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प्रात् स्भयणीम ऩयभ ऩूज्म
                                                         सॊत श्री आसायाभजी फाऩू के
                                                                  सत्सॊग-प्रवचन



                                                   दै वी सॊऩदा
                                                                   ननवेदन
           जजतने बी द्ख, ददद , ऩीडाएॉ हैं, चचत्त को ऺोब कयाने वारे.... जन्भों भें बटकानेवारे......
अशाॊनत दे ने वारे कभद हैं वे सफ सदगणों क अबाव भें ही होते हैं
                                        े
           बगवान श्रीकृष्ण ने जीवन भें कसे सदगणों की अत्मॊत आवश्मकता है मह बगवद् गीता
                                        ै
क 'दै वासयसम्ऩदाववबागमोग' नाभ क सोरहवें अध्माम क प्रथभ तीन द्ऴोंकों भें फतामा है । उन
 े                             े                े
दै वी सम्ऩदा क छब्फीस सदगणों को धायण कयने से सख, शाॊनत, आनन्दभम जीवन जीने की
              े
कजी मभर जाती है , धभद, अथद, काभ औय भोऺ, मे चायों ऩरुषाथद सहज भें ही मसद्ध हो जाते हैं ,
 ॊ
क्मोंकक दै वी सम्ऩदा आत्भदे व की है ।
           इस ग्रॊथ भें सॊतों ने सयर औय उत्साह-प्रेयक प्रवचनों क द्राया दै वी सम्ऩदा भें जस्थत बक्तों
                                                                े
क, सॊतों क जीवन-प्रसॊग ऩय प्रकाश डारते हए हभें प्रसाद फाॉटा है । आऩ इस ऻान-प्रसाद का
 े        े
ऩठन-भनन कयें गे तो अवश्म राबाजन्वत होंगे।
                                                                                                                                            ववनीत,
                                                                                                          श्री मोग वेदान्त सेवा समभनत
                                                                                                                            अभदावाद आश्रभ

                                                                  अनक्रभ
ननवेदन............................................................................................................................................... 2
दै वी सम्ऩदा – 1 ................................................................................................................................. 3
दै वी सम्ऩदा – 2 ............................................................................................................................... 17
दै वी सम्ऩदा -3 ................................................................................................................................. 34
जीवन-ववकास औय प्राणोऩासना ........................................................................................................... 47
सत्सॊग सॊचम .................................................................................................................................... 61
   ऻानमोग ....................................................................................................................................... 61
   याभ क दीवाने ............................................................................................................................... 64
        े
   मभयाज का 'डडऩाटद भेन्ट' ................................................................................................................. 65
   सदगरु-भहहभा ............................................................................................................................... 66
ढाई अऺय प्रेभ का...... ................................................................................................................... 67
   सपरता की नीॊव एकाग्रता.............................................................................................................. 68
  'गरुत्मागात ् बवेन्भत्म्.....' ............................................................................................................. 70
                       ृ
  ऩष्ऩ-चमन .................................................................................................................................... 73
बडक्तभनत यानी यत्नावती ...................................................................................................................... 74




                                                      दै वी सम्ऩदा – 1
                                         (हदनाॊक् 22-7-1990 यवववाय, अभदावाद आश्रभ)
                                                 अबमॊ सत्त्वसॊशवद्धऻादनमोगव्मवजस्थनत्।
                                              दानॊ दभद्ळ मऻद्ळ स्वाध्मामस्तऩ आजदवभ ्।।
           'बम का सवदथा अबाव, अॊत्कयण की ऩणद ननभदरता, तत्त्वऻान क मरए ध्मानमोग भें
                                          ू                      े
ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत, साजत्त्वक दान, इजन्िमों का दभन, बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩजा तथा
                                                                                  ू
अजननहोत्र आहद उत्तभ कभों का आचयण एवॊ वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन तथा बगवान क नाभ औय
                                                                         े
गणों का सॊकीतदन, स्वधभदऩारन क मरए कद्शसहन औय शयीय तथा इजन्िमों क सहहत अॊत्कयण
                             े                                  े
की सयरता – मे सफ दै वी सम्ऩदा को रेकय उत्ऩन्न हए ऩरुष क रऺण हैं।'
                                                       े
                                                                                                                  (बगवद् गीता् 16.1)
           जीवन भें ननबदमता आनी चाहहए। बम ऩाऩ है , ननबदमता जीवन है । जीवन भें अगय
ननबदमता आ जाम तो द्ख, ददद , शोक, चचन्ताएॉ दय हो जाती हैं। बम अऻानभूरक है ,
                                           ू
अववद्याभूरक है औय ननबदमता ब्रह्मववद्याभूरक हैं। जो ऩाऩी होता है , अनत ऩरयग्रही होता है वह
बमबीत यहता है । जो ननष्ऩाऩ है , ऩरयग्रहयहहत है अथवा जजसक जीवन भें सत्त्वगण की प्रधानता
                                                        े
है वह ननबदम यहता है ।
           जजसक जीवन भें दै वी रऺण हैं वह महाॉ बी सखी यहता है औय ऩयरोक बी उसक मरए
               े                                                             े
सखभम हो जाता है । जजसक जीवन भें दै वी रऺण की कभी है वह महाॉ बी द्खी यहता है औय
                      े
ऩयरोक भें बी द्ख ऩाता यहता है । जीवन भें अगय सख, चैन, आयाभ, अभन-चभन चाहहए तो
'अभन होना ऩडेगा। अभन भाना भन क सॊकल्ऩ-ववकल्ऩ कभ हों। अभनी बाव को प्राद्ऱ हो तो
                              े
जीवन भें चभन फढ़ता है ।
           भनष्म की वास्तववक अॊतयात्भा इतनी भहान ् है कक जजसका वणदन कयते वेद बगवान बी
'नेनत.... नेनत.....' ऩकाय दे ते हैं। भानव का वास्तववक तत्त्व, वास्तववक स्वरूऩ ऐसा भहान ् है
रेककन बम ने, स्वाथद ने, यजो-तभोगण क प्रबाव ने उसे दीन-हीन फना हदमा है ।
                                   े
           द्ख भनष्म का स्वबाव नहीॊ है इसमरए वह द्ख नहीॊ चाहता है । सख भनष्म का
स्वबाव है इसमरए वह सख चाहता है । जैसे, भॉह भें दाॉत यहना स्वाबाववक है तो कबी ऐसा नहीॊ
होता कक दाॉत ननकारकय पक दॉ । जफ तक दाॉत तन्दरुस्त यहते हैं तफ तक उन्हें पकने की
                      ें   ू                                             ें
इच्छा नहीॊ होती। बोजन कयते वक्त कछ अन्न का कण, सब्जी का नतनका दाॉतों भें पस जाता है
                                                                          ॉ
तो रूरी (जजह्वा) फाय-फाय वहाॉ रटका कयती है । जफ तक वह कचया ननकरा नहीॊ जाता तफ तक
चैन नहीॊ रेती। क्मोंकक दाॉतों भें वह कचया यहना स्वाबाववक नहीॊ है ।
       ऐसे ही सख तम्हाये जीवन भें आता है तो कोई हजद नहीॊ है रेककन द्ख आता है तो उसे
ननकारने क मरए तभ तत्ऩय हो जाते हो। दाॉतों भें नतनका यहना अस्वाबाववक रगता है वैसे
         े
रृदम भें द्ख यहना तम्हें अस्वाबाववक रगता है । द्ख होता है यजो-तभोगण की प्रधानता से।
       बगवान कहते हैं कक बम का सवदथा अबाव कय दें । जीवन भें बम न आवे। ननबदम यहें ।
ननबदम वही हो सकता है जो दसयों को बमबीत न कयें । ननबदम वही यह सकता है जो ननष्ऩाऩ
                         ू
होने की तत्ऩय हो जाम। जो ववरासयहहत हो जामगा वह ननबदम हो जामगा।
       ननबदमता ऐसा तत्त्व है कक उससे ऩयभात्भ-तत्त्व भें ऩहॉ चने की शडक्त आती है । ककसी को
रगेगा कक 'फडे-फडे डाक रोग, गन्डा तत्त्व ननबदम होते हैं....' नहीॊ नहीॊ..... ऩाऩी कबी ननबदम नहीॊ
                     ू
हो सकता। गन्डे रोग तो कामयों क आगे योफ भायते हैं। जो रोग भचगदमाॉ खाकय भहकपर कयते
                              े
हैं, दारू ऩीकय नशे भें चय होते हैं , नशे भें आकय सीधे-सादे रोगों को डाॉटते हैं तो ऐसी डाॉट से
                        ू
रोग घफया जाते हैं। रोगों की घफयाहट का पामदा गन्डे रोग उठाते हैं। वास्तव भें चॊफर की
घाटी का हो चाहे उसक फाऩ हो रेककन जजसभें सत्त्वगण नहीॊ है अथवा जो आत्भऻानी नहीॊ है
वह ननबदम नहीॊ हो सकता। ननबदम वही आदभी होगा जो सत्त्वगणी हो। फाकी क ननबदम हदखते
                                                                  े
हए रोग डाभेच होते हैं, ऩाऩी औय ऩाभय होते हैं। बमबीत आदभी दसये को बमबीत कयता है ।
                                                          ू
डयऩोक ही दसये को डयाता है ।
          ू
       जो ऩूया ननबदम होता है वह दसयों को ननबदम नायामण तत्त्व भें रे जाता है । जो डय यहा है
                                 ू
वह डयऩोक है । डाभेच औय गॊडा स्वबाव का आदभी दसयों का शोषण कयता है । ननबीक दसयों का
                                            ू                             ू
शोषण नहीॊ कयता, ऩोषण कयता है । अत् जीवन भें ननबदमता रानी चाहहए।
       फॊगार भें हगरी जजरे क दे ये गाॉव भें खदीयाभ नाभ क व्मडक्त यहते थे। गाॉव क जल्भी
                            े                           े                       े
जभीॊदाय ने उन्हें अऩने भकद्दभें भें झठी गवाही दे ने क मरए दभ भाया। उन्हें डयाते हए वह फोरा्
                                     ू               े
       "याजा क आगे भेये ऩऺ भॊ गवाही दे दो। याजा तभ ऩय ववद्वास कयें गे औय भेया काभ फन
              े
जामेगा। अगय तभ भेये ऩऺ भें नहीॊ फोरे तो जानते हो, भैं कौन हूॉ? भैंने कइमों क घयों को
                                                                            े
फयफाद कय हदमा है । तम्हाया बी वही हार होगा। दे ये गाॉव भें यहना असॊबव हो जाएगा।"
       खदीयाभ ने ननबदमता से जवाफ दे हदमा् "गाॉव भें यहना असॊबव हो जामे तो बरे हो जाम
रेककन भैं झठी गवाही हयचगज नहीॊ दॉ गा। भैं तो जो सत्म है वही फोर दॉ गा।"
           ू                      ू                                ू
       उस दद्श ने खदीयाभ को ऩये शान कयना शरु कय हदमा। खदीयाभ फेचाये सीधे सादे
प्राभाणणक इन्सान थे। वे गाॉव छोडकय चरे गमे। कई बफघा, जभीन, गाम-बैंस, घय-फाय की हानन
हई कपय बी सत्म ऩय खदीयाभ अडडग यहे ।
रोगों की नजयों भें खदीयाभ को हानन हई होगी थोडी-फहत रेककन सत्म की गवाही दे ने भें
अडडग यहने से खदीयाभ ईद्वय को, ऩयभात्भा को स्वीकाय हो गमे। गाॉव छोडना ऩडा, जभीन
छोडनी ऩडी, ननबीक यहकय सत्म क ऩऺ भें यहे , झठी गवाही नहीॊ दी ऐसे सज्जन को दद्श ने
                            े              ू
फाह्य हानन ऩहॉ चा दी रेककन ऐसी फाह्य हानन ऩहॉ चने ऩय बी बक्त का कबी कछ नहीॊ बफगडता मह
मसद्ध कयने क मरमे बगवान ने उन्हीॊ दे हाती आदभी खदीयाभ क घय एक भहान ् आत्भा को
            े                                          े
अवतरयत ककमा। वे भहान ् आत्भा श्री याभकृष्ण ऩयभहॊ स होकय प्रमसद्ध हए। उनकी कृऩा ऩाकय
वववेकानन्द ववद्वववख्मात हए। धन्म है उस दे हाती खदीयाभ की सच्चाई औय सत्म ननद्षा।
       जीवन भें ननबदमता आनी चाहहए। ऩाऩ क साभने, अनाचाय क साभने कबी फोरना ऩडे तो
                                        े               े
फोर दे ना चाहहए। सभाज भें रोग डयऩोक होकय गण्डा तत्त्वों को ऩोसते यहते हैं औय स्वमॊ शोषे
जाते हैं। कछ अननद्श घटता हआ दे खते हैं तो उसका प्रनतकाय नहीॊ कयते। 'हभाया क्मा..... हभाया
क्मा.....? कये गा सो बये गा....।' ऐसी दफदर भनोदशा से मसकड जाते हैं। सज्जन रोग मसकड जाते
हैं, चनाव रडने वारे नेताओॊ को बी गण्डे तत्त्वों को हाथ भें यखना ऩडता है । क्मोंकक सभाज के
डयऩोक रोगों ऩय उन्हीॊ की धाकधभकी चरती है ।
       अत् अऩने जीवन भें औय साये सभाज भें अभन-चभन राना हो तो बगवान श्रीकृष्ण की
फात को आज ध्मान से सनें ।
      ननबदमता का मह भतरफ नहीॊ है कक फहू सास का अऩभान कय दे ् 'भैं ननबदम हूॉ....।'
ननबदमता का मह भतरफ नहीॊ कक छोया भाॉ-फाऩ का कहना भाने नहीॊ। ननबदमता का मह भतरफ
नहीॊ कक मशष्म गरु को कह दे कक, 'भैं ननबदम हूॉ, आऩकी फात नहीॊ भानॉूगा।' मह तो खड्डे भें
चगयने का भागद है । रोग ननबदमता का ऐसा गरत अथद रगा रेते हैं।
       हरयद्राय भें घाटवारे फाफा वेदान्ती सॊत थे। सत्सॊग भें फाय-फाय कहते कक ननबदम यहो।
उनकी एक मशष्मा ने फाफाजी की मह फात ऩकड री। वह फूढ़ी थी। हदल्री से फाफाजी क ऩास
                                                                          े
आती थी। एक हदन खट्टे आभ की ऩकौडडमाॊ फना कय फाफाजी क ऩास रे आमी। फाफाजी ने कहा्
                                                   े
"अबी भैंने दध ऩीमा है । दध क ऊऩय ऩकौडे नहीॊ खाने चाहहए।"
            ू            ू  े
       वह फोरी् फाफाजी ! "भैंने भेहनत कयक आऩक मरम फनामा है । खाओ न....।"
                                         े   े
       "भेहनत कयक फनामा है तो क्मा भैं खाकय फीभाय ऩडूॉ? नहीॊ खाना है , रे जा।"
                    े
       फाफाजी ने डाॉटते हए कहा् "क्मा भतरफ?"
      "आऩ ही ने तो कहा है कक ननबदम यहो। भैं ननबदम यहूॉगी। आऩ बरे ककतना बी डाॉटो। भैं
तो णखराकय यहूॉगी।" वह भहहरा फोरी।
       गरु मशष्मा का वह सॊवाद भैं सन यहा था। भैंने सोचा् याभ.... याभ.... याभ....। भहाऩरुष
कसी ननबदमता फता यहे हैं औय भूढ़ रोग कसी ननबदमता ऩकड रेते हैं ! ननबदम फनने का भतरफ
 ै                                   ै
मह नहीॊ कक जो हभें ननबदम फनामें उनका ही ववयोध कयक अऩने औय उनक जीवन का ह्रास कयें ।
                                                 े           े
ननबदमता का भतरफ नकट्टा होना नहीॊ। ननबदमता का भतरफ भन का गराभ होना नहीॊ। ननबदमता
का भतरफ है जजसभें बगवद् गीता क भताबफक दै वी सम्ऩदा क छब्फीस रऺण बय जामें।
                              े                     े
                                     ननबदम जऩे सकर बव मभटे ।
                                       सॊत कृऩा ते प्राणी छटे ।।
                                                           ू
       ऐसे ननबदम नायामण तत्त्व भें जगने को ननबदमता चाहहए। इसमरमे अॊत्कयण भें बम का
सवदथा अबाव होना चाहहए।
       अॊत्कयण ननभदर होगा तो ननबदमता आमेगी। ऻानमोग भें जस्थनत होगी, आत्भाकाय ववत्त
                                                                              ृ
फनाने भें रूचच होगी वह आदभी ननबदम यहे गा। ईद्वय भें दृढ़ ववद्वास होगा तो ननबदमता आमेगी।
       जीवन भें दान-ऩण्म का बी फडा भहत्त्व है । दान बक्त बी कयता है ऻानी बी कयता है ।
बक्त का दान है रूऩमा-ऩैसा, चीज-वस्तएॉ, अन्न-वस्त्राहद। ऻानी का दान है ननबदमता का, ऻानी
का दान है आत्भा जागनत का।
                   ृ
       नद्वय चीजों को दान भें दे कय कोई दानी फन जाम वह बक्त है । अऩने आऩको, अऩने स्व-
स्वरूऩ को सभाजच भें फाॉटकय, सफको आत्भानॊद का अभत चखानेवारे ऻानी भहादानी हो जाते
                                               ृ
हैं।
       दीन-हीन, रूरे-रॉ गडे, गयीफ रोगों को सहामता कयना मह दमा है । जो रोग ववद्रान हैं,
फवद्धभान हैं, सत्त्वगण प्रधान है । जो ऻानदान कयते कयाते हैं ऐसे रोगों की सेवा भें जो चीजें
अवऩदत की जाती हैं वह दान कहा जाता है । बगवान क भागद चरने वारे रोगों का सहाम रूऩ
                                              े
होना मह दान है । इतय रोगों को सहाम रूऩ होना मह दमा है । दमा धभद का भूर है । दान
सत्त्वगण फढ़ाता है । जीवन भें ननबदमता राता है ।
       ऻानमोग भें ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत कयने क मरए जीवन भें दान औय इजन्िम दभन होना
                                            े
चाहहए। इजन्िम दभन का भतरफ है जजतना आवश्मक हो उतना ही इजन्िमों को आहाय दे ना।
आॉख को जजतना जरूयी हो उतना ही दृश्म हदखाओ, व्मथद भें इधय-उधय न बटकाओ। कान को
जो जरूयी हो वह सनाओ। व्मथद चचाद, ककसी की ननन्दा सनाकय कान की श्रवण-शडक्त का
अऩव्मम न कयो। फोरने-चखने भें जजह्वा का उऩमोग जजतना जरूयी हो उतना कयो। व्मथद भें
इजन्िमों की शडक्त को फाहय ऺीण भत कयो। इजन्िमों की शडक्त ऺीण कयने से जीवन की सूक्ष्भ
शडक्त का ह्रास होता है । परत् आदभी फहहभख यहता है , चचत्त भें शाॊनत नहीॊ यहती औय आत्भा
                                       द
भें जस्थनत कयने का साभर्थमद ऺीण हो जाता है ।
       अगय जीवन को हदव्म फनाना है , ऩयभ तेजस्वी फनाना है , सफ द्खों से सदा क मरए दय
                                                                            े     ू
होकय ऩयभ सख-स्वरूऩ आत्भा का साऺात्काय कयना है तो सूक्ष्भ शडक्तमों की जरूयत ऩडती है ।
सूक्ष्भ शडक्तमाॉ इजन्िमों क सॊमभ से ववकमसत होती हैं , सयक्षऺत यहती हैं। इजन्िमों का असॊमभ
                           े
कयने से सूक्ष्भ शडक्तमाॉ ऺीण हो जाती हैं। योजी-योटी क मरए तडपनेवारे भजदय भें औय मोगी
                                                     े                 ू
ऩरुष भें इतना ही पक है । साभान्म आदभी ने अऩनी सूक्ष्भ शडक्तमों का जतन नहीॊ ककमा जफकक
                   द
मोगी ऩरुष शडक्तमों का सॊमभ कयक साभर्थमदवान फन जाते हैं।
                              े
       चरते-चरते फात कयते हैं तो हदभाग की शडक्त कभजोय हो जाती है । न खाने जैसा खा
रेते हैं, न बोगने जैसा बोग रेते हैं। वे न सॊसाय का सख ठीक से बोग जाते हैं न आत्भा का
सख रे ऩाते हैं। दस-फीस रूऩमे की राचायी भें हदनबय भेहनत कयते हैं। खाने-ऩीने का ढॊ ग नहीॊ
है , बोगने का ढॊ ग नहीॊ है तो फेचाये योगी यहते हैं।
       मोगीऩरुष इहरोक का ही नहीॊ, ब्रह्मरोक तक का सख बी बोगते हैं औय भडक्तराब बी
रेते हैं। वे जानते हैं कक सक्ष्भ शडक्तमों का सदऩमोग कसे ककमा जाम।
                           ू                         ै
       सक्ष्भ
        ू       शडक्तमों का सॊयऺण औय सॊवधदन कयने क मरए अऩने आहाय-ववहाय भें सजग
                                                  े
यहना जरूयी है । दोऩहय को बय ऩेट बोजन ककमा हो तो शाभ को जया उऩवास जैसा कय रेना
चाहहए। हदनबय बखे यहे तो याबत्र को सोने क दो घण्टे ऩहरे अच्छी तयह बोजन कय रेना
              ू                         े
चाहहए। बोजन क फीच भें ऩानी ऩीना ऩवद्शदामक है । अजीणद भें ऩानी औषध है । बूखे ऩेट ऩानी
             े
ऩीना ववष हो जाता है । खफ बूख रगी है औय चगरास दो चगरास ऩानी ऩी मरमा तो शयीय
                       ू
दफरा-ऩतरा औय कभजोय हो जामगा।
       क्मा खाना, कफ खाना, ककतना खाना, कसे खाना..... क्मा फोरना, कफ फोरना, ककतना
                                        ै
फोरना, कसे फोरना, ककससे फोरना.... क्मा सनना, कफ सनना, ककतना सनना, ककसका
        ै
सनना.... इस प्रकाय हभाये स्थर-सूक्ष्भ सफ आहाय भें वववेक यखना चाहहए। बोरे बारे रोग
                            ू
फेचाये जजस ककसी की जैसी तैसी फातें सन रेते हैं , ननन्दा क बोग फन जाते हैं।
                                                         े
       'भैं क्मा करू.....? वह आदभी भेये ऩास आमा....। उसने ननन्दा सनाई तो भैंने सन री।'
                   ॉ
       अये बाई ! तूने ननन्दा सन री? ननन्दकों की ऩॊडक्त भें शामभर हो गमा?
                               कफीया ननन्दक ना मभरो ऩाऩी मभरो हजाय।
                             एक ननन्दक क भाथे ऩय राख ऩाऩीन को बाय।।
                                        े
       इस जीवन भें अऩना ही कभद कट जाम तो बी कापी है । दसयों की ननन्दा सनकय क्मों
                                                       ू
दसयों क ऩाऩ अऩने मसय ऩय रेना? जजसकी ननन्दा कयते हैं , सनते हॊ वह तो आइस्क्रीभ खाता
 ू     े
होगा औय हभ उसकी ननन्दा सनकय अशाॊनत क्मों भोर रें । कफ सनना, क्मा सनना, ककसका
सनना औय उस ऩय ककतना ववद्वास यखना इसभें बी अक्र चाहहए। अक्र फढ़ाने क मरए बी
                                                                   े
अक्र चाहहए। तऩ फढ़ाने क मरए बी तऩ चाहहए। धन फढ़ाने क मरए बी धन चाहहए।
                       े                            े
जीवनदाता से मभरने क बी जीवन जीने का सच्चा ढॊ ग चाहहए। जीवन भें दै वी सॊऩदा होनी
                   े
चाहहए। दै वी सॊऩदा क कछ रऺण फताते हए बगवान श्रीकृष्ण मह द्ऴोक कह यहे हैं-
                    े
       'बम का सवदथा अबाव, अॊत्कयण की ऩूणद ननभदरता, तत्त्वऻान क मरए ध्मानमोग भें
                                                              े
ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत औय साजत्त्वक दान, इजन्िमों का दभन, बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩजा
                                                                                    ू
तथा अजननहोत्राहद उत्तभ कभों का आचयण एवॊ वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन तथा बगवान क नाभ
                                                                            े
औय गणों का कीतदन, स्वधभद-ऩारन क मरए कद्शसहन औय शयीय व इजन्िमों क सहहत,
                               े                                े
अॊत्कयण की सयरता मे सफ दै वी सम्ऩदावान ऩरुष क रऺण हैं।'
                                             े
          बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩूजा से तऩ-तेज फढ़ता है । बगवान मा ककसी ब्रह्मवेत्ता
सदगरु क चचत्र क सभऺ जफ भौका मभरे , फैठ जाओ। शयीय को जस्थय कयक उन्हें एकटक
       े       े                                             े
ननहायते जाओ। नेत्र की जस्थयता क द्राया भन को जस्थय कयने का अभ्मास कयो। ऐसे तऩ होता
                               े
है । तऩ से तेज फढ़ता है । इजन्िम-सॊमभ फढ़ता है । जीवन की शडक्तमों भें ववद्ध होती है , फवद्ध भें
                                                                       ृ
सक्ष्भता आती है । सभस्माएॉ सरझाने की प्रेयणा मभरती है । व्मवहाय भें बी आदभी सपर होता
 ू
है , ऩयभाथद भें बी आगे फढ़ता है ।
          जीवन भें ऐसा अभ्मास है नहीॊ, इजन्िम-सॊमभ है नहीॊ औय ठाकयजी क भॊहदय भें जाता है ,
                                                                      े
घॊट फजाता है । कपय बी योता यहता है । सद ऩय रूऩमे राता है , आचथदक फोझ भें दफता चरा जाता
                                      ू
है । मशकामत कयता यहता है कक, 'मह दननमाॉ फहत खयाफ है । भैं तो आऩघात कयक भय जाऊ तो
                                                                      े      ॉ
अच्छा।'
                               अये , डफा दे जो जहाजों को उसे तूपान कहते हैं।
                               जो तूपानों से टक्कय रे उसे इन्सान कहते हैं ।।
          व्मवहाय जगत क तपान तो क्मा, भौत का तूपान आमे उससे बी टक्कय रेने का
                       े ू
साभर्थमद आ जाम इसका नाभ है साऺात्काय। इसका नाभ है भनष्म जीवन की सपरता।
          जया जया-सी फात भें डय यहे हैं? जया जया-सी फात भें मसकड यहे हैं? हो होकय क्मा होगा?
जो बी हो गमा वह दे ख मरमा। जो हो यहा है वह दे ख यहे हैं। जो होगा वह बी दे खा जामेगा।
भॉूछ ऩय ताव दे ते हए.... बगवान को प्माय कयते हए तभ आगे फढ़ते जाओ।
          ननबदम..... ननबदम.... ननबदम.... ननबदम..... ननबदम.....।
          अये , बगवान का दास होकय, गरु का सेवक होकय, भनष्म का तन ऩाकय ऩाऩी ऩाभयों से,
भचगदमाॉ खानेवारे कफाफी-शयाफी रोगों से डय यहे हो? वे अऩने आऩ अऩने ऩाऩों भें डूफ यहे हैं, भय
यहे हैं। भहाबायत भें अजन जैसा आदभी दमोधन से डय यहा है । सोच यहा है कक ऐसे-ऐसे रोग
                       द
उसक ऩऺ भें हैं।
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          श्रीकृष्ण ने अजन से कहा कक्
                         द
                                 क्रैब्मॊ भा स्भ गभ् ऩाथद नैतत्त्वय्मऩऩद्यते।
                                    ऺिॊ रृदमदौफदल्मॊ त्मक्त्वोवत्तद्ष ऩयॊ तऩ।।
          'हे अजन ! नऩॊसकता को भत प्राद्ऱ हो। तेये मरमे मह उचचत नहीॊ है । हे ऩयॊ तऩ ! रृदम
                द
की तच्छ दफदरता को त्मागकय मद्ध क मरए खडा हो जा।'
                                े
                                                                                      (गीता् 2.3)
          सभाज भें सज्जन रोगों की सॊख्मा ज्मादा है रेककन सज्जन रो सज्जनता-सज्जनता भें
मसकड जाते हैं औय दजदन रोग मसय ऩय सवाय हो जाते हैं।
तभ डयो भत। घफडाओ भत। अबमॊ सत्त्वसॊशवद्ध.... ननबदम फनो। ववकट ऩरयजस्थनतमों भें
भागद खोजो। भागद अगय नहीॊ मभरता हो तो बगवान अथवा सदगरु क चचत्र क सभऺ फैठ जाओ,
                                                       े       े
ॐकाय अथवा स्वजस्तक क चचत्र सभऺ फैठ जाओ। एकटक ननहायो.... ननहायो.... ननहायो....। सफह
                    े
भें समोदम से ऩहर उठ जाओ, स्नानाहद कयक ऩाॉच-सात प्राणामाभ कयो। शयीय की जस्थयता,
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प्राण औय भन की जस्थयता कयो। कपय 'प्रोब्रेभ का सोल्मूशन' खोजो। मूॉ चटकी फजाते मभर
जामगा।
      जजतने तभ डयते हो, जजतने जजतने तभ घफयाते हो, जजतने जजतने तभ ववनम्र होकय
मसकडते हो उतना मे गण्डा तत्त्ववारे सभझते हैं कक हभ फडे हैं औय मे हभसे छोटे हैं। तभ
जजतना बीतय से ननबीक होकय जीते हो उतना उन रोगों क आगे सपर होते हो।
                                                े
                               हभें मभटा सक मे जभाने भें दभ नहीॊ।
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                               हभसे जभाना है जभाने से हभ नहीॊ।।
      हभाया चैतन्म-स्वरूऩ ईद्वय हभाये साथ है , हभ ईभानदायी से जीते हैं, दसयों का हभ अहहत
                                                                         ू
नहीॊ कयते, अहहत नहीॊ चाहते कपय हभाया फया कसे हो सकता है? फया होता हआ हदखे तो डयो
                                          ै
भत। सायी दननमा उल्टी होकय टॉ ग जाम कपय बी तभ सच्चाई भें अडडग यहोगे तो ववजम तम्हायी
ही होगी।
      ताभसी तत्त्वों से, आसयी तत्त्वों से कबी डयना नहीॊ चाहहए। बीतय से सत्त्वगण औय
ननबदमता फढ़ाकय सभाज का अभन-चभन फढ़ाने क मरए मत्न कयना चाहहए।
                                       े
      'हभाया क्मा.....? जो कये गा सो बये गा...' ऐसी कामयता प्राम् बगतडों भें आ जाती है । ऐसे
रोग बक्त नहीॊ कहे जाते, बगतडे कहे जाते हैं। बक्त तो वह है जो सॊसाय भें यहते हए, भामा भें
यहते हए भामा से ऩाय यहे ।
                            बगत जगत को ठगत है बगत को ठगे न कोई।
                            एक फाय जो बगत ठगे अखण्ड मऻ पर होई।।
      बक्त उसका नाभ नहीॊ जो बागता यहे । बक्त उसका नाभ नहीॊ जो कामय हो जाम। बक्त
उसका नाभ नहीॊ जो भाय खाता यहे ।
      जजसस ने कहा था् 'तम्हें कोई एक थप्ऩड भाय दे तो दसया गार धय दे ना, क्मोंकक उसकी
                                                      ू
इच्छा ऩयी हो। उसभें बी बगवान है ।'
       ू
      जजसस ने मह कहा, ठीक है । इसमरए कहा था कक कोई आवेश भें आ गमा हो तो तभ
थोडी सहन शडक्त जटा रो, शामद उसका द्रे ष मभट जाम, रृदम का ऩरयवतदन हो जामे।
      जजसस का एक प्माया मशष्म था। ककसी गॊडा तत्त्व ने उसका तभाचा ठोक हदमा। कपय
ऩूछा् "दसया गार कहाॉ है ?" मशष्म ने दसया गार धय हदमा। उस दद्श ने महाॉ बी तभाचा जभा
        ू                            ू
हदमा। कपय बी उस असय को सॊतोष नहीॊ हआ। उसने कहा्
      "अफ तीसया कहाॉ यख?"
                       ॉू
जजसस क मशष्म ने उस दद्श क गार ऩय जोयदाय तभाचा जड हदमा औय फोरा् "तीसया
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गार मह है ।"
       "तम्हाये गरु ने तो भना ककमा था। उनका उऩदे श नहीॊ भानते?"
       "गरु ने इसमरए भना ककमा था कक अहहॊसा की सयऺा हो। हहॊसा न हो। रेककन तम्हें दो
फाय भौका मभरा कपय बी तम्हाया हहॊसक स्वबाव नहीॊ मभटा। तभ असय हो। सफक मसखामे बफना
सीधे नहीॊ होओगे।"
       अनशासन क बफना आसयी तत्त्व ननमॊत्रण भें नहीॊ यहते। यावण औय दमोधन को ऐसे ही
               े
छोड दे ते तो आज हभ रोगों का सभाज शामद इस अवस्था भें न जी ऩाता। नैनतक औय
साभाजजक अन्धाधधी हो जाती। जफ-जफ सभाज भें ऐसा वैसा हो जाम तफ साजत्त्वक रोगों को
              ॊू
सतक होकय, हहम्भतवान फनकय तेजस्वी जीवन बफताने का मत्न कयना चाहहए। आऩ ननबदम यहे ,
   द
दसयों को ननबदम कये । सत्त्वगण की ववद्ध कये । जीवन भें दै वी फर चाहहए, आध्माजत्भक फर
 ू                                ृ
चाहहए। कवर व्मथद ववराऩ नहीॊ कयना चाहहए कक, 'हे भेये बगवान ! हे भेये प्रब " भेयी यऺा
        े
कयो... यऺा कयो...।'
       भैंने सनी है एक कहानी।
       गराभ नफीय ने योजे यखे। थोडा फहत बगत था औय ठगतों क साथ दोस्थी बी थी।
                                                        े
उसका धन्धा चोयी कयने का था। योजे क हदनों भें उसने चोयी छोड यखी थी। मभत्रों ने सभझामा्
                                  े
"ऐसा बगतडा फनेगा तो काभ कसे चरेगा? पराने ककसान क वहाॉ फहढ़मा फैर आमे हैं। जा,
                         ै                      े
खोर क रे आ।"
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       गराभ नफीय फैर चयाने चरा गमा। नमा मसक्खड था। फैर खोरकय रे जाने रगा तो फैर
क गरे भें फॉधी हई घॊहटमाॉ फजने रगीॊ। रोग जग गमे औय चोय का ऩीछा ककमा। गराभ नफीय
 े
आगे चरा तो ऩीछे हल्रा गल्रा सनाई दे ने रगा। उसने डयक भाये खदा से प्राथदना की् "हे
                                                    े
खदातारा ! भैंने योजा यखा है , भैं कभजोय हो गमा हूॉ। तू भझे सहाम कय। भेये ऊऩय यहे भत कय।
दफाया मह धन्धा नहीॊ करूगा। इस फाय फचा रे।"
                      ॉ
       उसक रृदमाकाश भें आकाशवाणी हई, प्रेयणा मभरी कक, "फैरों को छोडकय बाग जा तो
          े
फच जामगा। दफाया चोयी भत कयना।"
     "भामरक ! भैं योजा यख यहा हूॉ। भझभें दौडने की शडक्त नहीॊ है । दमा कयक आऩ ही भझे
                                                                         े
फचाओ।"
       "अच्छा, तू दौड नहीॊ सकता है तो जल्दी से चरकय साभनेवारी झाडी भें छऩ जा। फैरों
को छोड दे ।"
       "भझभें इतनी बी शडक्त नहीॊ है । तू यहे भत कय.... तू यहे भत कय....." गराभ नफीय इस
प्रकाय चगडचगडाता यहा। इतने भें रोगों ने आकय उसे ऩकड मरमा्
"भूखद ! फोरता है 'यहे भत कय... यहे भत कय....?' भार चयाते सभम यहे भत नही की औय
अफ ऩकडा गमा तो यहे भत कय.. यहे भत कय...?" रोगों ने फयाफय भेथीऩाक चखामा, यात बय
कोठयी भें फन्द यखा, सफह भें ऩमरस को सौंऩ हदमा।
       गराभ नफीय अॊत्प्रेयणा की आवाज सनकय हहम्भत कयता तो फच जाता।
                                     हहम्भते भदाद तो भददे खदा।
                                   फेहहम्भत फन्दा तो फेजाय खदा।।
       जो नाहहम्भत हो जाता है उसको फचाने भें बगवान बी फेजाय हो जाते हैं , राचाय हो जाते
हैं। अऩना ऩरुषाथद जगाना चाहहए, हहम्भतवान फनना चाहहए।
                                मह कौन-सा उकदा जो हो नहीॊ सकता?
                                 तेया जी न चाहे तो हो नहीॊ सकता।
                                  छोटा-सा कीडा ऩत्थय भें घय कये....
                               इन्सान क्मा हदरे हदरफय भें घय न कये?
       तभभें ईद्वय की अथाह शडक्त छऩी है । ऩयभात्भा का अनऩभ फर छऩा है । तभ चाहो तो
ऐसी ऊचाई ऩय ऩहॉ च सकते हो कक तम्हाया दीदाय कयक रोग अऩना बानम फना रें । तभ ब्रह्मवेत्ता
     ॉ                                        े
फन सकते हो ऐसा तत्त्व तभभें छऩा है । रेककन अबागे ववषमों ने, तम्हाये नकायात्भक ववचायों ने,
दफदर ख्मारों ने, चगरी, ननन्दा औय मशकामत की आदतों ने, यजो औय तभोगण ने तम्हायी शडक्त
को बफखेय हदमा है । इसीमरए श्रीकृष्ण कहते हैं-
                                        अबमॊ सत्त्वसॊशवद्ध्.....।
       जीवन भें दै वी सम्ऩदा क रऺण बयो औय ननबदम फनो। जजतनी तम्हायी आध्माजत्भक
                              े
उन्ननत होगी उतनी ठीक से साभाजजक उन्ननत बी होगी। अगय आध्माजत्भक उन्ननत शून्म है तो
नैनतक उन्ननत भात्र बाषा होगी। आध्माजत्भक उन्ननत क बफना नैनतक उन्ननत नहीॊ हो सकती।
                                                 े
नैनतक उन्ननत नहीॊ होगी तो बौनतक उन्ननत हदखेगी रेककन वास्तव भें वह उन्ननत नहीॊ होगी,
जॊजीयें होगी तम्हाये मरमे। रोगों की नजयों भें फडा भकान, फडी गाडडमाॉ, फहत रूऩमे-ऩैसे हदखेंगे
रेककन तम्हाये बीतय टे न्शन ही टे न्शन होगा, भसीफतें ही भसीफतें होगी।
       आध्माजत्भक उन्ननत जजतने अनऩात भें होती है उतने अनऩात भें नैनतक फर फढ़ता है ।
जजतने अनऩात भें नैनतक फर फढ़ता है उतने अनऩात भें तभ जागनतक वस्तओॊ का ठीक
उऩमोग औय उऩबोग कय सकते हो। रोग जगत की वस्तओॊ का उऩबोग थोडे ही कयते हैं, वे तो
बोग फन जाते हैं। वस्तएॉ उन्हें बोग रेती हैं। धन की चचन्ता कयते-कयते सेठ को 'हाटद -अटै क' हो
गमा तो धन ने सेठ को बोग मरमा। क्मा खाक सेठ ने बोगा धन को? काय भें तो ड्रामवय घूभ
यहा है , सेठ तो ऩडे हैं बफस्तय भें । रड्डू तो यसोईमा उडा यहा है, सेठ तो डामबफटीज़ से ऩीडडत हैं।
बोग तो नौकय-चाकय बोग यहे हैं औय सेठ चचन्ता भें सूख यहा है ।
अऩने को सेठ, साहफ औय सखी कहरानेवारे तथा-कचथत फडे-फडे रोगों क ऩास अगय
                                                                      े
सत्त्वगण नहीॊ है तो उनकी वस्तओॊ का उऩबोग दसये रोग कयते हैं।
                                          ू
          तम्हाये जीवन भें जजतने अनऩात भें सत्त्वगण होगा उतने अनऩात भें आध्माजत्भक शडक्तमाॉ
ववकमसत होगी। जजतने अनऩात भें आध्माजत्भक शडक्तमाॉ होगी उतने अनऩात भें नैनतक फर
फढ़े गा। जजतने अनऩात भें नैनतक फर होगा उतने अनऩात भें व्मवहारयक सच्चाई होगी, चीज-
वस्तओॊ का व्मावहारयक सदऩमोग होगा। तम्हाये सॊऩक भें आनेवारों का हहत होगा। जीवन भें
                                              द
आध्माजत्भक उन्ननत नहीॊ होगी तो नैनतक फर नहीॊ आएगा। उतना ही जीवन डावाॉडोर यहे गा।
डावाॉडोर आदभी खद तो चगयता है , उसका सॊग कयने वारे बी ऩये शान होते हैं।
          इजन्िमों का दभन नहीॊ कयने से सक्ष्भ शडक्तमाॉ बफखय जाती हैं तो आध्माजत्भक उन्ननत
                                        ू
नहीॊ होती।
          वाणी का सॊमभ कयना भाने चगरी, ननन्दा नहीॊ कयना, कट बाषा न फोरना, झठ-कऩट
                                                                           ू
न कयना, मह वाणी का तऩ है । आचामद की उऩासना कयना, बगवान की उऩासना कयना, मह
भन का तऩ है । शयीय को गरत जगह ऩय न जाने दे ना, व्रत-उऩवास आहद कयना मह शायीरयक
तऩ है ।
          व्रत-उऩवास की भहहभा सनकय कछ भहहराएॉ रम्फे-रम्फे व्रत यखने रग जाती है । जो
सहाचगन जस्त्रमाॉ है , जजनका ऩनत हमात है ऐसी भहहराओॊ को अचधक भात्रा भें व्रत उऩवास नहीॊ
कयना चाहहए। सहाचगन अगय अचधक उऩवास कये गी तो ऩनत की आम ऺीण होगी। सद्ऱाह भें ,
ऩन्िह हदन भें एक उऩवास शयीय क मरए बी ठीक है औय व्रत क मरए बी ठीक है ।
                             े                       े
          कछ रोग योज-योज ऩेट भें ठूॉस-ठूॉसकय खाते हैं, अजीणद फना रेते हैं औय कछ रोग खफ
                                                                                     ू
बूखाभयी कयते हैं, सोचते हैं कक भझे जल्दी बगवान मभर जाम। नहीॊ, व्मवहाय भें थोडा दऺ
फनने की जरूयत है । कफ खाना, क्मा खाना, कसे खाना, कफ व्रत यखना, कसे यखना मह ठीक
                                        ै                       ै
से सभझकय आदभी अगय तऩस्वी जीवन बफताता है तो उसका फर, तेज फढ़ता है ।
          प्राणामाभ से भन एकाग्र होता है । प्राणामाभ से प्राण की रयधभ अगय ठीक हो जाम तो
शयीय भें वात औय कप ननमॊबत्रत हो जाते हैं। कपय फाहय की दवाइमों की ओय 'भेननेट थेयाऩी'
आहद की जरूयत नहीॊ ऩडती है । इन्जैक्शन की सइमाॉ बोंकाने की बी जरूयत नहीॊ ऩडती है ।
कवर अऩने प्राणों की गनत को ठीक से सभझ रो तो कापी झॊझटो से छट्टी हो जामगी।
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          जऩ कयने से एक प्रकाय का आबाभण्डर फनता है , सूक्ष्भ तेज फनता है । उससे शयीय भें
स्पनतद आती है , भन-फवद्ध भें फर फढ़ता है । जऩ कयते सभम अगय आसन ऩय नहीॊ फैठोगे तो
   ू
शयीय की ववद्यत ् शडक्त को अथींग मभर जामगा। आबा, तेज, ओज, फर की सयऺा नही होगी।
अत् आसन ऩय फैठकय प्राणामाभ, जऩ-तऩ, ध्मान-बजन कयना चाहहए। शयीय तन्दरुस्त यहे गा,
भन एकाग्र फनेगा, फवद्ध तेजस्वी होगी, जीवन भें सत्त्वगण की ववद्ध होगी।
                                                           ृ
                                       सत्त्वात ् सॊजामते ऻानभ ्।
सत्त्वगण की ववद्ध से ऻान उत्ऩन्न होता है ।
                    ृ
       आदभी जजतना बी ऩाभय हो, उसभें ककतने बी दोष हों, अगय थोडे ही हदन इन साधनों
का अवरॊफन रे तो उसक दोष अऩने आऩ ननकरने रगें गे।
                   े
       सूक्ष्भ शडक्तमों से स्थर शडक्तमाॉ सॊचामरत होती हैं। भोटयकाय भें ऩेट्रोर से इॊजजन क बीतय
                              ू                                                          े
थोडी-सी आग जरती है । इससे इतनी फडी गाडी बागती है । ट्रे न क फोइरय भें थोडे गेरन ऩानी
                                                           े
होता है , उफरता है , वाष्ऩ फनता है , उससे हजायों भन, राखों टन वजन को रेकय इॊजजन को
बागता है ।
       ऐसे ही भन जफ ध्मान-बजन कयक सक्ष्भ होता है तो राखों भसीफतों को काटकय अऩने
                                 े ू
बगवत्प्राद्ऱरूऩी भोऺ क द्राय ऩय ऩहॉ च जाता है । फाहय की गाडी तो वाष्ऩ क फर से तम्हें
                      े                                                े
अभदावाद से हदल्री ऩहॉ चाती है जफकक तम्हायी हदर की गाडी अगय सत्त्वगण फढ़े तो हदरफय
तक ऩयभात्भा तक, ऩहॉ चा दे ती है ।
       भनष्म को कबी बी हताश नहीॊ होना चाहहए। आध्माजत्भक याह को योशन कयने वारे
याहफय मभरे हैं, साधना का उत्तभ वातावयण मभर यहा है , इन फातों को आत्भसात ् कयने क मरए
                                                                                े
श्रद्धा-बडक्त औय फवद्ध बी है तो जजतना हो सक, अचधक से अचधक चर रेना चाहहए। ककसी बी
                                           े
द्खों से, ककसी बी ऩरयजस्थनतमों से रुकना नहीॊ चाहहए।
                           गभ की अन्धेयी यात भें हदर को न फेकयाय कय।
                             सफह जरूय आमेगी सफह का इन्तजाय कय।।
       घफयाहट से तम्हायी मोनमता ऺीण हो जाती है । जफ डय आमे तो सभझो मह ऩाऩ का
द्योतक है । ऩाऩ की उऩज डय है । अववद्या की उऩज डय है । अऻान की उऩज डय है । ननबदमता ऻान
की उऩज है । ननबदमता आती है इजन्िमों का सॊमभ कयने से, आत्भववचाय कयने से। 'भैं दे ह नहीॊ
हूॉ.... भैं अभय आत्भा हूॉ। एक फभ ही नहीॊ, ववद्वबय क सफ फभ मभरकय बी शयीय क ऊऩय चगय
                                                   े                     े
ऩडें तो बी शयीय क बीतय का जो आत्भचैतन्म है उसका फार फाॉका बी नहीॊ होता। वह चैतन्म
                   े
आत्भा भैं हूॉ। सोऽहभ ्.... इस प्रकाय आत्भा भें जागने का अभ्मास कयो। 'सोऽहभ ् का अजऩाजाऩ
कयो। अऩने सोऽहभ ् स्वबाव भें हटको।
       ववकायों से ज्मों-ज्मों फचते जाओगे त्मों-त्मों आध्माजत्भक उन्ननत होगी, नैनतक फर
फढ़े गा। तभ सॊसाय का सदऩमोग कय ऩाओगे। अबी सॊसाय का सदऩमोग नहीॊ होता। सयकनेवारी
चीजों का सदऩमोग नहीॊ होता, उनक दरुऩमोग होता है । साथ ही साथ हभाये भन-इजन्िमों का बी
दरुऩमोग हो जाता है , हभाये जीवन का बी दरुऩमोग हो जाता है । कहाॉ तो दरदब भनष्म
जन्भ..... दे वता रोग बी बायत भें भनष्म जन्भ रेने क मरए रारानमत यहते हैं... वह भनष्म
                                                  े
जन्भ ऩाकय आदभी दो योटी क मरए इधय उधय धक्का खा यहा है । दो ऩैसे क भकान क मरए
                        े                                       े      े
चगडचगडा यहा है ! चाय ऩैसे की रोन रेने क मरए राईन भें खडा है ! साहफों को औय एजेन्टों
                                       े
को सराभ कयता है , मसकडता यहता है । जजतना मसकडता है उतना ज्मादा धक्क खाता है । ज्मादा
                                                                   े
कभीशन दे ना ऩडता है । तफ कहीॊ रोन ऩास होता है । मह क्मा भनष्म का दबादनम है? भानव
जीवन जीने का ढॊ ग ही हभ रोगों ने खो हदमा है ।
       ववरामसता फढ़ गई है । ऐश-आयाभी जीवन (Luxurious Life) जीकय सखी यहना चाहते हैं
वे रोग ज्मादा द्खी हैं फेचाये । जो भ्रद्शाचाय (Corruption) कयक सखी यहना चाहते हैं उनको अऩने
                                                              े
फेटों क द्राया, फेहटमों क द्राया औय कोई प्रोब्रेभ क द्राया चचत्त भें अशाॊनत की आग जरती यहती
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है ।
                             अगय आयाभ चाहे तू दे आयाभ खरकत को।
                          सताकय गैय रोगों को मभरेगा कफ अभन तझको।।
       दसयों का फाह्य ठाठ-ठठाया दे खकय अऩने शाॊनतभम आनन्दभम, तऩस्वी औय त्मागी जीवन
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को धधरा भत कयो। सख-वैबव की वस्तएॉ ऩाकय जो अऩने को सखी सभझकय उन जैसे होने क
    ॉ                                                                     े
मरए जो रोग नीनत छोडकय दयाचाय क तयप रगते हैं उन ऩय हभें दगनी दमा आती है । मे रोग
                              े
जीवन जीने का ढॊ ग ही नहीॊ सभझते। फहढ़मा भकान हो, फहढ़मा गाडी हो, फहढ़मा मह हो, फहढ़मा
वह हो तो आदभी सखी हो जाम? अगय ऐसा होता तो यावण ऩूया सखी हो जाता। दमोधन ऩूया
सखी हो जाता। नहीॊ, नहीॊ, ऐसा नहीॊ है ।
                        शक्कय णखरा शक्कय मभरे टक्कय णखरा टक्कय मभरे।
                            नेकी का फदरा नेक है फदों को फदी दे ख रे।
                        दननमाॉ ने जान इसको मभमाॉ सागय की मह भझदाय है ।
                               औयों का फेडा ऩाय तो तेया फेडा ऩाय है ।।
                        करजग नहीॊ कयजग है मह इस हाथ दे उस हाथ रे।।
       भैंने सनी है एक सत्म घटना।
       अभदावाद, शाहीफाग भें डपनारा क ऩास हाईकोटद क एक जज सफह भें दातन कयते हए
                                    े             े
घूभने ननकरे थे। नदी क तयप दो यॊ गरूट जवान आऩस भें हॉ सी-भजाक कय यहे थे। एक ने
                     े
मसगये ट सरगाने क मरए जज से भाचचस भाॉगा। जज ने इशाये से इन्काय कय हदमा। थोडी दे य
                े
इधय-उधय टहरकय जज हवा खाने क मरए कहीॊ फैठ गमे। दे ख यहे थे उन दोनों को। इतने भें वे
                           े
यॊ गरूट हॉसी-भजाक, तू-भैं-तू-भैं कयते हए रड ऩडे। एक ने याभऩयी चक्क ननकारकय दसये को
                                                                  ू         ू
घसेड हदमा, खन कय डारा औय ऩरामन हो गमा। जज ने ऩमरस को पोन आहद सफ ककमा
            ू
होगा। खन का कस फना। सेशन कोटद से वह क घूभता घाभता कछ सभम क फाद आणखय हाई
       ू     े                       े                    े
कोटद भें उसी जज क ऩास आमा। कस जाॉचा। उन्हें ऩता चरा कक कस वही है । उस हदन वारी
                 े          े                           े
घटना का उन्हें ठीक स्भयण था। उन्होंने दे खा तो ऩामा कक मह उस हदन वारा अऩयाधी तो नहीॊ
है ।
       वे जज कभदपर क अकाट्म मसद्धान्त को भाननेवारे थे। वे सभझते थे कक राॊच-रयद्वत मा
                    े
औय कोई बी अशब कभद उस सभम तो अच्छा रगता है रेककन सभम ऩाकय उसक पर बोगने
                                                            े
ही ऩडते हैं। ऩाऩ कयते सभम अच्छा रगता है रेककन बोगना ऩडता है । कछ सभम क मरए
                                                                      े
आदभी ककन्हीॊ कायणों से चाहे छट जाम रेककन दे य सवेय कभद का पर उसे मभरता है , मभरता है
                             ू
औय मभरता ही है ।
       जज ने दे खा कक मह अऩयाधी तो फूढ़ा है जफकक खन कयने वारा यॊ गरूट तो जवान था।
                                                  ू
उन्होंने फढ़े को अऩनी चेम्फय भें फरामा। फूढ़ा योने रगा्
          ू
       "साहफ ! डपनारा क ऩास, साफयभती का ककनाया.... मह सफ घटना भैं बफल्कर जानता
                       े
ही नहीॊ हूॉ। बगवान की कसभ, भैं ननदोष भाया जा यहा हूॉ।"
       जज सत्त्वगणी थे, सज्जन थे, ननभदर ववचायों वारे, खरे भन क थे। ननबदम थे। नन्स्वाथी
                                                              े
औय साजत्वक आदभी ननबदम यहता है । उन्होंने फढ़े से कहा्
                                          ू
       "दे खो, तभ इस भाभरे भें कछ नहीॊ जानते मह ठीक है रेककन सेशन कोटद भें तभ ऩय
मह अऩयाध बफल्कर कपट हो गमा है । हभ तो कवर कानन का चकादा दे ते हैं। अफ हभ इसभें
                                       े     ू
औय कछ नहीॊ कय सकते।
       इस कस भें तभ नहीॊ थे ऐसा तो भेया भन बी कहता है कपय बी मह फात बी उतनी ही
           े
ननजद्ळत है कक अगय तभने जीवनबय कहीॊ बी ककसी इन्सान की हत्मा नहीॊ की होती तो आज
सेशन कोटद क द्राया ऐसा जडफेसराक कस तभ ऩय फैठ नहीॊ सकता था।
           े                     े
       काका ! अफ सच फताओ, तभने कहीॊ न कहीॊ, कबी न कबी, अऩनी जवानी भें ककसी
भनष्म को भाया था?"
       उस फूढ़े ने कफूर कय मरमा् "साहफ ! अफ भेये आणखयी हदन हैं। आऩ ऩछते हैं तो फता
                                                                    ू
दे ते हूॉ कक आऩकी फात सही है भैंने दो खन ककमे थे। राॊच-रयद्वत दे कय छट गमा था।"
                                       ू                             ू
       जज फोरे् "तभ तो दे कय छट गमे रेककन जजन्होंने मरमा उनसे कपय उनक फेटे रेंगे,
                              ू                                      े
उनकी फेहटमाॉ रेंगी, कदयत ककसी न ककसी हहसाफ से फदरा रेगी। तभ वहाॉ दे कय छटे तो महाॉ
                                                                        ू
कपट हो गमे। उस सभम रगता है कक छट गमे रेककन कभद का पर तो दे य-सवेय बोगना ही
                               ू
ऩडता है ।"
       कभद का पर जफ बोगना ही ऩडता है तो क्मों न फहढ़मा कभद कयें ताकक फहढ़मा पर
मभरे? फहढ़मा कभद कयक कभद बगवान को ही क्मों न दे दें ताकक बगवान ही मभर जामें?
                    े
       नायामण..... नायामण.... नायामण...... नायामण.... नायामण......
       सत्त्वसॊशवद्ध क मरए, ननबदमता क मरए बगवान का ध्मान बगवन्नाभ का जऩ, बगवान
                      े              े
क गणों का सॊकीतदन, बगवान औय गरुजनों का ऩूजन आहद साधन हैं। अजननहोत्र आहद उत्तभ
 े
कभों का आचयण कयना सत्त्वगण फढ़ाने क मरए हहतावह है । ऩहरे क जभाने भें मऻ-माग होते
                                   े                      े
थे। कपय उसका स्थान इद्श की भूनतदऩूजा ने मरमा। भूनतदऩूजा बी चचत्तशवद्ध का एक फहढ़मा साधन
है । वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन, जऩ, कीतदन आहद से सत्त्वगण फढ़ता है । सत्त्वगण फढ़ने से
भनोकाभना जल्दी से ऩणद होती है । हर की काभना कयने से तऩ खचद हो जाता है । ऊचे से ऊची
                   ू                                                     ॉ      ॉ
मह काभना कयें कक, 'हे बगवान ् ! हभायी कोई काभना न यहे । अगय कोई काभना यहे तो तझे
ऩाने की ही काभना यहे ।' ऐसी काभना से तऩ घटता नहीॊ, औय चाय गना फढ़ जाता है ।
       जऩ-तऩ कयक, बगवन्नाभ सॊकीतदन से सत्त्वगण फढ़ाओ। स्वधभदऩारन कयने भें जो कद्श
                े
सहना ऩडे वह सहो। तभ जहाॉ जो कत्तदव्म भें रगे हो, वहाॉ उसी भें फहढ़मा काभ कयो। नौकय हो
तो अऩनी नौकयी का कत्तदव्म ठीक से फजाओ। दसये रोग आरस्म भें मा गऩशऩ भें सभम फयफाद
                                        ू
कयते हों तो वे जानें रेककन तभ अऩना काभ ईभानदायी से उत्साहऩूवक कयो। स्वधभदऩारन कयो।
                                                            द
भहहरा हो तो घय को ठीक साप सथया यखो, स्वगद जैसा फनाओ। आश्रभ क मशष्म हो तो आश्रभ
                                                            े
को ऐसा सहावना फनाओ कक आने वारों का चचत्त प्रसन्न हो जाम, जल्दी से बगवान क ध्मान-
                                                                         े
बजन भें रग जाम। तम्हें ऩण्म होगा।
       अऩना स्वधभद ऩारने भें कद्श तो सहना ही ऩडेगा। सदी-गभी, बख-प्मास, भान-अऩभान
                                                              ू
सहना ऩडेगा। अये चाय ऩैसे कभाने क मरए यातऩारीवारों को सहना ऩडता है , हदनऩारीवारों को
                                े
सहना ऩडता है तो 'ईद्वयऩारी' कयने वारा थोडा सा सह रे तो क्मा घाटा है बैमा?
       .....तो स्वधभदऩारन क मरए कद्श सहें । शयीय तथा इजन्िमों क सहहत अॊत्कयण की
                           े                                   े
सयरता यखें । चचत्त भें क्रयता औय कहटरता नहीॊ यखें। जफ-जफ ध्मान-बजन भें मा ऐसे ही फैठें
                         ू
तफ सीधे, टट्टाय फैठें। झककय मा ऐसे-वैसे फैठने से जीवन-शडक्त का ह्रास होता है । जफ फैठें तफ
हाथ ऩयस्ऩय मभरे हए हों, ऩारथी फॉधी हई हो। इससे जीवन-शडक्त का अऩव्मम होना रुक
जामगा। सूक्ष्भ शडक्त की यऺा होगी। तन तन्दरुस्त यहे गा। भन प्रसन्न यहे गा। सत्त्वगण भें जस्थनत
कयने भें सहाम मभरेगी। स्वधभदऩारन भें कद्श सहने ऩडे तो हॉ सते-हॉ सते सह रो मह दै वी
सम्ऩदावान ऩरुष क रऺण हैं। ऐसे ऩरुष की फवद्ध ब्रह्मसख भें जस्थत होने रगती है । जजसकी फवद्ध
                े
ब्रह्मसख भें जस्थत होने रगती है उसक आगे सॊसाय का सख ऩारे हए कत्ते की तयह हाजजय हो
                                   े
जाता है । उसकी भौज ऩडे तो जया सा उऩमोग कय रेता है , नहीॊ तो उससे भॉह भोड रेता है ।
       जजसक जीवन भें सत्त्वगण नहीॊ हैं , दै वी सॊऩवत्त नहीॊ है वह सॊसाय क सख क ऩीछे बटक-
           े                                                             े    े
बटककय जीवन खत्भ कय दे ता है । सख तो जया-सा मभरा न मभरा रेककन द्ख औय चचन्ताएॉ
उसक बानम भें सदा फनी यहती हैं।
   े
       सफ द्खों की ननववत्त औय ऩयभ सख की प्रानद्ऱ अगय कोई कयना चाहे तो अऩने जीवन भें
                      ृ
सत्त्वगण की प्रधानता रामे। ननबदमता, दान, इजन्िमदभन, सॊमभ, सयरता आहद सदगणों को ऩद्श
कये । सदगणों भें प्रीनत होगी तो दगण अऩने आऩ ननकर जामेंगे। सदगणों भें प्रीनत नहीॊ है ,
                                  द
इसमरए दगणों को हभ ऩोसते हैं। थोडा जभा थोडा उधाय.... थोडा जभा थोडा उधाय... ऐसा हभाया
        द
खाता चरता यहता है । ऩाभयों को, कऩहटमों को दे खकय उनका अनकयण कयने क मरए उत्सक हो
                                                                  े
जाते हैं। भ्रद्शाचाय कयक बी धन इकट्ठा कयने की चाह यखते हैं। अये बैमा ! वे रोग जो कयते हैं
                        े
वे बैंसा फन कय बोगें गे, वऺ फनकय कल्हाडे क घाव सहें गे, मह तो फाद भें ऩता चरेगा। उनकी
                          ृ               े
नकर क्मों कय यहे हो?
जीवन भें कोई बी ऩरयजस्थनत आमे तो सोचो कक कफीय होते तो क्मा कयते? याभजी होते
तो क्मा कयते? रखनरारा होते तो क्मा कयते? सीताजी होती तो क्मा कयती? गागी होती तो
क्मा कयती? भदारसा होती तो क्मा कयती? शफयी बीरनी होती तो क्मा कयती? ऐसा सोचकय
अऩना जीवन हदव्म फनाना चाहहए। हदव्म जीवन फनाने क मरए दृढ़ सॊकल्ऩ कयना चाहहए। दृढ़
                                               े
सॊकल्ऩ क मरए सफह जल्दी उठो। सूमोदम से ऩहरे स्नानाहद कयक थोडे हदन ही अभ्मास कयो,
        े                                              े
तम्हाया अॊत्कयण ऩावन होगा। सत्त्वगण फढ़े गा। एक गण दसये गणों को रे आता है । एक
                                                    ू
अवगण दसये अवगणों को रे आता है । एक ऩाऩ दसये ऩाऩों को रे आता है औय एक ऩण्म दसये
      ू                                 ू                                  ू
ऩण्मों को रे आता है । तभ जजसको सहाया दोगे वह फढ़े गा। सदगण को सहाया दोगे तो ऻान
शोबा दे गा।
                                          अनक्रभ
                          ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ


                                  दै वी सम्ऩदा – 2
                          (हदनाॊक् 29.7.1990 यवववाय, अभदावाद आश्रभ)
                            अहहॊसा सत्मभक्रोधस्त्माग् शाजन्तयऩैशनभ ्।
                              दमा बूतेष्वरोरद्ऱवॊ भादद वॊ ह्रीयचाऩरभ ्।।
       'भन, वाणी औय शयीय से ककसी प्रकाय बी ककसी को कद्श न दे ना, मथाथद औय वप्रम
बाषण, अऩना अऩकाय कयने वारे ऩय बी क्रोध का न होना, कभों भें कत्तादऩन क अमबभान का
                                                                     े
त्माग, अन्त्कयण की उऩयनत अथादत ् चचत्त की चॊचरता का अबाव, ककसी की बी ननन्दा आहद न
कयना, सफ बूतप्राणणमों भें हे त यहहत दमा, इजन्िमों का ववषमों क साथ सॊमोग होने ऩय बी उनभें
                                                             े
आसडक्त का न होना, कोभरता, रोक औय शास्त्र से ववरुद्ध आचयण भें रज्जा औय व्मथद चेद्शाओॊ
का अबाव (मे दै वी सम्ऩदा को रेकय उत्ऩन्न हए ऩरुष क रऺण हैं।)
                                                  े
                                                                           (बगवद् गीता् 16.2)
       साधक को कसा होना चाहहए, जीवन का सवाांगी ववकास कयने क मरए कसे गण धायण
                ै                                          े     ै
कयने चाहहए, जीवन का सवाांगी ववकास कयने क मरए कसे गण धायण कयने चाहहए इसका
                                        े     ै
वणदन बगवान श्रीकृष्ण 'दै वीसम्ऩद् ववबागमोग' भें कयते हैं। कछ ऐसे भहाऩरुष होते हैं जजनके
जीवन भें मे गण जन्भजात होते हैं। कछ ऐसे बक्त होते हैं जजनक जीवन भें बडक्त-बाव से मे
                                                          े
गण धीये -धीये आते हैं। उनको महद सत्सॊग मभर जाम, वे थोडा ऩरुषाथद कये तो गण जल्दी से
आते हैं। साधक रोग साधन-बजन कयक गण अऩने भें बय रेते हैं।
                              े
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Daivi sampada

  • 1.
  • 2. प्रात् स्भयणीम ऩयभ ऩूज्म सॊत श्री आसायाभजी फाऩू के सत्सॊग-प्रवचन दै वी सॊऩदा ननवेदन जजतने बी द्ख, ददद , ऩीडाएॉ हैं, चचत्त को ऺोब कयाने वारे.... जन्भों भें बटकानेवारे...... अशाॊनत दे ने वारे कभद हैं वे सफ सदगणों क अबाव भें ही होते हैं े बगवान श्रीकृष्ण ने जीवन भें कसे सदगणों की अत्मॊत आवश्मकता है मह बगवद् गीता ै क 'दै वासयसम्ऩदाववबागमोग' नाभ क सोरहवें अध्माम क प्रथभ तीन द्ऴोंकों भें फतामा है । उन े े े दै वी सम्ऩदा क छब्फीस सदगणों को धायण कयने से सख, शाॊनत, आनन्दभम जीवन जीने की े कजी मभर जाती है , धभद, अथद, काभ औय भोऺ, मे चायों ऩरुषाथद सहज भें ही मसद्ध हो जाते हैं , ॊ क्मोंकक दै वी सम्ऩदा आत्भदे व की है । इस ग्रॊथ भें सॊतों ने सयर औय उत्साह-प्रेयक प्रवचनों क द्राया दै वी सम्ऩदा भें जस्थत बक्तों े क, सॊतों क जीवन-प्रसॊग ऩय प्रकाश डारते हए हभें प्रसाद फाॉटा है । आऩ इस ऻान-प्रसाद का े े ऩठन-भनन कयें गे तो अवश्म राबाजन्वत होंगे। ववनीत, श्री मोग वेदान्त सेवा समभनत अभदावाद आश्रभ अनक्रभ ननवेदन............................................................................................................................................... 2 दै वी सम्ऩदा – 1 ................................................................................................................................. 3 दै वी सम्ऩदा – 2 ............................................................................................................................... 17 दै वी सम्ऩदा -3 ................................................................................................................................. 34 जीवन-ववकास औय प्राणोऩासना ........................................................................................................... 47 सत्सॊग सॊचम .................................................................................................................................... 61 ऻानमोग ....................................................................................................................................... 61 याभ क दीवाने ............................................................................................................................... 64 े मभयाज का 'डडऩाटद भेन्ट' ................................................................................................................. 65 सदगरु-भहहभा ............................................................................................................................... 66
  • 3. ढाई अऺय प्रेभ का...... ................................................................................................................... 67 सपरता की नीॊव एकाग्रता.............................................................................................................. 68 'गरुत्मागात ् बवेन्भत्म्.....' ............................................................................................................. 70 ृ ऩष्ऩ-चमन .................................................................................................................................... 73 बडक्तभनत यानी यत्नावती ...................................................................................................................... 74 दै वी सम्ऩदा – 1 (हदनाॊक् 22-7-1990 यवववाय, अभदावाद आश्रभ) अबमॊ सत्त्वसॊशवद्धऻादनमोगव्मवजस्थनत्। दानॊ दभद्ळ मऻद्ळ स्वाध्मामस्तऩ आजदवभ ्।। 'बम का सवदथा अबाव, अॊत्कयण की ऩणद ननभदरता, तत्त्वऻान क मरए ध्मानमोग भें ू े ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत, साजत्त्वक दान, इजन्िमों का दभन, बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩजा तथा ू अजननहोत्र आहद उत्तभ कभों का आचयण एवॊ वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन तथा बगवान क नाभ औय े गणों का सॊकीतदन, स्वधभदऩारन क मरए कद्शसहन औय शयीय तथा इजन्िमों क सहहत अॊत्कयण े े की सयरता – मे सफ दै वी सम्ऩदा को रेकय उत्ऩन्न हए ऩरुष क रऺण हैं।' े (बगवद् गीता् 16.1) जीवन भें ननबदमता आनी चाहहए। बम ऩाऩ है , ननबदमता जीवन है । जीवन भें अगय ननबदमता आ जाम तो द्ख, ददद , शोक, चचन्ताएॉ दय हो जाती हैं। बम अऻानभूरक है , ू अववद्याभूरक है औय ननबदमता ब्रह्मववद्याभूरक हैं। जो ऩाऩी होता है , अनत ऩरयग्रही होता है वह बमबीत यहता है । जो ननष्ऩाऩ है , ऩरयग्रहयहहत है अथवा जजसक जीवन भें सत्त्वगण की प्रधानता े है वह ननबदम यहता है । जजसक जीवन भें दै वी रऺण हैं वह महाॉ बी सखी यहता है औय ऩयरोक बी उसक मरए े े सखभम हो जाता है । जजसक जीवन भें दै वी रऺण की कभी है वह महाॉ बी द्खी यहता है औय े ऩयरोक भें बी द्ख ऩाता यहता है । जीवन भें अगय सख, चैन, आयाभ, अभन-चभन चाहहए तो 'अभन होना ऩडेगा। अभन भाना भन क सॊकल्ऩ-ववकल्ऩ कभ हों। अभनी बाव को प्राद्ऱ हो तो े जीवन भें चभन फढ़ता है । भनष्म की वास्तववक अॊतयात्भा इतनी भहान ् है कक जजसका वणदन कयते वेद बगवान बी 'नेनत.... नेनत.....' ऩकाय दे ते हैं। भानव का वास्तववक तत्त्व, वास्तववक स्वरूऩ ऐसा भहान ् है रेककन बम ने, स्वाथद ने, यजो-तभोगण क प्रबाव ने उसे दीन-हीन फना हदमा है । े द्ख भनष्म का स्वबाव नहीॊ है इसमरए वह द्ख नहीॊ चाहता है । सख भनष्म का स्वबाव है इसमरए वह सख चाहता है । जैसे, भॉह भें दाॉत यहना स्वाबाववक है तो कबी ऐसा नहीॊ
  • 4. होता कक दाॉत ननकारकय पक दॉ । जफ तक दाॉत तन्दरुस्त यहते हैं तफ तक उन्हें पकने की ें ू ें इच्छा नहीॊ होती। बोजन कयते वक्त कछ अन्न का कण, सब्जी का नतनका दाॉतों भें पस जाता है ॉ तो रूरी (जजह्वा) फाय-फाय वहाॉ रटका कयती है । जफ तक वह कचया ननकरा नहीॊ जाता तफ तक चैन नहीॊ रेती। क्मोंकक दाॉतों भें वह कचया यहना स्वाबाववक नहीॊ है । ऐसे ही सख तम्हाये जीवन भें आता है तो कोई हजद नहीॊ है रेककन द्ख आता है तो उसे ननकारने क मरए तभ तत्ऩय हो जाते हो। दाॉतों भें नतनका यहना अस्वाबाववक रगता है वैसे े रृदम भें द्ख यहना तम्हें अस्वाबाववक रगता है । द्ख होता है यजो-तभोगण की प्रधानता से। बगवान कहते हैं कक बम का सवदथा अबाव कय दें । जीवन भें बम न आवे। ननबदम यहें । ननबदम वही हो सकता है जो दसयों को बमबीत न कयें । ननबदम वही यह सकता है जो ननष्ऩाऩ ू होने की तत्ऩय हो जाम। जो ववरासयहहत हो जामगा वह ननबदम हो जामगा। ननबदमता ऐसा तत्त्व है कक उससे ऩयभात्भ-तत्त्व भें ऩहॉ चने की शडक्त आती है । ककसी को रगेगा कक 'फडे-फडे डाक रोग, गन्डा तत्त्व ननबदम होते हैं....' नहीॊ नहीॊ..... ऩाऩी कबी ननबदम नहीॊ ू हो सकता। गन्डे रोग तो कामयों क आगे योफ भायते हैं। जो रोग भचगदमाॉ खाकय भहकपर कयते े हैं, दारू ऩीकय नशे भें चय होते हैं , नशे भें आकय सीधे-सादे रोगों को डाॉटते हैं तो ऐसी डाॉट से ू रोग घफया जाते हैं। रोगों की घफयाहट का पामदा गन्डे रोग उठाते हैं। वास्तव भें चॊफर की घाटी का हो चाहे उसक फाऩ हो रेककन जजसभें सत्त्वगण नहीॊ है अथवा जो आत्भऻानी नहीॊ है वह ननबदम नहीॊ हो सकता। ननबदम वही आदभी होगा जो सत्त्वगणी हो। फाकी क ननबदम हदखते े हए रोग डाभेच होते हैं, ऩाऩी औय ऩाभय होते हैं। बमबीत आदभी दसये को बमबीत कयता है । ू डयऩोक ही दसये को डयाता है । ू जो ऩूया ननबदम होता है वह दसयों को ननबदम नायामण तत्त्व भें रे जाता है । जो डय यहा है ू वह डयऩोक है । डाभेच औय गॊडा स्वबाव का आदभी दसयों का शोषण कयता है । ननबीक दसयों का ू ू शोषण नहीॊ कयता, ऩोषण कयता है । अत् जीवन भें ननबदमता रानी चाहहए। फॊगार भें हगरी जजरे क दे ये गाॉव भें खदीयाभ नाभ क व्मडक्त यहते थे। गाॉव क जल्भी े े े जभीॊदाय ने उन्हें अऩने भकद्दभें भें झठी गवाही दे ने क मरए दभ भाया। उन्हें डयाते हए वह फोरा् ू े "याजा क आगे भेये ऩऺ भॊ गवाही दे दो। याजा तभ ऩय ववद्वास कयें गे औय भेया काभ फन े जामेगा। अगय तभ भेये ऩऺ भें नहीॊ फोरे तो जानते हो, भैं कौन हूॉ? भैंने कइमों क घयों को े फयफाद कय हदमा है । तम्हाया बी वही हार होगा। दे ये गाॉव भें यहना असॊबव हो जाएगा।" खदीयाभ ने ननबदमता से जवाफ दे हदमा् "गाॉव भें यहना असॊबव हो जामे तो बरे हो जाम रेककन भैं झठी गवाही हयचगज नहीॊ दॉ गा। भैं तो जो सत्म है वही फोर दॉ गा।" ू ू ू उस दद्श ने खदीयाभ को ऩये शान कयना शरु कय हदमा। खदीयाभ फेचाये सीधे सादे प्राभाणणक इन्सान थे। वे गाॉव छोडकय चरे गमे। कई बफघा, जभीन, गाम-बैंस, घय-फाय की हानन हई कपय बी सत्म ऩय खदीयाभ अडडग यहे ।
  • 5. रोगों की नजयों भें खदीयाभ को हानन हई होगी थोडी-फहत रेककन सत्म की गवाही दे ने भें अडडग यहने से खदीयाभ ईद्वय को, ऩयभात्भा को स्वीकाय हो गमे। गाॉव छोडना ऩडा, जभीन छोडनी ऩडी, ननबीक यहकय सत्म क ऩऺ भें यहे , झठी गवाही नहीॊ दी ऐसे सज्जन को दद्श ने े ू फाह्य हानन ऩहॉ चा दी रेककन ऐसी फाह्य हानन ऩहॉ चने ऩय बी बक्त का कबी कछ नहीॊ बफगडता मह मसद्ध कयने क मरमे बगवान ने उन्हीॊ दे हाती आदभी खदीयाभ क घय एक भहान ् आत्भा को े े अवतरयत ककमा। वे भहान ् आत्भा श्री याभकृष्ण ऩयभहॊ स होकय प्रमसद्ध हए। उनकी कृऩा ऩाकय वववेकानन्द ववद्वववख्मात हए। धन्म है उस दे हाती खदीयाभ की सच्चाई औय सत्म ननद्षा। जीवन भें ननबदमता आनी चाहहए। ऩाऩ क साभने, अनाचाय क साभने कबी फोरना ऩडे तो े े फोर दे ना चाहहए। सभाज भें रोग डयऩोक होकय गण्डा तत्त्वों को ऩोसते यहते हैं औय स्वमॊ शोषे जाते हैं। कछ अननद्श घटता हआ दे खते हैं तो उसका प्रनतकाय नहीॊ कयते। 'हभाया क्मा..... हभाया क्मा.....? कये गा सो बये गा....।' ऐसी दफदर भनोदशा से मसकड जाते हैं। सज्जन रोग मसकड जाते हैं, चनाव रडने वारे नेताओॊ को बी गण्डे तत्त्वों को हाथ भें यखना ऩडता है । क्मोंकक सभाज के डयऩोक रोगों ऩय उन्हीॊ की धाकधभकी चरती है । अत् अऩने जीवन भें औय साये सभाज भें अभन-चभन राना हो तो बगवान श्रीकृष्ण की फात को आज ध्मान से सनें । ननबदमता का मह भतरफ नहीॊ है कक फहू सास का अऩभान कय दे ् 'भैं ननबदम हूॉ....।' ननबदमता का मह भतरफ नहीॊ कक छोया भाॉ-फाऩ का कहना भाने नहीॊ। ननबदमता का मह भतरफ नहीॊ कक मशष्म गरु को कह दे कक, 'भैं ननबदम हूॉ, आऩकी फात नहीॊ भानॉूगा।' मह तो खड्डे भें चगयने का भागद है । रोग ननबदमता का ऐसा गरत अथद रगा रेते हैं। हरयद्राय भें घाटवारे फाफा वेदान्ती सॊत थे। सत्सॊग भें फाय-फाय कहते कक ननबदम यहो। उनकी एक मशष्मा ने फाफाजी की मह फात ऩकड री। वह फूढ़ी थी। हदल्री से फाफाजी क ऩास े आती थी। एक हदन खट्टे आभ की ऩकौडडमाॊ फना कय फाफाजी क ऩास रे आमी। फाफाजी ने कहा् े "अबी भैंने दध ऩीमा है । दध क ऊऩय ऩकौडे नहीॊ खाने चाहहए।" ू ू े वह फोरी् फाफाजी ! "भैंने भेहनत कयक आऩक मरम फनामा है । खाओ न....।" े े "भेहनत कयक फनामा है तो क्मा भैं खाकय फीभाय ऩडूॉ? नहीॊ खाना है , रे जा।" े फाफाजी ने डाॉटते हए कहा् "क्मा भतरफ?" "आऩ ही ने तो कहा है कक ननबदम यहो। भैं ननबदम यहूॉगी। आऩ बरे ककतना बी डाॉटो। भैं तो णखराकय यहूॉगी।" वह भहहरा फोरी। गरु मशष्मा का वह सॊवाद भैं सन यहा था। भैंने सोचा् याभ.... याभ.... याभ....। भहाऩरुष कसी ननबदमता फता यहे हैं औय भूढ़ रोग कसी ननबदमता ऩकड रेते हैं ! ननबदम फनने का भतरफ ै ै मह नहीॊ कक जो हभें ननबदम फनामें उनका ही ववयोध कयक अऩने औय उनक जीवन का ह्रास कयें । े े
  • 6. ननबदमता का भतरफ नकट्टा होना नहीॊ। ननबदमता का भतरफ भन का गराभ होना नहीॊ। ननबदमता का भतरफ है जजसभें बगवद् गीता क भताबफक दै वी सम्ऩदा क छब्फीस रऺण बय जामें। े े ननबदम जऩे सकर बव मभटे । सॊत कृऩा ते प्राणी छटे ।। ू ऐसे ननबदम नायामण तत्त्व भें जगने को ननबदमता चाहहए। इसमरमे अॊत्कयण भें बम का सवदथा अबाव होना चाहहए। अॊत्कयण ननभदर होगा तो ननबदमता आमेगी। ऻानमोग भें जस्थनत होगी, आत्भाकाय ववत्त ृ फनाने भें रूचच होगी वह आदभी ननबदम यहे गा। ईद्वय भें दृढ़ ववद्वास होगा तो ननबदमता आमेगी। जीवन भें दान-ऩण्म का बी फडा भहत्त्व है । दान बक्त बी कयता है ऻानी बी कयता है । बक्त का दान है रूऩमा-ऩैसा, चीज-वस्तएॉ, अन्न-वस्त्राहद। ऻानी का दान है ननबदमता का, ऻानी का दान है आत्भा जागनत का। ृ नद्वय चीजों को दान भें दे कय कोई दानी फन जाम वह बक्त है । अऩने आऩको, अऩने स्व- स्वरूऩ को सभाजच भें फाॉटकय, सफको आत्भानॊद का अभत चखानेवारे ऻानी भहादानी हो जाते ृ हैं। दीन-हीन, रूरे-रॉ गडे, गयीफ रोगों को सहामता कयना मह दमा है । जो रोग ववद्रान हैं, फवद्धभान हैं, सत्त्वगण प्रधान है । जो ऻानदान कयते कयाते हैं ऐसे रोगों की सेवा भें जो चीजें अवऩदत की जाती हैं वह दान कहा जाता है । बगवान क भागद चरने वारे रोगों का सहाम रूऩ े होना मह दान है । इतय रोगों को सहाम रूऩ होना मह दमा है । दमा धभद का भूर है । दान सत्त्वगण फढ़ाता है । जीवन भें ननबदमता राता है । ऻानमोग भें ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत कयने क मरए जीवन भें दान औय इजन्िम दभन होना े चाहहए। इजन्िम दभन का भतरफ है जजतना आवश्मक हो उतना ही इजन्िमों को आहाय दे ना। आॉख को जजतना जरूयी हो उतना ही दृश्म हदखाओ, व्मथद भें इधय-उधय न बटकाओ। कान को जो जरूयी हो वह सनाओ। व्मथद चचाद, ककसी की ननन्दा सनाकय कान की श्रवण-शडक्त का अऩव्मम न कयो। फोरने-चखने भें जजह्वा का उऩमोग जजतना जरूयी हो उतना कयो। व्मथद भें इजन्िमों की शडक्त को फाहय ऺीण भत कयो। इजन्िमों की शडक्त ऺीण कयने से जीवन की सूक्ष्भ शडक्त का ह्रास होता है । परत् आदभी फहहभख यहता है , चचत्त भें शाॊनत नहीॊ यहती औय आत्भा द भें जस्थनत कयने का साभर्थमद ऺीण हो जाता है । अगय जीवन को हदव्म फनाना है , ऩयभ तेजस्वी फनाना है , सफ द्खों से सदा क मरए दय े ू होकय ऩयभ सख-स्वरूऩ आत्भा का साऺात्काय कयना है तो सूक्ष्भ शडक्तमों की जरूयत ऩडती है । सूक्ष्भ शडक्तमाॉ इजन्िमों क सॊमभ से ववकमसत होती हैं , सयक्षऺत यहती हैं। इजन्िमों का असॊमभ े कयने से सूक्ष्भ शडक्तमाॉ ऺीण हो जाती हैं। योजी-योटी क मरए तडपनेवारे भजदय भें औय मोगी े ू
  • 7. ऩरुष भें इतना ही पक है । साभान्म आदभी ने अऩनी सूक्ष्भ शडक्तमों का जतन नहीॊ ककमा जफकक द मोगी ऩरुष शडक्तमों का सॊमभ कयक साभर्थमदवान फन जाते हैं। े चरते-चरते फात कयते हैं तो हदभाग की शडक्त कभजोय हो जाती है । न खाने जैसा खा रेते हैं, न बोगने जैसा बोग रेते हैं। वे न सॊसाय का सख ठीक से बोग जाते हैं न आत्भा का सख रे ऩाते हैं। दस-फीस रूऩमे की राचायी भें हदनबय भेहनत कयते हैं। खाने-ऩीने का ढॊ ग नहीॊ है , बोगने का ढॊ ग नहीॊ है तो फेचाये योगी यहते हैं। मोगीऩरुष इहरोक का ही नहीॊ, ब्रह्मरोक तक का सख बी बोगते हैं औय भडक्तराब बी रेते हैं। वे जानते हैं कक सक्ष्भ शडक्तमों का सदऩमोग कसे ककमा जाम। ू ै सक्ष्भ ू शडक्तमों का सॊयऺण औय सॊवधदन कयने क मरए अऩने आहाय-ववहाय भें सजग े यहना जरूयी है । दोऩहय को बय ऩेट बोजन ककमा हो तो शाभ को जया उऩवास जैसा कय रेना चाहहए। हदनबय बखे यहे तो याबत्र को सोने क दो घण्टे ऩहरे अच्छी तयह बोजन कय रेना ू े चाहहए। बोजन क फीच भें ऩानी ऩीना ऩवद्शदामक है । अजीणद भें ऩानी औषध है । बूखे ऩेट ऩानी े ऩीना ववष हो जाता है । खफ बूख रगी है औय चगरास दो चगरास ऩानी ऩी मरमा तो शयीय ू दफरा-ऩतरा औय कभजोय हो जामगा। क्मा खाना, कफ खाना, ककतना खाना, कसे खाना..... क्मा फोरना, कफ फोरना, ककतना ै फोरना, कसे फोरना, ककससे फोरना.... क्मा सनना, कफ सनना, ककतना सनना, ककसका ै सनना.... इस प्रकाय हभाये स्थर-सूक्ष्भ सफ आहाय भें वववेक यखना चाहहए। बोरे बारे रोग ू फेचाये जजस ककसी की जैसी तैसी फातें सन रेते हैं , ननन्दा क बोग फन जाते हैं। े 'भैं क्मा करू.....? वह आदभी भेये ऩास आमा....। उसने ननन्दा सनाई तो भैंने सन री।' ॉ अये बाई ! तूने ननन्दा सन री? ननन्दकों की ऩॊडक्त भें शामभर हो गमा? कफीया ननन्दक ना मभरो ऩाऩी मभरो हजाय। एक ननन्दक क भाथे ऩय राख ऩाऩीन को बाय।। े इस जीवन भें अऩना ही कभद कट जाम तो बी कापी है । दसयों की ननन्दा सनकय क्मों ू दसयों क ऩाऩ अऩने मसय ऩय रेना? जजसकी ननन्दा कयते हैं , सनते हॊ वह तो आइस्क्रीभ खाता ू े होगा औय हभ उसकी ननन्दा सनकय अशाॊनत क्मों भोर रें । कफ सनना, क्मा सनना, ककसका सनना औय उस ऩय ककतना ववद्वास यखना इसभें बी अक्र चाहहए। अक्र फढ़ाने क मरए बी े अक्र चाहहए। तऩ फढ़ाने क मरए बी तऩ चाहहए। धन फढ़ाने क मरए बी धन चाहहए। े े जीवनदाता से मभरने क बी जीवन जीने का सच्चा ढॊ ग चाहहए। जीवन भें दै वी सॊऩदा होनी े चाहहए। दै वी सॊऩदा क कछ रऺण फताते हए बगवान श्रीकृष्ण मह द्ऴोक कह यहे हैं- े 'बम का सवदथा अबाव, अॊत्कयण की ऩूणद ननभदरता, तत्त्वऻान क मरए ध्मानमोग भें े ननयॊ तय दृढ़ जस्थनत औय साजत्त्वक दान, इजन्िमों का दभन, बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩजा ू तथा अजननहोत्राहद उत्तभ कभों का आचयण एवॊ वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन तथा बगवान क नाभ े
  • 8. औय गणों का कीतदन, स्वधभद-ऩारन क मरए कद्शसहन औय शयीय व इजन्िमों क सहहत, े े अॊत्कयण की सयरता मे सफ दै वी सम्ऩदावान ऩरुष क रऺण हैं।' े बगवान, दे वता औय गरुजनों की ऩूजा से तऩ-तेज फढ़ता है । बगवान मा ककसी ब्रह्मवेत्ता सदगरु क चचत्र क सभऺ जफ भौका मभरे , फैठ जाओ। शयीय को जस्थय कयक उन्हें एकटक े े े ननहायते जाओ। नेत्र की जस्थयता क द्राया भन को जस्थय कयने का अभ्मास कयो। ऐसे तऩ होता े है । तऩ से तेज फढ़ता है । इजन्िम-सॊमभ फढ़ता है । जीवन की शडक्तमों भें ववद्ध होती है , फवद्ध भें ृ सक्ष्भता आती है । सभस्माएॉ सरझाने की प्रेयणा मभरती है । व्मवहाय भें बी आदभी सपर होता ू है , ऩयभाथद भें बी आगे फढ़ता है । जीवन भें ऐसा अभ्मास है नहीॊ, इजन्िम-सॊमभ है नहीॊ औय ठाकयजी क भॊहदय भें जाता है , े घॊट फजाता है । कपय बी योता यहता है । सद ऩय रूऩमे राता है , आचथदक फोझ भें दफता चरा जाता ू है । मशकामत कयता यहता है कक, 'मह दननमाॉ फहत खयाफ है । भैं तो आऩघात कयक भय जाऊ तो े ॉ अच्छा।' अये , डफा दे जो जहाजों को उसे तूपान कहते हैं। जो तूपानों से टक्कय रे उसे इन्सान कहते हैं ।। व्मवहाय जगत क तपान तो क्मा, भौत का तूपान आमे उससे बी टक्कय रेने का े ू साभर्थमद आ जाम इसका नाभ है साऺात्काय। इसका नाभ है भनष्म जीवन की सपरता। जया जया-सी फात भें डय यहे हैं? जया जया-सी फात भें मसकड यहे हैं? हो होकय क्मा होगा? जो बी हो गमा वह दे ख मरमा। जो हो यहा है वह दे ख यहे हैं। जो होगा वह बी दे खा जामेगा। भॉूछ ऩय ताव दे ते हए.... बगवान को प्माय कयते हए तभ आगे फढ़ते जाओ। ननबदम..... ननबदम.... ननबदम.... ननबदम..... ननबदम.....। अये , बगवान का दास होकय, गरु का सेवक होकय, भनष्म का तन ऩाकय ऩाऩी ऩाभयों से, भचगदमाॉ खानेवारे कफाफी-शयाफी रोगों से डय यहे हो? वे अऩने आऩ अऩने ऩाऩों भें डूफ यहे हैं, भय यहे हैं। भहाबायत भें अजन जैसा आदभी दमोधन से डय यहा है । सोच यहा है कक ऐसे-ऐसे रोग द उसक ऩऺ भें हैं। े श्रीकृष्ण ने अजन से कहा कक् द क्रैब्मॊ भा स्भ गभ् ऩाथद नैतत्त्वय्मऩऩद्यते। ऺिॊ रृदमदौफदल्मॊ त्मक्त्वोवत्तद्ष ऩयॊ तऩ।। 'हे अजन ! नऩॊसकता को भत प्राद्ऱ हो। तेये मरमे मह उचचत नहीॊ है । हे ऩयॊ तऩ ! रृदम द की तच्छ दफदरता को त्मागकय मद्ध क मरए खडा हो जा।' े (गीता् 2.3) सभाज भें सज्जन रोगों की सॊख्मा ज्मादा है रेककन सज्जन रो सज्जनता-सज्जनता भें मसकड जाते हैं औय दजदन रोग मसय ऩय सवाय हो जाते हैं।
  • 9. तभ डयो भत। घफडाओ भत। अबमॊ सत्त्वसॊशवद्ध.... ननबदम फनो। ववकट ऩरयजस्थनतमों भें भागद खोजो। भागद अगय नहीॊ मभरता हो तो बगवान अथवा सदगरु क चचत्र क सभऺ फैठ जाओ, े े ॐकाय अथवा स्वजस्तक क चचत्र सभऺ फैठ जाओ। एकटक ननहायो.... ननहायो.... ननहायो....। सफह े भें समोदम से ऩहर उठ जाओ, स्नानाहद कयक ऩाॉच-सात प्राणामाभ कयो। शयीय की जस्थयता, ू े प्राण औय भन की जस्थयता कयो। कपय 'प्रोब्रेभ का सोल्मूशन' खोजो। मूॉ चटकी फजाते मभर जामगा। जजतने तभ डयते हो, जजतने जजतने तभ घफयाते हो, जजतने जजतने तभ ववनम्र होकय मसकडते हो उतना मे गण्डा तत्त्ववारे सभझते हैं कक हभ फडे हैं औय मे हभसे छोटे हैं। तभ जजतना बीतय से ननबीक होकय जीते हो उतना उन रोगों क आगे सपर होते हो। े हभें मभटा सक मे जभाने भें दभ नहीॊ। े हभसे जभाना है जभाने से हभ नहीॊ।। हभाया चैतन्म-स्वरूऩ ईद्वय हभाये साथ है , हभ ईभानदायी से जीते हैं, दसयों का हभ अहहत ू नहीॊ कयते, अहहत नहीॊ चाहते कपय हभाया फया कसे हो सकता है? फया होता हआ हदखे तो डयो ै भत। सायी दननमा उल्टी होकय टॉ ग जाम कपय बी तभ सच्चाई भें अडडग यहोगे तो ववजम तम्हायी ही होगी। ताभसी तत्त्वों से, आसयी तत्त्वों से कबी डयना नहीॊ चाहहए। बीतय से सत्त्वगण औय ननबदमता फढ़ाकय सभाज का अभन-चभन फढ़ाने क मरए मत्न कयना चाहहए। े 'हभाया क्मा.....? जो कये गा सो बये गा...' ऐसी कामयता प्राम् बगतडों भें आ जाती है । ऐसे रोग बक्त नहीॊ कहे जाते, बगतडे कहे जाते हैं। बक्त तो वह है जो सॊसाय भें यहते हए, भामा भें यहते हए भामा से ऩाय यहे । बगत जगत को ठगत है बगत को ठगे न कोई। एक फाय जो बगत ठगे अखण्ड मऻ पर होई।। बक्त उसका नाभ नहीॊ जो बागता यहे । बक्त उसका नाभ नहीॊ जो कामय हो जाम। बक्त उसका नाभ नहीॊ जो भाय खाता यहे । जजसस ने कहा था् 'तम्हें कोई एक थप्ऩड भाय दे तो दसया गार धय दे ना, क्मोंकक उसकी ू इच्छा ऩयी हो। उसभें बी बगवान है ।' ू जजसस ने मह कहा, ठीक है । इसमरए कहा था कक कोई आवेश भें आ गमा हो तो तभ थोडी सहन शडक्त जटा रो, शामद उसका द्रे ष मभट जाम, रृदम का ऩरयवतदन हो जामे। जजसस का एक प्माया मशष्म था। ककसी गॊडा तत्त्व ने उसका तभाचा ठोक हदमा। कपय ऩूछा् "दसया गार कहाॉ है ?" मशष्म ने दसया गार धय हदमा। उस दद्श ने महाॉ बी तभाचा जभा ू ू हदमा। कपय बी उस असय को सॊतोष नहीॊ हआ। उसने कहा् "अफ तीसया कहाॉ यख?" ॉू
  • 10. जजसस क मशष्म ने उस दद्श क गार ऩय जोयदाय तभाचा जड हदमा औय फोरा् "तीसया े े गार मह है ।" "तम्हाये गरु ने तो भना ककमा था। उनका उऩदे श नहीॊ भानते?" "गरु ने इसमरए भना ककमा था कक अहहॊसा की सयऺा हो। हहॊसा न हो। रेककन तम्हें दो फाय भौका मभरा कपय बी तम्हाया हहॊसक स्वबाव नहीॊ मभटा। तभ असय हो। सफक मसखामे बफना सीधे नहीॊ होओगे।" अनशासन क बफना आसयी तत्त्व ननमॊत्रण भें नहीॊ यहते। यावण औय दमोधन को ऐसे ही े छोड दे ते तो आज हभ रोगों का सभाज शामद इस अवस्था भें न जी ऩाता। नैनतक औय साभाजजक अन्धाधधी हो जाती। जफ-जफ सभाज भें ऐसा वैसा हो जाम तफ साजत्त्वक रोगों को ॊू सतक होकय, हहम्भतवान फनकय तेजस्वी जीवन बफताने का मत्न कयना चाहहए। आऩ ननबदम यहे , द दसयों को ननबदम कये । सत्त्वगण की ववद्ध कये । जीवन भें दै वी फर चाहहए, आध्माजत्भक फर ू ृ चाहहए। कवर व्मथद ववराऩ नहीॊ कयना चाहहए कक, 'हे भेये बगवान ! हे भेये प्रब " भेयी यऺा े कयो... यऺा कयो...।' भैंने सनी है एक कहानी। गराभ नफीय ने योजे यखे। थोडा फहत बगत था औय ठगतों क साथ दोस्थी बी थी। े उसका धन्धा चोयी कयने का था। योजे क हदनों भें उसने चोयी छोड यखी थी। मभत्रों ने सभझामा् े "ऐसा बगतडा फनेगा तो काभ कसे चरेगा? पराने ककसान क वहाॉ फहढ़मा फैर आमे हैं। जा, ै े खोर क रे आ।" े गराभ नफीय फैर चयाने चरा गमा। नमा मसक्खड था। फैर खोरकय रे जाने रगा तो फैर क गरे भें फॉधी हई घॊहटमाॉ फजने रगीॊ। रोग जग गमे औय चोय का ऩीछा ककमा। गराभ नफीय े आगे चरा तो ऩीछे हल्रा गल्रा सनाई दे ने रगा। उसने डयक भाये खदा से प्राथदना की् "हे े खदातारा ! भैंने योजा यखा है , भैं कभजोय हो गमा हूॉ। तू भझे सहाम कय। भेये ऊऩय यहे भत कय। दफाया मह धन्धा नहीॊ करूगा। इस फाय फचा रे।" ॉ उसक रृदमाकाश भें आकाशवाणी हई, प्रेयणा मभरी कक, "फैरों को छोडकय बाग जा तो े फच जामगा। दफाया चोयी भत कयना।" "भामरक ! भैं योजा यख यहा हूॉ। भझभें दौडने की शडक्त नहीॊ है । दमा कयक आऩ ही भझे े फचाओ।" "अच्छा, तू दौड नहीॊ सकता है तो जल्दी से चरकय साभनेवारी झाडी भें छऩ जा। फैरों को छोड दे ।" "भझभें इतनी बी शडक्त नहीॊ है । तू यहे भत कय.... तू यहे भत कय....." गराभ नफीय इस प्रकाय चगडचगडाता यहा। इतने भें रोगों ने आकय उसे ऩकड मरमा्
  • 11. "भूखद ! फोरता है 'यहे भत कय... यहे भत कय....?' भार चयाते सभम यहे भत नही की औय अफ ऩकडा गमा तो यहे भत कय.. यहे भत कय...?" रोगों ने फयाफय भेथीऩाक चखामा, यात बय कोठयी भें फन्द यखा, सफह भें ऩमरस को सौंऩ हदमा। गराभ नफीय अॊत्प्रेयणा की आवाज सनकय हहम्भत कयता तो फच जाता। हहम्भते भदाद तो भददे खदा। फेहहम्भत फन्दा तो फेजाय खदा।। जो नाहहम्भत हो जाता है उसको फचाने भें बगवान बी फेजाय हो जाते हैं , राचाय हो जाते हैं। अऩना ऩरुषाथद जगाना चाहहए, हहम्भतवान फनना चाहहए। मह कौन-सा उकदा जो हो नहीॊ सकता? तेया जी न चाहे तो हो नहीॊ सकता। छोटा-सा कीडा ऩत्थय भें घय कये.... इन्सान क्मा हदरे हदरफय भें घय न कये? तभभें ईद्वय की अथाह शडक्त छऩी है । ऩयभात्भा का अनऩभ फर छऩा है । तभ चाहो तो ऐसी ऊचाई ऩय ऩहॉ च सकते हो कक तम्हाया दीदाय कयक रोग अऩना बानम फना रें । तभ ब्रह्मवेत्ता ॉ े फन सकते हो ऐसा तत्त्व तभभें छऩा है । रेककन अबागे ववषमों ने, तम्हाये नकायात्भक ववचायों ने, दफदर ख्मारों ने, चगरी, ननन्दा औय मशकामत की आदतों ने, यजो औय तभोगण ने तम्हायी शडक्त को बफखेय हदमा है । इसीमरए श्रीकृष्ण कहते हैं- अबमॊ सत्त्वसॊशवद्ध्.....। जीवन भें दै वी सम्ऩदा क रऺण बयो औय ननबदम फनो। जजतनी तम्हायी आध्माजत्भक े उन्ननत होगी उतनी ठीक से साभाजजक उन्ननत बी होगी। अगय आध्माजत्भक उन्ननत शून्म है तो नैनतक उन्ननत भात्र बाषा होगी। आध्माजत्भक उन्ननत क बफना नैनतक उन्ननत नहीॊ हो सकती। े नैनतक उन्ननत नहीॊ होगी तो बौनतक उन्ननत हदखेगी रेककन वास्तव भें वह उन्ननत नहीॊ होगी, जॊजीयें होगी तम्हाये मरमे। रोगों की नजयों भें फडा भकान, फडी गाडडमाॉ, फहत रूऩमे-ऩैसे हदखेंगे रेककन तम्हाये बीतय टे न्शन ही टे न्शन होगा, भसीफतें ही भसीफतें होगी। आध्माजत्भक उन्ननत जजतने अनऩात भें होती है उतने अनऩात भें नैनतक फर फढ़ता है । जजतने अनऩात भें नैनतक फर फढ़ता है उतने अनऩात भें तभ जागनतक वस्तओॊ का ठीक उऩमोग औय उऩबोग कय सकते हो। रोग जगत की वस्तओॊ का उऩबोग थोडे ही कयते हैं, वे तो बोग फन जाते हैं। वस्तएॉ उन्हें बोग रेती हैं। धन की चचन्ता कयते-कयते सेठ को 'हाटद -अटै क' हो गमा तो धन ने सेठ को बोग मरमा। क्मा खाक सेठ ने बोगा धन को? काय भें तो ड्रामवय घूभ यहा है , सेठ तो ऩडे हैं बफस्तय भें । रड्डू तो यसोईमा उडा यहा है, सेठ तो डामबफटीज़ से ऩीडडत हैं। बोग तो नौकय-चाकय बोग यहे हैं औय सेठ चचन्ता भें सूख यहा है ।
  • 12. अऩने को सेठ, साहफ औय सखी कहरानेवारे तथा-कचथत फडे-फडे रोगों क ऩास अगय े सत्त्वगण नहीॊ है तो उनकी वस्तओॊ का उऩबोग दसये रोग कयते हैं। ू तम्हाये जीवन भें जजतने अनऩात भें सत्त्वगण होगा उतने अनऩात भें आध्माजत्भक शडक्तमाॉ ववकमसत होगी। जजतने अनऩात भें आध्माजत्भक शडक्तमाॉ होगी उतने अनऩात भें नैनतक फर फढ़े गा। जजतने अनऩात भें नैनतक फर होगा उतने अनऩात भें व्मवहारयक सच्चाई होगी, चीज- वस्तओॊ का व्मावहारयक सदऩमोग होगा। तम्हाये सॊऩक भें आनेवारों का हहत होगा। जीवन भें द आध्माजत्भक उन्ननत नहीॊ होगी तो नैनतक फर नहीॊ आएगा। उतना ही जीवन डावाॉडोर यहे गा। डावाॉडोर आदभी खद तो चगयता है , उसका सॊग कयने वारे बी ऩये शान होते हैं। इजन्िमों का दभन नहीॊ कयने से सक्ष्भ शडक्तमाॉ बफखय जाती हैं तो आध्माजत्भक उन्ननत ू नहीॊ होती। वाणी का सॊमभ कयना भाने चगरी, ननन्दा नहीॊ कयना, कट बाषा न फोरना, झठ-कऩट ू न कयना, मह वाणी का तऩ है । आचामद की उऩासना कयना, बगवान की उऩासना कयना, मह भन का तऩ है । शयीय को गरत जगह ऩय न जाने दे ना, व्रत-उऩवास आहद कयना मह शायीरयक तऩ है । व्रत-उऩवास की भहहभा सनकय कछ भहहराएॉ रम्फे-रम्फे व्रत यखने रग जाती है । जो सहाचगन जस्त्रमाॉ है , जजनका ऩनत हमात है ऐसी भहहराओॊ को अचधक भात्रा भें व्रत उऩवास नहीॊ कयना चाहहए। सहाचगन अगय अचधक उऩवास कये गी तो ऩनत की आम ऺीण होगी। सद्ऱाह भें , ऩन्िह हदन भें एक उऩवास शयीय क मरए बी ठीक है औय व्रत क मरए बी ठीक है । े े कछ रोग योज-योज ऩेट भें ठूॉस-ठूॉसकय खाते हैं, अजीणद फना रेते हैं औय कछ रोग खफ ू बूखाभयी कयते हैं, सोचते हैं कक भझे जल्दी बगवान मभर जाम। नहीॊ, व्मवहाय भें थोडा दऺ फनने की जरूयत है । कफ खाना, क्मा खाना, कसे खाना, कफ व्रत यखना, कसे यखना मह ठीक ै ै से सभझकय आदभी अगय तऩस्वी जीवन बफताता है तो उसका फर, तेज फढ़ता है । प्राणामाभ से भन एकाग्र होता है । प्राणामाभ से प्राण की रयधभ अगय ठीक हो जाम तो शयीय भें वात औय कप ननमॊबत्रत हो जाते हैं। कपय फाहय की दवाइमों की ओय 'भेननेट थेयाऩी' आहद की जरूयत नहीॊ ऩडती है । इन्जैक्शन की सइमाॉ बोंकाने की बी जरूयत नहीॊ ऩडती है । कवर अऩने प्राणों की गनत को ठीक से सभझ रो तो कापी झॊझटो से छट्टी हो जामगी। े जऩ कयने से एक प्रकाय का आबाभण्डर फनता है , सूक्ष्भ तेज फनता है । उससे शयीय भें स्पनतद आती है , भन-फवद्ध भें फर फढ़ता है । जऩ कयते सभम अगय आसन ऩय नहीॊ फैठोगे तो ू शयीय की ववद्यत ् शडक्त को अथींग मभर जामगा। आबा, तेज, ओज, फर की सयऺा नही होगी। अत् आसन ऩय फैठकय प्राणामाभ, जऩ-तऩ, ध्मान-बजन कयना चाहहए। शयीय तन्दरुस्त यहे गा, भन एकाग्र फनेगा, फवद्ध तेजस्वी होगी, जीवन भें सत्त्वगण की ववद्ध होगी। ृ सत्त्वात ् सॊजामते ऻानभ ्।
  • 13. सत्त्वगण की ववद्ध से ऻान उत्ऩन्न होता है । ृ आदभी जजतना बी ऩाभय हो, उसभें ककतने बी दोष हों, अगय थोडे ही हदन इन साधनों का अवरॊफन रे तो उसक दोष अऩने आऩ ननकरने रगें गे। े सूक्ष्भ शडक्तमों से स्थर शडक्तमाॉ सॊचामरत होती हैं। भोटयकाय भें ऩेट्रोर से इॊजजन क बीतय ू े थोडी-सी आग जरती है । इससे इतनी फडी गाडी बागती है । ट्रे न क फोइरय भें थोडे गेरन ऩानी े होता है , उफरता है , वाष्ऩ फनता है , उससे हजायों भन, राखों टन वजन को रेकय इॊजजन को बागता है । ऐसे ही भन जफ ध्मान-बजन कयक सक्ष्भ होता है तो राखों भसीफतों को काटकय अऩने े ू बगवत्प्राद्ऱरूऩी भोऺ क द्राय ऩय ऩहॉ च जाता है । फाहय की गाडी तो वाष्ऩ क फर से तम्हें े े अभदावाद से हदल्री ऩहॉ चाती है जफकक तम्हायी हदर की गाडी अगय सत्त्वगण फढ़े तो हदरफय तक ऩयभात्भा तक, ऩहॉ चा दे ती है । भनष्म को कबी बी हताश नहीॊ होना चाहहए। आध्माजत्भक याह को योशन कयने वारे याहफय मभरे हैं, साधना का उत्तभ वातावयण मभर यहा है , इन फातों को आत्भसात ् कयने क मरए े श्रद्धा-बडक्त औय फवद्ध बी है तो जजतना हो सक, अचधक से अचधक चर रेना चाहहए। ककसी बी े द्खों से, ककसी बी ऩरयजस्थनतमों से रुकना नहीॊ चाहहए। गभ की अन्धेयी यात भें हदर को न फेकयाय कय। सफह जरूय आमेगी सफह का इन्तजाय कय।। घफयाहट से तम्हायी मोनमता ऺीण हो जाती है । जफ डय आमे तो सभझो मह ऩाऩ का द्योतक है । ऩाऩ की उऩज डय है । अववद्या की उऩज डय है । अऻान की उऩज डय है । ननबदमता ऻान की उऩज है । ननबदमता आती है इजन्िमों का सॊमभ कयने से, आत्भववचाय कयने से। 'भैं दे ह नहीॊ हूॉ.... भैं अभय आत्भा हूॉ। एक फभ ही नहीॊ, ववद्वबय क सफ फभ मभरकय बी शयीय क ऊऩय चगय े े ऩडें तो बी शयीय क बीतय का जो आत्भचैतन्म है उसका फार फाॉका बी नहीॊ होता। वह चैतन्म े आत्भा भैं हूॉ। सोऽहभ ्.... इस प्रकाय आत्भा भें जागने का अभ्मास कयो। 'सोऽहभ ् का अजऩाजाऩ कयो। अऩने सोऽहभ ् स्वबाव भें हटको। ववकायों से ज्मों-ज्मों फचते जाओगे त्मों-त्मों आध्माजत्भक उन्ननत होगी, नैनतक फर फढ़े गा। तभ सॊसाय का सदऩमोग कय ऩाओगे। अबी सॊसाय का सदऩमोग नहीॊ होता। सयकनेवारी चीजों का सदऩमोग नहीॊ होता, उनक दरुऩमोग होता है । साथ ही साथ हभाये भन-इजन्िमों का बी दरुऩमोग हो जाता है , हभाये जीवन का बी दरुऩमोग हो जाता है । कहाॉ तो दरदब भनष्म जन्भ..... दे वता रोग बी बायत भें भनष्म जन्भ रेने क मरए रारानमत यहते हैं... वह भनष्म े जन्भ ऩाकय आदभी दो योटी क मरए इधय उधय धक्का खा यहा है । दो ऩैसे क भकान क मरए े े े चगडचगडा यहा है ! चाय ऩैसे की रोन रेने क मरए राईन भें खडा है ! साहफों को औय एजेन्टों े को सराभ कयता है , मसकडता यहता है । जजतना मसकडता है उतना ज्मादा धक्क खाता है । ज्मादा े
  • 14. कभीशन दे ना ऩडता है । तफ कहीॊ रोन ऩास होता है । मह क्मा भनष्म का दबादनम है? भानव जीवन जीने का ढॊ ग ही हभ रोगों ने खो हदमा है । ववरामसता फढ़ गई है । ऐश-आयाभी जीवन (Luxurious Life) जीकय सखी यहना चाहते हैं वे रोग ज्मादा द्खी हैं फेचाये । जो भ्रद्शाचाय (Corruption) कयक सखी यहना चाहते हैं उनको अऩने े फेटों क द्राया, फेहटमों क द्राया औय कोई प्रोब्रेभ क द्राया चचत्त भें अशाॊनत की आग जरती यहती े े े है । अगय आयाभ चाहे तू दे आयाभ खरकत को। सताकय गैय रोगों को मभरेगा कफ अभन तझको।। दसयों का फाह्य ठाठ-ठठाया दे खकय अऩने शाॊनतभम आनन्दभम, तऩस्वी औय त्मागी जीवन ू को धधरा भत कयो। सख-वैबव की वस्तएॉ ऩाकय जो अऩने को सखी सभझकय उन जैसे होने क ॉ े मरए जो रोग नीनत छोडकय दयाचाय क तयप रगते हैं उन ऩय हभें दगनी दमा आती है । मे रोग े जीवन जीने का ढॊ ग ही नहीॊ सभझते। फहढ़मा भकान हो, फहढ़मा गाडी हो, फहढ़मा मह हो, फहढ़मा वह हो तो आदभी सखी हो जाम? अगय ऐसा होता तो यावण ऩूया सखी हो जाता। दमोधन ऩूया सखी हो जाता। नहीॊ, नहीॊ, ऐसा नहीॊ है । शक्कय णखरा शक्कय मभरे टक्कय णखरा टक्कय मभरे। नेकी का फदरा नेक है फदों को फदी दे ख रे। दननमाॉ ने जान इसको मभमाॉ सागय की मह भझदाय है । औयों का फेडा ऩाय तो तेया फेडा ऩाय है ।। करजग नहीॊ कयजग है मह इस हाथ दे उस हाथ रे।। भैंने सनी है एक सत्म घटना। अभदावाद, शाहीफाग भें डपनारा क ऩास हाईकोटद क एक जज सफह भें दातन कयते हए े े घूभने ननकरे थे। नदी क तयप दो यॊ गरूट जवान आऩस भें हॉ सी-भजाक कय यहे थे। एक ने े मसगये ट सरगाने क मरए जज से भाचचस भाॉगा। जज ने इशाये से इन्काय कय हदमा। थोडी दे य े इधय-उधय टहरकय जज हवा खाने क मरए कहीॊ फैठ गमे। दे ख यहे थे उन दोनों को। इतने भें वे े यॊ गरूट हॉसी-भजाक, तू-भैं-तू-भैं कयते हए रड ऩडे। एक ने याभऩयी चक्क ननकारकय दसये को ू ू घसेड हदमा, खन कय डारा औय ऩरामन हो गमा। जज ने ऩमरस को पोन आहद सफ ककमा ू होगा। खन का कस फना। सेशन कोटद से वह क घूभता घाभता कछ सभम क फाद आणखय हाई ू े े े कोटद भें उसी जज क ऩास आमा। कस जाॉचा। उन्हें ऩता चरा कक कस वही है । उस हदन वारी े े े घटना का उन्हें ठीक स्भयण था। उन्होंने दे खा तो ऩामा कक मह उस हदन वारा अऩयाधी तो नहीॊ है । वे जज कभदपर क अकाट्म मसद्धान्त को भाननेवारे थे। वे सभझते थे कक राॊच-रयद्वत मा े औय कोई बी अशब कभद उस सभम तो अच्छा रगता है रेककन सभम ऩाकय उसक पर बोगने े
  • 15. ही ऩडते हैं। ऩाऩ कयते सभम अच्छा रगता है रेककन बोगना ऩडता है । कछ सभम क मरए े आदभी ककन्हीॊ कायणों से चाहे छट जाम रेककन दे य सवेय कभद का पर उसे मभरता है , मभरता है ू औय मभरता ही है । जज ने दे खा कक मह अऩयाधी तो फूढ़ा है जफकक खन कयने वारा यॊ गरूट तो जवान था। ू उन्होंने फढ़े को अऩनी चेम्फय भें फरामा। फूढ़ा योने रगा् ू "साहफ ! डपनारा क ऩास, साफयभती का ककनाया.... मह सफ घटना भैं बफल्कर जानता े ही नहीॊ हूॉ। बगवान की कसभ, भैं ननदोष भाया जा यहा हूॉ।" जज सत्त्वगणी थे, सज्जन थे, ननभदर ववचायों वारे, खरे भन क थे। ननबदम थे। नन्स्वाथी े औय साजत्वक आदभी ननबदम यहता है । उन्होंने फढ़े से कहा् ू "दे खो, तभ इस भाभरे भें कछ नहीॊ जानते मह ठीक है रेककन सेशन कोटद भें तभ ऩय मह अऩयाध बफल्कर कपट हो गमा है । हभ तो कवर कानन का चकादा दे ते हैं। अफ हभ इसभें े ू औय कछ नहीॊ कय सकते। इस कस भें तभ नहीॊ थे ऐसा तो भेया भन बी कहता है कपय बी मह फात बी उतनी ही े ननजद्ळत है कक अगय तभने जीवनबय कहीॊ बी ककसी इन्सान की हत्मा नहीॊ की होती तो आज सेशन कोटद क द्राया ऐसा जडफेसराक कस तभ ऩय फैठ नहीॊ सकता था। े े काका ! अफ सच फताओ, तभने कहीॊ न कहीॊ, कबी न कबी, अऩनी जवानी भें ककसी भनष्म को भाया था?" उस फूढ़े ने कफूर कय मरमा् "साहफ ! अफ भेये आणखयी हदन हैं। आऩ ऩछते हैं तो फता ू दे ते हूॉ कक आऩकी फात सही है भैंने दो खन ककमे थे। राॊच-रयद्वत दे कय छट गमा था।" ू ू जज फोरे् "तभ तो दे कय छट गमे रेककन जजन्होंने मरमा उनसे कपय उनक फेटे रेंगे, ू े उनकी फेहटमाॉ रेंगी, कदयत ककसी न ककसी हहसाफ से फदरा रेगी। तभ वहाॉ दे कय छटे तो महाॉ ू कपट हो गमे। उस सभम रगता है कक छट गमे रेककन कभद का पर तो दे य-सवेय बोगना ही ू ऩडता है ।" कभद का पर जफ बोगना ही ऩडता है तो क्मों न फहढ़मा कभद कयें ताकक फहढ़मा पर मभरे? फहढ़मा कभद कयक कभद बगवान को ही क्मों न दे दें ताकक बगवान ही मभर जामें? े नायामण..... नायामण.... नायामण...... नायामण.... नायामण...... सत्त्वसॊशवद्ध क मरए, ननबदमता क मरए बगवान का ध्मान बगवन्नाभ का जऩ, बगवान े े क गणों का सॊकीतदन, बगवान औय गरुजनों का ऩूजन आहद साधन हैं। अजननहोत्र आहद उत्तभ े कभों का आचयण कयना सत्त्वगण फढ़ाने क मरए हहतावह है । ऩहरे क जभाने भें मऻ-माग होते े े थे। कपय उसका स्थान इद्श की भूनतदऩूजा ने मरमा। भूनतदऩूजा बी चचत्तशवद्ध का एक फहढ़मा साधन है । वेदशास्त्रों का ऩठन-ऩाठन, जऩ, कीतदन आहद से सत्त्वगण फढ़ता है । सत्त्वगण फढ़ने से भनोकाभना जल्दी से ऩणद होती है । हर की काभना कयने से तऩ खचद हो जाता है । ऊचे से ऊची ू ॉ ॉ
  • 16. मह काभना कयें कक, 'हे बगवान ् ! हभायी कोई काभना न यहे । अगय कोई काभना यहे तो तझे ऩाने की ही काभना यहे ।' ऐसी काभना से तऩ घटता नहीॊ, औय चाय गना फढ़ जाता है । जऩ-तऩ कयक, बगवन्नाभ सॊकीतदन से सत्त्वगण फढ़ाओ। स्वधभदऩारन कयने भें जो कद्श े सहना ऩडे वह सहो। तभ जहाॉ जो कत्तदव्म भें रगे हो, वहाॉ उसी भें फहढ़मा काभ कयो। नौकय हो तो अऩनी नौकयी का कत्तदव्म ठीक से फजाओ। दसये रोग आरस्म भें मा गऩशऩ भें सभम फयफाद ू कयते हों तो वे जानें रेककन तभ अऩना काभ ईभानदायी से उत्साहऩूवक कयो। स्वधभदऩारन कयो। द भहहरा हो तो घय को ठीक साप सथया यखो, स्वगद जैसा फनाओ। आश्रभ क मशष्म हो तो आश्रभ े को ऐसा सहावना फनाओ कक आने वारों का चचत्त प्रसन्न हो जाम, जल्दी से बगवान क ध्मान- े बजन भें रग जाम। तम्हें ऩण्म होगा। अऩना स्वधभद ऩारने भें कद्श तो सहना ही ऩडेगा। सदी-गभी, बख-प्मास, भान-अऩभान ू सहना ऩडेगा। अये चाय ऩैसे कभाने क मरए यातऩारीवारों को सहना ऩडता है , हदनऩारीवारों को े सहना ऩडता है तो 'ईद्वयऩारी' कयने वारा थोडा सा सह रे तो क्मा घाटा है बैमा? .....तो स्वधभदऩारन क मरए कद्श सहें । शयीय तथा इजन्िमों क सहहत अॊत्कयण की े े सयरता यखें । चचत्त भें क्रयता औय कहटरता नहीॊ यखें। जफ-जफ ध्मान-बजन भें मा ऐसे ही फैठें ू तफ सीधे, टट्टाय फैठें। झककय मा ऐसे-वैसे फैठने से जीवन-शडक्त का ह्रास होता है । जफ फैठें तफ हाथ ऩयस्ऩय मभरे हए हों, ऩारथी फॉधी हई हो। इससे जीवन-शडक्त का अऩव्मम होना रुक जामगा। सूक्ष्भ शडक्त की यऺा होगी। तन तन्दरुस्त यहे गा। भन प्रसन्न यहे गा। सत्त्वगण भें जस्थनत कयने भें सहाम मभरेगी। स्वधभदऩारन भें कद्श सहने ऩडे तो हॉ सते-हॉ सते सह रो मह दै वी सम्ऩदावान ऩरुष क रऺण हैं। ऐसे ऩरुष की फवद्ध ब्रह्मसख भें जस्थत होने रगती है । जजसकी फवद्ध े ब्रह्मसख भें जस्थत होने रगती है उसक आगे सॊसाय का सख ऩारे हए कत्ते की तयह हाजजय हो े जाता है । उसकी भौज ऩडे तो जया सा उऩमोग कय रेता है , नहीॊ तो उससे भॉह भोड रेता है । जजसक जीवन भें सत्त्वगण नहीॊ हैं , दै वी सॊऩवत्त नहीॊ है वह सॊसाय क सख क ऩीछे बटक- े े े बटककय जीवन खत्भ कय दे ता है । सख तो जया-सा मभरा न मभरा रेककन द्ख औय चचन्ताएॉ उसक बानम भें सदा फनी यहती हैं। े सफ द्खों की ननववत्त औय ऩयभ सख की प्रानद्ऱ अगय कोई कयना चाहे तो अऩने जीवन भें ृ सत्त्वगण की प्रधानता रामे। ननबदमता, दान, इजन्िमदभन, सॊमभ, सयरता आहद सदगणों को ऩद्श कये । सदगणों भें प्रीनत होगी तो दगण अऩने आऩ ननकर जामेंगे। सदगणों भें प्रीनत नहीॊ है , द इसमरए दगणों को हभ ऩोसते हैं। थोडा जभा थोडा उधाय.... थोडा जभा थोडा उधाय... ऐसा हभाया द खाता चरता यहता है । ऩाभयों को, कऩहटमों को दे खकय उनका अनकयण कयने क मरए उत्सक हो े जाते हैं। भ्रद्शाचाय कयक बी धन इकट्ठा कयने की चाह यखते हैं। अये बैमा ! वे रोग जो कयते हैं े वे बैंसा फन कय बोगें गे, वऺ फनकय कल्हाडे क घाव सहें गे, मह तो फाद भें ऩता चरेगा। उनकी ृ े नकर क्मों कय यहे हो?
  • 17. जीवन भें कोई बी ऩरयजस्थनत आमे तो सोचो कक कफीय होते तो क्मा कयते? याभजी होते तो क्मा कयते? रखनरारा होते तो क्मा कयते? सीताजी होती तो क्मा कयती? गागी होती तो क्मा कयती? भदारसा होती तो क्मा कयती? शफयी बीरनी होती तो क्मा कयती? ऐसा सोचकय अऩना जीवन हदव्म फनाना चाहहए। हदव्म जीवन फनाने क मरए दृढ़ सॊकल्ऩ कयना चाहहए। दृढ़ े सॊकल्ऩ क मरए सफह जल्दी उठो। सूमोदम से ऩहरे स्नानाहद कयक थोडे हदन ही अभ्मास कयो, े े तम्हाया अॊत्कयण ऩावन होगा। सत्त्वगण फढ़े गा। एक गण दसये गणों को रे आता है । एक ू अवगण दसये अवगणों को रे आता है । एक ऩाऩ दसये ऩाऩों को रे आता है औय एक ऩण्म दसये ू ू ू ऩण्मों को रे आता है । तभ जजसको सहाया दोगे वह फढ़े गा। सदगण को सहाया दोगे तो ऻान शोबा दे गा। अनक्रभ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ दै वी सम्ऩदा – 2 (हदनाॊक् 29.7.1990 यवववाय, अभदावाद आश्रभ) अहहॊसा सत्मभक्रोधस्त्माग् शाजन्तयऩैशनभ ्। दमा बूतेष्वरोरद्ऱवॊ भादद वॊ ह्रीयचाऩरभ ्।। 'भन, वाणी औय शयीय से ककसी प्रकाय बी ककसी को कद्श न दे ना, मथाथद औय वप्रम बाषण, अऩना अऩकाय कयने वारे ऩय बी क्रोध का न होना, कभों भें कत्तादऩन क अमबभान का े त्माग, अन्त्कयण की उऩयनत अथादत ् चचत्त की चॊचरता का अबाव, ककसी की बी ननन्दा आहद न कयना, सफ बूतप्राणणमों भें हे त यहहत दमा, इजन्िमों का ववषमों क साथ सॊमोग होने ऩय बी उनभें े आसडक्त का न होना, कोभरता, रोक औय शास्त्र से ववरुद्ध आचयण भें रज्जा औय व्मथद चेद्शाओॊ का अबाव (मे दै वी सम्ऩदा को रेकय उत्ऩन्न हए ऩरुष क रऺण हैं।) े (बगवद् गीता् 16.2) साधक को कसा होना चाहहए, जीवन का सवाांगी ववकास कयने क मरए कसे गण धायण ै े ै कयने चाहहए, जीवन का सवाांगी ववकास कयने क मरए कसे गण धायण कयने चाहहए इसका े ै वणदन बगवान श्रीकृष्ण 'दै वीसम्ऩद् ववबागमोग' भें कयते हैं। कछ ऐसे भहाऩरुष होते हैं जजनके जीवन भें मे गण जन्भजात होते हैं। कछ ऐसे बक्त होते हैं जजनक जीवन भें बडक्त-बाव से मे े गण धीये -धीये आते हैं। उनको महद सत्सॊग मभर जाम, वे थोडा ऩरुषाथद कये तो गण जल्दी से आते हैं। साधक रोग साधन-बजन कयक गण अऩने भें बय रेते हैं। े