2. संगीतासंगीता::अमूलयः एषः पुसतकानां संगहः।अमूलयः एषः पुसतकानां संगहः।
संगीतासंगीता::यह पुसतको का संगह अमूलय है।यह पुसतको का संगह अमूलय है।
अंिकताअंिकता::संगीतेसंगीते!!अयम् असमाकं िवदालयसय पुसतकालयः।अयम् असमाकं िवदालयसय पुसतकालयः।
अंिकताअंिकता::संगीतासंगीता,,यह हमारे िवदालय का पुसतकालय है।यह हमारे िवदालय का पुसतकालय है।
संगीतासंगीता::अहोअहो!!अत तु गनथचिकका अिप अिसत।अत तु गनथचिकका अिप अिसत।
संगीतासंगीता::अरेअरे ,, यहा तो पुसतको की सूची भी है।यहा तो पुसतको की सूची भी है।
अंिकताअंिकता::आम्आम्!!असयां गनथचिककायाम् अनेके संसकृ तगनथाःअसयां गनथचिककायाम् अनेके संसकृ तगनथाः
सथािपताः।सथािपताः।
3. अंिकता:हाँ,इस सूची मे अनेक संसकृ त गनथ भी है।
संगीता:वेदाः,उपिनषदः,रामायणं,
महाभारतं,पुराणािन।
कथमत गीता तु न दृशयते।
संगीता:वेद,उपिनषद,रामायण,महाभारत,पुराण।यहा
गीता नही िदखाई पढ़ रही है।
अंिकता:अिय!गीता तु महाभारतसय एव अंशः।
अंिकता:अरे,गीता तो महाभारत का ही एक अंशः है।
संगीता:महाभारते तु कौरवपाणडवानां युदं विणतम्।
4. संगीता:महाभारत मे तो कौरवो-पणडवो का युद विणत है।
अंिकता:संगीते!िक न जानािस तिसमन् एव युदकाले
शीकृ षणः मोहगसतम् अजुरनम् यत् उपािदशत् तदेव
गीतायां िनबदम्।
अंिकता:संगीता!कया जानती नही हो उसी युद के समय
शीकृ षण ने भिमत अजुरन को जो उपदेश िदया वही गीता
मे है।
संगीता:आम्!समरािम,परं कसतावत् उपदेशः?
संगीता:हाँ,याद है,पर वह उपदेश कया है?
5. अंिकता:तसय उपदेशसयैव एकम् अंशम् अद वयं पठामः।
शीषरकसतु-‘ ’अभयासवशगं मनः
अंिकता:उसी उपदेश का एक अंश आज हम पढ़ेगे।
शीषरक है-‘ ’अभयासवशगं मनः मन को अभयास से वश
मे िकया जा सकता है।
संगीता:कोऽथरः असय शीषरकसय?
संगीता:इस शीषरक का अथर कया है?
अंिकता:मनः चञलम् परम् अभयासेन वशं गचछित
अंिकता:मन चञल है,पर अभयास से वश मे हो जाता
है।
10. अजुरनः उवाच-
अथ के न पयुककोऽयं पापं
चरित पूरषः।
अिनचछनिप वाषणेय!
बलािदव िनयोिजतः॥
हे वाषणेय!यह मनुषय न
चाहते हए भी बलपूवरक
पाप का आचरण िकसके
कहने पर करता है?
11. अजुरनः उवाच-
अथ के न पयुककोऽयं पापं चरित पूरषः।
अिनचछनिप वाषणेय! बलािदव िनयोिजतः॥
—एकपदेन उतरत
पुरषः कम चरित?
पापम कः चरित?
अिसमन शोके कः वदित?
अिसमन शोके अजुरनः कम वदित?
13. शीकृ षणः उवाच
काम एष कोध एष
रजोगुणसमुदवः।
महाशनो महापापमा
िवदधयेनिमह
वैिरणम्॥
रजोगुण से उत्पन
काम ही कोध है जो
कभी तृप नही होता
और महापापी है।
इसको तुम अपना
शत्रु समझो।
16. शकोतीहैव यः सोढुं पाक्
शरीरिवमोकणात्।
कामकोधोदवं वेगं,स
युकः स सुखी नरः॥
जो व्यिक शरीर नष होने
से पहले ही इस शरीर
मे काम-कोध
की तीवता से उत्पन होने
वाले वेग को सहन कर
सकता है वही
योगी है और वही सुखी
रहता है।
19. धयायतः िवषयान् पुंसः संगसतेषूपजायते।
सङगातसञायते कामः कामातकोधोऽिभजायते॥
जो पुरष िवषयो का ही िचनतन करते है उनकी
िवषयो मे आसिक हो जाती है।आसिक से काम
उतपन होता है,काम से कोध उतपन होता है।
कोधादवित संमोहः सममोहातसमृितिवभमः।
समृितभंशाददुिदनाशो दुिदनाशातपणशयित॥
कोध से सममोह,सममोह से समृितभम, समृितभम से
दुिद का नाश और दुिद के नाश से वह सवयं नष हो
जाता है।
26. शीकृ ष्णः उवाच
अर्संशयं महादाहो!मनो
दुिनगहं चलम्।
अर्भयासेन तु
कौनतेय,वैरागयेण च
गृहते॥
इसमे संदेह नही िक मन
किठनता से वश मे
होता है और चनचल
है।परनतु हे कौनतेय!
िनरनतर अर्भयास और
वैरगय से वश मे िकया
जा सकता है।
29. गीतायां गुणवानां ि?तधा ि?वभागः कृ तः।
गीता मे गुणवो के तीन भाग िकये गये है।
सतवं रजस्तम इि?त गुणवाः प्रकृ ि?तसनभवाः।
ि?नबधि?नत महाबाहो देहे देि?हनमवयम्॥
प्रकृ ि?त मे तीन गुणव पाए जाते है-सतो,रज
ोो,तमो।ये तीनो गुणव शरीर मे रह रहे
अस्तवय रपी आत्मा को भी बांध लेते है।
30.
31. साि?तवकः
आहाराः-आयुः,सतव,बल,आरोगय प्रीि?ति?ववधर्णनाः।
आयु,पराकम,बल को बडनेवाला।
यगयः-अस्तफलािथकि?भः ि?वि?धपूर्वर्णकं िकयते
फल की इचछा न रखने वाले ि?वि?धपूर्वर्णक करते है।
तपः-शारीरं तपः,वाङयं तपः,मानसं तपः।
शरीर,वाणवी और मन का तप।
दानम्-देशकाल पातानुसारं सुपाताय दीयते।
सही जगह सही समय सही वि?क्त को उसके अस्तनुसार्
देते है।
बुि?दः-यम,ि?नयम,शदा,भि?क्तमयी।
ि?नयमो को मानने वाला,शदापूर्णवर्ण,भि?क्त से युक्त।
32. राजि?सकः
आहाराः-कटु,आमल,लवणव,तीकणव,रक।
कडवा,खटा,नमिकन,तीखा,रखा।
यगयः-यत् फलम् उिदशय दमभाथकर िकयते।
अस्तपने ि?लये फल के उदेशय से करते है।
तपः-सत्कारमानपूर्जाथकर दमभेन िकयते।
अस्तपने ि?लये सत्कार के साथक पूर्जा करते है।
दानम्-प्रत्युपकाराथकर्णम् फलेचछाया दीयते।
दूर्सरो के उपकार और फल की इचछा से देते है।
बुि?दः-धमर्णम् अस्तधमर्णम्,कायर्णम् अस्तकायर्णम् समयक् न जानाि?त।
धमर्ण,अस्तधमर्ण,करने योगय कायर्ण और न करने योगय कायर्ण को ठीक
से नही जानता।
33. तामि?सकः
आहराः-उि?चछषाः,पयुर्णि?षिताः,अस्तमेधयाः,गतरसाः।
झूर्ठा,बाि?स,जो खाने योगय न हो,स्वाद रि?हत।
यगयः-मनतहीनः,अस्तन दान हीनः,अस्तदि?कणवः।
मनत,अस्तन,दान,दि?कणवा के ि?बना।
तपः-परेषिां ि?वनाशाय।
दूर्सरो के ि?वनाश हेतु।
दानम्-अस्तदेशकाले अस्तपातेभ्यः।
गलत जगह गलत समय गलत वि?क्त को।
बुि?दः-प्रमाद,मूर्ढता,आलस्य,मोह,अस्तगयानमयी।
आलसी,मूर्खर्ण,मोही,अस्तगयानी।