1. इंसान जाने कहााँ खो गया
जाने क
ु यूं अब शर्म से, कोई चहरे लाल नह ूं होते ?
जाने क
ु यूं अब हस्ते खेलते र्स्त मर्ज़ाज चहरे नह ूं होते !
पहले बता दिया करते थे , दिल की सार बाते !
जाने कयूँ अब कोई खुल ककताबे नह ूं हुआ करते हैं !!
पहले बबना कहे दिल की बात सर्झ लेते थे !
गले लगने से पहले दिल की बात सर्झ लेते थे !
सोचता हूँ हर् कहाूँ से कहाूँ आ गये ?
सार भावनयों को हर् खा गये ! मसर्
म अपने र्ें खो गये , अपना
अपना सोचते सोचते !!
भाई अपने भाइयो से कहाूँ कोई अब सर्ाधान पछते हैं ?
औलािे भी बाप से उलझनो का ननिान नह ूं पछते हैं !
बेट र्ाूँ से भी अब गृहस्थी क
े सल क
े नह ूं पछती है !
गुरु क
े चरणों र्ें बैठकर अब कौन ज्ञान की पररभाषा सीखे ?
पाररयों की बातें अब ककसी को नह ूं भानत है !
अपनों की याि अब ककसी को भी नह ूं रुलाती हैं ?
इस ज़ज़ूंिगी र्ें हर इूंसान एक र्शीन बन गया है !
2. अब लगता हैं , इस सारे जहाूँ से इूंसान जाने कहाूँ खो गया हैं !!
बबरेन्द्र श्रीवास्तव उर्
म ककक
ु 09/01/2020