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भारतीय दण्ड संहिता, 1860
[ INDIAN PENAL CODE, 1860 ]
[ 1860 का अहिहियम संख्ांक 45 ]
भाग 1
[ 6 अक्ट
ू बर 1860 ]
अध्याय 1
प्रस्ताविा
उद्देहिका - भारत क
े हिए एक सािारण दण्ड संहिता का उपबन्ध करिा समीचीि
िै। अतः यि हिम्नहिखित रूप में अहिहियहमत हकया जाता िै।
1. संहिता का िाम और उसक
े प्रवतति का हवस्तार -
यि अहिहियम भारतीय दण्ड संहिता कििाएगा और इसका हवस्तार सम्पूणत भारत पर
िोगा। [The words "except the State of Jammu and Kashmir" omitted by Act 34
of 2019, s. 95 and the Fifth Schedule (w.e.f. 31-10- 2019)]
2. भारत क
े भीतर हकए गए अपरािों का दण्ड -
िर व्यखि इस संहिता क
े उपबन्धों क
े प्रहतक
ू ि िर कायत या िोप क
े हिए हजसका वि
भारत क
े भीतर दोषी िोगा, इसी संहिता क
े अिीि दण्डिीय िोगा अन्यथा ििीं।
3. भारत से परे हकए गए हकन्तु उसक
े भीतर हवहि क
े अिुसार हवचारणीय अपरािों
का दण्ड–
भारत से परे हकए गए अपराि क
े हिए जो कोई व्यखि हकसी भारतीय हवहि क
े
अिुसार हवचारण का पात्र िो, भारत से परे हकए गए हकसी कायत क
े हिए उससे इस
संहिता क
े उपबन्धों क
े अिुसार ऐसा बरता जाएगा मािो वि कायत भारत क
े भीतर
हकया गया था।
4. राज्यक्षेत्रातीत अपरािों पर संहिता का हवस्तार -
इस संहिता क
े उपबन्ध -
(1) भारत से बािर और परे हकसी स्थाि में भारत क
े हकसी िागररक द्वारा;
(2) भारत में रहजस्ट्रीक
ृ त हकसी पोत या हवमाि पर, चािे वि किीं भी िो हकसी व्यखि
द्वारा हकए गए हकसी अपराि को भी िागू िै।
(3) भारत में खस्थत कम्प्यूटर संस्थाि को िक्ष्य करक
े भारत क
े बािर और परे हकसी
स्थाि में अपराि काररत करिे वािे हकसी व्यखि क
े द्वारा हदये गये हकसी अपराि को
भी िागू िोगा।
स्पष्टीकरण- इस िारा में -
(क) "अपराि" िब्द क
े अन्तगतत भारत से बािर हकया गया ऐसा िर कायत आता िै
जो यहद भारत में हकया जाता तो, इस संहिता क
े अिीि दण्डिीय िोता िै;
(ि) पद "कम्प्यूटर सािि” का विी अथत िोगा, जो उसे सूचिा प्रौद्योहगकी अहिहियम,
2000 (2000 का 21) की यहद 2 की उपिारा (1) िण्ड (त) में उसे समिुदेहित िै।
दृष्टांत
क, जो भारत का िागररक िै उगाण्डा में ित्या करता िै वि भारत क
े हकसी स्थाि में,
जिााँ वि पाया जाए, ित्या क
े हिए हवचाररत और दोषहसद्ध हकया जा सकता िै.
5. क
ु छ हवहियों पर इस अहिहियम द्वारा प्रभाव ि डािा जािा — इस अहिहियम में की
कोई बात भारत सरकार की सेवा क
े आहिसरों, सैहिकों, िौसैहिकों या वायु सैहिकों
द्वारा हवद्रोि और अहभत्यजि को दखण्डत करिे वािे हकसी अहिहियम क
े उपबन्धों, या
हकसी हविेष या स्थािीय हवहि क
े उपबन्धों, पर प्रभाव ििीं डािेगी।
अध्याय 2
सािारण स्पष्टीकरण
[General Explanations]
6. संहिता में की पररभाषाओं का अपवादों क
े अध्यिीि समझा जािा -
इस संहिता में सवतत्र, अपराि की िर पररभाषा िर दण्ड उपबन्ध और, िर ऐसी पररभाषा
या दण्ड उपबन्ध का िर दष्टान्त,"सािारण अपवाद" िीषतक वािे अध्याय में अन्तहवतष्ट
अपवादों क
े अध्यिीि समझा जायेगा, चािे उि अपवादों को ऐसी पररभाषा, दण्ड उपबन्ध
या दृष्टान्त में दुिराया ि गया िो।
दृष्टान्त
(क) इस संहिता की वे िाराएाँ , हजिमें अपरािों की पररभाषाएाँ अन्तहवतष्ट िै, यि अहभव्यि
ििीं करती हक सात वषत से कम आयु का हििु ऐसे अपराि ििीं कर सकता, हकन्तु
पररभाषाएाँ उस सािारण अपवाद क
े अध्यिीि समझी जाती िैं हजसमें यि उपबखन्धत
कोई बात, जो सात वषत से कम आयु क
े हििु द्वारा की जाती िै, अपराि ििीं िै।
(ि) क, एक पुहिस आहिसर, वारण्ट क
े हबिा, य को, हजसिे ित्या की िै, पकड़ िेता
िै। यिााँ क सदोष परररोि क
े अपराि का दोषी ििीं िैं, क्ोंहक वि य को पकड़िे क
े
हिए हवहि द्वारा आबद्ध था, और इसहिए यि मामिा उस सािारण अपवाद क
े अन्तगतत
आ जाता िै, हजसमें यि उपबखन्धत िै हक “कोई बात अपराि ििीं िै जो हकसी ऐसे
व्यखि द्वारा की जाए जो उसे करिे क
े हिए हवहि द्वारा आबद्ध िो"।
7. एक बार स्पष्टीक
ृ त पद का भाव - िर पद, हजसका स्पष्टीकरण इस संहिता क
े हकसी
भाग में हकया गया िै, इस संहिता क
े िर भाग में उस स्पष्टीकरण क
े अिुरूप िी प्रयोग
हकया गया िै।
8. हिंग - पुखलंग वाचक िब्द जिााँ प्रयोग हकया गया िै, वे िर व्यखि क
े बारे में िागू
िैं, चािे िर िो या िारी।
9. वचि - जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक
ू ि प्रतीत ि िो, एक वचि द्योतक िब्दों क
े
अन्तगतत बहुवचि आता िै, और बहुवचि द्योतक िब्दों क
े अन्तगतत एकवचि आता िै।
10. पुरुष, स्त्री -
"पुरुष" िब्द हकसी भी आयु क
े मािव िर का ध्योत्तक िै; "स्त्री" िब्द हकसी भी आयु
की मािव िारी का द्योत्तक िै।
11. "व्यखि” -
कोई भी कम्पिी या संगम, या व्यखि हिकाय चािे वि हिगहमत िो या ििीं, " व्यखि"
िब्द क
े अन्तगतत आता िै।
12. "िोक" -
िोक का कोई भी वगत या कोई भी समुदाय "िोक" िब्द क
े अन्तगतत आता िै।
13. क्वीि -
हवहि अिुक
ू िि आदेि, 1950 द्वारा हिरहसत।
14. "सरकार का सेवक" -
"सरकार का सेवक" िब्द सरकार क
े प्राहिकार क
े द्वारा या अिीि, भारत क
े भीतर
उस रूप में बिे रििे हदए गए, हियुि हकए गए, या हियोहजत हकए गए हकसी भी
आहिसर या सेवक क
े ध्योत्तक िै।
15. "हिहटि इखण्डया" की पररभाषा -
हवहि अिुक
ू िि आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत.
16. "भारत सरकार" -
भारत सरकार (भारतीय हवहि अिुक
ू िि) आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत ।
17. सरकार -
"सरकार" िब्द क
े न्द्रीय सरकार या हकसी राज्य की सरकार का ध्योत्तक िै।
18. "भारत" -
"भारत" से जम्मू-कश्मीर राज्य क
े हसवाय भारत का राज्य क्षेत्र अहभप्रेत िै।
19. "न्यायािीि" -
"न्यायािीि" िब्द ि क
े वि िर ऐसे व्यखि का ध्योत्तक िै, जो पद रूप से न्यायािीि
अहभहित िो, हकन्तु उस िर व्यखि का भी ध्योत्तक िै, जो हकसी हवहि-कायतवािी में,
चािे वि हसहवि िो या दाखण्डक, अखन्तम हिणतय या ऐसा हिणतय, जो उसक
े हवरुद्ध अपीि
ि िोिे पर अंहतम िो जाए या ऐसा हिणतय, जो हकसी अन्य प्राहिकारी द्वारा पुष्ट हकए
जािे पर अखन्तम िो जाए, देिे क
े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो अथवा
जो उस व्यखि-हिकाय में से एक िो, जो व्यखि-हिकाय ऐसा हिणतय देिे क
े हिए हवहि
द्वारा सिि हकया गया िो।
दृष्टान्त
(क) सि् 1859 क
े अहिहियम 10 क
े अिीि हकसी वाद में अहिकाररता का प्रयोग करिे
वािा किेक्टर न्यायािीि िै।
(ि) हकसी आरोप क
े सम्बन्ध में, हजसक
े हिए उसे जुमातिा या कारावास का दण्ड देिे
की िखि प्राप्त िै, चािे उसकी अपीि िोती िो या ि िोती िो, अहिकाररता का प्रयोग
करिे वािा महजस्ट्रेट न्यायािीि िै।
(ग) मद्रास संहिता क
े सि् 1816 क
े हवहियम 7 क
े अिीि वादों का हवचारण करिे की
और अविारणा करिे की िखि रििे वािी पंचायत का सदस्य न्यायािीि िै।
(घ) हकसी आरोप क
े सम्बन्ध में, हजिक
े हिए उसे क
े वि अन्य न्यायािय को हवचारणाथत
सुपुदत करिे की िखि प्राप्त िै, अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा महजस्ट्रेट न्यायािीि
ििीं िै।
20. "न्यायािय" -
"न्यायािय" िब्द उस न्यायािीि का, हजसे अक
े िे िी को न्याहयकतः कायत करिे क
े
हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो, या उस न्यायािीि हिकाय का, हजसे एक हिकाय
क
े रूप में न्याहयकतः कायत करिे क
े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो, जबहक
ऐसा न्यायािीि या न्यायािीि हिकाय न्याहयकतः कायत कर रिा िै, ध्योत्तक िै।
दृष्टान्त
मद्रास संहिता क
े सि् 1816 क
े हवहियम 7 क
े अिीि कायत करिे वािी पंचायत हजसे
वादों का हवचारण करिे और अविारण करिे की िखि प्राप्त िै, न्यायािय िै।
21. "िोक सेवक" -
"िोक सेवक" िब्द उस व्यखि का ध्योत्तक िै जो एतखिि् पश्चात् हिम्नगत वणतिों में
से हकसी में आता िै, अथातत् -
दू सरा -- भारत की सेिा िौसेिा या वायुसेिा का िर आयुि आहिसर;
तीसरा - िर न्यायािीि हजसक
े अन्तगतत ऐसा कोई भी व्यखि आता िै जो हकन्ीं न्याय
हिणातहयक क
ृ त्यों का चािे स्वयं या व्यखियों क
े हकसी हिकाय क
े सदस्य क
े रूप में
हिवतिि करिे क
े हिए हवहि द्वारा िि हकया गया िो;
चौथा - न्यायािय का िर आहिसर हजसक
े अन्तगतत समापक, ररसीवर या कहमश्नर आता
िै, हजसका ऐसे आहिसर क
े िाते यि कततव्य िो हक वि हवहि या तथ्य क
े हकसी
मामिे में अन्वेषण या ररपोटत करे, या कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीक
ृ त करे, या रिे,
या हकसी सम्पहत का भार सम्भािे या उस सम्पहत का व्ययि करे, या हकसी न्याहयक
आदेहिका का हिष्पादि करे, या कोई िपथ ग्रिण कराए या हिवतचि करे, या न्यायािय
में व्यवस्था बिाए रिे और िर व्यखि, हजसे ऐसे कततव्यों में से हकन्ीं का पािि करिे
का प्राहिकार न्यायािय द्वारा हविेष रूप से हदया गया िो;
पांचवा - हकसी न्यायािय या िोक-सेवक की सिायता करिे वािा िर जूरी सदस्य,
असेसर या पंचायत का सदस्य।
छटा - िर मध्यस्थ या अन्य व्यखि, हजसको हकसी न्यायािय द्वारा, या हकसी अन्य सक्षम
िोक प्राहिकारी द्वारा कोई मामिा या हवषय, हवहिश्चय या ररपोटत क
े हिए हिदेहित हकया
गया िो।
सातवां - िर व्यखि जो हकसी ऐसे पद को िारण करता िो, हजसक
े आिार से वि
हकसी व्यखि को परररोि में करिे या रििे क
े हिए सिि िो।
आठवां - सरकार का िर आहिसर हजसका ऐसे आहिसर क
े िाते यि कततव्य िो हक
वि अपरािों का हिवारण करे, अपरािों की इहत्तिा दे, अपराहियों को न्याय क
े हिए
उपखस्थत करे, या िोक क
े स्वास्थ्य, क्षेम या सुहविा की संरक्षा करे।
िवां - िर आहिसर हजसका ऐसे आहिसर क
े िाते यि कततव्य िो हक वि सरकार
की ओर से हकसी सम्पहत्त को ग्रिण करे, प्राप्त करे, रिे, या व्यय करे, या सरकार की
ओर से कोई सवेक्षण, हििातरण या संहवदा करे, या हकसी राजस्व आदेहिका का हिष्पादि
करे या सरकार क
े िि सम्बन्धी हितों पर प्रभाव डाििे वािे हकसी मामिे में अन्वेषण
या ररपोटत करे या सरकार क
े िि सम्बन्धी हितों से सम्बखन्धत हकसी दस्तावेज को
बिाए, अहिप्रमाणीक
ृ त करे या रिे, या सरकार क
े िि-सम्बन्धी हितों की संरक्षा क
े
हिए हकसी हवहि क
े व्यहतक्रम को रोक
े ।
दसवां - िर आहिसर, हजसका ऐसे आहिसर क
े िाते यि कततव्य िो हक वि हकसी
ग्राम, िगर या हजिे क
े हकसी िमतहिरपेक्ष सामान्य प्रयोजि क
े हिए हकसी सम्पहत्त को
ग्रिण करे, प्राप्त करे, रिे, या व्यय करे, कोई सवोक्षण या हििातरण करे, या कोई रेट या
कर उद् गृिीत करे, या हकसी ग्राम, िगर या हजिे क
े िोगों क
े अहिकारों क
े अहभहिश्चयि
क
े हिए कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीक
ृ त करे या रिे।
ग्यारिवां - िर व्यखि जो कोई ऐसा पद िारण करता िो हजसक
े आिार से वि
हिवातचक िामाविी तैयार करिे, प्रकाहित करिे, बिाए रििे या पुिरीहक्षत करिे क
े
हिए या हिवातचि या हिवातचि क
े हकसी भाग को संचाहित करिे क
े हिए सिि िो;
बारिवां - िर व्यखि, जो –
(क) सरकार की सेवा या वेति में िो, या हकसी िोक-कततव्य क
े पािि क
े हिए
सरकार से िीस या कमीिि क
े रूप में पाररश्रहमक पाता िो।
(ि) स्थािीय प्राहिकारी की, अथवा क
े न्द्र, प्रान्त या राज्य क
े अहिहियम क
े द्वारा
या अिीि स्थाहपत हिगम की अथवा कम्पिी अहिहियम, 1956 (1956 का 1) की िारा
617 में यथा पररभाहषत सरकारी कम्पिी की, सेवा या वेति में िो।
दृष्टान्त
िगरपाहिका आयुि िोक सेवक िै।
स्पष्टीकरण 1 - ऊपर क
े वणतिों में से हकसी में आिे वािे व्यखि िोक सेवक िैं, चािे वे
सरकार द्वारा हियुि हकए गए िों या ििीं।
स्पष्टीकरण 2 - जिााँ किीं "िोक सेवक" िब्द आए िैं, वे उस िर व्यखि क
े सम्बन्ध में
समझे जायेंगे जो िोक सेवक क
े ओिदे को वास्तव में िारण हकए हुए िों, चािे उस
ओिदे को िारण करिे क
े उसक
े अहिकार में क
ै सी िी हवहिक त्रुहट िो।
स्पष्टीकरण 3 - "हिवातचि" िब्द ऐसे हकसी हविायी, िगरपाहिका या अन्य िोक प्राहिकारी
क
े िाते, चािे वि क
ै से िी स्वरूप का िो, सदस्यों क
े वरणाथत हिवातचि का ध्योत्तक िै
हजसक
े हिए वरण करिे की पद्धहत हकसी हवहि क
े द्वारा या अिीि हिवातचि क
े रूप
में हिहित की गई िो।
------------------------------------------------
राज्य संिोिि
राजस्थाि - भा० द० संहिता की िारा 21 राजस्थाि में यथा प्रयोज्य िण्ड बारिवााँ क
े
पश्चात् हिम्नहिखित िवीि िण्ड जोड़े जाएाँ गे, यथा -
तेरिवााँ - प्रत्येक व्यखि जो हकसी हवहि क
े अन्तगतत अिुमोहदत अथवा मान्यता प्राप्त
हकसी परीक्षा को सम्पाहदत करािे क
े हिए और उसकी देि-रेि करिे क
े हिए हकसी
िोक हिकाय द्वारा हियुि हकया गया या िगाया गया िै।
स्पष्टीकरण - अहभव्यखि िोक हिकाय में सखम्महित िैं -
(क) हवश्वहवद्यािय हिक्षा पररषद या अन्य हिकाय चािे वि क
े न्द्र अथवा राज्य क
े
अन्तगतत स्थाहपत हुआ ओ अथवा भारतीय संहविाि क
े उपबन्धों द्वारा सरकार द्वारा
गहठत हकया गया िो।
(ि) "एक स्थािीय प्राहिकारी" [राजस्थाि अहि० सं० 4 सि् 1993 िारा 2 प्रभावी 11-
2-1993]
-----------------------------------------------------------------------------------------
22. "जंगम सम्पहत्त" -
"जंगम सम्पहत्त" िब्दों से यि आिहयत िै हक इिक
े अन्तगतत िर भााँहत की मूतत सम्पहत्त
आती िै, हकन्तु भूहम और वे चीजें, जो भूबद्ध िों या भूबद्ध हकसी चीज से स्थायी रूप
से जकड़ी हुई िों, इिक
े अन्तगतत ििीं आती।
23. "सदोष अहभिाभ" -
"सदोष अहभिाभ" हवहि हवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त का अहभिाभ िै, हजसका वैि
रूप से िकदार अहभिाभ प्राप्त करिे वािा व्यखि ि िो।
"सदोष िाहि" - "सदोष िाहि" हवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त की िाहि िै, हजसका
वैि रूप से िकदार िाहि उठािे वािा व्यखि िो।
सदोष अहभिाभ प्राप्त करिा - सदोष िाहि उठािा - कोई व्यखि सदोष अहभिाभ
प्राप्त करता िै, यि तब किा जाता िै जब हक वि व्यखि सदोष रिे रिता िै तब
भी जब हक वि व्यखि सदोष अजति करता िै। कोई व्यखि सदोष िाहि उठाता िै,
यि तब किा जाता िै जबहक उसे हकसी सम्पहत से सदोष अिग रिा जाता िै और
तब भी जबहक उसे हकसी सम्पहत्त से सदोष वंहचत हकया जाता िै।
24. “बेईमािी से" -
जो कोई इस आिय से कोई कायत करता िै हक एक व्यखि को सदोष अहभिाभ काररत
करे या अन्य व्यखि को सदोष िाहि काररत करे, वि उस कायत को “बेईमािी से" करता
िै, यि किा जाता िै।
25. “कपटपूवतक” -
कोई व्यखि हकसी बात को कपटपूवतक करता िै, यि किा जाता िै, यहद वि उस बात
को कपट करिे क
े आिय से करता िै, हकन्तु अन्यथा ििीं।
26. “हवश्वास करिे का कारण” -
कोई व्यखि हकसी बात क
े “हवश्वास करिे का कारण” रिता िै, यि तब किा जाता
िै, जब यि उस बात क
े हवश्वास करिे का पयातप्त िेतुक रिता िै, अन्यथा ििीं।
27. “पत्नी, हिहपक या सेवक क
े कब्जे में संपहत्त” -
जबहक संपहत्त हकसी व्यखि क
े हिहमत्त उस व्यखि की पत्नी, हिहपक या सेवक क
े कब्जे
में िै, तब वि इस संहिता क
े अथत क
े अन्तगतत उस व्यखि क
े कब्जे में िै।
स्पष्टीकरण -- हिहपक या सेवक क
े िाते अस्थायी रूप से या हकसी हवहिष्ट अवसर
पर हियोहजत व्यखि इस िारा क
े अथत क
े अन्तगतत हिहपक या सेवक िै।
28. “क
ू टकरण” -
जो व्यखि एक चीज को दू सरी चीज क
े सदृि इस आिय से करता िै हक वि उस
सदृि से प्रवंचिा करे, या यि संभाव्य जािते हुए करता िै हक तद्द
् वारा प्रवंचिा की
जाएगी, वि 'क
ू टकरण' करता िै, यि किा जाता िै।
स्पष्टीकरण 1- क
ू टकरण क
े हिए यि आवश्यक ििीं िै हक िकि ठीक वैसी िी िो।
स्पष्टीकरण 2- जबहक कोई व्यखि एक चीज को दू सरी चीज क
े सदृि कर दे और सदृि
ऐसा िै हक तद्द
् वारा हकसी व्यखि को प्रवंचिा िो सकती िो, तो जब तक हक तत्प्रहतक
ू ि
साहबत ि हकया जाए, यि उपिारणा की जाएगी हक जो व्यखि एक चीज को दू सरी
चीज क
े इस प्रकार सदृि बिाता िै उसका आिय उस सदृि द्वारा प्रवंचिा करिे का
था या वि यि संभाव्य जािता था हक एतद्वारा प्रवंचिा की जाएगी।
29. “दस्तावेज” -
“दस्तावेज” िब्द हकसी भी हवषय का द्योतक िै हजसको हकसी पदाथत पर अक्षरों, अंकों
या हचन्ों क
े सािि द्वारा, या उिमें एक से अहिक साििों द्वारा अहभव्यि या वहणतत
हकया गया िो जो उस हवषय क
े साक्ष्य क
े रूप में उपयोग हकए जािे को आिहयत
िो या उपयोग हकया जा सक
े ।
स्पष्टीकरण 1- यि तत्विीि िै हक हकस सािि द्वारा या हकस पदाथत पर अक्षर, अंक या
हचन् बिाए गए िैं या यि हक साक्ष्य हकसी न्यायािय क
े हिए आिहयत िै या ििीं, या
उसमें उपयोग हकया जा सकता िै या ििीं।
दृष्टांत
हकसी संहवदा क
े हिबंििों को अहभव्यि करिे वािा िेि, जो उस संहवदा क
े साक्ष्य
क
े रूप में उपयोग हकया जा सक
े , दस्तावेज िै।
बैंककार पर हदया गया चैक दस्तावेज िै।
मुख्तारिामा दस्तावेज िै।
मािहचत्र या रेिांक, हजसको साक्ष्य क
े रूप में उपयोग में िािे का आिय िो या जो
उपयोग में िाया जा सक
े , दस्तावेज िै।
हजस िेि में हिदेि या अिुदेि अन्तहवतष्ठ िो, वि दस्तावेज िै।
स्पष्टीकरण 2 - अक्षरों, अंकों या हचन्ों से जो क
ु छ भी वाहणखज्यक या अन्य प्रथा क
े
अिुसार व्याख्ा करिे पर अहभव्यि िोता िै, वि इस िारा क
े अथत क
े अन्तगतत ऐसे
अक्षरों, अंकों या हचन्ों से अहभव्यि हुआ समझा जाएगा, चािे वि वस्तुतः अहभव्यि
ि भी हकया गया िो।
दृष्टांत
क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर, जो उसक
े आदेि क
े अिुसार देय िै, अपिा िाम हिि
देता िै। वाहणखज्यक प्रथा क
े अिुसार व्याख्ा करिे पर इस पृष्ठांकि का अथत िै हक
िारक को हवहिमयपत्र का भुगताि कर हदया जाए। पृष्ठांकि दस्तावेज िै और इसका
अथत उसी प्रकार से िगाया जािा चाहिए मािो िस्ताक्षर क
े ऊपर “िारक को भुगताि
करो” िब्द या तत्प्रभाव वािे िब्द हिि हदए गए िों।
29 क. इिेक्टराहिक अहभिेि -
“इिेक्टराहिक अहभिेि” िब्दों का विी अथत िोगा, जो उन्ें सूचिा प्रोद्योहगकी अहिहियम,
2000 की िारा 2 की उपिारा (1) क
े िण्ड (ि) में समिुदेहित हकया गया िै।
30. “मूल्यवाि प्रहतभूहत" -
“मूल्यवाि प्रहतभूहत' िब्द उस दस्तावेज क
े द्योतक िैं, जो ऐसा दस्तावेज िै, या िोिा
तात्पहयतत िै, हजसक
े द्वारा कोई हवहिक अहिकार सृहजत, हवस्तृत, अन्तररत, हिबतखन्धत,
हिवातहपत, हकया जाए, छोड़ा जाए या हजसक
े द्वारा कोई व्यखि यि अहभस्वीकार करता
िै हक वि हवहिक दाहयत्व क
े अिीि िै, या अमुक हवहिक अहिकार ििीं रिता िै।
दृष्टांत
क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर अपिा िाम हिि देता िै। इस पृष्ठांकि का प्रभाव
हकसी व्यखि को, जो उसका हवहिपूणत िारक िो जाए, उस हवहिमयपत्र पर का अहिकार
अन्तररत हकया जािा िै, इसहिए यि पृष्ठांकि “मूल्यवाि प्रहतभूहत" िै।
31. “हवि" -
"हवि" िब्द हकसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक िै।
32. कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों क
े अन्तगतत अवैि िोप आता िै -
जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक
ू ि आिय प्रस्तुत ि िो, इस संहिता क
े िर भाग में हकए
गए कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों का हवस्तार अवैि िोपों पर भी िै।
33. "कायत”, “िोप" -
“कायत" िब्द कायातविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक कायत का; "िोप”
िब्द िोपाविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक िोप का।
34. सामान्य आिय को अग्रसर करिे में कई व्यखियों द्वारा हकए गए कायत -
जबहक कोई आपराहिक कायत कई व्यखियों द्वारा अपिे सब क
े सामान्य आिय को
अग्रसर करिे में हकया जाता िै, तब ऐसे व्यखियों में से िर व्यखि उस कायत क
े हिए
उसी प्रकार दाहयत्व क
े अिीि िै, मािो वि कायत अक
े िे उसी िे हकया िो।
35. जबहक ऐसा कायत इस कारण आपराहिक िै हक वि आपराहिक ज्ञाि या आिय
से हकया गया िै -
जब कभी कोई कायत, जो आपराहिक ज्ञाि या आिय से हकए जािे क
े कारण िी
आपराहिक िै, कई व्यखियों द्वारा हकया जाता िै, तब ऐसे व्यखियों में से िर व्यखि,
जो ऐसे ज्ञाि या आिय से उस कायत में सखम्महित िोता िै, उस कायत क
े हिए उसी
प्रकार दाहयत्व क
े अिीि िै, मािो वि कायत उस ज्ञाि या आिय से अक
े िे उसी द्वारा
हकया गया िो।
36. अंितः कायत द्वारा और अंितः िोप द्वारा काररत पररणाम –
जिां किीं हकसी कायत द्वारा या हकसी िोप द्वारा हकसी पररणाम का काररत हकया
जािा या उस पररणाम को काररत करिे का प्रयत्न करिा अपराि िै, विां यि समझा
जािा िै हक उस पररणाम का अंितः कायत द्वारा और अंितः िोप द्वारा काररत हकया
जािा विी अपराि िै।
दृष्टांत
क अंितः य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करक
े , और अंितः य को पीटकर
सािय य की मृत्युकाररत करता िै। क िे ित्या की िै।
37. हकसी अपराि को गहठत करिे वािे कई कायों में से हकसी एक को करक
े
सियोग करिा -
जब हक कोई अपराि कई कायों द्वारा हकया जाता िै, तब जो कोई या तो अक
े िे या
हकसी अन्य व्यखि क
े साथ सखम्महित िोकर उि कायों में से कोई एक कायत करक
े
उस अपराि क
े हकए जािे में सािय सियोग करता िै, वि उस अपराि को करता िै।
दृष्टांत -
(क) क और ि पृथक
् -पृथक
ू रूप से और हवहभन्न समयों पर य को हवष की छोटी-
छोटी मात्राएं देकर उसकी ित्या करिे को सिमत िोते िैं। क और ि, य की ित्या
करिे क
े आिय से सिमहत क
े अिुसार य को हवष देते िैं। य इस प्रकार दी गई हवष
की कई मात्राओं क
े प्रभाव से मर जाता िै। यिां क और ि ित्या करिे में सािय
सियोग करते िैं और क्ोंहक उिमें से िर एक ऐसे कायत करता िै, हजससे मृत्यु काररत
िोती िै, वे दोिों इस अपराि क
े दोषी िैं, यद्यहप उिक
े कायत पृथक िैं।
(ि) कऔर ि संयुि जेिर िैं, और अपिी उस िैहसयत में वे एक क
ै दी य का बारी-
बारी से एक समय में घण्टे क
े हिए संरक्षण-भार रिते िैं। य को हदए जािे क
े प्रयोजि
से जो भोजि क और ि को हदया जाता िै, वि भोजि इस सािय से हक य की
मृत्युकाररत कर दी जाए, िर एक अपिी िाहजरी क
े काि में य को देिे का िोप करक
े
वि पररणाम अवैि रूप से काररत करिे में जािते हुए सियोग करते िैं। य भूि से
मर जाता िै। क और ि दोिों य की ित्या क
े दोषी िैं।
(ग) एक जेिर क, एक क
ै दी य का संरक्षण भार रिता िै। क, य की मृत्यु काररत
करिे क
े आिय से, य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करता िै, हजसक
े
पररणामस्वरूप य की िखि बहुत क्षीण िो जाती िै, हकन्तु यि क्षुिापीड़ि उसकी मृत्यु
काररत करिे क
े हिए पयातप्त ििीं िोता। क अपिे पद से च्युत कर हदया जाता िै और
ि उसका उत्तरवती िोता िै। क से दुस्संहि या सियोग हकए हबिा ि यि जािते हुए
हक ऐसा करिे से संभाव्य िै हक वि य की मृत्युकाररत कर दे, य को भोजि देिे का
अवैि रूप से िोप करता िै। य भूि से मर जाता िै। ि ित्या का दोषी िै, हकन्तु क
िे ि से सियोग ििीं हकया, इसहिए क ित्या करिे क
े प्रयत्न का िी दोषी िै।
38. आपराहिक कायत में संपृि व्यखि हवहभन्न अपरािों क
े दोषी िो सक
ें गे -
जिां हक कई व्यखि हकसी आपराहिक कायत को करिे में िगे हुए या सम्पृि िैं, विां
वे उस कायत क
े आिार पर हवहभन्न अपरािों क
े दोषी िो सक
ें गे।
दृष्टांत
क गम्भीर प्रकोपि की ऐसी पररखस्थहतयों क
े अिीि य पर आक्रमण करता िै हक य
का उसक
े द्वारा वि हकया जािा क
े वि ऐसा आपराहिक मािव वि िै, जो ित्या की
कोहट में ििीं िोता िै। ि जो य से वैमिस्य रिता िै, उसका वि करिे क
े आिय से
और प्रकोपि से विीभूत ि िोते हुए य का वि करिे में क की सिायता करता िै।
यिां यद्यहप क और ि दोिों य की मृत्युकाररत करिे में िगे हुए िैं, ि ित्या का दोषी
िै और क क
े वि आपराहिक मािव वि का दोषी िै।
39. “स्वेच्छया” -
कोई व्यखि हकसी पररणाम को “स्वेच्छया" काररत करता िै, यि तब किा जाता िै,
जब वि उसे उि साििों द्वारा काररत करता िै, हजिक
े द्वारा उसे काररत करिा उसका
आिय था या उि साििों द्वारा काररत करता िै हजि साििों को काम में िाते समय
यि जािता था, या यि हवश्वास करिे का कारण रिता था हक उिसे उसका काररत
िोिा संभाव्य िै।
दृष्टांत
क िूट को सुकर बिािे क
े प्रयोजि से एक बड़े िगर क
े एक बसे हुए गृि में रात
को आग िगाता िै और इस प्रकार एक व्यखि की मृत्युकाररत कर देता िै। यिां क
का आिय भिे िी मृत्यु काररत करिे का ि रिा िो और वि दुखित भी िो हक
उसक
े कायत से मृत्युकाररत हुई िै तो भी यहद वि यि जािता था हक संभाव्य िै हक
वि मृत्युकाररत कर दे तो उसिे स्वेच्छया मृत्युकाररत की िै।
40. “अपराि” -
इस िारा क
े िण्ड 2 और 3 में वहणतत अध्यायों और िाराओं क
े हसवाय “अपराि” िब्द
इस संहिता द्वारा दण्डिीय की गई हकसी बात का द्योतक िै।
अध्याय 4, अध्याय 5क और हिम्नहिखित िाराएं , अथातत् िारा 64, 65, 66, 67, 71, 109, ,
110, 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119 और 120,187, 194, 195, 203, 211, 213, 214,
221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389 और 445 में
“अपराि’ िब्द इस संहिता क
े अिीि या एतखिि् पश्चात् यथापररभाहषत हविेष या
स्थािीय हवहि क
े अिीि दण्डिीय बात का द्योतक िै और िारा 141,176, 177, 201,
202, 212, 216 और 441 में "अपराि” िब्द का अथत उस दिा में विी िै हजसमें हक
हविेष या स्थािीय हवहि क
े अिीि दण्डिीय बात ऐसी हवहि क
े अिीि छि मास या
उससे अहिक अवहि क
े कारावास से, चािे वि जुमातिे सहित िो या रहित, दण्डिीय िो
।
41. “हविेष हवहि" -
“हविेष हवहि” वि हवहि िै जो हकसी हवहिष्ट हवषय को िागू िो।
42. “स्थािीय हवहि” -
“स्थािीय हवहि” वि हवहि िै जो भारत क
े हकसी हवहिष्ट भाग को िी िागू िो।
43. “अवैि”, “करिे क
े हिए वैि रूप से आबद्ध” -
“अवैि" िब्द उस िर बात को िागू िै, जो अपराि िो, या जो हवहि द्वारा प्रहतहषद्ध िो,
या जो हसहवि कायतवािी क
े हिए आिार उत्पन्न करती िो; और कोई व्यखि उस बात
को "करिे क
े हिए वैि रूप से आबद्ध” किा जाता िै हजसका िोप करिा उसक
े
हिए अवैि िै।
44. “क्षहत” -
“क्षहत” िब्द हकसी प्रकार की अपिाहि का द्योतक िै, जो हकसी व्यखि क
े िरीर, मि,
ख्ाहत या संपहत्त को अवैि रूप से काररत हुई िो।
45. “जीवि” -
जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक
ू ि प्रतीत ि िो, “जीवि” िब्द मािव क
े जीवि का
द्योतक िै।
46. “मृत्यु” -
जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक
ू ि प्रतीत ि िो, “मृत्यु” िब्द मािव की मृत्यु का द्योतक
िै।
47. “जीवजन्तु” -
“जीवजन्तु” िब्द मािव से हभन्न हकसी जीविारी का द्योतक िै।
48. “जियाि” -
“जियाि” िब्द हकसी चीज का द्योतक िै, जो मािवों क
े या संपहत्त क
े जि द्वारा
प्रविण क
े हिए बिाई गई िो।
49. “वषत”, “मास” -
जिां किीं “वषत” िब्द या “मास' िब्द का प्रयोग हकया गया िै विां यि समझा जािा
िै हक वषत या मास की गणिा हिहटि किैण्डर क
े अिुक
ू ि की जािी िै।
50. “िारा” -
“िारा' िब्द इस संहिता क
े हकसी अध्याय क
े उि भागों में से हकसी एक का द्योतक
िै, जो हसरे पर िगे संख्ांकों द्वारा सुहभन्न हकए गए िैं।
51. “िपथ” -
“िपथ” क
े हिए हवहि द्वारा प्रहतस्थाहपत सत्यहिष्ठ प्रहतज्ञाि और ऐसी कोई घोषणा,
हजसका हकसी िोक-सेवक क
े समक्ष हकया जािा या न्यायािय में या अन्यत्र सबूत क
े
प्रयोजि क
े हिए उपयोग हकया जािा हवहि द्वारा अपेहक्षत या प्राहिक
ृ त िो, “िपथ” िब्द
क
े अन्तगतत आती िै।
52. “सद्भावपूवतक” -
कोई बात “सद्भावपूवतक” की गई या हवश्वास की गई ििीं किी जाती जो सम्यक
्
सतक
त ता और ध्याि क
े हबिा की गई या हवश्वास की गई िो।
52 क. “संश्रय’ -
िारा 157 में क
े हसवाय और िारा 130 में विां क
े हसवाय जिां हक संश्रय संहश्रत व्यखि
की पत्नी या पहत द्वारा हदया गया िो ‘संश्रय' िब्द क
े अंतगतत हकसी व्यखि को आश्रय,
भोजि, पेय, िि, वस्त्र, आयुि, गोिाबारूद या प्रविि क
े सािि देिा, या हकन्ीं साििों
से चािे वे उसी प्रकार क
े िों या ििीं, हजस प्रकार क
े इस िारा में पररगहणत िैं, हकसी
व्यखि की सिायता पकड़े जािे से बचिे क
े हिए करिा, आता िै।
अध्याय 3: दण्डों क
े हवषय में
53. “दण्ड” -
अपरािी इस संहिता क
े उपबंिों क
े अिीि हजि दण्डों से दण्डिीय िै, वे ये िैं
पििा - मृत्यु;
दू सरा - आजीवि कारावास;
तीसरा - हविोहपत
चौथा - कारावास, जो दो भााँहत का िै, अथातत्:-
(1) कहठि, अथातत् कठोर श्रम क
े साथ;
(2) सादा;
पााँचवााँ -- सम्पहत्त का समपिरण;
छटा -- जुमातिा।
53 क. - हिवातसि क
े प्रहत हिदेि का अथत िगािा -
(1) उपिारा (2) क
े और उपिारा (3) क
े उपबंिों क
े अध्यिीि हकसी अन्य तत्समय
प्रवृहत्त हवहि में, या हकसी ऐसी हवहि या हकसी हिरहसत अहिहियहमहत क
े आिार पर
प्रभाविीि हकसी हिित या आदेि में “आजीवि हिवातसि” क
े प्रहत हिदेि का अथत
यि िगाया जायेगा, हक वि “आजीवि कारावास” क
े प्रहत हिदेि िै।
(2) िर मामिे में, हजसमें हक हकसी अवहि क
े हिए हिवातसि का दण्डादेि दण्ड प्रहक्रया
संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) क
े प्रारंभ से पूवत हदया गया िै,
अपरािी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मािो वि उस अवहि क
े हिए कहठि कारावास
क
े हिए दण्डाहदष्ट हकया गया िो।
(3) हकसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में हकसी अवहि क
े हिए हिवातसि या हकसी िघुतर
अवहि क
े हिए हिवातसि क
े प्रहत (चािे उसे कोई भी िाम हदया गया िो) कोई हिदेि
िुप्त कर हदया गया समझा जाएगा।
(4) हकसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में हिवातसि क
े प्रहत जो कोई हिदेि िो -
(क) यहद उस पद से आजीवि हिवातसि अहभप्रेत िै, तो उसका अथत आजीवि कारावास
क
े प्रहत हिदेि िोिा िगाया जाएगा;
(ि) यहद उस पद से हकसी िघुत्तर अवहि क
े हिए हिवातसि अहभप्रेत िै, तो यि समझा
जाएगा हक वि िुप्त कर हदया गया िै।
54. मृत्यु दण्डादेि का िघुकरण -
िर मामिे में, हजसमें मृत्यु का दण्डादेि हदया गया िो, उस दण्ड को अपरािी की
सम्महत क
े हबिा भी समुहचत सरकार इस संहिता द्वारा उपबंहित हकसी अन्य दण्ड में
िघुक
ृ त कर सक
े गी।
55. आजीवि कारावास क
े दण्डादेि का िघुकरण -
िर मामिे में, हजसमें आजीवि कारावास का दण्डादेि हदया गया िो, अपरािी की
सम्महत क
े हबिा भी समुहचत सरकार उस दण्ड को ऐसी अवहि क
े हिए, जो चौदि वषत
से अहिक ि िो, दोिों में से हकसी भांहत क
े कारावास में िघुक
ृ त कर सक
े गी।
55 क. “समुहचत सरकार” की पररभाषा -
िारा 54 और 55 में “समुहचत सरकार” पद से -
(क) उि मामिों में क
े न्द्रीय सरकार अहभप्रेत िै, हजिमें दण्डादेि मृत्यु का दण्डादेि िै,
या ऐसे हवषय से, हजस पर संघ की कायतपािि िखि का हवस्तार िै, संबंहित हकसी
हवहि क
े हवरुद्ध अपराि क
े हिए िै; तथा
(ि) उि मामिों में उस राज्य की सरकार, हजसक
े अन्दर अपरािी दण्डाहदष्ट हुआ िै,
अहभप्रेत िै, जिां हक दण्डादेि (चािे मृत्यु का िो या ििीं) ऐसे हवषय से, हजस पर
राज्य की कायतपािि िखि का हवस्तार िै, संबंहित हकसी हवहि क
े हवरुद्ध अपराि क
े
हिए िै।
56. यूरोहपयों तथा अमरीहकयों को कठोर श्रम कारावास का दण्डादेि दस वषत से
अहिक हकन्तु जो आजीवि कारावास से अहिक ि िो, दण्डादेि क
े संबंि में परन्तुक
-
दाखण्डक हवहि (मूिवंिीय हवभेदों का हिराकरण) अहिहियम, 1949 (1949 का 17) द्वारा
(6 अप्रैि, 1949 से) हिरहसत
57. दण्डावहियों की हभन्ने -
दण्डावहियों की हभन्नों की गणिा करिे में, आजीवि कारावास को बीस वषत क
े
कारावास क
े तुल्य हगिा जाएगा।
58. हिवातसि से दण्डाहदष्ट अपराहियों क
े साथ क
ै सा व्यविार हकया जाए जब तक वे
हिवातहसत ि कर हदए जाएं -
दण्ड प्रहक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और
अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत.
59. कारावास क
े बदिे हिवातसि -
[ दण्ड प्रहक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और
अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत ]
60. दण्डाहदष्ट कारावास क
े कहतपय मामिों में संपूणत कारावास या उसका कोई भाग
कहठि या सादा िो सक
े गा -
िर मामिे में, हजसमें अपरािी दोिों में से हकसी भांहत क
े कारावास से दण्डिीय िै, वि
न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डादेि देगा, सक्षम िोगा हक दण्डादेि में यि हिहदतष्ट
करे हक ऐसा संपूणत कारावास कहठि िोगा, या यि हक ऐसा संपूणत कारावास सादा
िोगा, या यि हक ऐसे कारावास का क
ु छ भाग कहठि िोगा और िेष सादा।
61. संपहत्त क
े समपिरण का दण्डादेि -
भारतीय दण्ड संहिता क
े समपिरण का दण्डादेि भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि)
अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा हिरहसत.
62. मृत्यु, हिवातसि या कारावास से दण्डिीय अपराहियों की बाबत संपहत्त का
समपिरण -
[भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा
हिरहसत ]
63. जुमातिे की रकम -
जिां हक वि राहि अहभव्यि ििीं की गई िै हजतिी तक जुमातिा िो सकता िै, विां
अपरािी हजस रकम क
े जुमातिे का दायी िै, वि अमयातहदत िै हकन्तु अत्यहिक ििीं
िोगी।
64. जुमातिा ि देिे पर कारावास का दण्डादेि -
कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय अपराि क
े िर मामिे में; हजसमें अपरािी
कारावास सहित या रहित, जुमातिे से दण्डाहदष्ट हुआ िै, तथा कारावास या जुमातिे
अथवा क
े वि जुमातिे से दण्डिीय अपराि क
े िर मामिे में, हजसमें अपरािी जुमातिे से
दण्डाहदष्ट हुआ िै,
वि न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डाहदष्ट करेगा, सक्षम िोगा हक दण्डादेि द्वारा
हिदेि दे हक जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा में, अपरािी अमुक अवहि क
े हिए
कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास क
े अहतररि िोगा, हजसक
े हिए
वि दण्डाहदष्ट हुआ िै या हजससे वि दण्डादेि क
े िघुकरण पर दण्डिीय िै।
65. जबहक कारावास और जुमातिा दोिों आहदष्ट हकए जा सकते िैं, तब जुमातिा ि देिे
पर कारावास की अवहि -
यहद अपराि कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय िो, तो वि अवहि, हजसक
े हिए
जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए न्यायािय अपरािी को कारावाहसत
करिे का हिदेि दे, कारावास की उस अवहि की एक-चौथाई से अहिक ि िोगी, जो
अपराि क
े हिए अहिकतम हियत िै।
66. जुमातिा ि देिे पर हकस भांहत का कारावास हदया जाए -
वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए अहिरोहपत
करे, ऐसा हकसी भांहत का िो सक
े गा, हजससे अपरािी को उस अपराि क
े हिए दण्डाहदष्ट
हकया जा सकता था।
67. जुमातिा ि देिे पर कारावास, जबहक अपराि क
े वि जुमातिे से दण्डिीय िो -
यहद अपराि क
े वि जुमातिे से दण्डिीय िो तो वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा
देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए अहिरोहपत करे, सादा िोगा और वि अवहि,
हजसक
े हिए जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए न्यायािय अपरािी को
कारावाहसत करिे का हिदेि दे; हिम्न मापमाि से अहिक ििीं िोगी, अथातत्,-
जबहक जुमातिे का पररमाण पचास रुपए से अहिक ि िो तब दो मास से अिहिक
कोई अवहि,
तथा जबहक जुमातिे का पररमाण एक सौ रुपए से अहिक ि िो तब चार मास से
अिहिक कोई अवहि,
तथा हकसी अन्य दिा में छि मास से अिहिक कोई अवहि।
68. जुमातिा देिे पर कारावास का पयतवसाि िो जािा -
जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए अहिरोहपत कारावास तब पयतवहसत िो
जाएगा, जब वि जुमातिा या तो चुका हदया जाए या हवहि की प्रहक्रया द्वारा उद् गृिीत
कर हिया जाए।
69. जुमातिे क
े आिुपाहतक भाग क
े दे हदए जािे की दिा में कारावास का पयतवसाि
-
यहद जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए हियत की गई कारावास की अवहि
का अवसाि िोिे से पूवत जुमातिे का ऐसा अिुपात चुका हदया या उद् गृिीत कर हिया
जाए हक देिे में व्यहतक्रम िोिे पर कारावास की जो अवहि भोगी जा चुकी िो, वि
जुमातिे क
े तब तक ि चुकाए गए भाग क
े आिुपाहतक से कम ि िो तो कारावास
पयतवहसत िो जाएगा।
दृष्टांत -
क एक सौ रुपए क
े जुमातिे और उसक
े देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क
े हिए चार
मास क
े कारावास से दण्डाहदष्ट हकया गया िै। यिां, यहद कारावास क
े एक मास क
े
अवसाि से पूवत जुमातिे क
े पचित्तर रुपए चुका हदए जाएं या उद् गृिीत कर हिए जाएं
तो प्रथम मास का अवसाि िोते िी क उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद पचित्तर रुपए
प्रथम मास क
े अवसाि पर या हकसी भी पश्चात्वती समय पर, जबहक क कारावास में
िै, चुका हदए या उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क तुरंत उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद
कारावास क
े दो मास क
े अवसाि से पूवत जुमातिे क
े पचास रुपए चुका हदये जाएं या
उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क दो मास पूरे िोते िी उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद
पचास रुपये उि दो मास क
े अवसाि पर या हकसी भी पश्चात्वती समय पर, जबहक क
कारावास में िै, चुका हदए जाएं या उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क तुरन्त उन्मुि कर
हदया जाएगा।
70. जुमातिे का छि वषत क
े भीतर या कारावास क
े दौराि में उद्ग्रिणीय िोिा -
संपहत्त को दाहयत्व से मृत्यु उन्मुि ििीं करती -
जुमातिा या उसका कोई भाग, जो चुकाया ि गया िो, दण्डादेि हदए जािे क
े पश्चात् छि
वषत क
े भीतर हकसी भी समय, और यहद अपरािी दण्डादेि क
े अिीि छि वषत से
अहिक क
े कारावास से दण्डिीय िो तो उस कािावहि क
े अवसाि से पूवत हकसी समय,
उद् गृिीत हकया जा सक
े गा, और अपरािी की मृत्यु हकसी भी संपहत्त को, जो उसकी
मृत्यु क
े पश्चात् उसक
े ऋणों क
े हिए वैि रूप से दायी िो, इस दाहयत्व से उन्मुि ििीं
करती।
71. कई अपरािों से हमिकर बिे अपराि क
े हिए दण्ड की अवहि -
जिां हक कोई बात, जो अपराि िै, ऐसे भागों से, हजिमें का कोई भाग स्वयं अपराि िै,
हमिकर बिी िै, विां अपरािी अपिे ऐसे अपरािों में से एक से अहिक क
े दण्ड से
दखण्डत ि हकया जाएगा, जब तक हक ऐसा अहभव्यि रूप से उपबंहित ि िो।
जिां हक कोई बात अपरािों को पररभाहषत या दंहडत करिे वािी हकसी तत्समय प्रवृत्त
हवहि की दो या अहिक पृथक
् पररभाषाओं में आिे वािा अपराि िै, अथवा
जिां हक कई कायत, हजिमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाहिक से अपराि गहठत िोता
िै, हमिकर हभन्न अपराि गहठत करते िैं;
विां अपरािी को उससे गुरुत्तर दण्ड से दखण्डत ि हकया जाएगा, जो ऐसे अपरािों में
से हकसी भी एक क
े हिए वि न्यायािय,जो उसका हवचारण करे,उसे दे सकता िो ।
दृष्टांत -
(क) क, य पर िाठी से पचास प्रिार करता िै। यिां, िो सकता िै हक क िे संपूणत
मारपीट द्वारा उि प्रिारों में से िर एक प्रिार द्वारा भी, हजिसे वि संपूणत मारपीट गहठत
िै, य को स्वेच्छया उपिहत काररत करिे का अपराि हकया िो। यहद क िर प्रिार क
े
हिए दण्डिीय िोता तो वि िर एक प्रिार क
े हिए एक वषत क
े हिसाब से पचास वषत
क
े हिए कारावाहसत हकया जा सकता था। हकन्तु वि संपूणत मारपीट क
े हिए क
े वि
एक िी दण्ड से दण्डिीय िै।
(ि) हकन्तु यहद उस समय जब क, य को पीट रिा िै, म िस्तक्षेप करता िै, और क,
म पर सािय प्रिार करता िै, तो यिां म पर हकया गया प्रिार उस कायत का भाग ििीं
िै, हजसक
े द्वारा क, य को स्वेच्छया उपिहत काररत करता िै, इसहिए क, य को स्वेच्छया
काररत की गई उपिहत क
े हिए एक दण्ड से और म पर हकए गए प्रिार क
े हिए दू सरे
दण्ड से दंडिीय िै।
72. कई अपरािों में से एक क
े दोषी व्यखि क
े हिए दण्ड जबहक हिणतय में यि
कहथत िै हक यि संदेि िै हक वि हकस अपराि का दोषी िै -
उि सब मामिों में, हजिमें यि हिणतय हदया जाता िै। हक कोई व्यखि उस हिणतय में
हवहिहदतष्ट कई अपरािों में से एक अपराि का दोषी िै, हकन्तु यि संदेिपूणत िै हक वि
उि अपरािों में से हकस अपराि का दोषी िै, यहद विी दण्ड सब अपरािों क
े हिए
उपबंहित ििीं िै तो वि अपरािी उस अपराि क
े हिए दंहडत हकया जाएगा, हजसक
े
हिए कम से कम दण्ड उपबंहित हकया गया िै।
73. एकांत परररोि -
जब कभी कोई व्यखि ऐसे अपराि क
े हिए दोषहसद्ध ठिराया जाता िै हजसक
े हिए
न्यायािय को इस संहिता क
े अिीि उसे कहठि कारावास से दण्डाहदष्ट करिे की िखि
िै, तो न्यायािय अपिे दण्डादेि द्वारा आदेि दे सक
े गा हक अपरािी को उस कारावास
क
े , हजसक
े हिए वि दण्डाहदष्ट हकया गया िै, हकसी भाग या भागों क
े हिए, जो क
ु ि
हमिाकर तीि मास से अहिक क
े ि िोंगे, हिम्न मापमाि क
े अिुसार एकांत परररोि में
रिा जाएगा, अथातत् -
यहद कारावास की अवहि छि मास से अहिक ि िो तो एक मास से अिहिक समय;
यहद कारावास की अवहि छि मास से अहिक िो और एक वषत से अहिक ि िो तो
दो मास से अिहिक समय;
यहद कारावास की अवहि एक वषत से अहिक िो तो तीि मास से अिहिक समय।
74. एकांत परररोि की अवहि -
एकांत परररोि क
े दण्डादेि क
े हिष्पादि में ऐसा परररोि हकसी भी दिा में एक बार
में चौदि हदि से अहिक ि िोगा, साथ िी ऐसे एकांत परररोि की कािावहियों क
े बीच
में उि कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोगे और जब हदया गया कारावास तीि मास
से अहिक िो, तब हदए गए संपूणत कारावास क
े हकसी एक मास में एकांत परररोि सात
हदि से अहिक ि िोगा, साथ िी एकांत परररोि की कािावहियों क
े बीच में उन्ीं
कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोंगे।
75. पूवत दोषहसखद्ध क
े पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 क
े अिीि कहतपय अपरािों क
े
हिए वहितत दण्ड -
जो कोई व्यखि -
(क) भारत में क
े हकसी न्यायािय द्वारा इस संहिता क
े अध्याय 12 या अध्याय 17 क
े
अिीि तीि वषत या उससे अहिक की अवहि क
े हिए दोिों में से हकसी भांहत क
े
कारावास से दण्डिीय अपराि क
े हिए,दोषहसद्ध ठिराए जािे क
े पश्चात् उि दोिों
अध्यायों में से हकसी अध्याय क
े अिीि उतिी िी अवहि क
े हिए वैसे िी कारावास से
दण्डिीय हकसी अपराि का दोषी िो, तो वि िर ऐसे पश्चात्वती अपराि क
े हिए आजीवि
कारावास से या दोिों में से हकसी भांहत क
े कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक
की िो सक
े गी, दण्डिीय िोगा।
अध्याय 4 : सािारण अपवाद
76. हवहि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूि क
े कारण अपिे आपको हवहि द्वारा आबद्ध
िोिे का हवश्वास करिे वािे व्यखि द्वारा हकया गया कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो हकसी ऐसे व्यखि द्वारा की जाए जो उसे करिे क
े हिए
हवहि द्वारा आबद्ध िो या जो तथ्य की भूि क
े कारण, ि हक हवहि की भूि क
े कारण,
सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक वि उसे करिे क
े हिए हवहि द्वारा आबद्ध िै।
दृष्टांत -
(क) हवहि क
े समादेिों क
े अिुवतति में अपिे वररष्ठ ऑहिसर क
े आदेि से एक सैहिक
क भीड़ पर गोिी चिाता िै। क िे कोई अपराि ििीं हकया।
(ि) न्यायािय का ऑहिसर, क, म को हगरफ्तार करिे क
े हिए उस न्यायािय द्वारा
आहदष्ट हकए जािे पर और सम्यक
् जांच क
े पश्चात् यि हवश्वास करक
े हक य, म िै, य
को हगरफ्तार कर िेता िै। क िे कोई अपराि ििीं हकया।
77. न्याहयकतः कायत करते हुए न्यायािीि का कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो न्याहयकतः कायत करते हुए न्यायािीि द्वारा ऐसी हकसी
िखि क
े प्रयोग में की जाती िै, जो या हजसक
े बारे में उसे सद्भावपूवतक हवश्वास िै हक
वि उसे हवहि द्वारा दी गई िै।
78. न्यायािय क
े हिणतय या आदेि क
े अिुसरण में हकया गया कायत -
कोई बात, जो न्यायािय क
े हिणतय या आदेि क
े अिुसरण में की जाए या उसक
े द्वारा
अहिहदष्ट िो, यहद वि उस हिणतय या आदेि क
े प्रवृत्त रिते की जाए, अपराि ििीं िै,
चािे उस न्यायािय को ऐसा हिणतय या आदेि देिे की अहिकाररता ि रिी िो, परन्तु
यि तब जब हक वि कायत करिे वािा व्यखि सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक उस
न्यायािय को वैसी अहिकाररता थी।
79. हवहि द्वारा न्यायािुमत या तथ्य की भूि से अपिे को हवहि द्वारा न्यायािुमत िोिे
का हवश्वास करिे वािे व्यखि द्वारा हकया गया कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाए, जो उसे करिे क
े हिए हवहि
द्वारा न्यायािुमत िो, या तथ्य की भूि क
े कारण, ि हक हवहि की भूि क
े कारण,
सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक वि उसे करिे क
े हिए हवहि द्वारा न्यायािुमत िै।
दृष्टांत -
क, य को ऐसा करते देिता िै, जो क को ित्या प्रतीत िोता िै क सद्भावपूवतक काम में
िाए गए अपिे श्रेष्ठ हिणतय क
े अिुसार उस िखि को प्रयोग में िाते हुए, जो हवहि िे
ित्याकाररयों को उस कायत में पकड़िे क
े हिए समस्त व्यखियों को दे रिी िै, य को
उहचत प्राहिकाररयों क
े समक्ष िे जािे क
े हिए य को अहभगृिीत करता िै। क िे कोई
अपराि ििीं हकया िै चािे तत्पश्चात् असि बात यि हिकिे हक य आत्म-प्रहतरक्षा में
कायत कर रिा था।
80. हवहिपूणत कायत करिे में दुघतटिा -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो दुघतटिा या दुभातग्य से और हकसी आपराहिक आिय या
ज्ञाि क
े हबिा हवहिपूणत प्रकार से हवहिपूणत साििों द्वारा और उहचत सतक
त ता और
साविािी क
े साथ हवहिपूणत कायत करिे में िो जाती िै।
दृष्टांत -
क क
ु ल्हाड़ी से काम कर रिा िै; क
ु ल्हाड़ी का िि उसमें से हिकि कर उछि जाता
िै और हिकट िड़ा हुआ व्यखि उससे मारा जाता िै। यिां यहद क की ओर से उहचत
साविािी का कोई अभाव ििीं था तो उसका कायत मािी योग्य िै और अपराि ििीं
िै।
81. कायत, हजससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, हकन्तु जो आपराहिक आिय क
े
हबिा और अन्य अपिाहि क
े हिवारण क
े हिए हकया गया िै -
कोई बात क
े वि इस कारण अपराि ििीं िै हक वि यि जािते हुए की गई िै हक
उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, यहद वि अपिाहि काररत करिे क
े
हकसी आपराहिक आिय क
े हबिा और व्यखि या संपहत्त को अन्य अपिाहि का हिवारण
या पररवजति करिे क
े प्रयोजि से सद्भावपूवतक की गई िो।
स्पष्टीकरण - ऐसे मामिे में यि तथ्य का प्रश्न िै हक हजस अपिाहि का हिवारण या
पररवजति हकया जािा िै। क्ा वि ऐसी प्रक
ृ हत की और इतिी आसन्न थी हक वि
कायत, हजससे यि जािते हुए हक उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, करिे की
जोखिम उठािा न्यायािुमत या मािी योग्य था।
दृष्टांत -
(क) क, जो एक वाष्प जियाि का कप्ताि िै, अचािक और अपिे हकसी कसूर या
उपेक्षा क
े हबिा अपिे आपको ऐसी खस्थहत में पाता िै हक यहद उसिे जियाि का मागत
ििीं बदिा तो इससे पूवत हक वि अपिे जियाि को रोक सक
े वि बीस या तीस
याहत्रयों से भरी िाव ि को अहिवायततः टकराकर डुबो देगा, और हक अपिा मागत बदििे
से उसे क
े वि दो याहत्रयों वािी िाव ग को डुबोिे की जोखिम उठािी पड़ती िै। हजसको
वि संभवत: बचाकर हिकि जाए। यिााँ यहद क िाव ग को डुबोिे क
े आिय क
े हबिा
और ि क
े याहत्रयों क
े संकट का पररवजति करिे क
े प्रयोजि से सद्भावपूवतक अपिा
मागत बदि देता िै तो यद्यहप वि िाव ग को ऐसे कायत द्वारा टकराकर डुबो देता िै,
हजससे ऐसे पररणाम का उत्पन्न िोिा वि संभाव्य जािता था, तथाहप तथ्यतः यि पाया
जाता िै हक वि संकट हजसे पररवहजतत करिे का उसका आिय था, ऐसा था हजससे
िाव ग को डुबोिे की जोखिम उठािा मािी योग्य िै, तो वि हकसी अपराि का दोषी
ििीं िै।
(ि) क एक बड़े अहिकाण्ड क
े समय आग को ि
ै ििे से रोकिे क
े हिए गृिों को हगरा
देता िै। वि इस कायत को मािव जीवि या संपहत्त को बचािे क
े आिय से सद्भाविापूवतक
करता िै। यिां, यहद यि पाया जाता िै हक हिवारण की जािे वािी अपिाहि इस प्रक
ृ हत
की और इतिी आसन्न थी हक क का कायत मािी योग्य िै तो क उस अपराि का दोषी
ििीं िै।
82. सात वषत से कम आयु क
े हििु का कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत से कम आयु क
े हििु द्वारा की जाती िै।
83. सात वषत से ऊपर हकन्तु बारि वषत से कम आयु क
े अपररपक्व समझ क
े हििु
का कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत से ऊपर और बारि वषत से कम आयु क
े ऐसे
हििु द्वारा की जाती िै हजसकी समझ इतिी पररपक्व ििीं हुई िै हक वि उस अवसर
पर अपिे आचरण की प्रक
ृ हत और पररणामों का हिणतय कर सक
े ।
84. हवक
ृ तहचत्त व्यखि का कायत -
कोई बात अपराि ििीं िै जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय हचत्त-
हवक
ृ हत क
े कारण उस कायत की प्रक
ृ हत, या यि हक जो क
ु छ वि कर रिा िै वि
दोषपूणत या हवहि क
े प्रहतक
ू ि िै, जाििे में असमथत िै।
85. ऐसे व्यखि का कायत जो अपिी इच्छा क
े हवरुद्ध मत्तता में िोिे क
े कारण हिणतय
पर पहुंचिे में असमथत िै -
कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय मत्तता
क
े कारण उस कायत की प्रक
ृ हत, या यि हक जो क
ु छ वि कर रिा िै वि दोषपूणत या
हवहि क
े प्रहतक
ू ि िै, जाििे में असमथत िै, परन्तु यि तब जबहक वि चीज, हजससे उसकी
मत्तता हुई थी, उसको अपिे ज्ञाि क
े हबिा या इच्छा क
े हवरुद्ध दी गई थी।
86. हकसी व्यखि द्वारा, जो मत्तता में िै, हकया गया अपराि हजसमें हविेष आिय या
ज्ञाि का िोिा अपेहक्षत िै -
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  • 1. भारतीय दण्ड संहिता, 1860 [ INDIAN PENAL CODE, 1860 ] [ 1860 का अहिहियम संख्ांक 45 ] भाग 1 [ 6 अक्ट ू बर 1860 ] अध्याय 1 प्रस्ताविा उद्देहिका - भारत क े हिए एक सािारण दण्ड संहिता का उपबन्ध करिा समीचीि िै। अतः यि हिम्नहिखित रूप में अहिहियहमत हकया जाता िै। 1. संहिता का िाम और उसक े प्रवतति का हवस्तार - यि अहिहियम भारतीय दण्ड संहिता कििाएगा और इसका हवस्तार सम्पूणत भारत पर िोगा। [The words "except the State of Jammu and Kashmir" omitted by Act 34 of 2019, s. 95 and the Fifth Schedule (w.e.f. 31-10- 2019)] 2. भारत क े भीतर हकए गए अपरािों का दण्ड - िर व्यखि इस संहिता क े उपबन्धों क े प्रहतक ू ि िर कायत या िोप क े हिए हजसका वि भारत क े भीतर दोषी िोगा, इसी संहिता क े अिीि दण्डिीय िोगा अन्यथा ििीं। 3. भारत से परे हकए गए हकन्तु उसक े भीतर हवहि क े अिुसार हवचारणीय अपरािों का दण्ड– भारत से परे हकए गए अपराि क े हिए जो कोई व्यखि हकसी भारतीय हवहि क े अिुसार हवचारण का पात्र िो, भारत से परे हकए गए हकसी कायत क े हिए उससे इस संहिता क े उपबन्धों क े अिुसार ऐसा बरता जाएगा मािो वि कायत भारत क े भीतर हकया गया था। 4. राज्यक्षेत्रातीत अपरािों पर संहिता का हवस्तार - इस संहिता क े उपबन्ध - (1) भारत से बािर और परे हकसी स्थाि में भारत क े हकसी िागररक द्वारा; (2) भारत में रहजस्ट्रीक ृ त हकसी पोत या हवमाि पर, चािे वि किीं भी िो हकसी व्यखि द्वारा हकए गए हकसी अपराि को भी िागू िै।
  • 2. (3) भारत में खस्थत कम्प्यूटर संस्थाि को िक्ष्य करक े भारत क े बािर और परे हकसी स्थाि में अपराि काररत करिे वािे हकसी व्यखि क े द्वारा हदये गये हकसी अपराि को भी िागू िोगा। स्पष्टीकरण- इस िारा में - (क) "अपराि" िब्द क े अन्तगतत भारत से बािर हकया गया ऐसा िर कायत आता िै जो यहद भारत में हकया जाता तो, इस संहिता क े अिीि दण्डिीय िोता िै; (ि) पद "कम्प्यूटर सािि” का विी अथत िोगा, जो उसे सूचिा प्रौद्योहगकी अहिहियम, 2000 (2000 का 21) की यहद 2 की उपिारा (1) िण्ड (त) में उसे समिुदेहित िै। दृष्टांत क, जो भारत का िागररक िै उगाण्डा में ित्या करता िै वि भारत क े हकसी स्थाि में, जिााँ वि पाया जाए, ित्या क े हिए हवचाररत और दोषहसद्ध हकया जा सकता िै. 5. क ु छ हवहियों पर इस अहिहियम द्वारा प्रभाव ि डािा जािा — इस अहिहियम में की कोई बात भारत सरकार की सेवा क े आहिसरों, सैहिकों, िौसैहिकों या वायु सैहिकों द्वारा हवद्रोि और अहभत्यजि को दखण्डत करिे वािे हकसी अहिहियम क े उपबन्धों, या हकसी हविेष या स्थािीय हवहि क े उपबन्धों, पर प्रभाव ििीं डािेगी। अध्याय 2 सािारण स्पष्टीकरण [General Explanations] 6. संहिता में की पररभाषाओं का अपवादों क े अध्यिीि समझा जािा - इस संहिता में सवतत्र, अपराि की िर पररभाषा िर दण्ड उपबन्ध और, िर ऐसी पररभाषा या दण्ड उपबन्ध का िर दष्टान्त,"सािारण अपवाद" िीषतक वािे अध्याय में अन्तहवतष्ट अपवादों क े अध्यिीि समझा जायेगा, चािे उि अपवादों को ऐसी पररभाषा, दण्ड उपबन्ध या दृष्टान्त में दुिराया ि गया िो। दृष्टान्त (क) इस संहिता की वे िाराएाँ , हजिमें अपरािों की पररभाषाएाँ अन्तहवतष्ट िै, यि अहभव्यि ििीं करती हक सात वषत से कम आयु का हििु ऐसे अपराि ििीं कर सकता, हकन्तु पररभाषाएाँ उस सािारण अपवाद क े अध्यिीि समझी जाती िैं हजसमें यि उपबखन्धत कोई बात, जो सात वषत से कम आयु क े हििु द्वारा की जाती िै, अपराि ििीं िै। (ि) क, एक पुहिस आहिसर, वारण्ट क े हबिा, य को, हजसिे ित्या की िै, पकड़ िेता िै। यिााँ क सदोष परररोि क े अपराि का दोषी ििीं िैं, क्ोंहक वि य को पकड़िे क े हिए हवहि द्वारा आबद्ध था, और इसहिए यि मामिा उस सािारण अपवाद क े अन्तगतत
  • 3. आ जाता िै, हजसमें यि उपबखन्धत िै हक “कोई बात अपराि ििीं िै जो हकसी ऐसे व्यखि द्वारा की जाए जो उसे करिे क े हिए हवहि द्वारा आबद्ध िो"। 7. एक बार स्पष्टीक ृ त पद का भाव - िर पद, हजसका स्पष्टीकरण इस संहिता क े हकसी भाग में हकया गया िै, इस संहिता क े िर भाग में उस स्पष्टीकरण क े अिुरूप िी प्रयोग हकया गया िै। 8. हिंग - पुखलंग वाचक िब्द जिााँ प्रयोग हकया गया िै, वे िर व्यखि क े बारे में िागू िैं, चािे िर िो या िारी। 9. वचि - जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक ू ि प्रतीत ि िो, एक वचि द्योतक िब्दों क े अन्तगतत बहुवचि आता िै, और बहुवचि द्योतक िब्दों क े अन्तगतत एकवचि आता िै। 10. पुरुष, स्त्री - "पुरुष" िब्द हकसी भी आयु क े मािव िर का ध्योत्तक िै; "स्त्री" िब्द हकसी भी आयु की मािव िारी का द्योत्तक िै। 11. "व्यखि” - कोई भी कम्पिी या संगम, या व्यखि हिकाय चािे वि हिगहमत िो या ििीं, " व्यखि" िब्द क े अन्तगतत आता िै। 12. "िोक" - िोक का कोई भी वगत या कोई भी समुदाय "िोक" िब्द क े अन्तगतत आता िै। 13. क्वीि - हवहि अिुक ू िि आदेि, 1950 द्वारा हिरहसत। 14. "सरकार का सेवक" - "सरकार का सेवक" िब्द सरकार क े प्राहिकार क े द्वारा या अिीि, भारत क े भीतर उस रूप में बिे रििे हदए गए, हियुि हकए गए, या हियोहजत हकए गए हकसी भी आहिसर या सेवक क े ध्योत्तक िै। 15. "हिहटि इखण्डया" की पररभाषा - हवहि अिुक ू िि आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत. 16. "भारत सरकार" - भारत सरकार (भारतीय हवहि अिुक ू िि) आदेि, 1937 द्वारा हिरहसत ।
  • 4. 17. सरकार - "सरकार" िब्द क े न्द्रीय सरकार या हकसी राज्य की सरकार का ध्योत्तक िै। 18. "भारत" - "भारत" से जम्मू-कश्मीर राज्य क े हसवाय भारत का राज्य क्षेत्र अहभप्रेत िै। 19. "न्यायािीि" - "न्यायािीि" िब्द ि क े वि िर ऐसे व्यखि का ध्योत्तक िै, जो पद रूप से न्यायािीि अहभहित िो, हकन्तु उस िर व्यखि का भी ध्योत्तक िै, जो हकसी हवहि-कायतवािी में, चािे वि हसहवि िो या दाखण्डक, अखन्तम हिणतय या ऐसा हिणतय, जो उसक े हवरुद्ध अपीि ि िोिे पर अंहतम िो जाए या ऐसा हिणतय, जो हकसी अन्य प्राहिकारी द्वारा पुष्ट हकए जािे पर अखन्तम िो जाए, देिे क े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो अथवा जो उस व्यखि-हिकाय में से एक िो, जो व्यखि-हिकाय ऐसा हिणतय देिे क े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो। दृष्टान्त (क) सि् 1859 क े अहिहियम 10 क े अिीि हकसी वाद में अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा किेक्टर न्यायािीि िै। (ि) हकसी आरोप क े सम्बन्ध में, हजसक े हिए उसे जुमातिा या कारावास का दण्ड देिे की िखि प्राप्त िै, चािे उसकी अपीि िोती िो या ि िोती िो, अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा महजस्ट्रेट न्यायािीि िै। (ग) मद्रास संहिता क े सि् 1816 क े हवहियम 7 क े अिीि वादों का हवचारण करिे की और अविारणा करिे की िखि रििे वािी पंचायत का सदस्य न्यायािीि िै। (घ) हकसी आरोप क े सम्बन्ध में, हजिक े हिए उसे क े वि अन्य न्यायािय को हवचारणाथत सुपुदत करिे की िखि प्राप्त िै, अहिकाररता का प्रयोग करिे वािा महजस्ट्रेट न्यायािीि ििीं िै। 20. "न्यायािय" - "न्यायािय" िब्द उस न्यायािीि का, हजसे अक े िे िी को न्याहयकतः कायत करिे क े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो, या उस न्यायािीि हिकाय का, हजसे एक हिकाय क े रूप में न्याहयकतः कायत करिे क े हिए हवहि द्वारा सिि हकया गया िो, जबहक ऐसा न्यायािीि या न्यायािीि हिकाय न्याहयकतः कायत कर रिा िै, ध्योत्तक िै। दृष्टान्त
  • 5. मद्रास संहिता क े सि् 1816 क े हवहियम 7 क े अिीि कायत करिे वािी पंचायत हजसे वादों का हवचारण करिे और अविारण करिे की िखि प्राप्त िै, न्यायािय िै। 21. "िोक सेवक" - "िोक सेवक" िब्द उस व्यखि का ध्योत्तक िै जो एतखिि् पश्चात् हिम्नगत वणतिों में से हकसी में आता िै, अथातत् - दू सरा -- भारत की सेिा िौसेिा या वायुसेिा का िर आयुि आहिसर; तीसरा - िर न्यायािीि हजसक े अन्तगतत ऐसा कोई भी व्यखि आता िै जो हकन्ीं न्याय हिणातहयक क ृ त्यों का चािे स्वयं या व्यखियों क े हकसी हिकाय क े सदस्य क े रूप में हिवतिि करिे क े हिए हवहि द्वारा िि हकया गया िो; चौथा - न्यायािय का िर आहिसर हजसक े अन्तगतत समापक, ररसीवर या कहमश्नर आता िै, हजसका ऐसे आहिसर क े िाते यि कततव्य िो हक वि हवहि या तथ्य क े हकसी मामिे में अन्वेषण या ररपोटत करे, या कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीक ृ त करे, या रिे, या हकसी सम्पहत का भार सम्भािे या उस सम्पहत का व्ययि करे, या हकसी न्याहयक आदेहिका का हिष्पादि करे, या कोई िपथ ग्रिण कराए या हिवतचि करे, या न्यायािय में व्यवस्था बिाए रिे और िर व्यखि, हजसे ऐसे कततव्यों में से हकन्ीं का पािि करिे का प्राहिकार न्यायािय द्वारा हविेष रूप से हदया गया िो; पांचवा - हकसी न्यायािय या िोक-सेवक की सिायता करिे वािा िर जूरी सदस्य, असेसर या पंचायत का सदस्य। छटा - िर मध्यस्थ या अन्य व्यखि, हजसको हकसी न्यायािय द्वारा, या हकसी अन्य सक्षम िोक प्राहिकारी द्वारा कोई मामिा या हवषय, हवहिश्चय या ररपोटत क े हिए हिदेहित हकया गया िो। सातवां - िर व्यखि जो हकसी ऐसे पद को िारण करता िो, हजसक े आिार से वि हकसी व्यखि को परररोि में करिे या रििे क े हिए सिि िो। आठवां - सरकार का िर आहिसर हजसका ऐसे आहिसर क े िाते यि कततव्य िो हक वि अपरािों का हिवारण करे, अपरािों की इहत्तिा दे, अपराहियों को न्याय क े हिए उपखस्थत करे, या िोक क े स्वास्थ्य, क्षेम या सुहविा की संरक्षा करे। िवां - िर आहिसर हजसका ऐसे आहिसर क े िाते यि कततव्य िो हक वि सरकार की ओर से हकसी सम्पहत्त को ग्रिण करे, प्राप्त करे, रिे, या व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सवेक्षण, हििातरण या संहवदा करे, या हकसी राजस्व आदेहिका का हिष्पादि करे या सरकार क े िि सम्बन्धी हितों पर प्रभाव डाििे वािे हकसी मामिे में अन्वेषण या ररपोटत करे या सरकार क े िि सम्बन्धी हितों से सम्बखन्धत हकसी दस्तावेज को बिाए, अहिप्रमाणीक ृ त करे या रिे, या सरकार क े िि-सम्बन्धी हितों की संरक्षा क े हिए हकसी हवहि क े व्यहतक्रम को रोक े ।
  • 6. दसवां - िर आहिसर, हजसका ऐसे आहिसर क े िाते यि कततव्य िो हक वि हकसी ग्राम, िगर या हजिे क े हकसी िमतहिरपेक्ष सामान्य प्रयोजि क े हिए हकसी सम्पहत्त को ग्रिण करे, प्राप्त करे, रिे, या व्यय करे, कोई सवोक्षण या हििातरण करे, या कोई रेट या कर उद् गृिीत करे, या हकसी ग्राम, िगर या हजिे क े िोगों क े अहिकारों क े अहभहिश्चयि क े हिए कोई दस्तावेज बिाए, अहिप्रमाणीक ृ त करे या रिे। ग्यारिवां - िर व्यखि जो कोई ऐसा पद िारण करता िो हजसक े आिार से वि हिवातचक िामाविी तैयार करिे, प्रकाहित करिे, बिाए रििे या पुिरीहक्षत करिे क े हिए या हिवातचि या हिवातचि क े हकसी भाग को संचाहित करिे क े हिए सिि िो; बारिवां - िर व्यखि, जो – (क) सरकार की सेवा या वेति में िो, या हकसी िोक-कततव्य क े पािि क े हिए सरकार से िीस या कमीिि क े रूप में पाररश्रहमक पाता िो। (ि) स्थािीय प्राहिकारी की, अथवा क े न्द्र, प्रान्त या राज्य क े अहिहियम क े द्वारा या अिीि स्थाहपत हिगम की अथवा कम्पिी अहिहियम, 1956 (1956 का 1) की िारा 617 में यथा पररभाहषत सरकारी कम्पिी की, सेवा या वेति में िो। दृष्टान्त िगरपाहिका आयुि िोक सेवक िै। स्पष्टीकरण 1 - ऊपर क े वणतिों में से हकसी में आिे वािे व्यखि िोक सेवक िैं, चािे वे सरकार द्वारा हियुि हकए गए िों या ििीं। स्पष्टीकरण 2 - जिााँ किीं "िोक सेवक" िब्द आए िैं, वे उस िर व्यखि क े सम्बन्ध में समझे जायेंगे जो िोक सेवक क े ओिदे को वास्तव में िारण हकए हुए िों, चािे उस ओिदे को िारण करिे क े उसक े अहिकार में क ै सी िी हवहिक त्रुहट िो। स्पष्टीकरण 3 - "हिवातचि" िब्द ऐसे हकसी हविायी, िगरपाहिका या अन्य िोक प्राहिकारी क े िाते, चािे वि क ै से िी स्वरूप का िो, सदस्यों क े वरणाथत हिवातचि का ध्योत्तक िै हजसक े हिए वरण करिे की पद्धहत हकसी हवहि क े द्वारा या अिीि हिवातचि क े रूप में हिहित की गई िो। ------------------------------------------------ राज्य संिोिि राजस्थाि - भा० द० संहिता की िारा 21 राजस्थाि में यथा प्रयोज्य िण्ड बारिवााँ क े पश्चात् हिम्नहिखित िवीि िण्ड जोड़े जाएाँ गे, यथा - तेरिवााँ - प्रत्येक व्यखि जो हकसी हवहि क े अन्तगतत अिुमोहदत अथवा मान्यता प्राप्त हकसी परीक्षा को सम्पाहदत करािे क े हिए और उसकी देि-रेि करिे क े हिए हकसी िोक हिकाय द्वारा हियुि हकया गया या िगाया गया िै।
  • 7. स्पष्टीकरण - अहभव्यखि िोक हिकाय में सखम्महित िैं - (क) हवश्वहवद्यािय हिक्षा पररषद या अन्य हिकाय चािे वि क े न्द्र अथवा राज्य क े अन्तगतत स्थाहपत हुआ ओ अथवा भारतीय संहविाि क े उपबन्धों द्वारा सरकार द्वारा गहठत हकया गया िो। (ि) "एक स्थािीय प्राहिकारी" [राजस्थाि अहि० सं० 4 सि् 1993 िारा 2 प्रभावी 11- 2-1993] ----------------------------------------------------------------------------------------- 22. "जंगम सम्पहत्त" - "जंगम सम्पहत्त" िब्दों से यि आिहयत िै हक इिक े अन्तगतत िर भााँहत की मूतत सम्पहत्त आती िै, हकन्तु भूहम और वे चीजें, जो भूबद्ध िों या भूबद्ध हकसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई िों, इिक े अन्तगतत ििीं आती। 23. "सदोष अहभिाभ" - "सदोष अहभिाभ" हवहि हवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त का अहभिाभ िै, हजसका वैि रूप से िकदार अहभिाभ प्राप्त करिे वािा व्यखि ि िो। "सदोष िाहि" - "सदोष िाहि" हवरुद्ध साििों द्वारा ऐसी सम्पहत्त की िाहि िै, हजसका वैि रूप से िकदार िाहि उठािे वािा व्यखि िो। सदोष अहभिाभ प्राप्त करिा - सदोष िाहि उठािा - कोई व्यखि सदोष अहभिाभ प्राप्त करता िै, यि तब किा जाता िै जब हक वि व्यखि सदोष रिे रिता िै तब भी जब हक वि व्यखि सदोष अजति करता िै। कोई व्यखि सदोष िाहि उठाता िै, यि तब किा जाता िै जबहक उसे हकसी सम्पहत से सदोष अिग रिा जाता िै और तब भी जबहक उसे हकसी सम्पहत्त से सदोष वंहचत हकया जाता िै। 24. “बेईमािी से" - जो कोई इस आिय से कोई कायत करता िै हक एक व्यखि को सदोष अहभिाभ काररत करे या अन्य व्यखि को सदोष िाहि काररत करे, वि उस कायत को “बेईमािी से" करता िै, यि किा जाता िै। 25. “कपटपूवतक” - कोई व्यखि हकसी बात को कपटपूवतक करता िै, यि किा जाता िै, यहद वि उस बात को कपट करिे क े आिय से करता िै, हकन्तु अन्यथा ििीं। 26. “हवश्वास करिे का कारण” -
  • 8. कोई व्यखि हकसी बात क े “हवश्वास करिे का कारण” रिता िै, यि तब किा जाता िै, जब यि उस बात क े हवश्वास करिे का पयातप्त िेतुक रिता िै, अन्यथा ििीं। 27. “पत्नी, हिहपक या सेवक क े कब्जे में संपहत्त” - जबहक संपहत्त हकसी व्यखि क े हिहमत्त उस व्यखि की पत्नी, हिहपक या सेवक क े कब्जे में िै, तब वि इस संहिता क े अथत क े अन्तगतत उस व्यखि क े कब्जे में िै। स्पष्टीकरण -- हिहपक या सेवक क े िाते अस्थायी रूप से या हकसी हवहिष्ट अवसर पर हियोहजत व्यखि इस िारा क े अथत क े अन्तगतत हिहपक या सेवक िै। 28. “क ू टकरण” - जो व्यखि एक चीज को दू सरी चीज क े सदृि इस आिय से करता िै हक वि उस सदृि से प्रवंचिा करे, या यि संभाव्य जािते हुए करता िै हक तद्द ् वारा प्रवंचिा की जाएगी, वि 'क ू टकरण' करता िै, यि किा जाता िै। स्पष्टीकरण 1- क ू टकरण क े हिए यि आवश्यक ििीं िै हक िकि ठीक वैसी िी िो। स्पष्टीकरण 2- जबहक कोई व्यखि एक चीज को दू सरी चीज क े सदृि कर दे और सदृि ऐसा िै हक तद्द ् वारा हकसी व्यखि को प्रवंचिा िो सकती िो, तो जब तक हक तत्प्रहतक ू ि साहबत ि हकया जाए, यि उपिारणा की जाएगी हक जो व्यखि एक चीज को दू सरी चीज क े इस प्रकार सदृि बिाता िै उसका आिय उस सदृि द्वारा प्रवंचिा करिे का था या वि यि संभाव्य जािता था हक एतद्वारा प्रवंचिा की जाएगी। 29. “दस्तावेज” - “दस्तावेज” िब्द हकसी भी हवषय का द्योतक िै हजसको हकसी पदाथत पर अक्षरों, अंकों या हचन्ों क े सािि द्वारा, या उिमें एक से अहिक साििों द्वारा अहभव्यि या वहणतत हकया गया िो जो उस हवषय क े साक्ष्य क े रूप में उपयोग हकए जािे को आिहयत िो या उपयोग हकया जा सक े । स्पष्टीकरण 1- यि तत्विीि िै हक हकस सािि द्वारा या हकस पदाथत पर अक्षर, अंक या हचन् बिाए गए िैं या यि हक साक्ष्य हकसी न्यायािय क े हिए आिहयत िै या ििीं, या उसमें उपयोग हकया जा सकता िै या ििीं। दृष्टांत हकसी संहवदा क े हिबंििों को अहभव्यि करिे वािा िेि, जो उस संहवदा क े साक्ष्य क े रूप में उपयोग हकया जा सक े , दस्तावेज िै। बैंककार पर हदया गया चैक दस्तावेज िै। मुख्तारिामा दस्तावेज िै।
  • 9. मािहचत्र या रेिांक, हजसको साक्ष्य क े रूप में उपयोग में िािे का आिय िो या जो उपयोग में िाया जा सक े , दस्तावेज िै। हजस िेि में हिदेि या अिुदेि अन्तहवतष्ठ िो, वि दस्तावेज िै। स्पष्टीकरण 2 - अक्षरों, अंकों या हचन्ों से जो क ु छ भी वाहणखज्यक या अन्य प्रथा क े अिुसार व्याख्ा करिे पर अहभव्यि िोता िै, वि इस िारा क े अथत क े अन्तगतत ऐसे अक्षरों, अंकों या हचन्ों से अहभव्यि हुआ समझा जाएगा, चािे वि वस्तुतः अहभव्यि ि भी हकया गया िो। दृष्टांत क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर, जो उसक े आदेि क े अिुसार देय िै, अपिा िाम हिि देता िै। वाहणखज्यक प्रथा क े अिुसार व्याख्ा करिे पर इस पृष्ठांकि का अथत िै हक िारक को हवहिमयपत्र का भुगताि कर हदया जाए। पृष्ठांकि दस्तावेज िै और इसका अथत उसी प्रकार से िगाया जािा चाहिए मािो िस्ताक्षर क े ऊपर “िारक को भुगताि करो” िब्द या तत्प्रभाव वािे िब्द हिि हदए गए िों। 29 क. इिेक्टराहिक अहभिेि - “इिेक्टराहिक अहभिेि” िब्दों का विी अथत िोगा, जो उन्ें सूचिा प्रोद्योहगकी अहिहियम, 2000 की िारा 2 की उपिारा (1) क े िण्ड (ि) में समिुदेहित हकया गया िै। 30. “मूल्यवाि प्रहतभूहत" - “मूल्यवाि प्रहतभूहत' िब्द उस दस्तावेज क े द्योतक िैं, जो ऐसा दस्तावेज िै, या िोिा तात्पहयतत िै, हजसक े द्वारा कोई हवहिक अहिकार सृहजत, हवस्तृत, अन्तररत, हिबतखन्धत, हिवातहपत, हकया जाए, छोड़ा जाए या हजसक े द्वारा कोई व्यखि यि अहभस्वीकार करता िै हक वि हवहिक दाहयत्व क े अिीि िै, या अमुक हवहिक अहिकार ििीं रिता िै। दृष्टांत क एक हवहिमयपत्र की पीठ पर अपिा िाम हिि देता िै। इस पृष्ठांकि का प्रभाव हकसी व्यखि को, जो उसका हवहिपूणत िारक िो जाए, उस हवहिमयपत्र पर का अहिकार अन्तररत हकया जािा िै, इसहिए यि पृष्ठांकि “मूल्यवाि प्रहतभूहत" िै। 31. “हवि" - "हवि" िब्द हकसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक िै। 32. कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों क े अन्तगतत अवैि िोप आता िै - जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक ू ि आिय प्रस्तुत ि िो, इस संहिता क े िर भाग में हकए गए कायों का हिदेि करिे वािे िब्दों का हवस्तार अवैि िोपों पर भी िै।
  • 10. 33. "कायत”, “िोप" - “कायत" िब्द कायातविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक कायत का; "िोप” िब्द िोपाविी का द्योतक उसी प्रकार िै हजस प्रकार एक िोप का। 34. सामान्य आिय को अग्रसर करिे में कई व्यखियों द्वारा हकए गए कायत - जबहक कोई आपराहिक कायत कई व्यखियों द्वारा अपिे सब क े सामान्य आिय को अग्रसर करिे में हकया जाता िै, तब ऐसे व्यखियों में से िर व्यखि उस कायत क े हिए उसी प्रकार दाहयत्व क े अिीि िै, मािो वि कायत अक े िे उसी िे हकया िो। 35. जबहक ऐसा कायत इस कारण आपराहिक िै हक वि आपराहिक ज्ञाि या आिय से हकया गया िै - जब कभी कोई कायत, जो आपराहिक ज्ञाि या आिय से हकए जािे क े कारण िी आपराहिक िै, कई व्यखियों द्वारा हकया जाता िै, तब ऐसे व्यखियों में से िर व्यखि, जो ऐसे ज्ञाि या आिय से उस कायत में सखम्महित िोता िै, उस कायत क े हिए उसी प्रकार दाहयत्व क े अिीि िै, मािो वि कायत उस ज्ञाि या आिय से अक े िे उसी द्वारा हकया गया िो। 36. अंितः कायत द्वारा और अंितः िोप द्वारा काररत पररणाम – जिां किीं हकसी कायत द्वारा या हकसी िोप द्वारा हकसी पररणाम का काररत हकया जािा या उस पररणाम को काररत करिे का प्रयत्न करिा अपराि िै, विां यि समझा जािा िै हक उस पररणाम का अंितः कायत द्वारा और अंितः िोप द्वारा काररत हकया जािा विी अपराि िै। दृष्टांत क अंितः य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करक े , और अंितः य को पीटकर सािय य की मृत्युकाररत करता िै। क िे ित्या की िै। 37. हकसी अपराि को गहठत करिे वािे कई कायों में से हकसी एक को करक े सियोग करिा - जब हक कोई अपराि कई कायों द्वारा हकया जाता िै, तब जो कोई या तो अक े िे या हकसी अन्य व्यखि क े साथ सखम्महित िोकर उि कायों में से कोई एक कायत करक े उस अपराि क े हकए जािे में सािय सियोग करता िै, वि उस अपराि को करता िै। दृष्टांत - (क) क और ि पृथक ् -पृथक ू रूप से और हवहभन्न समयों पर य को हवष की छोटी- छोटी मात्राएं देकर उसकी ित्या करिे को सिमत िोते िैं। क और ि, य की ित्या करिे क े आिय से सिमहत क े अिुसार य को हवष देते िैं। य इस प्रकार दी गई हवष की कई मात्राओं क े प्रभाव से मर जाता िै। यिां क और ि ित्या करिे में सािय
  • 11. सियोग करते िैं और क्ोंहक उिमें से िर एक ऐसे कायत करता िै, हजससे मृत्यु काररत िोती िै, वे दोिों इस अपराि क े दोषी िैं, यद्यहप उिक े कायत पृथक िैं। (ि) कऔर ि संयुि जेिर िैं, और अपिी उस िैहसयत में वे एक क ै दी य का बारी- बारी से एक समय में घण्टे क े हिए संरक्षण-भार रिते िैं। य को हदए जािे क े प्रयोजि से जो भोजि क और ि को हदया जाता िै, वि भोजि इस सािय से हक य की मृत्युकाररत कर दी जाए, िर एक अपिी िाहजरी क े काि में य को देिे का िोप करक े वि पररणाम अवैि रूप से काररत करिे में जािते हुए सियोग करते िैं। य भूि से मर जाता िै। क और ि दोिों य की ित्या क े दोषी िैं। (ग) एक जेिर क, एक क ै दी य का संरक्षण भार रिता िै। क, य की मृत्यु काररत करिे क े आिय से, य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करता िै, हजसक े पररणामस्वरूप य की िखि बहुत क्षीण िो जाती िै, हकन्तु यि क्षुिापीड़ि उसकी मृत्यु काररत करिे क े हिए पयातप्त ििीं िोता। क अपिे पद से च्युत कर हदया जाता िै और ि उसका उत्तरवती िोता िै। क से दुस्संहि या सियोग हकए हबिा ि यि जािते हुए हक ऐसा करिे से संभाव्य िै हक वि य की मृत्युकाररत कर दे, य को भोजि देिे का अवैि रूप से िोप करता िै। य भूि से मर जाता िै। ि ित्या का दोषी िै, हकन्तु क िे ि से सियोग ििीं हकया, इसहिए क ित्या करिे क े प्रयत्न का िी दोषी िै। 38. आपराहिक कायत में संपृि व्यखि हवहभन्न अपरािों क े दोषी िो सक ें गे - जिां हक कई व्यखि हकसी आपराहिक कायत को करिे में िगे हुए या सम्पृि िैं, विां वे उस कायत क े आिार पर हवहभन्न अपरािों क े दोषी िो सक ें गे। दृष्टांत क गम्भीर प्रकोपि की ऐसी पररखस्थहतयों क े अिीि य पर आक्रमण करता िै हक य का उसक े द्वारा वि हकया जािा क े वि ऐसा आपराहिक मािव वि िै, जो ित्या की कोहट में ििीं िोता िै। ि जो य से वैमिस्य रिता िै, उसका वि करिे क े आिय से और प्रकोपि से विीभूत ि िोते हुए य का वि करिे में क की सिायता करता िै। यिां यद्यहप क और ि दोिों य की मृत्युकाररत करिे में िगे हुए िैं, ि ित्या का दोषी िै और क क े वि आपराहिक मािव वि का दोषी िै। 39. “स्वेच्छया” - कोई व्यखि हकसी पररणाम को “स्वेच्छया" काररत करता िै, यि तब किा जाता िै, जब वि उसे उि साििों द्वारा काररत करता िै, हजिक े द्वारा उसे काररत करिा उसका आिय था या उि साििों द्वारा काररत करता िै हजि साििों को काम में िाते समय यि जािता था, या यि हवश्वास करिे का कारण रिता था हक उिसे उसका काररत िोिा संभाव्य िै। दृष्टांत
  • 12. क िूट को सुकर बिािे क े प्रयोजि से एक बड़े िगर क े एक बसे हुए गृि में रात को आग िगाता िै और इस प्रकार एक व्यखि की मृत्युकाररत कर देता िै। यिां क का आिय भिे िी मृत्यु काररत करिे का ि रिा िो और वि दुखित भी िो हक उसक े कायत से मृत्युकाररत हुई िै तो भी यहद वि यि जािता था हक संभाव्य िै हक वि मृत्युकाररत कर दे तो उसिे स्वेच्छया मृत्युकाररत की िै। 40. “अपराि” - इस िारा क े िण्ड 2 और 3 में वहणतत अध्यायों और िाराओं क े हसवाय “अपराि” िब्द इस संहिता द्वारा दण्डिीय की गई हकसी बात का द्योतक िै। अध्याय 4, अध्याय 5क और हिम्नहिखित िाराएं , अथातत् िारा 64, 65, 66, 67, 71, 109, , 110, 112, 114, 115, 116, 117, 118, 119 और 120,187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389 और 445 में “अपराि’ िब्द इस संहिता क े अिीि या एतखिि् पश्चात् यथापररभाहषत हविेष या स्थािीय हवहि क े अिीि दण्डिीय बात का द्योतक िै और िारा 141,176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 में "अपराि” िब्द का अथत उस दिा में विी िै हजसमें हक हविेष या स्थािीय हवहि क े अिीि दण्डिीय बात ऐसी हवहि क े अिीि छि मास या उससे अहिक अवहि क े कारावास से, चािे वि जुमातिे सहित िो या रहित, दण्डिीय िो । 41. “हविेष हवहि" - “हविेष हवहि” वि हवहि िै जो हकसी हवहिष्ट हवषय को िागू िो। 42. “स्थािीय हवहि” - “स्थािीय हवहि” वि हवहि िै जो भारत क े हकसी हवहिष्ट भाग को िी िागू िो। 43. “अवैि”, “करिे क े हिए वैि रूप से आबद्ध” - “अवैि" िब्द उस िर बात को िागू िै, जो अपराि िो, या जो हवहि द्वारा प्रहतहषद्ध िो, या जो हसहवि कायतवािी क े हिए आिार उत्पन्न करती िो; और कोई व्यखि उस बात को "करिे क े हिए वैि रूप से आबद्ध” किा जाता िै हजसका िोप करिा उसक े हिए अवैि िै। 44. “क्षहत” - “क्षहत” िब्द हकसी प्रकार की अपिाहि का द्योतक िै, जो हकसी व्यखि क े िरीर, मि, ख्ाहत या संपहत्त को अवैि रूप से काररत हुई िो। 45. “जीवि” -
  • 13. जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक ू ि प्रतीत ि िो, “जीवि” िब्द मािव क े जीवि का द्योतक िै। 46. “मृत्यु” - जब तक हक संदभत से तत्प्रहतक ू ि प्रतीत ि िो, “मृत्यु” िब्द मािव की मृत्यु का द्योतक िै। 47. “जीवजन्तु” - “जीवजन्तु” िब्द मािव से हभन्न हकसी जीविारी का द्योतक िै। 48. “जियाि” - “जियाि” िब्द हकसी चीज का द्योतक िै, जो मािवों क े या संपहत्त क े जि द्वारा प्रविण क े हिए बिाई गई िो। 49. “वषत”, “मास” - जिां किीं “वषत” िब्द या “मास' िब्द का प्रयोग हकया गया िै विां यि समझा जािा िै हक वषत या मास की गणिा हिहटि किैण्डर क े अिुक ू ि की जािी िै। 50. “िारा” - “िारा' िब्द इस संहिता क े हकसी अध्याय क े उि भागों में से हकसी एक का द्योतक िै, जो हसरे पर िगे संख्ांकों द्वारा सुहभन्न हकए गए िैं। 51. “िपथ” - “िपथ” क े हिए हवहि द्वारा प्रहतस्थाहपत सत्यहिष्ठ प्रहतज्ञाि और ऐसी कोई घोषणा, हजसका हकसी िोक-सेवक क े समक्ष हकया जािा या न्यायािय में या अन्यत्र सबूत क े प्रयोजि क े हिए उपयोग हकया जािा हवहि द्वारा अपेहक्षत या प्राहिक ृ त िो, “िपथ” िब्द क े अन्तगतत आती िै। 52. “सद्भावपूवतक” - कोई बात “सद्भावपूवतक” की गई या हवश्वास की गई ििीं किी जाती जो सम्यक ् सतक त ता और ध्याि क े हबिा की गई या हवश्वास की गई िो। 52 क. “संश्रय’ - िारा 157 में क े हसवाय और िारा 130 में विां क े हसवाय जिां हक संश्रय संहश्रत व्यखि की पत्नी या पहत द्वारा हदया गया िो ‘संश्रय' िब्द क े अंतगतत हकसी व्यखि को आश्रय, भोजि, पेय, िि, वस्त्र, आयुि, गोिाबारूद या प्रविि क े सािि देिा, या हकन्ीं साििों
  • 14. से चािे वे उसी प्रकार क े िों या ििीं, हजस प्रकार क े इस िारा में पररगहणत िैं, हकसी व्यखि की सिायता पकड़े जािे से बचिे क े हिए करिा, आता िै। अध्याय 3: दण्डों क े हवषय में 53. “दण्ड” - अपरािी इस संहिता क े उपबंिों क े अिीि हजि दण्डों से दण्डिीय िै, वे ये िैं पििा - मृत्यु; दू सरा - आजीवि कारावास; तीसरा - हविोहपत चौथा - कारावास, जो दो भााँहत का िै, अथातत्:- (1) कहठि, अथातत् कठोर श्रम क े साथ; (2) सादा; पााँचवााँ -- सम्पहत्त का समपिरण; छटा -- जुमातिा। 53 क. - हिवातसि क े प्रहत हिदेि का अथत िगािा - (1) उपिारा (2) क े और उपिारा (3) क े उपबंिों क े अध्यिीि हकसी अन्य तत्समय प्रवृहत्त हवहि में, या हकसी ऐसी हवहि या हकसी हिरहसत अहिहियहमहत क े आिार पर प्रभाविीि हकसी हिित या आदेि में “आजीवि हिवातसि” क े प्रहत हिदेि का अथत यि िगाया जायेगा, हक वि “आजीवि कारावास” क े प्रहत हिदेि िै। (2) िर मामिे में, हजसमें हक हकसी अवहि क े हिए हिवातसि का दण्डादेि दण्ड प्रहक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) क े प्रारंभ से पूवत हदया गया िै, अपरािी से उसी प्रकार बरता जाएगा, मािो वि उस अवहि क े हिए कहठि कारावास क े हिए दण्डाहदष्ट हकया गया िो। (3) हकसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में हकसी अवहि क े हिए हिवातसि या हकसी िघुतर अवहि क े हिए हिवातसि क े प्रहत (चािे उसे कोई भी िाम हदया गया िो) कोई हिदेि िुप्त कर हदया गया समझा जाएगा। (4) हकसी अन्य तत्समय प्रवृत्त हवहि में हिवातसि क े प्रहत जो कोई हिदेि िो - (क) यहद उस पद से आजीवि हिवातसि अहभप्रेत िै, तो उसका अथत आजीवि कारावास क े प्रहत हिदेि िोिा िगाया जाएगा;
  • 15. (ि) यहद उस पद से हकसी िघुत्तर अवहि क े हिए हिवातसि अहभप्रेत िै, तो यि समझा जाएगा हक वि िुप्त कर हदया गया िै। 54. मृत्यु दण्डादेि का िघुकरण - िर मामिे में, हजसमें मृत्यु का दण्डादेि हदया गया िो, उस दण्ड को अपरािी की सम्महत क े हबिा भी समुहचत सरकार इस संहिता द्वारा उपबंहित हकसी अन्य दण्ड में िघुक ृ त कर सक े गी। 55. आजीवि कारावास क े दण्डादेि का िघुकरण - िर मामिे में, हजसमें आजीवि कारावास का दण्डादेि हदया गया िो, अपरािी की सम्महत क े हबिा भी समुहचत सरकार उस दण्ड को ऐसी अवहि क े हिए, जो चौदि वषत से अहिक ि िो, दोिों में से हकसी भांहत क े कारावास में िघुक ृ त कर सक े गी। 55 क. “समुहचत सरकार” की पररभाषा - िारा 54 और 55 में “समुहचत सरकार” पद से - (क) उि मामिों में क े न्द्रीय सरकार अहभप्रेत िै, हजिमें दण्डादेि मृत्यु का दण्डादेि िै, या ऐसे हवषय से, हजस पर संघ की कायतपािि िखि का हवस्तार िै, संबंहित हकसी हवहि क े हवरुद्ध अपराि क े हिए िै; तथा (ि) उि मामिों में उस राज्य की सरकार, हजसक े अन्दर अपरािी दण्डाहदष्ट हुआ िै, अहभप्रेत िै, जिां हक दण्डादेि (चािे मृत्यु का िो या ििीं) ऐसे हवषय से, हजस पर राज्य की कायतपािि िखि का हवस्तार िै, संबंहित हकसी हवहि क े हवरुद्ध अपराि क े हिए िै। 56. यूरोहपयों तथा अमरीहकयों को कठोर श्रम कारावास का दण्डादेि दस वषत से अहिक हकन्तु जो आजीवि कारावास से अहिक ि िो, दण्डादेि क े संबंि में परन्तुक - दाखण्डक हवहि (मूिवंिीय हवभेदों का हिराकरण) अहिहियम, 1949 (1949 का 17) द्वारा (6 अप्रैि, 1949 से) हिरहसत 57. दण्डावहियों की हभन्ने - दण्डावहियों की हभन्नों की गणिा करिे में, आजीवि कारावास को बीस वषत क े कारावास क े तुल्य हगिा जाएगा। 58. हिवातसि से दण्डाहदष्ट अपराहियों क े साथ क ै सा व्यविार हकया जाए जब तक वे हिवातहसत ि कर हदए जाएं - दण्ड प्रहक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत.
  • 16. 59. कारावास क े बदिे हिवातसि - [ दण्ड प्रहक्रया संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1955 (1955 का 26) की िारा 117 और अिुसूची द्वारा (1 जिवरी, 1956 से) हिरहसत ] 60. दण्डाहदष्ट कारावास क े कहतपय मामिों में संपूणत कारावास या उसका कोई भाग कहठि या सादा िो सक े गा - िर मामिे में, हजसमें अपरािी दोिों में से हकसी भांहत क े कारावास से दण्डिीय िै, वि न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डादेि देगा, सक्षम िोगा हक दण्डादेि में यि हिहदतष्ट करे हक ऐसा संपूणत कारावास कहठि िोगा, या यि हक ऐसा संपूणत कारावास सादा िोगा, या यि हक ऐसे कारावास का क ु छ भाग कहठि िोगा और िेष सादा। 61. संपहत्त क े समपिरण का दण्डादेि - भारतीय दण्ड संहिता क े समपिरण का दण्डादेि भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा हिरहसत. 62. मृत्यु, हिवातसि या कारावास से दण्डिीय अपराहियों की बाबत संपहत्त का समपिरण - [भारतीय दण्ड संहिता (संिोिि) अहिहियम, 1921 (1921 का 16) की िारा 4 द्वारा हिरहसत ] 63. जुमातिे की रकम - जिां हक वि राहि अहभव्यि ििीं की गई िै हजतिी तक जुमातिा िो सकता िै, विां अपरािी हजस रकम क े जुमातिे का दायी िै, वि अमयातहदत िै हकन्तु अत्यहिक ििीं िोगी। 64. जुमातिा ि देिे पर कारावास का दण्डादेि - कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय अपराि क े िर मामिे में; हजसमें अपरािी कारावास सहित या रहित, जुमातिे से दण्डाहदष्ट हुआ िै, तथा कारावास या जुमातिे अथवा क े वि जुमातिे से दण्डिीय अपराि क े िर मामिे में, हजसमें अपरािी जुमातिे से दण्डाहदष्ट हुआ िै, वि न्यायािय, जो ऐसे अपरािी को दण्डाहदष्ट करेगा, सक्षम िोगा हक दण्डादेि द्वारा हिदेि दे हक जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा में, अपरािी अमुक अवहि क े हिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास क े अहतररि िोगा, हजसक े हिए वि दण्डाहदष्ट हुआ िै या हजससे वि दण्डादेि क े िघुकरण पर दण्डिीय िै। 65. जबहक कारावास और जुमातिा दोिों आहदष्ट हकए जा सकते िैं, तब जुमातिा ि देिे पर कारावास की अवहि -
  • 17. यहद अपराि कारावास और जुमातिा दोिों से दण्डिीय िो, तो वि अवहि, हजसक े हिए जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए न्यायािय अपरािी को कारावाहसत करिे का हिदेि दे, कारावास की उस अवहि की एक-चौथाई से अहिक ि िोगी, जो अपराि क े हिए अहिकतम हियत िै। 66. जुमातिा ि देिे पर हकस भांहत का कारावास हदया जाए - वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए अहिरोहपत करे, ऐसा हकसी भांहत का िो सक े गा, हजससे अपरािी को उस अपराि क े हिए दण्डाहदष्ट हकया जा सकता था। 67. जुमातिा ि देिे पर कारावास, जबहक अपराि क े वि जुमातिे से दण्डिीय िो - यहद अपराि क े वि जुमातिे से दण्डिीय िो तो वि कारावास, हजसे न्यायािय जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए अहिरोहपत करे, सादा िोगा और वि अवहि, हजसक े हिए जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए न्यायािय अपरािी को कारावाहसत करिे का हिदेि दे; हिम्न मापमाि से अहिक ििीं िोगी, अथातत्,- जबहक जुमातिे का पररमाण पचास रुपए से अहिक ि िो तब दो मास से अिहिक कोई अवहि, तथा जबहक जुमातिे का पररमाण एक सौ रुपए से अहिक ि िो तब चार मास से अिहिक कोई अवहि, तथा हकसी अन्य दिा में छि मास से अिहिक कोई अवहि। 68. जुमातिा देिे पर कारावास का पयतवसाि िो जािा - जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए अहिरोहपत कारावास तब पयतवहसत िो जाएगा, जब वि जुमातिा या तो चुका हदया जाए या हवहि की प्रहक्रया द्वारा उद् गृिीत कर हिया जाए। 69. जुमातिे क े आिुपाहतक भाग क े दे हदए जािे की दिा में कारावास का पयतवसाि - यहद जुमातिा देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए हियत की गई कारावास की अवहि का अवसाि िोिे से पूवत जुमातिे का ऐसा अिुपात चुका हदया या उद् गृिीत कर हिया जाए हक देिे में व्यहतक्रम िोिे पर कारावास की जो अवहि भोगी जा चुकी िो, वि जुमातिे क े तब तक ि चुकाए गए भाग क े आिुपाहतक से कम ि िो तो कारावास पयतवहसत िो जाएगा। दृष्टांत - क एक सौ रुपए क े जुमातिे और उसक े देिे में व्यहतक्रम िोिे की दिा क े हिए चार मास क े कारावास से दण्डाहदष्ट हकया गया िै। यिां, यहद कारावास क े एक मास क े
  • 18. अवसाि से पूवत जुमातिे क े पचित्तर रुपए चुका हदए जाएं या उद् गृिीत कर हिए जाएं तो प्रथम मास का अवसाि िोते िी क उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद पचित्तर रुपए प्रथम मास क े अवसाि पर या हकसी भी पश्चात्वती समय पर, जबहक क कारावास में िै, चुका हदए या उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क तुरंत उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद कारावास क े दो मास क े अवसाि से पूवत जुमातिे क े पचास रुपए चुका हदये जाएं या उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क दो मास पूरे िोते िी उन्मुि कर हदया जाएगा। यहद पचास रुपये उि दो मास क े अवसाि पर या हकसी भी पश्चात्वती समय पर, जबहक क कारावास में िै, चुका हदए जाएं या उद् गृिीत कर हिए जाएं , तो क तुरन्त उन्मुि कर हदया जाएगा। 70. जुमातिे का छि वषत क े भीतर या कारावास क े दौराि में उद्ग्रिणीय िोिा - संपहत्त को दाहयत्व से मृत्यु उन्मुि ििीं करती - जुमातिा या उसका कोई भाग, जो चुकाया ि गया िो, दण्डादेि हदए जािे क े पश्चात् छि वषत क े भीतर हकसी भी समय, और यहद अपरािी दण्डादेि क े अिीि छि वषत से अहिक क े कारावास से दण्डिीय िो तो उस कािावहि क े अवसाि से पूवत हकसी समय, उद् गृिीत हकया जा सक े गा, और अपरािी की मृत्यु हकसी भी संपहत्त को, जो उसकी मृत्यु क े पश्चात् उसक े ऋणों क े हिए वैि रूप से दायी िो, इस दाहयत्व से उन्मुि ििीं करती। 71. कई अपरािों से हमिकर बिे अपराि क े हिए दण्ड की अवहि - जिां हक कोई बात, जो अपराि िै, ऐसे भागों से, हजिमें का कोई भाग स्वयं अपराि िै, हमिकर बिी िै, विां अपरािी अपिे ऐसे अपरािों में से एक से अहिक क े दण्ड से दखण्डत ि हकया जाएगा, जब तक हक ऐसा अहभव्यि रूप से उपबंहित ि िो। जिां हक कोई बात अपरािों को पररभाहषत या दंहडत करिे वािी हकसी तत्समय प्रवृत्त हवहि की दो या अहिक पृथक ् पररभाषाओं में आिे वािा अपराि िै, अथवा जिां हक कई कायत, हजिमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाहिक से अपराि गहठत िोता िै, हमिकर हभन्न अपराि गहठत करते िैं; विां अपरािी को उससे गुरुत्तर दण्ड से दखण्डत ि हकया जाएगा, जो ऐसे अपरािों में से हकसी भी एक क े हिए वि न्यायािय,जो उसका हवचारण करे,उसे दे सकता िो । दृष्टांत - (क) क, य पर िाठी से पचास प्रिार करता िै। यिां, िो सकता िै हक क िे संपूणत मारपीट द्वारा उि प्रिारों में से िर एक प्रिार द्वारा भी, हजिसे वि संपूणत मारपीट गहठत िै, य को स्वेच्छया उपिहत काररत करिे का अपराि हकया िो। यहद क िर प्रिार क े हिए दण्डिीय िोता तो वि िर एक प्रिार क े हिए एक वषत क े हिसाब से पचास वषत क े हिए कारावाहसत हकया जा सकता था। हकन्तु वि संपूणत मारपीट क े हिए क े वि एक िी दण्ड से दण्डिीय िै।
  • 19. (ि) हकन्तु यहद उस समय जब क, य को पीट रिा िै, म िस्तक्षेप करता िै, और क, म पर सािय प्रिार करता िै, तो यिां म पर हकया गया प्रिार उस कायत का भाग ििीं िै, हजसक े द्वारा क, य को स्वेच्छया उपिहत काररत करता िै, इसहिए क, य को स्वेच्छया काररत की गई उपिहत क े हिए एक दण्ड से और म पर हकए गए प्रिार क े हिए दू सरे दण्ड से दंडिीय िै। 72. कई अपरािों में से एक क े दोषी व्यखि क े हिए दण्ड जबहक हिणतय में यि कहथत िै हक यि संदेि िै हक वि हकस अपराि का दोषी िै - उि सब मामिों में, हजिमें यि हिणतय हदया जाता िै। हक कोई व्यखि उस हिणतय में हवहिहदतष्ट कई अपरािों में से एक अपराि का दोषी िै, हकन्तु यि संदेिपूणत िै हक वि उि अपरािों में से हकस अपराि का दोषी िै, यहद विी दण्ड सब अपरािों क े हिए उपबंहित ििीं िै तो वि अपरािी उस अपराि क े हिए दंहडत हकया जाएगा, हजसक े हिए कम से कम दण्ड उपबंहित हकया गया िै। 73. एकांत परररोि - जब कभी कोई व्यखि ऐसे अपराि क े हिए दोषहसद्ध ठिराया जाता िै हजसक े हिए न्यायािय को इस संहिता क े अिीि उसे कहठि कारावास से दण्डाहदष्ट करिे की िखि िै, तो न्यायािय अपिे दण्डादेि द्वारा आदेि दे सक े गा हक अपरािी को उस कारावास क े , हजसक े हिए वि दण्डाहदष्ट हकया गया िै, हकसी भाग या भागों क े हिए, जो क ु ि हमिाकर तीि मास से अहिक क े ि िोंगे, हिम्न मापमाि क े अिुसार एकांत परररोि में रिा जाएगा, अथातत् - यहद कारावास की अवहि छि मास से अहिक ि िो तो एक मास से अिहिक समय; यहद कारावास की अवहि छि मास से अहिक िो और एक वषत से अहिक ि िो तो दो मास से अिहिक समय; यहद कारावास की अवहि एक वषत से अहिक िो तो तीि मास से अिहिक समय। 74. एकांत परररोि की अवहि - एकांत परररोि क े दण्डादेि क े हिष्पादि में ऐसा परररोि हकसी भी दिा में एक बार में चौदि हदि से अहिक ि िोगा, साथ िी ऐसे एकांत परररोि की कािावहियों क े बीच में उि कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोगे और जब हदया गया कारावास तीि मास से अहिक िो, तब हदए गए संपूणत कारावास क े हकसी एक मास में एकांत परररोि सात हदि से अहिक ि िोगा, साथ िी एकांत परररोि की कािावहियों क े बीच में उन्ीं कािावहियों से अन्यूि अंतराि िोंगे। 75. पूवत दोषहसखद्ध क े पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 क े अिीि कहतपय अपरािों क े हिए वहितत दण्ड - जो कोई व्यखि -
  • 20. (क) भारत में क े हकसी न्यायािय द्वारा इस संहिता क े अध्याय 12 या अध्याय 17 क े अिीि तीि वषत या उससे अहिक की अवहि क े हिए दोिों में से हकसी भांहत क े कारावास से दण्डिीय अपराि क े हिए,दोषहसद्ध ठिराए जािे क े पश्चात् उि दोिों अध्यायों में से हकसी अध्याय क े अिीि उतिी िी अवहि क े हिए वैसे िी कारावास से दण्डिीय हकसी अपराि का दोषी िो, तो वि िर ऐसे पश्चात्वती अपराि क े हिए आजीवि कारावास से या दोिों में से हकसी भांहत क े कारावास से, हजसकी अवहि दस वषत तक की िो सक े गी, दण्डिीय िोगा। अध्याय 4 : सािारण अपवाद 76. हवहि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूि क े कारण अपिे आपको हवहि द्वारा आबद्ध िोिे का हवश्वास करिे वािे व्यखि द्वारा हकया गया कायत - कोई बात अपराि ििीं िै, जो हकसी ऐसे व्यखि द्वारा की जाए जो उसे करिे क े हिए हवहि द्वारा आबद्ध िो या जो तथ्य की भूि क े कारण, ि हक हवहि की भूि क े कारण, सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक वि उसे करिे क े हिए हवहि द्वारा आबद्ध िै। दृष्टांत - (क) हवहि क े समादेिों क े अिुवतति में अपिे वररष्ठ ऑहिसर क े आदेि से एक सैहिक क भीड़ पर गोिी चिाता िै। क िे कोई अपराि ििीं हकया। (ि) न्यायािय का ऑहिसर, क, म को हगरफ्तार करिे क े हिए उस न्यायािय द्वारा आहदष्ट हकए जािे पर और सम्यक ् जांच क े पश्चात् यि हवश्वास करक े हक य, म िै, य को हगरफ्तार कर िेता िै। क िे कोई अपराि ििीं हकया। 77. न्याहयकतः कायत करते हुए न्यायािीि का कायत - कोई बात अपराि ििीं िै, जो न्याहयकतः कायत करते हुए न्यायािीि द्वारा ऐसी हकसी िखि क े प्रयोग में की जाती िै, जो या हजसक े बारे में उसे सद्भावपूवतक हवश्वास िै हक वि उसे हवहि द्वारा दी गई िै। 78. न्यायािय क े हिणतय या आदेि क े अिुसरण में हकया गया कायत - कोई बात, जो न्यायािय क े हिणतय या आदेि क े अिुसरण में की जाए या उसक े द्वारा अहिहदष्ट िो, यहद वि उस हिणतय या आदेि क े प्रवृत्त रिते की जाए, अपराि ििीं िै, चािे उस न्यायािय को ऐसा हिणतय या आदेि देिे की अहिकाररता ि रिी िो, परन्तु यि तब जब हक वि कायत करिे वािा व्यखि सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक उस न्यायािय को वैसी अहिकाररता थी। 79. हवहि द्वारा न्यायािुमत या तथ्य की भूि से अपिे को हवहि द्वारा न्यायािुमत िोिे का हवश्वास करिे वािे व्यखि द्वारा हकया गया कायत -
  • 21. कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाए, जो उसे करिे क े हिए हवहि द्वारा न्यायािुमत िो, या तथ्य की भूि क े कारण, ि हक हवहि की भूि क े कारण, सद्भावपूवतक हवश्वास करता िो हक वि उसे करिे क े हिए हवहि द्वारा न्यायािुमत िै। दृष्टांत - क, य को ऐसा करते देिता िै, जो क को ित्या प्रतीत िोता िै क सद्भावपूवतक काम में िाए गए अपिे श्रेष्ठ हिणतय क े अिुसार उस िखि को प्रयोग में िाते हुए, जो हवहि िे ित्याकाररयों को उस कायत में पकड़िे क े हिए समस्त व्यखियों को दे रिी िै, य को उहचत प्राहिकाररयों क े समक्ष िे जािे क े हिए य को अहभगृिीत करता िै। क िे कोई अपराि ििीं हकया िै चािे तत्पश्चात् असि बात यि हिकिे हक य आत्म-प्रहतरक्षा में कायत कर रिा था। 80. हवहिपूणत कायत करिे में दुघतटिा - कोई बात अपराि ििीं िै, जो दुघतटिा या दुभातग्य से और हकसी आपराहिक आिय या ज्ञाि क े हबिा हवहिपूणत प्रकार से हवहिपूणत साििों द्वारा और उहचत सतक त ता और साविािी क े साथ हवहिपूणत कायत करिे में िो जाती िै। दृष्टांत - क क ु ल्हाड़ी से काम कर रिा िै; क ु ल्हाड़ी का िि उसमें से हिकि कर उछि जाता िै और हिकट िड़ा हुआ व्यखि उससे मारा जाता िै। यिां यहद क की ओर से उहचत साविािी का कोई अभाव ििीं था तो उसका कायत मािी योग्य िै और अपराि ििीं िै। 81. कायत, हजससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, हकन्तु जो आपराहिक आिय क े हबिा और अन्य अपिाहि क े हिवारण क े हिए हकया गया िै - कोई बात क े वि इस कारण अपराि ििीं िै हक वि यि जािते हुए की गई िै हक उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, यहद वि अपिाहि काररत करिे क े हकसी आपराहिक आिय क े हबिा और व्यखि या संपहत्त को अन्य अपिाहि का हिवारण या पररवजति करिे क े प्रयोजि से सद्भावपूवतक की गई िो। स्पष्टीकरण - ऐसे मामिे में यि तथ्य का प्रश्न िै हक हजस अपिाहि का हिवारण या पररवजति हकया जािा िै। क्ा वि ऐसी प्रक ृ हत की और इतिी आसन्न थी हक वि कायत, हजससे यि जािते हुए हक उससे अपिाहि काररत िोिा संभाव्य िै, करिे की जोखिम उठािा न्यायािुमत या मािी योग्य था। दृष्टांत - (क) क, जो एक वाष्प जियाि का कप्ताि िै, अचािक और अपिे हकसी कसूर या उपेक्षा क े हबिा अपिे आपको ऐसी खस्थहत में पाता िै हक यहद उसिे जियाि का मागत ििीं बदिा तो इससे पूवत हक वि अपिे जियाि को रोक सक े वि बीस या तीस
  • 22. याहत्रयों से भरी िाव ि को अहिवायततः टकराकर डुबो देगा, और हक अपिा मागत बदििे से उसे क े वि दो याहत्रयों वािी िाव ग को डुबोिे की जोखिम उठािी पड़ती िै। हजसको वि संभवत: बचाकर हिकि जाए। यिााँ यहद क िाव ग को डुबोिे क े आिय क े हबिा और ि क े याहत्रयों क े संकट का पररवजति करिे क े प्रयोजि से सद्भावपूवतक अपिा मागत बदि देता िै तो यद्यहप वि िाव ग को ऐसे कायत द्वारा टकराकर डुबो देता िै, हजससे ऐसे पररणाम का उत्पन्न िोिा वि संभाव्य जािता था, तथाहप तथ्यतः यि पाया जाता िै हक वि संकट हजसे पररवहजतत करिे का उसका आिय था, ऐसा था हजससे िाव ग को डुबोिे की जोखिम उठािा मािी योग्य िै, तो वि हकसी अपराि का दोषी ििीं िै। (ि) क एक बड़े अहिकाण्ड क े समय आग को ि ै ििे से रोकिे क े हिए गृिों को हगरा देता िै। वि इस कायत को मािव जीवि या संपहत्त को बचािे क े आिय से सद्भाविापूवतक करता िै। यिां, यहद यि पाया जाता िै हक हिवारण की जािे वािी अपिाहि इस प्रक ृ हत की और इतिी आसन्न थी हक क का कायत मािी योग्य िै तो क उस अपराि का दोषी ििीं िै। 82. सात वषत से कम आयु क े हििु का कायत - कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत से कम आयु क े हििु द्वारा की जाती िै। 83. सात वषत से ऊपर हकन्तु बारि वषत से कम आयु क े अपररपक्व समझ क े हििु का कायत - कोई बात अपराि ििीं िै, जो सात वषत से ऊपर और बारि वषत से कम आयु क े ऐसे हििु द्वारा की जाती िै हजसकी समझ इतिी पररपक्व ििीं हुई िै हक वि उस अवसर पर अपिे आचरण की प्रक ृ हत और पररणामों का हिणतय कर सक े । 84. हवक ृ तहचत्त व्यखि का कायत - कोई बात अपराि ििीं िै जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय हचत्त- हवक ृ हत क े कारण उस कायत की प्रक ृ हत, या यि हक जो क ु छ वि कर रिा िै वि दोषपूणत या हवहि क े प्रहतक ू ि िै, जाििे में असमथत िै। 85. ऐसे व्यखि का कायत जो अपिी इच्छा क े हवरुद्ध मत्तता में िोिे क े कारण हिणतय पर पहुंचिे में असमथत िै - कोई बात अपराि ििीं िै, जो ऐसे व्यखि द्वारा की जाती िै, जो उसे करते समय मत्तता क े कारण उस कायत की प्रक ृ हत, या यि हक जो क ु छ वि कर रिा िै वि दोषपूणत या हवहि क े प्रहतक ू ि िै, जाििे में असमथत िै, परन्तु यि तब जबहक वि चीज, हजससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपिे ज्ञाि क े हबिा या इच्छा क े हवरुद्ध दी गई थी। 86. हकसी व्यखि द्वारा, जो मत्तता में िै, हकया गया अपराि हजसमें हविेष आिय या ज्ञाि का िोिा अपेहक्षत िै -