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कक्षा दसव ीं
आर्थिक ववकास की समझ
अध्याय – 4
विषय :- िैश्िीकरण और
भारतीय अर्थव्यिस्र्ा
पाठ्य योजना
सामान्य उदेश्य:-
 भारत ि समकालीन विश्ि का ज्ञान कराना ।
 विद्यार्र्थयों के ज्ञान का संिर्थन करना ।
 उन्हें भारत के प्राचीन व्यापाररक संबर्ों की जानकारी करिाना
।
 वैश्व करण की प्रक्रिया का ज्ञान कराना ।
विशिष्ट उदेश्य :-
 वैश्व करण का अथि व धारणा स्पष्ट करना ।
 वैश्श्वकरण की आवश्यकता का ज्ञान कराना ।
 बहुराष्रीय कीं पननयों की भूममका के बारे में अवगत करिाना ।
 वैश्श्वकरण की प्रक्रिया एवीं इसके प्रभावों को समझाना ।
पूिथ ज्ञान परीक्षण एिं अशभप्रेरणा:-
 ववश्व के श र्िस्थ ववननमािताओीं द्वारा ननममित डिश्जटल
कै मरे,मोबाइल फोन और टेलीववजन के नव नतम मॉिल के
बारे में बताएीं ।
 क्या हम अपन ज़रुरत की सभ वस्तुएँ स्वयीं पैदा करते हैं
?
 यदद नहीीं, तो ये हमें कहाँ से प्राप्त होत हैं ?
 पूींज व वस्तुओीं की वैश्श्वक आवाजाही को क्या कहते हैं ?
भूममका :-
 ववश्व के अर्धकाींश भाग तेज से एक-दूसरे से जुड़ते जा रहे हैं ।
आज के ववश्व में हमारे सामने वस्तुओीं और सेवाओीं के बहुत से ववकल्प
हैं । ववश्व के श र्िस्थ ववननमािताओीं द्वारा ननममित डिश्जटल कै मरे,
मोबाइल फोन और टेलीववजन के नव नतम मॉिल , सभ श र्ि कीं पननयों
द्वारा ननममित कारें आदद हमारे मलए सुलभ हैं ।
दो दशक पहले भारत के बाज़ारों में वस्तुओीं की ऐस ववववधता नहीीं
होत थ । कु छ ही वर्ों में हमारा बाज़ार पूणित: पररवनतित हो गया है ।
यह सब वैश्व करण के कारण ही सींभव हो पाया है ।
िैश्िीकरण:
 आधुननक समय में पूरी दुननया की अथिव्यवस्था श्जस तरह
आपस में जुड़ हुई हैं उसे वैश्व करण कहते हैं।
“वैश्व करण से अमभप्राय ववश्व अथिव्यवस्था में आये खुलेपन,
बढ़त हुय परस्पर आर्थिक ननभिरता तथा आर्थिक एकीकरण
के फै लाव से है।”
 उदाहरण के मलए मोबाइल फोन बनाने वाली एप्पल कीं पन एक अमेररकी
कीं पन है। एप्पल के मोबाइल फोन के पार्टिस च न और दक्षक्षण पूवि एमशया
के देशों में बनते हैं। उसके बाद एप्पल के फोन दुननया के हर देशों में बेचे
जाते हैं।
िैश्िीकरण का विकास
 प्राच न काल से ही व्यापार ने दुननया के ववमभन्न देशों को आपस में
जोड़ने का काम क्रकया है। आपने मसल्क रूट का नाम सुना होगा।
च न का रेशम श्जस रास्ते से अरब और क्रफर पश्श्चम के देशों और
अन्य देशों में जाता था उस रास्ते को मसल्क रूट कहा जाता था।
मसल्क रूट से न के वल सामान की आवाजाही होत थ बश्ल्क लोगों
और ववचारों का आवागमन भ होता था।
 भारत से शून्य और दशमलव प्रणाली व्यापार के रास्ते ही दुननया के
अन्य भागों में पहुँच पाई थ । नूिल्स की उत्पवि च न में हुई थ ।
व्यापार के रास्ते ही नूिल्स दुननया के अन्य भागों में पहुँचे और
इसके कई नाम हो गये; जैसे सेववयाँ, पास्ता, आदद।
अींतदेश य उत्पादन :-
 ब सव शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की स माओीं के
अींदर ही स ममत था । इन देशों की स माओीं को लाींघने वाली वस्तुओीं
में के वल कच्चा माल, खाद्य पदाथि और तैयार उत्पाद ही थे ।
 भारत जैसे उपननवेशों से कच्चा माल एवीं खाद्य पदाथि ननयाित होते थे
और तैयार वस्तुओीं का आयात होता था । व्यापार ही दूरस्थ देशों को
आपस में जोड़ने का मुख्य जररया था ।
 ब सव ीं शताब्दी के मध्य के बाद से कई कीं पननयों ने ववश्व के ववमभन्न
भागों में अपने पैर पसारने शुरु क्रकये। इस तरह से बहुराष्रीय कीं पननयों
का जन्म हुआ।
बहुराष्रीय कीं पन :-
 एक बहुराष्रीय कीं पन वह है जो एक से अर्धक देशों में उत्पादन
पर ननयींत्रण अथवा स्वाममत्व रखत है ।
 बहुराष्रीय कीं पननयाँ उत्पादन लागत में कम करने तथा अर्धक
लाभ कमाने के मलए उन प्रदेशों में कायिलय तथा उत्पादन के मलए
कारखाने स्थावपत करत हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवीं अन्य
सींसाधन ममल सकते हैं ।
 बहुराष्रीय कीं पननयाँ वैश्श्वक स्तर पर वस्तुओीं और सेवाओीं का
उत्पादन करने के साथ –साथ तैयार उत्पाद को ववश्व स्तर पर
बेचत भ है ।
बहुराष्रीय कीं पननयाँ द्वारा ननवेश:-
 सामान्यत: बहुराष्रीय कीं पननयाँ उस स्थान पर ननवेश करत हैं :-
I. जो बाज़ार के नज़दीक हो ।
II. जहाँ कम लागत पर कु शल और अकु शल श्रम उपलब्ध हो ।
III. और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुननश्श्चत हो ।
IV. साथ ही बहुराष्रीय कीं पननयाँ सरकारी न नतयों पर भ नज़र रखत
हैं जो उनके दहतों का देखभाल करत हैं ।
 इन पररश्स्थनतयों को सुननश्श्चत करने के बाद ही बहुराष्रीय कीं पननयाँ
उत्पादन के मलए कायिलयों और कारखानों की स्थापना करत हैं ।
ववदेश ननवेश :-
 बहुराष्रीय कीं पननयों द्वारा क्रकये गए ननवेश को ववदेश ननवेश
कहते हैं । बहुराष्रीय कीं पननयाँ लाभ अश्जित करने के उदेश्य से
ननवेश करत है ।
 पररसींपवियों जैसे-भूमम , भवन, मश न और अन्य उपकरणों की
खरीद पर क्रकये गए ननवेश को मुद्रा ननवेश कहते हैं ।
ववश्व-भर के उत्पादन को एक दूसरे से जोड़ना :-
 बहुराष्रीय कीं पननयाँ ववश्व-भर के उत्पादन को एक दूसरे से जोड़ने में
महत्वपूणि भूममका ननभा रही है। बहुराष्रीय कीं पननयाँ ननम्न तरीकों से
उत्पादन ननयींत्रत्रत करत हैं :-
1. स्थान य कीं पननयों के साथ साझेदारी द्वारा उत्पादन
2. स्थान य कीं पननयों से ननकट प्रनतस्पधाि करना अथवा उन्हें खरीदकर
उत्पादन का प्रसार करना
3. छोटे उत्पादकों के उत्पादन को अपने ब्राण्ि नाम से ग्राहकों को बेचना
• ववगत त न दशकों से अर्धकाींश बहुराष्रीय कीं पननयाँ ववश्व में उन स्थानों
की तलाश कर रही है, जो उनके उत्पादन के मलए सस्ते हों । इन देशों में
बहुराष्रीय कीं पननयों के ननवेश में वृद्र्ध हो रही है, साथ ही ववमभन्न देशों
के ब च ववदेश व्यापार में भ वृद्र्ध हो रही है ।
ववदेश व्यापार और बाज़ारों का एकीकरण :-
 लम्बे समय से ववदेश व्यापार ववमभन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम
रहा है । व्यापाररक दहतों के कारण ही व्यापाररक कीं पननयाँ जैसे, ईस्ट इींडिया कीं पन
भारत की ओर आकवर्ित हुई ।
 विदेिी व्यापार:-
ववदेश व्यापार वह व्यापार है जो दो या दो से अर्धक देशों के ब च होता है ।
उदाहरण के मलए भारत और अमेररका के ब च होने वाले व्यापार को ववदेश व्यापार कहा
जाएगा ।
 विदेिी व्यापार का मुख्य कायथ:-
1. ववदेश व्यापार घरेलू बाजारों अथाित् अपने देश के बाज़ारों से बाहर के बाज़ारों में
पहुँचने के मलए उत्पादकों को अवसर प्रदान करता है । उत्पादक के वल अपने देश के
बाज़ारों में ही अपने उत्पाद नहीीं बेच सकते हैं, बश्ल्क ववश्व के अन्य देशों के
बाज़ारों में भ प्रनतस्पधाि कर सकते हैं ।
2. ववदेश व्यापार से बाज़ार में खरीददारों के समक्ष वस्तुओीं के ववकल्प बढ़ जाते हैं ।
बाज़ारों का एकीकरण:-
 ववदेश व्यापार ववमभन्न देशों के बाज़ारों को जोड़ने या एकीकरण
में सहायक होता है ।
 ववदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्रीय कीं पननयों द्वारा ननयींत्रत्रत
होता है । जैसे , भारत में फोिि मोटर का कार सींयींत्र , के वल भारत के
मलए ही करों का ननमािण नहीीं करता, बश्ल्क वह अन्य ववकासश ल देशों
को कारें और ववश्व भर में अपने कारखानों के मलए कार - पुजों का भ
ननयाित करता है ।
 अर्धक ववदेश व्यापार और अर्धक ववदेश ननवेश के पररणामस्वरूप
ववमभन्न देशों के बाज़ारों एवीं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है ।
 ववमभन्न देशों के ब च परस्पर सींबींध और त व्र एकीकरण की प्रक्रिया ही
वैश्व करण है ।
िैश्िीकरण के कारण:-
 वैश्व करण एक ऐस व्यवस्था है श्जसमें स माओीं का कोई महत्व नहीीं
है और सारा ववश्व एक सामुदानयक इकाई बन गया है । ववचारकों ने
इसे भूमण्िल या ववश्व ग्राम का नाम ददया है । ऐस व्यवस्था के उदय
होने के कारण ननम्नमलखखत हैं :-
 खचि कम करने की आवश्यकता
 नये बाजार की तलाश
 अर्धक लाभ
 सींचार व सूचना िाींनत
 बेहतर आय, बेहतर रोज़गार एवीं मशक्षा की तलाश
विदेिी व्यापार तर्ा विदेिी ननिेि का उदारीकरण :-
 1980-90 के दशक तक अर्धकाींश देश अपने बाजार को ववश्व के बाजार से अलग थलग
रखना इसमलए पसींद करते थे, ताक्रक स्थान य उद्योग धींधों को बढ़ावा ममल सके । इसके
मलये भारी आयात शुल्क लगाया जाता था ताक्रक आयानतत सामान महींगे हो जाएँ। इस
तरह की न नतयों को व्यापार अवरोधक (रेि बैररयर) कहते हैं।
 व्यापार अिरोर्क (ट्रेड बैररयर):-
व्यापार अवरोधक व्यापार पर कु छ प्रनतबींध लगाता है । सरकारें व्यापार
अवरोधक का प्रयोग ववदेश व्यापार में वृद्र्ध या कटौत करने और देश में क्रकस प्रकार
की वस्तुएँ क्रकतन मात्रा में आयानतत होन चादहए, यह ननणिय लेने के मलए कर सकत
हैं। आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदहारण है । सरकार आयात होने वाली
वस्तुओीं की सींख्या भ स ममत कर सकत है । इसे कोटा कहते हैं ।
 स्वतींत्रता के बाद भारत सरकार ने देश के उत्पादकों को ववदेश
प्रनतस्पधाि से सरींक्षण प्रदान करने के मलए ववदेश व्यापार एवीं ववदेश
ननवेश पर प्रनतबींध लगा रखा था । भारत ने के वल अननवायि च जों जैसे
, मश नरी, उविरक और पेरोमलयम के आयात की ही अनुमनत दी थ ।
सभ ववकमसत देशों ने ववकास के प्रारींमभक चरणों में घरेलू उत्पादकों को
ववमभन्न तरीकों से सरींक्षण ददया है ।
 भारत सरकार ने 1991 में उदारवादी न नतयों की शुरुआत की तथा
ववदेश व्यापार एवीं ववदेश ननवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक
हटा ददया गया । उसके बाद भारत में कई बहुराष्रीय कीं पननयों का
पदापिण हुआ।
उदारीकरण :-
 सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रनतबींधों को हटाने की
प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जान जात है ।
“उदारीकरण का अथि है, सरकार द्वारा लगाए गए
प्रत्यक्ष या भौनतक ननयींत्रणों से अथिव्यवस्था की
मुश्क्त।”
 कु छ बहुत प्रभावशाली अींतरािष्रीय सींगठनों ने भारत में
ववदेश व्यापार एवीं ववदेश ननवेश के उदारीकरण का
समथिन क्रकया ।
ववश्व व्यापार सींगठन :-
 ववश्व व्यापार सींगठन (िब्ल्यू.टी.ओ.) एक अींतरािष्रीय सींगठन है जो ववश्व
व्यापार के मलए ननयम बनाता है । ववश्व व्यापार सींगठन का इनतहास 15
अप्रैल, 1994 से प्रारम्भ होता है जब मोरक्को के एक शहर “मराके श” में चार
ददवस य वाताि प्रारम्भ हुई थ । इस सम्मेलन की अध्यक्षता गैट (GATT ) के
प्रर्म महाननदेिक पीटर सदरलैंड ने की थ ।
 वस्तुतः इस सम्मलेन में “गैट” को नया नाम “ववश्व व्यापार सींगठन”
(िब्ल्यू.टी.ओ.) ददया गया । यह सींगठन 1 जनिरी, 1995 से अश्स्तत्व में
आया । इसके प्रथम स्थाय अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसाय रेनटो
रुर्गयरो बनाए गये। इसके ितथमान महाननदेिक राबटथ एज्बेड़ो हैं ।
 वतिमान समय में इसके 164 सदस्य हैं। इसका मुख्यालय जेनेवा ,
श्स्वर्टजरलैंि में है ।
 अब तक इसके 10 मींत्रत्रस्तरीय सम्मेलन हो चुके हैं । 10 वाीं
सम्मलेन के न्या में ददसम्बर 2015 में हुआ था, इस बैठक
में अफगाननस्तान को इसका 164 वाीं सदस्य चुना गया था ।
 भारत इसका एक सींस्थापक सदस्य देश है । च न इसमें 2001 में
शाममल हुआ था ।
 ववश्व व्यापार सींगठन (िब्ल्यू.टी.ओ.) एक ऐसा सींगठन है, श्जसका
ध्येय अींतरािष्रीय व्यापार को उदार बनाना है ।
 यह सींगठन अन्तरािष्रीय व्यापार से सम्बश्न्धत ननयमों को
ननधािररत करता है तथा उनकी देखरेख करता है ।
भारत में िैश्िीकरण का प्रभाि :-
 ववगत त न दशकों में भारत य अथिव्यवस्था के वैश्व करण ने एक लम्ब दूरी
तय की है इसका लोगों के ज वन पर ननम्नमलखखत प्रभाव पड़ा है :-
 िैश्िीकरण के लाभ :-
1. उपभोक्ताओीं को लाभ
2. रोजगार के बेहतर अवसर
3. ज वन स्तर में सुधार
4. ववदेश पूींज ननवेश में वृद्र्ध
5. ववदेश तकन क का आगमन
6. बाज़ार में प्रनतयोर्गता
7. ववदेश वस्तुएीं
8. ववदेश मुद्रा में वृद्र्ध
9. स मा रदहत ववश्व
10. कच्चे माल की आपूनति करने वाली स्थान य कीं पननयाँ समृद्ध
11. अनेक श र्ि भारत य कीं पननयाँ बढ़ी हुई प्रनतस्पधाि से लाभाश्न्वत
िैश्िीकरण की हाननयााँ :-
 आर्थिक असमानता में तेज से वृद्र्ध
 ववकमसत देशों द्वारा गलत तरीकों का इस्तेमाल
 छोटे उत्पादकों के मलए प्रनतस्पधाि करना बड़ चुनौत
 प्रनतस्पधाि और अननश्श्चत रोज़गार
 तकन क के प्रयोग से बेरोजगारी में वृद्र्ध
 भारत य माल की कम माींग
 सेवा शुल्क में वृद्र्ध
 अींतरािष्रीय आर्थिक मन्दी
समूह ननमािण :-
 सभ ववद्यर्थियों को चार समूहों में बाींटा गया है :-
समूह कायि :-
समूह विषय
1 सूचना प्रौद्योर्गकी वैश्व करण से कै से जुि हुई है ? क्या सूचना
प्रौद्योर्गकी के प्रसार के त्रबना वैश्व करण सींभव होता ?
2 बहुराष्रीय कीं पननयाँअन्य कीं पननयों से क्रकस प्रकार अलग है ?
3 लगभग सभ बहुराष्रीय कीं पननयाँ , अमेररका, जापान या यूरोप की है
जैसे नोक्रकया , कोका-कोला, पेप्स , होन्िा , नाइकी । क्या आप
अनुमान लगा सकते हैं क्रक ऐसा क्यों है ?
4 सरकारें अर्धक ववदेश ननवेश आकवर्ित करने का प्रयास क्यों करत हैं
?
सारांि:-
 वैश्व करण आधुननक युग की ऐस वास्तववकता है श्जससे
हम मुँह नहीीं मोड़ सकते। वैश्व करण सभ के मलए लाभप्रद
नहीीं रहा है । मशक्षक्षत , कु शल और सींपन्न लोगों ने वैश्व करण
से ममले नए अवसरों का सवोतम उपयोग क्रकया है । दूसरी
ओर, अनेक लोगों को लाभ में दहस्सा नहीीं ममला है ।
वैश्व करण से यदद फायदे हुए हैं तो नुकसान भ हुए
हैं। लेक्रकन नुकसान की तुलना में फायदे अर्धक हुए हैं। अब
जरूरत है ऐस न नतयों की श्जनसे वैश्व करण का लाभ जन
मानस तक पहुँचे। जब हर तबके का आदम एक ननश्श्चत
स्तर की ज वनशैली ज ने लगेगा तभ वैश्व करण को सफल
माना जायेगा।
गृह कायथ :-
1. अत त में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था ? अब यह
अलग कै से है ?
2. वैश्व करण से आप क्या समझते हैं ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीश्जए ।
3. ववदेश व्यापार और ववदेश ननवेश में अींतर स्पष्ट करें ।
4. वैश्व करण प्रक्रिया में बहुराष्रीय कीं पननयोंकी क्या भूममका है ?
5. वे कौन से तरीके हैं, श्जनके द्वारा देशों को सींबींर्धत क्रकया जा सकता
है ?
6. प्रनतस्पधाि से भारत के लोगों को कै से लाभ हुआ है ?
Thanks
Prepared By:-
Lal Man Chandel
Lecture in Economics
G.S.S.S.Haripur,
Tehsil Manali ,District Kullu (H.P.)
Contact No. :- 94180 66578
Email Id :- lmc3185@rediffmail.com

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  • 1. कक्षा दसव ीं आर्थिक ववकास की समझ अध्याय – 4 विषय :- िैश्िीकरण और भारतीय अर्थव्यिस्र्ा पाठ्य योजना
  • 2. सामान्य उदेश्य:-  भारत ि समकालीन विश्ि का ज्ञान कराना ।  विद्यार्र्थयों के ज्ञान का संिर्थन करना ।  उन्हें भारत के प्राचीन व्यापाररक संबर्ों की जानकारी करिाना ।  वैश्व करण की प्रक्रिया का ज्ञान कराना । विशिष्ट उदेश्य :-  वैश्व करण का अथि व धारणा स्पष्ट करना ।  वैश्श्वकरण की आवश्यकता का ज्ञान कराना ।  बहुराष्रीय कीं पननयों की भूममका के बारे में अवगत करिाना ।  वैश्श्वकरण की प्रक्रिया एवीं इसके प्रभावों को समझाना ।
  • 3. पूिथ ज्ञान परीक्षण एिं अशभप्रेरणा:-  ववश्व के श र्िस्थ ववननमािताओीं द्वारा ननममित डिश्जटल कै मरे,मोबाइल फोन और टेलीववजन के नव नतम मॉिल के बारे में बताएीं ।  क्या हम अपन ज़रुरत की सभ वस्तुएँ स्वयीं पैदा करते हैं ?  यदद नहीीं, तो ये हमें कहाँ से प्राप्त होत हैं ?  पूींज व वस्तुओीं की वैश्श्वक आवाजाही को क्या कहते हैं ?
  • 4. भूममका :-  ववश्व के अर्धकाींश भाग तेज से एक-दूसरे से जुड़ते जा रहे हैं । आज के ववश्व में हमारे सामने वस्तुओीं और सेवाओीं के बहुत से ववकल्प हैं । ववश्व के श र्िस्थ ववननमािताओीं द्वारा ननममित डिश्जटल कै मरे, मोबाइल फोन और टेलीववजन के नव नतम मॉिल , सभ श र्ि कीं पननयों द्वारा ननममित कारें आदद हमारे मलए सुलभ हैं । दो दशक पहले भारत के बाज़ारों में वस्तुओीं की ऐस ववववधता नहीीं होत थ । कु छ ही वर्ों में हमारा बाज़ार पूणित: पररवनतित हो गया है । यह सब वैश्व करण के कारण ही सींभव हो पाया है ।
  • 5. िैश्िीकरण:  आधुननक समय में पूरी दुननया की अथिव्यवस्था श्जस तरह आपस में जुड़ हुई हैं उसे वैश्व करण कहते हैं। “वैश्व करण से अमभप्राय ववश्व अथिव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़त हुय परस्पर आर्थिक ननभिरता तथा आर्थिक एकीकरण के फै लाव से है।”  उदाहरण के मलए मोबाइल फोन बनाने वाली एप्पल कीं पन एक अमेररकी कीं पन है। एप्पल के मोबाइल फोन के पार्टिस च न और दक्षक्षण पूवि एमशया के देशों में बनते हैं। उसके बाद एप्पल के फोन दुननया के हर देशों में बेचे जाते हैं।
  • 6. िैश्िीकरण का विकास  प्राच न काल से ही व्यापार ने दुननया के ववमभन्न देशों को आपस में जोड़ने का काम क्रकया है। आपने मसल्क रूट का नाम सुना होगा। च न का रेशम श्जस रास्ते से अरब और क्रफर पश्श्चम के देशों और अन्य देशों में जाता था उस रास्ते को मसल्क रूट कहा जाता था। मसल्क रूट से न के वल सामान की आवाजाही होत थ बश्ल्क लोगों और ववचारों का आवागमन भ होता था।  भारत से शून्य और दशमलव प्रणाली व्यापार के रास्ते ही दुननया के अन्य भागों में पहुँच पाई थ । नूिल्स की उत्पवि च न में हुई थ । व्यापार के रास्ते ही नूिल्स दुननया के अन्य भागों में पहुँचे और इसके कई नाम हो गये; जैसे सेववयाँ, पास्ता, आदद।
  • 7. अींतदेश य उत्पादन :-  ब सव शताब्दी के मध्य तक उत्पादन मुख्यतः देशों की स माओीं के अींदर ही स ममत था । इन देशों की स माओीं को लाींघने वाली वस्तुओीं में के वल कच्चा माल, खाद्य पदाथि और तैयार उत्पाद ही थे ।  भारत जैसे उपननवेशों से कच्चा माल एवीं खाद्य पदाथि ननयाित होते थे और तैयार वस्तुओीं का आयात होता था । व्यापार ही दूरस्थ देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य जररया था ।  ब सव ीं शताब्दी के मध्य के बाद से कई कीं पननयों ने ववश्व के ववमभन्न भागों में अपने पैर पसारने शुरु क्रकये। इस तरह से बहुराष्रीय कीं पननयों का जन्म हुआ।
  • 8. बहुराष्रीय कीं पन :-  एक बहुराष्रीय कीं पन वह है जो एक से अर्धक देशों में उत्पादन पर ननयींत्रण अथवा स्वाममत्व रखत है ।  बहुराष्रीय कीं पननयाँ उत्पादन लागत में कम करने तथा अर्धक लाभ कमाने के मलए उन प्रदेशों में कायिलय तथा उत्पादन के मलए कारखाने स्थावपत करत हैं, जहाँ उन्हें सस्ता श्रम एवीं अन्य सींसाधन ममल सकते हैं ।  बहुराष्रीय कीं पननयाँ वैश्श्वक स्तर पर वस्तुओीं और सेवाओीं का उत्पादन करने के साथ –साथ तैयार उत्पाद को ववश्व स्तर पर बेचत भ है ।
  • 9. बहुराष्रीय कीं पननयाँ द्वारा ननवेश:-  सामान्यत: बहुराष्रीय कीं पननयाँ उस स्थान पर ननवेश करत हैं :- I. जो बाज़ार के नज़दीक हो । II. जहाँ कम लागत पर कु शल और अकु शल श्रम उपलब्ध हो । III. और जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता सुननश्श्चत हो । IV. साथ ही बहुराष्रीय कीं पननयाँ सरकारी न नतयों पर भ नज़र रखत हैं जो उनके दहतों का देखभाल करत हैं ।  इन पररश्स्थनतयों को सुननश्श्चत करने के बाद ही बहुराष्रीय कीं पननयाँ उत्पादन के मलए कायिलयों और कारखानों की स्थापना करत हैं ।
  • 10. ववदेश ननवेश :-  बहुराष्रीय कीं पननयों द्वारा क्रकये गए ननवेश को ववदेश ननवेश कहते हैं । बहुराष्रीय कीं पननयाँ लाभ अश्जित करने के उदेश्य से ननवेश करत है ।  पररसींपवियों जैसे-भूमम , भवन, मश न और अन्य उपकरणों की खरीद पर क्रकये गए ननवेश को मुद्रा ननवेश कहते हैं ।
  • 11. ववश्व-भर के उत्पादन को एक दूसरे से जोड़ना :-  बहुराष्रीय कीं पननयाँ ववश्व-भर के उत्पादन को एक दूसरे से जोड़ने में महत्वपूणि भूममका ननभा रही है। बहुराष्रीय कीं पननयाँ ननम्न तरीकों से उत्पादन ननयींत्रत्रत करत हैं :- 1. स्थान य कीं पननयों के साथ साझेदारी द्वारा उत्पादन 2. स्थान य कीं पननयों से ननकट प्रनतस्पधाि करना अथवा उन्हें खरीदकर उत्पादन का प्रसार करना 3. छोटे उत्पादकों के उत्पादन को अपने ब्राण्ि नाम से ग्राहकों को बेचना • ववगत त न दशकों से अर्धकाींश बहुराष्रीय कीं पननयाँ ववश्व में उन स्थानों की तलाश कर रही है, जो उनके उत्पादन के मलए सस्ते हों । इन देशों में बहुराष्रीय कीं पननयों के ननवेश में वृद्र्ध हो रही है, साथ ही ववमभन्न देशों के ब च ववदेश व्यापार में भ वृद्र्ध हो रही है ।
  • 12. ववदेश व्यापार और बाज़ारों का एकीकरण :-  लम्बे समय से ववदेश व्यापार ववमभन्न देशों को आपस में जोड़ने का मुख्य माध्यम रहा है । व्यापाररक दहतों के कारण ही व्यापाररक कीं पननयाँ जैसे, ईस्ट इींडिया कीं पन भारत की ओर आकवर्ित हुई ।  विदेिी व्यापार:- ववदेश व्यापार वह व्यापार है जो दो या दो से अर्धक देशों के ब च होता है । उदाहरण के मलए भारत और अमेररका के ब च होने वाले व्यापार को ववदेश व्यापार कहा जाएगा ।  विदेिी व्यापार का मुख्य कायथ:- 1. ववदेश व्यापार घरेलू बाजारों अथाित् अपने देश के बाज़ारों से बाहर के बाज़ारों में पहुँचने के मलए उत्पादकों को अवसर प्रदान करता है । उत्पादक के वल अपने देश के बाज़ारों में ही अपने उत्पाद नहीीं बेच सकते हैं, बश्ल्क ववश्व के अन्य देशों के बाज़ारों में भ प्रनतस्पधाि कर सकते हैं । 2. ववदेश व्यापार से बाज़ार में खरीददारों के समक्ष वस्तुओीं के ववकल्प बढ़ जाते हैं ।
  • 13. बाज़ारों का एकीकरण:-  ववदेश व्यापार ववमभन्न देशों के बाज़ारों को जोड़ने या एकीकरण में सहायक होता है ।  ववदेश व्यापार का एक बड़ा भाग बहुराष्रीय कीं पननयों द्वारा ननयींत्रत्रत होता है । जैसे , भारत में फोिि मोटर का कार सींयींत्र , के वल भारत के मलए ही करों का ननमािण नहीीं करता, बश्ल्क वह अन्य ववकासश ल देशों को कारें और ववश्व भर में अपने कारखानों के मलए कार - पुजों का भ ननयाित करता है ।  अर्धक ववदेश व्यापार और अर्धक ववदेश ननवेश के पररणामस्वरूप ववमभन्न देशों के बाज़ारों एवीं उत्पादनों में एकीकरण हो रहा है ।  ववमभन्न देशों के ब च परस्पर सींबींध और त व्र एकीकरण की प्रक्रिया ही वैश्व करण है ।
  • 14. िैश्िीकरण के कारण:-  वैश्व करण एक ऐस व्यवस्था है श्जसमें स माओीं का कोई महत्व नहीीं है और सारा ववश्व एक सामुदानयक इकाई बन गया है । ववचारकों ने इसे भूमण्िल या ववश्व ग्राम का नाम ददया है । ऐस व्यवस्था के उदय होने के कारण ननम्नमलखखत हैं :-  खचि कम करने की आवश्यकता  नये बाजार की तलाश  अर्धक लाभ  सींचार व सूचना िाींनत  बेहतर आय, बेहतर रोज़गार एवीं मशक्षा की तलाश
  • 15. विदेिी व्यापार तर्ा विदेिी ननिेि का उदारीकरण :-  1980-90 के दशक तक अर्धकाींश देश अपने बाजार को ववश्व के बाजार से अलग थलग रखना इसमलए पसींद करते थे, ताक्रक स्थान य उद्योग धींधों को बढ़ावा ममल सके । इसके मलये भारी आयात शुल्क लगाया जाता था ताक्रक आयानतत सामान महींगे हो जाएँ। इस तरह की न नतयों को व्यापार अवरोधक (रेि बैररयर) कहते हैं।  व्यापार अिरोर्क (ट्रेड बैररयर):- व्यापार अवरोधक व्यापार पर कु छ प्रनतबींध लगाता है । सरकारें व्यापार अवरोधक का प्रयोग ववदेश व्यापार में वृद्र्ध या कटौत करने और देश में क्रकस प्रकार की वस्तुएँ क्रकतन मात्रा में आयानतत होन चादहए, यह ननणिय लेने के मलए कर सकत हैं। आयात पर कर, व्यापार अवरोधक का एक उदहारण है । सरकार आयात होने वाली वस्तुओीं की सींख्या भ स ममत कर सकत है । इसे कोटा कहते हैं ।
  • 16.  स्वतींत्रता के बाद भारत सरकार ने देश के उत्पादकों को ववदेश प्रनतस्पधाि से सरींक्षण प्रदान करने के मलए ववदेश व्यापार एवीं ववदेश ननवेश पर प्रनतबींध लगा रखा था । भारत ने के वल अननवायि च जों जैसे , मश नरी, उविरक और पेरोमलयम के आयात की ही अनुमनत दी थ । सभ ववकमसत देशों ने ववकास के प्रारींमभक चरणों में घरेलू उत्पादकों को ववमभन्न तरीकों से सरींक्षण ददया है ।  भारत सरकार ने 1991 में उदारवादी न नतयों की शुरुआत की तथा ववदेश व्यापार एवीं ववदेश ननवेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा ददया गया । उसके बाद भारत में कई बहुराष्रीय कीं पननयों का पदापिण हुआ।
  • 17. उदारीकरण :-  सरकार द्वारा अवरोधों अथवा प्रनतबींधों को हटाने की प्रक्रिया उदारीकरण के नाम से जान जात है । “उदारीकरण का अथि है, सरकार द्वारा लगाए गए प्रत्यक्ष या भौनतक ननयींत्रणों से अथिव्यवस्था की मुश्क्त।”  कु छ बहुत प्रभावशाली अींतरािष्रीय सींगठनों ने भारत में ववदेश व्यापार एवीं ववदेश ननवेश के उदारीकरण का समथिन क्रकया ।
  • 18. ववश्व व्यापार सींगठन :-  ववश्व व्यापार सींगठन (िब्ल्यू.टी.ओ.) एक अींतरािष्रीय सींगठन है जो ववश्व व्यापार के मलए ननयम बनाता है । ववश्व व्यापार सींगठन का इनतहास 15 अप्रैल, 1994 से प्रारम्भ होता है जब मोरक्को के एक शहर “मराके श” में चार ददवस य वाताि प्रारम्भ हुई थ । इस सम्मेलन की अध्यक्षता गैट (GATT ) के प्रर्म महाननदेिक पीटर सदरलैंड ने की थ ।  वस्तुतः इस सम्मलेन में “गैट” को नया नाम “ववश्व व्यापार सींगठन” (िब्ल्यू.टी.ओ.) ददया गया । यह सींगठन 1 जनिरी, 1995 से अश्स्तत्व में आया । इसके प्रथम स्थाय अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसाय रेनटो रुर्गयरो बनाए गये। इसके ितथमान महाननदेिक राबटथ एज्बेड़ो हैं ।
  • 19.  वतिमान समय में इसके 164 सदस्य हैं। इसका मुख्यालय जेनेवा , श्स्वर्टजरलैंि में है ।  अब तक इसके 10 मींत्रत्रस्तरीय सम्मेलन हो चुके हैं । 10 वाीं सम्मलेन के न्या में ददसम्बर 2015 में हुआ था, इस बैठक में अफगाननस्तान को इसका 164 वाीं सदस्य चुना गया था ।  भारत इसका एक सींस्थापक सदस्य देश है । च न इसमें 2001 में शाममल हुआ था ।  ववश्व व्यापार सींगठन (िब्ल्यू.टी.ओ.) एक ऐसा सींगठन है, श्जसका ध्येय अींतरािष्रीय व्यापार को उदार बनाना है ।  यह सींगठन अन्तरािष्रीय व्यापार से सम्बश्न्धत ननयमों को ननधािररत करता है तथा उनकी देखरेख करता है ।
  • 20. भारत में िैश्िीकरण का प्रभाि :-  ववगत त न दशकों में भारत य अथिव्यवस्था के वैश्व करण ने एक लम्ब दूरी तय की है इसका लोगों के ज वन पर ननम्नमलखखत प्रभाव पड़ा है :-  िैश्िीकरण के लाभ :- 1. उपभोक्ताओीं को लाभ 2. रोजगार के बेहतर अवसर 3. ज वन स्तर में सुधार 4. ववदेश पूींज ननवेश में वृद्र्ध 5. ववदेश तकन क का आगमन 6. बाज़ार में प्रनतयोर्गता 7. ववदेश वस्तुएीं 8. ववदेश मुद्रा में वृद्र्ध 9. स मा रदहत ववश्व 10. कच्चे माल की आपूनति करने वाली स्थान य कीं पननयाँ समृद्ध 11. अनेक श र्ि भारत य कीं पननयाँ बढ़ी हुई प्रनतस्पधाि से लाभाश्न्वत
  • 21. िैश्िीकरण की हाननयााँ :-  आर्थिक असमानता में तेज से वृद्र्ध  ववकमसत देशों द्वारा गलत तरीकों का इस्तेमाल  छोटे उत्पादकों के मलए प्रनतस्पधाि करना बड़ चुनौत  प्रनतस्पधाि और अननश्श्चत रोज़गार  तकन क के प्रयोग से बेरोजगारी में वृद्र्ध  भारत य माल की कम माींग  सेवा शुल्क में वृद्र्ध  अींतरािष्रीय आर्थिक मन्दी
  • 22. समूह ननमािण :-  सभ ववद्यर्थियों को चार समूहों में बाींटा गया है :- समूह कायि :- समूह विषय 1 सूचना प्रौद्योर्गकी वैश्व करण से कै से जुि हुई है ? क्या सूचना प्रौद्योर्गकी के प्रसार के त्रबना वैश्व करण सींभव होता ? 2 बहुराष्रीय कीं पननयाँअन्य कीं पननयों से क्रकस प्रकार अलग है ? 3 लगभग सभ बहुराष्रीय कीं पननयाँ , अमेररका, जापान या यूरोप की है जैसे नोक्रकया , कोका-कोला, पेप्स , होन्िा , नाइकी । क्या आप अनुमान लगा सकते हैं क्रक ऐसा क्यों है ? 4 सरकारें अर्धक ववदेश ननवेश आकवर्ित करने का प्रयास क्यों करत हैं ?
  • 23. सारांि:-  वैश्व करण आधुननक युग की ऐस वास्तववकता है श्जससे हम मुँह नहीीं मोड़ सकते। वैश्व करण सभ के मलए लाभप्रद नहीीं रहा है । मशक्षक्षत , कु शल और सींपन्न लोगों ने वैश्व करण से ममले नए अवसरों का सवोतम उपयोग क्रकया है । दूसरी ओर, अनेक लोगों को लाभ में दहस्सा नहीीं ममला है । वैश्व करण से यदद फायदे हुए हैं तो नुकसान भ हुए हैं। लेक्रकन नुकसान की तुलना में फायदे अर्धक हुए हैं। अब जरूरत है ऐस न नतयों की श्जनसे वैश्व करण का लाभ जन मानस तक पहुँचे। जब हर तबके का आदम एक ननश्श्चत स्तर की ज वनशैली ज ने लगेगा तभ वैश्व करण को सफल माना जायेगा।
  • 24. गृह कायथ :- 1. अत त में देशों को जोड़ने वाला मुख्य माध्यम क्या था ? अब यह अलग कै से है ? 2. वैश्व करण से आप क्या समझते हैं ? अपने शब्दों में स्पष्ट कीश्जए । 3. ववदेश व्यापार और ववदेश ननवेश में अींतर स्पष्ट करें । 4. वैश्व करण प्रक्रिया में बहुराष्रीय कीं पननयोंकी क्या भूममका है ? 5. वे कौन से तरीके हैं, श्जनके द्वारा देशों को सींबींर्धत क्रकया जा सकता है ? 6. प्रनतस्पधाि से भारत के लोगों को कै से लाभ हुआ है ?
  • 25. Thanks Prepared By:- Lal Man Chandel Lecture in Economics G.S.S.S.Haripur, Tehsil Manali ,District Kullu (H.P.) Contact No. :- 94180 66578 Email Id :- lmc3185@rediffmail.com