6. जन्म - 23 सितंबर 1908 को बबहयर के मंगेर ज़िले के सिमररर्य गयाँव में जन्मे
रयमधयरी सिंह ‘ददनकर’ उि दौर के कवव हैं जब दहन्दी कयव्र् जगत् िे छयर्यवयद कय
र्ग िमयप्त हो रहय थय।
सशक्षय - पटनय ववश्वववद्र्यलर् िे स्नयतक की उपयधध प्रयप्त करने के बयद ददनकर जी
ने एक हयईस्कू ल में अध्र्यपन कयर्ा ककर्य। उिके बयद अनेक महत्तवपूर्ा प्रयशयिननक
पदों पर रहते हए आप मिफ्फ़रपर कॉलेज में दहन्दी के ववभयगयध्र्क्ष बने और बयद में
भयगलपर ववश्वववद्र्यलर् के उपकलपनत भी बने।
परस्कयर - अनेक महत्वपूर्ा परस्कयरों तथय िम्मयनों िे अलंकृ त होने के ियथ ही
आप भयरत िरकयर के पद्म ववभूषर् अलंकरर् िे भी नवयिे गए।
रामधारी स िंह ‘दिनकर’
7. ननधन - 24 अप्रेल िन् 1974 को रयष्ट्रकवव
रयमधयरी सिंह ‘ददनकर’ र्े नश्वर देह छोड़कर चले
गए।
पस्तक - ‘रेर्कय’, ‘हंकयर’, ‘रिवंती’, ‘करुक्षेत्र’,
‘रज़श्मरथी’, ‘परशरयम की प्रनतज्ञय’, ‘हयरे को हररनयम’
और ‘उवाशी’ ददनकर जी के कयव्र् िंकलन हैं।
आपके लेखन में जो वैववध्र् है वह के वल
ववधय के स्तर तक िीसमत न रहकर रि के
स्तर पर भी अत्र्ंत व्र्यपक है। एक ओर
उवाशी जैिी ववशध्द शृंगयरी रचनय और दूिरी
ओर करुक्षेत्र, रज़श्मरथी और परशरयम की
प्रनतज्ञय जैिी अज़ननमखी रचनयएाँ। शोध
सिमररर्य की गसलर्ों में आज भी ददनकर जी
के बचपन की र्यदें कलयचें भरती हैं। अपनी
कयव्र् प्रनतभय के आधयर पर गंगय तट कय र्ह
लयडलय पत्र पूरे ववश्व में दहन्दी के एक चेहरे
के रूप में जयनय जयतय है।करने चले तो
‘िंस्कृ नत के चयर अध्र्यर्’ िरीखय अद्भत ग्रंथ
रच डयलय।