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खूबसूरत कामल पर ल टू जेिवयस
यह आलेख पढ़कर आप इसे कदािप अ यथा नहीं ल, क म कस कू ल के बारे म कु छ अनगल लखने का
यास कर रही हूँ, पर यही स य है क दो त प कू ल के ब चे प ढ़य से लव-हेट (Love-Hate) वाला
संबंध रखत है।
यादा तो गहराई से मुझे नहीं मालूम, पर यौवन क दहल ज़ म कदम रखते ही आइना सबसे बड़ा सहारा हो
जाता है नव युवाओं का। बाल संवारने से लेकर लट को दाँये-बांय करने म ही बड़ा व त कट जाता है, रहा-सहा
थोडा व त कताब के काले अ र को समेटने म लग जाता है। वैसे म अपने को इससे पहले ही अलग कर लूं,
य क ऐसा मेरे साथ एकदम भ नहीं हुआ, य क म म ने कू ल तक तो मुझे हमेशा ही बॉब-कट रखा। पर
कॉलेज जाने के बाद जब बाल थोड़े बढे, तो एक िब गुथ सँभालने के लए श शे के सामने खड़े होना बड़ा
सुहाता था। पापा मजाक करते थे, क काला पदा डाल दो श शे म, नहीं तो एक दन श शा थक के खुद ही टूट
जायेगा।
अलब ा, कामल क हस न लड़ कय के मज़ाज को समझने के लए शहर म दो ही ह तयाँ थ ं, या तो उन
लड़ कय के माँ-बाप, या उनके आगे-प छे डोलते हुए ये गब जवान। अ छा, म थोड़ी नासमझ बचपन से ही
थ , लड कयाँ गुट बना के लड़क के बारे म गु तगू करत थ ं, और मुझे पास देखकर बात पलट देत थ ं। इस
बात म कोई लाग-लगाव नहीं है और यह बात सोलह आने सच है। लास 6th से तो म यह देखत आ रही
थ । लास 6th म हमारी लास म एक बेहद ही हस न लड़क थ , जो बाद म कस दूसरे कू ल चले गय थ ,
वही से मने अपने साथ ये वा या देखा। इन लोग क कानाफू स छु टी टाइम भ बहुत दखत थ , चाट वाले
भ या के पास, या न चे बैठ कर इमल बेचने वाल दीदी से पास ये लोग दख ही जाते थे। र शे म जात कस
खूबसूरतो के आस-पास चँवर झूलाने वाले-से ये अ हड, अमूमन मुझे तो दख ही जाते थे। ये उनके साथ ऐसे
होते थे जैसे क या तो र शा चलने वाला र शा चलाते-चलाते अगर थक जाये तो वे ही र शा चला कर उ ह
घर पहुंचा दगे, या हुड म बैठ लड़ कय के आस-पास ये कस बॉडीगाड से कम नहीं लगते थे। थे तो सभ छोटे
पर साइ कल क सवारी इनक बड़ी मजेदार होत थ ।
दो तरह क लड कयां जेिवयस से जुडी थ ं, एक तो जो पढने लखने म बहुत ही तेज होत थ और आये दन
कस न कस डबेट क पटीशन या ए ज िबशन म वहां जात रहत थ ं, और दूसरी वो जो सु दर दखने वाल
थ ं और वहां के नौ- नहाल इनपर ल टू थे. जब तक म लास 9th म आय तब तक इनका झु ड ेक टाइम
म कू ल के अ दर भ पधारने लगा था। उस समय थोडा स नयरटी का एहसास हो चुका था। ये वाक़या मेरे
साथ हो चुका है, इस लये बताने म कोई झझक भ नहीं है। एक बार हमारी एक जू नयर से मलने एक
भाईसाहब कू ल म आ धमके , थोड़ी देर तक म देखत रही, पर एक समय के बाद मेरे से रहा न गया। मने
आव न देखा ताव, उस लड़क को खूब डांटा और साथ म उस लड़के को भ खूब खरी-खोटी सुनाई। ब च म
टीचर भ आ , उ ह ने भ खूब फटकार लगाई उस लड़के को और अंततः वह साहबजादे वहां से नकल लए।
बड़ा ल डर शप का एहसास हुआ था उस दन, ट फ़न ख म और मेरी लास म कु छ ब च को यह पता लग
गया क मने ऐसा कारनामा कया है आज, तो सबने बड़ी चुट कयाँ ल ं। पर एक सहपाठ थ , जसने मुझे
समझाया क आज का दन मेरे पर काफ भारी पड़ने वाला है, सो घर संभल के जाना। भाई साहब, मेरी स टी-
िप टी गुम. पता चले क वो मयाँ मेरे ही प छे पड़ जाय और परेशान करने लगे। भगवान का नाम लेके घर
क और नकले। वो लड़का दखा भ था, हमारे र शे के आस-पास और म वहां चूहे क तरह दुबक -स बैठ
थ । घर के पास आने से पहले ही म उतर ल और रा ता बदल कर पैदल-पैदल घर पहुँच गय ।
उस दन से समझ आया क रो मयो-जू लएट क कहान म िबना बात के िवलेन न बनना ही अ छा।
बात बड़ी नाजुक है और खुलेआम कहने म मुझे कोई गुरेज़ भ नहीं है क छोटे शहर म उस समय लड़के -
लड़ कय को बात करते देख लेने पर काफ बुरा माना जाता था। कई अटकल लगाय जात थ और कई फ़साने
भ बनाये जाते थे। छोटी उ ( teen age) म लगाव, आकषण होना वाभािवक है, वैसे इस बात पर कोई ठ पा
नहीं लगाया जा सकता पर आकषण, सराहना और सु दरता कस उ क मोहताज़ नहीं होत , वो तो बस
नैस गक है, अपने आप हो जात है। बड़े शहर म रहने के बाद मुझे को-एड (co-ed) के मायने समझ आये।
बचपन से ही कोई पदा नहीं, सब समान, एक जैसे. लड़का-लड़क वाला कोई एहसास नहीं। मजेदार बात यह थ ,
शहर से १ कम दूर मे के ब एसएफ कू ल को छोड़ कर हज़ारीबाग म कोई co-ed कू ल था भ नहीं। कामल
क लड कयां खा लस कॉ वट वाल होत थ ं और जेिवयस के लड़के भ कोई कम नहीं थे। वैसा ही तबा था
उनका भ । पर मजे लेने वाले तो स टस और फादस पर भ जुमले छोड़ ही देते थे।
आज अगर फर से र शे पे बैठ के नकलूँ अपन गल से और ऐसे रो मयो-जू लएट फर से दख जाय तो
कसम ख़ुदा क इं टट आश वाद ले लूं, "पुनः युवत भवः"। पुनः युवत भवः।
गुजरा हुआ ज़माना, आता नहीं दोबारा, हा फ़ज़ खुद तु हारा।

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