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नवरात्र और नववर्ष का शुभ-संगम
आज से नवरात्र के पववत्र नौ दिनों का शुभारंभ हो चुका है और इसी के साथ शुरु हो रहा है दहंिु
नवसंवत्सर यानन दहंिी का नया साल। दहंिु पंचांग के अनुसार नये साल की शुरुआत इसी दिन से होती
है। चैत्र मास के नवरात्र को वावर्षक नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्र साल में िो बार आते है एक चैत्र
मास में और िूसरा आश्ववन मास में। लेककन िोनों ही नवरात्रों में मां िुगाष की उपासना का ववधान एक
जैसा ही होता है। िोनों नवरात्र प्रनतपिा से िशमी नतथथ तक मनाये जाते है।
िुगाष मां को स्नेह, करुणा और ममता का स्वरुप माना गया है। नवरात्र के पववत्र नौ दिनों तक भक्त पूरी
श्रद्धा के साथ िुगाष मां के नौ रुपों की अराधना करते हैं। मां के नौ रुप इस प्रकार है - शैलपुत्री,
ब्रह्मचाररणी,चंद्रघंटा,कू षमांडा,स्कं िमाता,कात्यायनी,कालरात्री,महागौरी और ससद्धिात्री
पहला नवरात्र - मााँ शैलपुत्री की उपसाना
नवरात्र के पहले दिन का शुभारंभ मााँ शैलपुत्री की उपसाना के साथ होता है। दहमालय की कन्या होने के
कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है। मााँ शैलपुत्री के िादहने हाथ में त्रत्रशूल और बाएाँ हाथ में कमल का पुषप
अपने वाहन वृर्भ पर ववराजमान होती है। िुगाष मां की उपासना नौ दिन तक चलती है श्जसके सलये
कलश-स्थापना से लेकर समट्टी के बतषन में जौ बोने तक की प्रथा सश्ममसलत है इसके सलये सबसे पहले
भूसम का शुद्थधकरण ककया जाता है।
भूसम का शुद्थधकरण
माता रानी की उपासना के सलये कलश-स्थापना से पूवष भूसम को शुद्ध ककया जाता है। शहरों में पक्के घर
और फशष होने के कारण उसे गंगाजल या पानी से धोकर शुद्ध ककया जाता है लेककन हमारी पुरानी
परपंरा के अनुसार भूसम के शुद्थधकरण के सलये गोबर और गो-मूत्र का प्रयोग ककया जाता था। इसके
सलये भूसम को गोबर से लीपा जाता है और गौ-मूत्र से निड़काव ककया जाता है। इसके साथ ही वातावरण
को सुगंथधत करने के सलये अक्षत और कु मकु म का प्रयोग भी ककया जाता है।
कलश और नाररयल की स्थापना
िुगाष मां की पूजा कलश स्थापना के साथ आरंभ होती है श्जसे नौ दिनों तक पूजा-स्थल में रखा जाता है।
कलश को भली-भांनत धोकर जल से भरकर रखा जाता है। पानी भरे कलश के ऊपर नाररयल को रखा
जाता है। नाररयल को लाल रंग की चुनरी और कलावे से बांधा जाता है और रोली का नतलक लगाया
जाता है। कलश की स्थापना के साथ ही सात प्रकार की समट्टी,सुपारी,मुद्रा आदि मां को चढाये जाते हैं।
समट्टी के बतषन में जौ बोना
भक्त नौ दिन तक पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने का संकल्प करते है। इसके सलये एक समट्टी के बतषन
में जौ बोई जाती है श्जसे नौ दिनों के सलये मंदिर में स्थावपत ककया जाता है। समट्टी के बतषन मे सात
प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते है। नौवें दिन तक समट्टी का बतषन हरे रंग की कोमल बासलयों से
भर जाता है और इन्हें नवरात्र के िसवें दिन काटा जाता है।
माता रानी की अखंड जोत
माता रानी के मंदिर में लगातार अखंड जोत का जलते रहना पूजा का एक अहम दहस्सा माना गया है।
इसके सलये शुद्ध िेशी घी, िीपक और कपास की बानतयों का प्रयोग ककया जाता है।
माता रानी की प्रनतमा की स्थापना
िूगाष मां की प्रनतमा को पूजा-स्थल पर बीच में स्थावपत ककया जाना चादहए। माता रानी के िायीं ओर
िेवी महालक्ष्मी,गणेश और ववजया नामक योथगनी की प्रनतमा रखनी चादहये और बायीं ओर कानतषके य,
िेवी महासरस्वती और जया नामक योथगनी की स्थापना करनी चादहये। मां िुगाष के साथ ही भगवान
भोलेनाथ की पूजा भी की जाती है।
नवरात्र के नौ दिनों तक खासतौर पर घर और मंदिरों का वातावारण आरती और घंदटयों से गूंजायमान
रहता है। भक्तजन आरती में “जग जननी जय जय” और “जय अमबे गौरी” के गीत ववशेर् रुप से गाते
है।

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नवरात्र और नववर्ष का शुभ

  • 1. नवरात्र और नववर्ष का शुभ-संगम आज से नवरात्र के पववत्र नौ दिनों का शुभारंभ हो चुका है और इसी के साथ शुरु हो रहा है दहंिु नवसंवत्सर यानन दहंिी का नया साल। दहंिु पंचांग के अनुसार नये साल की शुरुआत इसी दिन से होती है। चैत्र मास के नवरात्र को वावर्षक नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्र साल में िो बार आते है एक चैत्र मास में और िूसरा आश्ववन मास में। लेककन िोनों ही नवरात्रों में मां िुगाष की उपासना का ववधान एक जैसा ही होता है। िोनों नवरात्र प्रनतपिा से िशमी नतथथ तक मनाये जाते है। िुगाष मां को स्नेह, करुणा और ममता का स्वरुप माना गया है। नवरात्र के पववत्र नौ दिनों तक भक्त पूरी श्रद्धा के साथ िुगाष मां के नौ रुपों की अराधना करते हैं। मां के नौ रुप इस प्रकार है - शैलपुत्री, ब्रह्मचाररणी,चंद्रघंटा,कू षमांडा,स्कं िमाता,कात्यायनी,कालरात्री,महागौरी और ससद्धिात्री पहला नवरात्र - मााँ शैलपुत्री की उपसाना नवरात्र के पहले दिन का शुभारंभ मााँ शैलपुत्री की उपसाना के साथ होता है। दहमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया है। मााँ शैलपुत्री के िादहने हाथ में त्रत्रशूल और बाएाँ हाथ में कमल का पुषप अपने वाहन वृर्भ पर ववराजमान होती है। िुगाष मां की उपासना नौ दिन तक चलती है श्जसके सलये कलश-स्थापना से लेकर समट्टी के बतषन में जौ बोने तक की प्रथा सश्ममसलत है इसके सलये सबसे पहले भूसम का शुद्थधकरण ककया जाता है। भूसम का शुद्थधकरण माता रानी की उपासना के सलये कलश-स्थापना से पूवष भूसम को शुद्ध ककया जाता है। शहरों में पक्के घर और फशष होने के कारण उसे गंगाजल या पानी से धोकर शुद्ध ककया जाता है लेककन हमारी पुरानी परपंरा के अनुसार भूसम के शुद्थधकरण के सलये गोबर और गो-मूत्र का प्रयोग ककया जाता था। इसके सलये भूसम को गोबर से लीपा जाता है और गौ-मूत्र से निड़काव ककया जाता है। इसके साथ ही वातावरण को सुगंथधत करने के सलये अक्षत और कु मकु म का प्रयोग भी ककया जाता है। कलश और नाररयल की स्थापना िुगाष मां की पूजा कलश स्थापना के साथ आरंभ होती है श्जसे नौ दिनों तक पूजा-स्थल में रखा जाता है। कलश को भली-भांनत धोकर जल से भरकर रखा जाता है। पानी भरे कलश के ऊपर नाररयल को रखा जाता है। नाररयल को लाल रंग की चुनरी और कलावे से बांधा जाता है और रोली का नतलक लगाया जाता है। कलश की स्थापना के साथ ही सात प्रकार की समट्टी,सुपारी,मुद्रा आदि मां को चढाये जाते हैं। समट्टी के बतषन में जौ बोना भक्त नौ दिन तक पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने का संकल्प करते है। इसके सलये एक समट्टी के बतषन में जौ बोई जाती है श्जसे नौ दिनों के सलये मंदिर में स्थावपत ककया जाता है। समट्टी के बतषन मे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते है। नौवें दिन तक समट्टी का बतषन हरे रंग की कोमल बासलयों से भर जाता है और इन्हें नवरात्र के िसवें दिन काटा जाता है। माता रानी की अखंड जोत
  • 2. माता रानी के मंदिर में लगातार अखंड जोत का जलते रहना पूजा का एक अहम दहस्सा माना गया है। इसके सलये शुद्ध िेशी घी, िीपक और कपास की बानतयों का प्रयोग ककया जाता है। माता रानी की प्रनतमा की स्थापना िूगाष मां की प्रनतमा को पूजा-स्थल पर बीच में स्थावपत ककया जाना चादहए। माता रानी के िायीं ओर िेवी महालक्ष्मी,गणेश और ववजया नामक योथगनी की प्रनतमा रखनी चादहये और बायीं ओर कानतषके य, िेवी महासरस्वती और जया नामक योथगनी की स्थापना करनी चादहये। मां िुगाष के साथ ही भगवान भोलेनाथ की पूजा भी की जाती है। नवरात्र के नौ दिनों तक खासतौर पर घर और मंदिरों का वातावारण आरती और घंदटयों से गूंजायमान रहता है। भक्तजन आरती में “जग जननी जय जय” और “जय अमबे गौरी” के गीत ववशेर् रुप से गाते है।