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ज़ िंदगी की क
ु छ असलियत
क्यों थका देतीिं हैं , इस असिी ज़ िंदगी को वेमतिब कक वह ज़ िंदगी ! जो
सिंस्कारी (ज़जिंदा) हैं उलस को मैं कहता हूँ यह ज़ िंदगी , न जाने काूँच , िकड़ी,
पत्थर , रिंग , रोगन , वाहन, हीरे जवाहरत , पद / होददा को न जाने कब
इिंसान मान बैठता हैं कक यही हैं मेरी अपनी असिी ज़ िंदगी !
जोजो नहीिं हैं , हमारे पास हमें वही वही चाहहये ! क्या हैं रे ज़ िंदगी ? यही
सोच हमें कभी कमजोर , बिवान , बड़ा , छोटा , गरीब , अमीर आहद बना
देता हैं !
ज़ िंदगी भर हम क
ु छ न क
ु छ बटोरते ही रहते हैं ! हमें मािम हैं , खािी हाथ
आये थे , खािी हाथ ही जाना हैं यही हैं ज़ िंदगी बस यही हैं ज़ िंदगी !
हमने कब क्या कयों बटोरा जबरदस्ती !
माूँ बाप का प्यार दुिार बचपन हदखा कर बटोरा !
ज्ञान से नौकरी / धिंधा बटोरा !
पैसों से खब खखयाती बटोरी !
चािाकी से धोका धड़ी बटोरी !
खखयाती से बटोरा बि / पावर !
पावर/बि ने हदया अहिंकार , जो भी हूँ मैं अपने कारण ही हूँ !
पररवार , समाज , देश तो छोड़ो सारे जहािंन में ही सबसे अच्छा (सुप्रीम ) हूँ !
मैं मैं करते करते , आगे , बडते क्या क्या खोया , क्या क
ु चिा इस जीवन में
वह भी देख िो !
माूँ बाप क
े प्यार , दुिार , पसीने , को हम उनक
े असिी समय , याने की
उनक
े बुढ़ापे में उनको कभी कभी यह कह कर जरूर नमाज हदया होगा कक ,
आपको क
ु छ नहीिं मािम हैं , आपका कोई अब काम नहीिं हैं , बेकार में आप
हमें परेशान मत करो यह सब सहटिकिकट्स हम उन्हे देकर जबर दस्ती दुख
पहुिंचाते हैं !
हम ककतनन जल्दी से जल्दी अपना अतीत (बचपन /जवानी) क्यों भि जाते और
और न आने बािे कि क
े भववष्य (बुढ़ापे) को भी कभी याद / चचन्ता नहीिं
करते हैं , अक्सर अपनी असिी ज़ िंदगी में !
जब आखरी में ज़ िंदगी देने वािे कक याद आती हैं, तो हर कोई मन ही मन
उन्हे याद कर क
े प्राथना करता हैं !
अब ज़ िंदगी में सब क
ु छ हार गया हूँ , मेरे मालिक बस तने ज़ िंदगी दी और
ज़ िंदगी भर तुझे हीिं भि गया था दुननया में सब क
ु छ पाया , सबको पहचाना
बस न पहचाना त ज़ िंदगी देने वािे को वहा रे ज़ िंदगी !
दोस्तों यही हैं ज़ िंदगी कक असिी हकीकत ! ज़ िंदगी होती हैं हर चीज बाटने क
े
लिये आप प्यार बाटें , ज्ञान बाटें , शािंनत बािंटे , अपना पन बािंटे , ज़ िंदगी लसि
ि
जीना हैं न कक यहाूँ क
ु छ बटोरना हैं !
मालिक ने जीने कक लिये इिंसान और तो और हर जीव को सब क
ु छ एक जैसा
बबना कीमत / मल्य हदया हैं ! वायु / हवा , जि / पानी , भोजन , आकाश ,
पाति , हदन , रात , हदि , हदमाग , जन्म , बचपन , जवानी , बुढ़ापा और
अिंत में म्रत्यु पक्की हैं !
आप ज़ िंदगी कक असलियत जानते हुये भी अिंजान बनकर ज़ िंदगी न जीयेँ तो
बहुत बेहतर होगा ! बटोरना कम या बिंद करे , अचधक से अचधक िटाना शुरू
करें ! सबको ज़ िंदगी एक जैसे जीने को लमिे आओ हम सब किर से प्रयास करें
! आओ हम सब लमि कर एक ऐसे सिंसार कक रचना करें जहाूँ सब को समान
अचधकार लमिे ज़ िंदगी जीने का !!
धन्यबाद
वीरेंद्र श्रीवास्तव
16/07/2021

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  • 1. ज़ िंदगी की क ु छ असलियत क्यों थका देतीिं हैं , इस असिी ज़ िंदगी को वेमतिब कक वह ज़ िंदगी ! जो सिंस्कारी (ज़जिंदा) हैं उलस को मैं कहता हूँ यह ज़ िंदगी , न जाने काूँच , िकड़ी, पत्थर , रिंग , रोगन , वाहन, हीरे जवाहरत , पद / होददा को न जाने कब इिंसान मान बैठता हैं कक यही हैं मेरी अपनी असिी ज़ िंदगी ! जोजो नहीिं हैं , हमारे पास हमें वही वही चाहहये ! क्या हैं रे ज़ िंदगी ? यही सोच हमें कभी कमजोर , बिवान , बड़ा , छोटा , गरीब , अमीर आहद बना देता हैं ! ज़ िंदगी भर हम क ु छ न क ु छ बटोरते ही रहते हैं ! हमें मािम हैं , खािी हाथ आये थे , खािी हाथ ही जाना हैं यही हैं ज़ िंदगी बस यही हैं ज़ िंदगी ! हमने कब क्या कयों बटोरा जबरदस्ती ! माूँ बाप का प्यार दुिार बचपन हदखा कर बटोरा ! ज्ञान से नौकरी / धिंधा बटोरा ! पैसों से खब खखयाती बटोरी ! चािाकी से धोका धड़ी बटोरी ! खखयाती से बटोरा बि / पावर ! पावर/बि ने हदया अहिंकार , जो भी हूँ मैं अपने कारण ही हूँ ! पररवार , समाज , देश तो छोड़ो सारे जहािंन में ही सबसे अच्छा (सुप्रीम ) हूँ ! मैं मैं करते करते , आगे , बडते क्या क्या खोया , क्या क ु चिा इस जीवन में वह भी देख िो !
  • 2. माूँ बाप क े प्यार , दुिार , पसीने , को हम उनक े असिी समय , याने की उनक े बुढ़ापे में उनको कभी कभी यह कह कर जरूर नमाज हदया होगा कक , आपको क ु छ नहीिं मािम हैं , आपका कोई अब काम नहीिं हैं , बेकार में आप हमें परेशान मत करो यह सब सहटिकिकट्स हम उन्हे देकर जबर दस्ती दुख पहुिंचाते हैं ! हम ककतनन जल्दी से जल्दी अपना अतीत (बचपन /जवानी) क्यों भि जाते और और न आने बािे कि क े भववष्य (बुढ़ापे) को भी कभी याद / चचन्ता नहीिं करते हैं , अक्सर अपनी असिी ज़ िंदगी में ! जब आखरी में ज़ िंदगी देने वािे कक याद आती हैं, तो हर कोई मन ही मन उन्हे याद कर क े प्राथना करता हैं ! अब ज़ िंदगी में सब क ु छ हार गया हूँ , मेरे मालिक बस तने ज़ िंदगी दी और ज़ िंदगी भर तुझे हीिं भि गया था दुननया में सब क ु छ पाया , सबको पहचाना बस न पहचाना त ज़ िंदगी देने वािे को वहा रे ज़ िंदगी ! दोस्तों यही हैं ज़ िंदगी कक असिी हकीकत ! ज़ िंदगी होती हैं हर चीज बाटने क े लिये आप प्यार बाटें , ज्ञान बाटें , शािंनत बािंटे , अपना पन बािंटे , ज़ िंदगी लसि ि जीना हैं न कक यहाूँ क ु छ बटोरना हैं ! मालिक ने जीने कक लिये इिंसान और तो और हर जीव को सब क ु छ एक जैसा बबना कीमत / मल्य हदया हैं ! वायु / हवा , जि / पानी , भोजन , आकाश , पाति , हदन , रात , हदि , हदमाग , जन्म , बचपन , जवानी , बुढ़ापा और अिंत में म्रत्यु पक्की हैं ! आप ज़ िंदगी कक असलियत जानते हुये भी अिंजान बनकर ज़ िंदगी न जीयेँ तो बहुत बेहतर होगा ! बटोरना कम या बिंद करे , अचधक से अचधक िटाना शुरू करें ! सबको ज़ िंदगी एक जैसे जीने को लमिे आओ हम सब किर से प्रयास करें
  • 3. ! आओ हम सब लमि कर एक ऐसे सिंसार कक रचना करें जहाूँ सब को समान अचधकार लमिे ज़ िंदगी जीने का !! धन्यबाद वीरेंद्र श्रीवास्तव 16/07/2021