इस भागती दौड़ती जिंदगी से दूर हम सब फिर से उस बचपन में जाना चाहते है, वो बचकाना बातें करना चाहते है, वो बेपरवाह हंसी फिर से हँसना चाहते है, कभी कभी डांस केवल खुद के लिए करना चाहते है | वो बचपन के छोटे छोटे ख़ज़ाने: बर्फ का गोला, नारंगी की पच्चीस पैसे वाली गोलियां, वो लॉलीपॉप, और भी ऐसा ही बहुत कुछ जो हमें बचपन में ले जाता है | ये छोटे छोटे ख़ज़ाने आज भी कई महँगी चीजों से ज्यादा खुशियां बिखेर देते है |
इस भागती दौड़ती जिंदगी से दूर हम सब फिर से उस बचपन में जाना चाहते है, वो बचकाना बातें करना चाहते है, वो बेपरवाह हंसी फिर से हँसना चाहते है, कभी कभी डांस केवल खुद के लिए करना चाहते है | वो बचपन के छोटे छोटे ख़ज़ाने: बर्फ का गोला, नारंगी की पच्चीस पैसे वाली गोलियां, वो लॉलीपॉप, और भी ऐसा ही बहुत कुछ जो हमें बचपन में ले जाता है | ये छोटे छोटे ख़ज़ाने आज भी कई महँगी चीजों से ज्यादा खुशियां बिखेर देते है |
SHAYARI ON IMAGES brings hope, courage, inspiration, and light into your life. When you feel less confident and are not sure about anything in life, then you are in the right place. Our website will help you live a confident and happy life.
Motivational story in hindi - two students wants to become businessman Ban sharma
motivational story in hindi for students जो entrepreneur बनना चाहते है,यह कहानी दो दोस्तों की है ये दोनों लाइफ को एक बेहतर तरीके से जीना चाहते थे क्यूंकि उनको मिडिल क्लास मै या गरीब घर मै पैदा होना उन्हें अफ़सोस जताता था , पर देखते है किस्मत किसका साथ देती है ,अगर आप भी entrepreneur बनना चाहते है तो ये कहानी आपको बहुत कुछ सिखाएगी
पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
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पोवारी बोली, मध्य भारत के बालाघाट, भंडारा, गोंदिया और सिवनी जिलों में निवासरत पंवार(पोवार) समाज के द्वारा बोली जाती है और यही उनकी मूल मातृभाषा भी हैं।
1. खूबसूरत कामल पर ल टू जेिवयस
यह आलेख पढ़कर आप इसे कदािप अ यथा नहीं ल, क म कस कू ल के बारे म कु छ अनगल लखने का
यास कर रही हूँ, पर यही स य है क दो त प कू ल के ब चे प ढ़य से लव-हेट (Love-Hate) वाला
संबंध रखत है।
यादा तो गहराई से मुझे नहीं मालूम, पर यौवन क दहल ज़ म कदम रखते ही आइना सबसे बड़ा सहारा हो
जाता है नव युवाओं का। बाल संवारने से लेकर लट को दाँये-बांय करने म ही बड़ा व त कट जाता है, रहा-सहा
थोडा व त कताब के काले अ र को समेटने म लग जाता है। वैसे म अपने को इससे पहले ही अलग कर लूं,
य क ऐसा मेरे साथ एकदम भ नहीं हुआ, य क म म ने कू ल तक तो मुझे हमेशा ही बॉब-कट रखा। पर
कॉलेज जाने के बाद जब बाल थोड़े बढे, तो एक िब गुथ सँभालने के लए श शे के सामने खड़े होना बड़ा
सुहाता था। पापा मजाक करते थे, क काला पदा डाल दो श शे म, नहीं तो एक दन श शा थक के खुद ही टूट
जायेगा।
अलब ा, कामल क हस न लड़ कय के मज़ाज को समझने के लए शहर म दो ही ह तयाँ थ ं, या तो उन
लड़ कय के माँ-बाप, या उनके आगे-प छे डोलते हुए ये गब जवान। अ छा, म थोड़ी नासमझ बचपन से ही
थ , लड कयाँ गुट बना के लड़क के बारे म गु तगू करत थ ं, और मुझे पास देखकर बात पलट देत थ ं। इस
बात म कोई लाग-लगाव नहीं है और यह बात सोलह आने सच है। लास 6th से तो म यह देखत आ रही
थ । लास 6th म हमारी लास म एक बेहद ही हस न लड़क थ , जो बाद म कस दूसरे कू ल चले गय थ ,
वही से मने अपने साथ ये वा या देखा। इन लोग क कानाफू स छु टी टाइम भ बहुत दखत थ , चाट वाले
भ या के पास, या न चे बैठ कर इमल बेचने वाल दीदी से पास ये लोग दख ही जाते थे। र शे म जात कस
खूबसूरतो के आस-पास चँवर झूलाने वाले-से ये अ हड, अमूमन मुझे तो दख ही जाते थे। ये उनके साथ ऐसे
होते थे जैसे क या तो र शा चलने वाला र शा चलाते-चलाते अगर थक जाये तो वे ही र शा चला कर उ ह
घर पहुंचा दगे, या हुड म बैठ लड़ कय के आस-पास ये कस बॉडीगाड से कम नहीं लगते थे। थे तो सभ छोटे
पर साइ कल क सवारी इनक बड़ी मजेदार होत थ ।
दो तरह क लड कयां जेिवयस से जुडी थ ं, एक तो जो पढने लखने म बहुत ही तेज होत थ और आये दन
कस न कस डबेट क पटीशन या ए ज िबशन म वहां जात रहत थ ं, और दूसरी वो जो सु दर दखने वाल
थ ं और वहां के नौ- नहाल इनपर ल टू थे. जब तक म लास 9th म आय तब तक इनका झु ड ेक टाइम
म कू ल के अ दर भ पधारने लगा था। उस समय थोडा स नयरटी का एहसास हो चुका था। ये वाक़या मेरे
साथ हो चुका है, इस लये बताने म कोई झझक भ नहीं है। एक बार हमारी एक जू नयर से मलने एक
भाईसाहब कू ल म आ धमके , थोड़ी देर तक म देखत रही, पर एक समय के बाद मेरे से रहा न गया। मने
आव न देखा ताव, उस लड़क को खूब डांटा और साथ म उस लड़के को भ खूब खरी-खोटी सुनाई। ब च म
टीचर भ आ , उ ह ने भ खूब फटकार लगाई उस लड़के को और अंततः वह साहबजादे वहां से नकल लए।
बड़ा ल डर शप का एहसास हुआ था उस दन, ट फ़न ख म और मेरी लास म कु छ ब च को यह पता लग
गया क मने ऐसा कारनामा कया है आज, तो सबने बड़ी चुट कयाँ ल ं। पर एक सहपाठ थ , जसने मुझे
समझाया क आज का दन मेरे पर काफ भारी पड़ने वाला है, सो घर संभल के जाना। भाई साहब, मेरी स टी-
2. िप टी गुम. पता चले क वो मयाँ मेरे ही प छे पड़ जाय और परेशान करने लगे। भगवान का नाम लेके घर
क और नकले। वो लड़का दखा भ था, हमारे र शे के आस-पास और म वहां चूहे क तरह दुबक -स बैठ
थ । घर के पास आने से पहले ही म उतर ल और रा ता बदल कर पैदल-पैदल घर पहुँच गय ।
उस दन से समझ आया क रो मयो-जू लएट क कहान म िबना बात के िवलेन न बनना ही अ छा।
बात बड़ी नाजुक है और खुलेआम कहने म मुझे कोई गुरेज़ भ नहीं है क छोटे शहर म उस समय लड़के -
लड़ कय को बात करते देख लेने पर काफ बुरा माना जाता था। कई अटकल लगाय जात थ और कई फ़साने
भ बनाये जाते थे। छोटी उ ( teen age) म लगाव, आकषण होना वाभािवक है, वैसे इस बात पर कोई ठ पा
नहीं लगाया जा सकता पर आकषण, सराहना और सु दरता कस उ क मोहताज़ नहीं होत , वो तो बस
नैस गक है, अपने आप हो जात है। बड़े शहर म रहने के बाद मुझे को-एड (co-ed) के मायने समझ आये।
बचपन से ही कोई पदा नहीं, सब समान, एक जैसे. लड़का-लड़क वाला कोई एहसास नहीं। मजेदार बात यह थ ,
शहर से १ कम दूर मे के ब एसएफ कू ल को छोड़ कर हज़ारीबाग म कोई co-ed कू ल था भ नहीं। कामल
क लड कयां खा लस कॉ वट वाल होत थ ं और जेिवयस के लड़के भ कोई कम नहीं थे। वैसा ही तबा था
उनका भ । पर मजे लेने वाले तो स टस और फादस पर भ जुमले छोड़ ही देते थे।
आज अगर फर से र शे पे बैठ के नकलूँ अपन गल से और ऐसे रो मयो-जू लएट फर से दख जाय तो
कसम ख़ुदा क इं टट आश वाद ले लूं, "पुनः युवत भवः"। पुनः युवत भवः।
गुजरा हुआ ज़माना, आता नहीं दोबारा, हा फ़ज़ खुद तु हारा।