1. विवियोग
ॐ अस्य आदित्य हृियस्तोत्रस्यागस्त्यऋदिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृियभूतो
भगवान ब्रह्मा िेवता दनरस्ताशेिदवघ्नतया ब्रह्मदवद्यादिद्धौ िववत्र जयदिद्धौ च
दवदनयोगः।
ऋष्याविन्यास
ॐ अगस्त्यऋिये नमः, दशरदि। अनुष्टुपछन्दिे नमः, मुखे।
आदित्यहृियभूतब्रह्मिेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पाियो। ॐ
तत्सदवतुररत्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्ां नमः। ॐ िमुद्यते तजवनीभ्ां नमः।
ॐ िेवािुरनमस्कृ ताय मध्यमाभ्ां नमः। ॐदववरवते अनादमकाभ्ां नमः।
ॐ भास्कराय कदनदष्ठकाभ्ां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्ां नमः।
हृियावि अंगन्यास
ॐ रश्मिमते हृियाय नमः। ॐ िमुद्यते दशरिे स्वाहा। ॐ िेवािुरनमस्कृ ताय
दशखायै विट्।
ॐ दववस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौिट्। ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय
फट्।
इि प्रकार न्याि करके दनम्ांदकत मंत्र िे भगवान िूयव का ध्यान एवं नमस्कार
करना चादहए-
ॐ भूभुववः स्वः तत्सदवतुववरेण्यं भगो िेवस्य धीमदह दधयो यो नः
प्रचोियात्।ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
आवित्यहृिय स्तोत्र
ततो युद्धपररश्रान्तं िमरे दचन्तया श्मथितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय िमुपश्मथितम्।।1।।
िैवतैश्च िमागम्य द्रष्टुमभ्ागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीि् राममगरत्यो भगवांस्तिा।।2।।
उधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध िे िककर दचन्ता करते हुए रणभूदम में खडे िे। इतने में
रावण भी युद्ध के दलए उनके िामने उपश्मथित हो गया। यह िेख भगवान अगस्त्य
मुदन, जो िेवताओं के िाि युद्ध िेखने के दलए आये िे, श्रीराम के पाि जाकर बोले।
2. राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं िनातनम्।
येन िवावनरीन् वत्स िमरे दवजदयष्यिे।।3।।
‘िबके हृिय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह िनातन गोपनीय स्तोत्र िुनो।
वत्स ! इिके जप िे तुम युद्ध में अपने िमस्त शत्रुओं पर दवजय पा जाओगे।’
आदित्यहृियं पुण्यं िववशत्रुदवनाशनम्।
जयावहं जपं दनत्यमक्षयं परमं दशवम्।।4।।
िववमंगलमांगल्यं िववपापप्रणाशनम्।
दचन्ताशोकप्रशमनमायुववधैनमुत्तमम्।।5।।
‘इि गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्यहृिय’।यहपरम पदवत्र और िम्पूर्ण
शत्रुओं का नाश करने वाला है। इिके जप िे ििा दवजय की प्राश्मि होती है। यह
दनत्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है। िम्पूणव मंगलोंका भी मंगल है। इििे
िब पापों का नाश हो जाता है। यह दचन्ता और शोक को दमटाने तिा आयु को
बढाने वाला उत्तम िाधन है।’
रश्मिमन्तं िमुद्यन्तं िेवािुरनमस्कृ तम्।
पूजयस्व दववस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।6।।
‘भगवान िूयव अपनी अनन्तदकरणोंिे िुशोदभत (रश्मिमान्) हैं।ये दनत्य उिय होने
वाले (िमुद्यन्), िेवता और अिुरोंिे नमस्कृ त, दववस्वान् नाम िे प्रदिद्ध, प्रभा का
दवस्तार करने वाले (भास्कर) और िंिारके स्वामी (भुवनेश्वर) हैं।तुम इनका
(रश्मिमते नमः, िमुद्यते नमः, िेवािुरनमस्कतायनमः, दववस्वते नमः, भास्कराय
नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रोंके द्वारा) पूजन करो।’
िवविेवतामको ह्येि तेजस्वी रश्मिभावनः।
एि िेवािुरगणााँल्लोकान् पादत गभश्मस्तदभः।।7।।
‘िम्पूणव िेवता इन्ींके स्वरूपहैं। ये तेजकी रादश तिा अपनी दकरणों िे जगत को
ित्ता एवं स्फू दतव प्रिान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रिार करके िेवता
और अिुरोंिदहत िम्पूणव लोकोंका पालन करते हैं।’
एि ब्रह्मा च दवष्णुश्च दशवः स्कन्दः प्रजापदतः।
महेन्द्रो धनिः कालो यमः िोमो ह्यपां पदतः।।8।।
दपतरो विवः िाध्या अदश्वनौ मरुतो मनुः।
वायुववश्मन्ः प्रजाः प्राण ऋतुकताव प्रभाकरः।।9।।
‘ये ही ब्रह्मा, दवष्णु, दशव, स्कन्द, प्रजापदत, इन्द्र, कु बेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरूण,
दपतर, विु, िाध्य, अदश्वनीकु मार, मरुिगण, मनु,वायु, अदि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं
को प्रकट करने वाले तिा प्रभा के पुंज हैं।’
3. आदित्यः िदवता िूयवः खगः पूिा गभावश्मस्तमान्।
िुवणविदृशो भानुदहरण्यरेता दिवाकरः।।10।।
हररिश्वः िहस्रादचवः िििश्मिमवरीदचमान्।
दतदमरोन्मिनः शम्भूथ्ष्टा मातवण्डकोंऽशुमान्।।11।।
दहरण्यगभवः दशदशरस्तपनोऽहरकरो रदवः।
अदिगभोऽदितेः पुत्रः शंखः दशदशरनाशनः।।12।।
व्योमनािस्तमोभेिी ऋम्यजुःिामपारगः।
घनवृदष्टरपां दमत्रो दवन्ध्यवीिीप्लवंगमः।।13।।
आतपी मण्डली मृत्युः दपंगलः िववतापनः।
कदवदववश्वो महातेजा रक्तः िववभवोिभवः।।14।।
नक्षत्रग्रहताराणामदधपो दवश्वभावनः।
तेजिामदपतेजस्वी द्वािशात्मन् नमोऽस्तु ते।।15।।
‘इन्ींके नाम आदित्य (अदिदतपुत्र), िदवता (जगत को उत्पन्न करने वाले), िूयव
(िववव्यापक), खग (आकाश में दवचरने वाले), पूिा (पोिण करने वाले), गभश्मस्तमान्
(प्रकाशमान), िुववणिदृश, भानु (प्रकाशक), दहरण्यरेता (ब्रह्माण्डकी उत्पदत्त के
बीज), दिवाकर (रादत्र का अन्धकारिू र करके दिन का प्रकाश फै लाने वाले),
हररिश्व (दिशाओं में व्यापक अिवा हरे रंग के घोडे वाले), िहस्रादचव (हजारों
दकरणों िे िुशोदभत), दतदमरोन्मिन (अन्धकारका नाश करने वाले), शम्भू
(कल्याण के उिगमथिान), त्वष्टा (भक्तोंका िुःख िू र करने अिवा जगत का िंहार
करने वाले), अंशुमान (दकरण धारण करने वाले), दहरण्यगभव (ब्रह्मा), दशदशर
(स्वभाव िे ही िुख िेने वाले), तपन (गमी पैिा करने वाले), अहरकर (दिनकर),
रदव (िबकी स्तुदत के पात्र), अदिगभव (अदि को गभव में धारण करने वाले),
अदिदतपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूपएवं व्यापक), दशदशरनाशन (शीत का नाश करने
वाले), व्योमनाि (आकाश के स्वामी), तमोभेिी (अन्धकारको नष्टकरने वाले),
ऋग, यजुः और िामवेि के पारगामी, घनवृदष्ट(घनी वृदष्ट के कारण), अपां दमत्र
(जल को उत्पन्न करने वाले), दवन्ध्यीिीप्लवंगम (आकाश में तीव्रवेग िे चलने वाले),
आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले), मण्डली (दकरणिमूहको धारण करने वाले), मृत्यु
(मौत के कारण), दपंगल (भूरे रंग वाले), िववतापन (िबको तापिेने वाले), कदव
(दत्रकालिशी), दवश्व (िववस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंगवाले), िववभवोिभव
(िबकी उत्पदत्त के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, दवश्वभावन (जगत की
रक्षा करने वाले), तेजश्मस्वयोंमें भी अदत तेजस्वी तिा द्वािशात्मा (बारहस्वरूपों में
अदभव्यक्त) हैं।(इन िभी नामोंिे प्रदिद्ध िूयविेव !) आपको नमस्कारहै।’
नमः पूवावय दगरये पदश्चमायाद्रये नमः।
ज्योदतगवणानां पतये दिनादधपतये नमः।।16।।
4. ‘पूववदगरी उियाचल तिा पदश्चमदगरर अस्ताचल के रूपमें आपको नमस्कारहै।
ज्योदतगवणों(ग्रहोंऔर तारों) के स्वामी तिा दिन के अदधपदत आपको प्रणाम है।’
जयाय जयभद्राय हयवश्वाय नमो नमः।
नमो नमः िहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।।17।।
‘आप जय स्वरूप तिा दवजय और कल्याण के िाता है। आपके रि में हरे रंग के
घोडे जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कारहै। िहस्रों दकरणों िे िुशोदभत
भगवान िूयव ! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिदत के पुत्र होने के कारण
आदित्य नाम िे प्रदिद्ध है, आपको नमस्कारहै।’
नम उग्राय वीराय िारंगाय नमो नमः।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।18।।
‘(परात्पररूप में) आप ब्रह्मा, दशव और दवष्णु के भी स्वामी हैं। िूरआपकी िंज्ञा हैं,
यह िूयवमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश िे पररपूणव हैं, िबको स्वाहा कर
िेने वाला अदि आपका ही स्वरूप है, आप रौद्ररूपधारण करने वाले हैं, आपको
नमस्कारहै।’
तमोघ्नाय दहमघ्नाय शत्रुघ्नायादमतात्मने।
कृ तघ्नघ्नाय िेवाय ज्योदतिां पतये नमः।।20।।
‘आप अज्ञान और अन्धकारके नाशक, जडता एवं शीत के दनवारकतिा शत्रु का
नाश करने वाले हैं, आपका स्वरूप अप्रमेय है। आप कृ तघ्नोंका नाश करने वाले,
िम्पूणव ज्योदतयोंके स्वामी और िेवस्वरूपहैं, आपको नमस्कारहै।’
तिचामीकराभाय हस्ये दवश्वकमवणे।
नमस्तमोऽदभदनघ्नाय रुचये लोकिादक्षणे।।21।।
‘आपकी प्रभा तपाये हुए िुवणव के िमान है, आप हरर (अज्ञान का हरण करने वाले)
और दवश्वकमाव (िंिारकी िृदष्ट करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूपऔर
जगत के िाक्षी हैं, आपको नमस्कारहै।’
नाशयत्येि वै भूतं तमेव िृजदत प्रभुः।
पायत्येि तपत्येि विवत्येि गभश्मस्तदभः।।22।।
‘रघुनन्दन ! ये भगवान िूयव ही िम्पूणव भूतोंका िंहार, िृदष्ट और पालन करते हैं। ये
ही अपनी दकरणों िे गमी पहुाँचाते और विाव करते हैं।’
एि िुिेिु जागदतव भूतेिु पररदनदष्ठतः।
एि चैवादिहोत्रं च फलं चैवादिहोदत्रणाम्।।23।।
‘ये िब भूतोंमें अन्तयावमीरूपिे श्मथित होकर उनके िो जाने पर भी जागते रहते
हैं। ये ही अदिहोत्र तिा अदिहोत्री पुरुिोंको दमलने वाले फल हैं।’
5. िेवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यादन कृ त्यादन लोके िु िवेिु परमप्रभुः।।24।।
‘(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) िेवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। िम्पूणव
लोकोंमें दजतनी दक्रयाएाँ होती हैं, उन िबका फल िेने में ये ही पूणव िमिव हैं।’
एनमापत्सु कृ च्छ्रे िु कान्तारेिु भयेिु च।
कीतवयन् पुरुिः कदश्चन्नाविीिदत राघव।।25।।
‘राघव ! दवपदत्त में, कष्ट में, िुगवम मागव में तिा और दकिी भय के अविर पर जो
कोई पुरुि इन िूयविेव का कीतवन करता है, उिे िुःख नहींभोगना पडता।’
पूजयस्वैनमेकाग्रो िेविेवं जगत्पदतम्।
एतत् दत्रगुदणतं जिवा युद्धेिु दवजदयश्मष्त।।26।।
‘इिदलए तुम एकाग्रदचत होकरइन िेवादधिेव जगिीश्वरकी पूजा करो। इि
आदित्य हृिय का तीन बार जप करने िे तुम युद्ध में दवजय पाओगे।’
अश्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जदहष्यदि।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम ि यिागतम्।।27।।
‘महाबाहो ! तुम इिी क्षण रावण का वध कर िकोगे।’ यह कहकर अगस्त्य जी जैिे
आये िे, उिी प्रकार चले गये।
एतच्छ्ु त्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तिा।
धारयामाि िुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।28।।
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्त्वेिं परं हिवमवािवान्।
दत्रराचम्य शुदचभूवत्वा धनुरािाय वीयववान्।।29।।
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयािे िमुपागमत्।
िववय्ेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।30।।
उनका उपिेश िुनकरमहातेजस्वी श्रीरामचन्द्रजी का शोक िू र हो गया। उन्ोंने
प्रिन्न होकर शुद्धदचत्त िे आदित्यहृिय को धारण दकया और तीन बारआचमन
करके शुद्ध हो भगवान िूयव की ओर िेखते हुए इिका तीन बार जप दकया। इििे
उन्ें बडा हिव हुआ।दफर परम पराक्रमी रघुनािजी ने धनुि उठाकर रावण की
ओर िेखा और उत्साहपूववक दवजय पाने के दलए वे आगे बढे। उन्ोंने पूरा प्रय्
करके रावण के वध का दनश्चय दकया।
अि रदवरविदन्नरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
दनदशचरपदतिंक्षयं दवदित्वा िुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेदत।।31।।
उि िमय िेवताओं के मध्य में खडे हुए भगवान िूयव ने प्रिन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी
की ओर िेखा और दनशाचराज रावण के दवनाश का िमय दनकटजानकर
6. हिवपूववक कहा ‘रघुनन्दन ! अब जल्दी करो’।
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
इत्यािे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पंचादधकशततमः िगवः।