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उत्तराखंड क
े पर्वतीय क्षेत्रं में प्राक
ृ ततक जल
स्त्ररतरं की र्तवमान स्थितत, भू-जल तर्ज्ञान एर्ं
कायाकल्प यरजना पर अध्ययन
 पंकज क
ु मार ठाक
ु र (प्रोजेक्ट एसोशिएट-I, भूजल जल शिज्ञान प्रभाग, राष्ट्र ीय जलशिज्ञान संस्थान, रुड़की-447667)
 तर्नरद क
ु मार बाल्यान (प्रोफ
े सर, शसंचाई और जल शनकासी अशभयांशिकी शिभाग, गोशिंद बल्लभ पंत क
ृ शि एिं प्रौद्योशगकी
शिश्वशिद्यालय, पंतनगर-263145)
 गरपाल क
ृ ष्ण (िैज्ञाशनक-डी, भूजल जल शिज्ञान प्रभाग, राष्ट्र ीय जलशिज्ञान संस्थान, रुड़की-263145)
प्रस्तुतकताा:
1. पररचय
 प्राक
ृ शतक जल स्त्रोत (शजन्हें स्थानीय रूप से, नौला या धारा कहा जाता है) आशदकाल से ही भारतीय शहमालयी क्षेि (शििेितः
उत्तराखंड) में ग्रामीण और िहरी जल आपूशता का एकमाि स्रोत रहे हैं।
 अतनयतमत र्र्ाव, भूक
ं पीय गशतशिशि, भूस्खलन, पाररस्स्थशतक क्षरण, जलिायु पररितान एिं भूशम क
े अशनयंशित उपयोग क
े कारण
पिातीय जलभृत प्रणाली बुरी तरह प्रभाशित हो रही है शजसक
े पररणामस्वरूप शहमालय क
े आिे से ज्यादा जल स्त्रोत या तो सूख गए हैं
या उनका प्रिाह कम हो गया है।
 पानी क
े इन पारंपररक जल स्रोतों का पुनरुद्धार पिातीय क्षेिों क
े सतत शिकास क
े शलए बहुत महत्वपूणा है।
 आज, प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों (झरनों) क
े पुनरुद्धार क
े शलए पिातीय क्षेिों में एक उपयुक्त एिं शििेि इकाई क
े रूप में िाटरिेड क
े
साथ ही स्रंगशेड प्रबंधन पर ज़ोर देने का समय आ गया है (नीतत आयरग, 2018)।
 हालांशक, स्रंगिेड प्रबंिन शहमालय और भारत क
े कई 'स्रंगस्क
े प्स' सशहत अन्य पड़ोसी क्षेिों में प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों (शििेितः
झरनों) क
े कायाकल्प एिं पुनुरुद्धार क
े शलए आशा की नई तकरण क
े रूप में उभरा है। शकन्तु, प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों क
े प्रिाह में
कमी क
े िल एक-आयामी समस्या नहीं है अशपतु, क
ु छ ििों से, इन जल स्त्रोतों क
े पानी की गुणर्त्ता मे भी शगरािट आई है।
 यशद प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) का पानी एक बार दू तर्त हो जाता है, तो या तो यह अपनी प्राक
ृ शतक अिस्था में िापस
नहीं आता है या इसमें लंबा समय लगता है। इसशलए, एक प्रभािी स्रंग जल प्रबंिन योजना शिकशसत करने क
े साथ-साथ शनयशमत
आिार पर इन जल स्त्रोतों क
े पानी की गुणर्त्ता की तनगरानी बेहद आिश्यक एिं महत्वपूणा है (नीतत आयरग, 2018)।
 जल गुणित्ता सूचकांक (WQI), एक िब्द की मदद से पानी की समग्र गुणित्ता का प्रशतशनशित्व करने क
े शलए एक अनूठी रेशटंग
पद्धशत है।
 सुदू र संर्ेदन प्रौद्यरतगकी क
े शिकास क
े साथ, क
ं प्यूत ंग प्रौद्यरतगकी में शिकास और भौगोशलक सूचना प्रणाली में निाचार ने तस्वीर
बदल दी है। अब, RS और GIS का उपयोग स्रंग्स कर तचस्हित करने और भूशम उपयोग तथा स्रंग्स की रूपात्मक शििेिताओं क
े
संबंि में तडथचाजव पै नव क
े अध्ययन क
े शलए प्रभािी ढंग से शकये जा सकता है (सराफ ए अल., 2000) ।
2. सामाग्री एर्ं तर्तध
सामान्य तर्र्रण
उत्तराखंड भारत का एक उत्तरी राज्य है जो शहमालय की गोद में बसा है। राज्य का
भौगोशलक क्षेिफल लगभग 53,483 िगा शक.मी. है। उत्तराखंड राज्य को दो मंडलों
(क
ु माऊ
ं और गढ़र्ाल) में शिभाशजत शकया गया है। देहरादू न राज्य की राजिानी है
जो राज्य का सबसे बडा तजला भी है। राज्य में क
ु ल 13 प्रिासशनक शजले हैं शजनमें से
9 पहाड़ी हैं तथा क
े िल 4 में मैदानी स्थलाक
ृ शत है और इस प्रकार राज्य का लगभग
85% क्षेत् पिाडी है। यमुना और गंगा भारत की दो प्रमुख नशदयााँ हैं जो क्रमिः
यमुनोिी और गंगोिी से शनकलती हैं, उत्तराखंड राज्य का ही अशभन्न शहस्सा हैं।
उत्तराखंड भौगोशलक समन्वय प्रणाली क
े आिार पर 30.0668°N और 79.0193°E क
े
मध्य स्स्थत है। तचत् 1 भारत में उत्तराखंड राज्य की भौगोशलक स्स्थशत को दिााता है।
शचि 1: उत्तराखंड का अिस्स्थशत मानशचि
स्रंगशेड का सीमांकन
ितामान अध्ययन में, घाटी सीमा दृशष्ट्कोण को अपनाकर स्रंगिेड की सीमाओं को शचन्नशहत करने क
े शलए ररमोट सेंशसंग और जीआईएस
तकनीकों (QGIS, ArcGIS, ERDAS, Google Earth Pro एिं Google Earth Engine) का प्रयोग शकया गया। स्रंगिेड क
े सीमांकन हेतु डाटा का
संग्रहण एिं शिश्लेिण शनम्नानुसार शकया गया:
 भूशिज्ञान मानशचि
 अध्ययन क्षेि की िेपफाइल
 अध्ययन क्षेि की डीईएम फाइल
 स्रंग डेटा
 समोच्च रेखा मानशचि
 स्रंगिेड का सीमांकन
Data
Study Area Shapefile
(Clipped)
Raster Dataset
(Mosaic)
Geology Map of the
Study Area
Contour Map
(Generated from Raster Dataset)
Spring Data Excel Sheet
(Saved as csv format)
(Clipped)
स्रंगशेड प्रबंधन यरजना
स्रंगिेड प्रबंिन शहमालायी क्षेिों में जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) क
े पुनुिाार एिं कायाकल्प क
े शलए एक उन्नत एर्ं कारगर तरीका है और भारत क
े
अन्य 'स्रंगस्क
े प्स' और आसपास क
े क्षेिों में आशा की एक तकरण क
े रूप में उभरा है।
िारा शिकास कायाक्रम (नीतत आयरग, 2018) द्वारा शिकशसत 6-चरणीय तकनीक को अपनाकर स्रंगिेड प्रबंिन क
े शसद्धांत को शनम्नानुसार तैयार
शकया गया है:
चरण 1: जल स्त्ररतरं(झरनरंएर्ं धाराओं) का व्यापक मानतचत्ण
1.1 शचस्न्हत क्षेि की पृष्ठभूशम की जानकारी का संग्रह
1.2 क्षेि का टोही सिेक्षण
1.3 ररमोट सेंशसंग और जीआईएस क
े उन्नत तरीकों का उपयोग करक
े स्रंग्स का मानशचिण और डेटा अशभलेखन
1.4 स्रंगिेड का सीमांकन
चरण 2: िाइड
र रतजयरलॉतजकल मैतपंग
2.1 क्षेि क
े भूिैज्ञाशनक मानशचि का संग्रह
2.2 क्षेि क
े भूशिज्ञान (अक्षांि, देिांतर, ऊ
ं चाई, स्थान, आशद) का अध्ययन
2.3 गूगल अथा/टोपोिीट का उपयोग करक
े आिार मानशचि का शनमााण
चरण 3: स्रंगशेड क
े भूर्ैज्ञातनक मानतचत् और र्ैचाररक िाइड
र रतजयरलॉतजकल लेआउ की संरचना
चरण 4: जल स्त्ररतरंक
े प्रकार और पुनभवरण क्षेत्रंका र्गीकरण
4.1 जलस्त्रोतों और जलभरण क्षेिों की पहचान और उनका िगीकरण
4.2 ररचाजा क्षेि का रेखांकन
चरण 5: स्रंगशेड प्रबंधन प्रर रकॉल और कायावन्वयन
5.1 स्रंगिेड की हाइड
र ोलॉशजकल इन्वेंटरी तैयार करना
5.2 परक्राम्य और गैर-परक्राम्य भूशम उपयोग और भूशम आिरण में पररितान का अध्ययन
5.4 ररचाजा और शडस्चाजा क्षेि क
े शलए संरक्षण एिं बीच-बचाओ क
े उपायों की तैयारी
5.5 पररचालन और रखरखाि शदिाशनदेिों का गठन
चरण 6: डे ा तनगरानी प्रणाली की थिापना
6.1 स्रंग शडस्चाजा डेटा का सतत संग्रहण
6.2 डेटा भंडारण, प्रबंिन और शिश्लेिण
जल गुणर्त्ता तर्श्लेर्ण
हालााँशक, शहमालय क
े प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों (झरने एिं िारा) को पृथ्वी पर मौजूद जल का सबसे िुद्ध रूप माना जाता है।
लेशकन, आजकल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मानिजशनत कारणों से तस्वीर क
ु छ िूशमल सी हो गई है। इसशलए, आज इन जल स्त्रोतों
क
े जल की भी भौशतक-रासायशनक-जैििैज्ञाशनक गुणों तथा हैिी मेटल्स इत्याशद क
े शिश्लेिण की जरूरत आन पड़ी है। ताशक
इन जलस्त्रोतों की जलगुणित्ता रेशटंग क
े आिार पर इनक
े उपचार (यशद आिश्यक हो) और कई उद्देश्यों क
े शलए उपयोशगता
हेतु आगे की रणनीशत बनाई जा सक
े ।
डे ा संग्रि और जल गुणर्त्ता मूल्यांकन
सीमांशकत स्रंगिेड क
े जल स्त्रोतों की गुणित्ता क
े मूल्ांकन हेतु सीमारेखा क
े अंदर मौजूद शिशभन्न जल स्त्रोतों क
े सैम्प्ल्ल्स
शलए जाते हैं साथ ही साथ इन जलस्त्रोतों शक भौगरतलक थितत (अक्षांि, देिांतर और ऊ
ं चाई) भी नोट कर ली जाती है ताशक
मूल्ांकन क
े पश्चात जल गुणित्ता मानकों की थिातनक-लौतकक शभन्नता को भी समझा जा सक
े । स्रंग िाटर क्वाशलटी क
े
मूल्ांकन की शिशियााँ क
ु छ इसप्रकार हैं:
क्र. सं. भौततक पैरामी र रासायतनक पैरामी र
1. रंग, गंि और स्वाद सोशडयम और पोटेशियम क
ं टेन्ट
2. तापमान अम्लता
3. क
ु ल घुले हुए ठोस मुक्त CO2
4. शिद् युत चालकता क्षारीयता
5. पीएच क्लोराइड क
ं टेन्ट
6. टशबाडटी क
ु ल कठोरता
7. क
ै स्शियम और मैग्नीशियम क
ं टेन्ट
8. सल्फ
े ट
जैर्र्ैज्ञातनक पैरामी र िेर्ी मे ल्स
जैशिक पैरामीटर (पोिक तत्व, बैक्टीररया, िैिाल
और िायरस) जल की गुणित्ता शनिाारण में अशभन्न
भूशमका शनभाते हैं।
जल मे हेिी मेटल्स की मौजूदगी जल की न क
े िल गुणित्ता
को खराब करती है बस्ि जल को शििाक्त भी बनाती है।
िैसे तो न जाने शकतने हेिी मेटल्स हैं शजनका मूल्ांकन जल
की गुणित्ता को शनिााररत करने में शकया जाना चाशहए। उदा.
उदा. lead (Pb), Cadmium (Cd), Mercury (Hg),
आसेशनक (H3AsO4), Chromium (Cr), Nickel (Ni)
इत्याशद।
3. तनष्कर्व
3.1 प्राक
ृ ततक झरनरंकी भौगरतलक स्थितत का मानतचत्
उत्तराखंड राज्य में लगभग 945 प्राक
ृ शतक झरनों का एक शििाल नेटिक
ा है। झरने का पानी क्षेि
की आजीतर्का क
े शलए पानी का मूल स्रोत है और बारिमासी झरनरं का स्थान इस क्षेि में
मानि बसार् का मूल कारण है। हमने भू-स्थाशनक शिश्लेिण सॉफ्टिेयर का उपयोग कर
उत्तराखंड राज्य में पाए जाने िाले सभी प्राक
ृ शतक झरनों का पता लगाया है, क
ु ल भौगोशलक क्षेि
53,483 र्गव तकमी. में शितररत है, जो देि क
े क
ु ल भौगोशलक क्षेि का लगभग 1.63% िै। राज्य
का सबसे ऊ
ँ चा भूतम तबंदु नंदा देर्ी है, शजसकी ऊ
ाँ चाई 7816 मी र ऊपर है, जो बफ
ा और
नंगे चट्टानों से ढकी हुई है, जबशक शारदा सागर जलािय एमएसएल से 190 मी र की ऊ
ाँ चाई
क
े साथ सबसे शनचला भूशम शबंदु है।
शचि 3.1 प्राक
ृ शतक झरनों का भौगोशलक
स्स्थशत का मानशचि
3.2 स्रंगशेड का सीमांकन
भौगोशलक समन्वय और प्रक्षेपण प्रणाली WGS 1984: EPSG 4326 क
े साथ QGIS
में स्रंगिेड सीमाओं का पररसीमन शकया गया (जैसा की स्लाइड-6 मे दिााया गया है)।
3.3 स्रंगशेड की तर्शेर्ताएं
अध्ययन क्षेि में मौजूद 945 झरनों में से स्रंगिेड सीमा क
े भीतर 149 झरने िाशमल हैं,
िेि 796 झरनें सीमांकन क
े दौरान स्रंगिेड सीमा से बाहर हो गए। इसशलए, आगे क
े
अध्ययन और स्रंगशेड प्रबंधन यरजना कर 149 झरनों क
े शलए अग्रेशित शकया गया,
जहां शपथौरागढ़ शजले क
े शतमताचमडुंगरा पंचायत क
े शिरटोला गांि में चुरगांर् धारा
(533 मी र) सबसे कम ऊ
ं चाई पर पाया गया, जबशक न्यालमुडा नौला (2046 मी र)
उच्चतम ऊ
ं चाई पर पाया गया।
तचत् 3.2 स्रंगिेड का सीमांकन
3.4 तर्र्यगत मानतचत् तैयार करना
भौगोशलक समन्वय और प्रक्षेपण प्रणाली WGS 1984: EPSG 4326 क
े साथ 1:50,000 क
े पैमाने पर ArcGIS और अन्य सहायक
सॉफ़्टिेयर में अध्ययन क्षेि क
े शलए आिश्यक अलास्का रेखापुंज डेटासेट, स्रंगिेड िेपफाइल, स्रंग्स एक्सेल डेटािीट और अन्य सहायक
डेटा का उपयोग करक
े स्रंगिेड की शििेिताओं क
े गहन अध्ययन हेतु शिशभन्न प्रकार क
े तर्र्यगत मानतचत् शनम्नानुसार तैयार शकए गए:
( ) ( )
( ) ( )
( )
( )
( ) ( ) QGIS D
3
4. उपसंिार
नौला, धारा, गढेरा और नाले एर्ं प्राक
ृ ततक झरने उत्तराखंड में पानी
क
े मौशलक और पारंपररक स्रोत हैं जो क
ु एं , नलक
ू प, बोरिेल और कई
अन्य आिुशनक भूजल दोहन तकनीकों की िुरुआत से पहले प्राचीन
काल से ही पहाड़ी समुदायों की पानी की मांग को पूरा करते आए हैं।
अध्ययन में यह पाया गया है शक, झरनो क
े जल स्त्रोत या तर मर रिे िैं या उनक
े प्रर्ाि में भारी कमी आ रही है, यहां तक शक कई तो ही मर चुक
े
हैं। झरनों की भयािह स्स्थशत क
े िल शडस्चाजा क
े घटने तक ही सीशमत नहीं है, बस्ि उनक
े पानी की गुणर्त्ता भी शबगड़ी है और इस पर भी शरध
एर्ं तचंतन करने की जरूरत है। झरनों की इस भयािह दिा क
े शलए अशनयशमत ििाा पैटना, भूक
ं पीय गशतशिशियां, ढांचागत शिकास और कई
मानिजशनत गशतशिशियां शजम्मेदार हैं। झरने स्वयं न क
े िल पानी क
े स्रोत हैं, बस्ि कई तिमालयी नतदयरं की नींर् भी हैं। आिुशनक जल आपूशता
प्रणाली लंबे समय तक पिातीय समुदाय की प्यास निीं बुझा सकती। अथाात पिातीय क्षेिों क
े सतत शिकास हेतु प्राक
ृ शतक झरनों क
े पुनरुद्धार,
कायाकल्प और बहाली क
े शलए तत्काल कारािाई करने की आिश्यकता है और समुदाय द्वारा संचाशलत स्रंगशेड प्रबंधन दृतिकरण अपनाने की
सख्त जरूरत है जोशक शनशदाष्ट् उद्देश्यों को पूरा करने क
े शलए सबसे अच्छी पहल साशबत हो सकती है।
उत्तराखंड क
े नैनीताल शजले में राज्य में दजा झरनों की क
ु ल संख्या का लगभग आिा शहस्सा है, शजनकी संख्या 449 है जो राज्य में सबसे अशिक है।
इसक
े बाद क्रमिः शपथौरागढ़ (215), अल्मोड़ा (88), बागेश्वर (68), पौड़ी-गढ़िाल (60), देहरादू न (40), चमोली (15) एिं शटहरी-गढ़िाल (10)
का स्थान आता है तथा राज्य क
े िेि 5 शजलों (उिमशसंह नगर, चम्पाित, रुद्रप्रयाग, उत्तरकािी एिं हररद्वार) में प्राक
ृ ततक जल स्त्ररतरं का करई
अतभलेख निीं है। झरनों क
े स्थाशनक शितरण से यह शनष्किा शनकाला जा सकता है शक, क
े िल एक मैदानी शजला (देिरादू न) में झरनरं का एक
ने र्क
व है क्ोंशक इसकी शमशित स्थलाक
ृ शत में पहाड़ी और मैदानी इलाक
े दोनों िाशमल हैं।
ितामान अध्ययन में शिकशसत 6-चरणीय कायवप्रणाली प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों की तस्वीर क
े और अशिक िुंिले होने से पहले कायाकल्प और बहाली
क
े शलए एक कारगार तकनीक साशबत हो सकती है। स्रंगिेड प्रबंिन दृशष्ट्कोण को अपनाकर यशद जलग्रहण क्षेि शिकास योजना पर अमल शकया
जािे तो पिातीय जल स्त्रोतों को पुनः संजीर्नी दी जा सकती है।
अध्ययन में यह शनष्किा शनकला शक उत्तराखंड क
े पिातीय क्षेिों में जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) क
े प्रिाह में शगरािट क
े िल एक आयामी समस्या नहीं
है, अशपतु औद्योशगक शिकास एिं शिशभन्न मानिजशनत गशतशिशियों क
े कारण इन प्राक
ृ शतक जल स्त्रोतों क
े पानी की गुणर्त्ता भी काफी खराब हुई है।
इसशलए, पीने, शसंचाई, औद्योशगक उपयोग तथा अन्य उद्देश्यों क
े शलए अध्ययन क्षेि में पानी की गुणित्ता का तनयतमत आकलन आिश्यक है।
संदभव
o अमेररकी पयाािरण संरक्षण एजेंसी. यूएस ईपीए (2019). https://www.epa.gov/sites/default/files/2019-08/documents/2012-guidelines-water-
reuse.pdf
o अम्लीय जल: जोस्खम, लाभ, और बहुत क
ु छ. https://www.healthline.com/nutrition/acidic-water 02 जनिरी, 2021 को एक्सेस शकया गया.
o आचाया, सी.एल.; िमाा, पी.डी.; कपूर, ओ.पी. और क
ु मार, आर. (1989). चयशनत शहमालयी झरनों का गठन और प्रिाह व्यिहार. इंड. जे. इकोल., 16(2): 119-123.
o क
ु मार, डी. और अलापत, बी. (2009). एनएसएफ- जल गुणित्ता सूचकांक: क्ा यह शििेिज्ञ की राय का प्रशतशनशित्व करता है? अभ्यास. अिशि. खतरा. शििाक्त
रेशडयोएक्ट. अपशिष्ट् प्रबंिन. 13(1): 75-70.
o कोज़ीसेक, एफ. (2003). पीने क
े पानी का स्वास्थ्य महत्व क
ै स्शियम और मैग्नीशियम. राष्ट्र ीय सािाजशनक स्वास्थ्य संस्थान, 29, 9285-9286.
o गुप्ता, पी.; शमन्हास, डी.एस.; तम्हाने, आर.एम. और मुखजी ए.क
े . (2003). िाटरिेड शिश्लेिण में भौगोशलक सूचना प्रणाली (जीआईएस) उपकरणों का अनुप्रयोग।
तकनीकी बुलेशटन, ESRI, नई शदल्ली, भारत.
o शचराग (सेंटरल शहमालयन रूरल एक्शन ग्रुप) (2019) उत्तराखंड का स्रंग एटलस, अर्घ्ाम, भारत। 84p.
o डब्ल्यूएचओ. (2009) पीने क
े पानी में पोटेशियम. पीने क
े पानी की गुणित्ता क
े शलए शिश्व स्वास्थ्य संगठन क
े शदिा-शनदेिों क
े शिकास क
े शलए पृष्ठभूशम दस्तािेज,
12p.
o नीशत (नेिनल इंस्टीट्यूट फॉर टरांसफॉशमिंग इंशडया) आयोग (2018). िशक
िं ग ग्रुप की ररपोटा—I: जल सुरक्षा क
े शलए शहमालय में झरनों की सूची और पुनरुद्धार. नई
शदल्ली, नीशत आयोग, 70p.
o पुरी, पी.जे., येनकी, एम.क
े .एन., संगल, एस.पी., गांिारे, एन.िी., सरोते, जीबी, और िानोरकर, डी.बी. (2011). जल गुणित्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्ूआई) क
े आिार पर
नागपुर िहर (भारत) में सतही जल (झील) गुणित्ता मूल्ांकन. रसायन जे. क
े म., 4(1), 43-48.
o माथुर, एन. (2020). शिकार. एं थ्रोपोसीन अनसीन: ए लेस्क्सकॉन, 343-47.
o रंजन, पी.क
े . और पांडे, पी. (2020). शहमालयी क्षेिों में जल सुरक्षा बढ़ाने क
े शलए झरनों का पुनरुद्धार, शिकास और संरक्षण.
o सराफ, ए.क
े .; गोयल, िी.सी.; नेगी, ए.एस.; रॉय, बी और चौिरी, पी.आर. (2000). भारत क
े गढ़िाल में एक िाटरिेड में झरने क
े अध्ययन क
े शलए ररमोट सेंशसंग और
जीआईएस तकनीक. इंटरनेिनल जनाल ऑफ ररमोट सेंशसंग, 21(12): 2353-2361.
!! आपक
े अमूल्य समय क
े तलए धन्यर्ाद !!

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उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों की वर्तमान स्थिति, भू-जल विज्ञान एवं कायाकल्प योजना पर अध्ययन

  • 1. उत्तराखंड क े पर्वतीय क्षेत्रं में प्राक ृ ततक जल स्त्ररतरं की र्तवमान स्थितत, भू-जल तर्ज्ञान एर्ं कायाकल्प यरजना पर अध्ययन  पंकज क ु मार ठाक ु र (प्रोजेक्ट एसोशिएट-I, भूजल जल शिज्ञान प्रभाग, राष्ट्र ीय जलशिज्ञान संस्थान, रुड़की-447667)  तर्नरद क ु मार बाल्यान (प्रोफ े सर, शसंचाई और जल शनकासी अशभयांशिकी शिभाग, गोशिंद बल्लभ पंत क ृ शि एिं प्रौद्योशगकी शिश्वशिद्यालय, पंतनगर-263145)  गरपाल क ृ ष्ण (िैज्ञाशनक-डी, भूजल जल शिज्ञान प्रभाग, राष्ट्र ीय जलशिज्ञान संस्थान, रुड़की-263145) प्रस्तुतकताा:
  • 2. 1. पररचय  प्राक ृ शतक जल स्त्रोत (शजन्हें स्थानीय रूप से, नौला या धारा कहा जाता है) आशदकाल से ही भारतीय शहमालयी क्षेि (शििेितः उत्तराखंड) में ग्रामीण और िहरी जल आपूशता का एकमाि स्रोत रहे हैं।  अतनयतमत र्र्ाव, भूक ं पीय गशतशिशि, भूस्खलन, पाररस्स्थशतक क्षरण, जलिायु पररितान एिं भूशम क े अशनयंशित उपयोग क े कारण पिातीय जलभृत प्रणाली बुरी तरह प्रभाशित हो रही है शजसक े पररणामस्वरूप शहमालय क े आिे से ज्यादा जल स्त्रोत या तो सूख गए हैं या उनका प्रिाह कम हो गया है।  पानी क े इन पारंपररक जल स्रोतों का पुनरुद्धार पिातीय क्षेिों क े सतत शिकास क े शलए बहुत महत्वपूणा है।  आज, प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों (झरनों) क े पुनरुद्धार क े शलए पिातीय क्षेिों में एक उपयुक्त एिं शििेि इकाई क े रूप में िाटरिेड क े साथ ही स्रंगशेड प्रबंधन पर ज़ोर देने का समय आ गया है (नीतत आयरग, 2018)।  हालांशक, स्रंगिेड प्रबंिन शहमालय और भारत क े कई 'स्रंगस्क े प्स' सशहत अन्य पड़ोसी क्षेिों में प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) क े कायाकल्प एिं पुनुरुद्धार क े शलए आशा की नई तकरण क े रूप में उभरा है। शकन्तु, प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों क े प्रिाह में कमी क े िल एक-आयामी समस्या नहीं है अशपतु, क ु छ ििों से, इन जल स्त्रोतों क े पानी की गुणर्त्ता मे भी शगरािट आई है।
  • 3.  यशद प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) का पानी एक बार दू तर्त हो जाता है, तो या तो यह अपनी प्राक ृ शतक अिस्था में िापस नहीं आता है या इसमें लंबा समय लगता है। इसशलए, एक प्रभािी स्रंग जल प्रबंिन योजना शिकशसत करने क े साथ-साथ शनयशमत आिार पर इन जल स्त्रोतों क े पानी की गुणर्त्ता की तनगरानी बेहद आिश्यक एिं महत्वपूणा है (नीतत आयरग, 2018)।  जल गुणित्ता सूचकांक (WQI), एक िब्द की मदद से पानी की समग्र गुणित्ता का प्रशतशनशित्व करने क े शलए एक अनूठी रेशटंग पद्धशत है।  सुदू र संर्ेदन प्रौद्यरतगकी क े शिकास क े साथ, क ं प्यूत ंग प्रौद्यरतगकी में शिकास और भौगोशलक सूचना प्रणाली में निाचार ने तस्वीर बदल दी है। अब, RS और GIS का उपयोग स्रंग्स कर तचस्हित करने और भूशम उपयोग तथा स्रंग्स की रूपात्मक शििेिताओं क े संबंि में तडथचाजव पै नव क े अध्ययन क े शलए प्रभािी ढंग से शकये जा सकता है (सराफ ए अल., 2000) ।
  • 4. 2. सामाग्री एर्ं तर्तध सामान्य तर्र्रण उत्तराखंड भारत का एक उत्तरी राज्य है जो शहमालय की गोद में बसा है। राज्य का भौगोशलक क्षेिफल लगभग 53,483 िगा शक.मी. है। उत्तराखंड राज्य को दो मंडलों (क ु माऊ ं और गढ़र्ाल) में शिभाशजत शकया गया है। देहरादू न राज्य की राजिानी है जो राज्य का सबसे बडा तजला भी है। राज्य में क ु ल 13 प्रिासशनक शजले हैं शजनमें से 9 पहाड़ी हैं तथा क े िल 4 में मैदानी स्थलाक ृ शत है और इस प्रकार राज्य का लगभग 85% क्षेत् पिाडी है। यमुना और गंगा भारत की दो प्रमुख नशदयााँ हैं जो क्रमिः यमुनोिी और गंगोिी से शनकलती हैं, उत्तराखंड राज्य का ही अशभन्न शहस्सा हैं। उत्तराखंड भौगोशलक समन्वय प्रणाली क े आिार पर 30.0668°N और 79.0193°E क े मध्य स्स्थत है। तचत् 1 भारत में उत्तराखंड राज्य की भौगोशलक स्स्थशत को दिााता है। शचि 1: उत्तराखंड का अिस्स्थशत मानशचि
  • 5. स्रंगशेड का सीमांकन ितामान अध्ययन में, घाटी सीमा दृशष्ट्कोण को अपनाकर स्रंगिेड की सीमाओं को शचन्नशहत करने क े शलए ररमोट सेंशसंग और जीआईएस तकनीकों (QGIS, ArcGIS, ERDAS, Google Earth Pro एिं Google Earth Engine) का प्रयोग शकया गया। स्रंगिेड क े सीमांकन हेतु डाटा का संग्रहण एिं शिश्लेिण शनम्नानुसार शकया गया:  भूशिज्ञान मानशचि  अध्ययन क्षेि की िेपफाइल  अध्ययन क्षेि की डीईएम फाइल  स्रंग डेटा  समोच्च रेखा मानशचि  स्रंगिेड का सीमांकन Data Study Area Shapefile (Clipped) Raster Dataset (Mosaic) Geology Map of the Study Area Contour Map (Generated from Raster Dataset) Spring Data Excel Sheet (Saved as csv format) (Clipped)
  • 6.
  • 7. स्रंगशेड प्रबंधन यरजना स्रंगिेड प्रबंिन शहमालायी क्षेिों में जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) क े पुनुिाार एिं कायाकल्प क े शलए एक उन्नत एर्ं कारगर तरीका है और भारत क े अन्य 'स्रंगस्क े प्स' और आसपास क े क्षेिों में आशा की एक तकरण क े रूप में उभरा है। िारा शिकास कायाक्रम (नीतत आयरग, 2018) द्वारा शिकशसत 6-चरणीय तकनीक को अपनाकर स्रंगिेड प्रबंिन क े शसद्धांत को शनम्नानुसार तैयार शकया गया है: चरण 1: जल स्त्ररतरं(झरनरंएर्ं धाराओं) का व्यापक मानतचत्ण 1.1 शचस्न्हत क्षेि की पृष्ठभूशम की जानकारी का संग्रह 1.2 क्षेि का टोही सिेक्षण 1.3 ररमोट सेंशसंग और जीआईएस क े उन्नत तरीकों का उपयोग करक े स्रंग्स का मानशचिण और डेटा अशभलेखन 1.4 स्रंगिेड का सीमांकन
  • 8. चरण 2: िाइड र रतजयरलॉतजकल मैतपंग 2.1 क्षेि क े भूिैज्ञाशनक मानशचि का संग्रह 2.2 क्षेि क े भूशिज्ञान (अक्षांि, देिांतर, ऊ ं चाई, स्थान, आशद) का अध्ययन 2.3 गूगल अथा/टोपोिीट का उपयोग करक े आिार मानशचि का शनमााण चरण 3: स्रंगशेड क े भूर्ैज्ञातनक मानतचत् और र्ैचाररक िाइड र रतजयरलॉतजकल लेआउ की संरचना चरण 4: जल स्त्ररतरंक े प्रकार और पुनभवरण क्षेत्रंका र्गीकरण 4.1 जलस्त्रोतों और जलभरण क्षेिों की पहचान और उनका िगीकरण 4.2 ररचाजा क्षेि का रेखांकन चरण 5: स्रंगशेड प्रबंधन प्रर रकॉल और कायावन्वयन 5.1 स्रंगिेड की हाइड र ोलॉशजकल इन्वेंटरी तैयार करना 5.2 परक्राम्य और गैर-परक्राम्य भूशम उपयोग और भूशम आिरण में पररितान का अध्ययन 5.4 ररचाजा और शडस्चाजा क्षेि क े शलए संरक्षण एिं बीच-बचाओ क े उपायों की तैयारी 5.5 पररचालन और रखरखाि शदिाशनदेिों का गठन चरण 6: डे ा तनगरानी प्रणाली की थिापना 6.1 स्रंग शडस्चाजा डेटा का सतत संग्रहण 6.2 डेटा भंडारण, प्रबंिन और शिश्लेिण
  • 9. जल गुणर्त्ता तर्श्लेर्ण हालााँशक, शहमालय क े प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों (झरने एिं िारा) को पृथ्वी पर मौजूद जल का सबसे िुद्ध रूप माना जाता है। लेशकन, आजकल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मानिजशनत कारणों से तस्वीर क ु छ िूशमल सी हो गई है। इसशलए, आज इन जल स्त्रोतों क े जल की भी भौशतक-रासायशनक-जैििैज्ञाशनक गुणों तथा हैिी मेटल्स इत्याशद क े शिश्लेिण की जरूरत आन पड़ी है। ताशक इन जलस्त्रोतों की जलगुणित्ता रेशटंग क े आिार पर इनक े उपचार (यशद आिश्यक हो) और कई उद्देश्यों क े शलए उपयोशगता हेतु आगे की रणनीशत बनाई जा सक े । डे ा संग्रि और जल गुणर्त्ता मूल्यांकन सीमांशकत स्रंगिेड क े जल स्त्रोतों की गुणित्ता क े मूल्ांकन हेतु सीमारेखा क े अंदर मौजूद शिशभन्न जल स्त्रोतों क े सैम्प्ल्ल्स शलए जाते हैं साथ ही साथ इन जलस्त्रोतों शक भौगरतलक थितत (अक्षांि, देिांतर और ऊ ं चाई) भी नोट कर ली जाती है ताशक मूल्ांकन क े पश्चात जल गुणित्ता मानकों की थिातनक-लौतकक शभन्नता को भी समझा जा सक े । स्रंग िाटर क्वाशलटी क े मूल्ांकन की शिशियााँ क ु छ इसप्रकार हैं:
  • 10. क्र. सं. भौततक पैरामी र रासायतनक पैरामी र 1. रंग, गंि और स्वाद सोशडयम और पोटेशियम क ं टेन्ट 2. तापमान अम्लता 3. क ु ल घुले हुए ठोस मुक्त CO2 4. शिद् युत चालकता क्षारीयता 5. पीएच क्लोराइड क ं टेन्ट 6. टशबाडटी क ु ल कठोरता 7. क ै स्शियम और मैग्नीशियम क ं टेन्ट 8. सल्फ े ट
  • 11. जैर्र्ैज्ञातनक पैरामी र िेर्ी मे ल्स जैशिक पैरामीटर (पोिक तत्व, बैक्टीररया, िैिाल और िायरस) जल की गुणित्ता शनिाारण में अशभन्न भूशमका शनभाते हैं। जल मे हेिी मेटल्स की मौजूदगी जल की न क े िल गुणित्ता को खराब करती है बस्ि जल को शििाक्त भी बनाती है। िैसे तो न जाने शकतने हेिी मेटल्स हैं शजनका मूल्ांकन जल की गुणित्ता को शनिााररत करने में शकया जाना चाशहए। उदा. उदा. lead (Pb), Cadmium (Cd), Mercury (Hg), आसेशनक (H3AsO4), Chromium (Cr), Nickel (Ni) इत्याशद।
  • 12. 3. तनष्कर्व 3.1 प्राक ृ ततक झरनरंकी भौगरतलक स्थितत का मानतचत् उत्तराखंड राज्य में लगभग 945 प्राक ृ शतक झरनों का एक शििाल नेटिक ा है। झरने का पानी क्षेि की आजीतर्का क े शलए पानी का मूल स्रोत है और बारिमासी झरनरं का स्थान इस क्षेि में मानि बसार् का मूल कारण है। हमने भू-स्थाशनक शिश्लेिण सॉफ्टिेयर का उपयोग कर उत्तराखंड राज्य में पाए जाने िाले सभी प्राक ृ शतक झरनों का पता लगाया है, क ु ल भौगोशलक क्षेि 53,483 र्गव तकमी. में शितररत है, जो देि क े क ु ल भौगोशलक क्षेि का लगभग 1.63% िै। राज्य का सबसे ऊ ँ चा भूतम तबंदु नंदा देर्ी है, शजसकी ऊ ाँ चाई 7816 मी र ऊपर है, जो बफ ा और नंगे चट्टानों से ढकी हुई है, जबशक शारदा सागर जलािय एमएसएल से 190 मी र की ऊ ाँ चाई क े साथ सबसे शनचला भूशम शबंदु है। शचि 3.1 प्राक ृ शतक झरनों का भौगोशलक स्स्थशत का मानशचि
  • 13. 3.2 स्रंगशेड का सीमांकन भौगोशलक समन्वय और प्रक्षेपण प्रणाली WGS 1984: EPSG 4326 क े साथ QGIS में स्रंगिेड सीमाओं का पररसीमन शकया गया (जैसा की स्लाइड-6 मे दिााया गया है)। 3.3 स्रंगशेड की तर्शेर्ताएं अध्ययन क्षेि में मौजूद 945 झरनों में से स्रंगिेड सीमा क े भीतर 149 झरने िाशमल हैं, िेि 796 झरनें सीमांकन क े दौरान स्रंगिेड सीमा से बाहर हो गए। इसशलए, आगे क े अध्ययन और स्रंगशेड प्रबंधन यरजना कर 149 झरनों क े शलए अग्रेशित शकया गया, जहां शपथौरागढ़ शजले क े शतमताचमडुंगरा पंचायत क े शिरटोला गांि में चुरगांर् धारा (533 मी र) सबसे कम ऊ ं चाई पर पाया गया, जबशक न्यालमुडा नौला (2046 मी र) उच्चतम ऊ ं चाई पर पाया गया। तचत् 3.2 स्रंगिेड का सीमांकन
  • 14. 3.4 तर्र्यगत मानतचत् तैयार करना भौगोशलक समन्वय और प्रक्षेपण प्रणाली WGS 1984: EPSG 4326 क े साथ 1:50,000 क े पैमाने पर ArcGIS और अन्य सहायक सॉफ़्टिेयर में अध्ययन क्षेि क े शलए आिश्यक अलास्का रेखापुंज डेटासेट, स्रंगिेड िेपफाइल, स्रंग्स एक्सेल डेटािीट और अन्य सहायक डेटा का उपयोग करक े स्रंगिेड की शििेिताओं क े गहन अध्ययन हेतु शिशभन्न प्रकार क े तर्र्यगत मानतचत् शनम्नानुसार तैयार शकए गए: ( ) ( )
  • 15. ( ) ( ) ( ) ( ) ( ) ( ) QGIS D 3 4. उपसंिार नौला, धारा, गढेरा और नाले एर्ं प्राक ृ ततक झरने उत्तराखंड में पानी क े मौशलक और पारंपररक स्रोत हैं जो क ु एं , नलक ू प, बोरिेल और कई अन्य आिुशनक भूजल दोहन तकनीकों की िुरुआत से पहले प्राचीन काल से ही पहाड़ी समुदायों की पानी की मांग को पूरा करते आए हैं।
  • 16. अध्ययन में यह पाया गया है शक, झरनो क े जल स्त्रोत या तर मर रिे िैं या उनक े प्रर्ाि में भारी कमी आ रही है, यहां तक शक कई तो ही मर चुक े हैं। झरनों की भयािह स्स्थशत क े िल शडस्चाजा क े घटने तक ही सीशमत नहीं है, बस्ि उनक े पानी की गुणर्त्ता भी शबगड़ी है और इस पर भी शरध एर्ं तचंतन करने की जरूरत है। झरनों की इस भयािह दिा क े शलए अशनयशमत ििाा पैटना, भूक ं पीय गशतशिशियां, ढांचागत शिकास और कई मानिजशनत गशतशिशियां शजम्मेदार हैं। झरने स्वयं न क े िल पानी क े स्रोत हैं, बस्ि कई तिमालयी नतदयरं की नींर् भी हैं। आिुशनक जल आपूशता प्रणाली लंबे समय तक पिातीय समुदाय की प्यास निीं बुझा सकती। अथाात पिातीय क्षेिों क े सतत शिकास हेतु प्राक ृ शतक झरनों क े पुनरुद्धार, कायाकल्प और बहाली क े शलए तत्काल कारािाई करने की आिश्यकता है और समुदाय द्वारा संचाशलत स्रंगशेड प्रबंधन दृतिकरण अपनाने की सख्त जरूरत है जोशक शनशदाष्ट् उद्देश्यों को पूरा करने क े शलए सबसे अच्छी पहल साशबत हो सकती है। उत्तराखंड क े नैनीताल शजले में राज्य में दजा झरनों की क ु ल संख्या का लगभग आिा शहस्सा है, शजनकी संख्या 449 है जो राज्य में सबसे अशिक है। इसक े बाद क्रमिः शपथौरागढ़ (215), अल्मोड़ा (88), बागेश्वर (68), पौड़ी-गढ़िाल (60), देहरादू न (40), चमोली (15) एिं शटहरी-गढ़िाल (10) का स्थान आता है तथा राज्य क े िेि 5 शजलों (उिमशसंह नगर, चम्पाित, रुद्रप्रयाग, उत्तरकािी एिं हररद्वार) में प्राक ृ ततक जल स्त्ररतरं का करई अतभलेख निीं है। झरनों क े स्थाशनक शितरण से यह शनष्किा शनकाला जा सकता है शक, क े िल एक मैदानी शजला (देिरादू न) में झरनरं का एक ने र्क व है क्ोंशक इसकी शमशित स्थलाक ृ शत में पहाड़ी और मैदानी इलाक े दोनों िाशमल हैं।
  • 17. ितामान अध्ययन में शिकशसत 6-चरणीय कायवप्रणाली प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों की तस्वीर क े और अशिक िुंिले होने से पहले कायाकल्प और बहाली क े शलए एक कारगार तकनीक साशबत हो सकती है। स्रंगिेड प्रबंिन दृशष्ट्कोण को अपनाकर यशद जलग्रहण क्षेि शिकास योजना पर अमल शकया जािे तो पिातीय जल स्त्रोतों को पुनः संजीर्नी दी जा सकती है। अध्ययन में यह शनष्किा शनकला शक उत्तराखंड क े पिातीय क्षेिों में जल स्त्रोतों (शििेितः झरनों) क े प्रिाह में शगरािट क े िल एक आयामी समस्या नहीं है, अशपतु औद्योशगक शिकास एिं शिशभन्न मानिजशनत गशतशिशियों क े कारण इन प्राक ृ शतक जल स्त्रोतों क े पानी की गुणर्त्ता भी काफी खराब हुई है। इसशलए, पीने, शसंचाई, औद्योशगक उपयोग तथा अन्य उद्देश्यों क े शलए अध्ययन क्षेि में पानी की गुणित्ता का तनयतमत आकलन आिश्यक है।
  • 18. संदभव o अमेररकी पयाािरण संरक्षण एजेंसी. यूएस ईपीए (2019). https://www.epa.gov/sites/default/files/2019-08/documents/2012-guidelines-water- reuse.pdf o अम्लीय जल: जोस्खम, लाभ, और बहुत क ु छ. https://www.healthline.com/nutrition/acidic-water 02 जनिरी, 2021 को एक्सेस शकया गया. o आचाया, सी.एल.; िमाा, पी.डी.; कपूर, ओ.पी. और क ु मार, आर. (1989). चयशनत शहमालयी झरनों का गठन और प्रिाह व्यिहार. इंड. जे. इकोल., 16(2): 119-123. o क ु मार, डी. और अलापत, बी. (2009). एनएसएफ- जल गुणित्ता सूचकांक: क्ा यह शििेिज्ञ की राय का प्रशतशनशित्व करता है? अभ्यास. अिशि. खतरा. शििाक्त रेशडयोएक्ट. अपशिष्ट् प्रबंिन. 13(1): 75-70. o कोज़ीसेक, एफ. (2003). पीने क े पानी का स्वास्थ्य महत्व क ै स्शियम और मैग्नीशियम. राष्ट्र ीय सािाजशनक स्वास्थ्य संस्थान, 29, 9285-9286. o गुप्ता, पी.; शमन्हास, डी.एस.; तम्हाने, आर.एम. और मुखजी ए.क े . (2003). िाटरिेड शिश्लेिण में भौगोशलक सूचना प्रणाली (जीआईएस) उपकरणों का अनुप्रयोग। तकनीकी बुलेशटन, ESRI, नई शदल्ली, भारत. o शचराग (सेंटरल शहमालयन रूरल एक्शन ग्रुप) (2019) उत्तराखंड का स्रंग एटलस, अर्घ्ाम, भारत। 84p. o डब्ल्यूएचओ. (2009) पीने क े पानी में पोटेशियम. पीने क े पानी की गुणित्ता क े शलए शिश्व स्वास्थ्य संगठन क े शदिा-शनदेिों क े शिकास क े शलए पृष्ठभूशम दस्तािेज, 12p. o नीशत (नेिनल इंस्टीट्यूट फॉर टरांसफॉशमिंग इंशडया) आयोग (2018). िशक िं ग ग्रुप की ररपोटा—I: जल सुरक्षा क े शलए शहमालय में झरनों की सूची और पुनरुद्धार. नई शदल्ली, नीशत आयोग, 70p. o पुरी, पी.जे., येनकी, एम.क े .एन., संगल, एस.पी., गांिारे, एन.िी., सरोते, जीबी, और िानोरकर, डी.बी. (2011). जल गुणित्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्ूआई) क े आिार पर नागपुर िहर (भारत) में सतही जल (झील) गुणित्ता मूल्ांकन. रसायन जे. क े म., 4(1), 43-48. o माथुर, एन. (2020). शिकार. एं थ्रोपोसीन अनसीन: ए लेस्क्सकॉन, 343-47. o रंजन, पी.क े . और पांडे, पी. (2020). शहमालयी क्षेिों में जल सुरक्षा बढ़ाने क े शलए झरनों का पुनरुद्धार, शिकास और संरक्षण. o सराफ, ए.क े .; गोयल, िी.सी.; नेगी, ए.एस.; रॉय, बी और चौिरी, पी.आर. (2000). भारत क े गढ़िाल में एक िाटरिेड में झरने क े अध्ययन क े शलए ररमोट सेंशसंग और जीआईएस तकनीक. इंटरनेिनल जनाल ऑफ ररमोट सेंशसंग, 21(12): 2353-2361.
  • 19. !! आपक े अमूल्य समय क े तलए धन्यर्ाद !!