सुख-दुख
सुमित्रानंदन पंत
िैं नह ं चाहता चचर-सुख,
िैं नह ं चाहता चचर-दुुःख;
सुख-दुुःख की खेल
मिलौनी,
खोले जीवन अपना िुख!
सुख-दुुःख के िधुर मिलन से
यह जीवन हो पररपूरन;
फिर घन िें ओंझल हो शमश
फिर शमश से ओंझल हो घन !
जग पीड़ित है अतत-दुुःख से
जग पीड़ित रे अतत-सुख से;
िानव जग िें बँट जावें
दुुःख-सुख से औ सुख-दुुःख से !
अववरत दुुःख है उत्पीिन,
अववरत सुख भी उत्पीिन;
दुुःख-सुख की तनशा-ददवा िें
सोता-जागता जग-जीवन !
यह साँझ उषा का आँगन,
आमलंगन ववरह-मिलन का;
चचर हास-अश्रुिय आनन
रे इस िानव-जीवन का !
Sukh dukh

Sukh dukh

  • 1.
  • 2.
    िैं नह ंचाहता चचर-सुख, िैं नह ं चाहता चचर-दुुःख; सुख-दुुःख की खेल मिलौनी, खोले जीवन अपना िुख!
  • 3.
    सुख-दुुःख के िधुरमिलन से यह जीवन हो पररपूरन; फिर घन िें ओंझल हो शमश फिर शमश से ओंझल हो घन !
  • 4.
    जग पीड़ित हैअतत-दुुःख से जग पीड़ित रे अतत-सुख से; िानव जग िें बँट जावें दुुःख-सुख से औ सुख-दुुःख से !
  • 5.
    अववरत दुुःख हैउत्पीिन, अववरत सुख भी उत्पीिन; दुुःख-सुख की तनशा-ददवा िें सोता-जागता जग-जीवन !
  • 6.
    यह साँझ उषाका आँगन, आमलंगन ववरह-मिलन का; चचर हास-अश्रुिय आनन रे इस िानव-जीवन का !