3. सूययकािंत हिपाठी हनिाला
जीिन परिर्य- सूययकान्त हिपाठी ‘हनिाला’ का जन्म बिंर्ाल
की मह षादल रियासत (हजला मेहदनीपुि) में माघ शुक्ल
११, सिंित् १९५५, तदनुसाि २१ फ़िििी, सन् १८९९ में हुआ
था।[1] िसिंत पिंर्मी पि उनका जन्महदन मनाने की पििंपिा
१९३० में प्राििंभ हुई।[2] उनका जन्म मिंर्लिाि को हुआ
था। जन्म-क
ु ण्डली बनाने िाले पिंहडत क
े क ने से उनका
नाम सुजयक
ु माि िखा र्या। उनक
े हपता पिंहडत िामस ाय
हतिािी उन्नाि (बैसिाडा) क
े ि ने िाले थे औि मह षादल
में हसपा ी की नौकिी किते थे। िे मूल रूप से उत्ति प्रदेश
क
े उन्नाि हजले क
े र्ढाकोला नामक र्ााँि क
े हनिासी थे।
4. हनिाला की हशक्षा ाई स्क
ू ल तक हुई। बाद में ह न्दी सिंस्क
ृ त औि बाङ् ला का स्वतिंि
अध्ययन हकया। हपता की छोटी-सी नौकिी की असुहिधाओिं औि मान-अपमान का
परिर्य हनिाला को आिम्भ में ी प्राप्त हुआ। उन्ोिंने दहलत-शोहषत हकसान क
े साथ
मददी का सिंस्काि अपने अबोध मन से ी अहजयत हकया। तीन िषय की अिस्था में
माता का औि बीस िषय का ोते- ोते हपता का दे ािंत ो र्या। अपने बच्ोिं क
े अलािा
सिंयुक्त परििाि का भी बोझ हनिाला पि पडा। प ले म ायुद्ध क
े बाद जो म ामािी फ
ै ली
उसमें न हसफ
य पत्नी मनो िा देिी का, बल्कि र्ार्ा, भाई औि भाभी का भी दे ािंत ो
र्या। शेष क
ु नबे का बोझ उठाने में मह षादल की नौकिी अपयायप्त थी। इसक
े बाद का
उनका सािा जीिन आहथयक-सिंघषय में बीता। हनिाला क
े जीिन की सबसे हिशेष बात य
ै हक कहठन से कहठन परिल्कस्थहतयोिं में भी उन्ोिंने हसद्धािंत त्यार्कि समझौते का िास्ता
न ीिं अपनाया, सिंघषय का सा स न ीिं र्िंिाया। जीिन का उत्तिाद्धय इला ाबाद में बीता।
ि ीिं दािार्िंज मु ल्ले में ल्कस्थत िायसा ब की हिशाल कोठी क
े ठीक पीछे बने एक कमिे
में १५ अक्टू बि १९६१ को उन्ोिंने अपनी इ लीला समाप्त की।
5. सूययकान्त हिपाठी ‘हनिाला’ (२१ फिििी,
१८९६[1] – १५ अक्टू बि, १९६१) ह न्दी
कहिता क
े छायािादी युर् क
े र्ाि प्रमुख
स्तिंभोिं[क] में से एक माने जाते ैं। िे
जयशिंकि प्रसाद, सुहमिानिंदन पिंत औि
म ादेिी िमाय क
े साथ ह न्दी साह त्य में
छायािाद क
े प्रमुख स्तिंभ माने जाते ैं।
उन्ोिंने कई क ाहनयााँ, उपन्यास औि हनबिंध
भी हलखे ैं हकन्तु उनकी ख्याहत हिशेषरुप
से कहिता क
े कािण ी ै।
7. ◦ हिकल हिकल, उन्मन थे उन्मन,
◦ हिश्व क
े हनदाघ क
े सकल जन,
◦ आये अज्ञात हदशा से अनन्त क
े घन!
◦ तप्त धिा, जल से हफि
◦ शीतल कि दो:--
◦ बादल, र्िजो!
8. भािाथय
◦ बादल, र्िजो!
◦ घेि घेि घोि र्र्न, धािाधि ओ !
◦ लहलत लहलत, काले घुिंघिाले,
◦ बाल कल्पना क
े –से पाले,
◦ हिधुत-छहब उि में, कहि, निजीिन िाले !
◦ िज्र हछपा, नूतन कहिता
◦ हफि भि दो –
◦ बादल र्िजो !
◦ सूययकािंत हिपाठी हनिाला की कहिता का भािाथय :- प्रस्तुत पिंल्कक्तयोिं में कहि ने बारिश ोने से प ले
आकाश में हदखने िाले काले बादलोिं क
े र्िज़ने औि आकाश में हबजली र्मकने का अद् भुत िणयन हकया
ै। कहि क ते ैं हक बादल धिती क
े सभी प्राहणयोिं को नया जीिन प्रदान किते ैं औि य मािे अिंदि
क
े सोये हुए सा स को भी जर्ाते ैं।
◦
9. आर्े कहि बादल से क ि े ैं हक “ े काले ििंर् क
े सुिंदि-घुिंघिाले बादल! तुम पूिे
आकाश में फ
ै लकि उसे घेि लो औि खूब र्िजो। कहि ने य ााँ बादल का मानिीयकिण
किते हुए उसकी तुलना एक बच्े से की ै, जो र्ोल-मटोल ोता ै औि हजसक
े हसि पि
घुिंघिाले एििं काले बाल ोते ैं, जो कहि को बहुत प्यािे औि सुन्दि लर्ते ैं।
आर्े कहि बादल की र्जयन में क्राल्कन्त का सिंदेश सुनाते हुए क ते ैं हक े बादल! तुम
अपनी र्मकती हबजली क
े प्रकाश से मािे अिंदि पुरुषाथय भि दो औि इस ति मािे
भीति एक नये जीिन का सिंर्ाि किो! बादल में िषाय की स ायता से धिती पि नया
जीिन उत्पन्न किने की शल्कक्त ोती ै, इसहलए, कहि बादल को एक कहि की सिंज्ञा देते
हुए उसे एक नई कहिता की िर्ना किने को क ते ैं।
10. ◦ हिकल हिकल, उन्मन थे उन्मन
◦ हिश्व क
े हनदाघ क
े सकल जन,
◦ आए अज्ञात हदशा से अनिंत क
े घन !
◦ तप्त धिा, जल से हफि
◦ शीतल कि दो –
◦ बादल, र्िजो
◦ सूययकािंत हिपाठी हनिाला की कहिता का भािाथय :- कहि बादलोिं को क्रािंहत
का प्रतीक मानते हुए य कल्पना कि ि े ैं हक ि मािे सोये हुए
पुरुषाथय को हफि से जर्ाकि, में एक नया जीिन प्रदान किेर्ा, में जीने
की नई आशा देर्ा। कहि इन पिंल्कक्तयोिं में क ते ैं हक भीषण र्मी क
े
कािण दुहनया में सभी लोर् तडप ि े थे औि तपती र्मी से िा त पाने क
े
हलए छााँि ि ठिं डक की तलाश कि ि े थे।
11. ◦ तभी हकसी अज्ञात हदशा से घने काले बादल आकि पूिे आकाश को ढक
लेते ैं, हजससे तपती धूप धिती तक न ीिं पहुाँर् पाती। हफि बादल घनघोि
िषाय किक
े र्मी से तडपती धिती की प्यास बुझाकि, उसे शीतल एििं शािंत
कि देते ैं। धिती क
े शीतल ो जाने पि सािे लोर् भीषण र्मी क
े प्रकोप
से बर् जाते ैं औि उनका मन उत्सा से भि जाता ै।
◦
◦ इन पिंल्कक्तयोिं में कहि ये सिंदेश देना र्ा ते ैं हक हजस ति धिती क
े सूख
जाने क
े बाद भी बादलोिं क
े आने पि नये पौधे उर्ने लर्ते ैं। ठीक उसी
ति अर्ि आप जीिन की कहठनाइयोिं क
े आर्े ाि ना मानें औि अपने
पुरुषाथय पि भिोसा िखकि कडी मे नत किते ि ें, तो आपक
े जीिन का
बर्ीर्ा भी दोबािा फल-फ
ू ल उठे र्ा। इसहलए में अपने जीने की इच्छा को
कभी मिने न ीिं देना र्ाह ए औि पूिे उत्सा से जीिन जीने की कोहशश
किनी र्ाह ए।
12. ◦काव्य स ौंदर्य/शिल्प स ौंदर्य : य ािं कहि ने बादल को र्िजने क
े हलए
आह्वान हकया ै, क्ोिंहक ि सिंपूणय िाताििण में जोश, उत्सा औि क्रािंहत
उत्पन्न कि सकता ै। प्रस्तुत पिंल्कक्तयोिं में कहि ने तत्सम ि तद्भि शब्दािली
युक्त साह ल्कत्यक खडी बोली का प्रयोर् हकया ै। भाषा ओजपूणय युक्त तथा
िीि िस प्रधान ै। सिंबोधन शैली में िहर्त य पिंल्कक्तयािं छिं द मुक्त ैं।
व्यिंजना शब्द-शल्कक्त की प्रधानता ै। नाद ि दृश्य हबिंब का प्रयोर् दशयनीय
ै।