2. ONTOLOGY
what is?
प्रकृत ेः क्रियमाणानि गुण ेः कमााणण सर्ाशेः।
अहङ्कारवर्मूढात्मा कतााहममनत मन्यत ॥३-२७॥
ETIOLOGY
from where?
ब्रह्मार्ाणंब्रह्म हवर्ब्राह्माग्िौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्म र् ति गन्तव्यंब्रह्मकमासमाधििा ॥४-२४॥
FUTUROLOGY
heading where?
अहमात्मा गुडाक श सर्ाभूताशयस्थितेः ।
अहमादिश्च मध्यंच भूतािामन्त एर् च ॥१०-२०॥
AXIOLOGY
what’s right or wrong?
श्र यान्थर्िमो वर्गुण: र्रिमाात्थर्िुस्ठितात।्
थर्िमे निििंश्र य: र्रिमो भयार्ह: ॥३.३५॥
EPISTEMOLOGY
way to know?
इिंशरीरंकौन्त य क्ष त्रममत्यमभिीयत |
एतद्यो र् वि तंप्राहुेः क्ष त्रज्ञ इनत तद्वर्िेः ॥१३.१॥
PRAXEOLOGY
how?
कमाण्य र्ाधिकारथत मा फल षुकिाचि ।
मा कमाफलह तुभूामाात सङ्गोऽथत्र्कमाणण ॥२-४७॥
योगथि: कुरु कमााणण सङ्गंत्यक्तत्र्ा ििञ्जय ।
मसद्ियमसद्ियो: समोभूत्र्ासमत्र्ंयोगउच्यत ॥२-४८॥
3. Same paradigm OR Synthetic Integration OR
Integrative Paradigm??
INTEGRATIVE PARADIGM
।। एकं सत्वर्प्रा : बहुिा र्िस्न्त।।
Integral unity
।।यतो -अभ्युिय निेःश्र यसमसद्धि स िमाेः ।।
Holistic attainment
।। मसद्ियमसध्योेः समो भूत्र्ा समत्र्ंयोग ।।
Integral view on action through embodied knowing
।। प्रकृत ेः क्रियमाणानि गुण ेः कमााणण सर्ाशेः।।
Doing without doership
।। तत्त्र्म्अमस ।।
We are all connected
4. अनुष्टुप छंद
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ
ए ऐ ओ औ अं अ:
क ख ग घ ङ्
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
नैव किञ्चित्िरोमीतत युक्तो मन्येत तत्त्वववत्।
स्वर
व्यञ्जन
क्ष त्र ज्ञ
पश्यचशृण्वन््पृशञ्चिघ्रन्नश्नन्गच्छन््वपचश्वसन्॥५ .८॥
उपिातत छंद
गुरूनहत्वा हह महानुभावान्श्रेयो भोक्तुंभैक्ष्यमपीह लोिे ।
हत्वार्थिामां्तुगुरूतनहैव भुचिीयभोगान्रुधिरप्रहदग्िान्॥२ .५॥
Editor's Notes
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी
3.27 - सभी कर्म प्रकृतिके गुणोंद्वारा किये जाते हैं, अहङकार मूढ चित्तवाला अज्ञानी इन्सान 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा मानता है ।
4.24 - (जिस यज्ञमें) अर्पण ब्रह्म है, हवन-द्रव्य भी ब्रह्म है, तथा ब्रह्मरूप कर्ताके द्वारा ब्रह्मरूप अग्निमें आहुति देनेकी क्रिया भी ब्रह्मरुप है- उस ब्रह्मकर्मरुप समाधि द्वारा प्राप्त किये जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है ।
10.20 - हे गुडाकेश ! मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ तथा संपूर्ण भूतों का आदि, मध्य और अंत भी मैं ही हूँ ।
3.35 - अच्छी प्रकार से आचरण में लाये हुए दुसरे के धर्म से गुणरहित होते हुए भी स्वधर्म श्रेष्ठ है । स्वधर्म में तो मृत्यु भी कल्याणकारक है और परधर्म तो भय को देने वाला है
13.1 - हे कौन्तेय ! ‘यह’ रूप से कहे जानेवाले शरीरको ‘क्षेत्र’ - इस नाम से कहते हैं (और) इस क्षेत्र को जानता है उसको ज्ञानीलोग ‘क्षेत्रज्ञ’ - इस नाम से कहते हैं
2.47 - तेरा कर्म करनेमें ही अधिकार है, उसके फलोंमें कभी नहीं । अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो ।
2.48 - हे धनञ्जय ! तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धि-असिद्धि में सम होकर योग में स्थित हुआ कर्मों को कर; क्योंकि ‘समत्व’ ही योग कहा जाता है ।
Why recite and know yourself -
Developing intelligence for the context -
http://www.newscientist.com/article/dn6303-language-may-shape-human-thought.html#.VGzFL_mUdK0
Human connectome project:- http://www.humanconnectomeproject.org/data/relationship-viewer/
Einstein - http://en.wikipedia.org/wiki/Albert_Einstein's_brain#Stronger_connection_between_brain_hemispheres
Cortical Activations during Devanagri script/ (National Brain Research)
Brain disorders:- http://www.brainnet.net/what-data-are-available/
How many अक्षर (अ - क्षर) are there in English ? 2 a,e, Devnagari - 7 (X2) vowels, 36 consonants, 1296 (36X36) biconsonantal conjuncts (successive consonants lacking a vowel in between them may physically join together as a conjunct or ligature.)
Save yourself from unwanted evangelical interpretations -
War and Peace in the Bhagavad Gita? - Wendy Doniger - http://www.nybooks.com/articles/archives/2014/dec/04/war-and-peace-bhagavad-gita/
WENDY DONIGER’S IGNORANCE OF THE BHAGAVAD GITA - https://www.indiafacts.co.in/wendy-donigers-ignorance-bhagavad-gita/#.VHbpO9KUf-V