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माध्यममक मिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेि
कक्षा – 9 विज्ञान
जीिन की मौमिक
इकाई
भाग – 1 डॉ. रेणु त्रिपाठी
(PhD, M.Ed., M.Sc.)
अध्यापिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉिेज, पिजयनगर, ग़ाज़ियाबाद
1
जीिन की मौमिक इकाई
सजीि ककससे बने होते हैं?
संसार में पिलिन्न प्रकार क
े जीि िाए जाते हैं जो एक दूसरे से बहुत लिन्न ददखाई देते हैं। किर िी यह सिी जीिधारी बहुत
छोटी छोटी इकाइयों से लमिकर बने होते हैं, ज़जन्हें कोलिकाएं(Cells) कहते हैं।
कोलिका प्रत्येक जीिधारी की संरचना की मूििूत इकाई है। िौधे तथा जंतु एक अथिा अनेक कोलिकांं से लमिकर बने होते
हैं। कियात्मक दृज़टट से प्रत्येक कोलिका अिने में एक संिूर्ण जीिधारी होती है, ज़जसमें िह सिी जैपिक- कियाएं होती हैं, जो
जीिधारी मैं होती है। इस प्रकार कोलिका जीिधारी की संरचनात्मक तथा कियात्मक इकाई है। जीिधारी का पिलिटट आकार,
उसकी आकृ तत तथा पिलिन्न जैपिक कियाएं, कोलिकांं द्िारा ही संिाददत होती हैं। जीि धारिरयों का िरीर एककोलिकीय
अथिा बहुकोलिकीय होता है।
कोलिका की खोज
कोलिका की खोज सिणप्रथम सन ् 1665 ई० में रॉबटण हुक(Robert Hooke) ने की। एक स्ितनलमणत सूक्ष्मदिी की सहायता से
ितिी कॉक
ण की काट का अध्ययन करते हुए रॉबटण हुक ने िाया कक इसमें अनेक छोटे-छोटे प्रकोटठ हैं ज़जसकी संरचना
मधुमक्खी क
े छत्ते जैसी िगती है। कॉक
ण एक िदाथण है जो िृक्ष की छाि से प्राप्त होता है। रॉबटण हुक ने इन प्रकोटठों को कोलिका
कहा। Cell(कोलिका) एक िैदटन िब्द है ज़जसका अथण है ‘छोटा कमरा’। सन् 1674 ई० में एंटोनी िॉन ल्यूिेनहॉक(Antony
von Lewvonhoek) ने उन्नत प्रकार क
े सूक्ष्मदिी द्िारा िहिी बार बैक्टीरिरया क
े रूि में मुक्त कोलिकांं की खोज की।
रॉबटण ब्राउन ने सन ् 1831 में कोलिका में क
ें द्रक (Nucleus) की खोज की।
कोमिका तथा कोमिका मिद्ाांत की खोज
िैज्ञाननक िर्ष कायष
रॉबटण हुक 1665 सिणप्रथम एक सूक्ष्मदिी द्िारा कॉक
ण की
ितिी कार में कोलिका की खोज की।
ल्यूिेनहॉक 1674 इन्होंने उन्नत सूक्ष्मदिी द्िारा तािाब क
े
जि में स्ितंत्र रूि में जीपित कोलिकांं
का िता िगाया।
रॉबटण ब्राउन 1831 कोलिका में क
ें द्रक की उिज़स्थतत का िता
िगाया।
श्िाइडेन तथा श्िान 1838-1839 इन्होंने कोलिका लसद्धांत क
े पिषय में
बताया। इस लसद्धांत क
े अनुसार, सिी
िौधे तथा जंतु कोलिका उन से बने हैं और
कोलिका जीिन की मूििूत इकाई है।
िुरककन्जे 1839 कोलिका क
े द्रि तत्ि क
े लिए ‘जीि द्रव्य’
िब्द का प्रततिादन ककया।
पिरचो 1855 कोलिका लसद्धांत को आगे बढाया और
बताया कक सिी कोलिकाएं िूिणिती
कोलिकांं से बनती है।
नॉि एिं रूस्का 1940 इिेक्रॉन सूक्ष्मदिी की खोज की, ज़जसक
े
द्िारा कोलिका की जदटि संरचना ि
कोलिकांं का अध्ययन संिि हो सका।
कोमिका की िांरचना
कोमिका का आकार तथा आकृ नत- सामान्य कोलिका का व्यास 0.5μ(0.5μm अथिा0.0005mm) से
20.0μ(20.0μm अथिा 0.2mm) तक होता है। अतः उन्हें क
े िि सूक्ष्मदिी द्िारा ही देखा जा सकता है। कोलिका ककसी िी
आकृ तत की हो सकती है। माइकोप्िाजमा िैडििाई(Mycoplasma Laidlawii) नामक ( प्ल्यूरोन्यूमोतनया िाइक ऑगेतनज्म
PPLO) कोलिकाएं सबसे छोटी ज्ञात कोलिकाएं हैं, ज़जसका व्यास 0.1μ से 0.3μ तक होता है। इसक
े पििरीत िुतुरमुगण का अंडा
संिितः सबसे बडी कोलिका है, ज़जसका व्यास 135mm से 170mm तक होता है।
बहुकोलिकीय जीिो में कोलिकाएं अिने पिलिटट प्रकार क
े कायों को िूरा करने हेतु पिलिटट आकृ तत और आकार ग्रहर् कर
िेती हैं। इसका अथण यह है कक कोलिकाएं लिन्न-लिन्न कायण करने हेतु अनुक
ू लित हो जाती हैं।
कोमिका की िांख्या- पिलिन्न जीिो में उसकी कोलिकांं की संख्या क
े आधार िर िे तनम्न दो प्रकार क
े
होते हैं-
1. एककोलिकीय जीि
2. बहुकोलिकीय जीि
एककोलिकीय जीि धारी(जैसे- अमीबा, िैरामीलियम, यूग्िीना का िरीर क
े िि एक कोलिका का बना होता
है।) क
ु छ बहुत छोटे िौधों एिं जंतु (जैसे- स्िाइरोगाइरा, िॉल्िॉक्स) का िरीर क
ु छ सैकडों से क
ु छ हजार
कोलिकांं का बना होता है। अधधकांि जदटि जीिधारिरयों(जैसे-बडे िौधे, िृक्ष, जंतु, मानि आदद) क
े िरीर में
कोलिकांं की संख्या 1 िाख करोड अथिा 10 खरब तक होती है।
कोमिका क
े प्रकार
क
ें द्रक क
े आधार िर कोलिकाएं तनम्न दो प्रकार की होती हैं-
1. प्रोक
ै रिरयोदटक कोलिकाएं
2. यूक
ै रिरयोदटक कोलिकाएं
प्रोक
ै ररयोटिक तथा यूक
ै ररयोटिक कोमिकाओां में अांतर
क्र. िां. िांरचना प्रोक
ै ररयोटिक कोमिका यूक
ै ररयोटिक कोमिका
1. कोमिकामभवत्त ितिी होती है। मोटी होती है।
2. क
ें द्रक अपिकलसत क
ें द्रक होता है। िूर्ण पिकलसत क
ें द्रक होता
है।
3. क
ें द्रक-किा अनुिज़स्थत होती है। उिज़स्थत होती है।
4. क
ें टद्रक अनुिज़स्थत होती है। उिज़स्थत होती है।
5. कोमिकाांग अनुिज़स्थत होते हैं। उिज़स्थत होते हैं।
6. गुणिूि क
े िि DNA की बनी एक
ढीिी-ढािी गोि
संरचना(दहस्टोन प्रोटीन
अनुिज़स्थत)
एक से अधधक; DNA और
प्रोटीन द्िारा तनलमणत
(दहस्टोन प्रोटीन उिज़स्थत)
7. राइबोिोम 70 S प्रकार क
े होते हैं। 80 S प्रकार क
े होते हैं।
8. िूिी विभाजन
उदाहरण-
अनुिज़स्थत होता है।
जीिार्ु(Bacteria), नीिे
हरे िैिाि(Blue-green
algae) तथा
पिषार्ु(Virus) आदद की
उिज़स्थत होता है।
सिी उच्च श्रेर्ी क
े
पिकलसत जंतु एिं िनस्ितत
कोलिकाएं।
जंतु-कोलिकांं का िादि-कोलिकांं से प्रमुख अंतर यह है कक जंतु-कोलिकांं में कोलिका-लिपत्त नहीं होती— क
े िि
जीिद्रव्य रव्य एिं रिरज़क्तकाएँ होती हैं। इसक
े अततरिरक्त िादि कोलिका में रिरज़क्तकांं का आकार बहुत बडा िरंतु उनकी
संख्या कम (१या २) होती है, जबकक जंतु कोलिका में रिरज़क्तकांं की संख्या अधधक िरंतु आकार छोटा होता है। दोनों प्रकार
की कोलिकांं में जीिद्रव्य एिं रिरज़क्तकांं की संरचना एिं कायण समान होते हैं।
कोमिका ककििे बनी होती है?
यूक
ै रिरयोदटक कोलिकांं को िादि कोलिकांं तथा जंतु कोलिकांं में बांटा जा सकता है।
ककसी िादि कोलिका क
े तीन प्रमुख िाग होते हैं—
१. कोलिका-लिपत्त(cell wall) २.जीिद्रव्य(protoplasm) ३. रिरज़क्तकाएँ अथिा रसधातनयाँ(vacuoles)
एक जंतु कोलिका क
े तीन प्रमुख संरचनात्मक घटक होते हैं—
१. कोलिका झिल्िी या प्िाज्मा झिल्िी(cell membrane)
२. कोलिका द्रव्य(Cytoplasm)
३. क
ें द्रक( Nucleus)
1. कोमिका झिल्िी या प्िाज्मा झिल्िी
यह कोलिका की सबसे बाहरी िरत है जो कोलिका क
े घटकों को बाहरी ियाणिरर् से अिग करती है। प्िाज्मा
झिल्िी क
ु छ िदाथों को अंदर अथिा बाहर आने-जाने देती है। यह अन्य िदाथों की गतत को िी रूकती है
इसलिए कोलिका झिल्िी को िर्णनात्मक िारगम्य झिल्िी कहते हैं। इसे जीिद्रव्य किा िी कहते हैं। यह
रचना िौधों तथा जंतुंं दोनों में िाई जाती है। िादि कोलिकांं में यह कोलिका लिपत्त क
े ठीक िीतर ज़स्थत
होती है। जंतु कोलिकांं में यह कोलिका का सबसे बाहरी आिरर् होता है।
कोमिका झिल्िी क
े कायष
१. यह पिलिन्न िदाथों क
े कोलिका में प्रिेि तथा उनक
े बाहर तनकिने की प्रकिया को तनयंत्रत्रत करती है।
२. यह बाहरी तरि एिं ठोस िदाथों को चारों ंर से घेरकर कोलिका में रखती है जहां इनका िाचन होता है।
यह कोलिका से उत्सजी िदाथों को बाहर तनकािने का िी कायण करती है।
३. यह कोलिका को तनज़श्चत आकार देती है।
2. कोमिका मभवत्त
िादि कोलिकांं में प्िाज्मा झिल्िी क
े अततरिरक्त कोलिका लिपत्त िी होती है। यह तनजीि िदाथण सैिुिोस की
बनी होती है। सैिुिोस एक बहुत जदटि िदाथण है और यह िौधों को संरचनात्मक दृढता प्रदान करता है। इसका
तनमाणर् कोलिका द्रव्य तथा उसक
े स्रापित िदाथों द्िारा होता है।
कोलिका लिपत्त तनम्न िरतों की बनी होती है—
१. मध्य पिमिका- यह िेज़क्टन ि काबोहाइड्रेट का बना स्तर है जो दो कोलिका लिपत्तयों को जोडता है।
२. प्राथममक कोमिका मभवत्त- मध्य िटलिका क
े दोनों ंर सेिुिोज की ितिी ि िचकदार िरत प्राथलमक
कोलिका लिपत्त होती है।
३. दवितीयक कोमिका मभवत्त- यह सैिुिोज ि लिज़ग्नन की बनी अिेक्षाकृ त मोटी तथा प्राथलमक लिपत्त की
िीतरी सतह िर ज़स्थत होती है।
कोमिका मभवत्त क
े कायष
यह कोलिका को तनज़श्चत आकृ तत तथा दृढता प्रदान करती है। कोलिका में जगह-जगह सूक्ष्म तछद्र होते हैं।
कोलिकाद्रव्य क
े महीन तंतुक सूक्ष्म में से होकर कोलिकांं को िरस्िर बांधते हैं। इन तंतुंं को जीिद्रव्यी
कहते हैं। इनक
े द्िारा कोलिकांं क
े बीच आिस में खाद्य िदाथों का आिागमन होता है।
3. जीिद्रव्य
कोलिका का संिूर्ण जीपित िदाथण जीिद्रव्य कहिाता है। जो जीिन का सार है। जीिद्रव्य की खोज डुजारडडन ने
सन् 1835 ई० में की थी। इसक
े लिए उन्होंने सारकोड िब्द का प्रयोग ककया तथा 1837 ई० में िुरककं जे ने इसे
प्रोटेप्िाज्म नाम ददया।
जीि द्रव्य क
े भौनतक गुण
१. जीि द्रव्य एक रंगहीन, अधणिारदिी तथा जेि क
े समान िदाथण है, ज़जसका िगिग 60%-70% िाग जि से
तथा िेष िाग काबणतनक एिं अकाबणतनक िदाथों का होता है।
२. जीिद्रव्य एक कोिॉइडी पिियन है जो तरि एिं जैि, दो स्िरूिों में िाया जाता है।
जीिद्रव्य क
े दो प्रमुख िाग होते हैं—
(अ) कोलिकाद्रव्य (ख) क
ें द्रक
(अ) कोमिकाद्रव्य
कोलिकाद्रव्य, जीिद्रव्य का िह िाग है जो क
ें द्रक को चारों ंर से घेरा रहता है तथा स्ियं कोलिका लिपत्त से तघरा रहता है।
कोलिकाद्रव्य को तीन िागों में पििाज़जत ककया जा सकता है—
(क) जीिद्रव्य किा अथिा कोलिका-किा
(ख) रिरज़क्तका-किा अथिा टोनोप्िास्ट
(ग) कोलिका किा तथा टोनोप्िास्ट क
े बीच का िाग।
इनक
े तीन िाग माने जाते हैं—
(i) एक्िोप्िाज्म- यह िाग कोलिका किा क
े तनकट होता है। यह अधधक ठोस होता है।
(ii) मीिोप्िाज्म- यह कोलिका द्रव्य का मध्य िाग होता है।
(iii) एांडोप्िाज्म- यह िाग टोनोप्िास्ट क
े तनकट होता है। यह तरि तथा दानेदार होता है।
ररक्क्तकाएँ या रि्ानी
िादि कोलिका क
े कोलिका द्रव्य में अनेक खािी स्थान होते हैं ज़जन्हें रिरज़क्तकाएँ या रसधातनयाँ कहते हैं।
रिरज़क्तका क
े चारों ंर एक झिल्िी होती है ज़जसे टोनोप्िास्ट कहते हैं। रिरज़क्तका रस में खतनज ििर्( जैसे
कक क्िोराइड, सल्ि
े ट, नाइरेट, िास्ि
े ट आदद), काबोहाइड्रेट, एमाइड, अमीनो अम्ि, काबणतनक अम्ि एिं
पिलिन्न रंग द्रव्य और अिलिटट िदाथण (टेतनन, एल्क
े िायड्स) उिज़स्थत होते हैं।
कायष
१. रिरज़क्तका रस कोलिका की स्िीतत बनाए रखता है।
२. रिरज़क्तका िंडारर् का कायण करती हैं, क्योंकक इसमें जि, िोजन एिं अन्य िदाथण संगृदहत होते हैं।
३. रिरज़क्तका में एन्थोसायतनन जैसे िदाथण होते हैं ज़जसक
े कारर् ि
ू िों का रंग िाि, नीिा इत्यादद होता है।
कोमिका अांगक
प्िाज्मा किा से धगरे हुए कोलिकाद्रव्य में अनेक जीपित संरचनाएं होती हैं ि कोलिका की पिलिन्न जैि
प्रकियांं क
े संिादन का कायण करती हैं। इन संरचनांं को कोलिकांग कहते हैं। अन्तद्रणव्यी जालिका,
माइटोकॉज़न्ड्रया, प्िैज़स्टड, गॉल्जी उिकरर् तथा िाइसोसोम कोलिका अंगों क
े महत्ििूर्ण उदाहरर् हैं।
अन्तद्रषव्यी जामिका
अन्तद्रणव्यी जालिका की खोज क
े . आर. िोटणर ने सन् 1945 में की थी। कोिाद्रव्य क
े मैदरक्स में दोहरी झिल्िी
से बनी नलिकांं का जाि ि
ै िा हुआ होता है ज़जसे अन्तद्रणव्यी जालिका कहते हैं। बाहर की ंर यह तंत्र
कोलिका किा से और अंदर की ंर क
ें द्रक किा से जुडा होता है। इसक
े कारर् संिूर्ण कोलिका छोटे-छोटे
कोटठों में बँट जाती है।
अन्तद्रणव्यी जालिका दो प्रकार की होती है—
१. अकझणकामय अन्तद्रषव्यी जामिका— इस जालिका की सतह िर राइबोसोम नामक कझर्कामय संरचनांं
का अिाि होता है। यह प्रोटीन उिािचय में िाग नहीं िेती है।
२. कझणकामय अन्तद्रषव्यी जामिका— इस जालिका की सतह िर अनेक राइबोसोम धचिक
े रहते हैं ज़जसक
े
कारर् उनकी सतह रूक्ष प्रतीत होती है। यह मुख्य रूि से प्रोटीन उिािचय में िाग िेती है।
अन्तद्रषव्यी जामिका क
े कायष
१. यह कोलिका को सहायता देने क
े लिए यांत्रत्रक ढांचे का काम करता है।
२. िितयत होने क
े कारर्, कोलिका में होने िािी पिलिन्न कियांं क
े लिए अधधक िृटठीय सतह प्रदान करती
है।
३. कोलिका क
े अंदर िदाथों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक िहुंचाती है।
४. कझर्कामय अन्तद्रणव्यी जालिका िर उिज़स्थत राइबोसोम प्रोटीन-संश्िेषर् क
े क
ें द्र हैं।
५. िसा, कोिेस्रॉि, स्टेरॉयड, इत्यादद क
े संश्िेषर् क
े लिए उियोगी एंजाइम अन्तद्रणव्यी जालिका में ज़स्थत
होते हैं।
माइिोकॉक्न्िया
यूक
ै रिरयोदटक कोलिकांं क
े कोलिकाद्रव्य में अनेक सूक्ष्म गोिाकार, ििाकाित या सूत्री रचनाएं िाई जाती हैं,
ज़जन्हें माइटोकॉज़न्ड्रया कहते हैं। इसकी खोज कोलिकर नामक िैज्ञातनक ने सन् 1880 में की थी। अल्टमान ने
कोलिकांं में इसकी उिज़स्थतत का िर्णन ककया और इन्हें बायोप्िास्ट नाम से िुकारा। इसक
े िश्चात बेन्डा ने
कायष- माइटोकॉज़न्ड्रया कोलिका क
े अंदर होने िािे ऑक्सी-श्िसन का स्थि है, जहां मुख्यत: काबोहाइड्रेट तथा िसा क
े
ऑक्सीकरर् क
े द्िारा ऊजाण उत्िन्न होती है।
C6H12O6+6O2 —> 6CO2+6H2O+ऊजाण
इस उत्िाददत ऊजाण को माइटोकॉज़न्ड्रया में ही एडडनोलसन डायिास्ि
े ट (ADP) में एकत्रत्रत करक
े एडडनोलसन राई िास्ि
े ट (ATP)
का तनमाणर् ककया जाता है। ATP यहां से तनकिकर कोलिका में िहुंचकर किर ADP में बदि जाता है तथा ऊजाण को आिश्यक
कायों क
े लिए देता है। इस ऊजाण का उियोग कोलिका की पिलिन्न कियांं को संिन्न करने में होता है। ऊजाण मुक्त करने क
े
कारर् माइटोकॉज़न्ड्रया को ‘कोलिका का िािर हाउस’ िी कहते हैं। ATP को ‘ऊजाण का लसक्का’ कहा जाता है।
ििक या प्िैक्टिड
ििक क
े िि िादि कोलिकांं में िाए जाते हैं। यह गोिाकार अथिा चिटे आकार क
े तथा रंगीन अथिा
रंगहीन होते हैं और कोलिका में ज़स्थत होते हैं। ििक की खोज हेकि ने सन् 1865 में की थी। ििक िब्द का
प्रयोग सिणप्रथम लिम्िर ने सन् 1885 में ककया था। िर्णकों क
े आधार िर इन्हें तीन िगों में बांटा जा सकता
है—
(अ) हररतििक
यह हरे रंग क
े ििक हैं। इनमें क्िोरोकिि या िर्णहरिरम नामक िर्णक उिज़स्थत होता है। क्िोरोप्िास्ट मुख्य
रूि से िपत्तयों तथा कोमि तनों ि अिरिरिक्ि ििों की बाह्य त्िचा में िाए जाते हैं। यह क
े िि प्रकाि संश्िेषी
िौधों में िाए जाते हैं। ये गोि, चिटे, रिरबन समान, जालिका रूिी, सपिणि इत्यादद आकारों में िाए जाते हैं।
उच्च िगण क
े िौधों में ये प्रायः चकिकाि होते हैं। इनका व्यास 4 से 8 μ तथा मोटाई िगिग 2μ होती है।
िैिािों की कोलिकांं में सामान्यतः एक या दो क्िोरोप्िास्ट होते हैं, िरंतु बीजी िौधों की प्रत्येक कोलिका में
इनकी संख्या 20 से 40 तक होती है। इनका प्रमुख कायण प्रकाि संश्िेषर् द्िारा िोजन तनमाणर् करना है। अतः
ये ‘कोलिका की रसोई’ कहिाते हैं।
हररतििक क
े प्रमुख कायष
१. क्िोरोप्िास्ट में उिज़स्थत िर्णक सूयण की ऊजाण अििोपषत करते हैं। इस ऊजाण का उियोग िौधे
काबोहाइड्रेट्स क
े संश्िेषर् में करते हैं।
२. मण्ड िि, तेिद ििक ि प्रोटीन ििक िमिः मंड, तेि ि प्रोटीन िदाथों का संचयन करते हैं।
३. हरे रंग क
े अततरिरक्त अन्य रंगों क
े ििक ि
ू िों को आकषणक बनाकर कीट िरागर् में सहायता करते हैं।
(ब) िणीििक
यह रंगीन ििक हैं जो प्रायः िुटिों और ििों में िाए जाते हैं। इनमें िीिे रंग का िर्णक जैन्थोकिि, नारंगी रंग का क
ै रोटीन
तथा िाि या बैंगनी रंग का एंथोसायतनन िाए जाते हैं। इसमें स्रोमा नहीं िाई जाती है।
िणीििक क
े कायष
१. िुटिों में उिज़स्थत िर्ीििक कीटों को िरागर् क
े लिए आकपषणत करते हैं।
२. रंगीन बीज तथा िि पिलिन्न प्राझर्यों को अिनी और आकपषणत करते हैं, इससे इनक
े प्रकीर्णन में सहायता लमिती है।
(ि) अिणीििक
ये रंगहीन होते हैं। इनका आकार अतनयलमत होता है। इनक
े स्रोमा में िटलिकाएँ नहीं होती है। अिर्ी ििक िौधों क
े उन
िागों में िाए जाते हैं जहां प्रकाि नहीं िहुंचता है।
गोल्जीकाय
गॉल्जीकाय की खोज सिणप्रथम क
ै ममिो गॉल्जी ने सन् 1898 में की थी। इसे गॉल्जीकाय/गॉल्जी तंत्र/गॉल्जी
उिकरर् िी कहते हैं। ये नीिी हरी िैिािों, जीिार्ुंं एिं माइकोप्िाजमा को छोडकर अन्य सिी जीिधारिरयों
की कोलिकांं में लमिते हैं। िौधों में गोल्जीकाय को डडज़क्टयोसोम्स िी कहा जाता है।
िौधों में इनकी िंबाई 1 से 3 mm तथा ऊ
ं चाई 0.5 mm होती है। प्रत्येक गोल्जीकाय चिटी और मुडी हुई
लसस्टनी का बना होता है। इसक
े साथ छोटी थैलियां तथा बडी गोि रिरज़क्तकाएं होती है। इसक
े मैदरक्स में
प्रोटीन, िास्िोलिपिड, एंजाइम्स, पिटालमन और सैिुिोज िाइबर िरे रहते हैं।
कायष
१. ये कौलिकीय िदाथण( ग्िाइकोप्रोटीन, लिपिड्स एिं स्टीरॉल्स) का स्रािर् एिं संचयन करती है।
२. ये कोलिका किा, कोलिका लिपत्त तथा काबोहाइड्रेट्स का संश्िेषर् करती है।
३. ये कोलिका पििाजन क
े समय कोलिका प्िेट का तनमाणर् करती है।
४. ये उत्सजी िदाथों को कोलिका से बाहर तनकािने में सहायक होती हैं।
राइबोिोमि
यह अत्यंत सूक्ष्म कर् होते हैं, ज़जन्हें क
े िि इिेक्रॉन सूक्ष्मदिी से देखा जा सकता है। सिी जीपित कोलिकांं में राइबोसोम
िाए जाते हैं। इनमें से क
ु छ दो कोलिका द्रव्य में तैरते रहते हैं तथा इनकी कािी बडी संख्या अन्तद्रणव्यी जालिका की नालिकांं
िर िगी रहती है। इनका तनमाणर् क
े िि प्रोटीन तथा राइबोन्यूज़क्िक एलसड(RNA) से होता है। राइबोसोम की खोज िैिाडे
नामक िैज्ञातनक ने 1955 ई० में की थी।
राइबोिोमि क
े प्रकार
आकार एिं अिसादन गुर्ांक क
े आधार िर ये दो प्रकार क
े होते हैं—
१. 70S राइबोिोम- ये आकार में छोटे होते हैं और इनका अिसादन गुर्ांक 70S होता है। इस प्रकार क
े राइबोसोम
प्रोक
ै रिरयोदटक जीिधारिरयों में तो लमिते ही हैं, बज़ल्क यूक
ै रिरयोदटक जीिधारिरयों क
े माइटोकॉज़न्ड्रया ि क्िोरोप्िास्ट में िी
लमिते हैं।
२. 80S राइबोिोम- ये आकार में बडे होते हैं और इनका अिसादन गुर्ांक 80S होता है। ये यूक
ै रिरयोदटक जीिों क
े क
ें द्रक में
लमिते हैं।
कायष- राइबोसोम का प्रमुख कायण प्रोटीन संश्िेषर् में सहायता करना है। यह किया राइबोसोम में ही संिन्न होती है। अतः इन्हें
कोलिकांं की प्रोटीन ि
ै क्री कहा जाता है।
िाइिोिोम
िाइसोसोम मुख्यत: जंतु कोलिकांं में िाए जाते हैं। िौधों में ये क
े िि क
ु छ पििेष प्रकार की कोलिकांं में ही
उिज़स्थत होते हैं। स्तनधारी प्राझर्यों की िाि रुधधर कोलिकांं में इनका अिाि होता है, िरंतु श्िेत रुधधर
कोलिकांं में प्रचुर मात्रा में िाए जाते हैं। इनक
े आकार तथा आकृ तत में बहुत अधधक पिपिधता िाई जाती है।
िाइसोसोम की खोज डी डुिे नामक िैज्ञातनक ने सन् 1955 में की थी।
प्रत्येक िाइसोसोम एक झिल्िी में तघरी हुई रसधानी है। इसक
े अंदर हाइड्रोिेज नामक एंजाइम प्रचुर मात्रा में
होते हैं।
िाइिोिोम क
े कायष
१. िाइसोसोम में उिज़स्थत हाइड्रोिेज एंजाइम कोलिका में िाए जाने िािे अनेक िदाथों का िाचन करते हैं।
िास्ति में िाइसोसोम का मुख्य कायण कोलिका क
े िोज्य िदाथों तथा व्यथण िदाथों का अिघटन करना है।
२. श्िेत रुधधर कोलिकांं में उिज़स्थत िाइसोसोम कोलिका में बाहर से आने िािे प्रोटीन, बैक्टीरिरया और
पिषार्ुंं का िाचन करक
े उन्हें नटट करते हैं।
क
ें टद्रक (िैंिरोिोम)
सैंटरोसोम की खोज टी. बॉिेरी ने सन् 1888 में की थी। तारककाय प्रायः जंतु कोलिकांं में क
ें द्रक क
े िास
कोलिका द्रव्य में िाया जाता है तथा िनस्िततयों में क
े िि क
ु छ किक और िैिािों में ही लमिता है। प्रत्येक
सैंटरोसोम दो बेिनाकार रचनांं से बना होता है, इन्हें तारक क
ें द्र कहते हैं। प्रत्येक तारक क
ें द्र में 9 बेिनाकार
तन्तुक एक चि में व्यिज़स्थत होती हैं। इसलिए इन तंतुंं को त्रत्रक तन्तुक कहते हैं। सिी नौ त्रत्रक तन्तुक
एक मध्य नालि क
े चारों ंर व्यिज़स्थत होते हैं। ये एक बैिगाडी क
े िदहये जैसी रचना बनाते हैं। तारक क
ें द्र क
े
चारों ंर सैंटरोस्िीयर का एक घेरा होता है।
कायष
१. यह कोलिका पििाजन में सहायता करता है।
२. यह जंतु कोलिका पििाजन क
े समय तक
ुण क
े तनमाणर् में सहायता करता है।
(ब) क
ें द्रक
क
ें द्रक की खोज रॉबटण ब्राउन ने सन् 1831 में की थी। कोलिका क
े िीतर कोलिकाद्रव्य से तघरा हुआ यह गोि
आकृ तत का तथा गहरे रंग का पििेष िाग होता है। सामान्यतः कोलिका का एक ही क
ें द्रक होता है। जीिार्ुंं
तथा क
ु छ कोलिकांं(जैसे RBCs) में क
ें द्रक नहीं होता है।
क
ें द्रक क
े चार प्रमुख िाग होते हैं—
१. क
ें द्रक किा- यह प्िाज्मा झिल्िी की िांतत दोहरी झिल्िी बनाती है जो क
ें द्रक को चारों ंर से घेरे रहती है।
प्रोक
ै रिरयोदटक कोलिका में क
ें द्रक किा का अिाि होता है। क
ें द्रक किा िरर्ात्मक िारगम्य होती है। यह क
ें द्रक
तथा कोलिका द्रव्य क
े बीच िदाथों क
े आदान-प्रदान को तनयंत्रत्रत करती है।
२. क
ें द्रकद्रव्य- क
ें द्रक क
े अंदर एक िारदिी, तरि िदाथण िरा रहता है ज़जसे क
ें द्रकद्रव्य कहते हैं। यह
न्यूज़क्ियोप्रोटीन से बना, िारदिी, कोिॉइडी तथा अद्णधतरि िदाथण होता है। यह क
ें द्रक किा से तघरा होता है।
इसमें क
ें दद्रक और िोमेदटन धागे क
े अततरिरक्त एंजाइम, खतनज ििर्, RNA ि राइबोसोम आदद िाए जाते हैं।
३. क
ें टद्रक- क
ें द्रक में प्रायः 1-3 स्िटट गोिाकार सघन रचनाएं होती है ज़जन्हें क
ें दद्रका कहते हैं। क
ें दद्रका में
प्रोटीन, RNA तथा DNA िगिग 85:10:5 क
े अनुिात में िाए जाते हैं। ये ककसी झिल्िी या आिरर् से तघरे
नहीं होते इसलिए ये सीधे क
ें द्रक क
े संिक
ण में रहते हैं। इसका मुख्य कायण राइबोसोम बनाने हेतु RNA का
संश्िेषर् करना है जो कक प्रोटीन क
े साथ संयुक्त होकर राइबोसोम बनाती है। इसी कारर् क
ें दद्रक को
४. क्रोमैटिन तन्तु- क
ें द्रकद्रव्य में सूक्ष्म- तन्तुंं का एक जाि ि
ै िा होता है। कोलिका पििाजन क
े समय ये तंतु अिेक्षाकृ त
मोटे और स्िटट ददखाई देने िगते हैं। इन्हें गुर्सूत्र अथिा िोमोसोम कहते हैं। ये मुख्यत: डी-ऑक्सीराइबोज न्यूज़क्िक
अम्ि(DNA) से बने होते हैं। िोमोसोम में मोततयों क
े समान ि
ू िी हुई संरचनाएं ददखाई देती हैं इन्हें जीन्स कहते हैं। जीन्स
अनुिांलिक िक्षर्ों की िाहक होती है तथा जीिन क
े िक्षर्ों को एक िीढी से अगिी िीढी को स्थानांतरिरत करती हैं।
प्रत्येक जीिधारी की कोलिकांं में िोमोसोम की संख्या तनज़श्चत होती है। गोिकृ लम की कोलिका में क
े िि 2, मटर की
कोलिकांं में 14, मेंढक कोलिकांं में 26 तथा मनुटय की प्रत्येक कोलिका में 46 िोमोसोम िाए जाते हैं।
क
ें द्रक क
े कायष
१. क
ें द्रक कोलिका का तनयंत्रर् क
ें द्र है, यह कोलिका की सिी कियांं को तनयंत्रत्रत करता है।
२. क
ें द्रक की कोलिका पििाजन का तनयंत्रर् करता है।
३. अनुिांलिक िक्षर्ों का एक िीढी से दूसरी िीढी को स्थानांतरर् क
ें द्रक में उिज़स्थत िोमोसोम द्िारा ही होता है।
कोमिका विभाजन
जीिधारिरयों में िृद्धध हेतु नई कोलिकाएं बनती हैं जैसे िुरानी मृत एिं क्षततग्रस्त कोलिकांं का प्रततस्थािन
और प्रजनन हेतु युग्मक बनते हैं। नई कोलिकांं क
े बनने की प्रकिया को कोलिका पििाजन कहते हैं।
कोमिका विभाजन क
े प्रकार
जीिधारिरयों में तीन प्रकार क
े कोलिका पििाजन िाए जाते हैं—
(i) द्पिपििाजन (ii) समसूत्री पििाजन (iii) अद्णधसूत्री पििाजन
(i) दविविभाजन – सरितम प्रकार का कोलिका पििाजन सरि जीिों जैसे- बैक्टीरिरया में िाया जाता है।
जदटि जीिों में पििाजन दो प्रकार क
े होते हैं— समसूत्री पििाजन तथा अद्णधसूत्री पििाजन।
(ii) िमिूिी विभाजन – कोलिका पििाजन की प्रकिया ज़जसमें अधधकतर कोलिकाएं िृद्धध हेतु पििाज़जत
होती है उसे समसूत्री पििाजन कहते हैं।
इस प्रकिया में प्रत्येक कोलिका ज़जसे मातृकोलिका िी कह सकते हैं, पििाज़जत होकर दो समरूि संततत
कोलिकाएं बनाती है। संततत कोलिकांं में गुर्सूत्रों की संख्या मातृकोलिका क
े समान होती है। यह जीिों में
िृद्धध एिं ऊतकों क
े मरम्मत में सहायता करती है।
(iii) अदष्िूिी विभाजन- जंतुंं और िौधों क
े प्रजनन अंगों अथिा ऊतकों की पििेष कोलिकाएं पििाज़जत
होकर युग्मक बनाती है जो तनषेचन क
े िश्चात संततत तनमाणर् करती है। यह एक अिग प्रकार का पििाजन है
ज़जसे अद्णधसूत्रर् कहते हैं ज़जसमें िमिः दो पििाजन होते हैं। जब कोलिका अद्णधसूत्रर् द्िारा पििाज़जत होती
है तो इससे दो की जगह चार नई कोलिकाएं बनती हैं। नई कोलिकांं में मातृ कोलिकांं की तुिना में
गुर्सूत्रों की संख्या आधी होती है।

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  • 1. माध्यममक मिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेि कक्षा – 9 विज्ञान जीिन की मौमिक इकाई भाग – 1 डॉ. रेणु त्रिपाठी (PhD, M.Ed., M.Sc.) अध्यापिका राजकीय बालिका इण्टर कॉिेज, पिजयनगर, ग़ाज़ियाबाद 1
  • 2. जीिन की मौमिक इकाई सजीि ककससे बने होते हैं? संसार में पिलिन्न प्रकार क े जीि िाए जाते हैं जो एक दूसरे से बहुत लिन्न ददखाई देते हैं। किर िी यह सिी जीिधारी बहुत छोटी छोटी इकाइयों से लमिकर बने होते हैं, ज़जन्हें कोलिकाएं(Cells) कहते हैं। कोलिका प्रत्येक जीिधारी की संरचना की मूििूत इकाई है। िौधे तथा जंतु एक अथिा अनेक कोलिकांं से लमिकर बने होते हैं। कियात्मक दृज़टट से प्रत्येक कोलिका अिने में एक संिूर्ण जीिधारी होती है, ज़जसमें िह सिी जैपिक- कियाएं होती हैं, जो जीिधारी मैं होती है। इस प्रकार कोलिका जीिधारी की संरचनात्मक तथा कियात्मक इकाई है। जीिधारी का पिलिटट आकार, उसकी आकृ तत तथा पिलिन्न जैपिक कियाएं, कोलिकांं द्िारा ही संिाददत होती हैं। जीि धारिरयों का िरीर एककोलिकीय अथिा बहुकोलिकीय होता है। कोलिका की खोज कोलिका की खोज सिणप्रथम सन ् 1665 ई० में रॉबटण हुक(Robert Hooke) ने की। एक स्ितनलमणत सूक्ष्मदिी की सहायता से ितिी कॉक ण की काट का अध्ययन करते हुए रॉबटण हुक ने िाया कक इसमें अनेक छोटे-छोटे प्रकोटठ हैं ज़जसकी संरचना मधुमक्खी क े छत्ते जैसी िगती है। कॉक ण एक िदाथण है जो िृक्ष की छाि से प्राप्त होता है। रॉबटण हुक ने इन प्रकोटठों को कोलिका कहा। Cell(कोलिका) एक िैदटन िब्द है ज़जसका अथण है ‘छोटा कमरा’। सन् 1674 ई० में एंटोनी िॉन ल्यूिेनहॉक(Antony von Lewvonhoek) ने उन्नत प्रकार क े सूक्ष्मदिी द्िारा िहिी बार बैक्टीरिरया क े रूि में मुक्त कोलिकांं की खोज की। रॉबटण ब्राउन ने सन ् 1831 में कोलिका में क ें द्रक (Nucleus) की खोज की।
  • 3. कोमिका तथा कोमिका मिद्ाांत की खोज िैज्ञाननक िर्ष कायष रॉबटण हुक 1665 सिणप्रथम एक सूक्ष्मदिी द्िारा कॉक ण की ितिी कार में कोलिका की खोज की। ल्यूिेनहॉक 1674 इन्होंने उन्नत सूक्ष्मदिी द्िारा तािाब क े जि में स्ितंत्र रूि में जीपित कोलिकांं का िता िगाया। रॉबटण ब्राउन 1831 कोलिका में क ें द्रक की उिज़स्थतत का िता िगाया। श्िाइडेन तथा श्िान 1838-1839 इन्होंने कोलिका लसद्धांत क े पिषय में बताया। इस लसद्धांत क े अनुसार, सिी िौधे तथा जंतु कोलिका उन से बने हैं और कोलिका जीिन की मूििूत इकाई है। िुरककन्जे 1839 कोलिका क े द्रि तत्ि क े लिए ‘जीि द्रव्य’ िब्द का प्रततिादन ककया। पिरचो 1855 कोलिका लसद्धांत को आगे बढाया और बताया कक सिी कोलिकाएं िूिणिती कोलिकांं से बनती है। नॉि एिं रूस्का 1940 इिेक्रॉन सूक्ष्मदिी की खोज की, ज़जसक े द्िारा कोलिका की जदटि संरचना ि कोलिकांं का अध्ययन संिि हो सका।
  • 4. कोमिका की िांरचना कोमिका का आकार तथा आकृ नत- सामान्य कोलिका का व्यास 0.5μ(0.5μm अथिा0.0005mm) से 20.0μ(20.0μm अथिा 0.2mm) तक होता है। अतः उन्हें क े िि सूक्ष्मदिी द्िारा ही देखा जा सकता है। कोलिका ककसी िी आकृ तत की हो सकती है। माइकोप्िाजमा िैडििाई(Mycoplasma Laidlawii) नामक ( प्ल्यूरोन्यूमोतनया िाइक ऑगेतनज्म PPLO) कोलिकाएं सबसे छोटी ज्ञात कोलिकाएं हैं, ज़जसका व्यास 0.1μ से 0.3μ तक होता है। इसक े पििरीत िुतुरमुगण का अंडा संिितः सबसे बडी कोलिका है, ज़जसका व्यास 135mm से 170mm तक होता है। बहुकोलिकीय जीिो में कोलिकाएं अिने पिलिटट प्रकार क े कायों को िूरा करने हेतु पिलिटट आकृ तत और आकार ग्रहर् कर िेती हैं। इसका अथण यह है कक कोलिकाएं लिन्न-लिन्न कायण करने हेतु अनुक ू लित हो जाती हैं। कोमिका की िांख्या- पिलिन्न जीिो में उसकी कोलिकांं की संख्या क े आधार िर िे तनम्न दो प्रकार क े होते हैं- 1. एककोलिकीय जीि 2. बहुकोलिकीय जीि एककोलिकीय जीि धारी(जैसे- अमीबा, िैरामीलियम, यूग्िीना का िरीर क े िि एक कोलिका का बना होता है।) क ु छ बहुत छोटे िौधों एिं जंतु (जैसे- स्िाइरोगाइरा, िॉल्िॉक्स) का िरीर क ु छ सैकडों से क ु छ हजार कोलिकांं का बना होता है। अधधकांि जदटि जीिधारिरयों(जैसे-बडे िौधे, िृक्ष, जंतु, मानि आदद) क े िरीर में कोलिकांं की संख्या 1 िाख करोड अथिा 10 खरब तक होती है। कोमिका क े प्रकार क ें द्रक क े आधार िर कोलिकाएं तनम्न दो प्रकार की होती हैं- 1. प्रोक ै रिरयोदटक कोलिकाएं 2. यूक ै रिरयोदटक कोलिकाएं
  • 5. प्रोक ै ररयोटिक तथा यूक ै ररयोटिक कोमिकाओां में अांतर क्र. िां. िांरचना प्रोक ै ररयोटिक कोमिका यूक ै ररयोटिक कोमिका 1. कोमिकामभवत्त ितिी होती है। मोटी होती है। 2. क ें द्रक अपिकलसत क ें द्रक होता है। िूर्ण पिकलसत क ें द्रक होता है। 3. क ें द्रक-किा अनुिज़स्थत होती है। उिज़स्थत होती है। 4. क ें टद्रक अनुिज़स्थत होती है। उिज़स्थत होती है। 5. कोमिकाांग अनुिज़स्थत होते हैं। उिज़स्थत होते हैं। 6. गुणिूि क े िि DNA की बनी एक ढीिी-ढािी गोि संरचना(दहस्टोन प्रोटीन अनुिज़स्थत) एक से अधधक; DNA और प्रोटीन द्िारा तनलमणत (दहस्टोन प्रोटीन उिज़स्थत) 7. राइबोिोम 70 S प्रकार क े होते हैं। 80 S प्रकार क े होते हैं। 8. िूिी विभाजन उदाहरण- अनुिज़स्थत होता है। जीिार्ु(Bacteria), नीिे हरे िैिाि(Blue-green algae) तथा पिषार्ु(Virus) आदद की उिज़स्थत होता है। सिी उच्च श्रेर्ी क े पिकलसत जंतु एिं िनस्ितत कोलिकाएं।
  • 6. जंतु-कोलिकांं का िादि-कोलिकांं से प्रमुख अंतर यह है कक जंतु-कोलिकांं में कोलिका-लिपत्त नहीं होती— क े िि जीिद्रव्य रव्य एिं रिरज़क्तकाएँ होती हैं। इसक े अततरिरक्त िादि कोलिका में रिरज़क्तकांं का आकार बहुत बडा िरंतु उनकी संख्या कम (१या २) होती है, जबकक जंतु कोलिका में रिरज़क्तकांं की संख्या अधधक िरंतु आकार छोटा होता है। दोनों प्रकार की कोलिकांं में जीिद्रव्य एिं रिरज़क्तकांं की संरचना एिं कायण समान होते हैं। कोमिका ककििे बनी होती है? यूक ै रिरयोदटक कोलिकांं को िादि कोलिकांं तथा जंतु कोलिकांं में बांटा जा सकता है। ककसी िादि कोलिका क े तीन प्रमुख िाग होते हैं— १. कोलिका-लिपत्त(cell wall) २.जीिद्रव्य(protoplasm) ३. रिरज़क्तकाएँ अथिा रसधातनयाँ(vacuoles) एक जंतु कोलिका क े तीन प्रमुख संरचनात्मक घटक होते हैं— १. कोलिका झिल्िी या प्िाज्मा झिल्िी(cell membrane) २. कोलिका द्रव्य(Cytoplasm) ३. क ें द्रक( Nucleus) 1. कोमिका झिल्िी या प्िाज्मा झिल्िी यह कोलिका की सबसे बाहरी िरत है जो कोलिका क े घटकों को बाहरी ियाणिरर् से अिग करती है। प्िाज्मा झिल्िी क ु छ िदाथों को अंदर अथिा बाहर आने-जाने देती है। यह अन्य िदाथों की गतत को िी रूकती है इसलिए कोलिका झिल्िी को िर्णनात्मक िारगम्य झिल्िी कहते हैं। इसे जीिद्रव्य किा िी कहते हैं। यह रचना िौधों तथा जंतुंं दोनों में िाई जाती है। िादि कोलिकांं में यह कोलिका लिपत्त क े ठीक िीतर ज़स्थत होती है। जंतु कोलिकांं में यह कोलिका का सबसे बाहरी आिरर् होता है। कोमिका झिल्िी क े कायष १. यह पिलिन्न िदाथों क े कोलिका में प्रिेि तथा उनक े बाहर तनकिने की प्रकिया को तनयंत्रत्रत करती है। २. यह बाहरी तरि एिं ठोस िदाथों को चारों ंर से घेरकर कोलिका में रखती है जहां इनका िाचन होता है। यह कोलिका से उत्सजी िदाथों को बाहर तनकािने का िी कायण करती है। ३. यह कोलिका को तनज़श्चत आकार देती है।
  • 7. 2. कोमिका मभवत्त िादि कोलिकांं में प्िाज्मा झिल्िी क े अततरिरक्त कोलिका लिपत्त िी होती है। यह तनजीि िदाथण सैिुिोस की बनी होती है। सैिुिोस एक बहुत जदटि िदाथण है और यह िौधों को संरचनात्मक दृढता प्रदान करता है। इसका तनमाणर् कोलिका द्रव्य तथा उसक े स्रापित िदाथों द्िारा होता है। कोलिका लिपत्त तनम्न िरतों की बनी होती है— १. मध्य पिमिका- यह िेज़क्टन ि काबोहाइड्रेट का बना स्तर है जो दो कोलिका लिपत्तयों को जोडता है। २. प्राथममक कोमिका मभवत्त- मध्य िटलिका क े दोनों ंर सेिुिोज की ितिी ि िचकदार िरत प्राथलमक कोलिका लिपत्त होती है। ३. दवितीयक कोमिका मभवत्त- यह सैिुिोज ि लिज़ग्नन की बनी अिेक्षाकृ त मोटी तथा प्राथलमक लिपत्त की िीतरी सतह िर ज़स्थत होती है। कोमिका मभवत्त क े कायष यह कोलिका को तनज़श्चत आकृ तत तथा दृढता प्रदान करती है। कोलिका में जगह-जगह सूक्ष्म तछद्र होते हैं। कोलिकाद्रव्य क े महीन तंतुक सूक्ष्म में से होकर कोलिकांं को िरस्िर बांधते हैं। इन तंतुंं को जीिद्रव्यी कहते हैं। इनक े द्िारा कोलिकांं क े बीच आिस में खाद्य िदाथों का आिागमन होता है। 3. जीिद्रव्य कोलिका का संिूर्ण जीपित िदाथण जीिद्रव्य कहिाता है। जो जीिन का सार है। जीिद्रव्य की खोज डुजारडडन ने सन् 1835 ई० में की थी। इसक े लिए उन्होंने सारकोड िब्द का प्रयोग ककया तथा 1837 ई० में िुरककं जे ने इसे प्रोटेप्िाज्म नाम ददया। जीि द्रव्य क े भौनतक गुण १. जीि द्रव्य एक रंगहीन, अधणिारदिी तथा जेि क े समान िदाथण है, ज़जसका िगिग 60%-70% िाग जि से तथा िेष िाग काबणतनक एिं अकाबणतनक िदाथों का होता है। २. जीिद्रव्य एक कोिॉइडी पिियन है जो तरि एिं जैि, दो स्िरूिों में िाया जाता है। जीिद्रव्य क े दो प्रमुख िाग होते हैं— (अ) कोलिकाद्रव्य (ख) क ें द्रक
  • 8. (अ) कोमिकाद्रव्य कोलिकाद्रव्य, जीिद्रव्य का िह िाग है जो क ें द्रक को चारों ंर से घेरा रहता है तथा स्ियं कोलिका लिपत्त से तघरा रहता है। कोलिकाद्रव्य को तीन िागों में पििाज़जत ककया जा सकता है— (क) जीिद्रव्य किा अथिा कोलिका-किा (ख) रिरज़क्तका-किा अथिा टोनोप्िास्ट (ग) कोलिका किा तथा टोनोप्िास्ट क े बीच का िाग। इनक े तीन िाग माने जाते हैं— (i) एक्िोप्िाज्म- यह िाग कोलिका किा क े तनकट होता है। यह अधधक ठोस होता है। (ii) मीिोप्िाज्म- यह कोलिका द्रव्य का मध्य िाग होता है। (iii) एांडोप्िाज्म- यह िाग टोनोप्िास्ट क े तनकट होता है। यह तरि तथा दानेदार होता है। ररक्क्तकाएँ या रि्ानी िादि कोलिका क े कोलिका द्रव्य में अनेक खािी स्थान होते हैं ज़जन्हें रिरज़क्तकाएँ या रसधातनयाँ कहते हैं। रिरज़क्तका क े चारों ंर एक झिल्िी होती है ज़जसे टोनोप्िास्ट कहते हैं। रिरज़क्तका रस में खतनज ििर्( जैसे कक क्िोराइड, सल्ि े ट, नाइरेट, िास्ि े ट आदद), काबोहाइड्रेट, एमाइड, अमीनो अम्ि, काबणतनक अम्ि एिं पिलिन्न रंग द्रव्य और अिलिटट िदाथण (टेतनन, एल्क े िायड्स) उिज़स्थत होते हैं। कायष १. रिरज़क्तका रस कोलिका की स्िीतत बनाए रखता है। २. रिरज़क्तका िंडारर् का कायण करती हैं, क्योंकक इसमें जि, िोजन एिं अन्य िदाथण संगृदहत होते हैं। ३. रिरज़क्तका में एन्थोसायतनन जैसे िदाथण होते हैं ज़जसक े कारर् ि ू िों का रंग िाि, नीिा इत्यादद होता है। कोमिका अांगक प्िाज्मा किा से धगरे हुए कोलिकाद्रव्य में अनेक जीपित संरचनाएं होती हैं ि कोलिका की पिलिन्न जैि प्रकियांं क े संिादन का कायण करती हैं। इन संरचनांं को कोलिकांग कहते हैं। अन्तद्रणव्यी जालिका, माइटोकॉज़न्ड्रया, प्िैज़स्टड, गॉल्जी उिकरर् तथा िाइसोसोम कोलिका अंगों क े महत्ििूर्ण उदाहरर् हैं।
  • 9. अन्तद्रषव्यी जामिका अन्तद्रणव्यी जालिका की खोज क े . आर. िोटणर ने सन् 1945 में की थी। कोिाद्रव्य क े मैदरक्स में दोहरी झिल्िी से बनी नलिकांं का जाि ि ै िा हुआ होता है ज़जसे अन्तद्रणव्यी जालिका कहते हैं। बाहर की ंर यह तंत्र कोलिका किा से और अंदर की ंर क ें द्रक किा से जुडा होता है। इसक े कारर् संिूर्ण कोलिका छोटे-छोटे कोटठों में बँट जाती है। अन्तद्रणव्यी जालिका दो प्रकार की होती है— १. अकझणकामय अन्तद्रषव्यी जामिका— इस जालिका की सतह िर राइबोसोम नामक कझर्कामय संरचनांं का अिाि होता है। यह प्रोटीन उिािचय में िाग नहीं िेती है। २. कझणकामय अन्तद्रषव्यी जामिका— इस जालिका की सतह िर अनेक राइबोसोम धचिक े रहते हैं ज़जसक े कारर् उनकी सतह रूक्ष प्रतीत होती है। यह मुख्य रूि से प्रोटीन उिािचय में िाग िेती है। अन्तद्रषव्यी जामिका क े कायष १. यह कोलिका को सहायता देने क े लिए यांत्रत्रक ढांचे का काम करता है। २. िितयत होने क े कारर्, कोलिका में होने िािी पिलिन्न कियांं क े लिए अधधक िृटठीय सतह प्रदान करती है। ३. कोलिका क े अंदर िदाथों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक िहुंचाती है। ४. कझर्कामय अन्तद्रणव्यी जालिका िर उिज़स्थत राइबोसोम प्रोटीन-संश्िेषर् क े क ें द्र हैं। ५. िसा, कोिेस्रॉि, स्टेरॉयड, इत्यादद क े संश्िेषर् क े लिए उियोगी एंजाइम अन्तद्रणव्यी जालिका में ज़स्थत होते हैं। माइिोकॉक्न्िया यूक ै रिरयोदटक कोलिकांं क े कोलिकाद्रव्य में अनेक सूक्ष्म गोिाकार, ििाकाित या सूत्री रचनाएं िाई जाती हैं, ज़जन्हें माइटोकॉज़न्ड्रया कहते हैं। इसकी खोज कोलिकर नामक िैज्ञातनक ने सन् 1880 में की थी। अल्टमान ने कोलिकांं में इसकी उिज़स्थतत का िर्णन ककया और इन्हें बायोप्िास्ट नाम से िुकारा। इसक े िश्चात बेन्डा ने
  • 10. कायष- माइटोकॉज़न्ड्रया कोलिका क े अंदर होने िािे ऑक्सी-श्िसन का स्थि है, जहां मुख्यत: काबोहाइड्रेट तथा िसा क े ऑक्सीकरर् क े द्िारा ऊजाण उत्िन्न होती है। C6H12O6+6O2 —> 6CO2+6H2O+ऊजाण इस उत्िाददत ऊजाण को माइटोकॉज़न्ड्रया में ही एडडनोलसन डायिास्ि े ट (ADP) में एकत्रत्रत करक े एडडनोलसन राई िास्ि े ट (ATP) का तनमाणर् ककया जाता है। ATP यहां से तनकिकर कोलिका में िहुंचकर किर ADP में बदि जाता है तथा ऊजाण को आिश्यक कायों क े लिए देता है। इस ऊजाण का उियोग कोलिका की पिलिन्न कियांं को संिन्न करने में होता है। ऊजाण मुक्त करने क े कारर् माइटोकॉज़न्ड्रया को ‘कोलिका का िािर हाउस’ िी कहते हैं। ATP को ‘ऊजाण का लसक्का’ कहा जाता है। ििक या प्िैक्टिड ििक क े िि िादि कोलिकांं में िाए जाते हैं। यह गोिाकार अथिा चिटे आकार क े तथा रंगीन अथिा रंगहीन होते हैं और कोलिका में ज़स्थत होते हैं। ििक की खोज हेकि ने सन् 1865 में की थी। ििक िब्द का प्रयोग सिणप्रथम लिम्िर ने सन् 1885 में ककया था। िर्णकों क े आधार िर इन्हें तीन िगों में बांटा जा सकता है— (अ) हररतििक यह हरे रंग क े ििक हैं। इनमें क्िोरोकिि या िर्णहरिरम नामक िर्णक उिज़स्थत होता है। क्िोरोप्िास्ट मुख्य रूि से िपत्तयों तथा कोमि तनों ि अिरिरिक्ि ििों की बाह्य त्िचा में िाए जाते हैं। यह क े िि प्रकाि संश्िेषी िौधों में िाए जाते हैं। ये गोि, चिटे, रिरबन समान, जालिका रूिी, सपिणि इत्यादद आकारों में िाए जाते हैं। उच्च िगण क े िौधों में ये प्रायः चकिकाि होते हैं। इनका व्यास 4 से 8 μ तथा मोटाई िगिग 2μ होती है। िैिािों की कोलिकांं में सामान्यतः एक या दो क्िोरोप्िास्ट होते हैं, िरंतु बीजी िौधों की प्रत्येक कोलिका में इनकी संख्या 20 से 40 तक होती है। इनका प्रमुख कायण प्रकाि संश्िेषर् द्िारा िोजन तनमाणर् करना है। अतः ये ‘कोलिका की रसोई’ कहिाते हैं। हररतििक क े प्रमुख कायष १. क्िोरोप्िास्ट में उिज़स्थत िर्णक सूयण की ऊजाण अििोपषत करते हैं। इस ऊजाण का उियोग िौधे काबोहाइड्रेट्स क े संश्िेषर् में करते हैं। २. मण्ड िि, तेिद ििक ि प्रोटीन ििक िमिः मंड, तेि ि प्रोटीन िदाथों का संचयन करते हैं। ३. हरे रंग क े अततरिरक्त अन्य रंगों क े ििक ि ू िों को आकषणक बनाकर कीट िरागर् में सहायता करते हैं।
  • 11. (ब) िणीििक यह रंगीन ििक हैं जो प्रायः िुटिों और ििों में िाए जाते हैं। इनमें िीिे रंग का िर्णक जैन्थोकिि, नारंगी रंग का क ै रोटीन तथा िाि या बैंगनी रंग का एंथोसायतनन िाए जाते हैं। इसमें स्रोमा नहीं िाई जाती है। िणीििक क े कायष १. िुटिों में उिज़स्थत िर्ीििक कीटों को िरागर् क े लिए आकपषणत करते हैं। २. रंगीन बीज तथा िि पिलिन्न प्राझर्यों को अिनी और आकपषणत करते हैं, इससे इनक े प्रकीर्णन में सहायता लमिती है। (ि) अिणीििक ये रंगहीन होते हैं। इनका आकार अतनयलमत होता है। इनक े स्रोमा में िटलिकाएँ नहीं होती है। अिर्ी ििक िौधों क े उन िागों में िाए जाते हैं जहां प्रकाि नहीं िहुंचता है। गोल्जीकाय गॉल्जीकाय की खोज सिणप्रथम क ै ममिो गॉल्जी ने सन् 1898 में की थी। इसे गॉल्जीकाय/गॉल्जी तंत्र/गॉल्जी उिकरर् िी कहते हैं। ये नीिी हरी िैिािों, जीिार्ुंं एिं माइकोप्िाजमा को छोडकर अन्य सिी जीिधारिरयों की कोलिकांं में लमिते हैं। िौधों में गोल्जीकाय को डडज़क्टयोसोम्स िी कहा जाता है। िौधों में इनकी िंबाई 1 से 3 mm तथा ऊ ं चाई 0.5 mm होती है। प्रत्येक गोल्जीकाय चिटी और मुडी हुई लसस्टनी का बना होता है। इसक े साथ छोटी थैलियां तथा बडी गोि रिरज़क्तकाएं होती है। इसक े मैदरक्स में प्रोटीन, िास्िोलिपिड, एंजाइम्स, पिटालमन और सैिुिोज िाइबर िरे रहते हैं। कायष १. ये कौलिकीय िदाथण( ग्िाइकोप्रोटीन, लिपिड्स एिं स्टीरॉल्स) का स्रािर् एिं संचयन करती है। २. ये कोलिका किा, कोलिका लिपत्त तथा काबोहाइड्रेट्स का संश्िेषर् करती है। ३. ये कोलिका पििाजन क े समय कोलिका प्िेट का तनमाणर् करती है। ४. ये उत्सजी िदाथों को कोलिका से बाहर तनकािने में सहायक होती हैं। राइबोिोमि
  • 12. यह अत्यंत सूक्ष्म कर् होते हैं, ज़जन्हें क े िि इिेक्रॉन सूक्ष्मदिी से देखा जा सकता है। सिी जीपित कोलिकांं में राइबोसोम िाए जाते हैं। इनमें से क ु छ दो कोलिका द्रव्य में तैरते रहते हैं तथा इनकी कािी बडी संख्या अन्तद्रणव्यी जालिका की नालिकांं िर िगी रहती है। इनका तनमाणर् क े िि प्रोटीन तथा राइबोन्यूज़क्िक एलसड(RNA) से होता है। राइबोसोम की खोज िैिाडे नामक िैज्ञातनक ने 1955 ई० में की थी। राइबोिोमि क े प्रकार आकार एिं अिसादन गुर्ांक क े आधार िर ये दो प्रकार क े होते हैं— १. 70S राइबोिोम- ये आकार में छोटे होते हैं और इनका अिसादन गुर्ांक 70S होता है। इस प्रकार क े राइबोसोम प्रोक ै रिरयोदटक जीिधारिरयों में तो लमिते ही हैं, बज़ल्क यूक ै रिरयोदटक जीिधारिरयों क े माइटोकॉज़न्ड्रया ि क्िोरोप्िास्ट में िी लमिते हैं। २. 80S राइबोिोम- ये आकार में बडे होते हैं और इनका अिसादन गुर्ांक 80S होता है। ये यूक ै रिरयोदटक जीिों क े क ें द्रक में लमिते हैं। कायष- राइबोसोम का प्रमुख कायण प्रोटीन संश्िेषर् में सहायता करना है। यह किया राइबोसोम में ही संिन्न होती है। अतः इन्हें कोलिकांं की प्रोटीन ि ै क्री कहा जाता है। िाइिोिोम िाइसोसोम मुख्यत: जंतु कोलिकांं में िाए जाते हैं। िौधों में ये क े िि क ु छ पििेष प्रकार की कोलिकांं में ही उिज़स्थत होते हैं। स्तनधारी प्राझर्यों की िाि रुधधर कोलिकांं में इनका अिाि होता है, िरंतु श्िेत रुधधर कोलिकांं में प्रचुर मात्रा में िाए जाते हैं। इनक े आकार तथा आकृ तत में बहुत अधधक पिपिधता िाई जाती है। िाइसोसोम की खोज डी डुिे नामक िैज्ञातनक ने सन् 1955 में की थी। प्रत्येक िाइसोसोम एक झिल्िी में तघरी हुई रसधानी है। इसक े अंदर हाइड्रोिेज नामक एंजाइम प्रचुर मात्रा में होते हैं। िाइिोिोम क े कायष १. िाइसोसोम में उिज़स्थत हाइड्रोिेज एंजाइम कोलिका में िाए जाने िािे अनेक िदाथों का िाचन करते हैं। िास्ति में िाइसोसोम का मुख्य कायण कोलिका क े िोज्य िदाथों तथा व्यथण िदाथों का अिघटन करना है। २. श्िेत रुधधर कोलिकांं में उिज़स्थत िाइसोसोम कोलिका में बाहर से आने िािे प्रोटीन, बैक्टीरिरया और पिषार्ुंं का िाचन करक े उन्हें नटट करते हैं।
  • 13. क ें टद्रक (िैंिरोिोम) सैंटरोसोम की खोज टी. बॉिेरी ने सन् 1888 में की थी। तारककाय प्रायः जंतु कोलिकांं में क ें द्रक क े िास कोलिका द्रव्य में िाया जाता है तथा िनस्िततयों में क े िि क ु छ किक और िैिािों में ही लमिता है। प्रत्येक सैंटरोसोम दो बेिनाकार रचनांं से बना होता है, इन्हें तारक क ें द्र कहते हैं। प्रत्येक तारक क ें द्र में 9 बेिनाकार तन्तुक एक चि में व्यिज़स्थत होती हैं। इसलिए इन तंतुंं को त्रत्रक तन्तुक कहते हैं। सिी नौ त्रत्रक तन्तुक एक मध्य नालि क े चारों ंर व्यिज़स्थत होते हैं। ये एक बैिगाडी क े िदहये जैसी रचना बनाते हैं। तारक क ें द्र क े चारों ंर सैंटरोस्िीयर का एक घेरा होता है। कायष १. यह कोलिका पििाजन में सहायता करता है। २. यह जंतु कोलिका पििाजन क े समय तक ुण क े तनमाणर् में सहायता करता है। (ब) क ें द्रक क ें द्रक की खोज रॉबटण ब्राउन ने सन् 1831 में की थी। कोलिका क े िीतर कोलिकाद्रव्य से तघरा हुआ यह गोि आकृ तत का तथा गहरे रंग का पििेष िाग होता है। सामान्यतः कोलिका का एक ही क ें द्रक होता है। जीिार्ुंं तथा क ु छ कोलिकांं(जैसे RBCs) में क ें द्रक नहीं होता है। क ें द्रक क े चार प्रमुख िाग होते हैं— १. क ें द्रक किा- यह प्िाज्मा झिल्िी की िांतत दोहरी झिल्िी बनाती है जो क ें द्रक को चारों ंर से घेरे रहती है। प्रोक ै रिरयोदटक कोलिका में क ें द्रक किा का अिाि होता है। क ें द्रक किा िरर्ात्मक िारगम्य होती है। यह क ें द्रक तथा कोलिका द्रव्य क े बीच िदाथों क े आदान-प्रदान को तनयंत्रत्रत करती है। २. क ें द्रकद्रव्य- क ें द्रक क े अंदर एक िारदिी, तरि िदाथण िरा रहता है ज़जसे क ें द्रकद्रव्य कहते हैं। यह न्यूज़क्ियोप्रोटीन से बना, िारदिी, कोिॉइडी तथा अद्णधतरि िदाथण होता है। यह क ें द्रक किा से तघरा होता है। इसमें क ें दद्रक और िोमेदटन धागे क े अततरिरक्त एंजाइम, खतनज ििर्, RNA ि राइबोसोम आदद िाए जाते हैं। ३. क ें टद्रक- क ें द्रक में प्रायः 1-3 स्िटट गोिाकार सघन रचनाएं होती है ज़जन्हें क ें दद्रका कहते हैं। क ें दद्रका में प्रोटीन, RNA तथा DNA िगिग 85:10:5 क े अनुिात में िाए जाते हैं। ये ककसी झिल्िी या आिरर् से तघरे नहीं होते इसलिए ये सीधे क ें द्रक क े संिक ण में रहते हैं। इसका मुख्य कायण राइबोसोम बनाने हेतु RNA का संश्िेषर् करना है जो कक प्रोटीन क े साथ संयुक्त होकर राइबोसोम बनाती है। इसी कारर् क ें दद्रक को
  • 14. ४. क्रोमैटिन तन्तु- क ें द्रकद्रव्य में सूक्ष्म- तन्तुंं का एक जाि ि ै िा होता है। कोलिका पििाजन क े समय ये तंतु अिेक्षाकृ त मोटे और स्िटट ददखाई देने िगते हैं। इन्हें गुर्सूत्र अथिा िोमोसोम कहते हैं। ये मुख्यत: डी-ऑक्सीराइबोज न्यूज़क्िक अम्ि(DNA) से बने होते हैं। िोमोसोम में मोततयों क े समान ि ू िी हुई संरचनाएं ददखाई देती हैं इन्हें जीन्स कहते हैं। जीन्स अनुिांलिक िक्षर्ों की िाहक होती है तथा जीिन क े िक्षर्ों को एक िीढी से अगिी िीढी को स्थानांतरिरत करती हैं। प्रत्येक जीिधारी की कोलिकांं में िोमोसोम की संख्या तनज़श्चत होती है। गोिकृ लम की कोलिका में क े िि 2, मटर की कोलिकांं में 14, मेंढक कोलिकांं में 26 तथा मनुटय की प्रत्येक कोलिका में 46 िोमोसोम िाए जाते हैं। क ें द्रक क े कायष १. क ें द्रक कोलिका का तनयंत्रर् क ें द्र है, यह कोलिका की सिी कियांं को तनयंत्रत्रत करता है। २. क ें द्रक की कोलिका पििाजन का तनयंत्रर् करता है। ३. अनुिांलिक िक्षर्ों का एक िीढी से दूसरी िीढी को स्थानांतरर् क ें द्रक में उिज़स्थत िोमोसोम द्िारा ही होता है। कोमिका विभाजन जीिधारिरयों में िृद्धध हेतु नई कोलिकाएं बनती हैं जैसे िुरानी मृत एिं क्षततग्रस्त कोलिकांं का प्रततस्थािन और प्रजनन हेतु युग्मक बनते हैं। नई कोलिकांं क े बनने की प्रकिया को कोलिका पििाजन कहते हैं। कोमिका विभाजन क े प्रकार जीिधारिरयों में तीन प्रकार क े कोलिका पििाजन िाए जाते हैं— (i) द्पिपििाजन (ii) समसूत्री पििाजन (iii) अद्णधसूत्री पििाजन (i) दविविभाजन – सरितम प्रकार का कोलिका पििाजन सरि जीिों जैसे- बैक्टीरिरया में िाया जाता है। जदटि जीिों में पििाजन दो प्रकार क े होते हैं— समसूत्री पििाजन तथा अद्णधसूत्री पििाजन। (ii) िमिूिी विभाजन – कोलिका पििाजन की प्रकिया ज़जसमें अधधकतर कोलिकाएं िृद्धध हेतु पििाज़जत होती है उसे समसूत्री पििाजन कहते हैं। इस प्रकिया में प्रत्येक कोलिका ज़जसे मातृकोलिका िी कह सकते हैं, पििाज़जत होकर दो समरूि संततत कोलिकाएं बनाती है। संततत कोलिकांं में गुर्सूत्रों की संख्या मातृकोलिका क े समान होती है। यह जीिों में िृद्धध एिं ऊतकों क े मरम्मत में सहायता करती है।
  • 15. (iii) अदष्िूिी विभाजन- जंतुंं और िौधों क े प्रजनन अंगों अथिा ऊतकों की पििेष कोलिकाएं पििाज़जत होकर युग्मक बनाती है जो तनषेचन क े िश्चात संततत तनमाणर् करती है। यह एक अिग प्रकार का पििाजन है ज़जसे अद्णधसूत्रर् कहते हैं ज़जसमें िमिः दो पििाजन होते हैं। जब कोलिका अद्णधसूत्रर् द्िारा पििाज़जत होती है तो इससे दो की जगह चार नई कोलिकाएं बनती हैं। नई कोलिकांं में मातृ कोलिकांं की तुिना में गुर्सूत्रों की संख्या आधी होती है।