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भगीरथ भैया !!! 
तनिक सुिो तो –- 
अरे सुिो भगीरथ भैया ! तनिक हमारी मि की बात | 
तुमिे जो भी ककया सही था सूययवंश के अिुपमपूत | 
हाल देख अपिे पुखों का ददल पर लगा बड़ा आघात | 
तुमिे ककया तप अत्यंत कठोर बरसों तक ददि-रात | 
आखखर हुआ अपूवय पररश्रम का अत्यंत मधुर प्रभात | 
उतरी मैया गंगा –- 
अपिे पूवयजों को रिे तुम्हें चादहए था पावि गंगा-जल , 
कतयव्य था अनत भारी, किर भी रहे तुम लक्ष्य पर अटल , 
ऐसी लगि, अद्भुत सदहष्णुता ! मैया आखखर गई पपघल | 
आखखर तुम हुए पवजयी, मैया उतरी स्वगय लोक से धरातल, 
सहेगी कैसे धरती माता मैया का प्रवाह प्रलय-सा प्रबल | 
असीम कृपा शशव की –- 
अटका ली मैया तुम्हारी धाराओं को स्व जटाओं में , 
छोड़ी थी इक पतली धारा चुकाया पपतरों का ऋण तुमिे | 
अहोभाग्य, धरती भी पाविी बिी उल्लास भरी क्या कहिे | 
सब हुए हपषयत पाकर कृपा, तुम लगी आशीष बरसािे | 
होते-होते सारे पाप, जिों का पूरा ही शमलिे - लिे ||
सूरदास होते आज –- 
सूरदास िे मैया की मदहमा गाते कहा था – सारे िाले , 
हो जाते इक रूप तब अपिा अस्स्तत्व खो गंगा ही कहलाते , 
अब वे होते तो क्या कहते? क्या उिके मूूँह से शब्द निकलते? 
तुम्हें देख माूँ मि में भस्क्तभर जाती, सारे शसर ित हो जाते, 
आज तुम्हारी स्स्थनत निहार खूि के आूँसू सभी बहाते | 
मैया तुमिे सब कुछ देखा –- 
मैया तुमिे क्या िहीं देखा ? ककतिों को शासि करते देखा ! 
बिते देखा राज्यों को, गगरते देखा गदियों को, गत को देखा | 
तुम हो जीवि मैया, जीवि को भी काल–कवशलत होते देखा | 
आदद काल से आज तक धीरे-धीरे पिप रहे अन्याय स देखा | 
ज , लोगों िे आूँखें मूूँद तुम्हें देखा || 
किर से भैया आए तो –- 
मैं तो कहती भगीरथ भैया किर से आए – है संभाविा ? 
किर से करे तपस्या कठोरतम निशश-ददि एक - है संभाविा ? 
भैया ही तो लाए थे मैया को उतार स्वगय से – है संभाविा ? 
कक वापस उसे स्वगय भेज, वह स्वस्थ हो जाए - है संभाविा ? 
भैया रोए करे पश्चात्ताप अपिी करिी पर ---- है संभाविा ?
पविती ह करते मैया –- 
संताि भले ही बुरी हो सकती, ि माता हो सकती बुरी कभी | 
मुित से लोग कहते ि थकते, होकर रहेगी सेवा तुम्हारी , 
क्षमा करो माूँ, हममें स्वाथय बढ़ गया, ि अखरती दुदयशा तुम्हारी | 
तुम्हारा ‘त्रादह-त्रादह’ कोई ि सुिता, है उसकी यह लाचारी | 
हाथ जोड़ते मैया, चरण छू पविती करते, वापसी ज़रूरी है तुम्हारी |

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  • 2. सूरदास होते आज –- सूरदास िे मैया की मदहमा गाते कहा था – सारे िाले , हो जाते इक रूप तब अपिा अस्स्तत्व खो गंगा ही कहलाते , अब वे होते तो क्या कहते? क्या उिके मूूँह से शब्द निकलते? तुम्हें देख माूँ मि में भस्क्तभर जाती, सारे शसर ित हो जाते, आज तुम्हारी स्स्थनत निहार खूि के आूँसू सभी बहाते | मैया तुमिे सब कुछ देखा –- मैया तुमिे क्या िहीं देखा ? ककतिों को शासि करते देखा ! बिते देखा राज्यों को, गगरते देखा गदियों को, गत को देखा | तुम हो जीवि मैया, जीवि को भी काल–कवशलत होते देखा | आदद काल से आज तक धीरे-धीरे पिप रहे अन्याय स देखा | ज , लोगों िे आूँखें मूूँद तुम्हें देखा || किर से भैया आए तो –- मैं तो कहती भगीरथ भैया किर से आए – है संभाविा ? किर से करे तपस्या कठोरतम निशश-ददि एक - है संभाविा ? भैया ही तो लाए थे मैया को उतार स्वगय से – है संभाविा ? कक वापस उसे स्वगय भेज, वह स्वस्थ हो जाए - है संभाविा ? भैया रोए करे पश्चात्ताप अपिी करिी पर ---- है संभाविा ?
  • 3. पविती ह करते मैया –- संताि भले ही बुरी हो सकती, ि माता हो सकती बुरी कभी | मुित से लोग कहते ि थकते, होकर रहेगी सेवा तुम्हारी , क्षमा करो माूँ, हममें स्वाथय बढ़ गया, ि अखरती दुदयशा तुम्हारी | तुम्हारा ‘त्रादह-त्रादह’ कोई ि सुिता, है उसकी यह लाचारी | हाथ जोड़ते मैया, चरण छू पविती करते, वापसी ज़रूरी है तुम्हारी |