*पंवार(पोवार) समाज की प्रतिष्ठा और वैभव*🚩🚩🚩
*समाज का सर्वविकास*🤝🤝
*पोवारी सांस्कृतिक चेतना केंद्र*🚩
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवारों को आकर बसने में लगभग 325 वर्ष हो चुके हैं और इन तीन शतकों में इस समाज ने इस क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई हैं। मालवा राजपुताना से आये इन क्षत्रियों के पंवार(पोवार) संघ ने इस नवीन क्षेत्र के अनुरूप खुद को ढाल लिया लेकिन साथ में अपनी मूल राजपुताना पहचान को भी बनाये रखा है।
पोवार अपनी पोवारी संस्कृति और गरिमा के साथ जीवन व्यापन करते हैं और निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हैं। शाह बुलन्द बख्त से लेकर ब्रिटिश काल तक इन क्षत्रियों की स्थानीय प्रशासन और सैन्य भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैनगंगा क्षेत्र में बसने के बाद पंवारों ने खेती को अपना मूल व्यवसाय चुना और इन क्षेत्रों में उन्नत कृषि विकसित की।
देश की आजादी के बाद से समाज में खेती के अतिरिक्त नौकरी और अन्य व्यवसाय की तरफ झुकाव बढ़ता गया और आज सभी क्षेत्रों में पोवार भाई निरंतर तरक्की कर रहे है। जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ कृषि जोत का आकार छोटा होता गया और छोटी जोत तथा श्रमिक न मिलने के कारण अब कृषि के साथ नौकरी और अन्य आय के साधनों को अपनाना समय की आवश्यकता है इसीलिए अब समाज जन दुसरो शहरों की ओर रोजगार हेतु विस्थापित भी हो रहे हैं। वैनगंगा क्षेत्र से बड़ा विस्थापन नागपुर, रायपुर सहित कई अन्य शहरों में हुआ है, हालांकि कोरोना जनित परिस्थितियों के कारण कई परिवार वापस अपने मूल गांव भी आये हैं। बालाघाट, गोंदिया, सिवनी और भंडारा जिलों के मूल निवासी, छत्तीश कुल के पोवार अब देश-विदेश में अपने कार्यों से समाज के वैभव को आगे बढ़ा रहे हैं।
विकास के आर्थिक पहलुओं के साथ सामाजिक पहलुओं पर भी चिंतन किया जाना आवश्यक है। समाज की तरक्की के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी जरूरी हैं तभी इसे समग्र विकास माना जायेगा। यह बहुत ही गौरव का विषय है कि समाज की बोली अपनी बोली है, जिसे पोवारी कहते है। आज समाज की जनसंख्या लगभग तेरह से पंद्रह लाख के मध्य है और लगभग आधी जनसंख्या ही पोवारी बोली बोलती है या जानती हैं, जिसका प्रतिशत धीरे धीरे और भी कम हो रहा है। समाज के सभी लोग इस दिशा में मिलकर काम करे तो नई पीढ़ी को अनिवार्य रूप से पोवारी सिखा सकते है। पोवारी ही समाज की मातृभाषा है, लेकिन हिंदी और मराठी, क्षेत्रवार यह स्थान ले रही है। पोवारी सिर्फ हमारे समाज की बोली है इसीलिए यह उतनी व्यापक तो नही हो सकती पर अपने परिवार और समाज के मध्य इसका बहुतायत में प्रयोग करें तो पूरा समाज इसे बोल पायेगा।
आर्थिक समस्याओं के साथ अंतरजातीय विवाह, धर्मपरिवर्तन, पोवारी सांस्कृतिक मूल्यों का पतन, देवघर की चौरी का त्याग, ऐतिहासिक नाम पंवार और पोवार के साथ छेड़छाड़ कर दूसरे समाजों के नामों को ग्रहण करवाना, बुजुर्गों के अच्छे पालन-पोषण में कमी, दहेज की मांग आदि अनेक समस्याएं समाज के सामने खड़ी हैं जिसको सभी को मिलकर सुलझाना है। सामाजिक संस्थाओं को भी पोवारी बोली और उन्नत पंवारी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना होगा।
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
Letter from Vivek ji to the Hon Prime minister of India regarding Foot march ...Ananda Hi Ananda
Hon Vivek ji has written a letter to Hon Prime minister of India regarding great Indian foot march or Bharat Pad Yatra that he has taken to dialogue with farmers of India and revive socio -consciousness of India.
१. साधना और आराधना में सबसे अधिक समय लगाएं, सकारात्मक और सार्थक समय व्यतीत करने का यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
२. टीवी समचार प्रातः संध्या १०-१० मिनट देख लें बाकी समय टीवी बंद रखें। इतने से ही दिन भर के सब समाचार प्राप्त हो जाते हैं। शेष समय इन्ही समाचारों की दिन भर पुनरावत्ति होती हैं. दिन भर नकारात्मक समाचार देखने से मन, मष्तिष्क, ह्रदय, शरीर में तनाव बढ़ता हैं, चिंता बढ़ती है और यही तनाव मानसिक और शारीरिक रोगों का कारण बनता है। यह समय अपने आप को मानसिक व शारीरिक रूप से स्वास्थ्य व शक्तिशाली रखने का है, दुर्बल करने का नहीं। आप सब भी देख रहे होंगे कि कुछ सन्देश व समाचार, भ्रम और भय फ़ैलाने, दुर्बलता व नकारात्मकता बढाने वाले दुष्प्रचार में संलग्न हैं, इनसे सावधान रहें।
३. कोरोना से बचाव सम्बन्धी केवल सरकारी सर्कुलर्स और नोटिफिकेशंस पर ध्यान दें, डॉक्टर्स की सलाह को मानें, "नीम हकीम खतरे जान" की कहावत को याद रखें।
४. लॉक डाउन तथा आपके शहर में व्यवस्था सम्बन्धी स्थानीय प्रशासन के आदेशों का कड़ाई से पालन करें। इन नियमों के पालन से ही कोरोना को फैलने से रोका जा सकेगा। जितनी शीघ्रता से कोरोना के प्रसार पर विजय पाएंगे उतनी शीघ्रता से लॉक डाउन से मुक्ति पाएंगे।
५. अपना ध्यान व समय केवल सकारात्मक विषयों व बातों में लगायें। विद्यार्थी इंडोर गेम्स खेलें। अपने माता पिता, दादा दादी, नाना नानी या अन्य बड़ों को मोबाइल फ़ोन के फीचर्स सिखाएं, इनमें एस एम एस सन्देश भेजना, वाट्सअप चलना, ऑडियो या वीडिओ कॉल्स करना, इंटरनेट सर्फिंग करना हो सकता है. युवा या बड़ी आयु के व्यक्ति अच्छी पुस्तकें या इंटरनेट से अच्छी सामग्री पढ़कर अपना ज्ञान वर्धन कर सकते हैं।
६. अपने परिचित या अपने क्षेत्र के समाजसेवी, पुलिसकर्मी, पैरा मिलिट्री फ़ोर्स, डॉक्टर्स, नर्सेज, स्वच्छ्ताकर्मी, घर घर जाकर सामान वितरित करने वाले कार्यकर्ताओं, सेनिटाईजेशन करने वालों जैसे सेवारत व्यक्तियों को फ़ोन करके उनका धन्यवाद करें। ध्यान रखें कि उनके ही जोखिम भरे अथक परिश्रम से हम सब सुरक्षित हैं।
७. आपके क्षेत्र में यदि किन्हीं व्यक्तियों को भोजन की आवश्यकता हो तो सरकारी अथवा स्वयंसेवी संस्थानों के माध्यम से उनकी सहायता करें। यदि संभव हो तो आप स्वयं उनकी मदद करें. यह अत्यंत पुण्य का कार्य है।
८. ऐसे राष्ट्रिय और वैश्विक संकट के समय समाज को विभिन्न वर्गों, जाति, धर्म के आधार पर बांटकर अवयवस्था फ़ैलाने वालों, अनुचित लाभ लेने वालों, और घृणा का वातावरण फ़ैलाने वालों से सावधान रहें, और इसकी सूचना स्थानीय प्रशासन को दें।
९. अपने घर में, परिवार में, अपने क्षेत्र में परस्पर प्रेम, सामंजस्य, सौहार्द्र और शांति का वातावरण बनाये रखें. किसी भी कारण से परेशान व्यक्तियों को सांत्वना दें और यथासंभव उनकी सहायता करें। स्वयं प्रसन्न रहें व अपने आसपास सबको प्रसन्न रखें।
१०. आपकी तरफ से उठाये गए ये छोटे छोटे सावधानी के कदम हमारे भारतवर्ष के माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत सरकार, हमारी प्रांतीय सरकारों व स्थानीय प्रशासन को सुदृढ़ता व् सम्बल प्रदान करेंगे, जिसकी उन्हें वर्तमान में बहुत अधिक आवश्यकता है।
*पंवार(पोवार) समाज की प्रतिष्ठा और वैभव*🚩🚩🚩
*समाज का सर्वविकास*🤝🤝
*पोवारी सांस्कृतिक चेतना केंद्र*🚩
नगरधन-वैनगंगा क्षेत्र में पंवारों को आकर बसने में लगभग 325 वर्ष हो चुके हैं और इन तीन शतकों में इस समाज ने इस क्षेत्र में विशेष पहचान बनाई हैं। मालवा राजपुताना से आये इन क्षत्रियों के पंवार(पोवार) संघ ने इस नवीन क्षेत्र के अनुरूप खुद को ढाल लिया लेकिन साथ में अपनी मूल राजपुताना पहचान को भी बनाये रखा है।
पोवार अपनी पोवारी संस्कृति और गरिमा के साथ जीवन व्यापन करते हैं और निरंतर विकास पथ पर अग्रसर हैं। शाह बुलन्द बख्त से लेकर ब्रिटिश काल तक इन क्षत्रियों की स्थानीय प्रशासन और सैन्य भागीदारी में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वैनगंगा क्षेत्र में बसने के बाद पंवारों ने खेती को अपना मूल व्यवसाय चुना और इन क्षेत्रों में उन्नत कृषि विकसित की।
देश की आजादी के बाद से समाज में खेती के अतिरिक्त नौकरी और अन्य व्यवसाय की तरफ झुकाव बढ़ता गया और आज सभी क्षेत्रों में पोवार भाई निरंतर तरक्की कर रहे है। जनसंख्या में बढ़ोतरी के साथ कृषि जोत का आकार छोटा होता गया और छोटी जोत तथा श्रमिक न मिलने के कारण अब कृषि के साथ नौकरी और अन्य आय के साधनों को अपनाना समय की आवश्यकता है इसीलिए अब समाज जन दुसरो शहरों की ओर रोजगार हेतु विस्थापित भी हो रहे हैं। वैनगंगा क्षेत्र से बड़ा विस्थापन नागपुर, रायपुर सहित कई अन्य शहरों में हुआ है, हालांकि कोरोना जनित परिस्थितियों के कारण कई परिवार वापस अपने मूल गांव भी आये हैं। बालाघाट, गोंदिया, सिवनी और भंडारा जिलों के मूल निवासी, छत्तीश कुल के पोवार अब देश-विदेश में अपने कार्यों से समाज के वैभव को आगे बढ़ा रहे हैं।
विकास के आर्थिक पहलुओं के साथ सामाजिक पहलुओं पर भी चिंतन किया जाना आवश्यक है। समाज की तरक्की के साथ सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी जरूरी हैं तभी इसे समग्र विकास माना जायेगा। यह बहुत ही गौरव का विषय है कि समाज की बोली अपनी बोली है, जिसे पोवारी कहते है। आज समाज की जनसंख्या लगभग तेरह से पंद्रह लाख के मध्य है और लगभग आधी जनसंख्या ही पोवारी बोली बोलती है या जानती हैं, जिसका प्रतिशत धीरे धीरे और भी कम हो रहा है। समाज के सभी लोग इस दिशा में मिलकर काम करे तो नई पीढ़ी को अनिवार्य रूप से पोवारी सिखा सकते है। पोवारी ही समाज की मातृभाषा है, लेकिन हिंदी और मराठी, क्षेत्रवार यह स्थान ले रही है। पोवारी सिर्फ हमारे समाज की बोली है इसीलिए यह उतनी व्यापक तो नही हो सकती पर अपने परिवार और समाज के मध्य इसका बहुतायत में प्रयोग करें तो पूरा समाज इसे बोल पायेगा।
आर्थिक समस्याओं के साथ अंतरजातीय विवाह, धर्मपरिवर्तन, पोवारी सांस्कृतिक मूल्यों का पतन, देवघर की चौरी का त्याग, ऐतिहासिक नाम पंवार और पोवार के साथ छेड़छाड़ कर दूसरे समाजों के नामों को ग्रहण करवाना, बुजुर्गों के अच्छे पालन-पोषण में कमी, दहेज की मांग आदि अनेक समस्याएं समाज के सामने खड़ी हैं जिसको सभी को मिलकर सुलझाना है। सामाजिक संस्थाओं को भी पोवारी बोली और उन्नत पंवारी संस्कृति को बचाने के लिए आगे आना होगा।
चमचों की विभिन्न किस्में
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई। उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।
(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे
भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं। यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।
1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे
बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें चमचा युग में धकेल दिया । वे उस दबाव में अभी भी कराह रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है।
2.अनुसूचित जनजातियां - नव दीक्षित चमचे
अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था।
आज तक उन्हें भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है। इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे - सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है।
3.अन्य पिछड़ी जातियां - महत्वाकांक्षी चमचे
लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है।
अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है। अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला।
अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये। आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।
Letter from Vivek ji to the Hon Prime minister of India regarding Foot march ...Ananda Hi Ananda
Hon Vivek ji has written a letter to Hon Prime minister of India regarding great Indian foot march or Bharat Pad Yatra that he has taken to dialogue with farmers of India and revive socio -consciousness of India.
१. साधना और आराधना में सबसे अधिक समय लगाएं, सकारात्मक और सार्थक समय व्यतीत करने का यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
२. टीवी समचार प्रातः संध्या १०-१० मिनट देख लें बाकी समय टीवी बंद रखें। इतने से ही दिन भर के सब समाचार प्राप्त हो जाते हैं। शेष समय इन्ही समाचारों की दिन भर पुनरावत्ति होती हैं. दिन भर नकारात्मक समाचार देखने से मन, मष्तिष्क, ह्रदय, शरीर में तनाव बढ़ता हैं, चिंता बढ़ती है और यही तनाव मानसिक और शारीरिक रोगों का कारण बनता है। यह समय अपने आप को मानसिक व शारीरिक रूप से स्वास्थ्य व शक्तिशाली रखने का है, दुर्बल करने का नहीं। आप सब भी देख रहे होंगे कि कुछ सन्देश व समाचार, भ्रम और भय फ़ैलाने, दुर्बलता व नकारात्मकता बढाने वाले दुष्प्रचार में संलग्न हैं, इनसे सावधान रहें।
३. कोरोना से बचाव सम्बन्धी केवल सरकारी सर्कुलर्स और नोटिफिकेशंस पर ध्यान दें, डॉक्टर्स की सलाह को मानें, "नीम हकीम खतरे जान" की कहावत को याद रखें।
४. लॉक डाउन तथा आपके शहर में व्यवस्था सम्बन्धी स्थानीय प्रशासन के आदेशों का कड़ाई से पालन करें। इन नियमों के पालन से ही कोरोना को फैलने से रोका जा सकेगा। जितनी शीघ्रता से कोरोना के प्रसार पर विजय पाएंगे उतनी शीघ्रता से लॉक डाउन से मुक्ति पाएंगे।
५. अपना ध्यान व समय केवल सकारात्मक विषयों व बातों में लगायें। विद्यार्थी इंडोर गेम्स खेलें। अपने माता पिता, दादा दादी, नाना नानी या अन्य बड़ों को मोबाइल फ़ोन के फीचर्स सिखाएं, इनमें एस एम एस सन्देश भेजना, वाट्सअप चलना, ऑडियो या वीडिओ कॉल्स करना, इंटरनेट सर्फिंग करना हो सकता है. युवा या बड़ी आयु के व्यक्ति अच्छी पुस्तकें या इंटरनेट से अच्छी सामग्री पढ़कर अपना ज्ञान वर्धन कर सकते हैं।
६. अपने परिचित या अपने क्षेत्र के समाजसेवी, पुलिसकर्मी, पैरा मिलिट्री फ़ोर्स, डॉक्टर्स, नर्सेज, स्वच्छ्ताकर्मी, घर घर जाकर सामान वितरित करने वाले कार्यकर्ताओं, सेनिटाईजेशन करने वालों जैसे सेवारत व्यक्तियों को फ़ोन करके उनका धन्यवाद करें। ध्यान रखें कि उनके ही जोखिम भरे अथक परिश्रम से हम सब सुरक्षित हैं।
७. आपके क्षेत्र में यदि किन्हीं व्यक्तियों को भोजन की आवश्यकता हो तो सरकारी अथवा स्वयंसेवी संस्थानों के माध्यम से उनकी सहायता करें। यदि संभव हो तो आप स्वयं उनकी मदद करें. यह अत्यंत पुण्य का कार्य है।
८. ऐसे राष्ट्रिय और वैश्विक संकट के समय समाज को विभिन्न वर्गों, जाति, धर्म के आधार पर बांटकर अवयवस्था फ़ैलाने वालों, अनुचित लाभ लेने वालों, और घृणा का वातावरण फ़ैलाने वालों से सावधान रहें, और इसकी सूचना स्थानीय प्रशासन को दें।
९. अपने घर में, परिवार में, अपने क्षेत्र में परस्पर प्रेम, सामंजस्य, सौहार्द्र और शांति का वातावरण बनाये रखें. किसी भी कारण से परेशान व्यक्तियों को सांत्वना दें और यथासंभव उनकी सहायता करें। स्वयं प्रसन्न रहें व अपने आसपास सबको प्रसन्न रखें।
१०. आपकी तरफ से उठाये गए ये छोटे छोटे सावधानी के कदम हमारे भारतवर्ष के माननीय प्रधानमंत्री जी, भारत सरकार, हमारी प्रांतीय सरकारों व स्थानीय प्रशासन को सुदृढ़ता व् सम्बल प्रदान करेंगे, जिसकी उन्हें वर्तमान में बहुत अधिक आवश्यकता है।
आज के समय का वास्तविक चित्रण कवि ने उन बूढ़े माँ को समर्पित की है ! जिनके बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद विदेशों में अपने परिवार के साथ येसे रम जाते हैं की उन्हे फिर कभी माँ बाप याद ही नहीं आते हैं !
1. समाज
अक्सर मेरे एक ममत्र श्री चन्द्रा जी से हमेशा मेरा बड़ा खुला और विस्तार से कई िार समाज
क
े विषय पर चचाा / बाते होती है , और मैंने हर िार यह महसूस ककया हैं की िह आज क
े
इस सामाजजक ढााँचे से िड़े विचमलत रहते हैं ! उनका एक प्रश्न हमेशा रहता हैं की इस
समाज को अगर सुधारना हैं , तो इसकी जड़ में जाना होगा !
मुझे आज लगा पहले मैं यह तो समझू आखखर समाज क्या हैं और उसकी जड़ कहााँ हैं ? यह
मेरे मलये अपने आप में भी एक बहुत बड़ा प्रश्न हैं !
समाज की पररभाषा हर व्यकती को मालूम हैं ! हर व्यकती अगर खुश हैं तो अपने अपने
समाज से और दुखी भी है तो अपने अंपने समाज से !
चमलये आज हम अपने आज क
े इस समाज को मेरे चश्मे से , मेरी ननघायों से देखते हैं !
क
ु दरत क
े मलये हम सब एक सामाजजक प्राणी हैं ! क्यों की हम सब एक समाज में रहते हैं !
हम जब क
ु दरत की ननघायों में एक सामाजजक प्राणी हैं तो क
ु दरत ककया है ? क
ु दरत की
क्या कोई सीमा हैं ? कोई देश है ? कोई भाषा हैं ? क
ु दरत में धरती,पानी,िायु ,आकाश और
अजनन क
े मलये क्या कोई अलग अलग कानून हैं ? नहीं
मेरे ख्याल से मेरी ननघायों में क
ु दरत का मतलब पूरी कायनात , ब्रमाण्ड , युननिसा !
मेरे ख्याल से जब मैं और आप जुडते चले जायेंगें तो अिश्य ही िह एक समाज ननमााण हह
कहलायेगा क
ु दरत की ननघायों में पूरी कायनात ही एक पररिार,एक समाज हैं !
हम सब क
ु दरत की ननघायों मेँ मसर्
ा और मसर्
ा एक सामाजजक प्राणी ही हैं !
जब क
ु दरत क
े मलये कोई भी सीमा नहीं हैं , तो आखखर यह सीमा मसर्
ा हमारे द्िारा ही
बनाई गयी हैं क्या ?
हमने इसे आज इसे महाखण्डो, दीपों, देशो, राज्यों, शहर,गााँि और तो और जाती, भाषा,
पहरािे, धमा ,काम, ख़ान वपन, विश्िास , अंध विश्िास , उंच नीच,गरीब अमीर, पढे मलखें ,
अनपढ़ , ताकतिर कमजोर , नौकरी मेँ होदों आहद आहद में इस समाज को बााँट हदया हैं !
मेरे जन्द्म से पहले कई सहदयों ,बषों पूबा इस जानतिादी प्रथा का चलन इस समाज मेँ था यह
मेरा पक्का दािा हैं !
2. कब से आई ? कौन लाया ? क्यों लाया ? ककसका र्ायदा ककसका नुकसान ? तो आप खुद
को तय करना होगा की इसकी खोज में आपको िैद काल में भी ममलेगी !
डडजजटल माधयम से मैंने आज समझा और देखा कक ! 2000 िषा पूिा ही यह प्रथा भारत मेँ
शुरू हो चुकी थी ! 19बीं शताब्दी मेँ भारत मे जाती िादी प्रथा का स्िरूप क
ु छ इस तरह
बताया जाता था ! हहन्द्दू = संगीतकर ,मुसलमान =व्यापारी, अरब=सैननक ,सीख=मुखखया !
ईसाई ममसनररयों क
े अनुसार सन 1837 मे भारत मेँ 72 जानत क
े नमूने थे ! उन्द्होने हहन्द्दू
, मुसलमान , सीख , अरब सबको अलग अलग जाती का बताया हैं !
यह भी ककसी को लगता हैं कक 19बीं शताब्दी की शुरुआत मेँ मनुस्मृनत और ऋनिेद जैसे
धमा ग्रंथो की मदद से ककया गया था !
जाती प्रथा का प्रचलन क
ै िल भारत मेँ नहीं बजकक ममस्श्र , यूरोप आहद मेँ भी अपेक्षाक
ृ त
क्षीण रूप मे विदयमान थी। 'जानत' शब्द का उदभि पुतागाली भाषा से हुआ है। पी ए
सोरोककन ने अपनी पुस्तक 'सोशल मोबबमलटी' मे मलखा है, " मानि जानत क
े इनतहास मे बबना
ककसी स्तर विभाजन क
े , उसने रह्ने िाले सदस्यो की समानता एक ककपना मात्र है।" तथा
सी एच र्
ू ले का कथन है "िगा - विभेद िशानुगत होता है, तो उसे जानत कह्ते है "। इस
विषय मे अनेक मत स्िीकार ककये गये है।
राजनैनतक मत क
े अनुसार जानत प्रथा उच्च ब्राह्मणो की चाल थी।
व्यािसानयक मत क
े अनुसार यह पाररिारीक व्यिसाय से उत्त्पन हुई है !
साम्प्प्रादानयक मत क
े अनुसार जब विमभन्द्न सम्प्प्रदाय संगहित होकर अपनी अलग जाती का
ननमााण करते हैं, तो इसे जानत प्रथा की उत्पवि कहते हैं। परम्प्परागत मत क
े अनुसार यह
प्रथा भगिान द्िारा विमभन्द्न कायों की दृजटट से ननमेत की गए है।
क
ु छ लोगो का यह सोचना है कक मनु ने "मनु स्मृनत" में मानि समाज को चार श्रेखणयों में
विभाजजत ककया है, ब्राहमण , क्षबत्रय , िेश्य और शुर।
विकास मसद्धान्द्त क
े अनुसार सामाजजक विकास क
े कारण जानत प्रथा की उत्पवि हुई है।
सभ्यता क
े लंबे और मन्द्द विकास क
े कारण जानत प्रथा मे क
ु छ दोष भी आते गये। इसका
सबसे बङा दोष छ
ु आछ
ु त की भािना है।
परन्द्तु आज यह मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
3. जानत प्रथा की क
ु छ विशेषताएाँ भी हैं। श्रम विभाजन पर आधाररत होने क
े कारण इससे श्रममक
िगा अपने काया मे ननपुण होता गया क्योकक श्रम विभाजन का यह कम पीहढयो तक चलता
रहा था। इससे भविटय - चुनाि की समस्या और बेरोजगारी की समस्या भी दूर हो गए।
जबकक जानत प्रथा मुख्यत: एक बुराई ही है। इसक
े कारण संकीणाना की भािना का प्रसार
होता है और सामाजजक , राजटिय एकता मे बाधा आती है ! जो कक राजटिय और आर्थाक
प्रगनत क
े मलए आिश्यक है। बङे पेमाने क
े उद्योग श्रममको क
े अभाि मे लाभ प्राप्त नही कर
सकते।
जानत प्रथा में बेटा वपता क
े व्यिसाय को अपनाता है , इस व्यिस्था मेँ पेशे क
े पररितान की
सन्द्भािना बहुत कम हो जाती है। जानत प्रथा से उच्च श्रेणी क
े मनुटयों में शारीररक श्रम को
ननम्प्न समझने की भािना आ गई है। विमशटटता की भािना उत्पन्द्न होने क
े कारण प्रगनत
कया धीमी गनत से होता है। यह खुशी की बात है कक इस व्यिस्था की जङे अब ढीली होती
जा रही है।
िषो से शोवषत अनुसूर्चत जानत क
े लोगो क
े उत्थान क
े मलए सरकार उच्च स्तर पर काया कर
रही है। संविधान द्िारा उनको विशेष अर्धकार हदए जा रहे है। उन्द्हे सरकारी पदो और
शैक्षखणक सनस्थानो मेँ प्रिेश प्राजप्त मेँ प्राथममकता और छ
ु ट दी जाती है।
आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है क्योकक इसक
े कारण
समाज मे असमानता , एकार्धकार , विद्िेष आदी दोष उत्पन्द्न हो जाते है। िगाहीन एिं
गनतहीन समाज की रचना क
े मलए अन्द्तजाातीय भोज और वििाह होने चाहहए। इससे भारत
की उन्द्ननत होगी और भारत ही समतािादी राटि क
े रूप मेँ उभर सक
े गा।
यह सब तो मैंने आपको डडजजटल इन्द्र्ॉमेशन कक मदद से हूबहू अिगत कराया है ! मुझे जब
यह समज़ नहीं आता है कक मेरा मामलक कौन है ? मेरा इस जीिन का गोल मकसद क्या हैं
? मुझे क
ु दरत ने जीिन भर जीने क
े मलये 100 % मुफ्त हिा, पानी
जमीन आकाश हदया हैं ! उस मामलक / क
ु दरत का हमे शुक्र गुजार होना चाहहये !
मैंने देखा पढ़ा सुना हैं कक हर इन्द्सान अपने आप मेँ युनीक हैं ! पूरे ब्रांहांड में हर इन्द्सान क
े
अगूिे कक रेखाएाँ भी एक जैसी नहीं है ! क
ु दरत ने हर इन्द्सान को अपनी तरह से तराशा हैं !
और तो और जंगली प्राणी जजरार् , शेर क
े बदन कक लाइने भी एक जैसी नहीं हैं !
आपक
े विचार अलग हो सकती हैं , आपकी परिररश अलग हो सकती हैं , आपकी कद काटी
बड़ी छोटी हो सकती है , आपका खान पान, भाषा ,पहराि , होदा ऊपर नीचे हो सकता हैं !
आपको और आज की पीढी का प्रमुख किाव्य जानत - व्यिस्था को समाप्त करना है ! परन्द्तु
मशक्षा क
े प्रसार से यह सामाजजक बुराई दूर होती जा रही है।
4. अगर अपने अच्छी मशक्षा ली हैं तो आपका कताव्य बनता है कक समाज में दूसरों को भी
मशक्षा प्रधान कराएाँ !
छ
ु आ छ
ू त , अंधविश्िास , को दूर करे ! दूसरों कक भलाई करे , दया, दान , मदद करे
जजतना आप खुश रहना चाहते हैं उतना दूसरों को भी खुश रखना हमारा सबसे बड़ा धमा हैं !
दया / दान / सेिा सबसे बड़े धमा हैं ! हर इन्द्सान कक इंसाननयता ही उसकी जाती हैं !
आपकी दया कक आिश्यकता हैं उन हजारो लाखों मुसीबत मेँ उलझे लोगो को हैं जो कहरा रहे
हैं हमे उनकी मदद मेँ बबना टाइम गिायें लग जाना चाहहये !
क
ु दरत जजंहदगी भर हर इन्द्सान को एक समान जज़ंदगी जीने क
े मलये मुफ्त में हर जीिन
जरूरी र्चजे मुफ्त प्रधान करती हैं !
जीिन भौनतकबाद चीजों क
े मलये नहीं है , खाली हाथ इन्द्सान आता हैं और क
ु दरत उसे क
ु छ
भी नहीं ले जाने देगी !
जज़ंदगी जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं तो हम कौन होते हैं अपने समाज को बाटने िाले ?
सबको एक समान जीने का हक क
ु दरत ने हदया हैं ! आप उसमे पूरा सहयोग करें और मानि
धमा एिं इंसाननयता से बड़कर समाज मेँ क
ु छ नहीं हैं !
दया धमा का मूल हैं ! पाप मूल अमभमान !
तुलसी दया ना छोडड़ए जब लगी घट प्राण !!
धन्द्यबाद
बीरेंर श्रीिास्ति / 16/09/2021