अिबार भी बेचता िै
3. मैंने घर पहुाँचिर सब बच्चों िो िेलते हुए देिा। मैंने घर पहुाँचिर देिा कि सब बच्चे िेल रिे थे।
4. स्िास््य ठीि न िोने से मैं िाशी निीं जा सिा। मेरा स्िास््य ठीि निीं था इसद्धलए मैं िाशी निीं जा सिा।
5. सिेरे तेज िर्ाष िोने िे िारण मैं दफ्तर देर से पहुाँचा। सिेरे तेज िर्ाष िो रिी थी इसद्धलए मैं दफ्तर देर से
पहुाँचा।
(2) सांयुक्त िाक्यों िा साधारण िाक्यों में पररितषन-
सांयुक्त िाक्य साधारण िाक्य
1. द्धपताजी अस्िस्थ िैं इसद्धलए मुझे जाना िी पड़ेगा। द्धपताजी िे अस्िस्थ िोने िे िारण मुझे जाना िी पड़ेगा।
2. उसने ििा और मैं मान गया। उसिे ििने से मैं मान गया।
3. िि िेिल उपन्यासिार िी निीं अद्धपतु अच्छा िक्ता भी िै। िि उपन्यासिार िे अद्धतररक्त अच्छा िक्ता भी
िै।
4. लू चल रिी थी इसद्धलए मैं घर से बािर निीं द्धनिल सिा। लू चलने िे िारण मैं घर से बािर निीं द्धनिल
सिा।
5. गार्ष ने सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी। गार्ष िे सीटी देने पर ट्रेन चल पड़ी।
(3) साधारण िाक्यों िा द्धमद्धश्रत िाक्यों में पररितषन-
साधारण िाक्य द्धमद्धश्रत िाक्य
1. िरलसगार िो देिते िी मुझे गीता िी याद आ जाती िै। जब मैं िरलसगार िी ओर देिता हाँ तब मुझे गीता
िी याद आ जाती िै।
2. राष्ट्र िे द्धलए मर द्धमटने िाला व्यद्धक्त सच्चा राष्ट्रभक्त िै। िि व्यद्धक्त सच्चा राष्ट्रभक्त िै जो राष्ट्र िे द्धलए मर द्धमटे।
22. 3. पैसे िे द्धबना इांसान िुछ निीं िर सिता। यकद इांसान िे पास पैसा निीं िै तो िि िुछ निीं िर सिता।
4. आधी रात िोते-िोते मैंने िाम िरना बांद िर कदया। ज्योंिी आधी रात हुई त्योंिी मैंने िाम िरना बांद िर
कदया।
(4) द्धमद्धश्रत िाक्यों िा साधारण िाक्यों में पररितषन-
द्धमद्धश्रत िाक्य साधारण िाक्य
1. जो सांतोर्ी िोते िैं िे सदैि सुिी रिते िैं सांतोर्ी सदैि सुिी रिते िैं।
2. यकद तुम निीं पढोगे तो परीक्षा में सफल निीं िोगे। न पढने िी दशा में तुम परीक्षा में सफल निीं िोगे।
3. तुम निीं जानते कि िि िौन िै ? तुम उसे निीं जानते।
4. जब जेबितरे ने मुझे देिा तो िि भाग गया। मुझे देििर जेबितरा भाग गया।
5. जो द्धिद्वान िै, उसिा सिषत्र आदर िोता िै। द्धिद्वानों िा सिषत्र आदर िोता िै।
रस
काव्य को पढ़ते या सुनते सिय हिें त्जस आनन्द्द की अनुभूनत होती है ,उसे ही रस
कहा जाता है ! रसों की संख्या नौ िानी गई हैं !
रस का नाि स्िायीभाव
1- श्रृंगार - रनत
2- वीर - उतसाह
3- रौद्र - िोि
4- वीभतस - जुगुतसा ( घृर्ा )
5- अदभुत - ववस्िय
6- िान्द्त - ननवेद
7- हास्य - हास
8- भयानक - भय
9- करुर् - िोक
( इनके अनतररक्त दो रसों की चचाा और होती है )-
10- वातसल्य - सन्द्तान ववषयक रनत
11- भत्क्त - भगवद ववषयक रनत
23. अलंकार
अनुप्रास - जहां एक ही व्यंजन या कई व्यंजनों की आवृत्तत बार-बार हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है।
यिक - एक ही िब्द की मभन्द्न -मभन्द्न अिों िें आवृत्तत यिक कहलाती है ।
चलेष -जब एक ही िब्द से मभन्द्न -मभन्द्न कई अिा प्रकट करने का अमभप्राय होता हो, तो उसे चलेष कहते हैं ।
उपिा - जब दो वस्तुओं की तुलना रूप, रंग या गुर् की सिानता के कारर् की जाती है तो उपिा अलंकार होता है।
त्जस वस्तु का वर्ान क्रकया जाता है उसे `उपिान` कहते है
रूपक - उपिा की ही भांनत रूपक िें भी दो वस्तुओं की तुलना की जाती है। इसिें उपिेय पर उपिान का आरोप
कर हदया जाता है त्जससे उपिा के `ििा` और `वाचक िब्द` इसिें नहीं होते ।
उतप्रेक्षा - जब उपिेय िें उपिान से मभन्द्नताजानते हुए भी उसिें उपिान की सम्भावना प्रकट की जाती है तो
उतप्रेक्षा अलंकार होता है। यह सम्भावना िनु, िनहु, िानो, जानो आहद िब्दों के प्रयोग द्वारा प्रकट की जाती है।
उल्लेख - जब क्रकसी वस्तु का वर्ान अनेक प्रकार से क्रकया जाता है तो उल्लेख अलंकार होता है । जैसे- त्जनकी
रही भावना ज øसी, प्रभु िूरनत देखी नतन तैसी ।
अनतियोत्क्त - जहाँ क्रकसी वस्तु की सराहना अतयंत बढ़ा-चढ़ा कर की जाती है वहाँ अनतियोत्क्त अलंकार होता है।
अन्द्योत्क्त - जहाँ अप्रस्तुत के वर्ान द्वारा प्रस्तुत की व्यंजना हो वहाँ अन्द्योत्क्त अलंकार होता है।
27. िाठ िर आधाररत प्रश्नोत्तर
01. सूरदास
प्रश्न : गोवपयों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने िें क्या व्यंग्य ननहहत है?
उत्तर- गोवपयाँ उद्धव को भाग्यवान कहते हुए व्यंग्य कसती है क्रक श्री कृ ष्र् के साननध्य िें रहते
हुए भी वे श्री कृ ष्र् के प्रेि से सवािा िुक्त रहे। वे कै से श्री कृ ष्र् के स्नेह व प्रेि के बंिन िें
अभी तक नहीं बंिे?, श्री कृ ष्र् के प्रनत कै से उनके हृदय िें अनुराग उतपन्द्न नहीं हुआ? अिाात ् श्री
कृ ष्र् के साि कोई व्यत्क्त एक क्षर् भी व्यतीत कर ले तो वह कृ ष्र्िय हो जाता है। परन्द्तु ये
उद्धव तो उनसे तननक भी प्रभाववत नहीं है प्रेि िें डूबना तो अलग बात है।
प्रश्न: उद्धव के व्यवहार की तुलना क्रकस-क्रकस से की गई है?
उत्तर- गोवपयों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना ननम्नमलखखत उदाहरर्ों से की है -
(1)गोवपयों ने उद्धव के व्यवहार की तुलना किल के पतते से की है जो नदी के जल िें रहते हुए
भी जल की ऊपरी सतह पर ही रहता है। अिाात ् जल का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। श्री कृ ष्र्
का साननध्य पाकर भी वह श्री कृ ष्र् के प्रभाव से िुक्त हैं।
(2)वह जल के िध्य रखे तेल के गागर (िटके ) की भाँनत हैं, त्जस पर जल की एक बूँद भी हटक
नहीं पाती। उद्धव पर श्री कृ ष्र् का प्रेि अपना प्रभाव नहीं िोड़ पाया है, जो ज्ञाननयों की तरह
व्यवहार कर रहे हैं।
(3) उद्धव ने गोवपयों को जो योग का उपदेि हदया िा उसके बारे िें उनका यह कहना है क्रक यह
योग सुनते ही कड़वी ककड के सिान प्रतीत होता है। इसे ननगला नहीं जा सकता।
28. प्रश्न : कृ ष्र् के प्रनत अपने अनन्द्य प्रेि को गोवपयों ने क्रकस प्रकार अमभव्यक्त क्रकया है?
उत्तर- कृ ष्र् के प्रनत अपने अनन्द्य प्रेि को गोवपयों ने ननम्नमलखखत उदाहरर्ों द्वारा व्यक्त
क्रकया है
(1) उन्द्होंने स्वयं की तुलना चींहटयों से और श्री कृ ष्र् की तुलना गुड़ से की है। उनके अनुसार
श्री कृ ष्र् उस गुड़ की भाँनत हैं त्जस पर चींहटयाँ थचपकी रहती हैं। (गुर चाँटी जयौं पागी)
(2) उन्द्होंने स्वयं को हाररल पक्षी व श्री कृ ष्र् को लकड़ी की भाँनत बताया है, त्जस तरह हाररल
पक्षी लकड़ी को नहीं िोड़ता उसी तरह उन्द्होंने िन, िि, वचन से श्री कृ ष्र् की प्रेि रुपी लकड़ी
को दृढ़तापूवाक पकड़ मलया है। (हिारैं हाररल की लकरी, िन िि वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़
करर पकरी)
(3) वह श्री कृ ष्र् के प्रेि िें रात-हदन, सोते-जागते मसर्फा श्री कृ ष्र् का नाि ही रटती रहती है।
(जागत सोवत स्वतन हदवस-ननमस, कान्द्ह-कान्द्ह जक री।)
प्रश्न : गोवपयों ने अपने वाक्चातुया के आिार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर हदया, उनके
वाक्चातुया की वविेषताएँ मलखखए?
उत्तर- गोवपयों के वाक्चातुया की वविेषताएँ इस प्रकार है -
(1) तानों द्वारा (उपालंभ द्वारा) - गोवपयाँ उद्धव को अपने तानों के द्वारा चुप करा देती हैं।
उद्धव के पास उनका कोई जवाब नहीं होता। वे कृ ष्र् तक को उपालंभ दे डालती हैं। उदाहरर् के
मलए -
इक अनत चतुर हुते पहहलैं ही, अब गुरु ग्रंि पढ़ाए।
बढ़ी बुवद्ध जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
(2) तका क्षिता - गोवपयों ने अपनी बात तका पूर्ा ढंग से कही है। वह स्िान-स्िान पर तका
देकर उद्धव को ननरुततर कर देती हैं। उदाहरर् के मलए -
"सुनत जोग लागत है ऐसौ, जयौं करुई ककरी।"
सु तौ ब्याथि हिकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ 'सूर' नतनहह लै सौंपौ, त्जनके िन चकरी।।
29. (3) व्यंग्यातिकता - गोवपयों िें व्यंग्य करने की अद्भुत क्षिता है। वह अपने व्यंग्य बार्ों द्वारा
उद्धव को घायल कर देती हैं। उनके द्वारा उद्धव को भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना िा।
(4) तीखे प्रहारों द्वारा - गोवपयों ने तीखे प्रहारों द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी है।
प्रश्न :संकमलत पदों को ध्यान िें रखते हुए सूर के भ्रिरगीत की िुख्य वविेषताएँ बताइए?
उत्तर- भ्रिरगीत की ननम्नमलखखत वविेषताएँ इस प्रकार हैं -
(1) सूरदास ने अपने भ्रिर गीत िें ननगुार् ब्रह्ि का खंडन क्रकया है।
(2) भ्रिरगीत िें गोवपयों के कृ ष्र् के प्रनत अनन्द्य प्रेि को दिााया गया है।
(3) भ्रिरगीत िें उद्धव व गोवपयों के िाध्यि से ज्ञान को प्रेि के आगे नतिस्तक होते हुए
बताया गया है, ज्ञान के स्िान पर प्रेि को सवोपरर कहा गया है।
(4) भ्रिरगीत िें गोवपयों द्वारा व्यंग्यातिक भाषा का प्रयोग क्रकया गया है।
(5) भ्रिरगीत िें उपालंभ की प्रिानता है।
(6) भ्रिरगीत िें ब्रजभाषा की कोिलकांत पदावली का प्रयोग हुआ है। यह ििुर और सरस है।
(7) भ्रिरगीत प्रेिलक्षर्ा भत्क्त को अपनाता है। इसमलए इसिें ियाादा की अवहेलना की गई है।
(8) भ्रिरगीत िें संगीतातिकता का गुर् ववद्यिान है।
02. तुलसीदास
प्रश्न:परिुराि के िोि करने पर लक्ष्िर् ने िनुष के टूट जाने के मलए कौन-कौन से तका हदए?
उत्तर- परिुराि के िोि करने पर लक्ष्िर् ने िनुष के टूट जाने पर ननम्नमलखखत तका हदए
(1) हिें तो यह असािारर् मिव िुनष सािारर् िनुष की भाँनत लगा।
(2) श्री राि को तो ये िनुष, नए िनुष के सिान लगा।
(3) श्री राि ने इसे तोड़ा नहीं बस उनके िू ते ही िनुष स्वत: टूट गया।
(4) इस िनुष को तोड़ते हुए उन्द्होंने क्रकसी लाभ व हानन के ववषय िें नहीं सोचा िा।
30. (5) उन्द्होंने ऐसे अनेक िनुषों को बालपन िें यूँ ही तोड़ हदया िा। इसमलए यही सोचकर उनसे
यह काया हो गया।
प्रश्न : लक्ष्िर् ने वीर योद्धा की क्या-क्या वविेषताएँ बताई?
उत्तर- लक्ष्िर् ने वीर योद्धा की ननम्नमलखखत वविेषताएँ बताई है -
(1) वीर पुरुष स्वयं अपनी वीरता का बखान नहीं करते अवपतु वीरता पूर्ा काया स्वयं वीरों का
बखान करते हैं।
(2) वीर पुरुष स्वयं पर कभी अमभिान नहीं करते। वीरता का व्रत िारर् करने वाले वीर पुरुष
िैयावान और क्षोभरहहत होते हैं।
(3) वीर पुरुष क्रकसी के ववरुद्ध गलत िब्दों का प्रयोग नहीं करते। अिाात ् दूसरों को सदैव सिान
रुप से आदर व सम्िान देते हैं।
(4) वीर पुरुष दीन-हीन, ब्राह्िर् व गायों, दुबाल व्यत्क्तयों पर अपनी वीरता का प्रदिान नहीं करते
हैं। उनसे हारना व उनको िारना वीर पुरुषों के मलए वीरता का प्रदिान न होकर पाप का
भागीदार होना है।
(5) वीर पुरुषों को चाहहए क्रक अन्द्याय के ववरुद्ध हिेिा ननडर भाव से खड़े रहे।
(6) क्रकसी के ललकारने पर वीर पुरुष कभी पीिे कदि नहीं रखते अिाात ् वह यह नहीं देखते क्रक
उनके आगे कौन है वह ननडरता पूवाक उसका जवाब देते हैं।
प्रश्न :साहस और ित्क्त के साि ववनम्रता हो तो बेहतर है। इस किन पर अपने ववचार मलखखए।
उत्तर- साहस और ित्क्त ये दो गुर् एक व्यत्क्त को (वीर) श्रेष्ठ बनाते हैं। यहद क्रकसी व्यत्क्त
िें साहस ववद्यिान है तो ित्क्त स्वयं ही उसके आचरर् िें आ जाएगी परन्द्तु जहाँ तक एक
व्यत्क्त को वीर बनाने िें सहायक गुर् होते हैं वहीं दूसरी ओर इनकी अथिकता एक व्यत्क्त को
अमभिानी व उद्दंड बना देती है। कारर्वि या अकारर् ही वे इनका प्रयोग करने लगते हैं। परन्द्तु
यहद ववन्रिता इन गुर्ों के साि आकर मिल जाती है तो वह उस व्यत्क्त को श्रेष्ठति वीर की
श्रेर्ी िें ला देती है जो साहस और ित्क्त िें अहंकार का सिावेि करती है। ववनम्रता उसिें
सदाचार व ििुरता भर देती है,वह क्रकसी भी त्स्िनत को सरलता पूवाक िांत कर सकती है। जहाँ
परिुराि जी साहस व ित्क्त का संगि है। वहीं राि ववनम्रता, साहस व ित्क्त का संगि है।
उनकी ववनम्रता के आगे परिुराि जी के अहंकार को भी नतिस्तक होना पड़ा नहीं तो लक्ष्िर्
जी के द्वारा परिुराि जी को िांत करना सम्भव नहीं िा।
31. प्रश्न: ननम्नमलखखत पंत्क्तयों िें प्रयुक्त अलंकार पहचान कर मलखखए -
(क) बालकु बोमल बिौं नहह तोही।
(ख) कोहट कु मलस सि बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।
बार बार िोहह लाथग बोलावा||
(घ) लखन उतर आहुनत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु।
बढ़त देखख जल सि बचन बोले रघुकु लभानु||
उत्तर (क) बालकु बोमल बिौं नहह तोही।
अनुप्रास अलंकार - उक्त पंत्क्त िें 'ब' वर्ा की एक से अथिक बार आवृत्तत हुई है, इसमलए यहाँ
अनुप्रास अलंकार है।
(ख) कोहट कु मलस सि बचनु तुम्हारा।
(1) अनुप्रास अलंकार - उक्त पंत्क्त िें 'क' वर्ा की एक से अथिक बार आवृत्तत हुई
है, इसमलए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
(2) उपिा अलंकार - कोहट कु मलस सि बचनु िें उपिा अलंकार है। क्योंक्रक
परिुराि जी के एक-एक वचनों को वज्र के सिान बताया गया है।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा बार बार िोहह लाथग बोलावा||
(1) उतप्रेक्षा अलंकार - 'काल हाँक जनु लावा' िें उतप्रेक्षा अलंकार है। यहाँ जनु
उतप्रेक्षा का वाचक िब्द है।
(2) पुनरुत्क्त प्रकाि अलंकार - 'बार-बार' िें पुनरुत्क्त प्रकाि अलंकार है। क्योंक्रक
बार िब्द की दो बार आवृत्तत हुई पर अिा मभन्द्नता नहीं है।
(घ)लखन उतर आहुनत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु।
बढ़त देखख जल सि बचन बोले रघुकु लभानु||
(1) उपिा अलंकार
(i) उतर आहुनत सररस भृगुबरकोपु कृ सानु िें उपिा अलंकार है
(ii) जल सि बचन िें भी उपिा अलंकार है क्योंक्रक भगवान राि के ििुर वचन
जल के सिान काया रहे हैं।
(2) रुपक अलंकार - रघुकु लभानु िें रुपक अलंकार है यहाँ श्री राि को रघुकु ल का
सूया कहा गया है। श्री राि के गुर्ों की सिानता सूया से की गई है।
32. 03.देि
प्रश्न : कवव ने 'श्रीबज्रदूलह' क्रकसके मलए प्रयुक्त क्रकया है और उन्द्हें ससांर रूपी िंहदर दीपक क्यों
कहा है?
उत्तर- देव जी ने 'श्रीबज्रदूलह' श्री कृ ष्र् भगवान के मलए प्रयुक्त क्रकया है। देव जी के अनुसार
श्री कृ ष्र् उस प्रकाििान दीपक की भाँनत हैं जो अपने उजाले से संसार रुपी िंहदर का अंिकार
दूर कर देते हैं। अिाात ् उनकी सौंदया की अनुपि िटा सारे संसार को िोहहत कर देती है।
प्रश्न : ननम्नमलखखत पंत्क्तयों का काव्य-सौंदया स्पष्ट कीत्जए -
पाँयनन नूपुर िंजु बजैं, कहट क्रकं क्रकनन कै िुनन की ििुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हहये हुलसै बनिाल सुहाई।
उत्तर- प्रस्तुत पंत्क्तयाँ देवदतत द्वववेदी द्वारा रथचत सवैया से ली गई है। इसिें देव द्वारा श्री
कृ ष्र् के सौंदया का बखान क्रकया गया है।
देव जी कहते - श्री कृ ष्र् के पैरों िें पड़ी हुई पायल बहुत ििुर ध्वनन दे रही है अिाात ् बज रही
है और किर िें पड़ी हुई तगड़ी (किरबन्द्ि) भी ििुर ध्वनन उतपन्द्न कर रही है। श्री कृ ष्र् के
साँवले सलोने िरीर पर पीताम्बर वस्त्र (पीले रंग के वस्त्र) सुिोमभत हो रहा है और इसी तरह
उनके गले िें पड़ी हुई बनिाला बहुत ही सुंदर जान पड़ती है। अिाात ् श्री कृ ष्र् पीताम्बर वस्त्र व
गले िें बनिाला िारर् कर अलग ही िोभा दे रहे हैं। उक्त पंत्क्तयों िें सवैया िंद का सुंदर
प्रयोग क्रकया गया है। ब्रज भाषा के प्रयोग से िंद िें ििुरता का रस मिलता है। उक्त पंत्क्तयों
िे कहट क्रकं क्रकनन, पट पीत, हहये हुलसै िें 'क', 'प', 'ह' वर्ा क्रक एक से अथिक बार आवृत्तत के
कारर् अनुप्रास की अथिकता मिलती है।
प्रश्न :चाँदनी रात की सुंदरता को कवव ने क्रकन-क्रकन रूपों िें देखा है?
उत्तर- देवदतत जी आकाि िें चाँदनी रात की सुंदरता अपनी कल्पना के सागर िें ननम्नमलखखत
रुपों िें देखते हैं -
(1) देवदतत जी आकाि िें फै ली चाँदनी को आकाि िें स्फहटक मिला से बने िंहदर के रुप िें
देख रहे हैं।
33. (2) देवदतत के अनुसार चाँदनी रुपी दही का सिंदर सिस्त आकाि िें उिड़ता हुआ सा नज़र
आ रहा है।
(3) उनके अनुसार चाँदनी सिस्त आकाि िें फै ली हुई ऐसी प्रतीत हो रही है िानो आकाि रुपी
आँगन िें दूि का फे न (झाग) फै ल गया हो।
(4) देवदतत कहते हैं आकाि के सारे तारे नानयका का वेि िारर् कर अपनी सुंदरता की आभा
को सिस्त आकाि िें बबखेर रहे हैं।
(5) देवदतत के अनुसार चाँदनी िें चाँद के प्रनतबबंब िें रािा रानी की िवव का आभास प्रातत
होता है।
04. जयर्ंकर प्रसाद
प्रश्न : कवव आतिकिा मलखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर- आतिकिा मलखने के मलए अपने िन क्रक दुबालताओं, कमियों का उल्लेख करना पड़ता है।
कवव स्वयं को इतना सािान्द्य िानता है क्रक आतिकिा मलखकर वह खुद को वविेष नहीं बनाना
चाहता है, कवव अपने व्यत्क्तगत अनुभवों को दुननया के सिक्ष व्यक्त नहीं करना चाहता।
क्योंक्रक वह अपने व्यत्क्तगत जीवन को उपहास का कारर् नहीं बनाना चाहता। इन्द्हीं कारर्ों से
कवव आतिकिा मलखने से बचना चाहता है।
प्रश्न : स्िृनत को 'पािेय' बनाने से कवव का क्या आिय है?
उत्तर- कवव की प्रेयसी उससे दूर हो गई है। कवव के िन-ित्स्तष्क पर के वल उसकी स्िृनत ही
है। इन्द्हीं स्िृनतयों को कवव अपने जीने का संबल अिाात ् सहारा बनाना चाहता है। अत: स्िृनत
को पािेय बनाने से कवव का आिय स्िृनत के सहारे से है।
05. सूयाकांत त्रत्रिाठी 'तनराला'
प्रश्न : कवव बादल से फु हार, ररिखझि या बरसने के स्िान पर 'गरजने' के मलए कहता है, क्यों?
उत्तर-कवव ने बादल से फु हार, ररिखझि या बरसने के मलए नहीं कहता बत्ल्क 'गरजने' के मलए
कहा है; क्योंक्रक 'गरजना' ववद्रोह का प्रतीक है। कवव ने बादल के गरजने के िाध्यि से कववता िें
नूतन ववद्रोह का आह्वान क्रकया है।
34. प्रश्न : कववता िें बादल क्रकन-क्रकन अिों की ओर संके त करता है?
उत्तर- 'उतसाह' कववता िें बादल ननम्नमलखखत अिों की ओर संके त करता है -
(1) बादल पीडड़त-तयासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
(2) बादल नई कल्पना और नए अंकु र के मलए ववध्वंस, ववतलव औऱ िांनत चेतना को संभव
करने वाला है।
(3) बादल कववता िें नया जीवन लाने िें सक्रिय है।
06. नागाजुान
प्रश्न : कवव के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर- कवव के अनुसार फसल ढ़ेर सारी नहदयों के पानी का जादू, अनेक लोगों के हािों के स्पिा
की गररिा तिा बहुत सारे खेतों की मिट्टी के गुर् का मिला जुला पररर्ाि है। अिाात ् फसल
क्रकसी एक की िेहनत का फल नहीं बत्ल्क इसिें सभी का योगदान सत्म्िमलत है।
प्रश्न :कववता िें फसल उपजाने के मलए आवचयक ततवों की बात कही गई है। वे आवचयक ततव
कौन-कौन से हैं?
उत्तर- प्रस्तुत कववता िें कवव ने फसल उपजाने के मलए िानव पररश्रि, पानी, मिट्टी, सूरज की
क्रकरर्ों तिा हवा जैसे ततवों को आवचयक कहा है।
प्रश्न :फसल को 'हािों के स्पिा की गररिा' और 'िहहिा' कहकर कवव क्या व्यक्त करना चाहता
है?
उत्तर-फसल के मलए भले ही पानी, मिट्टी, सूरज की क्रकरर्ें तिा हवा जैसे ततवों की आवचयकता
है। परन्द्तु िनुष्य के पररश्रि के बबना ये सभी सािन व्यिा हैं। यहद िनुष्य अपने पररश्रि के
द्वारा इसे भली प्रकार से नहीं सींचे तब तक इन सब सािनों की सफलता नहीं होगी। अत:
िानव श्रि फसल के मलए सबसे अथिक आवचयक है।
35. 07. गगररजाकु मार माथुर
प्रश्न :कवव ने कहठन यिािा के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर- यिािा िनुष्य जीवन के संघषों का कड़वा सच है। हि यहद जीवन की कहठनाइयों व
दु:खों का सािना न कर उनको अनदेखा करने का प्रयास करेंगे तो हि स्वयं क्रकसी िंत्जल को
प्रातत नहीं कर सकते। बीते पलों की स्िृनतयों को अपने से थचपकाके रखना और अपने वतािान
से अंजान हो जाना िनुष्य के मलए िात्र सिय की बबाादी के अलावा और कु ि नहीं है। अपने
जीवन िें घट रहे कड़वे अनुभवों व िुत्चकलों से दृढ़तापूवाक लड़ना ही िनुष्य का प्रिि कतताव्य
है अिाात ् जीवन की कहठनाइयों को यिािा भाव से स्वीकार उनसे िुँह न िोड़कर उसके प्रनत
सकारातिक भाव से उसका सािना करना चाहहए। तभी स्वयं की भलाई की ओर एक कदि
उठाया जा सकता है, नहीं तो सब मिथ्या ही है। इसमलए कवव ने यिािा के पूजन की बात कही
है।
प्रश्न :'िाया' िब्द यहाँ क्रकस संदभा िें प्रयुक्त हुआ है? कवव ने उसे िू ने के मलए िना क्यों क्रकया
है?
उत्तर-िाया िब्द से तातपया जीवन की बीती ििुर स्िृनतयाँ हैं। कवव के अनुसार हिारे जीवन िें
सुख व दुख कभी एक सिान नहीं रहता परन्द्तु उनकी ििुर व कड़वी यादें हिारे ित्स्तष्क
(हदिाग) िें स्िृनत के रुप िें हिेिा सुरक्षक्षत रहती हैं। अपने वतािान के कहठन पलों को बीते
हुए पलों की स्िृनत के साि जोड़ना हिारे मलए बहुत कष्टपूर्ा हो सकता है। वह ििुर स्िृनत हिें
किज़ोर बनाकर हिारे दुख को और भी कष्टदायक बना देती है। इसमलए हिें चाहहए क्रक उन
स्िृनतयों को भूलकर अपने वतािान की सच्चाई को यिािा भाव से स्वीकार कर वतािान को
भूतकाल से अलग रखें।
प्रश्न :'िृगतृष्र्ा' क्रकसे कहते हैं, कववता िें इसका प्रयोग क्रकस अिा िें हुआ है?
उत्तर-िृगतृष्र्ा दो िब्दों से मिलकर बना है िृग व तृष्र्ा। इसका तातपया है आँखों का भ्रि
अिाात ् जब कोई चीज़ वास्तव िें न होकर भ्रि की त्स्िनत बनाए, उसे िृगतृष्र्ा कहते हैं। इसका
प्रयोग कववता िें प्रभुता की खोज िें भटकने के संदभा िें हुआ है। इस तृष्र्ा िें फँ सकर िनुष्य
हहरन की भाँनत भ्रि िें पड़ा हुआ भटकता रहता है।
36. 08. ऋतुराज
प्रश्न :आपके ववचार से िाँ ने ऐसा क्यों कहा क्रक लड़की होना पर लड़की जैसी ित हदखाई देना?
उत्तर-इन पंत्क्तयों िें लड़की की कोिलता तिा किज़ोरी को स्पष्ट क्रकया गया है। लड़की की
कोिलता को उसका सबसे बड़ा गुर् िाना जाता है, परन्द्तु लड़की की िाँ उसे लड़की जैसा हदखने
अिाात ् अपनी किज़ोरी को प्रकट करने से साविान करती है क्योंक्रक किज़ोर लड़क्रकयों का
िोषर् क्रकया जाता है।
प्रश्न :िाँ को अपनी बेटी 'अंनति पूँजी' क्यों लग रही िी?
उत्तर- िाँ और बेटी का सम्बन्द्ि मित्रतापूर्ा होता है। इनका सम्बन्द्ि सभी सम्बन्द्िों से अथिक
आतिीय होता है। िाँ, बेटी के साि अपना सुख-दु:ख बाँट लेती है। बेटी उसके खुमियों तिा उसके
कष्टों का एकिात्र सहारा होती है। बेटी के चले जाने के पचचात ् िाँ के जीवन िें खालीपन आ
जाएगा। वह बचपन से अपनी पुत्री को सँभालकर उसका पालन-पोषर् एक िूल्यवान सम्पत्तत की
तरह करती है। इसमलए िाँ को उसकी बेटी अंनति पूँजी लगती है।
प्रश्न : िाँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?
उत्तर-िाँ ने अपनी बेटी को ववदा करते सिय ननम्नमलखखत सीख दी -
(1) िाँ ने बेटी को उसकी सुंदरता पर गवा न करने की सीख दी।
(2) िाँ ने अपनी बेटी को दु:ख पीडड़त होकर आतिहतया न करने की सीख दी।
(3) िाँ ने बेटी को िन सम्पत्तत के आकषार् से दूर रहने की सलाह दी।
09.मंगलेर् डबराल
प्रश्न :संगतकार के िाध्यि से कवव क्रकस प्रकार के व्यत्क्तयों की ओर संके त करना चाह रहा है?
उत्तर- संगतकार के िाध्यि से कवव उस वगा की ओर संके त करना चाहता है त्जसके सहयोग
के बबना कोई भी व्यत्क्त ऊँ चाई के मिखर को प्रातत नहीं कर सकता है। जैसे संगतकार िुख्य
गायक के साि मिलकर उसके सुरों िें अपने सुरों को मिलाकर उसके गायन िें नई जान फूँ कता
है और उसका सारा श्रेय िुख्य गायक को ही प्रातत होता है। इसी तरह एक आक्रका टेक्ट एक भवन
का नक्िा बनता है, परन्द्तु भवन ननिाार् िें उसके िज़दूरों व इंजीननयरों की भी सहभाथगता होती
है। परन्द्तु श्रेय उसके िुख्य आक्रका टेक्ट को ही प्रातत होता है अन्द्य को नहीं।
37. 10.नेताजी का चश्मा (स्ियं प्रकार्)
प्रश्न :सेनानी न होते हुए भी चचिेवाले को लोग कै तटन क्यों कहते िे?
उत्तर-चचिेवाला एक देिभक्त नागररक िा। उसके हृदय िें देि के वीर जवानों के प्रनत सम्िान
िा। इसमलए लोग उसे कै तटन कहते िे।
प्रश्न :पानवाले का एक रेखाथचत्र प्रस्तुत कीत्जए।
उत्तर- सड़क के चौराहे के क्रकनारे एक पान की दुकान िें एक पान वाला बैठा है। वह काला तिा
िोटा है, उसके मसर पर थगने-चुने बाल ही बचे हैं। वह एक तरर्फ ग्राहक के मलए पान बना रहा है,
वहीं दूसरी ओर उसका िुँह पान से भरा है। पान खाने के कारर् उसके होंठ लाल तिा कहीं-कहीं
काले पड़ गए हैं। उसने अपने कं िे पर एक कपड़ा रखा हुआ है त्जससे रह-रहकर अपना चेहरा
सार्फ करता है।
11. बालगोत्रबन भगत (रामिृक्ष बेनीिुरी)
प्रश्न :खेतीबारी से जुड़े गृहस्ि बालगोबबन भगत अपनी क्रकन चाररबत्रक वविेषताओं के कारर् सािु
कहलाते िे?
उत्तर- बालगोबबन भगत एक गृहस्ि िे परन्द्तु उनिें सािु कहलाने वाले गुर् भी िे -
(1) कबीर के आदािों पर चलते िे, उन्द्हीं के गीत गाते िे।
(2) कभी झूठ नहीं बोलते िे, खरा व्यवहार रखते िे।
(3) क्रकसी से भी दो-टूक बात करने िें संकोच नहीं करते, न क्रकसी से झगड़ा करते िे।
(4) क्रकसी की चीज़ नहीं िू ते िे न ही बबना पूिे व्यवहार िें लाते िे।
(5) कु ि खेत िें पैदा होता, मसर पर लादकर पहले उसे कबीरपंिी िठ िें ले जाते, वहाँ से जो
कु ि भी भेंट स्वरुप मिलता िा उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते िे।
(6) उनिें लालच बबल्कु ल भी नहीं िा।
प्रश्न :बालगोबबन भगत की हदनचयाा लोगों के अचरज का कारर् क्यों िी?
उत्तर- वृद्ध होते हुए भी उनकी स्फू नता िें कोई किी नहीं िी। सदी के िौसि िें भी, भरे बादलों
वाले भादों की आिी रात िें भी वे भोर िें सबसे पहले उठकर गाँव से दो िील दूर त्स्ित गंगा