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आचार्य बाबा नागार्जयन
अकाल और उसके बाद
* शोषण और अन्र्ार् के विरोध में ललखनेिाले प्रमजख र्निादी कवि
नागार्जयन है।
* िे धरती, र्नता और श्रम के गीत गानेिाले संिेदनशील कवि है। िे ही
र्जगधारा के कवि है।
* व्र्ग्र् का प्रर्ोग सत्र् के अन्िेषण के ललए होता है। व्र्ग्र् में आक्रोश
पराकाष्ठा पर होता है। र्ीिन की वििश और असहार् पररस्थिततर्ों को
व्र्ग्र् के माध्र्म से व्र्क्त करके चेतना में हलचल मचाने का प्रर्त्न
नागार्जयन ने ककर्ा।
* नागार्जयन की सब से मर्बूत पकड ही व्र्ग्र् पर है। नागार्जयन की व्र्ग्र्
रचनाओं में कबीर की तल्खी, भारतेंदज की करूणा और तनराला की
विनोदिक्रता का विलक्षण सामंर्थर् है।
* नागार्जयन ने व्र्ग्र् की विलभन्न शैली को अपनी कविता में अपनार्ा है। िे
अपने समर् के र्िािय से गहरे र्जडे हजए िे।
* नागार्जयन ने आर् की भ्रष्ट रार्नीतत और रार्नेताओं पर तो व्र्ग्र्
कविताएँ ललखी ही है, सामास्र्क, धालमयक रूढिर्ों तिा आर्ियक
विसंगताओं पर भी व्र्ग्र् रचनाएँ ललखी है।
* देश के आर्ियक और सामास्र्क िाँचों को बदलना उनका लक्ष्र् प्रतीत
होता है।
* िे अन्र्ार्, शोषण, गरीबी, भूखमरी, बदहाली, अकाल आढद स्थिततर्ों
को अपनी कविताओं में र्चत्रित करने लगे।
* शोषण र्नता उन्हें पिकर राहत महसूस करती है, क्र्ोंकक इस में
कवि ने उसका अपना पक्ष ललर्ा है। उसे उठ खडे होने की प्रेरणा दी
है।
* नागार्जयन के लगभग समथत काव्र् में थिातंत्र्र्ोत्तर र्जग की समूची
विलभवषका को र्निादी दृस्ष्ट से व्र्ग्र् के माध्र्म से उके र गर्ा है। र्ह
तनसंकोच कहा र्ा सकता है कक समूची प्रगततिादी भािधारा में थितंिता
के बाद नागार्जयन ही ऐसे कवि है स्र्न्होंने अके ले ही बहजत समृद्ध तिा
कलात्मक व्र्ग्र् ललखा है।
* उनके व्र्ग्र् में पीडडत तिा शोवषत र्नता के प्रतत करूणा सहानजभूतत
पूणय व्र्ग्र् के साि-साि र्ड़ मान्र्ताओं, पोले अलभर्ात्र्, प्रदशयन वप्रर् पैसे
की नाटक, गरीबी की मार, नौकरशाही, घढटर्ा बजद्र्धहीन अिसरिादी नेतृत्ि,
फै शन और विलालसता में आकं ठ डूबी र्जिततर्ों, थिािय ललप्त बडे लोगों,
छार्ािादी थितंिता से र्जक्त कविर्ों, आटमबाम की विभीवषका, सूदखोरो,
मजनाफाखोरों, ईमानदारों के सामने पंगजता के नाटक रचनेिाले लभखाररर्ों,
थितंि देश में बहजत कम िेतन पाने िाले अध्र्ापकों की स्थितत, बढ़ती हजई
र्नसंख्र्ा और थिदेशी शासकों की अकमयण्र्ता आढद पर सटीक तिा
मालमयक व्र्ग्र् लमलता है।
* उनकी अलभव्र्स्क्त सच्ची और ईमानदार अलभव्र्स्क्त है, क्र्ोंकक
उनकी कविताएँ र्न से परे नहीं बस्ल्क उनके संघषय में बराबर की
भागीदारी तनभाती है। इसी तरह व्र्ापक मानिीर् प्रततबद्धता के
कारण िे धीरे-धीरे माक्सयिादी विचारधारा के अर्धक तनकट आर्े।
* नागार्जयन ने िगय-िैषम्र्, अन्तवियरोधों और व्र्ग्र् के माध्र्म से
भी सामास्र्क र्िािय का र्चिण ककर्ा है। “अकाल और उसके बाद”
कविता में तनम्निगय की दर्नीर् स्थितत सजधारने में अक्षम कणयधारों
पर िे र्मकर व्र्ग्र् प्रहार करते है।
* अकाल के बाद फै ली भजखमरी को नागार्जयन ने प्रतीकों के माध्र्म
से व्र्क्त ककर्ा है---
“अकाल और उसके बाद”
अकाल और उसके बाद
“कई ढदनों तक चूल्हा रोर्ा, चक्की रही उदास
कई ढदनों तक कानी कज ततर्ा सोई उनके पास
कई ढदनों तक लगी भीत पर तछपकललर्ों की ग्त
कई ढदनों तक चूहों की भी हालत रही लशकथत”।
अकाल और उसके बाद
“दाने आर्े घर के अंदर कई ढदनों के बाद
धजआँ उठा आँगन से ऊपर कई ढदनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई ढदनों के बाद
कौए ने खजर्लार्ी पाँखों कई ढदनों के बाद”।
* अकाल में अन्नाभाि के कारण कई ढदनों तक चजल्हा रोता
रहा, चक्की उदास पडी रही।
* कई ढदनों तक कानी कज ततर्ा भी उसके पास सोर्ी पडी
रही।
* कई ढदनों तक अन्नाभाि के कारण चूहों की हालत भी
दर्नीर् बनी रही।
* दाने पाकर घर भर के सदथर्ों की आँखें चमक उठती हैं।
* आंगन में चूल्हे से धूँआ उठता है।
* बहजत ढदनों का बाद कौिे अपने पाँखे खजर्ला पाते हैं।
* इस कविता में सामास्र्क र्िािय का तनरूपण ककर्ा है।
अकाल और उसके बाद
Youtube video link
• https://youtu.be/EgEjpUcuhm8
अकाल और उसके बाद

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आचार्य बाबा नागार्जुन - अकाल और उसके बाद

  • 2.
  • 3. * शोषण और अन्र्ार् के विरोध में ललखनेिाले प्रमजख र्निादी कवि नागार्जयन है। * िे धरती, र्नता और श्रम के गीत गानेिाले संिेदनशील कवि है। िे ही र्जगधारा के कवि है। * व्र्ग्र् का प्रर्ोग सत्र् के अन्िेषण के ललए होता है। व्र्ग्र् में आक्रोश पराकाष्ठा पर होता है। र्ीिन की वििश और असहार् पररस्थिततर्ों को व्र्ग्र् के माध्र्म से व्र्क्त करके चेतना में हलचल मचाने का प्रर्त्न नागार्जयन ने ककर्ा। * नागार्जयन की सब से मर्बूत पकड ही व्र्ग्र् पर है। नागार्जयन की व्र्ग्र् रचनाओं में कबीर की तल्खी, भारतेंदज की करूणा और तनराला की विनोदिक्रता का विलक्षण सामंर्थर् है। * नागार्जयन ने व्र्ग्र् की विलभन्न शैली को अपनी कविता में अपनार्ा है। िे अपने समर् के र्िािय से गहरे र्जडे हजए िे।
  • 4. * नागार्जयन ने आर् की भ्रष्ट रार्नीतत और रार्नेताओं पर तो व्र्ग्र् कविताएँ ललखी ही है, सामास्र्क, धालमयक रूढिर्ों तिा आर्ियक विसंगताओं पर भी व्र्ग्र् रचनाएँ ललखी है। * देश के आर्ियक और सामास्र्क िाँचों को बदलना उनका लक्ष्र् प्रतीत होता है। * िे अन्र्ार्, शोषण, गरीबी, भूखमरी, बदहाली, अकाल आढद स्थिततर्ों को अपनी कविताओं में र्चत्रित करने लगे। * शोषण र्नता उन्हें पिकर राहत महसूस करती है, क्र्ोंकक इस में कवि ने उसका अपना पक्ष ललर्ा है। उसे उठ खडे होने की प्रेरणा दी है।
  • 5. * नागार्जयन के लगभग समथत काव्र् में थिातंत्र्र्ोत्तर र्जग की समूची विलभवषका को र्निादी दृस्ष्ट से व्र्ग्र् के माध्र्म से उके र गर्ा है। र्ह तनसंकोच कहा र्ा सकता है कक समूची प्रगततिादी भािधारा में थितंिता के बाद नागार्जयन ही ऐसे कवि है स्र्न्होंने अके ले ही बहजत समृद्ध तिा कलात्मक व्र्ग्र् ललखा है। * उनके व्र्ग्र् में पीडडत तिा शोवषत र्नता के प्रतत करूणा सहानजभूतत पूणय व्र्ग्र् के साि-साि र्ड़ मान्र्ताओं, पोले अलभर्ात्र्, प्रदशयन वप्रर् पैसे की नाटक, गरीबी की मार, नौकरशाही, घढटर्ा बजद्र्धहीन अिसरिादी नेतृत्ि, फै शन और विलालसता में आकं ठ डूबी र्जिततर्ों, थिािय ललप्त बडे लोगों, छार्ािादी थितंिता से र्जक्त कविर्ों, आटमबाम की विभीवषका, सूदखोरो, मजनाफाखोरों, ईमानदारों के सामने पंगजता के नाटक रचनेिाले लभखाररर्ों, थितंि देश में बहजत कम िेतन पाने िाले अध्र्ापकों की स्थितत, बढ़ती हजई र्नसंख्र्ा और थिदेशी शासकों की अकमयण्र्ता आढद पर सटीक तिा मालमयक व्र्ग्र् लमलता है।
  • 6. * उनकी अलभव्र्स्क्त सच्ची और ईमानदार अलभव्र्स्क्त है, क्र्ोंकक उनकी कविताएँ र्न से परे नहीं बस्ल्क उनके संघषय में बराबर की भागीदारी तनभाती है। इसी तरह व्र्ापक मानिीर् प्रततबद्धता के कारण िे धीरे-धीरे माक्सयिादी विचारधारा के अर्धक तनकट आर्े। * नागार्जयन ने िगय-िैषम्र्, अन्तवियरोधों और व्र्ग्र् के माध्र्म से भी सामास्र्क र्िािय का र्चिण ककर्ा है। “अकाल और उसके बाद” कविता में तनम्निगय की दर्नीर् स्थितत सजधारने में अक्षम कणयधारों पर िे र्मकर व्र्ग्र् प्रहार करते है। * अकाल के बाद फै ली भजखमरी को नागार्जयन ने प्रतीकों के माध्र्म से व्र्क्त ककर्ा है--- “अकाल और उसके बाद”
  • 7. अकाल और उसके बाद “कई ढदनों तक चूल्हा रोर्ा, चक्की रही उदास कई ढदनों तक कानी कज ततर्ा सोई उनके पास कई ढदनों तक लगी भीत पर तछपकललर्ों की ग्त कई ढदनों तक चूहों की भी हालत रही लशकथत”।
  • 8. अकाल और उसके बाद “दाने आर्े घर के अंदर कई ढदनों के बाद धजआँ उठा आँगन से ऊपर कई ढदनों के बाद चमक उठी घर भर की आँखें कई ढदनों के बाद कौए ने खजर्लार्ी पाँखों कई ढदनों के बाद”।
  • 9. * अकाल में अन्नाभाि के कारण कई ढदनों तक चजल्हा रोता रहा, चक्की उदास पडी रही। * कई ढदनों तक कानी कज ततर्ा भी उसके पास सोर्ी पडी रही। * कई ढदनों तक अन्नाभाि के कारण चूहों की हालत भी दर्नीर् बनी रही। * दाने पाकर घर भर के सदथर्ों की आँखें चमक उठती हैं। * आंगन में चूल्हे से धूँआ उठता है। * बहजत ढदनों का बाद कौिे अपने पाँखे खजर्ला पाते हैं। * इस कविता में सामास्र्क र्िािय का तनरूपण ककर्ा है। अकाल और उसके बाद
  • 10.
  • 11. Youtube video link • https://youtu.be/EgEjpUcuhm8 अकाल और उसके बाद