2. इनका जन्म सन 1911 में उत्तर प्रदेश के
बााँदा जजले के कमाससन गााँव में हुआ।
उनकी सशक्षा इलाहबाद और आगरा
ववश्वववद्यालय में हुई। ये पेशे से वकील
थे। प्रगति वादी ववचारधारा के प्रमुख कवव
माने जािे हैं। जनसामान्य का संघर्ष और
प्रकृ ति सौंदयष इनकी कवविाओं का मुख्य
प्रतिपाद्य है। सन 2000 में इनका देहांि
हो गया।
3. पाठ का सार
इस कवविा में कवव का प्रकॄ ति के प्रति
गहरा अनुराग व्यक्ि हुआ है। वह चंद्र
गहना नामक स्थान से लौट रहा है। लौटिे
हुए उसके ककसान मन को खेि-खसलहान
एवं उनका प्राकृ तिक पररवेश सहज
आकवर्षि कर लेिा है। उसे एक ठठगना
चने का पौधा ठदखिा है, जजसके सर पर
गुलाबी फू ल पगडी के समान लगिा है। वह
उसे दुल्हे के समान प्रिीि होिा है।
4. वहीं पास में अलसी का पौधा है, जो
सुन्दर युविी की भांति लगिा है। खेि में
सरसों का पौधा वववाह योग्य लडकी के
समान लगिा है। खेिों के समीप से रेल
भी होकर गुजरिी है। पास में िालाब की
शोभा देखने लायक है। िालाब के ककनारे
पर पत्थर पडे हुए हैं, मछली की िाक में
बगुला चुपचाप खडा है। दूर सारस के
जोडे का स्वर सुनाई दे रहा है।
5. यह सब कवव का मन मोह लेिे हैं। इस
कवविा में कवव की उस सृजनात्मक
कल्पना की असभव्यजक्ि है जो साधारण
चीज़ों में भी असाधारण सौंदयष देखिी है
और उस सौंदयष को शहरी ववकास की िीव्र
गति के बीच भी अपनी संवेदना में सुरक्षक्षि
रखना चाहिी है। यहााँ प्रकृ ति और संस्कृ ति
की एकिा व्यक्ि हुई है।