Heat stress management in poultry farming is an important task. It may cause huge economic losses which can be minimize through proper knowledge. In this document we provide details of heat management in hindi language.
मुर्गियों में गर्मियों के मौसम में हीट स्ट्रेस प्रबंधन.pdf
1. पोल्ट्री में हीट स्ट्रेस प्रबंधन
पोल्ट्री में हीट स्ट्रेस प्रबंधन
"Ali Veterinary Wisdom"
by Dr. Ibne Ali (MVSc, IVRI)
उफ़
उफ़
गर्मी
गर्मी
2.
3. हीट स्ट्रेस मुर्गियो में एक प्रबंधन विफलता का उदाहरण है| इससे काफ़ी
आर्थिक हानि होती है| वातावरण में जब गर्मी बढ़ती है तो उसके साथ
साथ आद्रता भी बढ़ती है जो हीट स्ट्रेस को और घातक बना देती है|
इससे मुर्गियों की उत्पादकता पर बहुत बुरा असर पड़ता है|
परिचय:
मुर्गी का सामान्य तापमान 41 डिग्री C होता है जब वातावरण का
तापमान 35 डिग्री C से अधिक होना शुरू होता है मुर्गियों की सामान्य
शारीरिक स्थिति पर असर पड़ना शुरू हो जाता है जिससे अंदरूनी
सिस्टम जैसे सांस, दिल की धड़कन, खून की रवानी आदि सब
प्रभावित होते हैं| हीट स्ट्रेस को कु छ प्रबंधन तकनीक और सपलिमेंटरी
दवाओ से काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है|
हीट स्ट्रेस कै से उत्तपन होती है:
जैसा की पहले बताया गया की यह
उच्च तापमान के कारण होती है|
मुर्गियाँ जो दाना खाती हैं उसके पाचन
में और अवशोषित होने के बाद शरीर
के विभिन्न अंगो में कई तरह की
रसायनिक क्रियाए होती हैं जो जीवित
रहने और बढ़ने के लिए अवशयक हैं|
इन रसायनिक क्रियाओ से निरंतर
उष्मा निकलती रहती है जो मुर्गी के
शरीर के तापमान (41 डिग्री C) को
बना कर रखती है|
www.aliveterinarywisdom.com
4. परंतु अधिक हीट को मुर्गी के द्वारा शरीर से बाहर निकाल
दिया जाता है| इसके लिए मुर्गी मुह खोल कर तेज़ी से सांस
लेती है जिसे पैंटिंग (Panting) कहते हैं यह शरीर से गर्मी
निकालने का मुख्य तरीका है| साथ ही शरीर के उपर से बहने
मुर्गी में उष्मा विनीयम के तरीके :
Convection (संवहन): इसमे मुर्गी
अपनी गर्मी को चारो तरफ मौजूद ठंडी
हवा के ज़रिए से निकाल देती है|
इसके लिए मुर्गी अपने पँखो को गिरा
लेती है और कभी कभी तेज़ी से
फड़फडाती है|
वाली हवा भी शरीर से गर्मी को उड़ा लेती है और अंदरूनी तंत्र क्रियायो में
हीट को कम करने के लिए antioxidants (जैसे विटामिन सी) भी
अच्छा काम करते हैं|
Radiation: इसमे शरीर की उष्मा
electromagnetic तरंगो के रूप
में शरीर से निकलती है| यह मुर्गी का तापमान कम करने में ज़्यादा
उपयोगी नही होती|
Conduction: इस स्थिति में जब मुर्गी किसी ठंडी वस्तु के संपर्क में
आती है तो उष्मा गरम से ठंडी वस्तु की तरफ स्थानातरित होती है| जैसे
ठंडी ज़मीन या पानी का छिड़काव या कोई ठंडी धांतु|
www.aliveterinarywisdom.com
5. जानकारी का व्यावहारिक या प्रायोगिक उपयोग:
इस जानकारी का व्यावहारिक या प्रायोगिक उपयोग
यह है की बाद की दो प्रक्रियायें conduction और
evaporative cooling मुर्गी को हीट स्ट्रोक से
बचाने के लिए काम आती हैं| यदि किसान नियमित
रूप अधिक गर्मी के समय में ठंडी हवा का प्रयाग करें
तो काफी हद तक रहात मिल सकती है| ड्रिंकर में
पानी का लेवल बढ़ा देना चाहिए और अगर टैंक
डायरेक्ट धूप में रखा हो तो उसमे पानी जमा न होने दें
और पानी का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक
नहीं जाना चाहिए| पक्षी अपने आप को इससे गिला
करते रहते हैं| तो जब कोई दवाई पानी में दें तो ड्रिंकर
में पानी का लेवल कम रखें|
मुर्गी के शरीर से गर्मी निकालने का एक मुख्य तरीका होता है, अक्सर
जब यह तरीका विफल हो जाता तभी हीट स्ट्रोक से होने वाली मोर्टेलिटी
बढ़ जाती है|
Evaporative Cooling: इसमे शरीर की गर्मी जो खून से
प्रवाहित होकर मुह तक आती है और मुह की झिल्ली से
निकलती है, यहाँ गर्मी पानी को वाष्पिकृ त करती है|यह
वाष्पीकृ त पानी शरीर से गर्मी लेकर उड़ जाता है|यह प्रकार
खुली स्टील की थाली जैसे बर्तनों में पानी रखने से मुर्गी की
कलगी गीली हो जाती है जो स्ट्रोक को रोकने में बहुत
कारगर होती है|
www.aliveterinarywisdom.com
6. इलेक्ट्रोलाइट का इस्तेमाल:
Radiation, Convection, और Conduction इन तीनो
प्रक्रियाएँ से होने वाली उष्मा का क्षय "प्रत्यक्ष उष्मा क्षय"
(Sensible Heat Loss) कहलाता है यह क्षय तब होता है
जब मुर्गी 25 डिग्री C तक के तापमान पर रहती है| और इससे
शरीर से निकालने वाला पानी अपने साथ शरीर का नमक और क्षार भी
बहार ले आता है जिससे शरीर में acid-base संतुलन बिगड़ जाता है और
ग्रोथ रुक जाती है और कभी कभी मुर्गियाँ मरने भी लगती हैं. इसलिए
पानी के साथ किसान को electrolytes और क्षारीय पदार्थो का
सपलिमेंटेशन भी करना चाहिए.
गर्मियो में पोल्ट्री फार्म में पानी की खपत:
18 डिग्री C से 25 डिग्री C तक का तापमान Thermoneutral Zone
कहलाता है|जब तापमान इससे अधिक होता है तो प्रत्यक्ष उष्मा क्षय कम
हो जाता है और सांस लेने के तंत्र की झिल्लियो से वाष्पिकृ त होने वाला
पानी उष्मा क्षय (हीट लॉस) का प्रधान कारक बन जाता है| इस प्रक्रिया से
शरीर से 1g पानी अपने साथ 540 के लोरी लेकर वाष्पिकृ त होता है|
ब्रायिलर पक्षी में विभिन्न अवस्थाओ में प्रति घंटा 1000 के लोरी से 14000
के लोरी उर्जा अतिरिक्त निकलती है| तो यह बात यहाँ ध्यान देने योग्य है की
इतनी उष्मा को शरीर से निकालने के लिए प्रति घंटा लगभग 25ml पानी
की आवश्यकता होगी|
यदि पक्षी दिन में 10 घंटे अत्याधिक गर्मी में विचरण करता है तो 250ml
पानी शरीर से निकाल देता है| ऐसे में फार्म में 5000 मुर्गियां हैं तो पानी
की खपत व्यापक तौर पर बढ़ जाती है क्यूंकि 1250 लीटर पानी तो सिर्फ
वाष्प बन कर निकल जायेगा जो फार्म में आद्रता को बढाता है इसलिये
पंखा चलाना अनिवार्य हो जाता है जिससे कन्वेक्टिव हीट लॉस बढ़ जाता
है और पैनटिंग सिस्टम पर कम दबाव पड़ता है|
www.aliveterinarywisdom.com
7. हीट स्ट्रेस के प्रभाव:
हीट स्ट्रेस कोई बीमारी नही है बल्कि प्रबंधन की कमी से पैदा
होने वाली स्थिति है| जैसा की पहले बताया गया है की जब
गर्मी बढ़ती है तो मुर्गी उष्मा को बाहर निकालने के लिए तेज़ी
गर्मी बढ़ने से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला कारक उत्पादन है
और फिर रोगो से लड़ने की क्षमता का कम हो जाना तय होता है|
दाने की खपत कम हो जाती है, अंडे का अल्ब्युमिन कम हो जाता
है मोर्टेलिटी बढ़ जाती है और एस्ट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है
हीट स्ट्रेस का मुर्गी के अंडे की शेल पर क्या
प्रभाव पड़ता है
बहुत सारे किसान इस बात की
जानकारी ना होने की वजह से दाने
में calcium की मात्रा बढ़ा देते हैं
जिससे कोई फ़ायदा नही होता|
दूसरी तरफ Metabolic
Alkalosis में कै ल्शियम भी ठीक
से प्रेसिपिटेट (जमा) नही हो पाता
इससे ब्रायिलर चूज़ो में हड्डिया
कमज़ोर हो जाती है और बढ़वार
पर बहुत बुरा असर पड़ता है|
से सांस लेती है और ज़्यादा से ज़्यादा पानी वाष्पिकृ त होता है| इससे शरीर
से अत्याधिक कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकल जाती है और शरीर में
Metabolic Alkalosis हो जाता है| इस वजह से Carbonic
Anhydrase नामक enzyme काम करना कम कर देता है और मुर्गी की
अंडा दानी में कॅ ल्षियम को पर्याप्त bicarbonate आइयन नही मिल पाते
जिससे अंडे के कवच कमज़ोर और लचीले हो जाते हैं|
www.aliveterinarywisdom.com
8. (1) हर समय ठंडे साफ पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करें
(2) निप्पल ड्रिंकर में 70ml पानी प्रति मिनट आना चाहिए
(3) ब्रायिलर फार्म में पानी के बर्तनो की संख्या प्रति 40 पक्षी पर एक बर्तन
कर देनी चाहिए
(4) पानी में दिन में कम से कम एक बार इलेक्ट्रोलाइट ज़रूर मिलाए
(5) यदि पानी उपर से धूप में स्थित टंकी से आ रहा है तो यह बात याद रखें
की वो बहुत जल्दी गरम हो जाता है तो इसलिए उसे एक हिसाब से बदलते रहें
(6) मुर्गियो को दोपहर के समय बिल्कु ल ना छेड़े और बड़े पँखो का इंतेज़ाम
करें
(7) प्रबंधन कार्य जैसे चोंच का बनाना या टीकाकरण सुबह के समय ही करें
(8) फोगेर्स का इस्तेमाल करें और हर 10 मिनट बाद 2 मिनट के लिए चलाएँ
(9) दिन के समय छतो पर स्प्रिंकलर से बौछार करने से भी काफ़ी राहात
मिलती है
(10) दोपहर 12 बजे से शाम 5 बजे तक फीडिंग ना करें
(11) हवा के बहाव को दिन के समय बढ़ाने की कशिश करें जो की 1.8 से 2
मीटर प्रति सेकें ड होना चाहिए.
(12) बेचने के लिए या स्थानांतरण के लिए मुर्गियो को सिर्फ़ सुबह या रात के
समय में ही लेकर जाएँ
मुर्गियों में जो पानी की आवश्यकता आम दिनो फीड के
मुकाबले में 2:1 होती है| हीट स्ट्रेस में पानी की खपत 5 गुना
तक बढ़ जाती है|ऐसे में निम्न दिये गए प्रबंधन कार्यों से काफी
राहत मिल सकती है
गर्मियो में हीट स्ट्रेस का प्रबंधन:
www.aliveterinarywisdom.com
9. 4. ओवरक्राउडिंग होना
5. छत की हाइट का कम होना
6. आस पास पेड़ पौधे होने से वातावरण के तापमान में कु छ स्थिरता रहती है
और तापमान कम हो जाता है
7. ब्रायलर हीट स्ट्रेस के लिए लेयर पक्षियों से अधिक संवेदनशील होते हैं
8. अधिक आद्रता (हुमिडिटी) हीट स्ट्रेस को अत्यधिक बढ़ा देती है
1. वातावरण का अधिक तापमान और गर्म हवाएं (लू) हीट
स्ट्रोक की सम्भावना को काफी बढ़ा देती हैं|
2. पानी की आपूर्ति में किसी प्रकार की भी कमी होना
3. वेंटिलेशन में कमी होना
हीट स्ट्रेस को बढ़ाने वाले कारक:
हुमिडिटी और वेंटिलेशन:
जैसा की हमने पढ़ा की मुर्गी अपने शरीर से गर्मी निकालने के लिए पानी को
वाष्पीकृ त करती है और वह पानी वाष्प बनकर वातावरण में आ जाता है|
परन्तु वातावरण की वाष्प को होल्ड करने की एक लिमिट होती है यदि वह
लिमिट क्रॉस हो जाती है तो वातावरण मुर्गी के अन्दर से आने वाली हीट को
अधिक नहीं ले पाता और वह हीट मुर्गी के अन्दर ही रह जाती है जिससे
हीट स्ट्रोक की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है| इसीलिए अपने देखा
होगा की गर्मी के दिनों में जब आद्रता यानि हुमिडिटी अधिक होती है तो
हीट स्ट्रेस को सिर्फ पंखे से मैनेज नहीं हो पाती|इसके लिए आद्रता को
फार्म से बहार निकालकर नयी हवा से बदलना पड़ता है जिसके लिए
वेंटिलेशन करना पड़ता है| नयी फ्रे स हवा की वाष्प को होल्ड करने की
क्षमता अधिक होती है|
www.aliveterinarywisdom.com
10. जैसे जैसे गर्मी बढती है मुर्गी तेज़ी से साँस लेने लगती है
क्यूंकि उसे शरीर से अधिक गर्मी निकालनी होती है|इस
वजह से शरीर से आवश्यकता से अधिक
कार्बनडाईऑक्साइड निकल जाती है जिससे खून में पी.एच
हीट स्ट्रेस और इलेक्ट्रोलाइट
इलेक्ट्रोलाइट और ऑस्मोलाइट
बढ़ जाती है| इस बढ़ी हुई पी.एच को ठीक करने के लिए शरीर एच प्लस
आयन को रोकने लगता है जो आम तौर से शरीर से बहार निकाल दिया
जाता है| शरीर में एलेट्रिकल नुट्रीलिटी बनाये रखने के लिए इसकी जगह
पोटैशियम निकलने लगता है और शरीर में पोटैशियम की कमी होने लगती
है जिससे कमज़ोरी होने लगती है पक्षी प्रोसटेशन में चला जाता है|इसलिए
गर्मियों में इलेक्ट्रोलाइट का महत्त्व काफी होता है|
www.aliveterinarywisdom.com
मार्किट में कई तरह के और अलग अलग कम्पोजीशन वाले प्रोडक्ट मिलते
है| सबमे अमूमन पोटैशियम क्लोराइड, नमक, सोडा, सिट्रिक एसिड आदि
होते हैं| साल्ट चाहे जो भी हो उसके दो भाग होते हैं एक पॉजिटिव दूसरा
नेगेटिव| नेगेटिव पार्ट शरीर की पी.एच नियंत्रण करता है और पॉजिटिव
पार्ट किडनी के संचालन में सहयोग करता है| इस तरह से इलेक्ट्रोलाइट
शरीर के तरल को बना कर रखने में काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं| शरीर में
तरल दो भागों में बंटा रहता है एक वह जो कोशिकाओं के बहार रहता है
उसे एक्स्ट्रा सेलुलर फ्लूइड कहते हैं दूसरा जो कोशिकाओं के भीतर रहता है
जिसे इंटरासेलुलर फ्लूइड कहते हैं| इलेक्ट्रोलाइट एक्स्ट्रा सेलुलर फ्लूइड के
लिए तो अच्छा रहता है पर इंटरासेलुलर फ्लूइड के लिए इतना कारगर नहीं
होता उसके लिए ऑस्मोलाइट इस्तेमाल होता है|
11.
12. नमक या सोडियम क्लोराइड सबसे सस्ता इलेक्ट्रोलाइट है हालाँकि
इसका अधिक इस्तेमाल घटक होता है क्यूंकि यह गर्मी में डिहाइड्रेशन
की वजह से होने वाले बी.पी. को और बढ़ा देता है|
पोटैशियम क्लोराइड काफी सरल और उपयोगी सिद्ध होता है हालाँकि
यह ब्लड पी.एच को प्रभावित नह नहीं करता
अमोनियम क्लोराइड विशेष रूप से ब्लड पी.एच को कम करता है
कै ल्शियम लैकटेट बफर के साथ साथ उर्जा भी देता
सिट्रट साल्ट बाईकारबोनेट बनाता है और अलकालायीजिंग एजेंट के
तौर पर इस्तेमाल होता है
ग्लूकोज़ सीधे तौर पर उर्जा पहुचाता है
गुड़ या चीनी भी घरेलु तौर से मिलने वाले सामान है जो उर्जा देते हैं
विटामिन सी और ई, हीट स्ट्रेस में काफी उपयोगी होते हैं
कु दरत ने हीट स्ट्रेस से बचाने के लिए शरीर में कु छ प्रोटीन
बनाये हैं जो खुद नष्ट होकर दूसरे महत्वपूर्ण प्रोटीन जैसे
एंजाइम आदि को बेकार होने से बचा लेते हैं| एच. एस. पी
का महत्त्व हीट स्ट्रेस के दौरान पता चलता है| यह प्रोटीन वैसे
हीट शौक प्रोटीन (एच. एस. पी) का महत्त्व
हीट स्ट्रेस में इस्तेमाल होने वाले आम प्रोडक्ट्स
तो कोशिकाओं में पड़े रहते हैं पर जैसे ही थोड़ा सा तनाव बढ़ता है सेलुलर
डीएनए इसे और तेज़ी से बनाने लगता है पर इसके लिए डीएनए को एक
स्टीम्युलेशन की आवश्यकता होती है| एच. एस. पी स्टीम्युलेटर की के टेगरी में
कई प्रकार के तत्व आते हैं, जैसे कु छ प्रकार के एसिड या मेटल्स.
www.aliveterinarywisdom.com
13. हीट स्ट्रेस से होने वाली मोर्टेलिटी में कं सल्टेंसी के
लिए संपर्क करें
89202 53645